Friday, May 16, 2025

परमाणु बम के खतरनाक परिणाम

 6 अगस्त 1945 — मानव इतिहास का वह काला दिन, जब अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर दुनिया का पहला परमाणु बम गिराया. तीन दिन बाद नागासाकी पर दूसरा हमला हुआ. दोनों शहर लगभग पूरी तरह तबाह हो गए.

पल भर में डेढ़ लाख से ज्यादा लोग मारे गए, लेकिन इस तबाही की भयावहता यहीं नहीं रुकी.इसके ज़हरीले निशान आने वाले दशकों तक इंसानों को निगलते रहे. इतिहास में इंसान का इंसान पर किया गया यह सबसे बड़ा और निर्मम अपराध था, जिसका जिम्मेदार अमेरिका था।
'फैट मैन' और 'लिटिल बॉय' - ये थे वो दो परमाणु बम, जिन्हें अमेरिका ने तैयार किया था और जिन्होंने इंसानी इतिहास की सबसे भयावह तबाही को अंजाम दिया. इन्हें बनाने वाले वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने बम गिरने के बाद कहा था कि मेरे हाथ खून से सने हैं.
हिरोशिमा पर विस्फोट इतना भीषण था कि महज एक मिनट में शहर का 80 प्रतिशत हिस्सा राख में बदल गया, जो लोग बच भी गए, उन्हें विकिरण की जहरीली लहरों और 'काली बारिश' ने अपनी चपेट में ले लिया. बाद में हजारों लोग कैंसर, ल्यूकीमिया और अन्य भयानक बीमारियों का शिकार हुए.
जो इस परमाणु तूफान में जिंदा रह गए, उनकी जिंदगी भी किसी सजा से कम नहीं थी. ये लोग 'हिबाकुशा' कहलाते हैं. जापानी भाषा का एक शब्द, जिसका अर्थ है 'विस्फोट से प्रभावित व्यक्ति'.हिबाकुशा ना सिर्फ पीढ़ी दर पीढ़ी विकिरण जनित बीमारियों से जूझते रहे, बल्कि समाज के तिरस्कार के शिकार भी बने, उन्हें बीमारी का सोर्स माना गया.बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि आज भी जापान में कई लोग हिबाकुशा से विवाह करने से कतराते हैं. उन्हें सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया गया.
BBC की एक डॉक्यूमेंट्री में 86 वर्षीय मिचिको कोडमा का इंटरव्यू है. एक 'हिबाकुशा', जिन्होंने हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरने की त्रासदी खुद अपनी आंखों से देखी और सही है.मिचिको कहती हैं कि जब मैं आज दुनिया में चल रहे जंग के बारे में सोचती हूं.मेरा शरीर कांप उठता है... और आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं. हम परमाणु बमबारी के उस नरक को दोबारा नहीं दोहरा सकते. मुझे संकट का एहसास हो रहा है.
बीबीसी की रिपोर्ट में एक हिबाकुशा का बयान है, जो उस दिन की दर्दनाक लम्हे को आज भी नहीं भूल पाए हैं. वे कहते हैं कि जो कुछ भी मैंने देखा... वो किसी नरक से कम नहीं थाॉ. लोग हमारी ओर भाग रहे थे, उनके शरीर पिघल रहे थे, मांस लटक रहा था. बुरी तरह झुलसे हुए लोग दर्द से कराह रहे थे. उनकी चीखें अब भी मेरे कानों में गूंजती हैं.
1980 में, वैज्ञानिकों ने 'न्यूक्लियर विंटर थ्योरी' पेश की, जिसमें परमाणु युद्ध के प्रभाव का विश्लेषण किया गया था. यह थ्योरी हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों के नतीजों को देखते हुए विकसित की गई थी. इस थ्योरी के मुताबिर, किसी भी स्तर का परमाणु युद्ध वैश्विक तापमान को प्रभावित करेगा, जिससे धरती का औसत तापमान 10 सालों में 10 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है. इससे सूरज की रोशनी धरती तक नहीं पहुंचेगी, जिससे पौधे मुरझा जाएंगे और वैश्विक खाद्य उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा, जिससे भुखमरी और खाद्य संकट आ जाएगा.
Science Alert की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर रूस और अमेरिका के बीच परमाणु युद्ध हुआ, तो न केवल न्यूक्लियर विंटर आएगा, बल्कि समुद्र का तापमान भी गिर जाएगा. यानी धरती एक 'न्यूक्लियर आइस एज' में प्रवेश कर सकती है, जो हजारों सालों तक चल सकती है. वर्तमान में दुनिया के 9 देशों के पास परमाणु हथियार हैं-विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध होता है, तो लगभग 13 करोड़ लोगों की तत्काल मौत हो सकती है. जंग के दो साल बाद तक करीब 2.5 अरब लोग भुखमरी के शिकार हो सकते हैं.
हिरोशिमा में अब फिर से फूल खिलने लगे हैं.हिरोशिमा और नागासाकी ये दो शहर जो कभी राख हो गए थे.अब फिर से उठ खड़े हुए हैं. जापान के ये शहर आज न सिर्फ फिर से बस चुके हैं. सड़कें, दीवारें, और म्यूजियम आज भी दुनिया को याद दिलाते हैं कि तबाही का वो मंजर दोहराया नहीं जाना चाहिए.
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ज्ञान की चार बात

एक राजा के विशाल महल में एक सुंदर वाटिका थी, जिसमें अंगूरों की एक बेल लगी थी। वहां रोज एक चिड़िया आती और मीठे अंगूर चुन-चुनकर खा जाती और अधपके और खट्टे अंगूरों को नीचे गिरा देती।

माली ने चिड़िया को पकड़ने की बहुत कोशिश की पर वह हाथ नहीं आई। हताश होकर एक दिन माली ने राजा को यह बात बताई। यह सुनकर भानुप्रताप को आश्चर्य हुआ। उसने चिड़िया को सबक सिखाने की ठान ली और वाटिका में छिपकर बैठ गया।

जब चिड़िया अंगूर खाने आई तो राजा ने तेजी दिखाते हुए उसे पकड़ लिया। जब राजा चिड़िया को मारने लगा, तो चिड़िया ने कहा, 'हे राजन, मुझे मत मारो। मैं आपको ज्ञान की 4 महत्वपूर्ण बातें बताऊंगी।'

राजा ने कहा, 'जल्दी बता।'

चिड़िया बोली, 'हे राजन, सबसे पहले, तो हाथ में आए शत्रु को कभी मत छोड़ो।'

राजा ने कहा, 'दूसरी बात बता।'

चिड़िया ने कहा, 'असंभव बात पर भूलकर भी विश्वास मत करो और तीसरी बात यह है कि बीती बातों पर कभी पश्चाताप मत करो।'

राजा ने कहा, 'अब चौथी बात भी जल्दी बता दो।' 

इस पर चिड़िया बोली, 'चौथी बात बड़ी गूढ़ और रहस्यमयी है। मुझे जरा ढीला छोड़ दें क्योंकि मेरा दम घुट रहा है। कुछ सांस लेकर ही बता सकूंगी।'

चिड़िया की बात सुन जैसे ही राजा ने अपना हाथ ढीला किया, चिड़िया उड़कर एक डाल पर बैठ गई और बोली, 'मेरे पेट में दो हीरे हैं।'

यह सुनकर राजा पश्चाताप में डूब गया। राजा की हालत देख चिड़िया बोली, 'हे राजन, ज्ञान की बात सुनने और पढ़ने से कुछ लाभ नहीं होता, उस पर अमल करने से होता है। आपने मेरी बात नहीं मानी।

मैं आपकी शत्रु थी, फिर भी आपने पकड़कर मुझे छोड़ दिया। 

मैंने यह असंभव बात कही कि मेरे पेट में दो हीरे हैं फिर भी आपने उस पर भरोसा कर लिया।

आपके हाथ में वे काल्पनिक हीरे नहीं आए, तो आप पछताने लगे।

सारांश- उपदेशों को जीवन में उतारे बगैर उनका कोई मोल नहीं।


गण्डकी नदी महत्व

हिन्दू धर्म में शालिग्राम पत्थर को विष्णु का रूप माना गया है। लोग इस पत्थर को पूजते हैं। ऐसा माना जाता है कि एक श्राप के कारण विष्णु जी को पत्थर बनना पड़ा था। शालिग्राम नेपाल की गंडकी नदी के तल से प्राप्त होते हैं।


 गण्डकी नदी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी पत्थर इस नदी में आता है वह शालिग्राम अर्थात विष्णु जी का रूप बन जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गण्डकी नदी रूप में आने से पहले एक वेश्या हुआ करती थी। चलिए जानते हैं गण्डकी नदी की सम्पूर्ण कथा


पौराणिक समय की बात है किसी गांव में गण्डकी नाम की एक वेश्या रहती थी। वह लोगों से पैसे लेकर अपना शरीर बेचती थी। एक दिन की बात है उस गांव में एक महात्मा जी पधारे। वह लोगों को भगवत भजन सिखाते और जीवन में क्या सही है और क्या गलत इसके बारे में भी ज्ञान देते।


 वेश्या को जब महात्मा के बारे में पता चला तो वह भी उनके पास आई। गण्डकी ने महात्मा से कहा मुझे भी ज्ञान दीजिये। तब महात्मा बोले पुत्री ज्ञान चाहिए तो तुम्हें ये गलत काम छोड़ना होगा। गण्डकी ने कहा प्रभु मैं अपना शरीर बेचना नहीं छोड़ सकती। तब महात्मा बोले फिर तुम ऐसा करो जो भी पुरुष तुम्हारे पास आये उसे तुम एक रात के लिए अपना पति मान लो। पति की तरह ही उस पुरुष की तुम रात भर सेवा करो।


उसके बाद महात्मा से आज्ञा लेकर गण्डकी अपने घर आ गई और फिर अगले दिन से जो कोई भी पुरुष उसके पास आता वह उसके साथ पूरी रात एक पत्नी की तरह व्यवहार करती। खुद खाने से पहले वह उस पुरुष को खाना खिलाती उसके बाद ही स्वयं खाती। इसी तरह समय बीतता गया और एक दिन भगवान विष्णु उस वेश्या की परीक्षा लेने पुरुष के वेश में आये। गण्डकी ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। उसके बाद मनुष्य मनुष्य रूपी विष्णु जी के साथ पत्नी जैसा व्यवहार किया। फिर दोनों सो गए। सुबह के समय अचानक विष्णु जी को सर में दर्द होने लगा और कुछ देर बाद ही मनुष्य रूपी विष्णु जी परलोक सिधार गए।


यह बात जब गांव वालों को मालूम हुआ तो वे सभी उसके घर आये और लाश को अर्थी पर सजाकर श्मशान ले जाने लगे। यह देख गण्डकी भी उन लोगों के साथ श्मशान की ओर चल दी। गांव वाले मन ही मन सोचने लगे यह वेश्या श्मशान क्यों जा रही है? फिर जब श्मशान में चिता पर शव को रखा गया तो वह वेश्या भी चिता पर शव को गोद में लेकर बैठ गई। यह देख गांव वाले हैरान हो गए। मुखाग्नि देने के बाद चिता से आग की लपटें उठने लगी। गण्डकी मन ही मन भगवान को याद कर रही थी। कुछ समय बाद अचानक अग्नि के बीच भगवान विष्णु प्रकट हुए और गण्डकी से बोले हे पुत्री मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं।


अपने सामने विष्णु जी को देखकर गण्डकी रोने लगी, तब विष्णु जी ने उसे वरदान दिया, आज से तुम नदी के रूप में पृथ्वी पर वास करोगी और तुम्हें पूज्य माना जाएगा। तब गण्डकी ने कहा प्रभु मेरी एक विनती है, जैसे आप चिता पर मेरी गोद में थे उसी तरह पत्थर के रूप में इस नदी में भी वास करिए। भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कलयुग के अंत तक मैं शालिग्राम के रूप में गण्डकी नदी में वास करुंगा।

शिप्रा नदी का महत्व

भगवान विष्णु के रक्त से जन्मी हैं मोक्षदायनी मां शिप्रा नदी, श्रीराम ने यहीं किया था पिता का तर्पण

शिप्रा नदी की उत्तपत्ति के बारे में एक पौराणिक कथा का उल्लेख, हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है. बहुत समय पहले भगवान शिव ने ब्रह्म कपाल लेकर, भगवान विष्णु से भिक्षा मांगने पहुंचे. भगवान विष्णु ने उन्हें अंगुली दिखाते हुए भिक्षा प्रदान की. इस अशिष्टता से भगवान भोलेनाथ नाराज हो गए. उन्होंने तुरंत अपने त्रिशूल से विष्णु जी की उस अंगुली पर प्रहार कर दिया. अंगुली से रक्त की धारा बह निकली. जो विष्णुलोक से धरती पर आ पहुंची. इस तरह यह रक्त की यह धार, शिप्रा नदी में परिवर्तित हो गई।

 मोक्षदायनी नदी शिप्रा नदी का काफी पौराणिक महत्‍व है. यह मध्य प्रदेश की धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी उज्जैन से होकर गुजरती है. उज्जैन की शिप्रा नदी, जहां हर 12 वर्ष बाद सिंहस्थ कुंभ का आयोजन किया जाता है. कुंभ विश्व का सबसे बड़ा मेला है. एक किंवदंती के अनुसार शिप्रा नदी विष्णु जी के रक्त से उत्पन्न हुई थी।

ब्रह्मपुराण में भी शिप्रा नदी का उल्लेख मिलता है. संस्कृत के महाकवि कालिदास ने अपने काव्य ग्रंथ ‘मेघदूत’ में शिप्रा का प्रयोग किया है, जिसमें इसे अवंति राज्य की प्रधान नदी कहा गया है. महाकाल की नगरी उज्जैन, शिप्रा के तट पर बसी है. स्कंद पुराण में शिप्रा नदी की महिमा लिखी है. पुराण के अनुसार यह नदी अपने उद्गम स्थल बहते हुए चंबल नदी से मिल जाती है.प्राचीन मान्यता है कि प्राचीन समय में इसके तेज बहाव के कारण ही इसका नाम शिप्रा प्रचलित हुआ।

रक्त की धार हो गई शिप्रा नदी में परिवर्तित

शिप्रा नदी की उत्तपत्ति के बारे में एक पौराणिक कथा का उल्लेख, हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है. बहुत समय पहले भगवान शिव ने ब्रह्म कपाल लेकर, भगवान विष्णु से भिक्षा मांगने पहुंचे. भगवान विष्णु ने उन्हें अंगुली दिखाते हुए भिक्षा प्रदान की. इस अशिष्टता से भगवान भोलेनाथ नाराज हो गए. उन्होंने तुरंत अपने त्रिशूल से विष्णु जी की उस अंगुली पर प्रहार कर दिया. अंगुली से रक्त की धारा बह निकली. जो विष्णुलोक से धरती पर आ पहुंची. इस तरह यह रक्त की यह धार, शिप्रा नदी में परिवर्तित हो गई. शिप्रा नदी के किनारे स्थित घाटों का भी पौराणिक महत्व है. जिनमें रामघाट मुख्य घाट माना जाता ह।

भगवान राम ने क्षिप्रा किनारे किया था पिता का श्राद्धक्षिप्रा नदी के किनारे के घाटों का भी पौराणिक महत्व है. माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ का श्राद्धकर्म और तर्पण इसी घाट पर किया था. जिस वजह से रामघाट को क्षिप्रा नदी का मुख्य घाट माना जाता है।