Sunday, December 10, 2023

छोटे लोग

ऑफिस जाने के लिए मैं घर से निकला, तो देखा, कार पंचर थी. मुझे बेहद झुंझलाहट हुई. ठंड की वजह से आज मैं पहले ही लेट हो गया था. 11 बजे ऑफिस में एक आवश्यक मीटिंग थी, उस पर यह कार में पंचर… मैं सोसायटी के गेट पर आ खड़ा हुआ, सोचा टैक्सी बुला लूं. तभी सामने से ऑटो आता दिखाई दिया. उसे हाथ से रुकने का संकेत देते हुए मन में हिचकिचाहट-सी महसूस हुई.

इतनी बड़ी कंपनी का जनरल मैनेजर और ऑटो से ऑफिस जाए, किंतु इस समय विवशता थी. मीटिंग में डायरेक्टर भी सम्मलित होनेवाले थे. देर से पहुंचा, तो इम्प्रैशन ख़राब होने का डर था. ऑटो रुका. कंपनी का नाम बताकर मैं फुरती से उसमें बैठ गया. थोड़ी दूर पहुंचकर यकायक ऑटोवाले ने ब्रेक लगा दिए.
‘‘अरे क्या हुआ? रुक क्यों गए?" मैंने पूछा.
‘‘एक मिनट साहब, वह सोसायटी के गेट पर जो सज्जन खड़े हैं, उन्हें थोड़ी दूर पर छोड़ना है.’’ ऑटो चालक ने विनम्रता से कहा.
‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते.’’ मैं क्रोध में चिल्लाया.
‘‘एक तो मुझे देर हो रही है, दूसरे मैं पूरे ऑटो के पैसे दे रहा हूं, फिर क्यों किसी के साथ सीट शेयर करुंगा?"
‘‘साहब, मुझे इन्हें सिटी लाइब्रेरी पर उतारना है, जो आपके ऑफिस के रास्ते में ही पड़ेगी. अगर आपको फिर भी ऐतराज़ है, तो आप दूसरा ऑटो पकड़ने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं आपसे यहां तक के पैसे नहीं लूंगा.’’ ऑटो चालक के स्वर की दृढ़ता महसूस कर मैं ख़ामोश हो गया. यूं भी ऐसे छोटे लोगों के मुंह लगना मैं पसंद नहीं करता था.
उसने सड़क के किनारे खड़े सज्जन को बहुत आदर के साथ अपने बगलवाली सीट पर बैठाया और आगे बढ़ गया. उन सम्भ्रांत से दिखनेवाले सज्जन के लिए मेरे मन में एक पल को विचार कौंधा कि मैं उन्हें अपने पास बैठा लूं फिर यह सोचकर कि पता नहीं कौन हैं… मैंने तुरंत यह विचार मन से झटक दिया. कुछ किलोमीटर दूर जाकर सिटी लाइब्रेरी आ गई. ऑटोवाले ने उन्हें वहां उतारा और आगे बढ़ गया.
‘‘कौन हैं यह सज्जन?" उसका आदरभाव देख मेरे मन में जिज्ञासा जागी.
उसने बताया, ‘‘साहब, ये यहां के डिग्री कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल डॉक्टर खन्ना हैं. सर के मेरे ऊपर बहुत उपकार हैं. मैं कॉमर्स में बहुत कमज़ोर था. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण ट्यूशन फीस देने में असमर्थ था. दो साल तक सर ने मुझे बिना फीस लिए कॉमर्स पढ़ाया, जिसकी बदौलत मैंने बी काॅम 80 प्रतिशत मार्क्स से पास किया. अब सर की ही प्रेरणा से मैं बैंक की परीक्षाएं दे रहा हूं.’’ ‘‘वैरी गुड,’’ मैं उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सका.
‘‘तुम्हारा नाम क्या है?" मैंने पूछा.
‘‘संदीप नाम है मेरा. तीन साल पूर्व सर रिटायर हो गए थे. पिछले साल इनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया. हालांकि बेटे बहू साथ रहते हैं, फिर भी अकेलापन तो लगता ही होगा इसीलिए रोज सुबह दस बजे लाइब्रेरी चले जाते हैं. साहब, मैं शहर में कहीं भी होऊं, सुबह दस बजे सर को लाइब्रेरी छोड़ना और दोपहर दो बजे वापिस घर पहुंचाना नहीं भूलता. सर तो कहते भी हैं कि वह स्वयं चले जाएंगे, किंतु मेरा मन नहीं मानता. जब भी वह साथ जाने से इंकार करते हैं, मैं उनसे कहता हूं कि यह मेरी उनके प्रति गुरुदक्षिणा है और सर की आंखें भीग जाती हैं. न जाने कितने बहानों से वह मेरी मदद करते ही रहते हैं. साहब, मेरा मानना है, हम अपने मां-बाप और गुरु के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते.’
मैं निःशब्द मौन संदीप के कहे शब्दों का प्रहार अपनी आत्मा पर झेलता रहा. ज़ेहन में कौंध गए वे दिन जब मैं भी इसी डिग्री कॉलेज का छात्र था. साथ ही डॉ. खन्ना का फेवरेट स्टूडेंट भी. एम एस सी मैथ्स में एडमीशन लेना चाहता था. उन्हीं दिनों पापा को सीवियर हार्टअटैक पड़ा. मैं और मम्मी बदहवास से हॉस्पिटल के चक्कर लगाते रहे.
डॉक्टरों के अथक प्रयास के पश्चात् पापा की जान बची. इस परेशानी में कई दिन बीत गए और फार्म भरने की अंतिम तिथि निकल गई. उस समय मैंने डा. खन्ना को अपनी परेशानी बताई और उनसे अनुरोध किया कि वह मेरी मदद करें. डॉ. खन्ना ने मैनेजमैन्ट से बात करके स्पेशल केस के अन्तर्गत मेरा एडमीशन करवाया और मेरा साल ख़राब होने से बच गया था. कॉलेज छोड़ने के पश्चात् मैं इस बात को बिल्कुल ही भूला दिया. यहां तक कि आज जब डॉ. खन्ना मेरे सम्मुख आए, तो अपने पद के अभिमान में चूर मैंने उनकी तरफ़ ध्यान भी नहीं दिया.
आज मेरी अंतरात्मा मुझसे प्रश्न कर रही थी कि हम दोनों में से छोटा कौन था, वह इंसान जो अपनी आमदनी की परवाह न करके गुरुदक्षिणा चुका रहा था या फिर एक कंपनी का जनरल मैनेजर, जो अपने गुरु को पहचान तक न सका था.....!

बथुवा

 

बथुवा को अंग्रेजी में Lamb's Quarters कहते है, इसका वैज्ञानिक नाम Chenopodium album है।


साग और रायता बना कर बथुवा अनादि काल से खाया जाता  रहा है लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए प्लस्तर में बथुवा मिलाते थे और हमारी बुढ़ियां सिर से ढेरे व फांस (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुवै के पानी से बाल धोया करती। बथुवा गुणों की खान है और भारत में ऐसी ऐसी जड़ी बूटियां हैं तभी तो मेरा भारत महान है।


बथुवै में क्या क्या है?? मतलब कौन कौन से विटामिन और मिनरल्स??


तो सुने, बथुवे में क्या नहीं है?? बथुवा विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B9 और विटामिन C से भरपूर है तथा बथुवे में कैल्शियम,  लोहा, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि मिनरल्स हैं। 100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं। कुल मिलाकर 43  Kcal होती है।


जब बथुवा शीत (मट्ठा, लस्सी) या दही में मिला दिया जाता है तो यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है और साथ में बाजरे या मक्का की रोटी, मक्खन व गुड़ की डळी हो तो इस खाने के लिए देवता भी तरसते हैं।


जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डॉक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली ही खाने की सलाह देते हैं ना??? गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व लोहे की गोली बताई जाती है और बथुवे में वो सबकुछ है ही, कहने का मतलब है कि बथुवा पहलवानो से लेकर गर्भवती महिलाओं तक, बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है।


यह साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है।  बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी  गाय   के घी से छौंक लगाएँ। बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें। बथुवै में  जिंक होता है जो कि शुक्राणुवर्धक है मतलब किसी भाई को जिस्मानी कमजोरी हो तो उसकॅ भी दूर कर दे बथुवा।


बथुवा कब्ज दूर करता है और अगर पेट साफ रहेगा तो कोइ भी बीमारी शरीर में लगेगी ही नहीं, ताकत और स्फूर्ति बनी रहेगी।


कहने का मतलब है कि जब तक इस मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खाएँ। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएँ और तो और यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है।


पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शकर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी।


मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें । आधा रहने पर छानकर पी जाएँ। मासिक धर्म खुलकर साफ आएगा। आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ।


पेशाब के रोगी बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें । बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नींबू जीरा, जरा सी काली मिर्च और काला नमक लें और पी जाएँ।


आप ने अपने दादा दादी से ये कहते जरूर सुना होगा कि हमने तो सारी उम्र अंग्रेजी दवा की एक गोली भी नहीं ली। उनके स्वास्थ्य व ताकत का राज यही बथुवा ही है।


मकान को रंगने से लेकर खाने व दवाई तक बथुवा काम आता है और हाँ सिर के बाल ...... क्या करेंगे शम्पू इसके आगे।

हम आज बथुवै को भी कोंधरा, चौळाई, सांठी, भाँखड़ी आदि सैकड़ों आयुर्वेदिक औषधियों की बजाय खरपतवार समझते हैं

Saturday, December 9, 2023

कैंसर से नहीं मरना चाहिए

 किसी को भी कैंसर से नहीं मरना चाहिए , सिवाय वेश्याव्यवसाय के, कहते हैं डॉ गुप्ता।

(1) पहला कदम चीनी खाना बंद करना है, अगर शरीर में चीनी नहीं है तो कैंसर कोशिकाएं स्वाभाविक रूप से मर जाएँगी।
(2) चरण 2 एक पूरे नींबू को एक कप गर्म पानी के साथ मिलाना है और भोजन और कैंसर खत्म होने से पहले लगभग 1-3 महीने पहले पीना है, मैरीलैंड मेडिकल कॉलेज के शोध में कहा गया है कि कीमोथेरेपी से 1000 गुना बेहतर है।
(3) स्टेप 3, सुबह और रात 3 चम्मच ऑर्गेनिक नारियल तेल पिएं, कैंसर होगा गायब, चीनी से बचने के बाद चुन सकते हैं ये दो उपचार अज्ञानता कोई बहाना नहीं है। मैं इसे 5 वर्षों से साझा कर रहा हूं। अपने आस-पास के हर किसी को जानने दो। भगवान आप सभी को आशीर्वाद दे।
" វេជ្ជបណ្ឌិត गुरुप्रसाद रेड्डी बी वी, बीजेडआर स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी मास्को, रूस 🏖 медици🚦
जो लोग यह बुलेटिन प्राप्त करते हैं उन्हें प्रोत्साहित किया अगले दस लोगों तक पहुंचाएं, निश्चित रूप से एक जान बच जाएगी.. मैंने अपना हिस्सा पूरा कर लिया है, मुझे आशा है कि आप इसे पूरा करने में मदद कर सकते हैं, धन्यवाद! ✍
गर्म नींबू पानी पीने से कैंसर हो सकता है बचाव इसमें चीनी मत डालो। गर्म नींबू पानी से बेहतर है।
पीले और बैंगनी दोनों मीठे आलू में उत्कृष्ट कैंसर विरोधी गुण हैं। ✍
01 ✍रात में बार बार खाने से पेट के कैंसर की संभावना बढ़ सकती है
02. ✍ हफ्ते में 4 अंडे से ज्यादा न खाएं
03. ✍ चिकन खाने से पेट कैंसर हो सकता है
04. ✍ भोजन के बाद कभी फल न खाएं। फल खाने से पहले खाना चाहिए।
05. ✍ मासिक धर्म के समय चाय ना पिएं।
09 ✍ बीन रस में चीनी या अंडे डाले बिना बीन का रस कम खाएं
07. ✍🏾कभी खाली पेट टमाटर नहीं खाना चाहिए
08. ✍ हर सुबह भोजन से पहले एक गिलास सामान्य पानी पिएं ताकि मूत्र की थैली में पित्ताशय की थैली से बचा जा सके
09. ✍🏾 सोने से 3 घंटे पहले कोई खाना नहीं
10. ✍ बिना पोषक तत्वों के कम पिएं या शराब से बचें, लेकिन मधुमेह और उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है
11. ✍🏾 जब रोटी ओवन या ओवन से बाहर गर्म हो तो मत खाना।
12. ✍🏾 अपने फोन या डिवाइस को कभी भी चार्ज न करें जो आपके सोते समय आपके बगल में है
13. ✍ मूत्राशय के कैंसर से बचाव के लिए दिन में 10 कप पानी पिएं
14. ✍🏽 दिन में ज्यादा पानी पिएं रात में कम
15. ✍ दिन में 2 कप से अधिक कॉफी न पिएं, इससे अनिद्रा और डायरिया हो सकता है।
16. ✍🏾 कम कार्बोहाइड्रेट्स खाएं। 5-7 घंटे लगते हैं विघटित होने और थकावट महसूस होने में।
17. ✍🏾 5 घंटे बाद थोड़ा खाना खाएं
18. ✍ छह प्रकार के भोजन जो आपको खुश कर देते हैं: केला, नारंगी, काला पालक, कद्दू, आड़ू।
19. ✍ दिन में 8 घंटे से कम सोने से हमारा दिमाग खराब हो सकता है। आधे घंटे के ब्रेक में हम सुंदरता को युवा रख सकते हैं।
20. ✍ कच्चे टमाटरों की तुलना में पके टमाटरों में बेहतर उपचार गुण होते हैं।
गर्म नींबू पानी स्वास्थ्य को बचा सकता है और जीवन को लंबा कर सकता है!
गर्म नींबू पानी कैंसर कोशिकाओं को मारता है ✍🏾
2-3 नींबू के स्लाइस में गर्म पानी जोड़ें। इसे एक दैनिक पेय बनाओ।
नींबू के रस में कड़वाहट कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए सबसे अच्छा घटक है। ✍
आइस कोल्ड नींबू पानी में विटामिन सी होता है, हाथ पर कोई परिरक्षक नहीं होता है। ✍
गर्म नींबू का रस मांसपेशियों के विकास को नियंत्रित कर सकता है। ✍
नैदानिक परीक्षणों से पता चला है कि गर्म नींबू पानी प्रभावी है। ✍
इस प्रकार की नींबू अर्क थेरेपी केवल कोशिकाओं को नष्ट करेगी, यह स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित नहीं करती है। ✍
बाद में... नींबू के रस में साइट्रिक एसिड और नींबू पॉलीफेनोल्स उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकते हैं✍ गहरी नसों के थक्के को रोकने, रक्त संचार को मजबूत करने और रक्त के थक्के को कम करने में ✍
चाहे आप कितने भी व्यस्त क्यों न हों, कृपया समय निकालकर इस लेख को पढ़ें और दूसरों को भी प्यार फैलाने के लिए कहें! ✍
♦ पढ़ने के बाद दूसरों के साथ शेयर करके प्यार बांटें ! अपने स्वास्थ्य का अच्छा ख्याल रखें! ✍

Friday, December 8, 2023

तर्पण

पिताजी का "विधि विधान से पण्डित जी की मदद से तर्पण करके, अतुल ऑफिस जाने के लिये अपनी कार स्टार्ट कर ही रहा था कि माँ ने उसे रोककर एक पैकेट देकर बोला..
बेटा, तू ही ऑफिस जा रहा तो यह केले और बिस्कुट के पैकेट लेते जा, रास्ते में जो भीख मांगने वाले गरीब और अनाथ बच्चे मिलेंगे न उनको देते जाना, यह परोपकार होता है।
अरे माँ तुम भी न, अभी सुबह ही तो पण्डित जी को बुलाकर 2100 रुपये के पैकेज में पिताजी का तर्पण किया है, अब यह सब क्या? अतुल ने झुंझलाते हुये माँ से कहा, पर माँ का उदास चेहरा देखकर अतुल माँ को मना नहीं कर सका,उसने माँ के द्वारा दिये पैकेट को बगल की सीट पर रखकर तेजी से अपने ऑफिस की तरफ़ कार दौड़ा दी।


पुणे की एक प्रसिद्ध सॉफ्टवेयर कम्पनी में अतुल सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, पिछले 11 वर्षों से उसने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर जो मुक़ाम हासिल किया था, उस वजह से अतुल की उस कम्पनी में बहुत इज्जत थी। अतुल के पिताजी का चार वर्ष पूर्व बीमारी की वजह से निधन हुआ था, उनकी आज पितृपक्ष की तिथि थी लेकिन सप्ताह के मध्य पूरा अवकाश लेने की बजाय अतुल ने ऑफिस टाइम से पहले पण्डित जी को बुलाकर विधिवत तर्पण करना बेहतर समझा।
अतुल की पत्नी दूसरे बच्चे की डिलीवरी के लिये मायके गई हुई थी, इसलिए उसने एक कुशल मैनेजर की तरह, सुबह 4 बजे अलार्म लगाकर, अपनी माँ को उठाकर उसके साथ, पूजा विधि के लिये सारी तैयारियां करवाकर पंडित जी के साथ तर्पण पूजन में लग गया, वहीं माँ पिताजी की पसंद का भोजन बनाने में पूरे मनोयोग से जुट गई।
आजकल पुणे जैसे शहरों में पंडित भी पैकेज के हिसाब से काम करने लगें हैं, सुबह 8 बजे से पहले विधिवत पूजन करनें के लिए 2100 रुपये का स्पेशल पैकेज लिया था , जिसमें उसके साथ आये 4 जूनियर पण्डित एक प्रोफेशनल की तरह यन्त्रवत पूजन सम्पन्न कर रहे थे।
माँ के द्वारा बनाए भोजन को पंडित जी द्वारा ग्रहण करने एवं दक्षिणा लेने के बाद रवाना होते ही अतुल भी झटपट धोती कुर्ता उतारकर अपने ऑफिस लिए पेन्ट शर्ट पहनकर तैयार होकर निकल आता है।
★★
मुम्बई-पुणे जैसे शहरों में 5 मिनट का विलंब भी कई बार रास्ते मे 30%-40% तक का ट्रैफिक बढा देता है। नतीजतन 5 मिनट देरी से पहुंच सकने वाला शक़्स आधे से एक घन्टा तक विलम्ब से पहुंच पाता है।
हमेशा का वही रूट, तेज़ गति से गाड़ियों को क्रॉस करते हुऐ यलो लाइट होने से पहले सिग्नल क्रॉस करके टाईम मैनेज करने की धुन में अतुल माँ द्वारा दिये केले और बिस्कुट ग़रीब और अनाथ बच्चों को देना वह भूल चुका था, तभी एक रेड सिग्नल पर उसे एक दो माँगने वालों को देखकर उसे याद आता है कि उसने माँ का दिया पैकेट तो बांटा ही नहीं था। अगले एक दो सिग्नल में अतुल ने कार रोककर इन अनाथ बच्चों को वह केले और बिस्किट देना चाहा भी लेकिन पता नहीं, शायद वह बच्चे भी इतने वर्षों से अब तक उसे और उसकी कार को एक "कंजूस" के तौर पर पहचान चुके थे, इसलिए वह बच्चे उसके पास आने की बजाय पीछे वालो की गाड़ियों पर पहुंच रहें थे।
अतुल के लिये यह आत्ममंथन का वक्त था, आज उसके पिताजी का तर्पण करने के बाद दान लेने लिये उसे ग़रीब और अनाथ बच्चे तक तवज्जों नहीं दें रहें हैं, और एक वह वक़्त था कि उसके पिताजी के पास आस पास के गाँवों से भी बड़े बड़े लोग मदद मांगने आते और क़भी खाली हाथ नहीं जाते थे। गाँव के स्कूल में साधारण शासकीय अध्यापक थे उसके पिताजी, कम आय में भी खुद के परिवार के साथ साथ, न जाने कितने ग़रीबों एवम असहायों की बिना कहे ही मदद करतें थे, और एक मैं हूँ कि 'डेढ़ लाख रुपये महीने" की तन्ख्वाह होने के बाद भी, किसी के मदद माँगने पर भी यह सोचकर उसकी मदद नहीं करता कि यह मेरा पैसा लौटाएगा या नहीं।
पिताजी की इसी उदारता की वजह से अक़्सर उसकी पिताजी से बहस होती थी, और माँ कहती, बेटा जब तुम कमाओ तब अपने हिसाब से पैसे खर्च करना मग़र पिताजी को ऐसे रोकने का तुमको कोई अधिकार नहीं है, इस तरह पिताजी के इन कर्मो के पीछे माँ का भी मौन समर्थन था, माँ बहुत खुश होती थी जब कोई कहता, हमने भगवान को नहीं देखा, पर बाबूजी तो स्वयं ही भगवान का रूप है। इन्हीं वैचारिक मतभेद के कारण अतुल अपना जॉब लगने के बाद यदाकदा ही अपने गाँव जाया करता था।
पिताजी भी किसी त्यौहार या समारोह के समय ही उसके पास आते थे, वरना सप्ताह में एक दो बार एक दूसरे के हालचाल पूछकर ही वह सम्बन्धों को बनाये हुये थे।
★★★
हाँ, विधि विधान से तो अतुल ने पिताजी का तर्पण कर दिया था, पर क्या वह सचमुच पिताजी की इच्छाओं को तृप्त कर सका?
पिताजी के जीते-जी न सही, क्या उनकी अनुपस्थिति में उसने अपनी माँ को अहसास कराया कि पिताजी नहीं है तो क्या, वह तो है न उनका ख़्याल रखनें के लिए, ख़्याल तो दूर मैं अपनी माँ के लिये वक़्त भी नहीं निकाल पाता, घर पहुँचते ही माँ से बनी चाय पीकर वह जो मोबाइल में व्यस्त हो जाता है, तो सुबह उठकर सीधा नहाधोकर ऑफिस के लिये निकलने तक उसे माँ की याद ही न रहती, माँ जरूर उसके डिनर, नाश्ता, टिफिन, कपड़े प्रेस करने जैसी सारी जरूरत बिना कहे ही पूरा कर रही थी। शनिवार रविवार को भी वह या तो दोस्तों के साथ निकल जाता या लैपटॉप पर कम्पनी का काम करके अपना दिन गुज़ार देता।
आज माँ की डबडबायी आँखों के पीछे का दुःख समझकर भी मैं ऑफिस निकल आया, अपनी माँ के जीवित रहते उसका ख्याल नहीं रख रहा हूँ तो क्या उसके जाने के बाद यही तर्पण करके उसे खुश रख पाउँगा। अतुल को आत्मग्लानि होने लगी, उसने अगले ही सिग्नल पर अपनी कार वापस घर की तरफ़ मोड़ ली और बॉस को फोन पर यह कहकर कि आज उसे अपनी माँ को डॉक्टर को दिखाने जाना है, वह छुट्टी ले लेता है।
विचार बदलते ही संयोग भी बदलने लगता है, जो अनाथ और ग़रीब बच्चे उसके बुलाये जाने पर भी पास नहीं आ रहे थे, वही बच्चे अगले सिग्नल पर ही खुद उससे माँगने आये, अतुल ने उन सबको बिस्कुट और केले देकर सन्तुष्ट कर दिया। उन बच्चों की संतुष्टि देखकर अतुल को भी अजीब सी सन्तुष्टि महसूस होने लगी थी।
घर पहुँचते ही वह कार बाहर ही रखकर चुपके से घर पर पंहुचता है तो खिड़की से उसे दिखता है कि माँ पिताजी का अलबम खोलकर उनसे ही खामोश आँखों से बातें कर रही है। अतुल ने दरवाजा खटखटाया, अचानक अतुल को सामने देखकर माँ ने फ़ोटो एलबन टेबल के ऊपर रखे न्यूज़ पेपर के नीचे छुपाते हुये, अपने आँसू पोछकर मुस्कुराते हुये पूछा, क्या हुआ तो वापिस कैसे आ गया, कुछ भूल गया था क्या?
हाँ माँ कुछ भूल गया था मैं, आज तो ऑफिस में कुछ ज़्यादा काम नहीं था, इसलिए छुट्टी लेकर आपके साथ एक फ़िल्म देखने का मन हो रहा है..
नहीं मेरा मन नहीं है आज कोई फ़िल्म देखने का, तू ही बाहर जाकर देख आ..माँ ने मना करते हुऐ कहा।
नहीं मैं तो अपने स्मार्ट टीवी पर ही लगाऊंगा और आपके साथ ही देखूंगा, कपड़े बदलकर अतुल एक पेनड्राइव स्मार्ट टीवी में लगाते हुये बच्चों सी जिद करके बोला।
अच्छा ठीक है तू लगा फ़िल्म, मैं बर्तन धोकर आती हूँ, किचन में बहुत काम है, कहकर माँ उसे टालने के प्रयास करने लगी। अतुल ने किचन में जाकर देखा तो सिंक पर सुबह के खाने की प्लेट्स रखी हुई थी, इसका मतलब माँ ने खाना भी नहीं खाया है अब तक, उफ़्फ़ कितना घुट घुट कर जी रही है मेरी माँ, घर पर सबकुछ होकर भी उसका आनंद नहीं लेती और मुझे यह पता भी नहीं।
माँ, मुझे जोर से भूख लगी है, चलो साथ में खाना खातें हैं, अतुल खाना गर्म करके एक थाली में परोसकर माँ के साथ बैठ गया, एक कौर खुद खाकर चुपके से ज्यादा कौर उसे खिलाने की माँ की स्टाइल आज वह माँ पर ही आजमा रहा था।
खाना होते ही वह माँ से बोला, माँ बर्तन में धो लेता हूँ, तब तक तुम किचन साफ कर लो, फ़िल्म तो हम साथ ही देखेंगे।
माँ अचरज़ से अतुल के बदले व्यवहार परिवर्तन को देखकर सुखद अनुभव कर रही थी।
★★★★
किचिन का काम निपटाने के बाद माँ बेटे मिलकर टीवी पर अतुल की शादी की फ़िल्म लगाते है , 6 साल पहले हुई अतुल के विवाह की फ़िल्म अतुल ने पेनड्राईव में सेव कर रखी थी।
पिताजी को उस विवाह में पूरे जोश से विवाह कार्यक्रम में सहभागी होते देखकर, सबके साथ मस्ती में डाँस करते देखकर, विवाह की चुहलबाजी देखकर माँ भूल ही गई थी कि आज पिताजी हमारे बीच नहीं हैं।
अतुल माँ का सिर अपनी गोद में रखकर धीरे धीरे नारियल तेल लगाकर सहलाने लगा, माँ के आँखों से आँसुओं की धार बह चली थी।
आज अतुल ने एक साथ दो तर्पण किये थे, पहला अपने दिवंगत पिताजी का पूरे विधि विधान के साथ और दूसरा अपनी दुःखी माँ के साथ वक़्त गुजारकर उसके दुःखों का सहभागी बनकर।

सभी तर्पण पानी से हों जरूरी नहीं कुछ तर्पण आँसुओं से आजीवन होते रहते हैं।
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कहानी लिखने का उद्देश्य यही है कि अपने पितरों के दिवंगत होने पर तर्पण करना तो हमारे लिए विधि का विधान है , लेकिन जीवित अवस्था में उनके साथ हँसी खुशी वक़्त गुजारकर उन्हें अकेलेपन का अहसास न होने देना उससे भी महान कार्य है।