Saturday, March 28, 2020

चार दिवारी में बंद

चार दिवारी में बंद हो कर जाना 

वक़्त बहुत है अब इसलिए, 


कुछ ना कुछ लिख लेती हूं।

कोरोना से दूर रहने के झंझट, 

में तेरे पास चली आई हूँ।

चार दिवारी में बंद हो कर, 

आज हकीकत से मिल पाई हूँ। 

जेब खाली है,

नौकरी का पता खो गया है। 

काम की कोई तलाश नहीं, 

कामयाबी की जंग नहीं।

बस अब खुद से बातें करती हूँ, 

सब से दूर हूं इसलिए खुद को 

खुद के तराजू में तौल लेती हूँ। 

वक़्त लगा लेकिन आइने पर 

जमीं परतों को आज हटा खुद 

की हकीकत से रूबरू हो आई हूं।

         राखी सरोज


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