Saturday, September 19, 2020

देश का भरोसा अभी आप पर है लेकिन

अगर आपको कहा जाए कि फ़्लैश बैक में जाकर कुछ याद कीजिए यूपीए-2 के अंतिम वर्ष।बुरी तरह से घोटालों के आरोपों से घिरी हुई सरकार।विपक्ष का चौतरफा हमला।यकायक अन्ना आंदोलन और उस आंदोलन के पीछे देश।याद कीजिए वह दिन जब रामलीला मैदान से अन्ना को गिरफ्तार कर लिया था और तिहाड़ जेल में भेज दिया था,तब एकदम से सारे देश में ऐसा लगा कि बस अब और नहीं,यह यूपीए की सरकार किसी भी कीमत पर अब एक दिन के लिए भी नहीं चाहिए।इसे जाना चाहिए।इसी क्रम में याद कीजिए मीडिया का सारा फोकस केवल अन्ना पर हो गया था और देश का विपक्ष एकदम नेपथ्य में चला गया था।हर और एक ही शोर कि अन्ना नहीं,यह गांधी है।आनन-फानन में अन्ना को उसी दिन तिहाड़ जेल से रिहा किया गया,तब देश का वातावरण देखते ही बनता था।ठीक इसी तरह जैसे आज रिया,कंगना आदि-आदि हो रहा है।उस समय केवल अन्ना बाकी कुछ नहीं।इस बीच यह बात भी ध्यान रखिए कि उस समय सरकार के मंत्री कपिल सिब्बल,सलमान खुर्शीद,प्रणव मुखर्जी आदि-आदि,ऐसे बौखला गए थे कि इन सबके लिए मीडिया का सामना करना मुश्किल हो गया था।लबोलुबाब यह था कि इन तमाम मंत्रियों को कुछ नहीं सूझता था और अनाप-शनाप बोलने लग गए थे।अगर आपको याद हो या आप थोड़ा फ़्लैश बैक में जाएं तो पाएंगे कि उस समय सरकार बुरी तरह घिरी हुई थी,उसे निकलने का कोई भी उपाय नहीं सूझ रहा था और सिर्फ अन्ना और उसके मुद्दे।अन्ना के साथी जो बाद में मुख्यमन्त्री और गवर्नर,केंद्रीय मंत्री तक बने हुए हैं,वे ही असली हीरो माने जाने लगे थे।ऐसा लगता था कि मानों भगत सिंह जैसे लोग धरा पर अवतरित हो गए हैं।लेकिन बाद में सबका भंडाफोड़ हो गया।देश ठगा-सा गया।इसी बीच तत्कालीन विपक्ष पर भी आरोप लगे मगर वे हवा में उड़ गए,किसी ने उन पर विश्वास ही नहीं किया।ज्यादा न कहते हुए आख़िरकार यूपीए-2 की चुनावों में ऐतिहासिक फजीहत हुई और सम्भवतः यह सबसे बड़ी हार थी जब उनके सांसदों का आंकड़ा अर्धशतक भी नहीं लगा सका,विशेषकर कॉंग्रेस का।यह केवल मोदी की जीत नहीं थी बल्कि यूपीए के कर्मकांडों की हर थी।ख़ैर,वो वर्ष था 2014 का,जब मोदी का उदय हुआ और देश भगवामय हो गया।एनडीए की पहली पारी में जो कुछ भी सरकार ने किया,पूरे देश ने उसे मान लिया,चाहे वह कोई भी फैसला किया हो।मजे की बात यह रही कि किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि सरकार के खिलाफ बोले।अगर कोई दबे स्वर में बोला भी तो उसका विरोध हुआ और इस देश ने देशद्रोही जैसे शब्द सुने।न केवल सुने बल्कि उनके साथ बेहद बुरा किया गया।ठीक अन्ना आंदोलन की तरह मीडिया भी पीछे नहीं रहा।ब्यानों का अपने ही तरीके से मतलब निकाला गया और एकाध को छोड़कर किसी की भी हिम्मत नहीं रही कि एनडीए सरकार की आलोचना कर सके।इसी बीच प्रधामन्त्री जी यहाँ तक आ गए कि प्रधामन्त्री जी ने जो कह दिया,बस वह ब्रह्मवाक्य माना जाने लगा।वैश्विक स्तर पर छाए रहे।सम्मानों की मानो झड़ी लग गयी।2019 के आते-आते जलवा बरकरार रहा जबकि याद रखिए नोटबन्दी जैसा निर्णय लेने,जीएसटी के लागू होने के बाद भी जनता का बड़ा तबका एनडीए के साथ ही बना रहा और 2019 में फिर से ऐतिहासिक जीत मिली।यह जीत विशुद्ध रूप से मोदी की जीत थी।किसी को भी यह मानने में गुरेज नहीं था कि बड़े दिनों के बाद मोदी एक करिश्माई नेता के रूप में आएं हैं।एनडीए की दूसरी पारी की शुरुआत हुई लेकिन 2020 के आते-आते करिश्माई नेतृत्व कुछ धीमा पड़ने लग गया।दिल्ली के विधानसभा चुनावों ने उसमें पलीता लगा दिया।हरियाणा में भी गठबंधन की ही सरकार बनानी पड़ी।राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भी हाथ से निकल गया।वो अलग बात है कि बाद में मध्यप्रदेश हाथ में आ गया।इस समय बिल्कुल 2014 वाला दौर खुद को दोहरा रहा है।किसानों का मसला थम नहीं रहा मगर सरकार और इसके मंत्रियों के ब्यान चौकानें वाले हैं।मजदूरों के बारे में सरकार ब्यान देने से ही हिचक रही है।चीन का मसला गले की फांस बनता जा रहा है।बढ़ता निजीकरण जनता में आक्रोश  पैदा कर रहा है।छोटे-छोटे पड़ौसी देश अनाप-शनाप बोल रहे हैं।कंगना और रिया से देश का वो तबका जो अधिकाँश है और मूल मुद्दों पर बात चाहता है,मीडिया से खासा नाराज है बल्कि मुखर होकर कहने लग गया है कि मीडिया बिकाऊ है।उधर कोरोना ने भी कसर नहीं छोड़ी है और लोग इसको भी अब  सरकार की विफलता बताने लग गए हैं।घटती जीडीपी,गिरता रुपया,आसमान छूती मंहगाई,बढ़ती बेरोजगारी ही सरकार के लिए बड़ी मुसीबत पैदा कर रही है क्योंकि अब लोग 2014 से पहले के ब्यान निकाल-निकालकर देखने- दिखाने लगे हैं।पीएम के जन्मदिन को राष्ट्रीय झूठ दिवस,जुमला दिवस,बेरोजगार दिवस के रूप में मनाना,अपने आप में बड़ी घटना है।मंत्रियों के ब्यान बेहद खराब हैं जैसे भाभी जी पापड़ खाना,ठेका नहीं ले रखा है,हर चीज के लिए पिछले लोग जिम्मेदार हैं।अब तो लोग हिन्दू-मुस्लिम से भी तंग आ चुके हैं।शुरू-शुरू में यह मुद्दा सिर चढ़कर बोला था।सोशल मीडिया में भी अब वो पहले जैसी बात नहीं रही।अब विरोधी स्वर ज्यादा हो रहे हैं।दिल्ली दंगों की जांच खुद जांच के घेरे में है।पूरे देश के हालात इस समय बेहद खराब गुजर रहे हैं।

लेकिन हमारा मानना यह है कि अब भी समय है।देर नहीं हुई है।सरकार को चाहिए कि समस्याओं का समाधान करें,कोरोना से निपटे,जीडीपी को उठाए,रूपये की हालात में सुधार करे,बेरोजगारों को रोजगार दे,किसानों की सुनकर किसानों के हित में काम करे,महिला सुरक्षा पर ध्यान दें,निजीकरण पर रोक लगाए,सार्वजनीकरण को बढ़ावा दे।हिन्दू-मुस्लिम करना बंद करे।अभी भी देश आप पर भरोसा करता है।कहीं ऐसा न हो कि हश्र यूपीए वाला हो जाए क्योंकि कहने को तो उनके पास भी बहुत कुछ था।कहने को तो इंडिया शाइनिंग भी था लेकिन जनता ने दोनों  को नकार दिया था।अभी समय है,चेत जाइए ताकि देश सही दिशा की और जा सके।उम्मीद भी आपसे ही है।जय राम जी की।भली करेंगे राम।

 

"   आप ही के अंदर शक्तियों का महावृक्ष है 

सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो आप, अपने आप में विश्वास रखिए जब भी विचलित हो आप तो यह शब्द जरूर बोलो कि मैं समुंद्र पी जाऊंगा मेरी इच्छा से पर्वत टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। इस प्रकार की शक्ति और इच्छा आप रखो, इसके साथ ही कड़ा परिश्रम करो। देखना आप अपने उद्देश्य को एक दिन निश्चित पा लोगे।

याद रखना आप मेरी बात को आपके भीतर सभी शक्तियां निहित है, आप में ही महान से महानतम बनने के बीज आप के अंतः करण में मौजूद है। लेकिन दोस्त जब तक हम इन शक्तियों को विकसित नहीं करेंगे तब तक आप ही सोचो आपको जीवन का आनंद कैसे प्राप्त होगा?

आज चारों तरफ देखे तो अधिकतर लोग थोड़ी सी किसी ने आलोचना किया और वह परेशान हो जाते हैं, जबकि भाइयों हर जानदार तथा शानदार व्यक्ति की आलोचना होती है। यह सच है कि अधिकतर लोग उससे ईर्ष्या  भी करते हैं । एक बात अपने दिल में उतार लो कि आलोचना एवं ईर्ष्या इस बात की द्योतक है कि आप जीवित हैं, आप में दम है तथा आपका जीवन सार्थक है। सही आलोचना से आप हमेशा सीखो तथा अपने आपको बदलो एवं इसके साथ ही गलत आलोचनाओं से परेशान आप जरा भी ना होना। उन्हें मुस्कुरा कर हवा में उड़ा दो, अपने दिल पर इसका असर ना होने दो कि मेरा उसने आलोचना किया। अपनी आंतरिक शक्तियों के माध्यम से आलोचनाओं के बाहरी आक्रमण को ध्वस्त कर दीजिए। अपने चेहरे पर तनाव नहीं मुस्कान हमेशा रखिए। आपका जीवन ईश्वर द्वारा दिया हुआ एक अनमोल उपहार है, इसे कमजोर मत होने देना, आज से ही आशा उत्साह प्रेरणा एवं शक्ति को अपने जीवन में स्थान दीजिए तथा बन जाइए अपने जहाज के कप्तान स्वयं साथियों ।

यह आप भी जानते हैं कि बीज से अंकुर तभी फूटता है, जब वह फटता है और बाद में यही अंकुर एक दिन एक बड़ा पेड़ बन जाता है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि हमें अपने गुणों के विकास में सहायक अवसरों को बराबर खोजते रहना चाहिए। विकास का अर्थ ही होता है कि लगातार बढ़ते चले जाना और अपने साथ समाज के वंचित लोगों को भी आगे बढ़ाते चलना। याद रखना कैसा भी भय ,कैसा भी लोभ , कैसी भी चिंता यदि आपके बढ़ते कदमों को नहीं रोक पाती तो समझ लेना कि आपकी प्रगति भी नहीं रुक सकती आप एक दिन सफल होकर ही रहेंगे। इसीलिए मैं कह रहा हूं कि आप अपने सुप्त शक्तियों को जगा दो अपने आपको और अपनी शक्ति को पहचानो, जो अपनी शक्तियों को पहचान लेता है, वही एक दिन सफलता के शिखर पर पहुंचता है, बाकी लोग तो केवल समय पूरा करने के लिए इस धरती पर आते हैं और गुमनामी की मौत मर कर भुला दिए जाते हैं ।

 

Friday, September 18, 2020

  आज परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा फेक न्यूज़ से है

जी दोस्तों आज देखा जाए तो झूठी खबरें किसी परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा बनता जा रहा है। जब दोस्तों कोविड-19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के शुरुआती दिनों में देशव्यापी लॉकडाउन किया गया तो हम सभी ने प्रवासी मजदूरों के पलायन की तस्वीरें देखें, लेकिन अब केंद्र सरकार के मुताबिक कहा जा रहा है कि फेक न्यूज़ की वजह से ही इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर पलायन के लिए मजबूर हो गए थे मतलब की हमारे भारत के लिए आज फेक न्यूज़ सबसे बड़ा खतरा बन गया है । दोस्तों आज फेक न्यूज़ को आप तक पहुंचाने का सबसे बड़ा भूमिका सोशल मीडिया निभा रहा है, यह आप भी देख रहे हैं कि फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे ऐप फेक न्यूज़ फैलाने का माध्यम बन चुके हैं और यह किसी परमाणु बम के धमाके से भी ज्यादा खतरनाक है। आज दोस्तों इन्हीं फेक न्यूज की वजह से कई जगहों पर हम देखते हैं कि दंगे हो जा रहे हैं, किसी बड़ी हस्ती के निधन के बारे में झूठी खबर फैला दी जाती है, और तो और आज फेक न्यूज़ के वजह से ही दो देश युद्ध के करीब पहुंच जाते हैं। दोस्तों आज यह फेक न्यूज़ एक ही समय में लाखों करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रहा है।

याद करो आप जब 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था, उसी प्रकार आज दोस्तों हम देख रहे हैं कि इस वैश्विक महामारी के वक्त भी कुछ अराजक तत्वों के द्वारा फेक न्यूज़ का बम गिराने का प्रयास किया जा रहा है। आप ही देखो ना जब देश में लॉक डाउन का ऐलान किया गया था तब प्रधानमंत्री जी ने कहा था जो जहां पर है वह वहीं पर रहे लेकिन कुछ अराजक तत्वों ने झूठी खबर फैला दी और अगले ही दिन दिल्ली से हजारों लोग अपने गांव जाने के निकल पड़े थे।

इस प्रकार से झूठी खबर लॉकडाउन के दौरान फैला दिया गया कि मजदूर लोग घर में रहेंगे तो खाना पानी नहीं मिलेगा और लॉकडाउन अभी बहुत लंबा चलेगा, जिसके कारण ही दोस्तों प्रवासी मजदूर लोग घबरा गए और फिर वह पलायन करने के लिए मजबूर हो गए। जिसमें हम सभी ने देखा कि बहुत से प्रवासी मजदूर अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में ही अपनी जान गवा बैठे कोई प्रवासी मजदूर किसी ट्रेन के नीचे दबा तो कोई मजदूर किसी ट्रक के नीचे दबकर मरा तो कहीं कहीं देखा गया कि हजारों किलोमीटर पैदल चलते हुए प्रवासी मजदूर भूखे प्यासे मारे गए, और सभी राजनैतिक दल इस विषम परिस्थिति में भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे थे।

दोस्तों हमारे भारत में लगभग 4 करोड़ प्रवासी मजदूर है, यह वह लोग हैं जो अपने घर से दूर किसी और राज्य में जाकर नौकरी किसी कंपनी में करते हैं। अब आप ही सोचो इस लॉकडाउन के दौरान लगभग 75 लाख  मजदूर वापस अपने घर लौट चुके है यानी कि हर 5 प्रवासी मजदूरों में से एक वापस अपने राज्य वापस चला गया है। दोस्तों याद रखना आज फेक न्यूज़ से सिर्फ दंगे ही नहीं हो रहे हैं बल्कि इस फेक न्यूज़ के कारण किसी देश की अर्थव्यवस्था और समाज को भी काफी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। आजकल देखो ना बड़े देश इसी तरीके का युद्ध कर रहे हैं जिसे आप हाइब्रिड युद्ध भी कह सकते हैं। देखने में आता है कि जिस देश को लक्ष्य बनाकर फेक न्यूज़ का यह हमला किया जाता है उसमें उस देश का मीडिया विपक्षी नेता और विपक्षी बुद्धिजीवी सभी शामिल होते हैं। लेकिन इसमें नुकसान देश के आम जनता और निचले दबे कुचले प्रवासी मजदूरों को ही होता है।

आप सभी से आज मैं विनम्र निवेदन करके अनुरोध कर रहा हूं कि किसी खबर को तब तक शेयर ना कीजिए जब तक आप उसकी सच्चाई को लेकर पूरी तरह भरोसा ना कर ले, मतलब कहने का मेरा है कि आंख बंद करके किसी अटैचमेंट को डाउनलोड या ओपन न करें और अगर आपने किसी भड़काने वाली खबर को शेयर किया तो इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के आर्टिकल 66 -A के के तहत आपको 3 साल की जेल भी हो सकती है। यह बात आप को डराने के लिए मैंने नहीं कहा बल्कि 137 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में आज फेक न्यूज़ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बनती जा रही है, इसलिए हम सभी का यह नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसे झूठी खबरों को आप ना फैलने दे नाही फैलाएं।।

 

धर्मनिष्ठ तथा धर्मभीरु में अंतर




धर्मनिष्ठ वह होता है जो श्रद्धा से धर्म को मानता है। जबकि धर्मभीरु का मतलब धर्म से डरने वाला होता है। धर्मभीरु भयवश धर्म को मानता है।

         धर्मनिष्ठ व्यक्ति धर्म के असली अर्थ और महत्व को भलीभांति जानता और समझता है, किंतु धर्मभीरु व्यक्ति धर्म के अर्थ और महत्व को समझे बिना ही धर्म का पालन करता है।

         धर्मनिष्ठ व्यक्ति मानवता के पालन को ही सबसे बड़ा धर्म मानता है। करुणा, क्षमा, सत्यवादन, चोरी न करना, अहिंसा, किसी को शारीरिक या मानसिक कष्ट न देना, दूसरों की सहायता करना, माता-पिता एवं गुरुजनों का आदर करना आदि मानवीय गुण और जीवन के मूलभूत सिद्धांत, धर्मनिष्ठ व्यक्ति के स्वभाव और चरित्र में निहित होते हैं। किंतु धर्मभीरु व्यक्ति धार्मिक-आध्यात्मिक पुस्तकों और गुरुजनों द्वारा भयभीत कराए जाने के कारण इन मानवीय गुणों और जीवन के मूलभूत सिद्धांतों का भयवश अनुपालन करता है।

          शायद ऐसे लोगों के लिए ही नर्क आदि लोकों की कल्पना की गई है और धार्मिक पुस्तकों में भांति-भांति के नर्कों और उनकी भांति-भांति की यातनाओं का वर्णन कर, ऐसे व्यक्तियों को धर्म के मार्ग पर चलाने का प्रयास किया गया है। अच्छे-बुरे कर्मों को पाप-पुण्य की श्रेणी में बांटने और स्वर्ग-नरक जाने की अवधारणा भी इन्हीं धर्मभीरु व्यक्तियों के कारण संभव हुई है।

         संत-महात्माओं के द्वारा दिए गए उपदेशों को एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति श्रद्धा से सुनता है, प्रशन्नचित्त होकर उनके द्वारा बताई हुई अच्छी और प्रेरणादायक बातों का चिंतन-मनन करता है और उनको अपने जीवन में निर्भीकता से उतारता है। किंतु धर्मभीरु व्यक्ति इन उपदेशों और उनके द्वारा बताई हुई अच्छी और प्रेरणादायक बातों का अनुपालन भयवश और स्वर्ग आदि प्राप्त करने के लालच में करता है। इसीलिए जनसामान्य में लोक-परलोक की चिंता रहती है।

          धर्मनिष्ठ व्यक्ति निस्वार्थ भाव से कर्तव्य का पालन करता है। किंतु धर्मभीरु व्यक्ति के प्रत्येक कर्म में स्वार्थ की भावना निहित होती है, वह धर्म का पालन अपने पुण्य कर्मों के खाते को बढ़ाने के लिए ही करता है। किंतु ऐसी भावना के कारण कभी-कभी वह जिन्हें पुण्य कर्म समझकर करता है, अनजाने में वही उसके पाप कर्म बन जाते हैं।

ऐसे लोगों के लिए ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है--

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।

 

इसका तात्पर्य यही है कि व्यक्ति को धर्मनिष्ठ होते हुए बिना कर्मफल की इच्छा के अपने कर्तव्य का पालन करते रहना चाहिए। उसे धर्मभीरु बनकर अच्छे कर्मों यानी पुण्य कर्मों के फलस्वरूप मिलने वाले स्वर्ग आदि लोकों के लालच में धर्म का पालन नहीं करना चाहिए।

      अतः स्पष्ट है कि व्यक्ति को धर्मनिष्ठ होना चाहिए न कि धर्मभीरु।

 

रंजना मिश्रा ©️®️

कानपुर, उत्तर प्रदेश