Tuesday, October 1, 2019

बुंदेलखंड के इस स्थान पर दी गई थी 11 देशभक्तों को फांसी

बुंदेलखंड के इस स्थान पर 11 देशभक्तों को फांसी दी गई थी मराठा राज्य की सबसे मजबूत छावनी बुंदेलखंड की पुरानी तहसील को इस कारण अंग्रेजों ने नष्ट किया बांदा जनपद की कमासिन वीर भूमि है 1857 के स्वाधीनता संग्राम में कमासिन के देशभक्तों ने अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के उद्देश्य कमासिन तहसील को लूटा तहसीलदार को  अर्जेंट अफसर को मारा लूटा हुआ सारा पैसा गरीबों में क्रांतिकारियों ने बांटा। अंग्रेजों ने दंड स्वरूप कमासिन को दिया गया तहसील का दर्जा खत्म कर दिया। मराठा छावनी नष्ट कर दी क्रांतिकारियों को पकड़कर कमासिन के ही इस स्थान घंटा बारी में जो कमासिन से 3 किलोमीटर दूर राजापुर रोड पर स्थित है फांसी पर लटका दिया यह स्थान आज भी वीरान है।


यह बलिदानी क्रांतिकारी इस आस में होगी कि शायद आजाद भारत के भाग्य विधाता इस स्थान पर आएंगे हमें भी दो फूल मिलेंगे। क्रांतिकारी परिवार के समाजसेवी विजय मिश्र, दादा कमासिन निवासी बताते हैं कि महाराजा छत्रसाल के राज्य की अंतिम तहसील तथा सुरक्षा की सबसे महत्वपूर्ण सैनिक छावनी कमासिन थी, क्योंकि उस जमाने में सारा व्यापार जलमार्ग से होता था और कमासिन के पास में यमुना नदी है महाराज छत्रसाल ने अपने दत्तक पुत्र महाबली बाजीराव पेशवा को कमासिन तहसील का राज्य दिया। महाराज बाजीराव पेशवा ने कमासिन को सैनिक छावनी के रूप में विकसित किया जिसे आज भी देख सकते हैं। क्रांतिकारियों की इस देश भक्ति से नाराज होकर अंग्रेजों ने स्थल को तहस-नहस कर दिया और तहसील का दर्जा खत्म कर दिया आज भी कमासिन बिरान है। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रमेश चंद्र कुरील बताते हैं कि मैंने कई बार कमासिन को तहसील बनाने के लिए शासन स्तर पर कार्यवाही की एव कराई है लिखा पढ़ी की है, लेकिन आज तक कुछ भी नहीं हुआ महत्वपूर्ण बात यह है कि बांदा जनपद की सबसे जनसंख्या वाली ग्राम पंचायत है, जिसमें कई हजार मतदाता निवास करते हैं नगर पंचायत के सारे मापदंड कमासिन पूरी करती है, दुखद पहलू है कि देश आजाद होने के बाद भी ना तो कमासिन को तहसील का दर्जा मिला और ना ही 11 बलिदानी अमर शहीदों को एक चबूतरा बुंदेलखंड के विषय में सबसे तथ्यात्मक किताब बुंदेलखंड का इतिहास जिसके लेखक राजा दीवान प्रतिपाल सिंह है ने जो अपनी किताब 1921 में लिखी है उसमें कमासिन को बुंदेलखंड का प्रख्यात बाजार बताया है तथा 1921 में कमासिन की जनसंख्या 20,000 से अधिक थी जो बांदा अतर्रा के बराबर थी दीवान प्रतिपाल सिंह की यह किताब 14000 पृष्ठों की है मेरी इस जानकारी का उद्देश्य सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते युवा पीढ़ी जाने अपने गौरवशाली इतिहास को फिर से कमसिन तहसील बने बाजार बने।  


बलिदानी क्रांतिकारियों से प्रेरणा लेकर  कमासिन में विकास की क्रांति हो कमासिन क्षेत्र की जनता ने सदैव राष्ट्र समाज देश के विकास के लिए बढ़चढ़ हिस्सा लिया। आचार्य विनोबा भावे भूदान यज्ञ के दौरान कमासिन गए थे।आचार्य विनोबा भले ही शहर में जिंदा ना हो लेकिन कमासिन की जनता ने कई वर्ष पहले आचार्य विनोबा भावे के नाम पर विनोबा इंटर कॉलेज स्थापित कर दिया था। जिसमें हजारों छात्र शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं, ग्रहण कर रहे हैं भविष्य में ग्रहण करेंगे यहां आज भी विनोबा जिंदा हैं मेरा आग्रह जनप्रतिनिधियों से सामाजिक कार्यकर्ताओं से है कि वे इस क्रांतिकारी स्थल को देखें इन वीरों को नमन करें क्रांति स्थल को आबाद करें शायद इस स्थान की जानकारी बांदा के युवा पीढ़ी को नहीं है, नहीं बुंदेलखंड के युवा पीढ़ी को देश को आजाद कराने के लिए गांव में रह रहे लाखों देशभक्तों ने अपने को बलिदान किया है जिनका नाम शायद इतिहास के पन्नों में ना हो सच्चे देशभक्तों के इतिहास में कम स्थान मिला है।  मैं आज अपने साथियों के साथ 150 वर्ष पुराने जमरेही नाथ मेले में गया था इस शहीद स्थल की चर्चा मेरे मित्रों ने आज ही मुझे आज ही बताई कमासिन में इतनी महत्वपूर्ण इतिहासिक घटना की जानकारी का उल्लेख न होना अपने आप पर दुखद है। मुझे पूरा विश्वास है आज के बाद समाज की जागरुक युवा पीढ़ी आवश्यक स्थान पर जाएगी दर्शन करने के लिए इस बदानी स्थल पर मीडिया जनप्रतिनिधि सामाजिक कार्यकर्ता अवश्य ध्यान देंगे। 
 जय जगत , जय विनोबा


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