Saturday, October 3, 2020

पीड़ा

क्या कहूं बहुत ही पीड़ा है

ये हृदय भयानक जलता है

इस जग में ऐसा घोर भयानक

अधम कर्म क्यों पलता है

क्यों बार-बार नारी का पावन

आंचल मैला होता है

सुन घोर भयानक कृत्यों को

पत्थर का मन भी रोता है

घनघोर अधम इन पापों का

क्या कोई भी उपचार नहीं

इन दुष्टों, नीचों, अधमों का

होता अब क्यों संहार नहीं

यूं भीड़ जुटाकर, शोक मनाकर

चुप हो जाएंगे बस हम

कुछ दिन ऐसे ही रो लेंगे

पर पाप कभी न होंगे कम

 

रंजना मिश्रा ©️®️

कानपुर, उत्तर प्रदेश

 

 

हमारी बीमारी को आदर्श नहीं चाहिए, हम झेल लेंगे! 

आदर्श गाँव के बारे में तो सबने सुना ही होगा कि किसी रियायतदार के हाथ एक गाँव को गोद लिया जाता है, मगर हमारा गाँव अपंग, अनाथ तो नहीं! कि उसे गोद लेना पड़े। हम अपनी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सभी बीमारियों से निपटने में स्वयं सक्षम हैं। देखा नहीं है क्या? कि जब हमारे बीच अनबन होती है, तो हम गाली-गलौच से अनबन का निपटारा कर ही लेते हैं। इससे भी अगर बात नहीं बनती तो लाठी-डंडों से समझौता हो ही जाता है, ऐसे में जब हम अपने मामलों को स्वयं येन-केन-प्रकारेण निपटा ही लेते हैं, तो हमारे गाँव को पुलिस स्टेशन जैसे आदर्श संरक्षण की क्या आवश्यकता? हमारा गाँव तो स्वयं में ही एक आदर्श है कि अपने मामलों को स्वयं निपटा लेता है। बाहरी हस्तक्षेप हमें बर्दाश्त नहीं! क्योंकि हमारा गाँव परिवार सरीखा है, अपंग, अनाथ नहीं कि कोई आए और उसे गोद लेकर आदर्श बनाए। चलो एक बार यह मान भी लेते हैं कि हमारे गाँव को आदर्श गाँव बनाने की जरूरत है, पर क्या यह बताएंगे? कि यह आदर्श गाँव बनाने की जरूरत क्यों केवल चुनावी दंगलों में ही महसूस होती है? क्या चुनावी दौर से पहले व बाद हमारा गाँव अपंग व अनाथ नहीं हो सकता? 

यह एक गाँव है, साहेब! यह अपना अच्छा-बुरा सब समझता भी है, निपटता भी है, यह कोई दूध पीता बच्चा नहीं कि खिलौना दिखाकर बहका लोगे और यह गोद में कूद पड़ेगा। आदर्श के नाम की लॉलीपॉप अब बहुत चूस ली हमनें, अब हकीकत का विकास चाहिए हमें, न कि महज आदर्श गाँव का तमगा! हमारे गाँव को ऐसे आदर्शवादी अस्पताल की जरूरत नहीं, जो लाश के भी पैसे बनाते हों! हमारे गाँव में तमाम नीम-हकीम, झोलाछाप डॉक्टर व दाई हैं। और तो और हमारे गाँव की दाई तो होशियार व बुद्धिमान भी खूब है, अगर रात में मृत्यु हो तो सुबह ही प्रमाणित करती हैं, क्योंकि उसे गाँव वालों की चिंता है, वह गाँव वालों की रात की नींद खराब करना नहीं चाहती। हमारे गाँव में स्कूल की भी कोई कमी नहीं है, मास्टर जी दिल खोलकर शिक्षा प्रदान करवा रहे हैं, फिर रिजल्ट खराब आए तो यह शिक्षार्थी की गलती, ना कि शिक्षक की! अब आज गाँव आदर्श हुआ नहीं कि मास्टर जी की पेशी, नेता जी टांग पर टांग चढ़ाए कुर्सी पर और मास्टर जी खड़े हो टुकुर-टुकुर निहारे जा रहे बेचारे। यह दशा अगर आदर्श गाँव को परिभाषित करे तो नहीं चाहिए, हमें आदर्श गाँव! हमारी बीमारी को हम येन-केन-प्रकारेण आज तक ठीक करते आए हैं और आगे भी कर ही लेंगे! 

 

जैविक और प्राकृतिक कृषि में सुनहरा भविष्य 

देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, वहीं यह सेक्टर 50 फीसद से ज्यादा आबादी को रोजगार भी उपलब्ध कराता है। इसके अलावा हाल के वर्षों में जिस तरह से कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण हुआ है, इसमें नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ा है। पारंपरिक खेती के साथ-साथ आर्गेनिक और इनोवेटिव फार्मिंग हो रही है, उसने एग्रीकल्चर के प्रति समाज और खासकर युवाओं का नजरिया काफी हद तक बदला है। यही कारण है कि बीते कुछ समय में आईआईटी और आईआईएम से पास आउट कई युवाओं ने मल्टीनेशनल कंपनियों का जॉब छोड़कर एग्रीकल्चर और एग्रीबिज़नस की ओर रुख किया है।

 

जैविक खेती का जिक्र तो आजकल बहुत हो रहा है, लेकिन सवाल यह है कि किसी को इसमें करियर बनाना है, तो वह क्या करे। गौरतलब है कि यह ऐसी खेती है, जिसमें सिंथेटिक खाद, कीटनाशक आदि जैसी चीजों के बजाय तमाम आर्गेनिक चीजें जैसे गोबर, वर्मी कम्पोस्ट, बायो फर्टिलाइजरस, क्रॉप रोटेशन तकनीक आदि का इस्तेमाल किया जाता है। कम जमीन में कम लागत में इस तरीके से पारंपरिक खेती के मुकाबले कहीं ज्यादा उत्पादन होता है। यह तरीका फसलों में जरुरी पोषक तत्वों को संरक्षित रखता है और नुकसानदेह केमिकल्स से दूर रखता है। साथ ही यह पानी भी बचाता है और जमीन को लम्बे समय तक उपजाऊ बनाये रखता है। यह पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में मददगार है।

 

कृषि वैज्ञानिक आपकी जमीन की जांच करेंगे और यह तय करेंगे कि इसकी मिट्टी किस तरह की फसल के लिए अच्छी है। इसके बाद आपका प्रोजेक्ट कृषि विभाग में पास होने के लिए भेज दिया जायेगा। आर्गेनिक फार्मिंग के लिए तकरीबन हर राज्य में सरकार 80 से 90 फीसद तक सब्सिडी देती है। आज के समय में जो भी कंपनी किसानों के साथ बिज़नस ट्रांजेक्शन कर रही हैं, फिर चाहे वह खाद्यान्न, फल, फूल से जुड़ा हो या किसी सर्विस से, उसे एग्रीबिजनेस सेक्टर में शामिल किया जाता है। इसी तरह बीज, कीटनाशक, एग्रीकल्चर इक्विपमेंट की सप्लाई, एग्री-कंसल्टेंसी, एग्रो-प्रोडक्ट की स्टॉकिंग, फसल का बीमा कराने या खेती के लिए लोन देने का काम भी एग्रीबिजनेस के अंतर्गत आता है। एग्री-प्रोडक्शन में इन्वेस्टमेंट से लेकर उसकी मार्केटिंग तक का काम एग्री-बिज़नस कहलाता है।

 

भारत का एग्रीकल्चर सेक्टर आज सिर्फ अनाजों के उत्पादन तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसमें बिज़नस के अवसर भी काफी बढ़ चुके हैं। फसलों की हार्वेस्टिंग से लेकर प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन में काम करने के लिए कई सारे मौके पैदा हुए हैं। इसके अलावा एडवांस टेक्नोलॉजी के आने से फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री और फ़ूड रिटेल सेक्टर में अनेक प्रकार के रोजगार सृजित हुए हैं, उन्हें मल्टीनेशनल कंपनियों में अच्छे पे-पैकेज पर रखा जा रहा है। इसके अलावा, एग्रीकल्चर और इससे जुड़े फील्ड के क्वालिफाइड यूथ के लिए वेयरहाउस, फ़र्टिलाइज़र, पेस्टिसाइड्स, सीड और रिटेल कंपनी में तमाम तरह के विकल्प सामने आ चुके हैं।

 

कृषि अब पूरी तरह से मानसून पर निर्भर नहीं है। वैज्ञानिक तरीके से अगर खेती की जाये, तो फसल भी अच्छी होती है और पानी भी कम लगता है। पहले जैसे सूखे के हालात अब नहीं पैदा होते। अब बारिश के पानी का स्टोरेज भी बेहतर तरीके से किया जाता है। इससे बारिश कम होने पर भी फसलों को पर्याप्त पानी मिल जाता है।

 

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

 गूंगे बहरे और अंधो अब उठो 

ये कैसी राम राज गला घोट दिया लोकतंत्र का 

देखो वो एक नही जो बे-आबरू हुई आज रे

क्या हम सबकी रूह बेज़ार नहीं हुई देखकर ?

वो बहन जो लुटी सर-ए-बाज़ार आज साथियों

क्या वो बहन  इज्ज़त की हक़दार नहीं  यारों

कितने ही आज दुर्शाशन खड़े  इस बाजार में 

पर कोई रखवाला गोपाल नहीं नजर आता 

कहां  छुपे हो तुम आज कृष्ण,चौकीदार 

क्यों किया द्रौपदी पे आज उपकार नहीं रे

लुटते मरते सब देख रहे कर रहे सियासत

गांधी के देश में अब कैसा हो गया देश मेरा

देखो ना यहाँ कोई भी शर्म सार नही साथियों

 सिर्फ आबरू नहीं लुटी बल्कि रूह को चिरा है

उसकी आँखों में दहशत है आहो में पीड़ा है

वो शर्मनाक हरक़त वाले उन्हें पाप का अंजाम दो

उसे मौत दो,उसे मौत दो दरिंदे ओ जानवर 

किसी माफ़ी के हक़दार नही साथियों

मिटा सके जो दर्द तेरा वो शब्द कहां से लाऊं

चूका सकूं एहसान तेरा वो प्राण कहां से लाए

खेद हुआ है आज मुझे लेख से क्या होने वाला

लिख सकूं मैं भाग्य तेरा वो हाथ कहां से लाऊं

देखा जो हालत ये तेरा छलनी हुआ कलेजा 

रोक सके जो अश्क मेरे वो नैन कहां से लाए

कैंडल मार्च, आंदोलन करके थक गए हम 

लेकिन वजीर के कानों में जूं तक ना रेगा

ख़ामोशी इतनी  क्यों क्या गूंगे बहरे हो गए सारे

सुना सकूं जो हालत तेरी वो जुबां कहां से लाए

चिल्लाहट पहुँचा सकूं बहरे इन नेताओं को रे

झकझोर सकूं इन गूंगे बहरे और अंधे मूर्दो को

अब  ईश्वर वो मेरे को शक्ति  दे दो  ।।।

 

Thursday, October 1, 2020

 रीढ़ आज बेटी का ही नहीं टूटा है बल्कि देश के सभी मानव का रीढ़ टूटा है 

हम सभी ने 3 दिन पहले ही डॉटर्स डे बड़ा ही धूमधाम से मनाया, देश की बेटियों के लिए बड़ी-बड़ी बातें कही गई, तस्वीर साझा की गई बेटियों के सुनहरे भविष्य की कामना की गई, लेकिन क्या दोस्त हम एक समाज के तौर पर देश की बेटियों को आज हम यह आश्वासन दे सकते हैं कि बस अब बहुत हो गया अब ऐसा हमारे समाज में नहीं होगा, क्या हमारा शासन प्रशासन व कानून व्यवस्था यह आश्वासन भी दे सकता है कि अब ऐसा अन्याय हमारी बेटियों पर नहीं होगा? दोस्तों याद रखना संस्कार ही ऐसे घिनौनी मानसिकता से हमारे समाज मे होने वाले अपराधों से बचा सकता है।

उत्तर प्रदेश के हाथरस में दो हफ्ते पहले गैंगरेप का शिकार हुई बेटी की  29 सितंबर को मौत हो गई ये 19 साल की बेटी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती थी  परिवार के मुताबिक पुलिस ने मदद नहीं किया बल्कि जब जरूरत थी इस बेटी को इलाज की तब पुलिस ने थाने में रखा हुआ था । जानकारी के मुताबिक 14 सितंबर को जब पीड़िता की हालत बिगड़ने लगी तब रिश्तेदार उसे पास के एक अस्पताल में लेकर गए. पुलिस ने शुरुआत में सिर्फ गला दबाने और एससी/एसटी एक्ट के तहत ही मामला दर्ज किया था. आपको बता दें कि गैंगरेप की धारा लगाने में ही पुलिस को पूरे 8 दिन लग गए। 22 सितंबर को लड़की का बयान दर्ज होने के बाद ही पुलिस ने गैंगरेप की धारा लगाई। 27 सितंबर को तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगा तब लड़की को अलीगढ़ से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया जहां उसकी मौत हो गई।

दोस्त प्रशासन या सरकार में बैठे बुद्धिमान लोग चाहे जो भी दलील दे लेकिन आज यह सच है कि 2 हफ्ते से अस्पताल दर अस्पताल अपनी जिंदगी की जंग लड़ रही इस बहन की जान नहीं बचाई जा सकी, निर्भया गैंग रेप के वक्त हम सभी ने सड़कों पर उतरे पटना से दिल्ली आए संसद भवन का घेराव किया हम सभी ने आज   यह सब किए हुए आज 8 वर्ष से भी ज्यादा हो गया ध्यान से देखें तो इन 8 वर्षों में भी कुछ नहीं बदला, जो दर्द निर्भया के पिता का था वही दर्द आज हाथरस की इस बहन के पिता का है।

आपको भी याद होगा निर्भया घटना दिसंबर 2012 में जब हुआ था उस वक्त पूरा देश एक साथ सड़क पर उतर आया था ऐसा लग रहा था कि हमारा भारत जाग गया है और अब भारत में एक भी नारी रेप या हिंसा की शिकार नहीं होगी।

दोस्त दिसंबर 2012  हमें याद है उस वक्त मैं खुद स्कूल का छात्र था पटना से आवाज उठाते उठाते हम सभी ने दिल्ली तक आए थे उस समय यह भी देखा मैं की बॉलीवुड के लोगों ने भी इन विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा बने थे। आज फिर हमें उसी तरह से मजबूती के साथ आवाज उठाने की जरूरत है, ताकि बहन को न्याय मिले और ऐसी घटनाएं हमारे सभ्य समाज में आगे से नहीं हो।

अगर दोस्त हम नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े देखें तो 2012 में प्रतिदिन रेप की 68 घटनाएं हुई, जिसकी संख्या दोस्त 2013 में बढ़कर 92 हो गई, 2014 में 100 रेप के मामले प्रतिदिन दर्ज हुए, वहीं वर्ष 2016 के आंकड़े देखें तो 106 रेप केस दर्ज हुए हैं। यह मैंने यहां एनसीआरबी के वो आंकड़े बताएं जिसको रिकॉर्ड किया गया है लेकिन आपको बता दें कि अधिकतर मामले तो नजदीकी थाने तक भी नहीं पहुंच पाते हैं अगर पहुंच भी जाए तो रिपोर्ट लिखी ही नहीं जाती है जैसा कि इस हाथरस के बेटी के रिपोर्ट लिखने में ही उत्तर प्रदेश के पुलिस को पूरे 8 दिन लग गया , अब आप समझ सकते हैं कि आखिर हमारे समाज में न्याय के लिए लोगों को कितना संघर्ष करना पड़ता है। दोस्तों एक नारी ही हमें अपने कोख में 9 माह रखकर इस धरती पर लाती है, कोई भी नारी हो किसी न किसी का वह मां होती है चाहे उनसे हमारा कोई भी रिश्ता हो यह हम सभी जानते हैं कि एक नारी ही कभी मां, कभी दोस्त, पत्नी, दादी मां, नानी ना जाने कितनी रिश्तो में हमें अपनाकर हम सभी को प्यार देती है जीवन में आगे बढ़ने के लिए सिचती है, आप ही सोचो दोस्त फिर आज ऐसी घटनाएं एक मां के साथ क्यों हो रही है? जबकि हर एक नारी किसी ना किसी की मां है आप सभी से विनम्र निवेदन है कि चाहे आपका एक नारी से कोई भी रिश्ता हो लेकिन आप उनको जननी मां ही समझना, आज बहुत जरूरत है हमें अपने बच्चों में यह संस्कार डालना कि हर एक नारी मां का ही रूप है , वही हम सभी को 9 माह अपनी कोख में रखकर इस धरती पर लाती है, याद रखना नारी का सम्मान जहां है संस्कृति का वहां उत्थान है। हर एक नारी में मां का ही स्वरूप है।

 

कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया-चिंतक /पत्रकार/ आईएएस मेंटर/दिल्ली विश्वविद्यालय 9069821319

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो ?

बिन पेंदे के लौटे सा लुढ़क रहे हो

तुम थाली के बैगन से दिख रहे हो

हर चुनाव मे दल क्यो बदल रहे हो?

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो?

गिरगिट सा रंग रोज बदल रहे हो

चुनाव मे किये सारे वादे भुलाकर

तुम क्यो अपनी ढ़पली बजा रहे हो?

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो?

जनता को मूर्ख क्यो समझ रहे हो?

जाति,धर्म और मानवता की बलिवेदी पर 

तुम तो राजनीति की रोटी सेक रहे हो।

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो?

वोट के लिए धर्म भी बदल रहे हो

एक दूजे पर तंज भी कस रहे हो

वोट पाने का ताना बाना बुन रहे हो।

नेता जी तुम क्यो अकड रहे हो?

रोजगार,शिक्षा,स्वास्थ्य और विकास भूलकर

तुम कैसी ये राजनीति अब कर रहे हो?

बोलो सपनो का भारत तुम कैसा रच रहे हो?

 

रचनाकार:-

अभिषेक कुमार शुक्ला

सीतापुर, उत्तर प्रदेश

 गाँधी जी की राय

       राजू एक नवी कक्षा का छात्र है और अपने घर के पास ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ता है।राजू बचपन से ही पढ़ने बहुत होशियार विद्यार्थी है।लेकिन उसके दिमाग की सारी अच्छाइयां उसके गणित के अध्यापक के सामने खत्म हो जाती हैं। वह लगातार अपने गणित के अध्यापक के हाथों डांट खाता रहता है और कक्षा से बाहर किया जाता रहता है।राजू इस बात से बहुत ही दुखी था।क्योंकि अपनी तरफ से तो वह सभी सवालों का सही जवाब देता है।लेकिन ना जाने क्यों गुरुजी लगातार उसे डांटते रहते है और कक्षा से बाहर निकालते रहते हैं।

          गाजियाबाद के सरकारी स्कूल मैं पढ़ रहा राजू बड़ी ही मेहनत से अपनी पढ़ाई कर रहा था।क्योंकि उसे पता था कि वह अपने गरीब मां-बाप का भविष्य पढ़कर ही सुधार सकता है।2 अक्टूबर आने वाली थी यानी कि हमारे *प्यारे बापू ( महात्मा गाँधी )*जी का जन्म जिस दिन हुआ था।आज रात राजू कुछ ज्यादा ही परेशान था।रात को परेशान होते-होते राजू ने महात्मा गांधी जी की तस्वीर, जो कि उसके घर की दीवार पर टंगी हुई थी।उसने बापू के हाथ जोड़े और प्रार्थना की,बापू मुझे अपने गणित के अध्यापक की डाट खाने से बचा लो।उसके बाद वो सो गया।

          राजू को अभी नींद नही आयी थी कि उसने देखा,अचानक तस्वीर से निकलकर बापू,राजू के सामने खड़े हो गए।उन्होंने राजू की समस्या का बड़े ही ध्यान से सुना और राजू से पूछा कि आखिर क्या वजह है,वह अध्यापक उसी को इतना डांटते है।राजू ने बताया कि वह सारे सवालों का सही जवाब देता है।किंतु उसके गणित के अध्यापक सबके सामने उसका मजाक उड़ाकर कक्षा से निकाल देते है और सभी छात्र भी उसका मजाक उड़ाते है।

         सब बातों को सुनकर गांधी जी ने उसे एक उपाय बताया।बेटा राजू,तुम रोज अपने अध्यापक के पास जाओ और उन्हें हाथ जोड़कर नमस्ते करके,बिना उनसे डांट खाए,अपनी गणित की कॉपी उन्हें देकर खुद ही मुस्कुराते हुए कक्षा के बाहर आकर खड़े हो जाओ और उन्हें ये जरूर बता देना कि आप तो मुझे कुछ देर बाद निकाल ही दोगे।देखना इस बात से उनके ऊपर बहुत असर पड़ेगा और वह तुम्हें कक्षा के अंदर लेकर सही तरीके से पढ़ाने लगेंगे और तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाएगा।

          राजू को उनका ये उपाय बहुत अच्छा लगा।अगले ही दिन वह कक्षा में पहुँचा और जैसे ही गणित के अध्यापक आए।उसने उनसे हाथ जोड़कर नमस्ते की और कहा सर थोड़ी देर में तो आप मुझे डांट कर कक्षा से निकालने वाले हैं।मैं खुद ही कक्षा से बाहर जाकर खड़ा हो जाता हूँ और वह कक्षा से बाहर जाकर खड़ा हो गया।यह घटनाक्रम लगातार पांच दिन चलता रहे लेकिन गणित के अध्यापक पर कोई भी असर नहीं पड़ा।बल्कि वह हंसते हुए उसके सामने से रोज निकल जाते हैं।राजू बहुत ही परेशान था।

          कल 2 अक्टूबर है।उसने एक बार फिर बापू से पूछा,बापू-अध्यापक के ऊपर तो कोई भी असर नहीं हो रहा है। मैं क्या करूं,तब बाबू ने कहा बेटा कल तुम मेरी फोटो को लेकर जाना और यह घटना दोबारा से दोहराना।उन्हें गणित की कॉपी के साथ मेरी तस्वीर भी जरूर दे देना।अगले दिन राजू ने फिर उसी घटना को दोहरा दिया।इस बार गणित के अध्यापक को हाथ जोड़कर नमस्ते कर,उसने बापू की तस्वीर भी उनको दे दी और कक्षा से बाहर आकर खड़ा हो गया।

          लेकिन आज गणित की कक्षा समाप्त होने के बाद गणित के अध्यापक ने राजू को निराश नहीं होने दिया।उन्होंने राजू को दो 500 रुपये के नोट दिखाये।जिस पर महात्मा गांधी जी का फोटो छपा हुआ था। उन्होंने राजू को बताया बेटा कक्षा के लगभग सभी विद्यार्थी मुझसे ट्यूशन लेते हैं जिससे कि वह पास होकर अगली कक्षा में पहुंच जाएंगे।एक तुम ही हो,जो मुझसे  ट्यूशन नहीं पढ़ते। बेटा मेरी बात समझने की कोशिश करना,बापू की बात तो आज भी सारी  सही है।लेकिन जो तस्वीर तुम्हारे हाथ में है और जो तस्वीर मेरे हाथ में इस नोट पर है।उस तस्वीर वाले रुपयों से मुझसे ट्यूशन लो और देखना तुम्हे मैं फिर कभी कक्षा से नही निकलूंगा।

          राजू खुशी-खुशी अपने घर पहुँचा।शाम को फिर बापू की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर बापू से बोला, आखिर आपकी तस्वीर ने मुझे आज बचा ही लिया।अब मैं समझ गया हूँ कि मुझे आगे क्या करना है।बापू ने कहाँ,देखा मैंने तो कहाँ ही था सब कुछ ठीक हो जाएगा।फिर महात्मा गांधी जी ने भी अचंभित होकर सारी घटना को सुना।

          *बापू ने सारी घटना सुनकर यही निष्कर्ष निकाला,कि शायद आज उनकी बातों को और उन्हें लोगो ने इसीलिए नही भुलाया,क्योंकि उनकी तस्वीर एक ऐसे कागज पर मौजूद है।जिसकी जरूरत जीवन की दिनचर्या चलाने के लिए बार-बार पड़ती है।वरना लोग शायद उन्हें कब का भूल जाते।बापू निराश होकर भारी मन के साथ वापस तस्वीर में चले गए।*

नीरज त्यागी `राज`

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

Saturday, September 19, 2020

"   आप ही के अंदर शक्तियों का महावृक्ष है "




सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो आप, अपने आप में विश्वास रखिए जब भी विचलित हो आप तो यह शब्द जरूर बोलो कि मैं समुंद्र पी जाऊंगा मेरी इच्छा से पर्वत टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। इस प्रकार की शक्ति और इच्छा आप रखो, इसके साथ ही कड़ा परिश्रम करो। देखना आप अपने उद्देश्य को एक दिन निश्चित पा लोगे।

याद रखना आप मेरी बात को आपके भीतर सभी शक्तियां निहित है, आप में ही महान से महानतम बनने के बीज आप के अंतः करण में मौजूद है। लेकिन दोस्त जब तक हम इन शक्तियों को विकसित नहीं करेंगे तब तक आप ही सोचो आपको जीवन का आनंद कैसे प्राप्त होगा?

आज चारों तरफ देखे तो अधिकतर लोग थोड़ी सी किसी ने आलोचना किया और वह परेशान हो जाते हैं, जबकि भाइयों हर जानदार तथा शानदार व्यक्ति की आलोचना होती है। यह सच है कि अधिकतर लोग उससे ईर्ष्या  भी करते हैं । एक बात अपने दिल में उतार लो कि आलोचना एवं ईर्ष्या इस बात की द्योतक है कि आप जीवित हैं, आप में दम है तथा आपका जीवन सार्थक है। सही आलोचना से आप हमेशा सीखो तथा अपने आपको बदलो एवं इसके साथ ही गलत आलोचनाओं से परेशान आप जरा भी ना होना। उन्हें मुस्कुरा कर हवा में उड़ा दो, अपने दिल पर इसका असर ना होने दो कि मेरा उसने आलोचना किया। अपनी आंतरिक शक्तियों के माध्यम से आलोचनाओं के बाहरी आक्रमण को ध्वस्त कर दीजिए। अपने चेहरे पर तनाव नहीं मुस्कान हमेशा रखिए। आपका जीवन ईश्वर द्वारा दिया हुआ एक अनमोल उपहार है, इसे कमजोर मत होने देना, आज से ही आशा उत्साह प्रेरणा एवं शक्ति को अपने जीवन में स्थान दीजिए तथा बन जाइए अपने जहाज के कप्तान स्वयं साथियों ।

यह आप भी जानते हैं कि बीज से अंकुर तभी फूटता है, जब वह फटता है और बाद में यही अंकुर एक दिन एक बड़ा पेड़ बन जाता है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि हमें अपने गुणों के विकास में सहायक अवसरों को बराबर खोजते रहना चाहिए। विकास का अर्थ ही होता है कि लगातार बढ़ते चले जाना और अपने साथ समाज के वंचित लोगों को भी आगे बढ़ाते चलना। याद रखना कैसा भी भय ,कैसा भी लोभ , कैसी भी चिंता यदि आपके बढ़ते कदमों को नहीं रोक पाती तो समझ लेना कि आपकी प्रगति भी नहीं रुक सकती आप एक दिन सफल होकर ही रहेंगे। इसीलिए मैं कह रहा हूं कि आप अपने सुप्त शक्तियों को जगा दो अपने आपको और अपनी शक्ति को पहचानो, जो अपनी शक्तियों को पहचान लेता है, वही एक दिन सफलता के शिखर पर पहुंचता है, बाकी लोग तो केवल समय पूरा करने के लिए इस धरती पर आते हैं और गुमनामी की मौत मर कर भुला दिए जाते हैं ।

 

कवि विक्रम क्रांतिकारी


 

 




बहु भी मुस्कुराना चाहती है




बहु भी किसी की बेटी है,

फिर क्यों इतना कष्ट पाती है।

छोड़कर आई है बहु,अपने पूरे घर को,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

अपने माँ बाप की प्यारी बेटी,

बहु बनकर ससुराल आती है।

बहु को दें बेटी का दर्जा,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

बेटी,बहु और कभी माँ बनकर

अपने सब फर्ज़ निभाती है।

सबके सुख-दुख को सहकर,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

बहु के बारे में क्या कहूँ, 

पूरे घर आंगन में खुशियां लाती है।

सास-ससुर की सेवा करके,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

सबका रखे ध्यान और ख्याल,

अंत में खाना खाती है।।

ससुराल में बेटी बनकर,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

दहेज प्रताड़ना दे देकर,

बहुएं जिंदा जलाई जाती है।

समर्पण की भावना अपनाकर,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।

 

माँ लक्ष्मी, दुर्गा रूप में,

देवी रूपी बहु सबके मन को भाती है।

ज़रा "बेटी" उसे कह कर पुकारो,

बहु भी मुस्कुराना चाहती है।।



गोपाल कृष्ण पटेल "जी1"
दीनदयाल कॉलोनी
जांजगीर छत्तीसगढ़


 

 




कभी तो

तुम ख्वाहिश हो मेरी 

कभी तो मुझे मिला करो।

तुम दुआ हो मेरी 

कभी तो कबूल हुआ करो।

तुम मोहब्बत हो मेरी

कभी तो पूरी हुआ करो।

तुम जहान हो मेरा

कभी तो मुझ पर 

मर मिटा करो।

तुम धड़कन हो मेरी

कभी तो मेरे

दहकते दिल में धड़का करो।

तुम सांस हो मेरी 

कभी तो जीने की 

ख्वाहिश से

मुझ में आया करो।

तुम इश्क हो मेरा

कभी तो तुम

मोहब्बत के बहाने 

मेरे शहर में आया करो।

तुम चाहत हो मेरी

कभी तो मेरे 

अनाहत द्वार को छुआ करो।

युवा वर्ग के लिए चुनौती एवं संदेश 






केंद्र सरकार ने नौकरियों में भरती की जिस नई प्रवेश परीक्षा और प्रक्रिया की योजना पेश की है, उसके भीतर दूरगामी संभावनाएं छिपी हुई हैं। यह एक प्रकार की सामाजिक क्रांति को जन्म दे सकती है, बशर्ते इसे सावधानी से लागू किया जाए। यह प्रक्रिया ग्रामीण क्षेत्र के युवकों को मुख्यधारा में आने का मौका देगी, लड़कियों को महत्वपूर्ण सरकारी सेवाओं से जोड़ेगी और भारतीय भाषाओं के माध्यम से सरकारी सेवाओं में आने के इच्छुक नौजवानों को आगे आने का अवसर देगी। इन सब बातों के अलावा प्रत्याशियों और सेवायोजकों दोनों के समय और साधनों का अपव्यय भी रुकेगा।

केंद्र सरकार ने गत 19 अगस्त को फैसला किया है कि सरकारी क्षेत्र की तमाम नौकरियों में प्रवेश के लिए एक राष्ट्रीय भरती एजेंसी का गठन किया जाएगा। इस आशय की जानकारियाँ प्रधानमंत्री कार्यालय से सम्बद्ध तथा कार्मिक, सार्वजनिक शिकायतों और पेंशन विभागों के राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने दी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केंद्र सरकार की नौकरियों की भरती में परिवर्तनकारी सुधार लाने हेतु राष्ट्रीय भरती एजेंसी (नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी-एनआरए) के गठन को मंज़ूरी दे दी है।

हर वर्ष सरकारी सेवाओं और बैंकों की नौकरी के लिए ढाई से तीन करोड़ प्रत्याशी परीक्षा में बैठते हैं। सीएटी में एकबार बैठने के बाद व्यक्ति भरती करने वाली दूसरी एजेंसियों की उच्चतर परीक्षा में बैठने का अधिकारी हो जाएगा। इस टेस्ट का पाठ्यक्रम समान होगा। प्रत्याशी एक सामान्य पोर्टल पर जाकर अपना नाम पंजीकृत करा सकेंगे और उपलब्ध परीक्षा केंद्रों में से अपनी इच्छा का केंद्र तय कर सकेंगे। उपलब्धि के आधार पर उन्हें केंद्र आबंटित किया जाएगा। इस व्यवस्था के लागू होने के बाद अलग-अलग परीक्षाओं के लिए फीस पर पैसा बर्बाद नहीं होगा। साथ ही जगह-जगह की यात्रा पर समय और साधनों का व्यय भी नहीं होगा। इन परीक्षाओं की बहुलता के कारण महिला प्रत्याशियों को खासतौर से परेशानियों का सामना करना होता है।

एनआरए की यह परीक्षा (सीईटी) पहले चरण में 12 भारतीय भाषाओं में आयोजित की जाएगी। इसके बाद दूसरी भाषाओं में भी इसे शुरू किया जा सकेगा। हालांकि अभी यह जानकारी नहीं मिल पाई है कि कौन सी भाषाओं में यह परीक्षा होगी, पर इतना स्पष्ट किया गया है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित भाषाओं में से 12 होंगी। कई मायनों में यह बड़ी महत्वाकांक्षी योजना है, जो राष्ट्रीय एकीकरण में भी सहायक होगी। भारत के इतिहास, भूगोल, संस्कृति और समाज से जुड़े सामान्य ज्ञान का समान पाठ्यक्रम भी सांस्कृतिक एकता की स्थापना में महत्वपूर्ण साबित होगा।

कार्मिक तथा प्रशिक्षण मंत्रालय के सचिव सी चंद्रमौलि के अनुसार सामान्यतः ढाई से तीन करोड़ युवा हर साल करीब सवा लाख सरकारी नौकरियों से जुड़ी परीक्षाओं में शामिल होते हैं। ये परीक्षाएं एक तरह से नागरिक के रूप में हमारा ज्ञानवर्धन करती हैं। भारतीय भाषाओं के मार्फत करीब ढाई-तीन करोड़ नौजवानों का एक ही परीक्षा में शामिल होना एक नए प्रकार की ऊर्जा को जन्म देगा। देश के हर जिले में इसका परीक्षा केंद्र होगा।

इस सिलसिले में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि क्या सरकारी नौकरियाँ इतनी हैं कि यह परीक्षा आकर्षक बनी रह सके? यह भी कहा जा रहा है कि रेलवे का निजीकरण हो रहा है। ये बातें सही हैं, पर सही यह भी है कि रेलवे का कार्यक्षेत्र बढ़ रहा है। उसके लिए कर्मचारियों की जरूरत कम होने के बजाय बढ़ेगी। उम्मीद है कि एनआरए की सीईटी का स्कोर निजी क्षेत्र की कंपनियों के काम भी आएगा, जैसे कि कैट का स्कोर निजी क्षेत्र के प्रबंध संस्थानों में भी स्वीकार किया जाता है।

अभी सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को समान शर्तों वाले विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग भरती एजेंसियों द्वारा संचालित अलग-अलग परीक्षाओं में शामिल होना पड़ता है। इतना ही नहीं उन्हें प्रत्येक परीक्षा के लिए विभिन्न पाठ्यक्रम के अनुसार अलग-अलग पाठ्यक्रमों की तैयारियाँ करनी होती हैं। इसके कारण उन्हें अलग-अलग एजेंसियों को अलग-अलग शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। साथ ही परीक्षा में हिस्सा लेने के लिए लंबी दूरी भी तय करनी पड़ती है।  इससे उनपर आर्थिक बोझ पड़ता है।

अलग-अलग भरती परीक्षाएँ आयोजन करने वाली एजेंसियों पर भी काम का बोझ बढ़ता है। बार-बार होने वाला खर्च, सुरक्षा व्यवस्था और परीक्षा केंद्रों से जुड़ी तमाम बातें संसाधनों के अपव्यय की कहानी कहती हैं। वर्तमान प्रक्रिया के कारण भरती की गति भी बहुत धीमी होती है। इस नई व्यवस्था से यह गति तेज हो जाएगी। इससे एक तरफ बेरोजगारी की समस्या दूर होगी, वहीं सरकारी कामकाज में गति आएगी। बहुत से सरकारी विभागों ने कहा है कि हम दूसरे चरण की परीक्षा लेंगे ही नहीं और एनआरए के स्कोर के आधार पर ही भरती कर लेंगे। भारत के रक्षा क्षेत्र में विस्तार का जबर्दस्त कार्यक्रम शुरू होने वाला है। इसके लिए हरेक स्तर की भरती होगी। बहुत से विभागों में पिछले कई वर्षों से भरती नहीं हुई है। उन पदों को भरने की प्रक्रिया तेज की जा सकती है। कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ गई है, उसे गति प्रदान करने में भी इस नई प्रक्रिया का काफी लाभ मिलेगा, बशर्ते उसका समय से इस्तेमाल किया जा सके।

 

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश




 

 




देश का भरोसा अभी आप पर है लेकिन

अगर आपको कहा जाए कि फ़्लैश बैक में जाकर कुछ याद कीजिए यूपीए-2 के अंतिम वर्ष।बुरी तरह से घोटालों के आरोपों से घिरी हुई सरकार।विपक्ष का चौतरफा हमला।यकायक अन्ना आंदोलन और उस आंदोलन के पीछे देश।याद कीजिए वह दिन जब रामलीला मैदान से अन्ना को गिरफ्तार कर लिया था और तिहाड़ जेल में भेज दिया था,तब एकदम से सारे देश में ऐसा लगा कि बस अब और नहीं,यह यूपीए की सरकार किसी भी कीमत पर अब एक दिन के लिए भी नहीं चाहिए।इसे जाना चाहिए।इसी क्रम में याद कीजिए मीडिया का सारा फोकस केवल अन्ना पर हो गया था और देश का विपक्ष एकदम नेपथ्य में चला गया था।हर और एक ही शोर कि अन्ना नहीं,यह गांधी है।आनन-फानन में अन्ना को उसी दिन तिहाड़ जेल से रिहा किया गया,तब देश का वातावरण देखते ही बनता था।ठीक इसी तरह जैसे आज रिया,कंगना आदि-आदि हो रहा है।उस समय केवल अन्ना बाकी कुछ नहीं।इस बीच यह बात भी ध्यान रखिए कि उस समय सरकार के मंत्री कपिल सिब्बल,सलमान खुर्शीद,प्रणव मुखर्जी आदि-आदि,ऐसे बौखला गए थे कि इन सबके लिए मीडिया का सामना करना मुश्किल हो गया था।लबोलुबाब यह था कि इन तमाम मंत्रियों को कुछ नहीं सूझता था और अनाप-शनाप बोलने लग गए थे।अगर आपको याद हो या आप थोड़ा फ़्लैश बैक में जाएं तो पाएंगे कि उस समय सरकार बुरी तरह घिरी हुई थी,उसे निकलने का कोई भी उपाय नहीं सूझ रहा था और सिर्फ अन्ना और उसके मुद्दे।अन्ना के साथी जो बाद में मुख्यमन्त्री और गवर्नर,केंद्रीय मंत्री तक बने हुए हैं,वे ही असली हीरो माने जाने लगे थे।ऐसा लगता था कि मानों भगत सिंह जैसे लोग धरा पर अवतरित हो गए हैं।लेकिन बाद में सबका भंडाफोड़ हो गया।देश ठगा-सा गया।इसी बीच तत्कालीन विपक्ष पर भी आरोप लगे मगर वे हवा में उड़ गए,किसी ने उन पर विश्वास ही नहीं किया।ज्यादा न कहते हुए आख़िरकार यूपीए-2 की चुनावों में ऐतिहासिक फजीहत हुई और सम्भवतः यह सबसे बड़ी हार थी जब उनके सांसदों का आंकड़ा अर्धशतक भी नहीं लगा सका,विशेषकर कॉंग्रेस का।यह केवल मोदी की जीत नहीं थी बल्कि यूपीए के कर्मकांडों की हर थी।ख़ैर,वो वर्ष था 2014 का,जब मोदी का उदय हुआ और देश भगवामय हो गया।एनडीए की पहली पारी में जो कुछ भी सरकार ने किया,पूरे देश ने उसे मान लिया,चाहे वह कोई भी फैसला किया हो।मजे की बात यह रही कि किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि सरकार के खिलाफ बोले।अगर कोई दबे स्वर में बोला भी तो उसका विरोध हुआ और इस देश ने देशद्रोही जैसे शब्द सुने।न केवल सुने बल्कि उनके साथ बेहद बुरा किया गया।ठीक अन्ना आंदोलन की तरह मीडिया भी पीछे नहीं रहा।ब्यानों का अपने ही तरीके से मतलब निकाला गया और एकाध को छोड़कर किसी की भी हिम्मत नहीं रही कि एनडीए सरकार की आलोचना कर सके।इसी बीच प्रधामन्त्री जी यहाँ तक आ गए कि प्रधामन्त्री जी ने जो कह दिया,बस वह ब्रह्मवाक्य माना जाने लगा।वैश्विक स्तर पर छाए रहे।सम्मानों की मानो झड़ी लग गयी।2019 के आते-आते जलवा बरकरार रहा जबकि याद रखिए नोटबन्दी जैसा निर्णय लेने,जीएसटी के लागू होने के बाद भी जनता का बड़ा तबका एनडीए के साथ ही बना रहा और 2019 में फिर से ऐतिहासिक जीत मिली।यह जीत विशुद्ध रूप से मोदी की जीत थी।किसी को भी यह मानने में गुरेज नहीं था कि बड़े दिनों के बाद मोदी एक करिश्माई नेता के रूप में आएं हैं।एनडीए की दूसरी पारी की शुरुआत हुई लेकिन 2020 के आते-आते करिश्माई नेतृत्व कुछ धीमा पड़ने लग गया।दिल्ली के विधानसभा चुनावों ने उसमें पलीता लगा दिया।हरियाणा में भी गठबंधन की ही सरकार बनानी पड़ी।राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भी हाथ से निकल गया।वो अलग बात है कि बाद में मध्यप्रदेश हाथ में आ गया।इस समय बिल्कुल 2014 वाला दौर खुद को दोहरा रहा है।किसानों का मसला थम नहीं रहा मगर सरकार और इसके मंत्रियों के ब्यान चौकानें वाले हैं।मजदूरों के बारे में सरकार ब्यान देने से ही हिचक रही है।चीन का मसला गले की फांस बनता जा रहा है।बढ़ता निजीकरण जनता में आक्रोश  पैदा कर रहा है।छोटे-छोटे पड़ौसी देश अनाप-शनाप बोल रहे हैं।कंगना और रिया से देश का वो तबका जो अधिकाँश है और मूल मुद्दों पर बात चाहता है,मीडिया से खासा नाराज है बल्कि मुखर होकर कहने लग गया है कि मीडिया बिकाऊ है।उधर कोरोना ने भी कसर नहीं छोड़ी है और लोग इसको भी अब  सरकार की विफलता बताने लग गए हैं।घटती जीडीपी,गिरता रुपया,आसमान छूती मंहगाई,बढ़ती बेरोजगारी ही सरकार के लिए बड़ी मुसीबत पैदा कर रही है क्योंकि अब लोग 2014 से पहले के ब्यान निकाल-निकालकर देखने- दिखाने लगे हैं।पीएम के जन्मदिन को राष्ट्रीय झूठ दिवस,जुमला दिवस,बेरोजगार दिवस के रूप में मनाना,अपने आप में बड़ी घटना है।मंत्रियों के ब्यान बेहद खराब हैं जैसे भाभी जी पापड़ खाना,ठेका नहीं ले रखा है,हर चीज के लिए पिछले लोग जिम्मेदार हैं।अब तो लोग हिन्दू-मुस्लिम से भी तंग आ चुके हैं।शुरू-शुरू में यह मुद्दा सिर चढ़कर बोला था।सोशल मीडिया में भी अब वो पहले जैसी बात नहीं रही।अब विरोधी स्वर ज्यादा हो रहे हैं।दिल्ली दंगों की जांच खुद जांच के घेरे में है।पूरे देश के हालात इस समय बेहद खराब गुजर रहे हैं।

लेकिन हमारा मानना यह है कि अब भी समय है।देर नहीं हुई है।सरकार को चाहिए कि समस्याओं का समाधान करें,कोरोना से निपटे,जीडीपी को उठाए,रूपये की हालात में सुधार करे,बेरोजगारों को रोजगार दे,किसानों की सुनकर किसानों के हित में काम करे,महिला सुरक्षा पर ध्यान दें,निजीकरण पर रोक लगाए,सार्वजनीकरण को बढ़ावा दे।हिन्दू-मुस्लिम करना बंद करे।अभी भी देश आप पर भरोसा करता है।कहीं ऐसा न हो कि हश्र यूपीए वाला हो जाए क्योंकि कहने को तो उनके पास भी बहुत कुछ था।कहने को तो इंडिया शाइनिंग भी था लेकिन जनता ने दोनों  को नकार दिया था।अभी समय है,चेत जाइए ताकि देश सही दिशा की और जा सके।उम्मीद भी आपसे ही है।जय राम जी की।भली करेंगे राम।

 

"   आप ही के अंदर शक्तियों का महावृक्ष है 

सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो आप, अपने आप में विश्वास रखिए जब भी विचलित हो आप तो यह शब्द जरूर बोलो कि मैं समुंद्र पी जाऊंगा मेरी इच्छा से पर्वत टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। इस प्रकार की शक्ति और इच्छा आप रखो, इसके साथ ही कड़ा परिश्रम करो। देखना आप अपने उद्देश्य को एक दिन निश्चित पा लोगे।

याद रखना आप मेरी बात को आपके भीतर सभी शक्तियां निहित है, आप में ही महान से महानतम बनने के बीज आप के अंतः करण में मौजूद है। लेकिन दोस्त जब तक हम इन शक्तियों को विकसित नहीं करेंगे तब तक आप ही सोचो आपको जीवन का आनंद कैसे प्राप्त होगा?

आज चारों तरफ देखे तो अधिकतर लोग थोड़ी सी किसी ने आलोचना किया और वह परेशान हो जाते हैं, जबकि भाइयों हर जानदार तथा शानदार व्यक्ति की आलोचना होती है। यह सच है कि अधिकतर लोग उससे ईर्ष्या  भी करते हैं । एक बात अपने दिल में उतार लो कि आलोचना एवं ईर्ष्या इस बात की द्योतक है कि आप जीवित हैं, आप में दम है तथा आपका जीवन सार्थक है। सही आलोचना से आप हमेशा सीखो तथा अपने आपको बदलो एवं इसके साथ ही गलत आलोचनाओं से परेशान आप जरा भी ना होना। उन्हें मुस्कुरा कर हवा में उड़ा दो, अपने दिल पर इसका असर ना होने दो कि मेरा उसने आलोचना किया। अपनी आंतरिक शक्तियों के माध्यम से आलोचनाओं के बाहरी आक्रमण को ध्वस्त कर दीजिए। अपने चेहरे पर तनाव नहीं मुस्कान हमेशा रखिए। आपका जीवन ईश्वर द्वारा दिया हुआ एक अनमोल उपहार है, इसे कमजोर मत होने देना, आज से ही आशा उत्साह प्रेरणा एवं शक्ति को अपने जीवन में स्थान दीजिए तथा बन जाइए अपने जहाज के कप्तान स्वयं साथियों ।

यह आप भी जानते हैं कि बीज से अंकुर तभी फूटता है, जब वह फटता है और बाद में यही अंकुर एक दिन एक बड़ा पेड़ बन जाता है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि हमें अपने गुणों के विकास में सहायक अवसरों को बराबर खोजते रहना चाहिए। विकास का अर्थ ही होता है कि लगातार बढ़ते चले जाना और अपने साथ समाज के वंचित लोगों को भी आगे बढ़ाते चलना। याद रखना कैसा भी भय ,कैसा भी लोभ , कैसी भी चिंता यदि आपके बढ़ते कदमों को नहीं रोक पाती तो समझ लेना कि आपकी प्रगति भी नहीं रुक सकती आप एक दिन सफल होकर ही रहेंगे। इसीलिए मैं कह रहा हूं कि आप अपने सुप्त शक्तियों को जगा दो अपने आपको और अपनी शक्ति को पहचानो, जो अपनी शक्तियों को पहचान लेता है, वही एक दिन सफलता के शिखर पर पहुंचता है, बाकी लोग तो केवल समय पूरा करने के लिए इस धरती पर आते हैं और गुमनामी की मौत मर कर भुला दिए जाते हैं ।