Monday, October 21, 2019

नैनोटैक्नोलाॅजी: सुनहरा भविष्य

 जिस प्रकार तरल पदार्थ मापने की इकाई लीटर है तथा लम्बाई या दूरी नापने की इकाई मीटर है। उसी प्रकार दूरी का एक अति सूक्ष्म मात्रक नैनोमीटर हैं यह 1 मीटर का एक अरब भाग होता है। नैनो का अर्थ होता है बौना अर्थात छोटा, 1 बिलियनवाॅ भाग (1 अरबवाॅ भाग, 1 नैनोमीटर = 10-9 मीटर) इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अगर हम हाइड्रोजन के 10 अणुओं को एक के बाद एक सटाकर बिछा दे तो मात्र यह 10 अणु ही एक नैनोमीटर लम्बे हो पायेंगे। अतः ''आज के समय कोई ऐसा पदार्थ या संयंत्र, उपकरण अथवा इसका कोई ऐसा भाग जिसका आकार एक नैनोमीटर या इसके आसपास हो और पूरी तरह से कार्यशील होकर प्रौद्योगिकी के उपयोग में आये, उससे जुड़ा हुआ विज्ञान नैनोटैक्नोलाॅजी कहलाता है।''
 नैनो की सूक्ष्मता का अनुमान आप इस बात से लगा सकते है मानव के एक बाल की मोटाई 80, 000 नैनोमीटर होती है, एक लाल रक्त कोशिका 5000 नैनोमीटर की होती है तथा 1 इंच 25 करोड़ 4 लाख नैनोमीटर होते हैं। डी.एन.ए. का एक अणु 2.5 नैनोमीटर का होता है।
 नैनोटैक्नोलाॅजी की शुरूआत:-
 जब भी नैनोटैक्नोलाॅजी के विषय में हम पीछे मुड़कर देखते है तो हमारा ध्यान 1959 में प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी रिचर्ड फेनमेन द्वारा बहुत ही लोकप्रिय लेक्चर There is Plenty of room at the bottom की तरफ जाता है जिसमें सर्वप्रथम उन्होंने नैनोमीटर स्तर पर पदार्थ के गुण और उससे बनने वाली वस्तुओं के संभावित विषय पर चर्चा की थी नैनोटेक्नोलाॅजी शब्द का प्रथम इस्तेमाल सर्वप्रथम टोकिया विश्वविद्यालय के नोरिओं तानीगुची ने 1974 में प्रकाशित अपने एक शोध पत्र में किया था लेकिन इस विज्ञान के बारे में जनचेतना का श्रेय अमरिका के फोरसाइट नैनोटैक संस्थान के संस्थापक निदेशक एरिक डेªक्सलर को जाता है जिन्होंने 1986 में अपने बहुत ही प्रसिद्ध दस्तावेज ''एन्जिन आॅफ क्रियेशन: द कमिंग नैनोटैक्नोलाॅजी'' को प्रकाशित किया। एरिक ड्रेसलर को नैनोटैक्नोलाॅजी के जनक के नाम से जाना जाता है। आज कल ये नैनोरेक्स नामक कम्पनी के मुख्य तकनीकी अधिकारी है।
 आज जो शोध   हो रहे है उनका केन्द्र बिन्दु दूसरी तकनीकियों के साथ नैनो का सामन्वय है। वास्तव में ऐसी अनेक प्रौद्योगिकियाॅ है जाहॅ आज नैनोकण, नैनो पाउडर, नैनो नलिकाओं   का सफलता से उपयोग हो रहा है। इस सूक्ष्म स्तर (नैनोस्तर) पर पदार्थ का व्यवहार बिल्कुल ही अलग होता है। उसकी रासायनिक प्रतिक्रिया क्षमता बहुत तीव्र हो जाती है। उसकी गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है। यहाॅ तक कि उसका रंग भी बदल जाता है। इस प्रकार हमारी दुनिया के सामानान्तर एक और दुनिया है जिसे नैनो विश्व कहा जा सकता है।
 ताँबे को नैनो स्तर पर लाने के बाद कमरे के तापमान पर ही इसका लचीलापन इतना अधिक बढ़ जाता है कि इसके तार को खींचकर 50 गुने लम्बे किये जा सकते है जिंक आॅक्साइड जो सफेद होता है नैनोस्तर पर पारदर्शी हो जाता है तथा एल्युमीनियम को नैनोस्तर पर लाने से वह खुद ही आग पकड़कर भस्म हो जाता है। उद्योगों से लेकर पर्यावरण, औषधियों, विज्ञानों और यहां तक कि बहुत सी घरेलू वस्तुओं में भी इसके उपयोग पर कई प्रयोग चल रहे है।
 साबुन, कपड़े, प्लास्टिक जैसे बहुलकों में जिंक नैनोकण तथा चाँदी के नैनोकणों का उपयोग किये जाने की संभावना है जिससे इनकी गुणवत्ता में कई गुना वुद्धि हो जाती है इन्हीं कणों का उपयोग सूक्ष्मजीव-रोधी, एन्टी बैक्टीरियल, एन्टीबायोटिक तथा एन्टीफंगल क्रीमों में उपयोग करके दिन-प्रतिदिन की वस्तुओं को इस कदर सुग्राही तथा प्रभावी बनाया जा सकेगा कि इन वस्तुओं के 100 प्रतिशत परिणाम नजर आयें।
 विश्व में ऊर्जा संकट को ध्यान में रखते हुए ठोस आॅक्साइड ईधन सैलों में  लैथेनम, सीरियम, स्ट्राॅन्शियम टाइटेनेट नैनोकणों और टेंटेलम नैनो कणों का उपयोग करके अगली पीढ़ी की लीथियम आयन बैट्रियों में बदलकर सर्वश्रेष्ठ बनाया जा रहा है। इसी प्रकार सौर ऊर्जा सैलों में बहुत ही उच्च शुद्धता वाले सिलिकाॅन नैनोकणों का उपयोग करके उनकी कार्यक्षमता के साथ-साथ कार्यकाल में वृद्धि की जा रही है।
नैनोटैक्नोलाॅजी की औषधि विज्ञान में भूमिका:- बहुत से नैनोकणों का उपयोग तो औषधि विज्ञान व जीव-विज्ञान में सीमा रहित हैं जैसे- कैल्शियम फाॅस्फेट के नैनो क्रिस्टल को इस्तेमाल करके क्रत्रिम हड्डी के ऐसे पदार्थ का निर्माण किया गया है जो हर हालत में अपनी गुणवत्ता वाले ग्.तंल चित्रों के लिये विशेष रूप से वे, जिनसे दांतों का परीक्षण किया जाता है, टंगस्टन आॅक्साइड नैनोकणों का उपयोग किया जा रहा है। यहां तक कि कैंसर के प्रभावी उपचार में भी इसके असीमित इस्तेमाल की संभावना है जिन पर अनुसंधान चल रहा है।
नैनोरोबोट्स अथवा नैनोबोटस:-
 नैनोबोट्स बहुत छोटे कण (0.5 से 3 माइक्रोमीटर के रोबोट) होते है कि ऐसे कल पुर्जों से बने होते हैं जिनका आकार 1 से 100 नैनोमीटर तक होता है। इसमें कार्बन की नैनोनलिकाओं जिन्हें फुलरीन्स कहते हैं, का उपयोग कर इलेक्ट्रानिक चिप्स बनाये जाते है इन रोबोट्स को शरीर के अन्दर रक्तवाहिनियों आदि में आसानी से प्रविष्ट कराया जा सकता है। इन नैनोरोबोटों से, प्रारम्भिक रूप से बगैर किसी ऐन्टीबायोटिक का इस्तेमाल कर रोग जनक बैक्टीरिया को तो नष्ट किया जा सकता है लेकिन वहीं दूसरी ओर हानि रहित व सामान्य जीवाणुओं को हानी पहुंचाये बिना भी बचाये रखा जा सकता है। ऐसे नैनोरोबोट्स शरीर की सामान्य प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि कर सकते हैं। बाहर से जब कोई अनचाहा रोगाणु प्रवेश करेगा तो ऐसी नैनो मशीनें उसमें पंक्चर कर उसके प्रभाव को समाप्त कर सकेगी।
 ऐसी क्रीम का भी प्ररीक्षण किया जा चुका है जिसमें नैनोरोबोट्स होते है। इस क्रीम में उपस्थित नैनोरोबोटों की सहायता से मृत व खराब त्वचा व पिम्पल्स को हटाकर त्वचा में अच्छी सौन्दर्यता प्रदान की जा सकती है। इस प्रकार भविष्य में मेक-अप की सामग्री नैनोटैक्नोलाॅजी के द्वारा उत्पादित हो सकेगी।
नैनो टैक्नोलाॅजी द्वारा कम्प्यूटर:-नैनो टैक्नोलाॅजी से बनने वाले भविष्य के कम्प्यूटर न केवल तेज रफ्तार वाले होंगे - क्योंकि उनमें कार्बन की नैनोनलिका द्वारा बने चालक की चिप्स होगी- बल्कि वे आकर में भी छोटे होंगे। एक विशेष प्रकार के क्वाण्टम कम्प्यूटर्स का निर्माण भी नैनो टैक्नोलाॅजी से ही संभव हो पायेगा। नैनो टैक्नोलाॅजी का उपयोग न सिर्फ उच्च प्राद्योगिकी में अपितु सुरक्षा विज्ञान और अन्य शाखाओं में हो रहा है। इसी प्रकार नैनो प्रोद्योगिकी का अन्य कई क्षेत्रों में भी जैसे जैव-प्रौद्योगिकी, क्वाॅटम कम्प्यूटर्स में महत्वपूर्ण उपयोग है। जिनके क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान हो रहा है।
 परन्तु नैनो टैक्नोलाॅजी के असीमित उपयोगों के साथ कुछ हानियाँ (पर्यावरणीय खतरे) भी हैं। जिनको दूर करने के संबंध में प्रयास (अनुसंधान) हो रहे हैं।


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