Wednesday, June 29, 2022

कर्मप्रधान विश्व रचि राखा

दुर्योधन ने एक अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी।


महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया।

भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा...।

भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब-तक सब देख नहीं लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था।

धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका।

दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला।

द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्म को सबसे अधिक प्रेम करते थे, तो कृष्ण ने उन्ही के हाथों पितामह को निर्मम मृत्यु दिलाई।

अर्जुन रोते रहे, पर तीर चलाते रहे... क्या लगता है, अपने ही हाथों अपने अभिभावकों, भाइयों की हत्या करने की ग्लानि से अर्जुन कभी मुक्त हुए होंगे क्या ? नहीं... वे जीवन भर तड़पे होंगे। यही उनका दण्ड था।

युधिष्ठिर ने स्त्री को दाव पर लगाया, तो उन्हें भी दण्ड मिला। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ने वाले युधिष्ठिर ने युद्धभूमि में झूठ बोला, और उसी झूठ के कारण उनके गुरु की हत्या हुई। यह एक झूठ उनके सारे सत्यों पर भारी रहा... धर्मराज के लिए इससे बड़ा दण्ड क्या होगा ?

दुर्योधन को गदायुद्ध सिखाया था स्वयं बलराम ने। एक अधर्मी को गदायुद्ध की शिक्षा देने का दण्ड बलराम को भी मिला। उनके सामने उनके प्रिय दुर्योधन का वध हुआ और वे चाह कर भी कुछ न कर सके...

उस युग में दो योद्धा ऐसे थे जो अकेले सबको दण्ड दे सकते थे, कृष्ण और महात्मा बर्बरीक। पर कृष्ण ने ऐसे कुकर्मियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने तक से इनकार कर दिया, और बर्बरीक को युद्ध में उतरने से ही रोक दिया।

लोग पूछते हैं कि बर्बरीक का वध क्यों हुआ? यदि बर्बरीक का बध नहीं हुआ होता तो द्रौपदी के अपराधियों को यथोचित दण्ड नहीं मिल पाता। कृष्ण युद्धभूमि में विजय और पराजय तय करने के लिए नहीं उतरे थे, कृष्ण इन अपराधियों को दण्ड दिलाने के लिए ही कुरुक्षेत्र में उतरे थे।

कुछ लोगों ने कर्ण का बड़ा महिमामण्डन किया है। पर सुनिए! कर्ण कितना भी बड़ा योद्धा क्यों न रहा हो, कितना भी बड़ा दानी क्यों न रहा हो, एक स्त्री के वस्त्र-हरण में सहयोग का पाप इतना बड़ा है कि उसके समक्ष सारे पुण्य छोटे पड़ जाएंगे। 

स्त्री कोई वस्तु नहीं कि उसे दांव पर लगाया जाय। कृष्ण के युग में दो स्त्रियों को बाल से पकड़ कर घसीटा गया।

देवकी के बाल पकड़े कंस ने, और द्रौपदी के बाल पकड़े दु:शासन ने। श्रीकृष्ण ने स्वयं दोनों के अपराधियों का समूल नाश किया। किसी स्त्री के अपमान का दण्ड  अपराधी के समूल नाश से ही पूरा होता है, भले वह अपराधी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ही क्यों न हो...।

*कर्म करते समय सदैव सचेत रहें क्योंकि कर्म फल कभी पीछा नहीं छोड़ते..!!*

पूजा अर्चना में वर्जित काम


१) गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं
२) देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं
३) शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं
४) विष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं
५) दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें
६) मंदिर में तीन गणेश मूर्ति न रखें
७) तुलसी पत्र चबाकर न खाएं
८) द्वार पर जूते चप्पल उल्टे न रखें
९) दर्शन करके बापस लौटते समय घंटा न बजाएं
१०) एक हाथ से आरती नहीं लेना चाहिए
११) ब्राह्मण को बिना आसन बिठाना नहीं चाहिए
१२) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम वर्जित है
१३) बिना दक्षिणा ज्योतिषी से प्रश्न नहीं पूछना चाहिए
१४) घर में पूजा करने अंगूठे से बड़ा शिवलिंग न रखें
१५) तुलसी पेड़ में शिवलिंग किसी भी स्थान पर न हो
१६) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श नहीं करना है
१७) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल नहीं फोडना है
१८) रजस्वला स्त्री का मंदिर प्रवेश वर्जित है
१९) परिवार में सूतक हो तो पूजा प्रतिमा स्पर्श न करें
२०) शिव जी की पूरी परिक्रमा नहीं किया जाता
२१) शिव लिंग से बहते जल को लांघना नहीं चाहिए
२२) एक हाथ से प्रणाम न करें
२३) दूसरे के दीपक में अपना दीपक जलाना नहीं चाहिए
२४.१)चरणामृत लेते समय दायें हाथ के नीचे एक नैपकीन रखें ताकि एक बूंद भी नीचे न गिरे 
२४.२) चरणामृत पीकर हाथों को शिर या शिखा पर न पोछें बल्कि आंखों पर लगायें शिखा पर गायत्री का निवास होता है उसे अपवित्र न करें
२५) देवताओं को लोभान या लोभान की अगरबत्ती का धूप न करें
२६) स्त्री द्वारा हनुमानजी शनिदेव को स्पर्श वर्जित है
२७) कंवारी कन्याओं से पैर पडवाना पाप है
२८) मंदिर परिसर में स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग दें
२९) मंदिर में भीड़ होने पर  लाईन पर लगे हुए भगवन्नामोच्चारण करते रहें एवं अपने क्रम से ही  अग्रसर होते रहें
३0) शराबी का भैरव के अलावा अन्य मंदिर प्रवेश वर्जित है
३१) मंदिर में प्रवेश के समय पहले दाहिना पैर और निकास के समय बाया पांव रखना चाहिए
३२)घंटी को इतनी जोर से न बजायें कि उससे कर्कश ध्वनि उत्पन्न हो
३४)हो सके तो मंदिर जाने के लिए एक जोड़ी वस्त्र अलग ही रखें
३५) मंदिर अगर ज्यादा दूर नहीं है तो बिना जूते चप्पल के ही पैदल जाना चाहिए
३६) मंदिर में भगवान के दर्शन खुले नेत्रों से करें और मंदिर से खड़े खड़े वापिस नहीं हों,दो मिनट बैठकर भगवान के रूप माधुर्य का दर्शन लाभ लें
३७) आरती लेने अथवा दीपक का स्पर्श करने के बाद हस्तप्रक्षालन अवश्य करें
इन सभी बताई गई बातें हमारे ऋषि मुनियों से परंपरागत रूप से प्राप्त हुई है। 

🚩जय सनातन धर्म

शुरुआती कक्षाओं के बच्चों की शिक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण दौर से निपटने के लिए करना होगा आवश्यक उपाय

 शुरुआती कक्षाओं के बच्चों की शिक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण दौर से निपटने के लिए करना होगा आवश्यक उपाय –

एक लम्बे समय बाद फिर से स्कूल खुल गये गए है l बच्चों की चहल स्कूलों में बढ़ने लगी है l स्कूल परिसर में फिर से रौनक आने लगी हैl मासूम बच्चे फिर विद्या के मंदिर के पुजारी बनने की तैयारी से चल पड़े है l बच्चों के माता-पिता उनके सपनो को सजाने फिर से अपनी गाढ़ी कमाई को शिक्षा के लिए नौछावर करने के लिए निकल पड़े है l हर माता-पिता का एक सपना होता है कि उसका बच्चा उनसे भी अच्छा पद पर आसीन होकर जीवन के अच्छे से अच्छे मुकाम हासिल करे l इसके लिए वह हर संभव पढ़ाने की कोशिश करते है; और अपने बच्चों के भविष्य को सवारने के लिए शिक्षक रुपी गुरु के हाथो सौप देते है l गुरु की महिमा से हम सब परिचित है; गुरु बच्चों की कमजोर बुद्धि को कुशाग्र करने में अपना पूरा हुनर लगा देता है, तब कही बच्चे भविष्य के लिए सभ्य समाज में अपने कुशल नेतृत्व से रहने व सभी जीवन जीने के लिए तैयार हो पाते है l

अभी कोरोनाकाल के बाद एक लम्बे समय बाद स्कूल अपने पूर्व गति से पुनः लगने के लिए तैयार है l हर स्कूल ने बच्चों को पढ़ाने का एक माइंडमेप बना लिया है l दो वर्षों में सरकार बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने लिए अपनी कई तरकीब लगा चुकी है l इसके लिए शिक्षको को समय-समय पर उचित निर्देश एवं प्रशिक्षण भी दिया गया l शिक्षको ने बच्चों को पढ़ाई की घुट्टी पिलाने का काफी प्रयास किया; इस घुट्टी का कितना असर हुआ ये हम सभी से छुपा नहीं है l समय परिस्थिति अच्छी से अच्छी योजना पर पानी फेरने या सफल बनाने के लिए काफी होती है l कोरोना काल ने बच्चों को सीखने की प्रवर्ती पर काफी प्रभाव डाला है l हम सभी पर बच्चों की सही स्थिति में लाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है; केवल शिक्षक के भरोसे बच्चों के भविष्य की कल्पना करना हमारी नासमझी हो सकती है, इस मिशन में हमें अपना पूर्ण समर्थन देना होगा l  

मार्च 2019 की कालावधि में कोरोना ने जैसे ही दस्तक दी सबसे पहले स्कूल को बंद किया गया और वही से बच्चो के सीखने की चाहत में परिवर्तन आना प्रारंभ हो गया l बच्चे को घर में रहने को मिला एवं स्वतंत्र तरीको से खेलने के लिए मिला; सारा दिन बस एक काम खेल..खेल..खेल..l अभिभावकों का बच्चों को ज्यादा दखल भी बच्चों में विपरीत प्रभाव का कारण बना l बहुत से अभिभावक बच्चो के लिए दुश्मन इसलिए बन गए कि उन्होंने बच्चों को पढने के लिए दबाव डाला l

शिक्षक को करना होगा उचित प्रबंधन –

बच्चे एक गीली मिटटी के सामान होते है उसे जिस आकर में गढ़े वह वही आकर ले लेता है l इस गीली  मिट्टी रूपी बच्चो को सही दिशा में ले जाने, सही आकर देने का काम शिक्षक करते है l बच्चों को सही समय पर सही ज्ञान देना शिक्षक की जिम्मेदारी है l शिक्षक को अपनी पूर्ण जिम्मेदारी से यह कर्तव्य निभाना होगा l एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट 2018 के आकडे बताते है कि कक्षा पाँचवी के आधे से अधिक बच्चे कक्षा दूसरी के स्तर का पाठ भी नहीं पढ़ पाते, यही स्थिति उनके गणित स्तर का भी है l प्रश्न यह उठता है कि सरकार शिक्षा के लिए इतना पैसा खर्च कर रही है तो उसके एवज में बच्चों को पढ़ना यानि कक्षा अनुसार समझ क्यों विकसित नहीं हो पा रही है ! क्या हम यह कह सकते है कि हमारे शिक्षकगण बच्चों को उनकी कक्षा के अनुसार दक्षता देने के लिए तैयार नहीं है; या फिर हमारी शिक्षा प्रणाली में ही कही कमी है l जो भी हो परन्तु इस प्रणाली को सुधारने के लिए सरकार के साथ-साथ जन समुदाय को भी अपनी भूमिका अदा करनी होगी l

शिक्षा के लिए सामुदायिक पहल जरुरी –

सामुदायिक पहल से शिक्षा के स्तर में सुधार करने की पहल की जा सकती है l कोरोनाकाल में शिक्षा का बेसिक ढ़ांचा में बहुत परिवर्तन आया है l ऑनलाइन शिक्षा को लेकर सरकार गंभीरता से कार्य कर रही थी ऑनलाइन शिक्षा की पहुँच गाँव-गाँव तक पहुचने का जो जिम्मा सरकार ने लिया था; कुछ हद तक तो पूरा हुआ है परन्तु अभी भी बहुत से ग्रामीण क्षेत्र ऑनलाइन शिक्षा से पूरी तरह नहीं जुड़ पाए है l शिक्षा को उत्तम धुरी प्रदान करने के लिए जन सामुदायिक सहयोग जरुरी है l स्कूल के साथ –साथ बच्चों को घर में एक उचित माहौल देने का प्रयास करना होगा l अभिभावको को बच्चों के शिक्षकों से मिलाकर बच्चों के शैक्षिक विकास के बारे में निरंतर चर्चा करते रहना चाहिए, जिससे शिक्षक-अभिभावक बच्चों की उन्नति के लिए एक सेतु का कम कर सके l

शुरूआती कक्षाओं के बच्चों लिए प्रारंभ से पढ़ाई की शुरुआत करने की आवश्यकता –

पिछले 2 वर्षों से कोरोनाकाल के कारण शुरूआती कक्षा में बच्चों का दाखिला स्कूल में तो हो गया था परन्तु बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जा पाए l उन्होंने स्कूल में पढ़ाई का कोई अनुभव नहीं लिया l केवल स्कूल में दाखिला हुआ पढ़ाई से केवल सरकारी स्कूल के शिक्षकों का ऑनलाइन क्लास के नाम पर व्हाट्सएप्प पर भेजी गई सामगी पहुँचाई गई, उनको पुस्तक एवं अन्य सामग्री, असाइनमेंट के माध्यम से जुड़े रहे, परन्तु यह दूरस्त माध्यम था l छोटे बच्चों को दूरस्त शिक्षा से पढ़ाई करना कितना कारगर हुआ यह अभी स्कूल खुलने के बाद पता चलेगा l स्कूल में शुरूआती कक्षा की शुरुआत प्रारंभिक शिक्षा से ही करनी पड़ेगी l बच्चों को वर्णमाला से पढ़ने के स्तर के सुधार को लेकर कार्य प्रारंभ करना होगा l बच्चों को पहले उनका वर्तमान शिक्षा स्तर को जानना होगा तभी उनकी समझ के अनुसार उनको उपचारात्मक शिक्षा प्रदान करना होगा l बच्चों को उनके स्तर अनुसार पढ़ाने की तैयारी करनी होगी न कि उनकी कक्षा के अनुसार l अभी कुछ स्कूलों में बच्चों का यह हाल है कि बच्चों की कक्षा तो आगे बढ़ गयी है किन्तु बच्चे का शिक्षा स्तर अभी कक्षा के अनुसार नहीं बढ़ पाया है l सबसे पहले इसी को सुधरने की आवश्यकता है l

पढ़ने का कौशल आगे की शिक्षा के लिए है जरुरी –

बच्चों को अपनी कक्षा की पुस्तक यदि समझ के साथ पढ़ना आ गया तो वह अपनी समझ से आगे की शिक्षा हासिल करने में सक्षम हो जाता है l हम सबने देखा होगा कि यदि पढ़ना आ गया तो बहुत से कठिन अवधारणाओं को समझना आसान हो जाता है l यही बच्चा को पढ़ना ही नहीं आ रहा और उनको कक्षा के पाठ्यक्रम से जोड़कर पढ़ाया जाए तो इस अवधारणा को समझना बच्चों के लिए बहुत कठिन हो जाता है l बच्चा केवल उपरी मन से पाठ्यक्रम के साथ चलता है समझ के साथ नही l इसलिए बच्चों को उसके समझ के स्तर को और अधिक मजबूत करने के लिए कार्य करना अतिआवश्यक हो जाता है l

(यह लेखक के निजी विचार है ) 


लेखक/ विचारक 

श्याम कुमार कोलारे


मिट्टी के घर खिलौनों की दुनिया

 खिलौनों की दुनिया के वो मिट्टी के घर याद आते हैं।


-प्रियंका 'सौरभ'

सदियों से मिटटी के घर बनाने की जो परम्परा चली आ रही है; भारत में 118 मिलियन घरों में से 65 मिलियन मिट्टी के घर हैं? यह भी सच है कि कई लोग अपने द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों के लिए मिट्टी के घरों को पसंद करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि हम शहरी केंद्रों में भी एक छोटा बदलाव देख रहे हैं, घर के मालिकों को लगता है कि उनके दादा-दादी के पास यह सही था। मिट्‌टी की झोपड़ी... फूस या खपरैल की छत। अगर यह विवरण सुनकर आप भारत के किसी दूर-दराज के पिछड़े गांव की तस्वीर दिमाग में बना रहे हैं तो आप गलत हैं। बदलते दौर में यह तस्वीर अब अमेरिका जैसे विकसित देश के मॉन्टेना या एरिजोना जैसे राज्यों में आपको दिख सकती है।  कोरोनाकाल के बाद लोगों को खर्च कम करने के साथ ही पर्यावरण की भी चिंता हुई। इसकी वजह से कई लोग वैकल्पिक आवासीय प्रणालियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

आज के आधुनिक समय में सभी लोग सीमेंट से बने घर में रहना पसंद करते हैं और मिट्टी से बने घर में किसी को भी रहना अच्छा नहीं लगता है। अब तो ज्यादातर गाँव में ही मिट्टी से बने घर देखने को मिलते हैं नहीं तो शहर में तो हर कोई सीमेंट से बने घर में ही रहता है। वास्तु के अनुसार हर व्यक्ति को मिट्टी या भूमि तत्व के पास ही रहना चाहिए। मिट्टी से बनी वस्तुएं सौभाग्य और समृद्धिकारक होती हैं। पहले लोग मिटटी के ही मकान बनाते थे, इसका यह मतलब नहीं है कि कम पैसो के लागत के चलते लोग मिट्टी का मकान बनाते थे। मिट्टी सस्ती तो जरूर होती हैं, लेकिन मिट्टी के मकान बनाने पीछे कुछ कारण भी है, इसमें हमें शुद्ध हवा मिलती हैं । यहाँ तक की मिट्टी के मकान में अंदर का तापमान सामान्य होता है। मिट्टी के मकान हमें और पर्यावरण दोनों को लाभ पहुंचाते हैं। मिट्टी के घरों को टिकाऊ, कम लागत और सबसे महत्वपूर्ण, बायोडिग्रेडेबल होने के लिए जाना जाता है।

पहुंच में आसानी और कम लागत से, सीमेंट या स्टील के मुकाबले मिट्टी के घरों में कई फायदे हैं। आधुनिक सामग्रियों के विपरीत, वे दशकों के बाद भी स्थिर रहते हैं, और जब इन्हें नष्ट किया जाता है, तो कार्बन उत्सर्जन उत्पन्न नहीं होता है। मिट्टी की ईंट, यदि स्थिर हो जाती है, तो दीवारों और फर्शों के लिए एक ठोस और टिकाऊ निर्माण सामग्री साबित हो सकती है। यह भूकंप या बाढ़ के दौरान भी दरारें विकसित किए बिना सदियों तक रह सकता है। भारत के गाँव भी तीव्र गति से आधुनिकीकरण का शिकार हो रहें है। पिछले दशक में, समय की कसौटी पर खरे उतरे बहुत से घरों को वर्तमान पीढ़ियों द्वारा स्वेच्छा से नीचे गिरा दिया गया है, उनके पीछे के समृद्ध ज्ञान से अनजान, कम आंका गया और अंततः उन्हें तथाकथित आधुनिक घरों का शिकार होने दिया गया।

'मिट्टी के घर करीब 200 साल तक रह सकते हैं। इनमें पीढ़ी दर पीढ़ी लोग रह सकते हैं। इनके टूटने के बाद भी इनकी सामग्री पुनः इस्तेमाल की जा सकती है।  दूसरी तरफ कंकरीट-सीमेंट के घरों की उम्र करीब 50 साल की होती है। उनके मलबे के निपटान की लागत भी चिंता का विषय है। उसमें भी बहुत ऊर्जा (डीजल) लगती है। सीमेंट और गिट्टी बनाने के लिए हर साल पहाड़ों को नष्ट किया जा रहा है, उन्हें तोड़ा जा रहा है। मिट्टी का घर बनाने के लिए चार बुनियादी निर्माण तकनीकें हैं जो जलवायु परिस्थितियों, स्थान और उसके आकार पर निर्भर करती हैं। इसमें, सिल: मिट्टी, मिट्टी, गोबर, घास, गोमूत्र और चूने के मिश्रण को औजारों, हाथों या पैरों से गूँथकर गांठें बनाई जाती हैं जो अंततः नींव और दीवारों का निर्माण करती हैं।

छत का भार या वजन दीवार पर नहीं, बल्कि लकड़ी के खंभों पर रखा जाता है। मिट्टी के मकान के लिए नीम की लकड़ी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है;उसमें दीमक लगने की संभावना बहुत ही कम होती है। जो कई मायनों में टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल और आपदाओं से सुरक्षित हैं। मिट्टी की दीवारें प्राकृतिक रूप से इंसुलेटेड होती हैं, जिससे घर के अंदर आराम मिलता है। भीषण गर्मियों के दौरान अंदर का तापमान कम होता है, जबकि सर्दियों में मिट्टी की दीवारें अपनी गर्मी से आपको सुकून देती हैं। इसके अलावे छिद्र से भी ठंडी हवा घर में प्रवेश करती हैं। मिट्टी के मकान आज की जरूरत भी हैं, विशेषकर, तब जब सीमेंट-कंकरीट के घर बहुत महंगे बनते हैं, उनमें ऊर्जा की खपत होती है। ऐसे में मिट्टी के घरों से सैकड़ों बेघर लोगों का खुद के मकान का सपना साकार हो सकता है।

यूएन वर्ल्ड कमीशन ने पर्यावरण और विकास को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने भविष्य में ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग करके सस्टेनेबल कंस्ट्रक्शन पर जोर देने की वकालत की है। उनके अनुसार, पुरानी शैली से प्रेरणा लेकर हमें बिना प्रकृति को नुकसान पहुचाएं,  मजबूत और अच्छी इमारतें बनाने पर ध्यान देना होगा। ऐसे कई तरीके हैं, जिन्हें अपनाकर हम एक सस्टेनेबल जीवन जी सकते हैं। ऑर्गेनिक भोजन से लेकर, घर में इस्तेमाल होने वाली चीजों तक, आधुनिक दुनिया में आउट-ऑफ-द-बॉक्स सस्टेनेबल विकल्प ढूंढना, एक नई बात लगती है।

जबकि, सच्चाई तो यह है कि यह कोई नया विकास नहीं है। खासतौर पर सस्टेनेबल आर्किटेक्चर और डिजाइन की बात करें, तो हमारी प्राचीन निर्माण तकनीक ज्यादा कमाल की है, जिससे काफी कुछ सीखा जा सकता है।
-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस