Tuesday, July 19, 2022

भगवान इंद्र के खिलाफ तहसीलदार के पास शिकायत दर्ज

 कानपुर देहात। कानपुर देहात जिले में भोगनीपुर तहसील के मदनपुर गांव में खेतों की जुताई करने वाली महिलाओं ने वर्षा के देवता भगवान इंद्र का आशीर्वाद लेने के लिए पूजा की. महिलाओं ने भौरी की रस्म भी निभाई. जिसमें वे रसोई के विभिन्न उपकरण ले जाती हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करती हैं. एक स्थानीय ज्योतिषी अवनीश दुबे ने कहा, आधुनिक युग में इस प्रथा को लोग अंधविश्वास कह सकते हैं, लेकिन यहां यह एक लोकप्रिय धारणा है कि यदि महिलाएं खेतों में बैल और हल की जगह लेती हैं, तो वर्षा देवता प्रचुर मात्रा में बारिश करते हैं। इस मौसम में बारिश नहीं होने से क्षेत्र के निवासी परेशान हैं और इससे धान की बुवाई में देरी हो रही है. उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में सुमित कुमार यादव नाम के व्यक्ति ने तहसीलदार के पास भगवान इंद्र के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है और बारिश में देरी के लिए उचित कार्रवाई की मांग की है. तहसीलदार ने आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए वरिष्ठ अधिकारियों को शिकायत पर उचित कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं।




Sunday, July 17, 2022

भजन और भोजन

एक भिखारी, एक सेठ के घर के बाहर खड़ा होकर भजन गा रहा था और बदले में खाने को रोटी मांग रहा था।

.
सेठानी काफ़ी देर से उसको कह रही थी.. आ रही हूं..
.
रोटी हाथ मे थी पर फ़िर भी कह रही थी की रुको आ रही हूं. भिखारी भजन गा रहा था और रोटी मांग रहा था।
.
सेठ ये सब देख रहा था , पर समझ नही पा रहा था,
.
आखिर सेठानी से बोला.. रोटी हाथ में लेकर खड़ी हो, वो बाहर मांग रहा हैं, उसे कह रही हो आ रही हूं.. तो उसे रोटी क्यो नही दे रही हो ?
.
सेठानी बोली हां रोटी दूंगी, पर क्या है ना की मुझे उसका भजन बहुत प्यारा लग रहा हैं, अगर उसको रोटी दूंगी तो वो आगे चला जायेगा|
.
मुझे उसका भजन और सुनना हैं..!!
.
यदि प्रार्थना के बाद भी भगवान् आपकी नही सुन रहा हैं तो समझना की उस सेठानी की तरह प्रभु को आपकी प्रार्थना प्यारी लग रही हैं,
.
इसलिये इंतज़ार करो और प्रार्थना करते रहो।
.
जीवन मे कैसा भी दुख और कष्ट आये पर भक्ति मत छोड़िए।
.
क्या कष्ट आता है तो आप भोजन करना छोड देते है?
.
क्या बीमारी आती है तो आप सांस लेना छोड देते हैं?
.
नही ना ?
.
फिर जरा सी तकलीफ़ आने पर आप भक्ति करना क्यों छोड़ देते हो ?
.
कभी भी दो चीज मत छोड़िये.. भजन और भोजन !
.
भोजन छोड़ दोंगे तो ज़िंदा नहीं रहोगे, भजन छोड़ दोंगे तो कहीं के नही रहोगे।
.
सही मायने में भजन ही भोजन है।
.

Saturday, July 16, 2022

भोले बाबा फंसे हैं कीचड़ में

 *भोले बाबा फंसे हैं किचड़ में प्रधान व* 

 *सफाई कर्मी मौज कर रहे हैं वेतन में*


 
ब्लाक व ग्राम पंचायत गोंदलामऊ में नालियों की सफाई न होने के कारण से एक सप्ताह से  धार्मिक स्थल गांव के गंदगी से त्रस्त, वही ग्राम पंचायत गोंदलामऊ के प्रधान व सफाई कर्मी अपने वेतन में मस्त, बात करते हैं वर्तमान सरकार की तो वर्तमान सरकार धार्मिक मुद्दों को बढ़ावा देने में अपनी अहम भूमिका निभाते  हुए नजर आती है,  वही ग्राम पंचायत गोंदलामऊ में  नालियों के  गंदे पानी से भोले बाबा का स्थान डूब रहा किन्तु प्रधान व सफाई कर्मी अपनी दृष्टि का प्रकाश इसपे नहीं केंद्रित कर रहे हैं, अब देखना यही है कि उच्चाधिकारी इसपे क्या एक्सन लेंगे

Wednesday, June 29, 2022

कर्मप्रधान विश्व रचि राखा

दुर्योधन ने एक अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी।


महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया।

भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा...।

भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब-तक सब देख नहीं लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था।

धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका।

दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला।

द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्म को सबसे अधिक प्रेम करते थे, तो कृष्ण ने उन्ही के हाथों पितामह को निर्मम मृत्यु दिलाई।

अर्जुन रोते रहे, पर तीर चलाते रहे... क्या लगता है, अपने ही हाथों अपने अभिभावकों, भाइयों की हत्या करने की ग्लानि से अर्जुन कभी मुक्त हुए होंगे क्या ? नहीं... वे जीवन भर तड़पे होंगे। यही उनका दण्ड था।

युधिष्ठिर ने स्त्री को दाव पर लगाया, तो उन्हें भी दण्ड मिला। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और धर्म का साथ नहीं छोड़ने वाले युधिष्ठिर ने युद्धभूमि में झूठ बोला, और उसी झूठ के कारण उनके गुरु की हत्या हुई। यह एक झूठ उनके सारे सत्यों पर भारी रहा... धर्मराज के लिए इससे बड़ा दण्ड क्या होगा ?

दुर्योधन को गदायुद्ध सिखाया था स्वयं बलराम ने। एक अधर्मी को गदायुद्ध की शिक्षा देने का दण्ड बलराम को भी मिला। उनके सामने उनके प्रिय दुर्योधन का वध हुआ और वे चाह कर भी कुछ न कर सके...

उस युग में दो योद्धा ऐसे थे जो अकेले सबको दण्ड दे सकते थे, कृष्ण और महात्मा बर्बरीक। पर कृष्ण ने ऐसे कुकर्मियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने तक से इनकार कर दिया, और बर्बरीक को युद्ध में उतरने से ही रोक दिया।

लोग पूछते हैं कि बर्बरीक का वध क्यों हुआ? यदि बर्बरीक का बध नहीं हुआ होता तो द्रौपदी के अपराधियों को यथोचित दण्ड नहीं मिल पाता। कृष्ण युद्धभूमि में विजय और पराजय तय करने के लिए नहीं उतरे थे, कृष्ण इन अपराधियों को दण्ड दिलाने के लिए ही कुरुक्षेत्र में उतरे थे।

कुछ लोगों ने कर्ण का बड़ा महिमामण्डन किया है। पर सुनिए! कर्ण कितना भी बड़ा योद्धा क्यों न रहा हो, कितना भी बड़ा दानी क्यों न रहा हो, एक स्त्री के वस्त्र-हरण में सहयोग का पाप इतना बड़ा है कि उसके समक्ष सारे पुण्य छोटे पड़ जाएंगे। 

स्त्री कोई वस्तु नहीं कि उसे दांव पर लगाया जाय। कृष्ण के युग में दो स्त्रियों को बाल से पकड़ कर घसीटा गया।

देवकी के बाल पकड़े कंस ने, और द्रौपदी के बाल पकड़े दु:शासन ने। श्रीकृष्ण ने स्वयं दोनों के अपराधियों का समूल नाश किया। किसी स्त्री के अपमान का दण्ड  अपराधी के समूल नाश से ही पूरा होता है, भले वह अपराधी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ही क्यों न हो...।

*कर्म करते समय सदैव सचेत रहें क्योंकि कर्म फल कभी पीछा नहीं छोड़ते..!!*