Monday, June 1, 2020

तम्बाकू कानून का निर्माण भारत में कहाँ तक सार्थक 

400 साल पहले मुगल काल के दौरान पुर्तगालियों द्वारा भारत में तम्बाकू को लाया गया था। भारत में  विभिन्न संस्कृतियों के कारण, तम्बाकू तेजी से विभिन्न समुदायों, विशेष रूप से देश के पूर्वी, उत्तरपूर्वी और दक्षिणी भागों में सामाजिक-सांस्कृतिक का हिस्सा बन गया। चीन के बाद भारत दुनिया में तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश माना जाता है| तम्बाकू का उपयोग आज दुनिया में मृत्यु का प्रमुख कारण है। प्रति वर्ष 4.9 मिलियन तम्बाकू से संबंधित मौतों के साथ, कोई भी अन्य उपभोक्ता उत्पाद उतना खतरनाक नहीं है, जितना की यह तंबाकू। तंबाकू और धूम्रपान के दुष्परिणामों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देशों ने इसके लिए एक प्रस्ताव रखा जिसके बाद हर साल 31 मई को तंबाकू निषेध दिवस मनाने का निर्णय लिया गया।तभी से 31 मई को प्रतिवर्ष विश्व धूम्रपान निषेध दिवस के रूप में इसे मनाया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रयास 

21 मई 2003 वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक ऐतिहासिक दिन था जब 56 वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में, डब्ल्यूएचओ के 192 सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से विश्व की पहली सार्वजनिक स्वास्थ्य संधि, डब्ल्यूएचओ फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल को अपनाया।

 विश्व की पहली सार्वजनिक स्वास्थ्य संधि,  ‘the Framework Convention on Tobacco Control  (FCTC)’  "विश्वव्यापी स्वास्थ्य, सामाजिक, आर्थिक, और तंबाकू सेवन के पर्यावरणीय परिणामों और तंबाकू के धुएं के संपर्क में आने पर उसके विनाशकारी परिणाम के बारे में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंता" को व्यक्त करता है। हालांकि, इस संधि में किसी भी सक्षम प्रवर्तन तंत्र का अभाव है और इसकी संरचना राज्य के व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करती है, जो कि तंबाकू उद्योग पर बहु-राष्ट्रीय निगमों के प्रभाव से प्रभावित है। यह संधि अपने 10 वें वर्ष तक पहुंच गई है, वैश्विक स्वास्थ्य और अंतर्राष्ट्रीय कानून विशेषज्ञों की बढ़ती संख्या संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रणाली को लागू करने के लिए एक तंत्र के रूप में उपयोग करने की वकालत कर रही है। लेकिन गंभीर प्रश्न यह है की क्या यह प्रणाली संधि के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सबसे अच्छे मॉडल का प्रतिनिधित्व करती है? इसमें कौन से अधिकार निहित होंगे? किसी विशेष मामले के लिए कौन से विशिष्ट मानवाधिकार प्रवर्तन प्रणालियाँ सबसे उपयुक्त होंगी? 

इन नशीली वस्तुओ के प्रयोग से होने वाली हानियों से अपने नागरिको को बचाने और स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सदस्य देशों के साथ की गयी अर्न्तराष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण संधि के तहत भारत सरकार ने तम्बाकू का प्रयोग रोकने के लिए 18 मई 2003 को विस्तृत तम्बाकू नियंत्रण कानून पारित किया जिसे ’’सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिशेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनिमय) अधिनियम 2003 नाम दिया गया है। जो सम्पूर्ण भारत में प्रवृत्त है। जिसमें 2 अक्टूवर 2008 को संशोधन भी किया गया है।

रोकने को ये हैं नियम

तम्बाकू उत्पाद के कुप्रभाव को रोकने के लिए उक्त संशोधित और प्रभावी अधिनियम की धारा 4 में सार्वजनिक स्थानों  पर धूम्रपान को अपराध घोषित किया गया है। इसके तहत ऐसे सभी स्थानों पर हानियों को प्रदर्शित करने वाला बोर्ड़ लगाने का निर्देश है। जिसके उलंघन पर 200 रूपये के जुर्माने का प्राविधान है। लेकिन तीस कमरों से ज्यादा वाले होटल, तीस से अधिक व्यक्तियों के बैठने को क्षमता वाले भोजनालयों के साथ थोड़ी नरमी दिखायी गयी है। कानूनी प्रविधानो के तहत एयरपोर्ट में अलग से स्मोंकिंग जोन बनाया जा सकता है।

इस अधिनियम की धारा 5 में तम्बाकू उत्पादों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष विज्ञापनों  को प्रतिबन्धित किया गया है। लेकिन दुकानों पर निर्धारित आकार में हानियों को प्रदर्शित करने वाला बोर्ड़ भी लगा होना चाहिए। फिल्मों में तम्बाकू दृष्य भी अपराध के दायरे में रखे गये हैं। इसके उलंघन पर 1 से पांच साल की कैद व 1 हजार से पांच हजार तक के जुर्माने का प्रविधान है। जबकि धारा 6 में 18 वर्ष से कम आयु वर्ग को अथवा उसके द्वारा तम्बाकू उत्पाद बेचने को अपराध घोषित किया गया है। नियम तो यहां तक है कि तम्बाकू उत्पाद बिक्री स्थान पर नाबालिग दिखाई भी न पडे़। और शिक्षण संस्थानो के 100 गज के दायरे में ऐसे उत्पादो की बिक्री अपराध है। पर क्या इसका पालन हो रहा है। जबकि इसके उलघंन पर 200 रूपये के जुर्माने का प्राविधान है। धारा 7 में चित्रित वैधानिक चेतावनी के बिना तम्बाकू उत्पाद के पैकेट बेचना अपराध घोषित किया गया है। जिसके उलंघन पर 2 से 5 साल की कैद व 1 हजार से 10 हजार के जुर्माने का प्राविधान है।

1997 और 2001 के बीच, उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न वादों जैसे कि रामकृष्णन बनाम केरल राज्य (AIR 1999 Ker 385) और मुरली देवड़ा बनाम भारत संघ (2001 8 SCC 765) में  धूम्रपान-मुक्त हवा व्यक्ति मूल अधिकार माना गया और पांच राज्यों ने धुआं-रहित और तंबाकू नियंत्रण कानून के साथ इस प्रयास को आगे बढाया| 

क्या होता है इसका पालन

इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि तम्बाकू उत्पादों के प्रयोग को रोकने के लिए जो नियम कानून बनाये गये हैं उनका वास्तव में पालन नही हो पा रहा है। जिसका परिणाम विकृति के रूप सामने आ रहा है। नतीजा ये है कि सार्वजनिक व प्रतिबन्धित स्थानो पर भी खुलेआम धूम्रपान जारी है। दुकानों पर तो निर्धारित सूचनात्मक बोर्ड भी नहीं लगे है। नाबालिक तम्बाकू उत्पादों की दुकान खोल बैठे है और तमाम नाबालिक इसकी खरीद्दारी भी कर रहे है। यहीं नहीं तमाम स्कूलों के गेट के निकट तम्बाकू उत्पादकों की दुकाने सजी है और तमाम स्कूलों के शिक्षक अपनी छात्रों से तम्बाकू उत्पाद मगवाते है। क्या यहां नियमों और कानूनों का उल्लघन नहीं होता। यदि होता है तो क्या प्राविधान के अनुसार कार्यवाही की जाती है। और यदि नहीं तो इसका जिम्मेदार कौन है।

ऐसा क्यों नहीं करते

तम्बाकू उत्पादों के प्रयोग से होने वाली हानियों से बचाने के लिए नियम कानून पालन के साथ साथ प्रत्येक नागरिक को जागरूक होना पडेगा और शासन को भी गंभीर अख्तियार करने होगें। इसके पीछे होने वाले राजस्व लाभ की चिन्ता छोड कर राष्ट्र लाभ के प्रति कठोर होना होगा तभी इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। आम नागरिकों को आवश्यक है कि वे यदि इस तरह की लत के शिकार हैं तो भी उन्हें इसका प्रयोग अपने बच्चों से छिप कर करना चाहिए। ताकि वे इससे परचित ही न हो सके। दूसरी बात यह कि जब इससे इतनी बडी हानि है तो फिर सरकार इसके उत्पादन पर ही क्यों नहीं रोक लगा देती। हरियाण और गुजरात सहित देश के कई प्रांतों में जब नशे पर प्रतिबंध लगाया गया तो क्या वहां की व्यवस्था संचालित नहीं हो रही है। हां दीर्घगामी परिणाम के लिए कुछ तो कुर्वानिया देनी ही होगी।

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