Wednesday, May 27, 2020

जीप पर सवार इल्लियां दोबारा

हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी का एक व्यंग्य "जीप पर सवार इल्लियां" पढ़ा था।उस समय परीक्षा पास करने के लिए पढ़ा था,मज़बूरी थी,मने-अनमने मन से पढ़ना पड़ा,क्योंकि पास जो होना था।आज यह फिर से पढ़ भी रहा हूँ और देख भी रहा हूँ,अपनी नंगी आँखों से कि अब तो जीप पर इल्लियों के साथ-साथ चिठ्ठीयाँ और आंकड़े भी सवार हो गए हैं तो वहीं अपने ए सी वाहनों में बैठकर उल्लू भी निरीक्षण के लिए निकल पड़े हैं,साथ ही चमगादड़ भी हवाई दौरा करने में मसरूफ़ हैं।ये जो पुराने कलेवर वाला "नया सपना"हमने देखा है ना इन दिनों उसे साकार करने की पूरी जिम्मेदारी इन्होंने अपने भरे-पूरे कंधों पर ले ली है।अरे हाँ,आपको तो याद होगा ही वो रैपर जिसमें पैकेजिंग होती है,उसको पूरे होशो-हवास में लेकर बाकायदा उसकी पूरी सजावट करके सब अपने-अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर चुके हैं और जल्दी ही अपनी-अपनी तमाम तरह की संस्तुतियों के साथ पूरे लाव-लश्कर के साथ लौटेंगे तथा रामायण-महाभारत के धारावाहिक की तरह लागातार अपनी प्रस्तुतियाँ हम सबके सामने प्रस्तुत करेंगे।धारावाहिक की तमाम कड़ियों को हम शांत-चित होकर सुनेंगे,बिल्कुल आदर्श नागरिक की तरह,जिसमें हम सबके ऊपर अभिव्यक्ति रूपी पुलिस का कड़ा पहरा होगा।

अब तो ऐसा भी प्रतीत होता है कि मानो! अरे मानों!!नहीं, पुख्ता आधार पर यह उद्घघोषित किया जा सकता है कि अब तो इल्लियों ने,उल्लुओं और चमगादड़ो से दोस्ती कर ली है।वो "धर्मबीर" फ़िल्म के उस गाने की तरह जो आपने सुना ही होगा आपने कि- "सात अजूबे इस दुनिया में आठवीं अपनी जोड़ी।अरे तोड़े से भी ना टूटे ये धर्मबीर की जोड़ी"। इस तरह से गठबंधन कर लिया है इन सबने।तमाम तरह की विभिन्न प्रजातियों के चमगादड़ अब हवाई दौरों में बिजी हैं ताकि वे इत्मिनान से नए-नए नियम बनाकर एक ऐसी सूची बनाकर हम सबके समक्ष प्रस्तुत कर सकें,जिस पर पर कोई भी ऊँगली न उठाई जा सके और यदि भूलकर किसी ने अपनी ऊँगली उठा भी दी तो उस ऊँगली को इस तरह से प्रायोजित किया जा सके कि यह तो चाँदी के वर्क में लिपटी हुई सोने की चाइनीज है चीज है और विदेशी चीजों का तो हमें हर हाल में बहिष्कार करना है,क्योंकि हमें तो वैसे भी अब वो बनना है जो आज तक हम बन ही नहीं पाए थे।ऊँगली उठाने वालों का काम तो एक विशेष तरह का अपोजिट वॉयरस फैलना काम होता है।इसलिए इस ओर किसी को भी ध्यान देने की जरूरत नहीं है।मजे की बात तो यह भी है कि अब तो इल्लियों,उल्लुओं और चमगादड़ो ने अपनी यूनियन भी बना ली है और सर्वसम्मति से यह निर्णय कर लिया है कि हम सबको समयानुसार एक दूसरे के विपक्ष में ही बोलना है ताकि मिमियाने वाली भेड़-बकरियों को असमंजस में डाला जा सके और वे इसी उधेड़बुन में लगी रहें कि आखिर किसकी बात हमारे फायदे में है।ध्यान रहे इस बीच हमारी यूनियन में किसी भी प्रकार का भेदभाव पैदा ना हो पाए पर भेड़-बकरियों में हमने रंग,रूप,नस्ल-वस्ल,कद-काठी का भेद जरूर पैदा कर देना है,अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार।सभी में यह आपस में तय हो गया है कि भेड़-बकरियों के अलावा भी अन्य प्रकार की पक्की-अधपक्की फसलों को भी यह विश्वास दिलाया जाए कि हम जो भी कर रहे हैं सब उनके ही हित में कर रहे हैं।हमारे अलावा इस धरा से लेकर अम्बर तक और स्वर्ग लोक से पाताल लोक तक कोई भी अन्य हितैषी नहीं है।ताकि तमाम भेड़-बकरियां और चने के खेत वाली या अन्य फसलें अपनी-अपनी रक्षार्थ बारी-बारी से हमें ही निर्वाचित करें ताकि हम उनका रक्तपान कर सके।अरे हाँ,ये जो आजकल इस भयावह दौर में सड़कों,पटरियों पर कुकुरमुत्तों की तरह कुछ नए किस्म की फसलें उग आई हैं और इस समय हम सबके लिए नागफनी का काम कर रही हैं।वैसे इन्हें अपना वोट तो हमें देना ही है,वैसे भी इनके पास वोट देने के अलावा और कुछ होता नहीं है।इनके लिए तुम लोग अपनी जीप पर सब कुछ पूरे ताम-झाम के साथ सब कुछ सवार रखो,याद रहे ये नागफनी को तो अपने आप ही कुचल देंगे क्योंकि जो मीलों बिना खाद-पानी के चलकर भी अपनी फसल उगा सकता है।वो भला नागफनी से क्या डरेगा।इसलिए किसी भी प्रकार की कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है।जो मटर जैसी हरी और टमाटर जैसी कोमल फसलें थी,उन्हें तो हुम पहले काट चुके हैं।शायद!शरद जोशी को उस समय ध्यान नहीं रहा होगा वरना इस मामले में भी वो खुद ही आत्मनिर्भर हो जाते।मुझे ये सब करने की जरूरत ही नहीं होती।माफ़ करना आदरणीय शरद जोशी जी।

 

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