Monday, October 21, 2019

गाय हिन्दू संस्कृति का टोटेम है

भारतीय संविधान के मूलाधिकारों में प्रत्येक भारतीय को अनुच्छेद २५ से २८ तक अवश्य पढ़ना चाहिए क्योकि अपने धर्म के प्रति किसी धार्मिक समुदाय के लिए क्या अधिकार प्राप्त है इसकी विशद  और पर्याप्त व्याख्या इसमें की गयी है द्य अनुच्छेद २६ में धार्मिक स्वतंत्रता की बतकही गयी और ये भी अधिकार दिया गया है कि धार्मिक मामलों में अपने कार्यो का प्रबंधन किया जा सकता है | कुछ दिन दे गौ हत्या को लेकर जिसतरह से एक संवाद समाज के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है उससे अखिल भारतीय अधिकार संगठन सहमत नहीं है और उसको लगता है कि भारतियों को अपने देश में रहने वाले धर्मो और उन धर्मो के लिए संविधान में की गयी व्यवस्था को न सिर्फ जानना चाहिए बल्कि इस बे सर पूँछ के विवाद को विराम भी देना चाहिए |
भारत का इतिहास का आरम्भ ही इस देश के उन लोगो से होता है जिनका अस्तित्व ही तब नहीं था जब वो लिखा जाना शुरू किया गया द्य यहाँ के धार्मिक देवी देवताओ की बात करते समय इस तथ्य का भी ध्यान रखा गया कि प्रत्येक जीव जंतु को भी देवी देवताओ से जोड़ करके उन्हें जिओ और जीने दो के सिद्धांत में सम्मिलित किया जाये और ऐसा हुआ भी द्य प्रत्येक हिन्दू घर में गाय को दी जाने वाली पहली रोटी में जहा उसकी सर्वोच्चता को स्वीकार करने का तथ्य समाहित था वही यह भी वैज्ञानिकता सम्मलित थी कि गाय को ताजे भोजन में किसी भी तरह के विकार का ज्ञान आसानी से हो जाता है | हमारी  इस धार्मिक भावना को बल दिया गया हमारे परम देव महादेव की सवारी नंदी बैल से जिसका प्रमाण सिंधुघाटी सभ्यता में भी प्रमाणित है और देवासुर संग्राम के समय हुए समुद्रमंथन में निकली काम धेनु गाय से | याज्ञवल्क्य स्मृति हो या फिर नचिकेता के पिता द्वारा दिए जाने वाले गौ के दान का वर्णन हो सभी में हिन्दू संस्कृति में गाय को समुचित स्थान मिला है द्य गाय को सिर्फ इस लिए माँ का दर्ज नहीं प्राप्त हो गया क्योकि हम भारतियों को भावना में बहने की आदत है बल्कि इस लिए ऐसी व्यवस्था सामने आई क्योकि गाय के दूध में उन्ही तत्वों का समावेश है जो ज्यादातर मानव माँ में पाया जाता है | इसी लिए मानव माँ के दूध पिलाने में अक्षमता की स्थति में एक नवजात शिशु को जिन्दा रखने में गाय का दूध एक संजीविनी साबित हुआ है इस लिए गाय हमारे बीच माँ बन कर प्रतिष्ठित हुई है |मानवशस्त्र एक ऐसा विषय है जो हर समस्या का एक समुचित समाधान देने में सक्षम रहा है | इसी लिए आज आपको टोटेम शब्द से परिचित करना चाहता हूँ द्य टोटेम एक काल्पनिक व्यक्ति या वास्तु या पशु को प्रतीक रूप में एक समूह द्वारा दी जाने वाली मान्यता है जिससे वो अपने समूह के के जन्म या अस्तित्व को जोड़ते है | जैसा कि मैंने पहले कहा कि हिन्दू संस्कृति है और इसी लिए ब्रिटेन के विधि विशेषज्ञ  भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को वहा की शैली हिंदुत्व से जोड़ कर देखते है| और इसी लिए गाय हिन्दू संस्कृ का टोटेम है न कि उसको एक जानवर की तरह देख कर आंदोलन किया जा रहा है और ऐसा नहीं है कि टोटेम जैसी स्थिति कोई कृत्रिम स्थिति है | मुंडा जनजाति का टोटेम हेम्ब्रम ( बकरा ) है तोडा जनजाति का टोटेम भैस है | ये जनजातियां इस जानवरों को इतना पवित्र मानती है कि ना तो इनको मारते
 है और ना ही इनको कहते है द्य भैस को पलने वाले पुजारी पुलोल कहलाते है द्यकुछ दिन पहले तक तोडा में ये मान्यता प्रचलित थी कि अगर उनके समाज में पैदा हुई लड़की भैस के बाड़े में पूरी रात जिन्दा रह गयी तो उसे समाज में सम्मलित कर लिया जाता था द्य ऐसे में अगर स्वतंत्र भारत के बहुसंख्यक समुदाय की संस्कृति के अनुरूप उसके टोटेम गाय को अक्षुण्ण रखने के प्रयास किया जा रहे है जो बुराई क्या है ? क्या संविधान के मूलाधिकारों से आच्छादित किसी धर्म के मूल्य या संस्कृति इस लिए संरक्षित नहीं रहने चाहिए क्योकि वो समूह बहुसंख्यक है | अगर आब ए जम जम ( मक्का जाने वाले ये पानी लेट है जो उतना ही पवित्र है जितना हिन्दू के लिए गंगा ) या होली वाटर( ईसाईयों का पवित्र जल ) का संरक्षण हो सकता है तो गंगा को क्यों दूषित किया गया| जिस चरस के लिए होली वाटर का मूल्य था उस चार्ल्स ने हिन्दुओ के पवित्र गंगा जल को १९३२ में पहला नल गनगा नदी में वाराणसी में खोल कर क्यों गन्दा किया ? क्या आधुनिक भारत का संविधान जो धर्म निरपेक्षता की वकालत करता है उसका बहुसंख्यक के धार्मिक मूल्यों के प्रति वचनबद्ध होना साम्प्रदायिकता है ? तो इस से यह भी स्पष्ट है कि आज भी भारत में आने वाले लोगो का भारत में संविधान के अनुसार चलना अच्छा नहीं लग रहा है|  संयुक्त राष्ट्र संघ के १०९ कन्वेंशन में जब ये बात उठी कि भारत के मूल लोग कौन है ? तो भारत ने कहा कि भारत में सभी लोग मूल निवासी ही है और ये बात इस लिए उठी क्योकि अमेरिका में वहा के मूल निवासी रेड इंडियन को मार कर गोर लोग बसे थे| जब मूल की बात हो रही है तो मूल धर्म के संरक्षण पर इतनी हाय तौबा क्यों | क्या किसी धर्म के सर्वमान्य टोटेम को इस लिए मरने दिया जाये क्योकि उस देश में और धर्म के लोग भी रहते है I निश्चित रूप से ये गलत परम्परा है और असंवैधानिक है | किसी की धार्मिक भावना को चोट पहुचाना है द्य एक धर्मिक तथ्य के कारन ही तो कोई गैर मुस्लिम मक्का नहीं जा सकता और पूरी दुनिया उसका पालन करती है तो फिर भारत जैसे देश में जहा एक धर्म के लोगो के लिए गाय माता है तो उन्ही लोगो के सामने गाय मारना , खाना क्यों सही हो सकता है और अपने धर्म का प्रचार और उसको बचाये रखना जब मूलाधिकार है तो उसके लिए सरकार , उच्चतम न्यायालय सभी का जिम्मेदार होना लाजमी है क्योकि सरकार कोई भी हो वो भी 


संविधान के अंतर्गत ही है और अगर संविधान  बनने के बाद किसी सरकार में किसी


 धर्म के भवना ओ न समझते हुए उनके धर्मिक टोटेम के प्रति कठोर कदम नहीं उठाये 
तो इसके लिए किसी सरकार द्वारा उठाये गए कदम को साम्प्रदायिकता के आईने 


में देखना और उस प्रयास का गलत प्रचार करना एक असंवैधानिक कार्य है और देश संविधान , कानून को ना मैंने वालो को देश हित वाला नहीं कहा जा सकता द्य जब दुनिया के हर धर्म के पवित्र स्थान , पानी आदि के लिए दुनिया में अपने नियम है तो दुनिया


 के विशाल धर्म के लोगो के मंदिर , पानी और पशु की वैसे ही मान्यता और सुरक्षा होनी चाहिए जैसी दूसरे धर्म के लोग अपने धर्म की पवित्रता के लिए चाहते है  जितनी पवित्रता 


वेटिकन सिटी की है जितनी पवित्रता मक्का की है उससे किसी भी हालत में भारत की पवित्रता को कम नहीं आँका जाना चाहिए जहा से सनातन धर्म का सूत्रपात हुआ और सके हर तत्व को बचाना  और उस देश में उस धर्मिक मूल्यों के लिए ऐसे किसी भी 


कृत्या को रोकना एक उचित कदम है इसको ये कह कर बढ़ावा  नहीं दिया जा सकता कि दूसरे देश में गाय की चर्बी से चॉक्लेट बन रही है क्योकि महत्व उस स्थान का है जहा किसी धर्म और उसके  पवित्र तत्वों ने जन्म लिया और इसी लिए  भारत में गाय  के मारे जाने उसको खाने का विरोध होना ही चाहिए और ऐसा विरोध करने का अधिकार हमारा संविधान हमें देता है |


..डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन


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