Wednesday, May 19, 2021

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र राजापाकर में गुरुवार को टीकाकरण का कार्य होगा

राजापाकर( वैशाली )संवाददाता, दैनिक आयोध्या टाइम्स

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र राजापाकर समेत चार केंद्रों पर गुरुवार से पुनः कोरोना का वैक्सीन दिया जाएगा ।जानकारी देते हुए प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ राजेश कुमार ने बताया है कि गुरुवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र राजापाकर समेत बैजनाथपुर, चक सिकंदर एवं भोज पट्टी स्वास्थ्य केंद्र पर गुरुवार 20 मई को 45 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों का प्रथम डोज़ एवं सेकंड डोज़ सिर्फ को वैक्सीन का टीकाकरण होगा ।वही उन्होंने यह भी जानकारी दिया कि राजापाकर अस्पताल में 18 से 44 वर्ष वाले उन्हीं लोगों का टीकाकरण होगा जिन लोगों ने 20 मई के लिए ऑनलाइन स्लॉट बुक कराया है। मालूम हो कि  जिला वैक्सीन भंडार में वैक्सीन उपलब्ध नहीं रहने के कारण बीते 19 मई को वैक्सीनेशन का कार्य बाधित रहा है।

कोविड-19 - दिशानिर्देशों में सामायिक परिवर्तन - शासन, प्रशासन, वैज्ञानिकों की सजगता और जागरूकता का प्रमाण - एड किशन भावनानी

गोंदिया - वैश्विक रूप से कोविड -19 महामारी ने वर्ष 2019 के अंत से वैश्विक स्तर पर पैर पसारना शुरू कर दिया था और अपनी तीव्र घातकता से वैश्विक स्तर पर मानव पर हमला कर अपना उग्र रूप दिखाया, पूरे विश्व में तबाही मचा कर रख दी।...बात अगर हम भारत की करें तो भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे पहला मामला केरल के त्रिचूर में 30 जनवरी 2020 को सामने आयाथा और इसके अगले ही दिन याने 31 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस को वैश्विक आपदा घोषित किया था। 11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित किया था और इसके अगले ही दिन याने 12 मार्च 2020 को भारत में कोरोना संक्रमण से पहली मौत की पुष्टि हुई थी, जिसमें भारत एकदम चौकन्ना, चाक-चौबंद और सतर्क हुआ और पीएम मोदी ने 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू का आह्वान कर 25 मार्च 2020 को देश को संबोधन किया और रात 12 बजे से 21 दिन का पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी और फिर कोविड-19 की गाइडलाइंस बनाने का और क्रियान्वयन करने का दौर जो शुरू हुआ जो मंगलवार दिनांक 18 मई 2021 तक शुरू है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), केंद्रीय गृहमंत्रालय, केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवारकल्याण मंत्रालय, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) मानव संसाधन विकास मंत्रालय और राज्य सरकारोंने अपने अपने स्तर पर गाइडलाइंस बनाकर क्रियान्वयन करना शुरू किया गया था जो अभी तक जारी है।......बात अगर हम नई गाइडलाइंस की करें तो हर संबंधित विभाग एमएचए, आईसीएमआर, एमएचएफडब्ल्यूई, एनडीएमए, द्वारा परिस्थितियों के बदलते परिवेश में अपनी-अपनी गाइडलाइंस को संशोधित, रणनीतिक अपडेट, करते रहे। जैसे जैसे कोविड-19 महामारी के वेरिएंट में बदलाव का संकेत, या कानून व्यवस्था नियंत्रण, स्वास्थ्य समीक्षा का अपडेट डाटा, के आधार पर अपनी अपनी गाइडलाइंस को संशोधित करते रहे और वर्ष 2020 पूरा निकल गया जबकि महामारी में कुछ राहत 2020 के अंत और 2021 के जनवरी माह तक थी। लेकिन फरवरी 2021 से महामारी ने ऐसी तीव्रता से आघात किया कि महामारी की दूसरी लहर पीक पर और तीसरी लहर का अंदेशा जताया जाने लगा। जिसको ध्यान में रखते हुए एमएचए, आईसीएमआर और एमएचटीडब्ल्यूए, एनडीएमए ने भी अपने दिशानिर्देशों में संशोधन करते हुए कुछ सामायिक अंतराल में बदलते परिवेश में नई नई गाइडलाइंस निकालते रहे, जिससे लॉकडाउन की तिथियां बढ़ाना, घर पर 3 लेयर मेडिकल मास्क पहनना, कोरोना मरीज हल्के लक्षण मरीजों को घर पर क्वॉरेंटाइन, होली, ईद पर भीड़ इकट्ठा ना होने, धार्मिक स्थल बंद करने इत्यादि अनेक महत्त्वपूर्ण  दिशानिर्देशों में बदलाव करते हुए जारी किए गए और आज दिनांक 18 मई 2021 तक यह सामायिक अंतर में, बदलते परिवेश, परिस्थितियों और डाटा के अपडेट होने पर तुरंत नई गाइडलाइंस बनाई जा रही है। कोरोना महामारी के संबंध में  मानव संसाधन विकास मंत्रालय सहित अनेक मंत्रालयों को भी अपनी गाइडलाइंस बनाने पड़ी है और परिस्थिति के अनुसार उन्हें अपडेट करना चालू है।.....बात अगर हम पिछले कुछ दिनों की गाइडलाइंस अपडेट की करें तो अभी कुछ राज्यों में ब्लैक फंगस बहुत तेजी से विस्तारित हो रहा है और गाइडलाइंस जारी हुई है तथा एम्स के विशेषज्ञों ने भी अलर्ट किया है और दिनांक 17 मई 2021 को आईसीएमआर ने प्लाजमा थेरेपी को चिकित्सीय प्रबंधन दिशानिर्देशों से हटा दिया है। आईसीएमआर ने जानकारी दी है कि प्लाजमा थेरेपी बीमारी की गंभीरता या मौत की संभावना को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अतः बदलते परिवेश में आईसीएमआर ने नई गाइडलाइन जारी कर इसे हटा दिया है। अब कोविड-19 मरीजों के उपचार के लिए प्लाजमा थेरेपी उपयोग में नहीं होगा और इसे चिकित्सीय प्रबंधन दिशा-निर्देशों से हटा दी गई है।अतः हम उपरोक्त पूरे विवरण का विश्लेषण करें तो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, मिनिस्ट्री आफ होम अफेयर्स, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय, आईसीएमआर, मानव संसाधन विकास मंत्रालय इत्यादि अनेक विभागों द्वारा बदलती परिस्थितियों और डाटा अपडेट के कारण अपनी गाइडलाइंस को रणनीतिक अपडेट किया हैं, जो इसका प्रमाण है कि शासन प्रशासन इस विपत्ति की घड़ी में हर स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं और अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूर्ण सजगता, जागरूकता के साथ कर रहे हैं और भारत को इस महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए रात दिन प्रयत्नों में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं। 


-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

सरस्वती और लक्ष्मी का द्वंद

हिंदी लेखन जगत में एक नई बहस चल रही है। मेरे बहुत से मित्र कुछ न कुछ लिख रहे हैं। कुछ समर्थन में तो कुछ विरोध में। हालांकि बहस में कुछ भी नया नहीं है। यह सालों से चली आ रही समस्या है; जिससे लेखक-कवि जूझ रहा है। समस्या है - सरस्वती-लक्ष्मी का द्वंद्व। 

दो तरह के काम हैं। एक, स्वयंचेतस् रचनात्मकता। दूसरा, डिमांड पर लिखना। दोनों अलग-अलग हैं। 
मैं एक पत्रिका का सह संपादक रहा हूँ। मैंने बाक़ायदा पैसे लिये। क्योंकि वो काम 'मज़दूरी' है। ईमेल चेक करो, आवश्यक संसोधन करो, प्रूफ़ रीडिंग, डिजाइन तैयार करो ... ढेर सारे छोटे-मोटे काम। यह एक फॉर्मेट में होता है। इसका पारिश्रमिक माँगा जाना चाहिए। 
विद्यालयों में बतौर वक्ता गया हूँ। बुलाने वाले मित्र थे। जब वक्ता होने की सहमति दी तब नहीं पता था कि बोलने का पारिश्रमिक मिलता है। लेकिन भाषण-समाप्ति उपरांत पैसा हाथ में आया तो अच्छा लगा। वो मेरी बेरोज़गारी के दिन थे। उन पैसों से काफ़ी सहायता मिली। 
कुछ कार्यक्रमो का संचालन भी किया है, शौक़िया तौर पर। कभी न पैसा माँगा न मुझे दिया गया। मैं पैसों के लिए यह करता भी नहीं था। हाँ, एक जगह के आयोजक ने ( जिसने कार्यक्रम में लाखों का खर्चा किया था ) मुझे पाँच हजार का चेक दिया था। मैंने सहर्ष स्वीकार भी लिया था। 
कहीं पर बोलने जाने से पहले मैंने आयोजकों से यह कभी नहीं कहा कि मैं डिबेटर रहा हूँ। यह देखिए मेरे सर्टिफिकेट्स। मेरी प्रतिभा है इसलिए आपको पैसा देना होगा। उल्टा मैं डिबेट में इसलिए जाना छोड़ चुका था क्योंकि वहाँ पुरस्कार राशि के लिए मारधाड़ मची थी। योग्यता झक मारती थी। रटा-रटाया और आवेशपूर्ण बोलना ज्यूरी को ज़्यादा रुचता था। उनकी अपनी लॉबी थी। ख़ैर ...
अनुवादक का काम किया है मैंने। अंग्रेजी से हिंदी। काम करवाने वाले ने प्रति-पृष्ठ मेहनताना तय किया। मुझे कीमत ठीक लगी तो मैंने वह काम किया। 
दिल्ली में मेरे घनिष्ठ हैं।  उन्हें कंटेंट प्रोवाइड करता था। यह काम भी बाक़ायदा पारिश्रमिक देता था। 
अपने मित्रों की किताबों की प्रूफ़ रीडिंग की है। मैंने किसी से पैसा नहीं माँगा। यह काम मैंने दोस्ती के लिए किया। कुछ काम मुझे सौंपा गया तो मैं मना नहीं कर पाया और कुछ मैंने स्वेच्छा से किया ... एक मित्र ने पैसे देने भी चाहे तो मैंने स्वीकार न किये।
पत्रिकाओं में कविताएँ और लेख भेजता रहा हूँ। बस इसलिए कि लोगों तक मेरा लिखा हुआ पहुँचे। यह शुद्ध रचनात्मक कार्य था। मैंने इस काम के लिए कभी पैसे नहीं चाहे। तीन चार पत्रिकाओं ने लेख प्रकाशन पश्चात बैंक डिटेल माँगी तो सुखद भी लगा।
बात हमारी इच्छा पर है। डिमांड पर लिखने के पैसे मांगना लेखक का अधिकार है। लेकिन अपना लिखा सिर्फ़ इसीलिए न छपवाना कि उसके पैसे नहीं मिल रहे, नितांत बौनापन है।
अमीश त्रिपाठी और चेतन भगत करोड़ों कमाते हैं। फेम और ग्लैमर उन्होंने खुद पैदा किया है। आप ब्रांडिंग कीजिए, मार्केटिंग कीजिए, कमाइए लाखों - कौन रोक रहा है ?
पाठकों का मन मेरी समझ में नहीं आया कभी। आजकल वो ग्लैमर के पीछे भागता है। अमीश का कचरा पढ़ लेंगे लेकिन नरेंद्र कोहली को खरीदकर पढ़ने में जोर आता है। बलदेव उपाध्याय की किताबें कोई पलटकर देखना नहीं चाहता, वहीं राधाकृष्णन का दर्शन थोक में बिक रहा। कुछ बात फेम की है, कुछ पाठकों के नज़रिये की। लेकिन वो उसकी मर्ज़ी की बात है। आप और मैं दबाव नहीं डाल सकते।
कुछ किताबें जो उपहार में मिलतीं हैं, स्तरीय होतीं हैं तो कुछ कोरा कचरा। कुछ खरीदीं किताबें भी निराश कर सकतीं हैं।
एक सवाल रॉयल्टी को लेकर भी है। प्रकाशक किताब बेचे और आपको उचित रॉयल्टी न दे तो यह धोखेबाजी है। लेखक को रॉयल्टी मिलनी चाहिए और उसकी योग्यता को सम्मान भी। लेकिन हाँ, योग्यता का सम्मान लड़-झगड़कर तो नहीं लिया जा सकता न !
अनुपम मिश्र कृत " आज भी खरे हैं तालाब " पुस्तक की लाखों प्रतियाँ बिकीं। उन्होंने उसे कॉपीराइट से मुक्त रखा। यह उनकी इच्छा थी। उनके लेखकीय कर्म का सम्मान किया जाना चाहिए। यह सेवा ही थी... लेकिन आप पर कोई दबाव नहीं कि आप सेवा करें। यहाँ अनुपम जी को लेखक-बिरादरी का दुश्मन मानने का कोई कारण नहीं। ऐसे कई सेवाभावी लोग गम्भीर अकादमिक कार्य में लगे हुए हैं ... मेरा असीम आदर है उनके प्रति।
यह आपका चुनाव है। आप चाहें तो कचरा बेचकर करोड़ों कमाएं, चाहें तो महत्वपूर्ण कार्य का भी एक पैसा न लें। निराला का उदाहरण ज़्यादा घसीटने का कोई अर्थ नहीं रहा। अंग्रेजी लेखकों का लेखकीय-कर्म भी हिंदी के मुक़ाबले थोड़ा अलग है, इसलिए उसकी चर्चा भी अकारथ है। 
हम अपने हीनताबोध से बाहर आएं। पुरस्कारों के लिए लड़ना-झगड़ना बंद करें। चापलूसी कर फैलोशिप प्राप्ति के सपने देखना छोड़ें। सुंदर लड़कियों की अधपकी कविताओं को अज्ञेय के शिल्प की कविताएँ कहने से बचें। कोमल शरीर देख समीक्षा-लेखन से बाज़ आएं .... तो कुछ बात करें। 
मुझे कोई लड़की अच्छी लगी तो उसके ज़िस्म की तारीफ़ कर ली, उसके सौंदर्य पर कविता लिख मारी, उसके ड्रेस  सराह लिया, कुछ सलाह दे दी, कह दिया कि भविष्य उज्ज्वल है आपका, लेकिन उसके लिखे को निराला के समकक्ष बताने का अपराध न हो सका। 

इति नमस्कारांते ...

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

Tuesday, May 18, 2021

कोविड-19 - वैज्ञानिक आधार को बढ़ावा देना जरूरी - गांवों में भ्रांतियों को ख़ारिज कर जनजागरण अभियान चलाना जरूरी

21वीं सदी के डिजिटल युग में भ्रांतियों, टोटकों और जादू टोना प्रथा को स्वतः संज्ञान लेकर लगाम लगाना जरूरी - एड किशन भावनानी

गोंदिया - वैश्विक रूप से कोरोना महामारी अपना तांडव मचा रही है। हालांकि कुछ विकसित देशों ने इसे वैज्ञानिक आधार, वैक्सीनेशन, लॉकडाउन, दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन के आधार पर कोरोना महामारी को मात देने के करीब पहुंच गए हैं और धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर बढ़ने हेतु अग्रसर हो गए हैं।मंगलवार दिनांक18 मई 2021को माननीय प्रधानमंत्री ने 9 राज्यों के 46 कलेक्टरों से प्रथम चरण की वर्चुअल बैठक की जिसमें माननीय पीएम ने महामारी से निपटने संबंधी अनेक मंत्रों सहित मार्गदर्शन में कहा गावों तक महामारी के संक्रमण के विस्तार को रोकना है, कालाबाजारी को रोकना और कड़े कदम उठाना हैं, अपना जिला जीता तो भारत जीता, ट्रिपल टी फार्मूला, वैक्सीन के वेस्टेज को रोकना सहित अनेक बाते कहीं और महामारी के संक्रमण को रोकने, तेज़ी से निपटने के लिए सुझाव भी मांगे और उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति पर तारीफ़ की और भी अनेक सकारात्मक पहलुओं से डीएम का मार्गदर्शन किया जो हम सभ ने लाइव प्रसारण देखे जो 12.56 pm तक चला और हम जनता को भी बहुत अच्छा महसूस हुआ.....बात अगर हम भारत की करें तो आज सोमवार दिनांक 17 मई 2021 को केंद्रीय और राज्यों के स्तर पर आए आंकड़ों से दिख रहा है कि कोरोना महामारी पर लगातार तीन दिन से हम संक्रमण पर दबाव बढ़ाने में कामयाब हो रहे हैं और आगे भी इसी तरह संक्रमण के मामले और दर घटती जाएगी ऐसा हम हौसला रख पूरी मुस्तैदी से जंग लड़ना जारी रखें तो सफलता हमें जरूर मिलेगी यह पक्का विश्वास है।....बात अगर हम इस 21 वीं सदी के वैज्ञानिक, डिजिटल युग में भ्रांतियों, टोटकों और जादू टोने की करें तो कुछ अजीब सा महसूस होता है।खासकर इन भ्रांतियां,  टोटकों को अगर कोविड-19 जैसी घातक जानलेवा और फेफड़ोंको अत्यधिक तीव्रता से संक्रमित कर मानव को यमलोक पहुंचाने मैं अडिग इस डब्ल्यूएचओ द्वारा घोषित महामारी को दूर करने में भी अगर हम इन भ्रांतियों, टोटकों, जादूटोना का उपयोग करेंगे तो यह अपने आप में नाइंसाफी होगी यह मेरा मानना है।.... बात अगर हम भ्रांतियों की करें तो आज के दौर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और टीवी चैनलों के माध्यम से हम ग्राउंड रिपोर्टिंग देख रहे हैं कि किस तरह इस कोरोना महामारी ने गांव तक तीव्रता से दस्तक दी है और बड़ी तेजी से शहरों से गांव की ओर फैल रही है। जहां अपेक्षाकृत कई गुना कम मेडिकल संसाधन दवाइयां हैं और कई गांव में तो अस्पताल कई किलोमीटर दूर है और वहां कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी है और उनका इलाज भ्रांतियों, टोटकों, जादू टोना धुए से भरी काली हंडी को घुमाकर, तालाब पर भीड़ जमा कर कोरोना को भगाने की पूजा, संतरे के बगीचों में, जंगलों में स्लाइन लगाकर,  ऐसे अनेक भ्रांतियों से उपाय किए जा रहे हैं। दूसरी ओर इनका इलाज ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा है जिनके पास कोई डिग्रियां तक नहीं है या अस्पताल का कोई लाइसेंस नहीं है दूसरी भाषा में झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा इलाज किया जा रहा है। ऐसे इलाज से संक्रमण पूरे परिवार, फिर गांव, फिर आस-पास के गांव, में फैलने की उम्मीद रहेगी। अतः हमारे गांव वाले ग्रामीण भाई-बहनों से निवेदन है कि वह स्वत संज्ञान लेकर ऐसे गफलतों से बचें और गांव में टेस्टिंग करने आई मेडिकल टीम से टेस्टिंग कराकर उनके दिशानिर्देशों पर चलें और मानवता की सेवा में सहयोग करें।...बात अगर हम इन भ्रांतियोंको बढ़ावा देने वाले प्रबुद्ध शिक्षित, कुशल नेतृत्व , कलाधारी, नामी-गिरामी, व्यक्तित्व की करें और उनके वक्तव्य में इन भ्रांतियों को बढ़ाने का संज्ञान मिले तो देश के लिए हैरानी वाली बात होगी। यह वक्तव्य जैसे गंगा मैया में स्नान करने या गंगा मैया के आस पास कोरोना कभी नहीं भटकेगी, गोमूत्र का सेवन करने से कोरोना महामारी नहीं होगी या फेफड़ों पर संक्रमण नहीं होगा, या यह वैक्सीन तो उस पार्टी की वैक्सीन है, वैक्सीन लगाने से बांझपन आता है, पहले पीएम को वैक्सीन लगाना चाहिए, इस तरह के वक्तव्य और कुछ भ्रांतियां हमने बहुत पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और टीवी चैनलों के माध्यम से सुनते और देखते आ रहे हैं। मेरा निजी मानना है कि इससे जनता में एक भ्रम की स्थिति फैलती है और इन पर विश्वास कर जनता इसका अनुसरण या पालन करने लगती है जिससे संक्रमण अपनी चैन को मजबूती से बढ़ाने में कामयाब होता है जिससे सबसे अधिक नुकसान आम नागरिकों को वाहन करना होता है। अतः सरकार द्वारा इन वक्तव्य को स्वत संज्ञान लेकर या वक्ता द्वारा स्वतः ही इस बयान को ख़ारिज या वापस लेने की पहल करनी चाहिए।....बात अगर हम वैज्ञानिक आधारों का आविष्कार करने वाली मेडिकल एजेंसीयों की करें तो, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एंडसीडीसी) इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) कोरोना वायरस के विभिन्न वेरिएंट का पता लगाने के लिए बने सलाहकारों के सरकारी फोरम, इंडियन सार्स-सीओवी-2 जिनोमिक्स कंसोर्टिया (आईएनएसएजीओजी) इत्यादि देश की 10 बड़ी प्रयोगशाला तालमेल से वायरस पर कार्य कर रही है जिनकी कुल मिलाकर 15 समितियां है जिनकी अभी तक 67 रिव्यू मीटिंग हुई है ऐसी जानकारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनलों द्वारा दी गई है। इसके अनुसार पूरी दुनिया में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक आधार पर सटीकता में भारत का डंका बजता है। लेकिन हम अभी कुछ समय से जब से,,गांव में महामारी ने पैर पसारे हैं तो भ्रांतियों, टोटकों, का सिलसिला लगातार सुनाई दे रहा है और कुछ वक्तव्य भी सुनाई दे रहे हैं। हालांकि इन भ्रांतियों का संबंध हमारे पूर्वजों के वैद्यकीय ज्ञान या सामाजिक प्रथा के रूप में हो सकता है। परंतु उस समय इतनी मेडिकल सुविधाएं और संसाधन नहीं थे। आज के डिजिटल युग में अनेक मेडिकल संसाधन उपलब्ध हैं। अतः हमारे हर ग्रामीण क्षेत्र के साथियों को आगे आकर स्वतः संज्ञान लेकर इन भ्रांतियों, टोटकों, का विरोध कर कोविड-19 के पुराने या नए सिम्टम्स का थोड़ा साभी आभास होता है तो गांव पहुंची टीम से टेस्ट करवाएं और पॉजिटिव आने पर क्वॉरेंटाइन हो जाएं ताकि अन्य साथियों को संक्रमित होने से बचाया जा सके। अतः उपरोक्त पूरे विवरण का हम विश्लेषण करें तो हमें यह ज्ञात होता है कि इस महामारी के इलाज में हम वैज्ञानिक आधार को बढ़ावा देना चाहिए। शासन, प्रशासन, अधिकारियों, को इस क्षेत्र में रिसर्च करने वाली एजेंसियों की सिफारिशों पर ही अपनी रणनीतिक रोडमैप और दिशानिर्देश बनाया जाना जारी रखना चाहिए।

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र