Friday, May 22, 2020

परमेश्वर की खींचातानी में मजदूर बना त्रिशंकु

सबसे पहली व सीधी बात आखिर यह पंच परमेश्वर हैं कौन? - सबसे शक्तिशाली व पहले पर 'कोविड-19', दूसरे पर हृदय विदारक 'भूख', तीसरे पर 'रोजगार', चौथे पर 'केन्द्र व राज्य और पाँचवें पर 'राजनीति' जो इस वैश्विक महामारी में भी आपसी खींचातानी का कोई भी मौका गंवाना नहीं चाहते, जिसके कारण इन पंच परमेश्वर की खींचातानी में मजदूर की हालत उस त्रिशंकु जैसी हो गई है जो न तो आगे जा सकता है और न ही पीछे, न ऊपर और न नीचे बस बीच में ही फँसकर रह गया है।
बात त्रिशंकु की करें तो त्रिशंकु वह अवस्था है जहाँ कोई इंसान सामने की स्थितियों को देख खुद के हालात का फैसला नहीं कर पाता अर्थात वह निराधार हो जाता है। यह ऐसी स्थिति है जहाँ फँसकर इंसान की चेतना शून्य हो जाती है कि वह क्या करे और क्या न करे। आज वहीं स्थिति शहरों में रह रहे हमारे मजदूरों की हो गई है जो इन पंच परमेश्वर की खींचातानी के चलते त्रिशंकु का जीवन जी रहे हैं।
जहाँ एक तरफ उन्हें कोरोना विषाणु अपना शिकार बनाने को अमादा है तो दूसरी तरफ उद्यम के बंद हो जाने से पेट की भूख का हड़ताल भी उनके जीने की आस को तोड़ रहा है तो वहीं केन्द्र व राज्य के आपसी मतभेद की राजनीति के कारण पलायन कर रहे मजदूर कहीं रास्ते में फँसे पड़े हैं तो कहीं इंतजार में कि उन्हें घर पहुँचाया जाएगा के बीच दम तोड़ रहे हैं। उनकी यह स्थिति बेहद ही दर्दनाक दौर में फँसी नजर आ रही है वह न घर के हुए हैं और न ही घाट के बस बीच मझधार में बिन पतवार की नौका मानिंद बहे जा रहे हैं।
इन पंच परमेश्वर की आपसी खींचातानी में मजदूरों को त्रिशंकु बनाना क्या जायज है? आखिर क्या यह मजदूर लोकतंत्र का हिस्सा नहीं? मजदूरों को लेकर यह खींचातानी जायज नहीं साहेब मजदूर भी तो इसी लोकतंत्र का हिस्सा है। उसे भी जीने का पूर्ण अधिकार है उसे भी यह अधिकार मिलना चाहिए नहीं तो सामाजिक कड़ी का पतन हो जाएगा और हमारी सामाजिक-आर्थिक गत्यात्मकता इससे जरूर प्रभावित होंगी।


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