Sunday, December 26, 2021

वफ़ा के नाम पे धोका (ग़ज़ल)

जिसने चराग़ दिल में वफ़ा का जला दिया

ख़ुद को भी उसने दोस्तों इंसां बना दिया।

घरबार जिसके प्यार में अपना लुटा दिया
उस शख़्स ने ही बेवफा हमको बना दिया।

जो मिल गए हैं ख़ाक में वो होंगे और ही 
हमने तो हौसलों को ही मंज़िल बना दिया।

यह है रिहाई कैसी परों को ही काट कर 
सैयाद तूने पंछी हवा में उड़ा दिया।

हंस हंस के ज़ख़्म खाता रहा जो सदा तेरे 
तूने ख़िताब उसको दगाबाज़ का दिया।

'निर्मल' समझ के अपना जिसे प्यार से मिले 
उसने वफ़ा के नाम पे धोका सदा दिया।

आशीष तिवारी निर्मल 
लालगांव रीवा 

अटल हमारे अटल तुम्हारे

अटल  हमारे  अटल  तुम्हारे।

नहीं   रहे  अब   बीच  हमारे।
जन जन  के  थे  राज दुलारे।
अटल  हमारे  अटल  तुम्हारे।
बेबाक    रहे   बोल  चाल  में।
मस्ती  दिखती  चालढाल  में।
अश्क   बहाते     घर  चौबारे।
अटल  हमारे   अटल  तुुम्हारे।
अगर कहीं कुछ  सही न पाया।
राजधर्म  तब  जा  सिखलाया।
इसीलिये   थे   सब  के   प्यारे।
अटल   हमारे   अटल  तुम्हारे।
सजे  मंच  पर   जब  आते  थे।
झूम  झूम  कर  फिर  गाते  थे।
नहीं   बिसरते   आज  बिसारे।
अटल  हमारे    अटल  तुम्हारे।
चला  गया जनता  का  नायक।
छोड़ सभी कुछ  यार यकायक।
जन जन उनको  आज  पुकारे।
अटल   हमारे   अटल   तुम्हारे।
किया  देश हित  जीवन अर्पण।
बिरला    देखा    गूढ़   समर्पण।
रोते    हैं    यूँ     चाँद    सितारे।
अटल   हमारे    अटल   तुम्हारे।
कम से कम की  दिल  आज़ारी।
खेली  जम  कर   अपनी   पारी।
लगा  रहे  सब   मिल  जय कारे।
अटल   हमारे    अटल   तुम्हारे।
राजनीति   थी   खेल   खिलौना।
खेला   करके    सब  को   बौना।
शब्द     चढ़ाये      शब्द    उतारे।
अटल   हमारे    अटल    तुम्हारे।
हमीद कानपुरी
(अब्दुल हमीद इदरीसी)

एहसास

सर्दी बहुत है

गर्मी का एहसास करवाइए ।
नफरत बहुत है
मोहब्बत का एहसास करवाइए ।
गम बहुत है
खुशियों का एहसास करवाइए।
बेगानापन बहुत है
अपनेपन का एहसास करवाइए।
अंधेरा बहुत है
रोशनी का एहसास करवाइए।
शोर बहुत है
शांति का अहसास करवाइए।
अस्थिरता बहुत है
स्थिरता का एहसास करवाइए।
मिथ्या बहुत हौ
सत्यता का एहसास करवाइए।
दोगलापन बहुत है
एकसारता का एहसास करवाइए।

राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
पता-गांव जनयानकड़

किस्सा, किस्से और किस्साहट

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा

उजाले में भी अंधेरा बसता है। किसी-किसी को दिखता है। किसी-किसी को नहीं दिखता है। किसी-किसी को दिखकर भी नहीं दिखता है तो किसी-किसी को नहीं दिखकर भी दिखता है। यह किसी-किसी कहलाने वाले लोग गुफाओं या आदिम युग में नहीं रहते। हमीं में से कोई किसी-किसी का पात्र निभाता रहता है। आश्चर्य की बात यह है कि एक किसी दूसरे किसी को किसी-किसी का किस्सा बताकर अपनी किसियाने की खुसखुसी करता रहता है। कोई किसी’ के दुख में किसी सुख को तलाशने की कोशिश करता है। कोई किसी’ की आग में किसी की रोटी सेंकने का काम करता है। । कोई किसी के गिरने में किसी के उठने की राह जोहता है। यह किसकिसाने का फसाना बहुत पुराना है। हमसे-तुमसे-सबसे पुराना है। किसी की बात में किसी की चुप्पी, किसी के लिखे में किसी के मिटने और किसी की ताजगी  में किसी के बासीपन की याद हो आना किस्साहट नहीं तो और क्या है!

यह किसी-किसी कहलाने वाले प्राणी बड़े विचित्र होते हैं। एक किसी दूसरे किसी के शव को छूना नहीं चाहता है। यह किसी कभी किसी का बेटा बनकर किसी पिता को अंतिम दर्शन करने के सौभाग्य से वंचित कर देता है। किसी का पति बनकर किसी पत्नी का सुहाग उजाड़ देता है। किसी का भैया बनकर किसी भाई का सहारा छीन लेता है। ऐसा किसी किसी-किसी का नहीं होता। किसी ने खूब कमाया, कोठियाँ खड़ी कीं, घोड़ा-गाड़ी का ऐशो आराम देखा। किंतु यह केवल किसी-किसी तक सीमित रहा। आगे उसी किसी के किसी-किसी ने उसे भोगा। यह किसी-किसी का किस्सा युगों से चला आ रहा है।

किसी-किसी ने किसी-किसी के साथ मिलकर जिंदगी के चार दिन बिताए थे। किसी के सामने किसी ने सिर उठाकर अपनी गुमानी दिखायी थी। दुर्भाग्य से एक किसी के मरने पर कोई किसी के साथ नहीं गया। सब के सब यहीं रह गये। उसका बंगला, घोड़ा, नौकर-चाकर सब के सब यहीं रह गए। किसी कहलाने वाला चार किसी कहलाने वाले कंधों के लिए तरसकर रह गया। न जाने कैसे उस किसी को किसी ने किसी तरह किसी ऐसी जगह पहुँचाया जहाँ किसी-किसी को मुक्ति मिलती है। किसी-किसी की बातें, किसी-किसी की यादें, और किसी-किसी के किस्से तब तक हैं जब तक कोई किसी को किसी तरह यह आपबीती सुनाता है। एक किसी को जीने के लिए किसी चीज़ की जरूरत पड़े न पड़े, लेकिन जाते समय किसी कहलाने वाले चार कंधों की जरूरत अवश्य पड़ती है। सच है, चार कंधे भी किसी-किसी को किस्मत से ही मिलते हैं।     


94 वें जन्मोत्सव पर अटल जी को स्मरण किया

*अटल जी विनम्रता, लोकप्रियता,मिलनसारिता की प्रतिमूर्ति थे -राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य*

गाजियाबाद,शनिवार 25 दिसम्बर 2021,केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को उनके 94 वें जन्मदिन पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 
उल्लेखनीय है कि 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ था।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि श्री अटल जी भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय,विनम्र, मिलनसार व्यक्तित्व के धनी प्रधानमंत्री रहे।वह कवि ह्रदय, पत्रकार,लेखक दयालु व भावुक थे।राष्ट्रीय मोर्चे पर कारगिल युद्ध में उनके कुशल नेतृत्व में विजय प्राप्त की व पोखरण में परमाणु परीक्षण कर भारत की शक्ति का विश्व पटल पर परिचय भी दिया। वह तीन बार प्रधानमंत्री बने।वह बहुत अच्छे वक्ता थे देर रात तक उनका भाषण सुनने के लिए लोग आतुर रहते थे।उन्होंने केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के प्रधानमंत्री निवास पर आयोजित कार्यक्रम में घोषणा की थी भारत किसी दबाव में नहीं झुकेगा व सीटीबीटी पर हस्ताक्षर नहीं होंगे।आज अटल जी के जीवन से प्रेरणा लेने का दिन है।वह भारतीय राजनीति के अजातशत्रु रहे ।
राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने प.मदनमोहन मालवीय जी के जन्मदिन पर शुभकामनाएं देते हुए उनके पदचिन्हों पर चलने का आह्वान किया।
वैदिक विद्वान आचार्य सत्यवीर शर्मा,ओम सपरा वैध प्रदीप कटारिया,शैलन जगिया,देवेन्द्र भगत,आचार्य महेंद्र भाई,डॉ विपिन खेड़ा,राजेश मेहंदीरत्ता ने भी श्रद्धासुमन अर्पित किये।
गायक रविन्द्र गुप्ता,नरेंद्र आर्य सुमन,दीप्ति सपरा,रजनी गर्ग, रजनी चुघ,बिंदु मदान,सरोज शर्मा,सुदेश आर्या,प्रवीना ठक्कर आदि के मधुर भजन हुए।
भवदीय,
प्रवीण आर्य,

जश्न बनाम हादसों की रात

लो फिर आ गई हादसों वाली रात.....,हर साल की तरह इस बार भी 31-दिसम्बर आने वाला हैं,महानगरों में तो कई लोगो ने जश्न की  तैयारियां भी शुरू कर दी है। आजकल की युवा पीढ़ी को 31 दिसम्बर की रात का बेसब्री से इंतजार रहता हैं। पाश्चत्य संस्कृति को अपनाने वालों की धारणा होती हैं, कि बीता हुआ साल व आनेे वाले साल को ‘दिल ओ जान’ से  मनाया जाए। इसलिए एक महीने पहले से ही इसकी तैयारी शुरू कर दी जाती है। हर उम्र के लोगों के लिए अलग अलग पार्टियां रखी जाती। इस रात को रोमानी और मनोरंजक बनाने के लिए हर तरह की व्यवस्था रखी जाती साथ ही साथ तरह तरह के फूड,शराब,कोकिन,हेरोइन,अश्लील नाच गाना,यहां तक की सम्भोग भी। इस रात को हसीन बनाने के लिए लाखो का खर्च कर तरह तरह की योजनाएं बनाई जाती। एक महीने पहले से ही ऑफर के साथ नाइट बुकिंग भी शुरू हो जाती हैं। कई पार्टियां तो शहर से दूर। सुनसान एरिये में रखी जाती, ताकी पुलिस की नजर न पड़े। टुरिस्ट प्लेसेस अधिक से अधिक सजाए जाते हैं ताकी अधिक से अधिक लोग इन जगह पर रात बिताएं । 31 दिसम्बर अब महानगरों तक ही सीमित नही हैं। छोटे छोटे कस्बों में भी इसका अच्छा खासा चलन हो गया हैं। कई युवक युवतियां तो शादी की तरह तैयारी करते साथ ही कई तो इस रात के लिए पहले से ही कई योजनाएं भी बनाकर रखते हैं। 31 दिसम्बर की शाम से ही शहर जगमगा जाते हैं। रात होते ही पार्टिया शबाब पर आ जाती। नाच- गाना, खाना-पीना, तरह तरह के ड्रग्स छोटे छोटे कपडों में मेकप से पूती लहराती युवतियां, हाथों में शराब लिए क्लबों में नाचते हुए, अलग ही रोमांचक रोनके शुरू हो जाती हैं। इन क्लबों में हर तरह का नशा किया जाता। कोई पहली बार आता हैं, तो कोई जबरदस्ती लाया जाता। कई दोस्तों को जर्बदस्ती मनुहार करके नशा करने को मजबूर किया जाता हैं, तो युवक युवतियों के साथ ड्रग्स शराब के सेवन के लिए प्यार की दुहाई देकर पिलाया जाता हैं। नया वर्ष शुरू होते होते सभी युवक युवतियां अपने होश खोने लग जाते हैं। फिर रात का तांडव शुरू होता। कई बार किसी युवती के साथ जबरदस्ती तो किसी की बेहोशी की हालात में इज्जत से खिलवाड़, नशे में धूत सडक़ पर घूमती युवतियों के साथ छेडख़ानी। देर रात पार्टियां खत्म होने पर नशे में धुत गाडी चलाने पर कई एक्सीडेंट होना। नया साल नए नए हादसों का साल बन जाता हैं। सुबह तक कई तरह के वारदाद को अंजाम दे दिया जाता हैं। धीरे धीरे हफ्ते तक सभी अंजाम सामने आते रहते हैं। अगर किसी युवती के साथ दर्दनाक बलात्कार हुआ तो नया कानुन,साथ ही जगह जगह मोमबत्ती जलाकर मातम मनाना,टीवी पर बहस....बस। सोचने वाली यह बात है, वाकई में हमारे नए वर्ष  की शुरुआत ऐसे होना चाहिए ?,

      एक जनवरी को नव वर्ष मनाने का चलन 1582 इस्वी के ग्रेगेरियन कैलेन्डर आरंभ हुआ  । ग्रेगेरियन कैलेन्डर को पोप अष्टम ग्रेगेरी ने तैयार किया था,आर्थोडॉक्स चर्च रोमन कैलेन्डर को मानता हैं। उसके अनुसार नया साल 14 जनवरी को होता हैं। जब सभी लोग अपने अपने कैलेंडर के अनुसार नया साल मनाते हैं। तो फिर हम क्यों हमारे "विक्रम संवत" कैलेंडर के अनुसार नया साल नही मनाते हैं ? हमारा कैलेंडर  "विक्रम संवत"  गे्रगेरियन कैलेन्डर से भी अधिक प्राचीन है, कालगणना हमारे संवत पंचाग के अनुसार की जाती है। अभी विक्रम संवत 2078 चल रहा है,                  हम कितने आधुनिक हो गए हैं,कि हम यह भी भूल गए की हमारा नया साल चेत्र गुड़ीपड़वा से शुरू होता हैं।
ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन इसी दिन हुआ था।
भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग-शालिवाहन शक संवत का प्रारम्भ।
    पाश्चात्य संस्कृति हमें किस पतन की ओर लें जा रही है, आज हम आधुनिकता दिखावे के चक्कर में, हम अपनी मान मर्यादा इज्जत सब कुछ लुटा रहे है | हमारी संस्कृति परम्परा को भूलते जा रहे हैं, बिता हुआ वर्ष कुछ अनुभव देता, नया सिखाता, नया वर्ष नए कार्य की उम्मीदों का वर्ष...., किन्तु अगर हम 31दिसंबर इसी तरह से मनाते रहे तो हादसों का सफर बढ़ता जाएगा, आज हम सभी को गहन चिंतन करने की आवश्यकता है, क्या नया वर्ष मनाने का यह सही तरीका ?

वैदेही कोठारी (स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका )

Thursday, December 23, 2021

बच्चू...कच्ची गोटियाँ नहीं खेली हैं

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

एक भड़कीला युवक अपने स्थानीय सांसद से जा भिड़ा। सांसद जी बड़े संयमी थे। सो, युवक को डाँटने-फटकारने अथवा लताड़ने की जगह उसे बड़े प्रेम से बैठने के लिए कहा। बड़ी विनम्रता से पूछा क्या बात है भाई! ऐसी क्या मुसीबत आ पड़ी जो तुम मुझे इतनी सुबह-सुबह डाँट रहे हो?” इस पर युवक ने कहा, आपने झूठे-झूठे वायदे कर चुनाव तो जीत लिया और हम जैसे लोगों को भूल गए। खुद तो चैन की नींद सोते हो और हमें दर-दर की ठोकर खाने के लिए छोड़ दिया है। महँगाई के मारे न खाए बनता है न पीए। बेरोजगारी से हमारे जैसे लोगों की हालत खस्ता है। जेब में एक फूटी-कौड़ी भी नहीं है। अब आप ही बताइए ऐसे में आदमी गरियायेगा नहीं तो उसकी आरती उतारेगा?”

सांसद जी को सारा मामला समझ में आ गया। वे कुछ समझाते इससे पहले ही युवक भड़क उठा और बोला, आपको क्या है? आपको तो सरकार की ओर से बत्तीवाली चार चक्का गाड़ी, बड़ा बंगला, नौकर-चाकर, खाने-पीने में पाँच सितारा होटल सा भोजन, आए दिन हवाई सफर करने का मौका, बीमार पड़ने पर एक से बढ़कर एक अस्पताल। और बदले में हम जैसे लोगों को क्या मिलता है – ठेंगा!” सांसद जी को लगा कि युवक तो बड़ा जागरूक है। इसे यों ही बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। वे कुछ जुगाड़ करने लगे। थोड़ी देर सोचने-समझने के बाद उन्होंने मुस्कुराते हुए उससे कहा, तो तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। एक फूटी-कौड़ी भी नहीं?” हाँ युवक ने मुँह फुलाते हुए उत्तर दिया। ठीक है तो मैं तुम्हें एक लाख रुपये देने के लिए तैयार हूँ, लेकिन शर्त यह है कि तुम्हें मुझे अपना एक हाथ काटकर देना होगा। अरे भाई यदि मैं आपको अपना हाथ दे दूँगा, तो अपने काम कैसे करूँगा?” ठीक है तो अपना एक पैर ही दे दो। इसके बदले में मैं तुम्हें दस लाख रुपये दूँगा। सोच लो। सौदा फायदे का है। क्या कमाल की बात करते हैं आप! यदि मैं अपना पैर दे दूँगा तो इधर-उधर चलूँगा कैसे? कुछ सोच-समझकर बात कीजिए। बड़े अजीब आदमी हो। कुछ भी माँगता हूँ तो न-नुकूर करते हो। चलो ठीक है, एक काम करो तुम अपनी जीभ ही काटकर दे दो इसके एवज में मैं तुम्हें एक करोड़ रुपये दूँगा। तुम्हारी गरीबी हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाएगी। सोच लो ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा। युवक का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह झल्लाकर बोला, लगता है जब से आप सासंद बने हैं तब से आपका दिमाग सिर में कम घुटने में ज्यादा रहता है। दिमाग-विमाग खराब तो नहीं हो गया। कैसी बे-फिजूल की बातें कर रहे हैं। मैं यदि अपनी जीभ दे दूँगा तो जीवन भर बात कैसे करूँगा। अपनी जरूरतों के लिए सामने वाले से पूछूँगा कैसे?”

सांसद जी अब बड़े इत्मनान में थे। युवक की बातें सुन उन्हें लगा कि अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे। उन्होंने एक लंबी साँस ली और कहा, भाई! जब तुम्हारे पास एक लाख रुपये से अधिक कीमती हाथ है, दस लाख रुपये से अधिक कीमती पैर है और एक करोड़ रुपये से भी अधिक कीमती जीभ है तो तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारे पास फूटी-कौड़ी भी नहीं है। मैंने चुनाव जीतने के लिए बहुत से पापड़ बेले हैं। मैं यूँ हीं सांसद नहीं बना। इसी को मेहनत कहते हैं। यदि मैं भी तुम्हारी तरह सुबह-सुबह डाँटने-फटकारने या लताड़ने का काम करता तो आज सांसद नहीं तुम्हारी तरह दर-दर की ठोकरें खाते फिरता। जाओ, मेहनत करो और मेरा-तुम्हारा समय बर्बाद मत करो।

पाप बेचारा युवकवह इतना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया।