Friday, May 27, 2022

रिजल्ट हाईस्कूल का

 हाईस्कूल_का_रिजल्ट_तो_हमारे_जमाने_में_ही_आता_था... ये जमाना गुजर गया ।अब बच्चो के no 95% से भी ऊपर आने पर भी कुछ नही आता ओर उस जमाने के 36 % वाला भी आज की फौज को पढ़ा रहा है

रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूँछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था।
दसवीं का बोर्ड...बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहाँ पहुँचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे। जो हिम्मत करके पहुँचते, उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते,"अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं" !!
रही-सही कसर हाईस्कूल में पंचवर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते..." भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो...
और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं,सो एक दिन पहले ही शहर के दो- तीन हीरो (ये अक्सर दो पंच वर्षीय योजना वाले होते थे) अपनी हीरो स्प्लेंडर या यामहा में शहर चले जाते। फिर आधी रात को आवाज सुनाई देती..."रिजल्ट-रिजल्ट"
पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले #अखबार को कमर में खोंसकर उनमें से एक किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से नम्बर पूछा जाता और रिजल्ट सुनाया जाता...पाँच हजार एक सौ तिरासी ...फेल, चौरासी..फेल, पिचासी..फेल, छियासी..सप्लीमेंट्री !!
कोई मुरव्वत नहीं..पूरे मुहल्ले के सामने बेइज्जती।
रिजल्ट दिखाने की फीस भी डिवीजन से तय होती थी,लेकिन फेल होने वालों के लिए ये सेवा पूर्णतया निशुल्क होती।
जो पास हो जाता, उसे ऊपर जाकर अपना नम्बर देखने की अनुमति होती। टोर्च की लाइट में प्रवेश-पत्र से मिलाकर नम्बर पक्का किया जाता, और फिर 10, 20 या 50 रुपये का पेमेंट कर पिता-पुत्र एवरेस्ट शिखर आरोहण करने के गर्व के साथ नीचे उतरते।
जिनका नम्बर अखबार में नहीं होता उनके परिजन अपने बच्चे को कुछ ऐसे ढाँढस बँधाते... अरे, कुम्भ का मेला जो क्या है, जो बारह साल में आएगा, अगले साल फिर दे देना एग्जाम...
पूरे मोहल्ले में रतजगा होता।चाय के दौर के साथ चर्चाएं चलती, अरे ... फलाने के लड़के ने तो पहली बार में ही ...
आजकल बच्चों के मार्क्स भी तो #फारेनहाइट में आते हैं।
99.2, 98.6, 98.8.......
और हमारे जमाने में मार्क्स #सेंटीग्रेड में आते थे....37.1, 38.5, 39
हाँ यदि किसी के मार्क्स 50 या उसके ऊपर आ जाते तो लोगों की खुसर -फुसर .....
नकल की होगी ,मेहनत से कहाँ इत्ते मार्क्स आते हैं।
वैसे भी इत्ता पढ़ते तो कभी देखा नहीं । (भले ही बच्चे ने रात रात जगकर आँखें फोड़ी हों)
सच में, रिजल्ट तो हमारे जमाने में ही आता था
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Tuesday, May 24, 2022

समय पर इलाज न कराया जाए तो इस बीमारी से जा सकती है आपकी आंख की रोशनी

 डायबिटिक रेटिनोपैथी  : समय पर इलाज न कराया जाए तो इस बीमारी से जा सकती है आपकी आंख की रोशनी

डॉ. महिपाल सचदेव
डायरेक्टर
सेंटर फॉर साइट नई दिल्ली


डायबिटिक रेटिनोपैथी आंख की एक समस्या है जिसके कारण अंधापन हो सकता है। यह तब होता है जब उच्च रक्त शर्करा आंख के पृश्ठ भाग में यानी रेटिना पर स्थित छोटी रक्त वाहिनियों को क्षतिग्रस्त कर देती है। डायबिटीज वाले सभी लोगों में यह समस्या होने का जोखिम होता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी दोनों आंखों को प्रभावित कर सकती है। हो सकता है कि शुरुआत में आपको कोई लक्षण न दिखें। स्थिति के बिगडने के साथ, रक्त वाहिनियां कमजोर हो जाती हैं और रक्त तथा द्रव्य का रिसाव करती हैं। नई रक्त वाहिनियों के बढने पर वे भी रिसाव करती हैं और आपकी दृष्टि में बाधा उत्पन्न हो सकती है। डायबिटिक रेटिनोपैथी, आंखों की एक ऐसी बीमारी है, जिसकी वजह डायबिटीज होती है। जो मरीज सालों डायबिटीज के मरीज हैं उनमें यह बीमारी भी होने का खतरा कई गुणा ज्यादा होता है। यह आंखों के पर्दे की बीमारी, जिसमें मरीज के रेटिना यानी आंख के पर्दे जहां पर तस्वीर बनती है को प्रभावित कर देता है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसका समय पर इलाज न कराया जाए तो मरीज की रोशनी हमेशा के लिए खत्म हो सकती है। मरीज जितना जल्दी व समय पर इलाज के लिए आते हैं, उनकी आंखों की रोशनी बचने की संभावना उतनी ज्यादा होती है।
जो लोग लंबे समय से डायबिटीज के मरीज उनका डायबिटीज अनकंट्रोल रहता है, उनमें यह बीमारी होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसमें पर्दे में सूजन आ जाती है। कुछ मामले में ब्लीडिंग भी हो जाती है। मरीज को ठीक से दिखाई नहीं देता, धुंधला धुंधला दिखाई देता है। काले-काले धब्बे बन जाते हैं। ज्यादातर मामले में यह बीमारी बिना किसी लक्षण आए ही बढ़ता रहती है और जब मरीज में बीमारी की पहचान होती है, तब उनकी आंखे काफी खराब हो चुकी होती हैं। इसलिए जो डायबिटीज के मरीज हैं, उन्हें साल में एक बार अपने रेटिना की जांच जरूर कराना चाहिए, भले उनके आंखों में कोई लक्षण आए या नहीं आए, जांच जरूर कराना चाहिए।
डायबिटिक रेटिनोपैथी के इलाज की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि रोग किस चरण में है। अगर रोग बिल्कुल ही प्रारंभिक चरण में है तो फिर नियमित रूप से की जाने वाली जांच के माध्यम से सिर्फ  रोग के विकास पर ध्यान देना होता है। अगर रोग विकसित चरण में हो तो फिर नेत्र चिकित्सक यह निर्णय करता है कि मरीज की आंखों के लिए इलाज की कौन सी प्रक्रिया ठीक रहेगी। जहां तक लेजर थेरैपी का सवाल है तो यह प्रक्रिया तब अपनायी जाती है जब रेटिना या आयरिस में अधिक मात्रा में रक्त नलिकाएं बन गई हों। अगर सही समय पर मालूम हो जाए तो डायबिटिक रेटिनोपैथी नामक इस दृष्टि छीन लेने में सक्षम रोग को लेजर उपचार के माध्यम से रोका जा सकता है। वैसे इस बात को खूब अच्छी तरह से याद रखा जाना चाहिए कि लेजर उपचार आंखों को आगे किसी तरह के नुकसान से बचाने के लिए किया जाता है न कि दृष्टि में बेहतरी लाने के लिए। यह बहुत अधिक प्रभावी साबित हुआ है और 80 प्रतिशत मरीजों को अंधा होने से बचा सकता है।
लेजर उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं है। सबसे पहले आंखों में ड्रॉप डाला जाता है। ड्रॉप के सहारे आंखों को सुन्न कर दिया जाता है ताकि मरीज को दर्द का एहसास न हो। मरीज को एक मशीन पर बैठाया जाता है और कॉर्निया पर एक छोटा कॉन्टैक्ट लेंस लगा दिया जाता है। इसके पश्चात् आंखों का लेजर उपचार किया जाता है। डायबिटिक मैक्यूलोपैथी के लेजर उपचार के अंतर्गत मैकुला के क्षेत्र में लेजर स्पॉट का प्रयोग किया जाता है जिससे रक्त नलिकाओं का रिसना रोका जा सके। प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी की स्थिति में रेटिना के एक विस्तश्त इलाके में अधिक व्यापकता के साथ लेजर का उपयोग किया जाता है। इससे असामान्य नई नलिकाओं को गायब करने में सहायता मिलती है। इलाज की इस प्रक्रिया में एक से अधिक बार लेजर का प्रयोग किया जाता है। लेकिन लेजर उपचार के बाद भी नियमित रूप से आंखों की जांच जरूरी है ताकि इलाज के प्रभाव का मूल्यांकन किया जा सके तथा रोग के विकास पर नजर रखी जा सके. 
अगर यह बीमारी समय पर पकड़ ली जाती है, तो बहुत हद तक इसका इलाज है, लेकिन जितनी देरी होती है, इलाज का असर उतना कम होते जाता है। आमतौर पर मरीज को इससे बचने के लिए अपना शुगर लेवल कंट्रोल में रखना चाहिए। अगर मरीज शुगर व बीपी कंट्रोल में रखते हैं, तभी इलाज का असर भी होता है। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य तौर पर दो इलाज हैं। पहला आंखों में इंजेक्शन है, दूसरा लेजर के जरिए इलाज है। लेकिन बीमारी बहुत बिगड़ जाने की स्थिति में सर्जरी ही इसका इलाज है। लेकिन इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज की बीमारी किस स्टेज पर थी। इलाज करने वाले डॉक्टर ही बता सकते हैं कि किस मरीज में कौन सा इलाज का तरीका सही रहेगा। लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है कि जिन्हें डायबिटीज है वो मरीज साल में एक बार अपनी आंखें  की रेटिना का इलाज जरूर कराएं।

Friday, May 20, 2022

दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता खाने से पहले आम को पानी भिगोने को क्यों कहती थीं, जानें इसके पीछे का विज्ञान

 *हमारे दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता खाने से पहले आम को पानी भिगोने को क्यों कहती थीं, जानें इसके पीछे का विज्ञान..*



*आम को खाने से पहले पानी में भिगोने का मकसद सिर्फ फलों की गंदगी और धूल को साफ करना नहीं है. जानें इसके पीछे छिपे छह वैज्ञानिक कारणों के बारे में.*
*गर्मी का मौसम यानि फलों के राजा, आम का मौसम. एक तरफ धूप, पसीना और गर्म हवाओं के बारे में सोचकर मन थोड़ा परेशान होता है, तो वहीं दूसरी तरफ आम के मीठे स्वाद के बारे में सोच कर मन खुश भी हो जाता है.* 
*आम का मौसम आते ही लोग इसके अचार, आमरस, मैंगो शेक सहित कई तरह की रेसिपी बनाने की तैयारी में जुट जाते हैं.लेकिन क्या आपने गौर किया है कि आमतौर पर घरों में हमारी दादी-नानी आम खाने से पहले इसे एक-दो घंटे के लिए पानी में भिगोकर जरूर रखती थीं !*
*उनका मानना था कि ऐसा करने से आम में लगी गंदगी और फसल में इस्तेमाल किए गए केमिकल, दोनों साफ हो जाते हैं. आम को पानी में भिगोकर रखने के पीछे यह तो एक कारण है. आईए विस्तार से जानें ऐसा करने के पीछे और कारणों के बारे में.*
*01. फाइटिक एसिड से छुटकारा*
*फाइटिक एसिड उन पोषक तत्वों (न्यूट्रिएंट्स) में से है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा और बुरा दोनों हो सकता है. इसे एक एंटी पोषक तत्व माना जाता है, जो शरीर को आयरन, जिंक, कैल्शियम और अन्य मिनरल्स को अवशोषित करने से रोकता है, जिसकी वजह से शरीर में मिनरल्स की कमी होने लगती है.*
*जाने माने न्यूट्रिशनिस्ट के अनुसार, आम में फाइटिक एसिड नाम का एक प्राकृतिक मॉलिक्युल होता है, जो कई फलों, सब्जियों और नट्स में भी पाया जाता है. फाइटिक एसिड शरीर में गर्मी पैदा करता है. जब आम को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगोया जाता है, तो इससे फाइटिक एसिड को हटाने में मदद मिलती है.*
*02. आम को भिगोकर खाने से होता है रोगों से बचाव.*
*आम को पानी में भिगोकर रखने से त्वचा की कई समस्याओं जैसे मुंहासे, फुंसियों और सिरदर्द के साथ-साथ कब्ज व आंत से संबंधित अन्य समस्याओं को रोकने में भी मदद मिलती है. आयुर्वेद विशेषज्ञ द्वारा बताया कि फलों को पानी में भिगोकर रखने से उसकी गर्मी बाहर निकल जाती है, जिससे दस्त और मुंहासे जैसी त्वचा की समस्याओं से बचने में मदद मिलती है.*
*03. केमिकल से बचाव.*
*फसल को बचाने के लिए कई तरह से कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है. ये कीटनाशक जहरीले होते हैं और शरीर में जलन, एलर्जी, सिरदर्द जैसी कई परेशानियां पैदा कर सकते हैं. फलों को खाने से पहले, पानी में भिगोकर रखने से इन परेशानियों से बचा जा सकता है. इसके अलावा, ऐसा करने से इसके तने पर लगा दूधिया रस हट जाता है जिसमें फाइटिक एसिड होता है.*
*04. शरीर का सही तापमान बनाए रखना.*
*आम शरीर के तापमान को भी बढ़ाता है, जिससे थर्मोजेनेसिस का उत्पादन होता है. इसलिए, आमों को थोड़ी देर के लिए पानी में भिगोने से उनके थर्मोजेनिक गुण को कम करने में मदद मिलती है.*
*05. आम को भिगोकर खाने से फैट बर्न में मिलती है मदद.*
*आम में ढेर सारे फाइटोकेमिकल्स होते हैं.उन्हें पानी में भिगोने से उनकी कॉन्संट्रेशन कम हो जाती है, जिससे वे ‘नैचुरल फैट बस्टर’ की तरह काम करते हैं*
*आशा है कि आप सभी इसी प्रकार से आम को पानी में भिगोकर ही प्रयोग करते होंगे और अगर नहीं तो फिर आज से ही इसे शुरू किया जाना चाहिए.*

Tuesday, May 17, 2022

जो भी पूरा पढ़ेगा उसे अपने बीते जीवन के कई पुराने सुहाने पल अवश्य याद आयेंगे

 एक जमाना था...


खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे... 


उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था,
🤪 पास/नापास यही हमको मालूम था... *%* से हमारा कभी भी संबंध ही नहीं था...
😛 ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको ढपोर शंख समझा जा सकता था...
🤣🤣🤣
किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं ऐसी हमारी धारणाएं थी...
☺️☺️ कपड़े की थैली में...बस्तों में..और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में...
किताब कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी.. .. 
😁 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम...
एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था..... 
🤗  साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी..
क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी और न ही पाठ्यक्रम...
🤪 हमारे माताजी पिताजी को हमारी पढ़ाई  बोझ है..
ऐसा कभी  लगा ही नहीं....  
😞  किसी एक दोस्त को साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी....
इस तरह हम ना जाने कितना घूमे होंगे....

🥸😎 स्कूल में मास्टर जी के हाथ से मार खाना, पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना, और कान लाल होने तक मरोड़े जाते वक्त हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था.... सही बोले तो ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था...
🧐😝  घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनंदिन जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी.....

मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे... 
मार खाने वाला इसलिए क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं और मारने वाला  इसलिए कि आज फिर हाथ धो लिए 😀......

😜 बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है... 

😁 हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने कभी दी भी नहीं....
.इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं....साल में कभी-कभार दो चार बार सेव मिक्सचर मुरमुरे का भेल, गोली टॉफी खा लिया तो बहुत होता था......उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे.....
😲 छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे ..
🥱 दिवाली में लगी पटाखों की लड़ी को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा...

😁  हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको आई लव यू कहना ही नहीं आता था...
😌 आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और टाॅन्ट खाते हुए......
और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है..किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला कि नहीं..क्या पता.. 
😀 स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की  दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है.....
वह दोस्त कहां खो गए , वह बेर वाली कहां खो गई....
वह चूरन बेचने वाली कहां खो गई...पता नहीं.. 

😇  हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है...

🙃 कपड़ों में सलवटें ना पड़ने देना और रिश्तों में औपचारिकता का पालन करना हमें जमा ही नहीं......
सुबह का खाना और रात का खाना इसके सिवा टिफिन में अखबार में लपेट कर रोटी ले जाने का सुख क्या है, आजकल के बच्चों को पता ही नही  ...
😀 हम अपने नसीब को दोष नहीं देते....जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं और यही सोचते हैं....और यही सोच हमें जीने में मदद कर रही है.. जो जीवन हमने जिया...उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती ,,,,,,,,

😌  हम अच्छे थे या बुरे थे नहीं मालूम , पर हमारा भी एक जमाना था

🙏 और Most importantly , आज संकोच से निकलकर , दिल से अपने साक्षात देवी _देवता तुल्य , प्रात स्मरणीय , माता  _ पिता , भाई एवं बहन को कहना चाहता हूं कि मैं आपके अतुल्य लाड, प्यार , आशीर्वाद , लालन पालन व दिए गए संस्कारो का ऋणी हूं 🙏,
🙏🏻☺😊
एक बात तो तय मानिए को जो भी👆🏻 पूरा पढ़ेगा उसे अपने बीते जीवन के कई पुराने सुहाने पल अवश्य याद आयेंगे।🙏🏻