Thursday, December 23, 2021

तुम अपने और मैं अपने घर

 सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त


दुनिया की विरासत में एक डायलाग कभी नहीं मिटेगा। वह है- अपने पैरों पर खड़े होना सीखो। यह इस दुनिया का सदाबहार डायलाग है। जब हम छोटे थे तब हमारे बुजुर्ग यह डायलाग कह-कहकर हमारे कान पका देते थे। जब हम बड़े हुए तो हमने अपने बच्चों के कान पका दिए। स्वाभाविक है कि हमारे बच्चे भी अपने बच्चों के कान पकायेंगे। यही दुनिया का दस्तूर है। हँसी तो तब आती जब यह सोच-सोचकर दिमाग खपा देते कि हम अपने पैरों पर नहीं तो किनके पैरों पर खड़े हैं। खैर, किताबों की खाक़ छानी तो पता चला कि यह कथन तो एक मुहावरा है। इस मुहावरे का अर्थ है- आत्मनिर्भर बनना। फिर मैंने आत्मनिर्भर शब्द का पोस्टमार्टम किया। पता चला यह दो शब्दों से बना है- आत्म और निर्भर। आत्म शब्द आत्मा का सूचक है। आश्चर्य की बात यह है कि भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक की लगभग सभी भाषाओं में आत्मा के लिए आत्मा शब्द ही है। आत्मा के बारे में और अधिक जानने के क्रम में भगवत् गीता के अध्याय दो श्लोक 20 पर नजर पड़ी। इसमें आत्मा की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी गयी है- जायतेम्रियतेवाकदाचित्अयम्भूत्वाभवितावा / भूयःअजःनित्यःशाश्वतःअयम्पुराणःहन्यतेहन्यमानेशरीरे। यानी आत्मा किसी काल में न तो जन्म लेता है और न मरता है न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला है कारण, यह अजन्मा नित्य सनातन और पुरातन है शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो आत्मा न खाती न चलतीन हिलतीन पैदा होती न मरती है। अरे भाई! जो है ही नहीं उसे खाक़ निर्भर करेंगे?

हमारे देश में आत्मा के बारे में सभी लोगों के अलग-अलग मत हैं लेकिन हद तब हुई जब सरकार ने आत्मनिर्भरता को खरीदने की कीमत लगाई – पूरे बीस लाख करोड़ रुपये! गणित में कमजोर लोग इस आंकड़े से दूर रहने में ही भलाई है। बचा-खुचा गणित भी भूल जायेंगे। तब मुझे संदेह हुआ जो है ही नहीं उसकी निर्भरता के लिए इतनी बड़ी राशि का क्या होगायह रुपया किसे मिलेगायही सोच-सोचकर सर चकरा रहा था।

तभी मेरे एक मित्र ने मुझसे मेरी चिंता का कारण पूछा। मैंने बीस लाख करोड़ रुपये और आत्मनिर्भरता की बात छेड़ी। तब उसने कहा - बस इतनी-सी बात के लिए सर खपा रहे हो। मान लो मैं सरकार हूँ और तुम जनता। मैंने तुम्हें बीस लाख करोड़ रुपये दे दिए। अब बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है? मैंने खुशी-खुशी कहा – अच्छा लग रहा है। यह हुई न बात! कहकर मित्र फिर से अपनी बात समझाने लगा। उसने पूछा इन रुपयों का तुम क्या करोगे? मैंने कहा- यह भी कोई प्रश्न है? खाने-पीने और जरूरत की चीज़ें खरीदूँगा। मित्र ने लंबी साँस लेते हुए कहा- अब बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है? मैंने कहा – बहुत अच्छा लग रहा है। तब मित्र ने कहा – हो गया हिसाब बीस लाख करोड़ रुपये का। जहाँ तक बात आत्मनिर्भरता की है, तो याद रखो तुम आत्मा हो और तुम्हारी खुशी निर्भरता। अब व्यर्थ की यह चिंता छोड़ो। घर जाओ और सो जाओ।

मैं घर पहुँचा। लेकिन मैं इसी उधेड़बुन में परेशान था कि जो रुपये मुझे मिले ही नहीं उसकी खुशी कैसी? आत्मनिर्भरता कैसी? यही सोचते-सोचते मैं सो गया। सपने में किसी ने मुझसे कहा – जिन बीस लाख करोड़ रुपयों को तुमने देखा नहीं, उसके लिए चिंता क्यों? उस चिंता के लिए चिता बनना क्यों? चिता बनकर यूँ सोना क्यों? जागो! अपने चारों ओर देखो। जिस प्रकार बिजली के प्रवाह को देख या छू नहीं सकते उसी प्रकार सरकारी रुपये देख या छू नहीं सकतेये रुपये बस सुनने में अच्छे लगते हैं। सोचो! ये रुपये सच में होते तो क्या लोग गरीबी से मरते? भूख से तड़पते-बिलखते? दर-दर की ठोकरें खातें? नहीं नइसीलिए जो नहीं है उसके होने का आभास दिलाने के लिए बीच-बीच में ऐसी बातें कह दी जाती हैं। ऐसा करने से जीने का झूठा दिलासा मिलता है। फिर चाहे वह बीस लाख करोड़ रुपये हो या फिर आत्मनिर्भरताआत्मा निर्भर बनने के लिए चाहे लाख डिसको करे, लेकिन निर्भरता का उसके लिए एक ही डायलाग होगा – खिसकोखिसको! खिसको


भोर-भिनसार

विधा - छंद मुक्त


परिचय - निशा खैरवा पुत्री मनोज खैरवा
छात्रा रामकुमारी कॉलेज
मु.पो. बिदासर,लक्ष्मणगढ़, सीकर राज.



भोर भिनसार शोर नित्य चहुँओर
कलरव निकुंज-खग निशा कंठ
उड़ फुर्र चाह उर-नभ वेग-तेग
भोर-भोर कजरारे अलसाये नैन।

अँगड़ाई अलसाई अंग-अंग मोरनि
प्रातः उच्छ्वास जैसे झंझावात
मृदु मुस्कान जैसे छवि कलीकंज
दृष्टि भोरी चंचल जैसे गोवत्स।

मन कोमल-अमल भाव निर्मल
विवेक एक नेक हित समरूप
मृदु बोल-तौल-मोल हित जान
कमी न, कमाई गुण जान न रूप।

'मगवाणी' की पहली वर्षगाँठ पर हुआ भव्य आयोजन, देश-विदेश में हो रही प्रशंसा

माजिक संस्था मगवाणी ने अपनी पहली वर्षगाँठ एक भव्य वीडियो कार्यक्रम के माध्यम से मनाई। इस कार्यक्रम को देश विदेश के लाखों लोगों ने यूट्यूब व फेसबुक व व्हाटसअप के माध्यम से देखा और सराहा । 'मगवाणी' एक समाचार पटल है जो देश की लगभग तीन दर्जन शाकद्वीपीय संस्थाओं के सहयोग से सामाजिक जागरण का प्रयास करती है। इस पटल के माध्यम से देश-विदेश के शाकद्वीपीय परिवारों व शाकद्वीपीय संस्थाओं के प्रेरक व महत्वपूर्ण गतिविधियों  को प्रसारित किया जाता है । इन प्रसारणों से प्रेरित 'शाकद्वीपीय समाज' अपने निजसशक्तिकरण से राष्ट्र के विकास में सहभागिता प्रदान करता है ।

     गत 20 दिसम्बर को सम्पन्न मगवाणी वार्षिकोत्सव के आलोक में देश- विदेश से प्राप्त शुभकामना सन्देशों को इस सामाजिक पटल अर्थात मगवाणी ने शृंखलावद्ध तरीके से प्रसारित किया । शुभकामना संदेश देने वाली महत्वपूर्ण विभूतियों में अयोध्यानरेश बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र, दिल्ली के स्पेशल पुलिस कमिश्नर श्री दीपेंद्र  पाठक,  सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक श्री देवेंद्र पाठक, लक्षद्वीप के कृषि व मत्स्यपालन सेक्रेटरी श्री ओम प्रकाश मिश्र,   राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त पूर्व आई. ए. एस. अधिकारी वैदेही शरण मिश्र,भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ पी. एस. पाण्डेय, उद्योगपति श्री सुरेश प्रसाद मिश्र, दैनिक हिंदुस्तान राँची के एसोसिएट एडिटर चंदन मिश्र, प्रख्यात साहित्यकार डॉ मदन मोहन तरुण, वेटरन जॉर्नलिस्ट प्रोफेसर सिद्धार्थ मिश्र, काशी विश्वनाथ न्यास के अध्यक्ष प्रोफेसर नागेन्द्र पाण्डेय , शिक्षाविद श्री प्रदीप मिश्र, भाजपा महिला मोर्चा बिहार की सोशल मीडिया प्रभारी श्रीमती प्रीति पाठक , प्रख्यात ज्योतिर्विद पं विजयानन्द सरस्वती , बिमला हरिहर ग्रुप, राँची के संस्थापक निदेशक डॉ हरिहर प्रसाद पाण्डेय  ,पटना विश्वविद्यालय  के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर उमाशंकर शर्मा ऋषि , प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक डॉ चंद्र भूषण मिश्र एवं दैनिक सन्मार्ग के पूर्व सम्पादक श्री ज्ञानवर्धन मिश्र इत्यादि  के नाम शामिल हैं ।
     वार्षिकोत्सव कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी देते हुए मगवाणी कोर कमेटी सदस्य श्री बिमल कुमार मिश्र, श्री अनन्त कुमार मिश्र एवं श्री राजन राजेश्वर नायक ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी करते हुए बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत नागपुर में रहने वाली मगवाणी प्रवाचिका श्रीमती श्रुति मिश्रा द्वारा प्रस्तुत गणेश वंदना से हुई । इसके बाद देश की लगभग दो दर्जन शाकद्वीपीय संस्थाओं के अध्यक्षो के साथ-साथ मगवाणी के कई प्रान्त प्रतिनिधियों , जिला प्रतिनिधियों व प्रसार प्रतिनिधियों के वीडियो संदेशों का प्रसारण हुआ । बिहार की बेटी काव्या मिश्रा द्वारा प्रस्तुत नृत्य एवं जहानाबाद के श्री राजेश मिश्र व उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत 'मगोपाख्यान गायन' भी आकर्षण के केंद्र रहे । सभी तेरह प्रवाचक-  प्रवाचिकाओं में श्रुति मिश्रा, राजीव नन्दन मिश्र,डॉ नारायण दत्त मिश्र,श्रीमती अनुपमा मिश्रा,मीनाक्षी मिश्रा,दीन दयाल शर्मा,अक्षिता मिश्रा,भगवानदत्त मिश्र,डॉली मिश्रा,नीरज उमेश शर्मा,भरत कुमार,प्रियंका चन्द्र शर्मा ने मगवाणी द्वारा प्रदत्त उपहारों व प्रशास्तिपत्रों को हाथ मे लेकर अपने आभार ज्ञापन भी प्रस्तुत किये। इसके बाद मगवाणी उपसमन्वयक श्री महेंद्र पाण्डेय व समन्वयक डॉ भारती भोजक ने अपने विचार व्यक्त किये ।सबसे अंत मे मगवाणी संयोजक श्री विवेकानंद मिश्र ने अपने महत्वपूर्ण वक्तव्य में मगवाणी के समस्त प्रयासों की प्रासंगिकता तथा  मगवाणी प्रसारण से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डालते हुए आभार ज्ञापन प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का संचालन दिल्ली से डॉ नारायण दत्त मिश्र, पटना से श्रीमती अनुपमा मिश्रा तथा जोधपुर से श्री दीन दयाल शर्मा ने किया ।

Wednesday, December 22, 2021

किसान दिवस

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     हमारा देश भारत कृषि प्रधान देश है। देश की 70 प्रतिशत आबादी किसी न किसी रूप में कृषि से जुड़ी हुई है। आज देश में कुल आबादी का 86.21 फीसदी हिस्सा लघु सीमांत किसान(दो हेक्टेयर से कम जोत वाले), अर्ध मध्यम और मध्यम आकार वाली जोतों (02 से 10 हेक्टेयर तक की जोत वाले ) की संख्या 13.22 प्रतिशत और बड़ी जोत (10 हेक्टेयर या ऊपर) वाले किसान 0.57 प्रतिशत है।

     आजादी से पहले और भूमि सुधार कानून लागू होने तक खेतों की जोत का आकार बड़ा होता था। खेती की जमीन बड़े बड़े जमींदारों के पास होती थी। गांवों के ज्यादातर लोग जमींदारों से खेत लेकर खेती करते थे। बदलें में पैदा हुए अनाज का एक निश्चित भाग जमींदार को देते थे। पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के साधन न होने, मौसम की मार पड़ जाने तथा आज जैसे खाद और कीटनाशकों के न होने से उपज अच्छी नहीं होती थी। जनमानस हमेशा अभाव में जीता था। किसान के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुश्किल था।
     यह वह दौर था जब देश में किसान और कृषि क्षेत्र अनेकों समस्याओं  से जूझ रहा था।  ऐसे समय में चौधरी चरण सिंह एक किसान नेता के रूप में उभरे।  जमीन और किसान से जुड़ी समस्याओं को व्यापक रूप से सरकार के सामने लाना शुरू किया। उन्होंने समाजवाद के नारे "जो जमीन को जोते-बोये वो जमीन का मालिक है" के साथ काम करना शुरू किया।  वे जानते थे कि जब तक सभी के पास जमीन नहीं होगी तब तक देश से गरीबी और भुखमरी का अंत नहीं हो सकता। देश की आर्थिक हालत ठीक नहीं हो सकती। 
     उस समय राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में किए वादे को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होते थे।  उस समय सत्ता में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। उनके घोषणा पत्र के अधिकांश वादे देश के विकास और नव निर्माण से संबंधित थे।  उनके घोषणा पत्र में भूमि सुधार एक मुख्य कार्यक्रम था।  उस समय उत्तर प्रदेश में पंडित गोविंद बल्लभ पंत  की सरकार थी। चौधरी चरण सिंह उनकी सरकार में राजस्व मंत्री थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में  भूमि सुधार  के  काम को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से 01 जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश में  जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ।  लेख पाल का पद उनके ही प्रयासों से सृजित किया गया।  उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया।     03 अप्रैल 1967 को वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने कुछ कारणों से मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। वह उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली।  17 फ़रवरी 1970 को वे फिर  मुख्यमंत्री बने। उनकी कार्यशैली के कारण आज भी उनकी गणना सबसे प्रभावी जननायक, कुशल प्रशासक और ईमानदार राजनेता के रूप में होती है।     उन्होंने सन् 1974 में  राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस के विरोध में एक नयी पार्टी का गठन किया। जिसमें भारतीय क्रांति दल के साथ-साथ बीजू जनता दल, समाजवादी पार्टी,  स्वतंत्र पार्टी जैसे कई दल शामिल हुए। आपातकाल के बाद और जे पी आंदोलन के समय यह दल काफी करीब आ गये और सबने साथ मिलकर एक नयी पार्टी का गठन किया। जो कि जनता पार्टी  कहलायी। 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक देश के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली।
     उस समय किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी।  सरकार अपने तरीके से फसलों के दाम घोषित किया करती थी। उनके कार्यकाल में ही आढ़तियों की मनमानी  पर अंकुश लगा। किसानों को कर्ज दिलाने के लिए उन्होंने नाबार्ड की व्यवस्था की। इसकी स्थापना से किसानों को खेती के लिए ऋण मिलना आसान हो गया। किसानों को कुछ हद तक साहूकारों से मुक्ति मिली।
     उन्होंने 1937 में  किसानों और सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछडे़ वर्ग के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा उठाया ।  उन्हीं के प्रयासों से मंडल कमीशन का गठन हुआ। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवाद से इत्तेफाक रखने वाली पार्टियों  के सहयोग से देश के प्रधानमंत्री बने।    वह गरीब, किसान और मजदूर के नेता थे। वे सादगी, सच्चाई, ईमानदारी के पक्षधर और भ्रष्टाचार के खिलाफ थे। एक बार उन्हें एक थाने के पुलिस कर्मियों द्वारा घूस लेने की बात पता चली। उस समय वह देश के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने खुद किसान बनकर सच्चाई का पता लगाया। पुलिस द्वारा रिपोर्ट लिखने के लिए उनसे भी घूस मांगा गया। सच्चाई साबित होते ही उन्होंने पूरे थाने को सस्पेंड कर दिया ।  इतने निचले स्तर पर जाकर ऐसी कार्यवाही को अंजाम देना जनमानस के प्रति उनकी भावना को दर्शाता है।
     चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर , तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद  में एक मध्यम वर्गीय किसान मीर सिंह के यहां हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक तथा 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से एल एल बी की  शिक्षा पूरी किया और गाजियाबाद में वकालत करने लगे।  
     सन् 1929 में आजादी के लिए पूर्ण स्वराज्य आंदोलन में जुड़ गये। सन् 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने के आह्वान पर हिंडन नदी पर नमक बनाकर अंग्रेजों के बिरूद्ध शंखनाद किया। इसके लिए उन्हें 6 माह की सजा सुनाई गई। 1940 में सरकार ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया और 1941 में छोड़ा। अब तक वे आजादी के दीवाने बन चुके थे। अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजी सरकार को खूब छकाया। अंग्रेज सरकार उनकी गतिविधियों से परेशान हो उठी। उसने उन्हें देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया। काफी मशक्कत के बाद आखिरकार अंग्रेज पुलिस उन्हें पकड़ने में कामयाब हो गयी। उन्हें डेढ़ साल की सजा हुई। 
     चौधरी चरण सिंह ने लम्बे समय तक गांव, गरीब और किसान की सेवा की। सादगी की मिसाल बने। 29 मई 1987 को दिल्ली में किसानों का मसीहा चिर निद्रा में लीन हो गया। खुशहाल किसान का उनका सपना आज तक पूरा न हो सका।  किसानों की समस्याओं को किसान ही समझ सकता है। गन्ने के रस को जूस कहने वाले जब तक किसान के लिए योजनाएं बनाएंगे तब तक किसान खुशहाल नहीं हो सकता। किसानों के लिए योजनाएं राजधानियों के वातानुकूलित कमरों में नहीं बल्कि खेतों की मेड़ों पर बैठकर  बनायी जाने की आवश्यकता है। जब इस स्तर पर योजनाएं बनेंगी तब ही चौधरी चरण सिंह का सपना साकार हो सकता है।


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हरी राम यादव
स्वतंत्र लेखक