Sunday, October 20, 2019

कैसे बदल गई बांदा कताई मिल की तस्वीर, करने लगे लोग पलायन

20 अप्रैल 1981 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बांदा कताई मिल का शिलान्यास 1983 में 1500सौ मजदूर 10000 किलो 45 लाख का धागा रोज बनाकर देते थे। यह चलती मिल कैसे बर्बाद हुई पढ़ें! 15 वर्ष चलने के बाद युवा पीढ़ी जाने समझे सवाल करें सरकारों से, अपने जनप्रतिनिधि से, जिम्मेदारों से, जो रोजगार देते थे। अपने यहां वे पलायन कर रोजगार मांग रहे हैं अन्य राज्यों से आपके शहर में भारत के कई राज्यों के लोग नौकरी करते थे अपना पेट पालते थे।



 बांदा में तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 20 अप्रैल 1981 को बांदा कताई मिल का शिलान्यास किया था 85 एकड़ जमीन में बहुत खूबसूरत बाग बगीचे फूल खूबसूरत बिल्डिंग बनकर तैयार हुई बड़ी सुंदर तकनीकी की मशीनें लगाई गई 1350 मजदूर 150 कर्मचारी अधिकारी बड़ी ईमानदारी से मेहनत से धागा तैयार करते थे जो उच्च क्वालिटी का था। जिसकी बाजार में मांग थी बांदा कताई मिल के धागे का इस्तेमाल भारत ही नहीं विदेशों में कपड़ा बनाने वाली मिले मांग करती थी। नेपाल बांग्लादेश चाइना भूटान सहित कई देशों को बांदा कताई मिल का धागा जाता था भारत के कई राज्य जहां कपड़ा मिले लगी थी।बांदा कताई मिल का धागा उनकी पहली प्राथमिकता थी बड़ी होशियारी से बांदा कताई मिल को 1992 में बीमार घोषित कर दिया गया। औद्योगिक वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड भारत सरकार दिल्ली ने इस बंदी को अवैधानिक माना इस मिल को चलाने के लिए 1992 में मात्र 35 करोड़ रुपए की आवश्यकता थी। 100 कुंटल धागा बनाने वाली मशीन मजदूर कर्मचारी एक ही आदेश पर बेकार हो गए। धागा मिल के शुरुआती दिनों में 1800 सौ मजदूर काम करते थे वर्क बढ़ता गया मिल प्रबंध तंत्र लेबर निकालती गई अपने अयोग्य लोगों को  रखने की कोशिश शुरू कर दी गई। इस कताई मिल के साथ के  स्थापना से ही भेदभाव शुरू किया गया जो मशीन 50000 तकुवा धागा की होनी चाहिए थी वह बांदा में 25000 तकुवा धागा की लगी। इस कताई मिल का  उद्देश्य था बुंदेलखंड के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार देना किसान कपास पैदा करें उनका नौजवान इस मिल में नौकरी कर धागा बनाए। इस कताई मिल को कई बार बेचने की साजिश भी की गई अभी यह साजिश जारी है बड़ा बड़ा प्रलोभन दिखाकर शायद साजिशकर्ता बांदा के एकमात्र इस उद्योग की मिल को बेचना दें यूपी एसआईडीसी उत्तर प्रदेश यार मिल कितनी सक्रियता करती है रोजगार देने में आपके सामने है विभिन्न सरकारों ने उत्तर प्रदेश की 26 मिलो की क्या हालत कर रखी है बताने की जरूरत नहीं है बलिया, मेजा, जौनपुर, बांदा में तथा झांसी की कताई मिलों की स्थिति पर विचार करने की जरूरत है विशेषकर बांदा, झांसी जहां से प्रतिदिन बेरोजगार युवा  हजारों की संख्या में पलायन कर रहा है रोजगार के लिए बुंदेलखंड की चर्चा पूरे भारत में बेरोजगारी गरीबी के लिए प्रचारित की जाती है। श्रम विभाग के तत्कालीन श्रम आयुक्त ने इस मिल बंदी को गलत माना इस मिल की स्थापना 18 करोड 36 लाख रुपए खर्च करके की गई थी। बंगाल, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली के मजदूर बांदा में काम करते थे ग्रेड 4 से लेकर ग्रेड 60 तक का धागा यहां तैयार होता था। चित्रकूट मंडल सैकड़ों वर्ष से यहां के किसान कपास की खेती करते आ रहे हैं धागा कपड़ा व्यापार के लिए यहां की भूमि व जलवायु सबसे उपयुक्त है बांदा कताई मिल के धागे की भारत सहित अन्य देशों में इतनी मांग थी कि डिमांड पूरी नहीं हो पाती थी मांग के अनुसार लेकिन बेईमान मिल प्रबंध तंत्र ने अपने स्वार्थ के लिए सदैव घाटा दिखाया 350 बीघा 50 एकड़ में बनी यह बांदा कताई मिल अपने आप में इतनी खूबसूरत थी कि बांदा जिले के अलावा बाहर के अधिकारी इस मिल की खूबसूरती देखने आते थे। इस मिलके पार्क वा फूलों के वजह से कई बार फिल्म की शूटिंग भी हुई इस मॉडल पर कई बिल्डिंग का निर्माण अन्य जगह हुआ मजदूर खुश थे, परिवार खुश थे, बच्चे प्रसन्न थे तत्कालीन नेताओं की नासमझी के कारण सब बर्बाद हो गया लोगों के सपने टूट गए इस मिल बंदी को औद्योगिक न्याय अधिकार प्राधिकरण इलाहाबाद की खंडपीठ ने असंवैधानिक माना बार-बार बुलाने के बावजूद मिल प्रबंध तंत्र जानबूझकर 20 बरस से इस मिल में कार्यरत मजदूरों कर्मचारियों को परेशान करता रहा। उनके बकाई के लिए के लिए तत्कालीन पीठासीन अधिकारी माननीय विजय कुमार त्रिपाठी आईएएस ने अपने निर्णय दिनांक 4-1-2016 के निर्णय में कहा कि कताई मिल मजदूरों की मांगे जायज है कताई मिल प्रबंध तंत्र जानबूझकर परेशान कर रहा है उन्हें उनका भुगतान तुरंत दिया जाए। यूपी एसआईडीसी तथा उत्तर प्रदेश सहकारी कताई मिल संघ कुछ खिचड़ी पका रहे हैं। कताई मिल प्रबंधन इस मिल को 1992 से बंद दिखा रहा है जबकि यह मेल 3 दिसंबर 1998 को बंद हुई चलती हुई मिल को बंद करना एक साजिश है क्या वर्तमान में देश की मिलों को धागे की जरूरत नहीं है हजारों मिले देश में कपड़ा बनाती हैं वे धागा खरीदती हैं। नई नई धागा मिले खुल रही तो यह क्यों नहीं चल सकती यक्ष प्रश्न? जिसका समाधान हो सकता है इच्छाशक्ति से इस मिल को बचाने के लिए चित्रकूट मंडल का कोई भी नेता मुझे पिछले 20 वर्षों से नहीं देखा केवल कताई मिल मजदूर संघ के नेता रामप्रवेश यादव संघर्ष करते हैं अपने कुछ साथियों के साथ जो बाहर के हैं हम उनके आभारी हैं जो काम बांदा मंडल वासियों को करना चाहिए था यादव जी कर रहे हैं।
बुंदेलखंड कनेक्ट के समन्वयक सामाजिक कार्यकर्ता अरुण निगम का कहना है कि बांदा कताई मिल से एक ओर जहां बेरोजगारों को रोजगार मिलता वहीं दूसरी ओर छोटे बड़े सभी व्यापारियों किसानों स्थानीय नागरिकों को किसी न किसी रूप में पैसा मिलता यह कताई मिल राजनीति का शिकार हो गई। बांदा के बड़े-बड़े नेता हुए अगर वह थोड़ा सा सोच लेते तो यह मिल चल जाती है पलायन रुकता, हमारे युवाओं को रोजगार के लिए बाहर न जाना पड़ता बांदा का पैसा बांदा में रहता। महोबा निवासी जाने-माने जनप्रतिनिधि प्रसिद्ध राजनीतिक घराने के मनोज तिवारी का कहना है कि कताई मिल के बांदा में खुल जाने से चित्रकूट धाम मंडल के बेरोजगारों को रोजगार मिलता साथ ही पूरे बुंदेलखंड से पलायन रुकता तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने स्थानीय जनता के साथ धोखा किया। चित्रकूट निवासी वरिष्ठ पत्रकार कानपुर संदीप रिछारिया का कहना है कि कताई मिल से बुंदेलखंड के विकास के रास्ते खुलते हैं एक ओर जहां आर्थिक संपन्नता आती क्षेत्र में वहीं स्थानीय किसान कपास की खेती करते जो पहले से होती थी सरकार को चाहिए कि कताई मिल शुरू करें। हमीरपुर के निवासी ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के प्रदेश महामंत्री देवी प्रसाद गुप्ता का कहना है कि यह कताई मिल बुंदेलखंड के लिए उपलब्धि थी खासकर चित्रकूट मंडल के लिए स्थानीय नागरिकों को रोजगार मिलता पूरे देश में संपर्क होता मिल बंद होने से हताशा हुई, निराशा हुई। बांदा निवासी कई समाचार पत्रों के संपादक रहे दिल्ली वरिष्ठ पत्रकार अरुण खरे का कहना है कि नई तकनीक की मशीनें मंगाकर काम शुरू करें कताई मील में पूरे संसाधन उपलब्ध है फिर से कताई मिल शुरू की जाए राजनीतिक लोगों को पहल करनी चाहिए। दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार  मुकुंद गुप्ता  का कहना है कि यहां के राजनेता कभी भी गंभीर नहीं रहे  रोजगार देने के लिए पलायन रोकने के लिए। युवा सामाजिक कार्यकर्ता आगे आए आखिर कब तक हम रोजगार की तलाश में बाहर जाते रहेंगे। कपास जूट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन दिनेश कुमार जी ने कहा कि बांदा की कताई मिल बंद होने से देश के किसानों का नुकसान हुआ है। बांदा निवासी अधिवक्ता आदित्य सिंह परिहार बहुत अफसोस के साथ कहते हैं बांदा की कताई मिल को नियमानुसार बंद ही नहीं किया जा सकता था क्योंकि यह मिल  राज सरकार की पुनर्वास योजना के अंतर्गत संचालित की गई थी जिस का उल्लेख कताई मिल कंपनी की ओर से हाई कोर्ट इलाहाबाद में दायर की गई थी। रिट संख्या 13 व्थ्ओ एफ 1998, 2006 त्क्।भ्आरडी एज 14 फरवरी 2006 हाई कोर्ट इलाहाबाद कोर्ट नंबर 9 न्यायमूर्ति सुनील अंबानी के जजमेंट में उल्लिखित है। कताई मिल कंपनी को 1985 में अध्याय 22 में बीमार मिलों के संचालन के लिए विशेष आर्थिक अनुदान की व्यवस्था की गई है बांदा मिल को चलाने के लिए इसकी भी मदद नहीं ली गई बांदा कताई मिल जानबूझकर बंद की गई है। एक साजिश के तहत मिल की जमीन बेची जाए यहां बांदा, चित्रकूट में भुखमरी रहे, पलायन होता रहे राजनीतिक लोग अपनी रोटियां सेकते रहे। पुनर्वास योजना क्या है?इसका पैसा कहां से आया है और उसका उद्देश्य क्या है? यह जानना युवा पीढ़ी के लिए जरूरी है। देश में चल रहा है कोई भी पुनर्वास इस कार्यक्रम जिस उद्देश्य शुरू किए गए हैं जब तक वह उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता बंद नहीं किए जा सकते चाहे गरीबी हटाने के लिए हो,स्वास्थ्य के लिए हो शिक्षा के लिए, अथवा रोजगार के लिए हो यह साजिश है।


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