Friday, November 24, 2023

बर्बरीक के बाण का असर आज भी

 हरियाणा के हिसार ( वीर बरबरान ) मे एक पीपल का पेड़ है जिसको वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण भगवान के कहने पर अपने वाणों से छेदन किया था ! आज भी इन पत्तो में छेद है ! सबसे बड़ी बात ये है की जब इस पेड़ में नए पत्ते निकलते है तो उनमे भी छेद होता है ! सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि, इसके बीज से उत्पन्न नए पेड़ के भी पत्तों में छेद होता है ! यह पीपल का पेड़ महाभारत काल की घटना का प्रत्यक्ष प्रमाण है और जो लोग रामायण और महाभारत जैसी घटनाओं को काल्पनिक करार देते है एवं यह कहते है कि इन घटनाओं को मानने वाले लोग काल्पनिक दुनिया में जीते हैं, उन लोगों के लिए यह किसी जोरदार तमाचे से कम नहीं होगा...जिन्होंने थोड़ी भी महाभारत पढ़ी होगी उन्हें वीर बर्बरीक वाला प्रसंग जरूर याद होगा ! उस प्रसंग में हुआ कुछ यूँ था कि महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था और भगवान श्री कृष्ण युद्ध में पाण्डवों के साथ थे ! जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है, लेकिन जीत पाण्डवों की ही होगी..ऐसे समय में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया कि युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा ! इसके लिए, बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किये थे ! परन्तु, भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वे ब्राह्मण का वेष धारण करके बर्बरीक के मार्ग में आ गये...श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उत्तेजित करने हेतु उसका मजाक उड़ाया कि वह तीन बाणों से भला क्या युद्घ लड़ेगा ? कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण है और, वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है तथा, सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा ! इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं अगर, अपने बाण से उसके सभी पत्तों को छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि तुम एक बाण से युद्ध का परिणाम बदल सकते हो इस पर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके भगवान का स्मरण किया और बाण चला दिया ! जिससे, पेड़ पर लगे पत्तों के अलावा नीचे गिरे पत्तों में भी छेद हो गया ! इसके बाद वो दिव्य बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा क्योंकि, एक पत्ता भगवान ने अपने पैरों के नीचे दबाकर रखा था...भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि धर्मरक्षा के लिए इस युद्ध में विजय पाण्डवों की होनी चाहिए और, माता को दिये वचन के अनुसार अगर बर्बरीक कौरवों की ओर से लड़ेगा तो अधर्म की जीत हो जाएगी ! इसलिए, इस अनिष्ट को रोकने के लिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की..जब बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया ! तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया ! जिससे बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है और, बर्बरीक ने ब्राह्मण से वास्तविक परिचय माँगा तब श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वह कृष्ण हैं...सच जानने के बाद भी बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह उनके विराट रूप को देखना चाहता है तथा, महाभारत युद्ध को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है ! भगवान ने बर्बरीक की इच्छा पूरी करते हुए, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया जहाँ से बर्बरीक के सिर ने पूरा युद्घ देखा..ये सारी घटना आधुनिक वीर बरबरान नामक जगह पर हुई थी जो हरियाणा के हिसार जिले में हैं ! अब ये जाहिर सी बात है कि इस जगह का नाम वीर बरबरान वीर बर्बरीक के नाम पर ही पड़ा है... खाटू श्याम जी जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं,हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा

Thursday, November 23, 2023

प्रबोधिनी एकादशी

 कार्तिक शुक्ल एकादशी,आज प्रबोधिनी एकादशी है। भगवान श्रीहरि आज अपनी योगनिद्रा से जाएंगे...सभी सनातन प्रेमियों को अनंत शुभकामनाएं।



🌷 *देवउठी-प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा* 🌷
*भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे अर्जुन ! मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा : ‘हे पिता ! ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, आप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें ।’
ब्रह्माजी बोले : हे पुत्र ! जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत से मिल जाती है । इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक बुरे कर्म क्षणभर में नष्ट हो जाते है । हे पुत्र ! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन थोड़ा भी पुण्य करते हैं, उनका वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृ विष्णुलोक में जाते हैं । ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं ।
हे नारद ! मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता है, वह धनवान, योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, क्योंकि एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है ।
इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ । यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।’ - श्रीमद्भगवदगीता ) आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य मिलता है ।
इसलिए हे नारद ! तुमको भी विधिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । इस एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए । रात्रि को भगवान के समीप गीत, नृत्य, कथा-कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए ।
‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन पुष्प, अगर, धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अर्ध्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है ।*
जो गुलाब के पुष्प से, बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं । इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।
जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए । जो मनुष्य ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।

Tuesday, November 21, 2023

कालगणना

आज मैं आपको मनुष्यों के समयसीमा और देवताओं के समयसीमा में अंतर बताने का प्रयास करूंगा। हालांकि इसका मेरे पास कोई शास्त्र प्रमाण नहीं है परन्तु शास्त्रों में वर्णित समय व हमारे द्वारा बोले गए संकल्प का आधार लेकर ही प्रयास किया है।


घंटा मिनट वैज्ञानिक समय है, इसलिए मैं इसी से शुरुआत करूँगा। जैसा कि आप जानते हैं, 60 सेकेंड का 1 मिनिट, 60 मिनिट का 1 घंटा होता है दिन और रात्रि को 24 घंटे में बांटा गया है। 3 घंटे का 1 प्रहर होता है इसलिए 4 प्रहर रात्रि के और 4 प्रहर दिन के होते हैं। 7 दिन को सप्ताह और 15 दिन को पक्ष बताया गया है। दो पक्ष का 1 माह और 12 माह का 1 वर्ष होता है। 360 वर्ष का 1 दिव्यवर्ष यानी देवताओं का एक वर्ष होता है।
जिस प्रकार 30 दिन को महीना कहते हैं 12 महीने को वर्ष कहते हैं उसी प्रकार 432000 वर्ष को कलियुग कहा गया। दो कलियुग मिलकर 1 द्वापरयुग होता है अर्थात द्वापर 864000 वर्ष का होता है। इसी प्रकार से 17280000 वर्ष का त्रेता युग और 3456000 वर्ष का सतयुग होता है।

 

Sunday, November 19, 2023

"मां का आँचल"

"हे भगवान! दो महीने के लिए मुझे सहनशक्ति देना

रात - दिन की रोका टोकी और जली कटी सुनने की हिम्मत देना"... पति हिमांशु के साथ गांव से आई अपनी रौबीली सास और ससुर को देखकर निशा ने ईश्वर से प्रार्थना की और चेहरे पर जूठी मुस्कान के साथ आवभगत करने लगी.... सरला जी यूपी के एक गांव की सरपंच है और बहुत ही दबंग प्रवृति की महिला भी, इकलौते बेटे को पढ़ाई के लिए दिल्ली शहर में भेजा और उसकी ही पसंद की लड़की से शादी भी करा दी...
सरला जी अपने पति शंकर जी के साथ अपनी दुनिया में व्यस्त रहती और साल में एक बार ही दोनों पति पत्नी,
दो महीने के लिए अपने बेटे के साथ रहने आते, वैसे हिमांशु भी गांव जाता रहता था, लेकिन दो साल से शादी के बाद कम ही जा पा रहा था, पर सरला जी को कोई शिकायत नहीं थी, वो अपने पति के साथ बेटे के यहां रहने आ जाती...
लेकिन उनकी रोक टोक और बिन मांगे दी गई सलाहों से शहर के परिवेश में पली बढ़ी बहू निशा को बहुत कौफ्त होती खैर बेचारी "कुछ दिनों की ही तो बात है" सोचकर झेल लेती.... आज हिमांशु के कुछ दोस्त खाने पर आने वाले है तो निशा शाम से ही अपनी कामवाली की सहायता से खाना बनाने में लगी हुई है और इधर आदत से मजबूर सरला जी शुरू हो गई..."हम तो आज भी अकेले दस लोगों का खाना बना ले और ये आजकल की बहुएं चार लोगों का भी ना बना पा रही".... निशा को गुस्सा तो बहुत आया पर सास को देखकर हिम्मत पस्त हो गई.... घर में मां पिताजी की मौजूदगी की वजह से हिमांशु अपने दोस्तों के साथ बाहर से ही मदिरापान करके आया था और आते ही निशा को खाना लगाने के लिए कहा... सरला जी अपने पति के साथ पहले ही खा पीकर कमरे में आराम कर रही थी और हिमांशु भी अपने दोस्तों के साथ ड्राइंग रूम में गप्पे मारने लगा...
निशा खाना गर्म कर रही थी की तभी हिमांशु का एक दोस्त रसोई में पानी लेने आया और अपनी नशीली और गंदी निगाहों से निशा को घूरते हुए बोला, कहो तो हम कुछ मदद कर दे आपकी भाभी जान, इन नाजुक हाथों को भी कुछ आराम मिल जायेगा और कहकर निशा का हाथ सहलाने लगा... निशा ने विरोध के लिए मुंह खोला ही था की "तड़ाक" की आवाज आई, देखा सरला जी उस आशिक का भूत उतारने में लगी हुई है साथ ही उसे पकड़कर घसीटते हुए हिमांशु और उसके अन्य दोस्तों के पास ला पटका और गुस्से से दहाड़ती हुई बोली...
मेरी बहू के साथ बदतमीजी करने की तेरी हिम्मत कैसे हुई वो भी मेरे ही घर में, और तू बेशर्म, तूने पीना भी शुरू कर दिया और पीकर ऐसे दोस्तों को घर कैसे लेकर आया जिन्हे
किसी महिला से कैसे पेश आना चाहिए इतना भी नही पता, सरला जी का रौद्र रूप देखकर सारे दोस्त चुपचाप खिसक लिए...हिमांशु को तो जैसे सांप ही सूंघ गया, कुछ दिनों की दोस्ती पर भरोसा करके इस तरह के लोगों को घर में लाना कितना घातक हो सकता है, ये तो सोचा ही ना था...
अपनी मां से माफी मांगते हुए हिमांशु ने फिर कभी शराब नहीं पीने का वादा किया और निशा को भी सॉरी बोला...
निशा भी दौड़कर अपनी सास के गले लग गई और आज उसे उनमें जली कटी सुनाने वाली महिला की नहीं बल्कि फिक्र करने वाली मां की मूरत नजर आ रही है, जिसके आंचल में वो सुरक्षित है