Wednesday, September 16, 2020

क्या कोरोना के अंत की शुरुआत हो चुकी है 

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि कोरोनावायरस महामारी 1918 के स्पेनिश फ्लू की तुलना में कम समय तक रहेगी। संगठन के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने गत 21 अगस्त को कहा कि यह महामारी दो साल से कम समय में  खत्म हो सकती है। इसके लिए दुनियाभर के देशों के एकजुट होने और एक सर्वमान्य वैक्सीन बनाने में सफल होने की जरूरत है। जो संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार जो पाँच छह उल्लेखनीय वैक्सीन परीक्षणों के अंतिम दौर से गुजर रही हैं, उनमें से दो-तीन जरूर सफल साबित होंगी। कहना मुश्किल है कि सारी दुनिया को स्वीकार्य वैक्सीन कौन सी होगी,पर डब्लूएचओ के प्रमुख का बयान हौसला बढ़ाने वाला है।


इतिहास लिखने वाले कहते हैं कि महामारियों के अंत दो तरह के होते हैं। एक, चिकित्सकीय अंत। जब चिकित्सक मान लेते हैं कि बीमारी गई। और दूसरा सामाजिक अंत। जब समाज के मन से बीमारी का डर खत्म हो जाता है। कोविड-19 का इन दोनों में से कोई अंत अभी नहीं हुआ है, पर समाज के मन से उसका भय कम जरूर होता जा रहा है। यानी कि ऐसी उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं कि इसका अंत अब जल्द होगा। डब्लूएचओ का यह बयान इस लिहाज से उत्साहवर्धक है।


चार महीने पहले अनुमान था कि बीमारी दो से पाँच साल तक दुनिया पर डेरा डाले रहेगी। दो साल से कम समय का मतलब है कि 2021 के दिसम्बर से पहले इसे विदा किया जा सकता है। साल के शुरू में अंदेशा इस बात को लेकर था कि वैक्सीन बनने में न जाने कितना समय लगेगा। पर वैक्सीनों की प्रगति और वैश्विक संकल्प को देखते हुए अब लगता है कि इसपर समय से काबू पाया जा सकेगा। टेड्रॉस ने जिनीवा में एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि 1918 के स्पेनिश फ्लू को खत्म होने में दो साल लगे थे। आज की वैश्विक कनेक्टिविटी के कारण वायरस को फैलने का भरपूर मौका है। पर हमारे पास इसे रोकने की बेहतर तकनीक है और ज्ञान भी। सबसे बड़ी बात मानवजाति की इच्छा शक्ति इसे पराजित करने की ठान चुकी है। 


महामारी से दुनियाभर में अबतक करीब 8 लाख लोगों की मौत हुई है और करीब 2.3 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं। इसकी तुलना में स्पेनिश फ्लू से, जो आधुनिक इतिहास में सबसे घातक महामारी मानी गई है, पाँच करोड़ लोगों की जान गई थी। उसमें करीब 50 करोड़ लोग संक्रमित हुए थे। पहले विश्व युद्ध के मृतकों की तुलना में स्पेनिश फ्लू से पाँच गुना ज्यादा लोग मारे गए थे। पहला पीड़ित अमेरिका में मिला था, बाद में यह यूरोप में फैला और फिर पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ गई। वह महामारी तीन चरणों में आई थी। उसका दूसरा दौर सबसे ज्यादा घातक था।


चार महीने पहले भी विशेषज्ञों का अनुमान था कि इस बीमारी को 2022 तक नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा और यह तभी काबू में आएगी जब दुनिया की दो तिहाई आबादी में इस वायरस के लिए इम्यूनिटी पैदा न हो जाए। गत 1 मई को अमेरिका के सेंटर फॉर इंफैक्शस डिजीज के डायरेक्टर क्रिस्टन मूर, ट्यूलेन यूनिवर्सिटी के सार्वजनिक स्वास्थ्य इतिहासविद जॉन बैरी और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के महामारी विज्ञानी मार्क लिप्सिच की एक रिपोर्ट ब्लूमबर्ग ने प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि इस महामारी पर काबू पाने में कम के कम दो साल तो लग ही जाएंगे।


उस रपट में कहा गया था कि नए कोरोनावायरस को काबू करना मुश्किल है, क्योंकि हमारे बीच ऐसे लोग हैं जिनमें इस बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे, लेकिन वे दूसरों तक इसे फैला सकते हैं। इस बात का डर बढ़ रहा है कि लोगों में लक्षण तब सामने आ रहे हैं जब उनमें संक्रमण बहुत ज्यादा फैल चुका होता है। मार्च-अप्रैल के महीनों में दुनियाभर में अरबों लोग लॉकडाउन के कारण अपने घरों में बंद थे। इस वजह से संक्रमण में ठहराव आया, लेकिन फिर बिजनेस और सार्वजनिक स्थानों के खुलने के कारण प्रसार बढ़ता गया। महामारी पर तभी काबू पाया जा सकेगा, जब 70 प्रतिशत लोगों तक वैक्सीन पहुंचे या उनमें इम्यूनिटी पैदा हो चुकी है। 


इस साल के अंत तक वैक्सीन बाजार में आ भी जाएंगी, पर वे कितने लोगों तक पहुँचेंगी, यह ज्यादा बड़ा सवाल है। सन 2009-2010 में अमेरिका में फैली फ्लू महामारी से इम्यूनिटी के लिए बड़े पैमाने पर वैक्सीन तब मिले, जब महामारी पीक पर थी। वैक्सीन के कारण वहाँ 15 लाख मामलों पर काबू पाया गया। अप्रैल-मई में ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में कहा गया कि बिना असरदार इलाज के कोरोना सीज़नल फ्लू बन सकता है और 2025 तक हर साल इसका संक्रमण फैलने का अंदेशा है। विवि के डिपार्टमेंट ऑफ इम्यूनोलॉजी एंड इंफैक्शस डिजीज के रिसर्चर और इस स्टडी के मुख्य अध्येता स्टीफन किसलर  का मानना था कि कोविड-19 से बचने के लिए हमें कम से कम 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग रखनी होगी। 


प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"


शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार


Tuesday, September 15, 2020

दिव्यांगों एवं वृद्धों की सामाजिक सुरक्षा योजना 

देश के कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए भारत सरकार ने नागरिकों के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया है| इस पैकेज के माध्यम से सरकार ने समाज के अलग-अलग वर्गों की सहायता का प्रयास किया है। उद्यमियों, कारोबारियों, श्रमिकों और विभिन्न सामाजिक वर्गों की सहायता करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन का सभी वर्गों पर प्रभाव पड़ा था। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के जिस आर्थिक पैकेज की घोषणा की, उसमें गरीबों, मजदूरी करने वाली महिलाओं, शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना कर रहे व्यक्तियों और वृद्धों के लिए अलग से व्यवस्थाएं की गई हैं। ये योजनाएं विभिन्न कार्यक्रमों का हिस्सा हैं। इनमें केंद्र और राज्यों की योजनाएं भी शामिल हैं।

कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के तहत असहाय व्यक्तियों का सहारा भी राज्य है। बेशक उन्हें सामाजिक संस्थाएं और निजी तौर पर अपेक्षाकृत सबल व्यक्ति कमजोरों, वंचितों और हाशिए पर जा चुके लोगों की सहायता के लिए आगे आते हैं, पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी राज्य की होती है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 41 कहता है, ‘राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।’ इसके साथ अनुच्छेद 42 और 43 भी सामाजिक वर्गों की सहायता के लिए राज्य की भूमिका की ओर इशारा करते हैं।

सहायता पाने वालों में गरीब और वृद्ध विधवाएं भी शामिल हैं, जिनका कोई सहारा नहीं है। यह लाभ प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से दिया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत लाभ उठाने वाले करीब तीन करोड़ लाभार्थी हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत लाभ पाने वाले करीब 30 करोड़ लाभार्थियों की तुलना में यह संख्या छोटी है, पर बहुत महत्वपूर्ण है। समाज के इस वर्ग को सबसे असहाय मानना चाहिए। इनके लिए ही भारत सरकार का राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) बनाया गया है। यह कार्यक्रम अभावों से जूझ रहे व्यक्तियों और उनके परिवारों तक नकद हस्तांतरण की सुविधा, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य बीमा समेत समग्र सामाजिक सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण भाग है।

वृद्धों से संबंधित कार्यों का संचालन करने वाले स्वैच्छिक संगठनों को सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के एक कार्यक्रम के तहत सहायता दी जाती है। इसमें वृद्धों के लिए डे-केयर चलाने और उनके रखरखाव के लिए परियोजना लागत के 90 प्रतिशत तक की सहायता दी जाती है। 

मध्य वर्ग के वरिष्ठ नागरिकों के कार्यक्रमों से ज्यादा महत्वपूर्ण गरीब बुजुर्गों के कार्यक्रम हैं, पर उसके पहले राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) का जिक्र करना बेहतर होगा। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रशासित राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) की शुरुआत 15 अगस्त 1995 को हुई थी। इसका क्रियान्वयन शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में किया जा रहा है। वर्ष 2016 में एनएसएपी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण योजना (कोर ऑफ़ कोर) के तहत लाने का जबसे रणनीतिक फैसला किया गया है, तब से केन्द्र सरकार योजना की शत-प्रतिशत जरूरतें पूरी करने के लिए वित्तीय प्रतिबद्धता को लगातार बढ़ा रही है। 

पेंशन योजना के आवेदक को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार से संबंधित होना चाहिए। इस योजना के अलावा अन्नपूर्णा योजना भी है, जिसमें वरिष्ठ नागरिकों को 10 किलो अनाज प्रतिमाह दिया जाता है। वस्तुतः यह योजना उन नागरिकों के लिए है, जो आईजीएनओएपीएस के पात्र तो हैं, पर जिन्हें वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिल रही है। इसके अलावा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (आईजीएनडब्लूएनपीएस) है। इसके अंतर्गत गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली 40-79 वर्ष आयु की विधवा स्त्रियों को प्रति माह 300 रुपये की सहायता दी जाती है। जब वे 80 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेती हैं, तो उन्हें आईजीएनओएपीएस में शामिल कर लिया जाता है, ताकि वे 500 रुपये प्रतिमाह की सहायता प्राप्त कर सकें। 

उच्च शिक्षा, सरकारी नौकरियों में आरक्षण, भूमि के आवंटन में आरक्षण, गरीबी उन्मूलन योजना आदि जैसे अतिरिक्त लाभ दिव्यांग व्यक्तियों और असहाय व्यक्तियों के लिए प्रदान किए गए हैं। बेंचमार्क विकलांगता वाले कुछ व्यक्तियों या वर्ग के लोगों के लिए सरकारी प्रतिष्ठानों में रिक्तियों में आरक्षण 3 से बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है। इन्हीं कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री सुगम्य भारत अभियान भी शामिल है, जो दिव्यांग व्यक्तियों की सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के विकलांगजन सशक्तीकरण विभाग द्वारा शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों को जीवन के सभी क्षेत्रों में भागीदारी के समान अवसर एवं आत्मनिर्भर जीवन प्रदान करना है।

दिव्यांगता पर आधारित केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्ड को केंद्र और राज्य स्तर पर शीर्ष नीति बनाने वाली संस्थाओं के रूप में कार्य करने के लिए स्थापित किया जाना है। दिव्यांग व्यक्तियों के मुख्य आयुक्त के कार्यालय को सुदृढ़ किया गया है, जिन्हें अब दो आयुक्तों और एक सलाहकार समिति द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। इसमें दिव्यांगता से जुड़े विभिन्न विशेषज्ञ होंगे।

विकलांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य कोष का निर्माण किया जाएगा। विकलांगों के लिए मौजूदा राष्ट्रीय कोष और विकलांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण के लिए ट्रस्ट फंड को राष्ट्रीय कोष के साथ सदस्यता दी जाएगी। इस कानून में ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ अपराध के लिए दंड का प्रावधान है जो दिव्यांगजन के खिलाफ अपराध करते हैं या कानून के प्रावधानों का भी उल्लंघन करते हैं। विकलांगों के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को निपटाने के लिए प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालयों का गठन किया जाएगा।

दिव्यांगजन के अधिकारों की रक्षा के प्रावधान तो हुए हैं, पर उनके लिए संसाधन अभी पर्याप्त नहीं हैं। समिति की सिफारिशों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि दिव्यांगजन को सार्वजनिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए संसाधनों की व्यवस्था भी करनी होगी। दूसरी तरफ हम बजट आबंटन पर नजर डालें, तो स्पष्ट होता है कि अभी इस दिशा में काफी सुधार की जरूरत है। एनएसएपी योजना के महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के लिए बजट का आकार यथेष्ट नहीं है।

दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार की ओर से ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पेंशन कार्यक्रम (आईजीएनडीपीएस) चलाया जाता है। इस योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले 18-79 वर्ष की आयु के विविध प्रकार की निशक्तताओं से प्रभावित व्यक्तियों को प्रतिमाह 300 रुपये की सहायता दी जाती है। 80 वर्ष की आयु हो जाने पर उन्हें आईजीएनओएपीएस के तहत 500 रुपये प्रतिमाह की सहायता मिलने लगती है। अन्य ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में भी दिव्यांग लोगों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। मनरेगा के तहत कार्यस्थलों पर पेयजल उपलब्ध कराने, पालना घर की व्यवस्था इत्यादि में दिव्यांग लोगों को काम दिलाने को प्राथमिकता दी गई है। दिव्यांग मज़दूरों को अन्य मज़दूरों के बराबर ही मजदूरी दी जाती है। दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के तहत लोगों के कौशल को बढ़ाने के लक्ष्य का कम-से-कम तीन प्रतिशत कौशल विकास लक्ष्य दिव्यांगों के लिए सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है। प्रधानमंत्री आवास योजना में भी राज्यों के लिए प्रावधान है कि वह कम-से-कम तीन प्रतिशत दिव्यांग लाभार्थी सुनिश्चित करें।

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

सबकी मधुर जुबान है हिन्दी

भारत मां के भव्य भाल की

अरुणिम ललित ललाम है बिन्दी।

भारत के गौरव गरिमा का, 

एक मधुरतम गान है हिन्दी।

 

भारत अपना दिव्य कलेवर,

उस तन का शुचि प्रान है हिन्दी।

भिन्न भिन्न हैं जाति धर्म पर, 

सबकी मधुर जबान है हिन्दी।

 

अलग-अलग पहनावे बोली,

लेकिन सबका मान है हिन्दी।

हर भारत वासी की समझो,

आन वान औ' शान है हिन्दी।

 

इसमें है अभिव्यक्ति कुशलता,

भारत की पहचान है हिन्दी।

भारत की पहचान अस्मिता,

और सदा सम्मान है हिन्दी।

 

प्रगति हमारी समझो इससे,

भारत का उत्थान है हिन्दी।

हिन्दी का समृद्ध व्याकरण, 

अक्षर,स्वर विज्ञान है हिन्दी।

 

     👉श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

हमारे भारत रत्न अभियंताओं  के लिए प्रेरणा है

पहिये  के आविष्कार से लेकर आधुनिक समय के ड्रोन तक, इंजीनियरों ने प्रौद्योगिकी की प्रगति और विकास के लिए महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी प्रदान किए हैं और कर रहे हैं। जैसा कि हम सभी 15 सितंबर को भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया सर के जन्मदिन के अवसर पर हम  15 सितंबर को अभियंता दिवस मतलब कि इंजीनियर्स डे मनाते हैं।

दोस्तों विश्वेश्वरैया सर भारत के सबसे विपुल सिविल इंजीनियर अर्थशास्त्री और राजनेता थे। इनकी गिनती पिछली सदी के अग्रणी राष्ट्र बिल्डरों में की जा सकती है। एम विश्वेश्वरैया सर भारत के इंजीनियरिंग आइकन थे और अभी भी है।

इन्होंने दोस्तों कड़ी मेहनत के साथ कई प्रणालियों को वास्तविकता में इंजीनियर किया। हम आज याद कर रहे हैं जोकि हमारे राष्ट्र के निर्माण में उनके योगदान को हम कभी नहीं भूल सकते हैं।

दोस्तों इनको 1912 से 1918 तक मैसूर के दीवान के रूप में भी जाना जाता था क्योंकि वह मुख्य अभियंता थे जो मैसूर में कृष्णा राजा सागर डैम के निर्माण के लिए जिम्मेदार थे। वही हैदराबाद शहर के लिए बाढ़ सुरक्षा प्रणाली के प्रमुख डिजाइनर के रूप में उनकी भागीदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भारत सरकार ने दोस्तों वर्ष 1955 में 'भारत रत्न' का सम्मान करते हुए समाज में उनके उत्कृष्ट योगदान को बहुत ही सराहा था।

हमारे देश के सभी इंजीनियरों को इस इंजीनियर्स डे की हार्दिक बधाई। आज का दिन सभी इंजीनियरों को समर्पित है जिन्होंने अपने महान विचारों और नवाचारो  के साथ पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया है और बदल रहे हैं। दोस्त जैसा कि आप भी जानते हैं कि हमारे भारत में प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को इंजीनियर दिवस बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। लेकिन इस वर्ष कोविड 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कहर के कारण सार्वजनिक कार्यक्रम तो नहीं आयोजित किए जाएंगे , जैसा कि प्रत्येक वर्ष देश के संस्थान और संगठन कार्यक्रम आयोजित करते थे जो समर्पित था राष्ट्र को विकसित करने में इंजीनियरों के महत्व योगदान और उपलब्धियों को उजागर करने के लिए, अपने देश के विभिन्न हिस्सों से हर साल दोस्तों लाखो इंजीनियरिंग स्टूडेंट निकलते हैं। कॉलेजों  में हम सभी देखते हैं कि वर्तमान परिदृश्य के बारे में सेमिनार के साथ मनाया जाता है। दोस्त अभियंता दिवस को एक ऐसा दिन के रूप में मनाया जाना चाहिए जिसमें इंजीनियरिंग क्षेत्र के सभी अधिकारियों द्वारा उत्साह के साथ  व्यवहार करते हुए मनाना चाहिए कि आने वाले भविष्य के अभियंताओं को प्रेरित करें।।