Wednesday, April 29, 2020

मनुज द नु ज बन गया , केस व  को भूलकर - अविनाश मिश्र 

मनुज दनु ज बन गया,

धरती , धरा , वसुंधरा को भूलकर 

पथ पथिक परवान को भूलकर।

मानव मन क्यों चला झूमकर

मनुज दनुज बन गया केसव को भूलकर।।

 

दिख रहा आज मार्तण्ड का वैभव 

क्या - क्या नहीं किया -

धरा का वसन उधेड़ दिया ,

कुबेर बनने की आश में 

सागर , सरिता , सुरनदि में विष घोल दिया ।

जनक चरण को काट कर ,

इंद्रपुरी बनाने चला 

तो क्यों है आवक - मार्तण्ड का तेज देखकर।।

जगदीश जनक रजनी का भी दिवा का भी ,

आदमी अनुचर है रजनी का भी दिवा का भी ।।

फिर क्यों मनुज दनुज बन गया - अपने केशव को भूलकर ।।

 

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