Thursday, May 14, 2020

परिवार का आधार

भारतीय समाज में अपनी संस्कृति और सभ्यता पर चलने की बात कही जाती है। परिवार संस्कृति का ही हिस्सा हैं। परिवार जहां प्रेम और विश्वास के साथ अपने जीवन का निर्वाह करते हैं। हमारे देश और समाज में प्रत्येक जन्में बच्चे का एक परिवार होना आवश्यक है। जिससे उसका लालन-पालन आसानी से हो सकें। किन्तु कुछ बच्चे ऐसे होते हैं। जिनका कोई परिवार नहीं होता है, तब वह अनाथ कहलाते हैं। जिनके जीवन में कई कमियां रहती है।


परिवार प्रेम और विश्वास से एक दूसरे के साथ निर्वाह करते हैं। किन्तु आज के समय में हमारे लिए स्वार्थ और मोह इतनी जरूरी बातें हो गई है, कि परिवार का साथ रहना और ना रहना भी इन बातों पर निर्भर हो गया है। मध्यम वर्ग में आने वाले परिवार इस सोच और व्यवहार से सबसे अधिक ग्रस्त हैं। एक दूसरे से दूर जाने की सोच परिवार में फूट डालने का कार्य करतीं हैं। जिसके चलते परिवार के सदस्य एक दूसरे के लिए साथी बनने की जगह, बोझ प्रतित होने लगते हैं। परिवार जनों से दूर होने की कोशिश करता व्यक्ति प्रत्येक समय खुद से संघर्ष करता है।


आज हमारे समाज में संयुक्त परिवार कम पाएं जाते हैं। जिसका मुख्य कारण यह है कि आज हमारे कार्य, अधिक से अधिक पैसा और नाम कमाने की चाहत हमें एक दूसरे से दूर कर रही है। संयुक्त परिवार में सभी को बराबर स्थान प्राप्त नहीं होता पाता है। सता प्राप्त करने की चाहत संयुक्त परिवारों को तोड़ती है और एकल परिवार का निर्माण करती है। आज हमारे सामाज में एकल परिवार ही अधिक दिखाई देने लगे हैं। जिनमें माता-पिता, बच्चों और दादी-दादा हो सकतें हैं।


परिवार हमारे समाज की नींव है। जहां से बच्चों को सबसे पहली शिक्षा प्राप्त होती है। यही से कई बार बच्चों को लिंग भेद और धर्म भेद की शिक्षा मिलती है। जिसके आधार पर वह भेद भाव के आधार पर विचार करना सीखता है। यही शिक्षा हमारे जीवन की पहचान बनतीं है। हम इसी के आधार पर लोगों के साथ अपना और पराया करते हैं।


हमारे सामाज में स्त्रियों के साथ प्रत्येक स्थान पर अलग-अलग प्रकार के व्यवहार का सामना करना पड़ता है। यह व्यवहार ही उनके साथ होने वाले भेदभाव की नींव रखने के साथ ही, स्त्रियों के साथ होने वाले अपराधों की नींव है। हमारे सामाज में स्त्रियों के साथ होने वाले भेदभाव की सोच हमारे परिवारों में ही जन्म लेती हैं। हम अपने बच्चों को परिवार में ही अपने व्यवहार के द्वारा ऐसी शिक्षा देते हैं। जिसके चलते वह स्त्रियों के साथ  होने वाले अपराधों में बढ़ोतरी आतीं हैं।


यह बस एक चौंकाने वाली बात नहीं है। यह हमारे लिए शर्म की बात है कि हम अपने परिवार में पुरूषों को किस प्रकार से पालते हैं। वह भी ऐसे परिवारों में जहां स्त्रियां ही संस्कृति और सभ्यता की डोर अपने हाथों में थाम कर बच्चों को सही और ग़लत की शिक्षा देती है। ऐसे परिवार जहां स्त्री योनि में जन्म लेने का अर्थ है, घरों के काम काज करने वाली। जिसका सम्पूर्ण जीवन बस अपने परिवार के लिए होता है। उसकी अपनी खुशियां और सपने तो दूर की बात है। यदि उसके साथ कुछ ग़लत होता है, तब उसे सहने की शिक्षा भी हमारे परिवार ही द्वारा अधिकर प्राप्त होती है।


हमारे लिए परिवार की आवश्यकता है। उनका विरोध कर उन्हें समाप्त कर देना हमारे लिए सही नहीं है। बच्चों को प्रेम और शिक्षा प्राप्त होना जरूरी है। बिना शिक्षा और प्रेम के किसी भी बच्चे का जीवन मुश्किलों से भरा हो सकता है। यही कार्य परिवार करतें हैं। बच्चों की सुरक्षा और सुविधाएं हमारे यहां परिवार की ही जिम्मेदारी होती है। जिसके लिए हमें परिवार की आवश्यकता है। किन्तु हमें साथ ही इन परिवार प्रेम और शिक्षा में बदलावों की जरूरत है। लिंग भेद पर भेदभाव को समाप्त करना चाहिए। नफ़रत का जहर अपने बच्चों के अंदर ना पलने दें। धर्म जाति के आधार पर भेद भाव करना हमें अपने बच्चों को सीखना उचित नहीं है। यह सभी बदलाव करें, अपनी सोच में। ताकि आप के परिवार में पलने वाले बच्चों का जीवन सुरक्षित और आसान हो सकें।
         राखी सरोज


No comments:

Post a Comment