Monday, October 21, 2019

चमकता इंडिया, सिसकता भारत

जब लोगों में आतंकवाद का डर हो, नक्सलवाद समाज को डरा रहा हो, ऐसे में आजाद देश की बात करना बेमानी नहीं तो और क्या है। स्वतंत्रता पश्चात् जिस स्वर्णिम भारत की कल्पना लोगों के मन में थी, वह धराशायी होती जा रही है। राजनीति में बैठे लोग स्वार्थ सि( करने में लगे हुए हैं। लोग घोटालों की खबरें देख-देख कर निष्क्रिय हो चुके हैं। प्रतिक्रिया दें भी तो क्या? सेेना के अफसर हो या समाज के ठेकेदार हर कोई बस अपने बारे मंे ही सोच रहा है। एक तरफ भुखमरी से मरते बच्चे और दूसरी तरफ पिज्जा बर्गर की पार्टी देने वाले बच्चे। एक ओर टूटी टपकती छत और जर्जर दीवारों के बीच पढ़ने वाले बच्चे और दूसरी ओर ए.सी. स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे। 
एक ओर शराब की पार्टियों मंे नोट उड़ाते अय्याश युवा तो दूसरी ओर नौकरी की तलाश और सिफारिश के अभाव में जूते घिसते युवा। एक ओर परिवार के पोषण की मजबूरी के कारण देह को कष्ट देकर धूप में मजदूरी करते लोग, तो दूसरी ओर महंगी मोटर साइकिलों व कारों में घूमते लोग। एक ओर सर्व धर्म समभाव व अखण्ड भारत के नारे लगाते जन नेता, तो दूसरी तरफ दलीय राजनीति व अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए देश को धर्म व जातियों में विखण्डित करने एवं अपनी तिजोरी भरने में लगे स्वनाम राष्ट्र निर्माता। कितनी बड़ी खांई है इनके बीच। ऐसे में हम आजाद भारत की कौन-सी तस्वीर देखें। गर्व करें तो किस पर? चंद चमकते इंडियन ;अमीरद्ध पर या अधिकांश सिसकते भारतीयों ;गरीबद्ध पर। आज हमें ऐसी नीति की आवश्यकता है, जो भारत की संपूर्ण आबादी को खुशहाल रखते हुए विकास व समृद्ध की ओर ले जाए, ना कि अमीर ;इंडियनद्ध-गरीब;भारतीयद्ध के बीच की खाई को बढ़ावा दे।


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