Wednesday, July 10, 2019

युवा अन्वेषकों के हाइटेक नवाचारों को पुरस्कार

उमाशंकर मिश्र

नई दिल्ली, 8 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): खेत में कीटनाशकों का छिड़काव करते समय
रसायनिक दवाओं के संपर्क में आने से किसानों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इंस्टीट्यूट फॉर
स्टेम सेल साइंस ऐंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन, बेंगलूरू के छात्र केतन थोराट और उनकी टीम ने
मिलकर डर्मल जैल नामक एक ऐसी क्रीम विकसित की है, जिसे त्वचा पर लगाने से कीटनाशकों
के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
आईआईटी, दिल्ली की रोहिणी सिंह और उनकी टीम द्वारा विकसित नई एंटीबायोटिक दवा
वितरण प्रणाली भी देश के युवा शोधकर्ताओं की प्रतिभा की कहानी कहती है। इस पद्धति को
विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि शरीर में दवा के वितरण की यह प्रणाली
भविष्य में कैंसर के उपचार को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।
आईआईटी, खड़गपुर की शोधार्थी गायत्री मिश्रा और उनकी टीम ने एक ई-नोज विकसित की है,
जो अनाज भंडार में कीटों के आक्रमण का पता लगाने में उपयोगी हो सकती है। इसी तरह,
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरू के छात्र देवल करिया की टीम द्वारा मधुमेह रोगियों के लिए
विकसित सस्ती इंसुलिन पंप युवा वैज्ञानिकों की प्रतिभा का एक अन्य उदाहरण है।
इन युवा शोधार्थियों को उनके नवाचारों के लिए वर्ष 2019 का गांधीवादी यंग टेक्नोलॉजिकल
इनोवेशन (ग्यति) अवार्ड दिया गया है। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ये पुरस्कार शनिवार को
उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने प्रदान किए हैं। चिकित्साशास्त्र, ऊतक इंजीनियरिंग, मेडिसिन,
रसायन विज्ञान, जैव प्रसंस्करण, कृषि और इंजीनियरिंग समेत 42 श्रेणियों से जुड़े नवोन्मेषों के
लिए 21 युवा शोधकर्ताओं को ये पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने अग्रणी विचारों और नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए एक ऐसा
राष्ट्रीय नवाचार आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया है, जो जीवन में सुधार और समृद्धि को
बढ़ावा देने का जरिया बन सके। उपराष्ट्रपति ने नए और समावेशी भारत के निर्माण के लिए
समाज के हर वर्ग में मौजूद प्रतिभा को उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सोसायटी फॉर रिसर्च ऐंड इनिशिएटिव्स फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन्स (सृष्टि) द्वारा
स्थापित ग्यति पुरस्कार जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत संस्था बायोटेक्नोलॉजी
इंडस्ट्री असिस्टेंस काउंसिल (बाइरैक) द्वारा संयुक्त रूप से प्रदान किए जाते हैं। तीन श्रेणियों में
दिए जाने वाले इन पुरस्कारों में बाइरैक-सृष्टि पुरस्कार, सृष्टि-ग्यति पुरस्कार और ग्यति


प्रोत्साहन पुरस्कार शामिल हैं। पुरस्कृत छात्रों की प्रत्येक टीम को उनके आइडिया पर आगे काम
करने के लिए 15 लाख रुपये दिए जाते हैं और चयनित तकनीकों को सहायता दी जाती है।
इस वर्ष लाइफ साइंसेज से जुड़े नवाचारों के लिए 15 छात्रों को बाइरैक-सृष्टि अवार्ड और
इंजीनियरिंग आधारित नवाचारों के लिए छह छात्रों को सृष्टि-ग्यति अवार्ड प्रदान किए गए हैं।
इसके अलावा, 23 अन्य परियोजनाओं को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किया गया है। इस बार 34
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 267 विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थानों में अध्ययनरत छात्रों
की 42 विषयों में 1780 प्रविष्टियां मिली थी।
एनआईटी, गोवा के देवेन पाटनवाड़िया एवं कल्याण सुंदर द्वारा टोल बूथ पर ऑटोमेटेड
भुगतान के लिए विकसित एंटीना, ऑस्टियोपोरोसिस की पहचान के लिए एनआईटी, सूरतकल
के शोधकर्ता अनु शाजु द्वारा विकसित रेडियोग्रामेट्री निदान पद्धति, केरल के कुट्टीपुरम स्थित
एमईएस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के मुहम्मद जानिश द्वारा बनाया गया कृत्रिम पैर, गाय के
थनों में सूजन का पता लगाने के लिए श्री वेंकटेश्वरा वेटरिनरी यूनिवर्सिटी, तिरुपति के हरिका
चप्पा द्वारा विकसित पेपर स्ट्रिप आधारित निदान तकनीक, अमृता विश्वविद्यापीठम,
कोयम्बटूर के जीतू रविंद्रन का एनीमिया मीटर, आईआईटी, मद्रास की शोधार्थी स्नेहा मुंशी
द्वारा मिट्टी की लवणता का पता लगाने के लिए विकसित सेंसर और चितकारा यूनिवर्सिटी,
पंजाब के कार्तिक विज की टीम द्वारा मौसम का अनुमान लगाने के लिए विकसित एंटीना तंत्र
इस वर्ष पुरस्कृत नवाचारों में मुख्य रूप से शामिल हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ हर्षवर्धन, जैव प्रौद्योगिकी विभाग की
सचिव डॉ रेणु स्वरूप, सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक आर.ए. माशेलकर और हनी-बी
नेटवर्क के संस्थापक तथा सृष्टि के समन्वयक प्रोफेसर अनिल गुप्ता पुरस्कार समारोह में उपस्थित
थे। (इंडिया साइंस वायर)


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