Thursday, February 17, 2022

संजीव-नी

शहरों की नीयत ठीक नहीं,

टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों के बीच,

नन्हें-नन्हें पैरों के निशान,

तोतली बोली में झूमती हवाएं,

लहरा लहरा कर  उड़ता दुपट्टा,

अनाज की बालियां,

खेतों की हरियाली,

छल छल कर बहता पानी,

पहली बरसात की 

काली मिट्टी की सोंधी गंध,

गोधूलि की फैली संध्या,

बैलों का मुंडी हिला हिला कर चलना,

छोटी सकरी सड़क पर,

बकरी और गाय हांकने की आवाज,

दूर दिखाई देता,

घास फूस का मचान,

और उस पर बैठा प्रसन्न मंगलू,

सब कुछ धुंधला दिखता,

फ्लैशबैक की तरह मलीन,

घिसटता मित्टता सहमता दिखाई देता,

कसैला धूंआ 

गोधूलि की बेला को धूमिल करता,

निश्चल पानी  कसैला हो उठा,

नन्हें पैर भयानक बन गए,

काली सौंधी मिट्टी पथरीली हो चली,

छोटी पगडंडी हाईवे में बदल गई,

मशीनी हाथियों का सैलाब झेलती,

दूर लकड़ी का मचान नहीं,

गगनचुंबी इमारत दिखती,

उस पर बैठा बिल्डर लल्लन सिंह,

गाड़ियों की गड़गड़ाहट,

कहीं कोई चिन्ह निशान नहीं दिखते,

अब खुशहाल हरीतिमा के,

इमारतों की फसल, लोहे का जंगल,

सब कुछ कठोर,

शायद खुशहाल हरे हरे गांव और जंगल

को देखकर,

शहरों की नीयत ठीक नहीं दिखती?

संजीव ठाकुर,रायपुर छ.ग.9009415415,

प्रौढ़ शिक्षा के लिए वित्त वर्ष 2022-27 के लिए एक नई योज़ना - प्रौढ़ शिक्षा का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा किया गया

सभी राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों में 15 वर्ष और उससे ऊपर आयु के गैर साक्षर लोगों को कवर करने वित्त वर्ष 2022-27 के लिए आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता का लक्ष्य सराहनीय - एड किशन भावनानी

वैश्विक स्तरपर किसी भी देश के तीव्रता से विकास करने के कारणों के मुख्य स्तंभों में से एक साक्षरता, शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे, आधारभूत साक्षरता का महत्वपूर्ण रोल होता है जो, उच्च शिक्षा, उच्चतम शिक्षा की नींव होती हैं। अगर मनीषियों की बुनियादी शिक्षा गुणवत्ता पूर्ण है, आधारभूत साक्षरता उच्च स्तर की है, तो अपेक्षाकृत तीव्र और तत्परता से उस देश में डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक सहित अनेक तकनीकों के विशेषज्ञ निकलते हैं जो तीव्रता से उस देश को विकास में आगे बढ़ाकर पूर्ण विकसित देश की श्रेणी में लाकर खड़ा करते हैं यह है गुणवत्तापूर्ण बुनियादी शिक्षा का कमाल!!! 

साथियों बात अगर हम भारत की करें तो यह एक कृषि,गांव प्रधान देश है। अधिकतम आबादी गांव में रहती है, लेकिन भारत को शिक्षा का विस्तार और गुणवत्तापूर्ण ढांचे को दूर-दराज के गांव, इलाकों में पहुंचाने में समय की दरकार है जबकि शहरी क्षेत्रों में आधारभूत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के आधारभूत ढांचे को तीव्रता से स्थापित करने में शासकीय प्रशासकीय स्तर पर तीव्रता से योजनाएं जारी है। 

साथियों बात अगर हम ऐसे मनीषियों की करें जिनका शिक्षा का समय अपेक्षित था पर उम्र निकल गई है उन्हें शिक्षित करने साक्षरता अभियान की करें तो शिक्षा मंत्रालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि प्रौढ़ शिक्षा शब्दावली में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के सभी गैरसाक्षरों को उचित रूप से शामिल नहीं किया जा रहा है इसका संज्ञान लेकर अभी सरकार ने उस योजना का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा रखा गया है, जो निर्णय एक प्रगतिशील कदम के रूप में है। 

साथियों बात अगर हम दिनांक 16 फरवरी 2022 को मंजूरी दिए गए न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम योजना 2022 -27 की करें तो इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और 2021-22 के बजट की घोषणा के अनुसार वयस्क शिक्षा के सभी पहलुओं को कवर करने के लिए लाया गया है,ऐसा पीआईबी में कहा गया है।

साथियों बात अगर हम न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम योजना 2022-27 की विशेषताओं और इससे एक जनांदोलन के रूप में देखने की करें तो शिक्षा मंत्रालय की पीआईबी के अनुसार, योजना की मुख्य विशेषताएं-1)स्कूल इस योजना के क्रियान्वयन की इकाई होगा। 2) लाभार्थियों और स्वैच्छिक शिक्षकों (वीटी) का सर्वेक्षण करने के लिए उपयोग किए जाने वाले स्कूल। 3) विभिन्न आयु समूहों के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाई जाएगी। नवोन्मेषी गतिविधियों को शुरू करने के लिए राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों को लचीलापन प्रदान किया जाएगा। 4)15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के सभी गैर-साक्षर लोगों को महत्वपूर्ण जीवन कौशल के माध्यम से मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता प्रदान की जाएगी।

5) योजना के व्यापक कवरेज के लिए प्रौढ़ शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रौद्योगिकियों का उपयोग। 6)राज्य/केंद्रशासित प्रदेश और जिला स्तर के लिए प्रदर्शन ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई) यूडीआईएसई पोर्टल के माध्यम से भौतिक और वित्तीय प्रगति दोनों के बीच संतुलन कायम करते हुए वार्षिक आधार पर योजना और उपलब्धियों को लागू करने के लिए राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन को दिखाएगा। 7) आईसीटी समर्थन, स्वयंसेवी सहायता प्रदान करने, शिक्षार्थियों के लिए सुविधा केंद्र खोलने और सेल फोन के रूप में आर्थिक रूप से कमजोर शिक्षार्थियों को आईटी पहुंच प्रदान करने के लिए सीएसआर/ परोपकारी सहायता प्रदान की जा सकती है। 

8) साक्षरता में प्राथमिकता और पूर्ण साक्षरता - 15-35 आयु वर्ग को पहले पूर्ण रुप से साक्षर किया जाएगा और उसके बाद 35 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों को साक्षर किया जाएगा। लड़कियों और महिलाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ओबीसी/अल्पसंख्यकों, विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों (दिव्यांगजन), हाशिए वाले/घुमंतू/निर्माण श्रमिकों/मजदूरों/आदि श्रेणियों को प्राथमिकता दी जाएगी, जो प्रौढ़ शिक्षा से पर्याप्त रूप से और तुरंत लाभ उठा सकते हैं। स्थान/क्षेत्र के संदर्भ में, नीति आयोग के तहत सभी आकांक्षी जिलों, राष्ट्रीय/राज्य औसत से कम साक्षरता दर वाले जिलों, 2011 की जनगणना के अनुसार 60 प्रतिशत से कम महिला साक्षरता दर वाले जिलों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अल्पसंख्यक की अधिक जनसंख्या, शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉक, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों/ब्लॉकों पर ध्यान दिया जाएगा।

साथियों बात अगर हम इस योजना को जनांदोलन के रूप में करें तो पीआईबी के अनुसार 1) जनांदोलन के रूप में एनआईएलपी-अ) यूडीआईएसई के तहत पंजीकृत लगभग 7 लाख स्कूलों के तीन करोड़ छात्र / बच्चे के साथ-साथ सरकारी, सहायता प्राप्त और निजी स्कूलों के लगभग 50 लाख शिक्षक स्वयंसेवक के रूप में भाग लेंगे।

ब) शिक्षक शिक्षा और उच्च शिक्षा संस्थानों के अनुमानित 20 लाख छात्र स्वयंसेवक के रूप में सक्रिय रूप से शामिल किए जाएंगे। क) पंचायती राज संस्थाओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा कार्यकर्ताओं और नेहरू युवा केंद्संगठन, एनएसएस और एनसीसी के लगभग 50 लाख स्वयंसेवकों से सहायता प्राप्त की जाएगी।ड) स्वैच्छिकता के माध्यम से और विद्यांजलि पोर्टल के माध्यम से समुदाय की भागीदारी, परोपकारी / सीएसआर संगठनों की भागीदारी होगी। स) राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश विभिन्न मंचों के माध्यम से व्यक्तिगत/परिवार/गांव/जिले की सफलता की गाथाओं को बढ़ावा देंगे।ज) यह फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब, टीवी चैनल, रेडियो आदि जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट, लोक और इंटर-पर्सनल प्लेटफॉर्म जैसे सभी प्रकार के मीडिया का उपयोग करेगा। 2) मोबाइल ऐप, ऑनलाइन सर्वेक्षण मॉड्यूल, भौतिक तथा वित्तीय मॉड्यूल एवं निगरानी संरचना आदि से लैस समेकित डेटा कैप्चरिंग के लिए एनआईसी द्वारा केंद्रीय पोर्टल विकसित किया जाएगा।

3) कार्यात्मक साक्षरता के लिए वास्तविक जीवन की सीख और कौशल को समझने के लिए वैज्ञानिक प्रारूप का उपयोग करके साक्षरता का आकलन किया जाएगा। मांग पर मूल्यांकन भी ओटीएलएएस के माध्यम से किया जाएगा और शिक्षार्थी को एनआईओएस तथा एनएलएमए द्वारा संयुक्त रूप से ई-हस्ताक्षरित ई-प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा। 4)प्रत्येक राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश से चुने गए 500-1000 शिक्षार्थियों के नमूनों और परिणाम-उत्पादन निगरानी संरचना (ओओएमएफ) द्वारा सीखने के परिणामों का वार्षिक उपलब्धि सर्वेक्षण। 

साथियों बात अगर हम इस योजना के बजट और 15 वर्ष से ऊपर गैरसाक्षर मनीषियों की करें तो, नव भारत साक्षरता कार्यक्रम का अनुमानित कुल परिव्यय 1037.90 करोड़ रुपये है, जिसमें वित्त वर्ष 2022-27 के लिए क्रमशः 700 करोड़ रुपये का केंद्रीय हिस्सा और 337.90 करोड़ रुपये का राज्य हिस्सा शामिल है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में गैर-साक्ष्यों की कुल संख्या 25.76 करोड़ (पुरुष 9.08 करोड़, महिला 16.68 करोड़) है। 2009-10 से 2017-18 के दौरान साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत साक्षर के रूप में प्रमाणित व्यक्तियों की 7.64 करोड़ की प्रगति को ध्यान में रखते हुए, यह अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान में भारत में लगभग 18.12 करोड़ वयस्क अभी भी गैर-साक्षर हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि न्यू इंडिया साक्षरता योजना प्रौढ़ शिक्षा के लिए वित्त वर्ष 2024-27 के लिए एक नई योजना लाई गई है,प्रौढ़ शिक्षा का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा किया गया है तथा सभी राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों में 15 वर्ष और उससे ऊपर आयु के गैरसाक्षर लोगों को कवर करने वित्त वर्ष 2022-27 के लिए आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता का लक्ष्य सराहनीय कार्य है। 


-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

Wednesday, February 16, 2022

खामोश...तुम्हारी इतनी जुर्रत

अब दिन कुछ ऐसे आ गए हैं कि सांस लेने से पहले हवा से अनुमति लेनी होगी कि क्या मैं सांस ले सकता हूं? हवा को सख्त आदेश दे दिए जायेंगे कि वह बहने से पहले बताएं आज कहांकब और किस दिशा में बहेगी और कितना बहेगी। बहने से पहले अपनी मंशा भी बतानी होगी कि वह क्यों बहना चाहती हैं। अन्यथा उसके बहने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।

ऐसा ही एक नया कानून तूफानी हवाओं पर भी लगा दिया गया। उन्हें देश से तड़ीपार हो जाने के कड़े निर्देश दिए गए हैं। यदि वे इसका उल्लंघन करते हैं तो उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। कारण, सताने वाले शेखचिल्ली के ख्वाब बुन रहे हैं और गहरी निद्रा के बाद हवाई किलो को वास्तविक रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए नए कानूनों का पालन करना तूफानी हवाओं की मौत पर बन आयी है। इतना ही नहीं नए कानून का चाबुक समुद्र की लहरों पर भी पड़ा है। अब वह बड़ी-बड़ी लहरों के साथ किनारे को छूने का प्रयास नहीं कर सकता। यदि ऐसा करता है तो उसकी लहरें कैद कर ली जाएंगी। इसके अतिरिक्त समस्त जल राशि दंड स्वरूप वसूल ली जाएगी। इसलिए जितनी भी हलचलउथल-पुथल आक्रोश हो उसे अपने भीतर ही दबाकर रखना होगा। उसका प्रदर्शन करना कानूनी अपराध माना जाएगा।

नए कानून के अनुसार बगीचे के फूल सारे एक जैसे ही उगने चाहिए। उगने वाले फूल भी एक जैसे रंग के होने चाहिए। यदि फूल इन बातों का कहा नहीं मानते तो उन पर कानून की दंड संहिता लागू कर दी जाएगी। जब देश एक है तो फूल का रंग भी एक होना चाहिए। हवाएं जब हमारी सीमाओं में बहती है तो उन्हें हमारी सीमाओं का पालन करना चाहिए। समुद्र की लहरें जब हमारी जमीन पर उछल-कूद करती है तो उन्हें भी हमारी कानूनी उछल-कूद का पालन करना होगा। काश कानून बनाने वाले जान पाते कि हवासमुद्र और सांसें जब तक चुप हैं तब तक नए कानूनों की मनमानी चलती है। किंतु यही जब सुनामी बन जाते हैं तब कानूनों की गुमनामी इतिहास के पन्नों में पढ़नी पड़ती है।  

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा 


Sunday, February 13, 2022

प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए

प्रेम नाम की अद्भुत बख़्शीश को फिल्म के माध्यम से जबरदस्त लोकप्रिय बनाया गया है। प्रेम को केंद्र में रख कर बनती फिल्में इस तरह बनती हैं कि गरीबों से ले कर अमीरों तक को दुखी कर देती हैं। आलमआरा से पुष्पा तक प्रेम से मिलने वाले आनंद के साथ-साथ प्रेम के लिए बलिदान की भी बातें बताई जाती हैं। पुरानो फिल्मों में एक लंबे दौर तक गरीब प्रेमी और अमीर प्रेमिका वाली स्टोरी चलती रही। एक अंतराल में संगम टाइप प्रणय त्रिकोण आया, पर ज्यादातर प्रेम का निर्दोष स्वरूप ही रहा। जिसमें बेवफाई कम ही देखने को मिलती थी। परंतु धीरे-धीरे कुछ नए के चक्कर में जो लोगों को अच्छा लगे, उस थीम पर फिल्में बनने लगीं। यह कुछ गलत भी नहीं था, क्योंकि फिल्में बनाना भी तो आखिर एक धंधा ही है। परंतु हिंदुस्तान देश में जहां आज भी लोग भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र  के चक्कर में पड़े रहते हैं, सांप-बिच्छू काटे तो इमरजेंसी ट्रीटमेंट के बजाय तंत्र-म॔त्र के पीछे भागते हैं, आज भी घटिया-टुटपुंजिया नेताओं के कहने पर तोड़-फोड़ करते हैं, वहां सार्वजनिक रूप से जनता को प्रभावित कर सके, इस तरह के हर माध्यम को इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि किसी भी मुद्दे को समझदारी के साथ अर्थघटन करे इतनी परिपक्वता हमारे यहां आई नहीं है। ऐसे समय में जो सचमुच परिपक्व और प्रतिभाशाली लोग हैं, उन्हें जिम्मेदारी के साथ अपना फर्ज निभाना चाहिए। बल्गैरिटी से भरपूर अनेक वेबसिरीज के युग में यह मुद्दा डिबेट का विषय होने के साथ बहुत ही महत्वपूर्ण है।

बहुत कम कपड़ों में गरमागरम किसिंग के दृश्यों का विरोध करने वाले को रूढ़िवादी में खपाने वाले लोग यह नहीं समझते कि एक शिक्षित प्रेक्षक और एक अशिक्षित-अर्धशिक्षित प्रेक्षक के बीच जमीन-आसमान का फर्क होता है। अमेरिका में पोर्न फिल्में खुलेआम मिलती हैं, सेक्स टाॅयस की दुकाने हैं, तमाम देशों में कालगर्ल के लिए छूट है। पर जरा सोच कर देखिए, अपने यहां इस तरह की छूट हो तो इसमें समाज के कितने लोग विवेकपूर्ण व्यवहार करेंगें। हमें स्वीकार करना चाहिए कि हम एकदम गैरजिम्मेदार लोकतंत्र वाले लोग हैं, जिसमें ट्रेन और बस की गद्दियां बिना मतलब तोड़ डालते हैं। टेलीफोन का तांबे का तार चोरी हो जाता है। ट्रेन में सार्वजनिक सुविधा को फिट करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इसे कोई निकाल न ले जाए।
गरीब-अमीर, पढ़ेलिखे-अनपढ़, सभी लोगों का यह देश है। सभी की मानसिकता अलग-अलग है। पर फिल्म और टीवी सभी को आकर्षित करने वाला माध्यम है। इसलिए लोग चाहें तो मनोरंजन के साथ-साथ एक जबरदस्त जनहित का माध्यम बना सकते हैं। मदर इंडिया से वेडनसडे तक हमने देखा है कि ऐसा हो सकता है। यहां कहने का मतलब यह नहीं कि बिपासा और करीना को समाजसेविका या फिर आमिर और सलमान खान को पूरी तरह देशभक्त की भूमिका में ही दिखाएं। कहने का तात्पर्य यह है कि करोड़ो लोगों के रोल माडल को बिलकुल नाजुक इस तरह के विषयों पर एकदम गैरजिम्मेदारी से पेश करने के बजाय थोड़ी जिम्मेदारी निभाएं।
जिस तरह जिम्मेदारी से शाहरुख खान अपनी रियल लाइफ में प्रेम के नाम पर कुरबान नहीं होते और सैकड़ो लड़कियों के बीच रहने के बावजूद अपनी पत्नी का गौरव बनाए हुए हैं, यह आज के टीनजरों को बताएं। अपने बच्चों के लिए समय निकालना, अपने व्यवसाय के विकास के लिए सचेत रहना और चेन स्मोकिंग छोड़ कर बहादुरी दिखाना, यह है रियल शाहरुख, वरना कमर हिला कर 'जोड़ी' बनाना डांस पर चांस लेता शाहरुख।
'डर' में शाहरुख ने एक प्रेमी के रूप में भयानक भूमिका अदा की थी। 'मेरी नहीं तो किसी की नहीं' इस तरह के उसके रोल से कितनी लड़कियों को तकलीफ झेलनी पड़ी होगी। 'एक दूजे के लिए' में कमल हसन और रति अग्निहोती की करुणांतिका से दुखी हो कर न जाने कितने प्रेमी-प्रेमिकाओं ने आत्महत्या कर ली थी। हम यह जानते हैं कि अगर हीरो परदे पर सिगरेट पीता है तो उसका समाज पर खासा असर पड़ता है। तो हम यह क्यों नहीं समझते कि जब टपोरियों की भूमिका कर के प्रेम के नाम पर गलत चेष्टा करेंगे, तब नादान उम्र के युवक-युवतियों पर क्या असर पड़ेगा? फिल्मों ने आज की जनरेशन को प्रेम के बारे में बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है। शादी के पहले पढ़ने वाले जिस लड़के की कोई गर्लफ्रेंड नहीं है, उसकी हंसी उड़ाई जाती है। प्रेम करना ही है, यह जरूरी नहीं है। दोस्ती भी तो ऐसी ही है। इस पवित्रतम संबंध को बनाने के लिए हृदय से उठे तभी इस में पड़ें। और पड़ें तो पूरी पारदर्शिता के साथ संबंध निभाएं। बाकी देखादेखी या नासमझी से 'फूल तुम्हें भेजा है...' करने से परेशानी ही होगी।
ऐसे तमाम तेजस्वी लोग हैं, जो जवानी में अपनी पढ़ाई या व्यवसाय में इस तरह व्यस्त रहे कि उन्हें उस उम्र में प्यार नहीं हुआ। एक निश्चित उम्र में शादी की और अपने जीवनसाथी को भरपूर प्यार किया। पढ़ने की उम्र में खूब पढ़ाई की, अच्छी नौकरी प्राप्त की या व्यवसाय को आगे बढ़ाया और घर वालों की इच्छा से ब्याह किया। इस तरह के तमाम दंपत्ति बेहद सुखी हैं। हां, बच्चों के साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। पर बच्चों को भी इस तरह की फालतू बातों से दूर रहना चाहिए।
बीस साल, तीस साल में प्रेम नहीं हुआ तो नहीं हुआ। दोस्त की बाइक पर पीछे सीट पर हर महीने नई लड़की बैठी दिखाई दे और तुम्हें कोई लिफ्ट न दे तो दुखी न हों। प्रेमी-प्रेमिका के इस स्वरूप के बदले प्रेम की अभिव्यक्ति मान कर व्यक्तिगत रूप से अनेक तरह से कर सकते हैं।
पढ़ने या कैरितर बनाने की उम्र में लक्ष्य पर नजर रखें। प्रेम के नाम पर इधर-उधर भटकते रहेंगें तो बहुत कुछ खो बैठेंगें। प्रेम के नाम पर बहुत ज्यादा भावुक होने या बहकने की जरूरत नहीं है। जिस उम्र में और जब यह तुम्हें मिलेगा, आप महक उठेंगें। 'थ्री ईडियट' का रेंचो (आमिर) याद है न? वह अपने काम में मशगूल रहता है और अंत में करीना विवाह के मंडप तक पहुंच जाती है, इसके बावजूद दोनों मिल जाते हैं। प्रेम ऐसा ही होता है, इसके लिए बहुत ज्यादा गंभीर न बनें, सहज बनें।

वीरेंद्र बहादुर सिंह 
जेड-436ए, सेक्टर-12,