Monday, March 1, 2021

संचारी रोग नियंत्रण माह/दस्तक अभियान के शुभारम्भ के अवसर पर जन जागरूकता रैली को हरी झंडी दिखाकर जिलाधिकारी ने किया रवाना

 अमेठी विजय कुमार सिंह


अमेठी 01 मार्च 2021,*  संचारी रोग नियंत्रण माह/दस्तक अभियान का शुभारम्भ जिलाधिकारी श्री अरुण कुमार ने कलेक्ट्रेट परिसर से जन जागरूकता रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। विशेष संचारी अभियान रोग नियंत्रण अभियान 01 से 31 मार्च, 2021 तक तथा दस्तक अभियान 10 मार्च से 24 मार्च, 2021 तक आयोजित किया जायेगा। इस कार्यक्रम में जनपद की समस्त आशा कार्यकत्री 10 से 24 मार्च, 2021 तक घर-घर जाकर हर घर का भ्रमण कर लोगों को संचारी रोग से मुक्ति एवं बचाव हेतु तथा इसके लक्षणों एवं उपचार से सम्बन्धित सुविधाओं के प्रति जागरूकता करेंगी। जिलाधिकारी ने अभियान के शुभारम्भ के दौरान सम्बोधित करते हुए कहा कि जनपद में संचारी रोग नियंत्रण अभियान के अन्तर्गत दिमागी बुखार और संचारी रोगों की रोकथाम की जायेगी। इस अभियान में स्वास्थ्य विभाग के साथ ही नगर विकास, पंचायतीराज/ग्राम  विकास विभाग, पशु पालन विभाग, महिला एवं  बाल विकास विभाग,  शिक्षा विभाग, दिव्यांगजन साक्तीकरण/ समाजकल्याण विभाग, कृषि एवं सिंचाई विभाग, उद्यान विभाग, सूचना विभाग आदि कार्यक्रम जुड़े समस्त विभाग एक साथ मिलकर संचारी रोग से बचाव  हेतु कार्य करेंगे। उन्होंने कहा कि 31 मार्च तक चलने वाले अभियान में घर-घर जाकर आशा व आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों द्वारा साफ-सफाई, कचरा निस्तारण, जलभराव रोकने, मच्छरों से बचाव आदि के प्रति लोगों को जागरूक  करेगी। इस अभियान से जुड़े विभिन्न विभागों के अधिकारी/कर्मचारीगण अपने कर्तव्यों का पालन करें, ताकि यह अभियान जनपद में सफल हो। विशेष संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूवात आज कर दिया गया है, जिसे शासन की मंशा के अनुरूप कार्य किया जायेगा। सीएमओ डा. आशुतोष दूबे ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से चलाये जाने वाले इस अभियान के लिये शहरी और ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य केन्द्रों की ओर से माइक्रोप्लान भी तैयार गया है, जिसके अनुसार विभाग द्वारा कार्य किया जायेगा। इस वर्ष के दस्तक में फ्रन्ट लाइन वर्कर्स (आशा एवं आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों) के द्वारा घर-घर जाकर किये जाने वाले संवेदीकरण तथा सर्वेक्षण में कुछ नये बिन्दु सम्मिलित किये गये हैं, जैसे- आशा एवं आंगनबाड़ी कार्यकत्री प्रत्येक मकान पर क्षय रोग के संभावित रोगियों  के विषय में भी जानकारी प्राप्त करेंगी तथा जन्म-मृत्यु से छूटे शिशुओं/ व्यक्तियों के पंजीकरण को ब्योरा एकत्रित करेंगी तथा दिमागी बुखार के कारण विकलांग हुए व्यक्तियों की सूचना भी एकत्रित करेंगी। इसके साथ ही प्रतिदिन कार्य की समाप्ति पर अपनी रिपोर्ट  में बुखार के रोगियों की सूची, क्षयरोग के लक्षण युक्त व्यक्तियों की सूची, प्रत्येक कार्य दिवस में किये गये जन्म-मृत्यु पंजीकरण की सूची, दिमागी बुखार से विकलांग हुए व्यक्तियों की सूची की रिपोर्ट करेंगी। जन जागरूकता रैली में आशा, आंगनवाडी कार्यकत्री सहित अन्य संबंधित मौजूद रहे।

सूचना विभाग द्वारा भेजी गई एल0ई0डी0 प्रचार वाहन को अपर जिलाधिकारी ने हरी झंडी दिखाकर किया रवाना

 अमेठी विजय कुमार सिंह


*अमेठी 01 मार्च 2021,*  सूचना एवं जनसंपर्क विभाग उत्तर प्रदेश लखनऊ द्वारा भेजी गई एलईडी प्रचार वाहन को आज कलेक्ट्रेट परिसर से अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व श्री एसपी सिंह ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर अपर जिला सूचना अधिकारी शिव दर्शन यादव ने बताया कि शासन के निर्देशानुसार संचारी रोग अभियान के शुभारंभ के अवसर पर आज सूचना विभाग लखनऊ द्वारा जनपद अमेठी में तहसील, ब्लाक, ग्राम स्तर पर वृहद जन जागरूकता हेतु एलईडी प्रचार वैन भेजी गई है, उक्त एलईडी प्रचार वाहन के माध्यम से संचारी रोगों से बचाव, कोविड-19 के संक्रमण से बचाव सहित अन्य केंद्र व प्रदेश सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं के बारे में आमजन को जागरूक करेगी। उन्होंने बताया कि उक्त एलईडी वैन जनपद में 15 दिनों तक भ्रमणशील रहकर जन सामान्य को जागरूक करेगी।

समाज सार्थक संचार से दूर भौतिकता की गोद में

समाज सार्थक संचार से दूर, एक लोकतांत्रिक समाज संवाद पर आधारित है और विचारों के आदान-प्रदान से विकसित होता है। वह तर्क और तर्क के आधार पर मतभेदों को समाप्त करता है और एक निर्णय पर आता है और इसे निष्पादित करता है। वैदिक सभा की समितियों से लेकर भारत की संविधान सभा तक, ऐसे सैकड़ों बिखरे हुए उदाहरण हैं जिनमें चर्चा, तार्किक बहस होती है, लेकिन एक महत्वपूर्ण निर्णय पर भी पहुँचा जा सकता है जबकि विरोध को कम किया जाता है। वास्तव में, भारतीय समाज द्वारा तथ्यों और ज्ञान के पर्दा को तोड़ने के लिए तर्क का उपयोग किया जाता है। भ्रम और अज्ञान का आवरण टूट गया है, इसके लिए केवल तर्क की आवश्यकता है। बहस, परिष्कार, अवांछनीय अश्लीलता के नाम पर चरित्र हनन को कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। तार्किक आधारों पर निष्पादित होने पर ही संवाद योग्य होता है। हमें भारत की संसद में छंदों के अर्थ को हमेशा याद रखना चाहिए। उस श्लोक का अर्थ किसी सभा में प्रवेश करना भी नहीं है। यदि आप करते हैं, तो समन्वित और उचित तरीके से बोलें। एक व्यक्ति जो एक बैठक में चुपचाप या अनुचित तरीके से बोल रहा है वह पापी है।

भारतीय इतिहास बताता है कि जब भी तर्कवाद अपने चरम पर होता है, तो थोड़ी-सी बौद्धिकता पर आधारित ज्ञान प्रणाली समाज का आधार बन जाती है। श्रेष्ठ समाज भी इससे पराजित हो गया है। इसलिए, लोकतांत्रिक व्यवस्था में मूल्य के रूप में संवाद को लिया जाना चाहिए। हमें विश्वास से भी संवाद से निकाले गए निष्कर्ष को स्वीकार करना चाहिए। इसके लिए, भारत में प्रचलित प्रक्रिया भी शंकराचार्य जैसे तर्कवादियों को स्वीकार करती है। शंकराचार्य कहते थे कि धर्म कोई असभ्य बात नहीं है, बल्कि बहुत ही सूक्ष्म विचार है। इसलिए, उनकी उत्पत्ति को समझने के लिए चर्चा सत्र होना चाहिए, लेकिन चर्चा भीड़ में नहीं बल्कि समूहों में होती है। भीड़ में अराजकता हो सकती है, सच्चाई की भावना नहीं। सच्चाई को समझना भी हमारे विचारों के साथ स्थिरता की मांग करता है। गांधीजी इसका एक उदाहरण हैं। वह अपने विचारों को खारिज करने में भी संकोच नहीं करता था। उस दिशा में किया गया निर्णय लोगों के सामने, उनके सामने, लोगों के लिए फायदेमंद होता है। भारत के भीतर कई ऐसे अवसर आए हैं जिनमें जीवन के व्यवहार के स्तर में, सरकार के स्तर में मतभेद रहे हैं। वोट को विभाजित किया गया है, लेकिन एक बड़े पैमाने पर आम सहमति की ओर बढ़ने और देश के महानतम हितों के सामने हमारे स्वार्थ का त्याग करते हुए निर्मित प्रणाली को स्वीकार करते हुए, परिष्कार के बौद्धिक परिश्रम के उदाहरण भी हैं। भारत के लोग आपदा में भी यही करते रहे हैं। एक विभाजित दिमाग किसी भी राष्ट्र की समूह चेतना को नष्ट कर सकता है। विरोध होना जरूरी है, लेकिन विरोध होना खतरनाक है। विरोध को कम करने का एक तरीका अनुरोध के रूप में स्थापित प्रणाली के खिलाफ रखी गई बाधाओं को खत्म करना है। विभाजित लोगों को भड़काने और उत्तेजित समूहों को अराजकता में धकेलने के लिए देश में एक सामूहिक प्रयास है। ऐसा लगता है कि भारत फिर से शहर-शहर में विखंडन के कगार पर है।

 
भारतीय समाज की ताकत यह है कि यह मतभेदों को खत्म करता है और एक बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ता है, लेकिन आज यह सार्वजनिक रूप से स्वीकृत प्रणाली गायब हो रही है। नतीजतन, छोटे अंतर भयावह रूप ले रहे हैं। छोटे-छोटे मतभेद टुकड़ों का समाज बना रहे हैं। ऐसी स्थिति में, हमें याद रखना चाहिए कि किसी भी समूह की भाषा और उसकी विचार प्रणाली, अर्थात् मिलना, बैठना, विचार व्यक्त करना, वैचारिक भिन्नताओं पर चर्चा करना और चर्चा के दौरान स्पर्श, बोध के आधार पर पूर्ण संवेदनशीलता और संवेदनशीलता के साथ। दूसरे का अपनाना प्रगतिशील होना है। यह भारत के इतिहास में गार्गी और याज्ञवल्क्य के संदर्भ में जनक और अष्टावक्र के संदर्भ में देखा जा सकता है। यह भेद कुमारिल और शंकराचार्य के संवादों में, शंकराचार्य और मंडन मिश्र के संवादों में भी परिलक्षित होता है। यह सावरकर और गांधी के संवाद, सुभाष और गांधी के संवाद में भी गूंजता है।

शोध प्राविधि:-सामाजिक विज्ञान अनुसन्धान (भाग – 1)
मतभेदों के बावजूद, भारत के बारे में सोचने की प्रक्रिया हमारे देश और समाज के लिए पारस्परिक प्राप्ति को स्वीकार करने और संवाद बनाने की दिशा में आगे बढ़ने का अनुशासन है। भारत वैचारिक सत्य का देश है, लेकिन यह अभी भी कमजोर हो रहा है। दावे सही होने के दावे और जिद हैं। ऐसी जिद में समाज का अंतिम व्यक्ति आंखों से ओझल हो जाएगा। इससे छुटकारा पाने के लिए, निश्चित रूप से, ज्ञान की आवश्यकता होती है, न कि बुद्धि की, और यह बुद्धिमान का कर्तव्य है कि वह बिखरते संवाद सूत्र को खोले, विपरीत विचारों को हल करे और इस अराजकता के बीच उत्पन्न शोर को एक बहुत ही धैर्यपूर्ण स्वर में बदल दे। । स्वर सात हैं, अलग-अलग हैं, लेकिन वे संगीत बनाते हैं। विभेदीकरण परस्पर पूरक है। यह भारत की भूमि की विशेषता है।
 
शास्त्रार्थ केवल आधार भूमि में है। भारत के लिए, यह संविधान, संवैधानिक कानूनों का आधार है, जिसमें सभी उपचार संभावनाएं शामिल हैं। यदि भारत के शरीर में कोई बीमारी है, तो इसका अहिंसक उपचार संभव है। इसीलिए बुद्ध ने खुद को सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक कहा, क्योंकि उन्होंने एक ऐसी सोच विकसित की जो समाज की पीड़ा को दूर करने के लिए करुणा और नैतिकता पर आधारित हो। आज का शोरगुल वाला माहौल संगीत को विभिन्न स्वरों के बीच सामंजस्य बनाने की उम्मीद करता है और यह संगीत केवल भारत के लोगों द्वारा ही बजाया जा सकता है।

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार

चालाक चीन से सतर्कता की जरूरत

          पिछले कई महीनों से भारत और चीन के बीच उतार-चढ़ाव की स्थिति जो बनी थी उसमें थोड़ा परिवर्तन दिखाई दे रहा है तथा चीन ने पैगोगं झील से पीछे हटने का फैसला जो किया है जो कहीं ना कहीं भारत और चीन के बीच चली आ रही लंबे समय के विवाद में थोड़ी कमी दिखाई दे रही है | यह सिर्फ एक क्षेत्र का ही मामला है अभी चीन से और भी दूसरे क्षेत्रों से भारत का विवाद है उस पर भी नजर रखने की आवश्यकता है | जिस प्रकार भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में चीन से चली आ रही विवाद की सूची के बारे में देश को विस्तार पूर्वक  बताते हुए चीन को आड़े हाथो लिया है यहाँ तक तो ठीक है परंतु इतने जल्दी चीन पर विश्वास करना अभी भारत के लिए ठीक नहीं होगा क्योंकि चीन का इतिहास हमेशा धोखा देना और विस्तार वादी नीति का ही रहा है पर फिर भी यहां यह समझना भी आवश्यक है कि आखिर चीन पैगोंग झील से पीछे हटने को क्यों तैयार हुआ | 

             इसके लिए भारत की कूटनीति, राजनीतिक, आर्थिक , सैन्य दबाव और  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के खिलाफ एक माहौल को खड़ा करना रहा है | जिसके कारण चीन भारत से डरने लगा कूटनीतिक व रणनीति के तहत भारत ने क्वाड संगठन में नई प्रक्रिया  के तहत जिस प्रकार से मालाबार संयुक्त अभ्यास किया | जिसमें अमेरिका और जापान के साथ आस्ट्रेलिया को भी आमंत्रित किया जिससे संगठन में एक नई ताकत मिली और चीन को भारत ने एक सख्त संदेश देने का जो कार्य किया है | इससे भारत अपनी इस रणनीति में सफल रहा इसके साथ ही कोरोना महामारी के अंतर्गत चीन का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो असंतोष है उसे भी भारत ने अच्छे तरीके से भुनाने का प्रयास किया | जिससे चीन कहीं ना कहीं लड़खड़ाता हुआ नजर आ रहा है | इसके साथ भारत के द्वारा आर्थिक प्रतिबंध के तहत कई चीनी एप्प पर प्रतिबंध लगाने से चीन को काफी आर्थिक नुकसान हुआ है क्योंकि दुनिया में भारत एक ऐसा देश है जहां पर पूरे विश्व को एक अच्छा बाजार नजर आता है परंतु भारत ने सही समय पर सही निर्णय लेते हुए चीन के खिलाफ जो आर्थिक प्रतिबंध लगाने का दृढ निश्चय कार्य किया इससे चीन की आर्थिक स्थिति कहीं ना कहीं लड़खड़ाती हुए नजर आई क्योंकि चीन दुनिया में महाशक्ति बनने की दिशा में चल रहा था परंतु उसके इस रास्ते में रोड़ा भारत ने आर्थिक रूप से लगाकर उसे रोकने का और कड़ा संदेश देने का जो प्रयास किया यह अपने आप में बहुत बड़ा कार्य था | 
           ऐसे में भारत ने आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए चीन की दुखती नस पर जो चोट पहुंचाकर काम किया है तथा इसी कड़ी में भारत ने चीन से आने वाले प्रत्यक्ष रूप से विदेशी निवेश अर्थात एफडीआई को लेकर भी जो नए कड़े नियम बनाए जिससे चीन की दूरसंचार कंपनियों के लिए राह बहुत मुश्किल भरी हो गई | इन कदमों से जहां भारत की साख दुनिया में बड़ी वहीं चीन की बौखलाहट भरी प्रतिक्रिया भी हम सब ने देखी और महसूस की परंतु भारत उन प्रतिक्रियाओं के समक्ष कभी भी झुका नहीं बल्कि भारत ने समय-समय पर चीन के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए जो कार्य किया है, जिससे भारत का निशाना एकदम चीन पर सटीक  प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से लगा है, और दुनिया ने भारत के इस प्रकार के कदम को जहां सराहा वहीं भारत को एशिया की उभरती हुई महाशक्ति के रूप में भी देखा | 
           इसके साथ ही भारत ने चीन के खिलाफ अपनी सेनाओं को हर मोर्चे पर जिस निडरता के साथ खड़ा कर चीन को विवश कर दिया | इससे भी कहीं ना कहीं चीन का घमंड खत्म हुआ है | समानता चीन पड़ोसी देशों को अपनी सैन्य ताकत से ही डराने का प्रयास करता रहा है परंतु इस बार चीन की यह रणनीति भारत के खिलाफ काम नहीं आई और भारत ने उसे परास्त करते हुए अपनी सेना को खुली छूट देकर जिस तरीके से चीन के सामने खड़ा किया और मुंह तोड़ जवाब दिया जिसकी चाहुओर प्रशंसा भी हुई | वैसे तो भारत और चीन के बीच बहुत ज्यादा विश्वसनीय संबंध आज तक नहीं स्थापित हो पाए हैं क्योंकि चीन भारत के हर क्षेत्र में रोड़े का कार्य करता हुआ चला रहा है जबकि भारत ने हमेशा चीन का सहयोग कर उसे यूनाइटेड संघ का सदस्य बनवाने में मदद की थी परंतु चीन हमेशा भारत के हर एक पक्ष में विरोध करता रहा है | भारत और चीन के बीच वर्तमान में तब संबंध बिगड़े जब गलवान की घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच सीमा विवाद को लेकर बिना हथियार के खूनी संघर्ष हुआ । जिसमें भारत के जांबाज बीस जवान शहीद हो गए थे | जिससे भारत के सैनिकों में आक्रोश था तब इसी संघर्ष में भारत ने अपने शहीद सैनिकों का बदला उसी रणनीति के तहत लिया और भारत के बीर सैनिकों ने चीन के कई सैनिकों को हताहत किया लेकिन उसने कभी भी यह स्वीकार नहीं किया कि उसके कितने सैनिक मारे गए | लेकिन रूस की एक एजेंसी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार ऐसा माना गया कि इस झड़प में चीन के 45 से 50 सैनिकों के मरने की बात सामने आई | इस नुकसान से चीन को स्पष्ट संदेश मिला कि भारत उसे करारा जवाब हर क्षेत्र में देने के लिए आज तैयार है क्योंकि अब यह भारत 1962 वाला नहीं 2020 वाला भारत है | चीन की अब दादागिरी किसी भी प्रकार से भारत या कोई भी देश स्वीकार नहीं करेगा और सभी चीन को जवाब देने के लिए तैयार थे | जिसका भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जापान , ऑस्ट्रेलिया, इजरायल, अमेरिका और ब्रिटेन  जैसे बड़े देश तथा भारत की सीमाओं को छूने वाले कुछ छोटे देश भी भारत के साथ सहयोग करने और हर क्षेत्र में सहायता देने के लिए तैयार थे | जिसके कारण चीन की बौखलाहट और बढ़ गई और कहीं ना कहीं चीन ये समझने लगा कि भारत से किसी भी क्षेत्र पर अब निपटना कठिन है । 
          सीमा पर भारत की सेना द्वारा चीन के सैनिकों को मौत के घाट उतारना, आर्थिक रूप से कड़े प्रतिबंध लगाना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों द्वारा भारत का सहयोग करना एवं भारत की दुनिया में एक अलग पहचान बनना 
जिससे चीन कहीं ना कहीं भारत की शक्ति से लड़खड़ा गया और उसे आज पीछे हटने पर विवश होना पड़ा | यदि हम चीन की आंतरिक स्थिति की बात करें तो चीन के राष्ट्रपति के खिलाफ बहुत ज्यादा आक्रोश है और वह ध्यान भटकाने के लिए इस प्रकार से विस्तारवादी नीति को अपनाता है ताकि वह अपनी अंतः कलाह का ध्यान भटका सके, भारत ने उसकी इस रणनीति को भी फेल कर दिया | फिर भी भारत को अब यह देखना पड़ेगा कि आने वाले समय में चीन की क्या रणनीति है ? क्योंकि चीन हमेशा रुक कर किसी भी देश पर बार करता है और चीन एक विश्वसनीय देश नहीं है, हमेशा धोखे से ही कार्य करता है उसके इतिहास को देखते हैं तो चीन की रणनीति हमेशा हमें समझ में आती है धोखे से वार करना | 
           वर्तमान में भारत के लिए आवश्यक है कि वह चीन को संदेश देने के साथ-साथ उस पर आपनी पैनी नजर भी रखे क्योंकि कभी भी धोखे से चीन बार कर सकता है | आज वह घायल भी है क्योंकि भारत ने चीन को हर एक मोर्चे पर असफल करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन को पूरी तरीके से विफल कर दिया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर क्षेत्र में अग्रणी एवं उत्कृष्ट रहकर भारत ने अपनी शक्ति का जो प्रदर्शन किया है निसन्देह पूरा विश्व आज भारत की शक्ति का लोहा मानने के लिए विवश है | 
     अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद शायद चीन ने यह सोचा था की वाइडन की नई सरकार बनने से चीन को कुछ सहयोग मिलेंगा परंतु वाइडन प्रशासन ने सख्त संदेश देते हुए चीन को निराश किया इसके साथ ही वाइडन प्रशासन ने कहा कि चीन से तकनीकी, व्यापार, सागर तथा अन्य क्षेत्रों में शक्ति से निपटने की आज जरूरत है का जो संदेश दिया जिससे भारत को ताकत मिली तो चीन को जो उम्मीद थी बाइडन की सरकार से उसे निराशा हुई | इससे यह स्पष्ट होता है कि कहीं ना कहीं भारत की विदेश नीति तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति बहुत ताकतवर दिखाई दी उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि भारत चीन की आंख में आंख डालकर खड़ा हो सकता है तथा उतनी ही ताकत से जवाब देने के लिए भी आज भारत तैयार है | क्योंकि भारत ने कभी किसी के साथ विस्तार वादी नीति का प्रयोग नहीं किया है और ना ही भारत कभी किसी पड़ोसी देश को डराना चाहता है | नरेंद्र मोदी ने अपनी सत्ता संभालते ही कहा था कि भारत ना किसी को डराना चाहता है बल्कि भारत आंख में आंख मिला कर बात करने की ताकत रखता है इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने जिस प्रकार कोरोना महामारी को सकारात्मक दिशा में बदलने का कार्य करते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान के माध्यम से चुनौती को अवसर में बदला है | उनके इस नेतृत्व में भारतीय विदेश नीति के नए तेवरों वाले कामों को भी एक नई दिशा मिली है तथा दुनिया इस बात को समझने लगी है कि भारत उभरती हुई नई शक्ति का एक सहयोगी देश है | 
         प्रधानमंत्री की इच्छा शक्ति और भारत सरकार के दृढ़ निर्णय के कारण आज भले ही चीन पीछे हटने को तैयार है, लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अभी भी हालात अस्थिर ही बने रहेंगे क्योंकि विगत कई महीनों से दोनों देशों के बीच जो दरार पड़ी है वह इतने जल्दी से भरने वाली नहीं है तथा भारत भी चीन पर इतनी जल्दी विश्वास करने वाला नही है और यहां जरूरी भी है कि भारत , चीन से और अधिक चौकन्ना रहे क्योंकि चीन हमेशा धोखे से तथा रुक कर ही पीठ पर वार करता है और पीठ पर वार करने वाला हमेशा कुख्यात डरपोक और धोकेवाज होता है | 


भारत आंख में आंख मिलाकर , सामना करेगा | 
हुई जरूरत तो अब  घर में , जाकर बार करेगा || 
यह बदलते हुए युग में,भारत का नया स्वरूप है , 
आत्म निर्भर भारत से,दुनिया मे पहचान करेगा || 
 

 
                         पूर्व सैनिक 
                  प्रमोद कुमार चौहान