Tuesday, May 19, 2020

कोरोना कारण और निवारण-कवि

लो जी इस कोरोना के लिए अब नई मुसीबत खड़ी हो गई।खुद कोरोना महाराज इस बिमारी से पीड़ित हो गए हैं और अपने लिए सिर छुपाने की जगह ढूंढते फिर रहे हैं।चीन से निकला और सारे विश्व में अपनी विजय पताका फहरा चुका कोरोना अब भारत में आकर खुद ही पस्त हो गया लगता है।पता है क्यों,क्योंकि भारत में आकर ये कोरोना वायरस भारत के कवियों में फंस गया?अब भारत के कवियों के बारे में तो सारा जग जानता है कि कोई इनको एक बार फंसना चाहिए फिर तो ये उसकी बैंड बजाकर ही छोड़ते है।बेशक इस चक्कर में खुद इनकी बैंड बज जाए लेकिन ये हार नहीं मानते क्योंकि ये उस हिन्दुस्तान के कवि हैं जहाँ के कवियों ने बड़े-बड़े राजाओं को कविता सुना-सुनाकर उनका हृदय परिवर्तन कर दिया था तो इनके आगे ये कोरोना क्या चीज है जी?

अब देखो ना,जबसे कोरोना आया तब से तो यहाँ के कवियों ने कुछ खासा ध्यान नहीं दिया लेकिन जब कोरोना ने अपने पैर पसारने शुरू किये तो यहाँ के कवि भी अपने शब्दों के बाण,अलंकारों की बरछी,बिम्बों की तलवार,प्रतीकों के भाले लेकर,तुकांत-अतुकांत तुणीर में सजाकर निकल पड़े इस कोरोना की जान लेने।तब से ही कोरोना की जान पर बन आई।अब देखो ना छुप-छुपाके कोरोना एक लाख तक ही पहुँच पाया लेकिन हमारे कवियों ने तो कई लाख रचनाएं लिखकर अखबारों के पन्ने इस तरह से भर डाले जैसे कोई छोटा बच्चा पेंसिल लेकर कोरे कागज पर कीड़े-मकोड़े ऐसे बनाता है कि जैसे वो चित्रकारी में जन्मजात पारंगत हो और चित्रकारी का डिप्लोमा लेकर ही पैदा हुआ हो।

सोशल मीडिया पर कोरोना को लेकर इतनी बाढ़-सी आ गयी कि मानों करोड़ों मजदूर अपने घर की ओर जा रहे हों।जब भी सोशल मीडिया का कोई पन्ना खोलो तब ही वहाँ दर्जन भर कोरोना की कविताएँ चस्पा मिलेंगी।अख़बारों में अलग से पृष्ठ ही निर्धारित कर दिए और तो और ऑनलाइन कवि-सम्मेलनों की बहार-सी आ गयी और पुरस्कार तो ऐसे बंटने लग गए जैसे घर-घर रेवड़ियाँ बांटी जा रही हो और फलाना-ढिमाका सम्मानों से कवि सज्जन नवाजे जानें लगे।कइयों ने तो कोरोना काल पर पुस्तकें प्रकाशित करने की ही योजना बना डाली और कइयों ने तो ऑनलाइन प्रकाशित ही कर दी।

जो अख़बार या पत्र-पत्रिकाएं कभी साहित्य को छूते तक नहीं थे।उन्होंने भी अपने यहाँ "कोरोना से जंग-कवियों के संग"नाम के विशेष संस्करण छापे गए।इसी बहाने कवियों की भी बाढ़ सी आ गई।जिसके मन में जो आया उसने वैसी ही भड़ास निकाल ली और कुछ लोगों ने यहाँ तक कह डाला कि ये तो कविता के नाम पर छलावा है लेकिन कौन माने?सब लगे रहे कविताओं के माध्यम से कोरोना से जंग करने में।अपने -अपने हथियार लिए हुए और अभी तक डटे हुए हैं।उधर कोरोना खुद को छिपाता फिर रहा है इन तमाम गंजे-पिलपिले कवियों से, तभी तो कभी कहीं से निकल जाता है और कभी कहीं से निकल जाता हैं लेकिन जैसे ही कोरोना कहीं भी निकलता है तो कवि इसके पीछे पड़ जाते हैं और बेचारा फिर से अपने छुपने की जगह ढूंढने लगता है।कुल मिलाकर हम तो सरकार से यही कहेंगे कि नए-पुराने,ताजे-बासी सभी कवियों को भी "करोना-योद्धा"माना जाए और साहित्य में नया पुरस्कार शुरू किया जाए और हर वर्ष दिया जाए क्योंकि भारत के कवि भी किसी कोरोना योद्धा से कम नहीं हैं।भविष्य में भी यह ध्यान रखा जाए कि किसी भी प्रकार की आपदा में सबसे पहले कवियों के दो- चार हाथ भी देख लिए जाए।

 

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