Saturday, May 23, 2020

बेटी

️इस दुनिया में आने का, हक उसे भी था

               मां की गोद  में सोने का, हक उसे भी था

  घर में हंसने - हंसाने का, हक उसे भी था

                अपनी मर्जी से जीने का, हक उसे भी था

️अपनों के बीच प्यार महसूस करने का, हक उसे भी था

               दोस्तों के साथ घुल-मिल जाने का, हक उसे भी था

सपनों के राजकुमार के साथ, जीवन बिताने का हक उसे भी था

             हंसते खेलते परिवार में जन्म लेने का, हक उसे भी था

️एक सपना आंखों में,शोहरत कमाने का उसे भी था

             दो वक्त रोटी अपने मेहनत की,खाने का हक उसे भी था

देखा सपना मकान बनाने का,उसकी नींव डालने का हक उसे भी था

          ज़ुल्म एक बार फिर ढाया गया, नाबालिक ही उसको ब्याहा था

️"बेटी" को इस दुनिया में लाने का,हक उसे भी था

             ममता की छांव में लोरी सुनाकर,सुलाने का हक उसे भी था

 मगर  समाज ने आज फिर, उसकी गोद को सुना रखा था

             मां का दिल रोया होगा ,जब उसने अपनी बेटी को खोया था

 

️  रचयिता-प्रकाश कुमार खोवाल ,जिला-सीकर राजस्थान 

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