Thursday, August 15, 2019

सच का साथ

 

आकाश में चमकते सितारों को सबने अपना बताया।

गिरे टूट कर आकाश से , उनसे सबने दामन बचाया।।

 

सिक्को की खनक जोर से सबके कानों में ऐसे गूँजी।

जो इंसान गलत था , सबने उसको ही सही बताया।।

 

जीवन मे सबने किसी ना किसी को धोखा जरूर दिया।

एक मुखोटा झूठी ईमानदारी का सबके सामने फिर किया।।

 

माना आज अपने दोषो को झूठे चेहरे से छिपा लोगे।

एक दिन धिक्कारेगी अंतरात्मा,तब क्या जवाब दोगे।।

 

एक आईना हर इंसान के अंदर कहीं ना कहीं छिपा है।

अकेले में ही सही,उसमे सबको अपना चेहरा दिखा है।।

 

अपने दिल पर हाथ रखकर कभी सही का साथ दो।

एक सकूँ की नींद आएगी,एक बार सच को हाथ दो।।

 

ये माना मैंने झूठ के प्याले में मय का नशा है।

लेकिन सच के प्याले में जीने का अपना मजा है।।

 

 

 

 

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

जय भोले शंकर

 

भोले शंकर अबके सावन में अपने पास बुलाना।

दिल में जगह न दो तो अपने पैरो में जगह बनाना।।

 

शीश तुम्हारे चरणो में रख मेरा जीवन कट जाए।

सर पर हाथ रहे तुम्हारा तो हर संकट कट जाए।।

 

जब जब शंकर नाम तुम्हारा मेरे मुख पर आए।

मन से लेकर अंतर्मन तक सब पवित्र हो जाए।।

 

सावन की वर्षा की तरह मैं सारा भीग जाओं।

अपने प्यार की कुछ इस कदर वर्षा बरसाना।।

 

मन की चालाकियों पर अपना भोलापन बरसाना।

अबके सावन में भोले मुझे अपने द्वार बुलाना।।

 

 

 

 

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

सुषमा स्वराज को श्रद्धांजलि ।।शोक गीत।।


।।शोक गीत।।

 

एक ऐसी ख़बर, आंख नम कर गई।

क्या कहूँ क्या हुआ, क्या से क्या कर गई।

 

लाख दिल हैं दुःखी, आंख में हैं नमी।

कितने होंगें यहाँ, फिर भी होगी कमी।

चेहरों पर हँसी, न दिखेगी कही।

जो सभी को उथल, से पुथल कर गई।

 

एक ऐसी ख़बर, आंख नम कर गई।

क्या कहूँ क्या हुआ, क्या से क्या कर गई।

 

देश हैं दे रहें, जो सलामी उन्हें।

याद होगी सभी, दी निशानी हमें।

वो कहाँ चल दियें, जो दिलो में बसें।

वो हवा जो चली, तेज छू कर गई।

 

एक ऐसी ख़बर, आंख नम कर गई।

क्या कहूँ क्या हुआ, क्या से क्या कर गई।

 

ऋषिकान्त राव शिखरे

अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश।


 

 

बेटे की सीख

तिरंगा

 


        रवि और उसका बेटा गुड्डू आज 15 अगस्त की छुट्टी के दिन अपनी कार में बैठकर एंजॉय करते  हुए बाहर घूम रहे थे और गुड्डू जगह जगह रुककर पूरे शहर का मजा ले रहा था।

 

        एक चौराहे पर अचानक एक छोटा सा बच्चा हमारा तिरंगा झंडा बेचता हुआ दिखाई दिया।भारत के तिरंगे को देखकर गुड्डू के मन में तिरंगे को खरीदने की इच्छा हुई।

 

        उसने अपने पापा से कहा,पापा वो छोटा सा तिरंगा लेलो।गाड़ी के डेस्क बोर्ड पर लगाएंगे।रवि तुरंत तैयार हो गया और तिरंगा उसने कार के डेस्क बोर्ड पर लगा दिया।

 

        गुड्डू बहुत खुश हुआ।15 अगस्त के 4 दिन बाद रवि अपने बेटे और पत्नी के साथ शाम के समय कहीं जा रहा था।कि अचानक कुछ ऐसी घटना हुई जिससे गुड्डू बहुत दुखी हुआ।

 

        गुड्डू के पिताजी को शराब पीने की आदत थी और उन्हें कुछ ऐसी आदत थी कि अगर वो कहीं जाते थे तो कार में ही पीना शुरू कर देते थे।आज भी कुछ ऐसा ही हुआ।

 

        रवि कार से जा रहे थे कि अचानक एक शराब की दुकान पर जाकर शराब की बोतल और बराबर से ही नमकीन का पैकेट और सिगरेट ले आए।गुड्डू के पिता के शराब पीने की आदत की वजह से उनकी पत्नी भी कुछ नही कहती थी।

 

          12 साल का गुड्डू भी कुछ नहीं कह पाता था।अचानक गुड्डू के पिता ने अपने लिए चलती गाड़ी में ही शराब का गिलास भर कर उसे पीना शुरू कर दिया नमकीन के पैकेट और सिगरेट को डेस्क बोर्ड पर तिरंगे के बराबर में रख दिया।

 

        गुड्डू अपनी परेशानी अपने पिता से छुपा ना सका और उसने अपने पिता से कहाँ,पापा वहां डेस्क बोर्ड से तिरंगा हटा दो इस तरीके से आपका गाड़ी में बैठकर शराब पीना मुझे तिरंगे का अपमान लग रहा है।

 

         बेटे की ये बात सुनकर रवि शर्मिंदा हो गया और  उन्होंने तुरंत अपना सारा शराब पीने का सामान उठाकर कार के बाहर फैक दिया।

 

        ऐसा नही है कि केवल बड़े लोग ही हमेशा अपने बच्चो को समझाते रहे और अपनी बातों को बच्चो को मानने के लिए कहते रहे।यदि कोई बात छोटे बच्चो को गलत लगे तो उन्हें भी अपने बड़ो को उसे करने से रोकना चाहिए।

 

 

 

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

Friday, August 9, 2019

गिरगिट बना इंसान

 

 

 

सुंदरता तेरी गिरगिट अब छीन रहा इंसान।

अपने रंग बदलने पर अब कैसे करेगा गुमान।।

 

तेरा रूप बदलने का हुनर बड़ा गजब है यार,

पर आजकल इंसान चेहरे बदल कर रहा है वार।

 

अलग स्थान पर तू बदल जाता है अपना रूप,

पर अब धोखा देने की इंसानो में गजब है भूख।

 

भूख लगी ऐसी ये अपनो का मान सम्मान भी खाए।

देख के इसकी भूख तुझे भी इसपर शर्म आ जाए।।

 

इंसानो की इस भूख ने बड़ा गजब किया है आज।

रंग बदलने की चाहत में छोड़ दिये सब रिश्ते आज।।

 

 

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

Thursday, July 25, 2019

भारतीय शोधकर्ताओं ने विकसित किया जहरीले रसायनों का डेटाबेस

नई दिल्ली  (इंडिया साइंस वायर): पर्यावरण या फिर दैनिक जीवन से
जुड़े उत्पादों के जरिये हर दिन हमारा संपर्क ऐसे रसायनों से होता है, जो सेहत के
लिए हानिकारक होते हैं। इस तरह के रसायन उपभोक्ता उत्पादों से लेकर
कीटनाशकों, सौंदर्य प्रसाधनों, दवाओं, बिजली की फिटिंग से जुड़े सामान, प्लास्टिक
उत्पादों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों समेत विभिन्न चीजों में पाए जाते हैं।
भारतीय शोधकर्ताओं ने ऐसे रसायन का एक विस्तृत डेटाबेस तैयार किया है, जो
मानव शरीर में हार्मोन की कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं, जिससे शारीरिक
विकास, चयापचय, प्रजनन, प्रतिरक्षा और व्यवहार पर विपरीत असर पड़ सकता
है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ऐसे रसायनों को स्वास्थ्य से जुड़ा प्रमुख
उभरता खतरा बताया है। इस खतरे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है
कि हार्मोन्स के तंत्र को प्रभावित करने वाले ये रसायन पर्यावरण में मौजूद जहरीले
रसायनों का सिर्फ एक उप-समूह है।
यह डेटाबेस रसायनों की कोई आम सूची नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य पर रसायनों के
कारण पड़ने वाले प्रभाव पर केंद्रित शोधों के आधार पर तैयार की गई एक विस्तृत
सूची है। इनमें से अधिकतर शोधों में रसायनों का परीक्षण मनुष्य के अलावा अन्य
जीवों पर भी किया गया है। चेन्नई स्थित गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं
ने यह डेटाबेस विकसित किया है।
इस डाटाबेस को विकसित करने के दौरान अंतःस्रावी अवरोधक रसायनों से जुड़े 16
हजार से अधिक वैज्ञानिक अध्ययनों की पड़ताल की गई है। इस अध्ययन में मनुष्य
के हार्मोन तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाले 686 रसायनों के बारे में शोधकर्ताओं को
पता चला है। इनके संदर्भ 1796 शोध पत्रों में पाए गए हैं, जो रसायनों के कारण
हार्मोन्स में होने वाले बदलावों की पुष्टि करते हैं। DEDuCT नामक इस डेटाबेस का
पहला संस्करण प्रकाशित किया जा चुका है, जिसे निशुल्क देखा जा सकता है।


इसके अंतर्गत रसायनिक पदार्थों को सात वर्गों में बांटा गया है, जिनमें मुख्य रूप से
उपभोक्ता उत्पाद, कृषि, उद्योग, दवाएं एवं स्वास्थ्य क्षेत्र, प्रदूषक, प्राकृतिक स्रोत
और 48 उप-श्रेणियां शामिल हैं। डेटाबेस में शामिल करीब आधे रसायनों का संबंध
उपभोक्ता उत्पादों की श्रेणी से जुड़ा पाया गया है। डेटाबेस में पहचाने गए 686
संभावित हानिकारक रसायनों में से केवल 10 रसायन अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण
एजेंसी की सुरक्षित रसायन सामग्री सूची (एससीआईएल) में शामिल हैं।
कौन-सा हार्मोन अवरोधक रसायन, किस मात्रा में मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित
कर सकता है, इसकी जानकारी इस डेटाबेस में मिल सकती है। इसके साथ ही, यह
भी पता लगाया जा सकता है कि अध्ययनों में रसायन का परीक्षण मनुष्य या फिर
किसी अन्य जीव पर किया गया है। रसायनों की मात्रा की जानकारी महत्वपूर्ण है
क्योंकि कई रसायनों की बेहद कम मात्रा से भी शरीर पर बुरा असर पड़ सकता है।
इस डेटाबेस से किसी पदार्थ की रासायनिक संरचना, भौतिक रासायनिक गुण और
रसायनों के आणविक विवरणक प्राप्त किए जा सकते हैं।


चेन्नई स्थित गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं की टीम


अध्ययन दल का नेतृत्व कर रहे, गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता अरिजित
सामल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि "हमने विभिन्न शोध पत्रों में प्रकाशित
प्रायोगिक प्रमाण के आधार पर अंतःस्रावी अवरोधक रसायनों की पहचान की है,
और उनकी खुराक की जानकारी के साथ-साथ उनके प्रतिकूल प्रभावों का संकलन


किया है। यह जानकारी इन रसायनों द्वारा अंतःस्रावी व्यवधान के तंत्र को समझने
की दिशा में विष विज्ञान अनुसंधान में उपयोगी हो सकती है।"
यह डेटाबेस नियामक एजेंसियों, स्वास्थ्य अधिकारियों और उद्योग के लिए उपयोगी
हो सकता है। इसके अलावा, इसका उपयोग अंतःस्रावी अवरोधक रसायनों के लिए
मशीन लर्निंग-आधारित भविष्यसूचक उपकरण विकसित करने में किया जा सकता
है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह डेटाबेस इन रसायनों पर केंद्रित अन्य उपलब्ध
संसाधनों की तुलना में अधिक व्यापक है और इसमें रसायनों की खुराक पर विस्तृत
जानकारी है, जो अन्य किसी डेटाबेस में नहीं मिलती।
सामल ने कहा कि, "विष विज्ञान विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के अलावा, यह डेटाबेस
आम जनता के लिए भी उपयोगी हो सकता है। यह एक ऐसा संसाधन है, जिसका
उपयोग दैनिक जीवन में इन हानिकारक रसायनों के अंधाधुंध उपयोग के खिलाफ
जागरूकता बढ़ाने में हो सकता है।"
गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता इससे पहले भारतीय जड़ी-बूटियों में पाए
जाने वाले फाइटोकेमिकल्स का ऑनलाइन डेटाबेस विकसित कर चुके हैं। इस
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में अरिजित सामल के अलावा, भगवती शण्मुगम,
कार्तिकेयन, जननी रविचंद्रन, कार्तिकेयन मोहनराज, आर.पी. विवेक अनंत शामिल
थे। इस डेटाबेस से संबंधित रिपोर्ट शोध पत्रिका साइंस ऑफ द सोशल एन्वायरमेंट
में प्रकाशित की गई है। (इंडिया साइंस वायर)


नैनो तकनीक से बढ़ायी जा सकेगी टायरों की मजबूती

नई दिल्ली | (इंडिया साइंस वायर): किसी उबड़-खाबड़ सड़क पर गाड़ी
का टायर अचानक पंक्चर हो जाए तो मुश्किल खड़ी हो जाती है। भारतीय
शोधकर्ताओं ने इस मुश्किल से निजात पाने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से ऐसी
तकनीक विकसित की है, जो टायरों की परफार्मेंस बढ़ाने में उपयोगी साबित हो
सकती है।
केरल स्थित महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनो-साइंस ऐंड
नैनो-टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने रबड़ से बनी हाई-परफार्मेंस नैनो-कम्पोजिट
सामग्री विकसित की है, जिसका उपयोग टायरों की भीतरी ट्यूब और इनर
लाइनरों को मजबूती प्रदान करने में किया जा सकता है।
नैनो-क्ले और क्रियाशील नैनो-क्ले तंत्र के उपयोग से इनर लाइनर बनाने के लिए
विकसित फॉर्मूले को गैस अवरोधी गुणों से लैस किया गया है। इससे टायरों के इनर
लाइनर की मजबूती बढ़ायी जा सकती है। इंटरनेशनल ऐंड इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर
फॉर नैनो-साइंस ऐंड नैनो-टेक्नोलॉजी (आईआईयूसीएनएन) ने टायर निर्माता कंपनी
अपोलो टायर्स के साथ मिलकर प्रौद्योगिकी का पेटेंट कराया है। कंपनी जल्द ही इस
तकनीक का उपयोग हाई-परफार्मेंस टायर बनाने में कर सकती है।


प्रो. नंदकुमार कलरिक्कल और डॉ साबू थॉमस (बाएं से दाएं)


ट्यूब वाले टायरों ग्रिप अच्छी होती है, पर ये टायर जल्दी पंक्चर हो जाते हैं और
पंक्चर होने के बाद कुछ क्षणों में सपाट होकर सतह से चिपक जाते हैं। इसके
विपरीत, ट्यूबलेस टायरों में अलग से कोई ट्यूब नहीं होती, बल्कि यह टायर के
अंदर ही टायर से जुड़ी रहती है, जिसे इनर लाइनर कहा जाता है। ट्यूबलेस टायरों
की एक खासियत यह है कि पंक्चर होने के बाद इनमें से हवा धीरे-धीरे निकलती है।
हालांकि, बार-बार पंक्चर होने की परेशानी इन टायरों के साथ भी जुड़ी हुई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नैनो तकनीक की मदद से टायर को अधिक मजबूत
एवं टिकाऊ बनाया जा सकेगा।
गाड़ियों के टायर को अधिक टिकाऊ बनाने से जुड़ी तकनीक को विकसित करने
वाले वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के उप-
कुलपति डॉ साबू थॉमस ने बताया कि "पॉलिमर नैनो-कम्पोजिट विकसित करते हुए
कार्बन नैनोट्यूब्स, ग्रेफीन और नैनो-क्ले जैसे नैनोफिलर्स के प्रसार से जुड़ी चुनौतियों
से निपटने में ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे अत्याधुनिक उपकरण
मददगार साबित हुए हैं।"


ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी


विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के नैनो मिशन द्वारा समर्थित आईआईयूसीएनएन
नैनो-उपकरणों के तकनीकी विकास और निर्माण से जुड़े अनुसंधान कार्यक्रमों को
बढ़ावा देता है। इस तरह के अनुसंधान कार्यक्रमों में स्वास्थ्य देखभाल,
ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और रक्षा अनुप्रयोग शामिल हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी
विभाग के सहयोग से इस केंद्र को ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे परिष्कृत
उपकरणों से सुसज्जित किया गया है, जिसकी मदद से नैनो स्तर के नमूनों की
आंतरिक संरचना को भी देखा जा सकता है।
आईआईयूसीएनएन कई प्रमुख नैनो तकनीकों पर काम कर रहा है। आंतरिक
अनुप्रयोगों और अत्यधिक तापमान एवं आर्द्रता वाले वातावरण में उपयोग होने
वाले उच्च क्षमताओं की नैनो-संरचनाओं से बने एपोक्सी मिश्रण से जुड़ी तकनीकें
इनमें शामिल हैं। इन तकनीकों का उपयोग आमतौर पर एयरोस्पेस, जल शुद्धिकरण


फिल्टर्स, तापीय स्थिरता, नैनो-फिलर्स और वियरेबल डिवाइसेज इत्यादि में
उपयोग हो सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से भविष्य में उन्नत
प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा सकता है, जिसकी मदद से अग्रणी किस्म के
उत्पाद बनाए जा सकते हैं। डॉ साबू थॉमस के अलावा शोधकर्ताओं में
आईआईयूसीएनएन के निदेशक प्रो. नंदकुमार कलरिक्कल शामिल थे। (इंडिया साइंस
वायर)
Keywords : flattened tyres, Nanotechnology, Nano Mission,