Monday, January 25, 2021

गणतंत्र बनाम हमारा अन्नदाता

 हम सभी 26 जनवरी 2021 को अपना 72 वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे है, इसी दिन 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद 1950 में हमारे भारत का संविधान लागू हुआ था, हमारे यहां गणतंत्र दिवस  पूरे देश में जाति, पंथ, धर्म की परवाह किए बिना खुशी के साथ मनाया जाता है। जैसा कि हम सभी जानते ही हैं कि 26 जनवरी को ही हमारा  संविधान लागू हुआ  था। आजादी के बाद से ही  हर साल राजपथ पर होने वाली  परेड में देश के हजारों नागरिकों के ही साथ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और विदेशी मेहमान भाग लेते हैं। नए किसान कानून को लेकर सरकार और किसान इस बार आमने  सामने हैं। आज आजादी के इतने वर्षों के बाद भी हमारे अन्नदाता का हालात क्या है ? यह तो साथियों आज किसी से छुपा हुआ ही नहीं है। इस बार हमारे अन्नदाता ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे, जो कि ऐसा  पहली बार हमारे अन्नदाता ट्रैक्टर मार्च गणतंत्र दिवस के दिन नहीं निकाल रहे हैं इससे पहले भी गणतंत्र दिवस की ऐतिहासिक परेड में हमारे अन्नदाता ने ट्रैक्टर की परेड निकाल चुके हैं, इस बार साथियों हम आपको बता दें कि यह ट्रैक्टर मार्च सरकार के काले कानून के विरोध में निकाली जा रही है,लेकिन जो वर्ष 1952 में ट्रैक्टर झांकी निकाली गई थी, उसमें देश के हर राज्यों से कम से कम एक ट्रैक्टर की झांकी निकाली गई थी जिसमें हम यह दिखाने की कोशिश किए थे कि हमारे देश के किसानों की दशा कैसी है, उस वक्त तो सरकार ने खुद किसानों के समर्थन में ट्रैक्टर झांकियां निकलवाई थी लेकिन इस वक्त पासा पलटा हुआ है, इस समय अन्नदाता अपने दर्द को दिखाने के लिए ट्रैक्टर रैलियां निकाल रहे हैं, ताकि हुक्मरानों के कानो में अन्नदाता के दर्द को सुनाई दे सके, लेकिन हम देख रहे हैं कि सरकार सिर्फ अन्नदाता को गुमराह करने का लगातार प्रयास कर रही है, जैसा कि  वर्षों से होता आ रहा है, सरकार किसी का भी रहा हो अन्नदाता को हमेशा ही हाशिए पर रखते हुए सभी दलों ने किसानों को लेकर  केवल और केवल राजनीतिक रोटियां ही सेकी है। हम सभी देख रहे है कि लगभग 2 महीनों से अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन में हमारे ना जाने कितने अन्नदाता इस भीषण सर्दी में शहीद हो गए, लेकिन सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं है , जो अन्नदाता सभी का पेट भरते हैं, क्या उस अन्नदाता की  चिंता सरकार को नहीं करनी चाहिए? जब हम लोकतंत्र में प्रयुक्त 'लोक' शब्द को देखते है तो अपने अपार विस्तार में समस्त संकीर्णताओं से मुक्त है। 'लोक’ जाति-धर्म-भाषा-क्षेत्र-वर्ग आदि समूह की संयुक्त समावेशी इकाई है, जिसमें सहअस्तित्व का उदार भाव सक्रिय रहकर 'लोक' को आधार देता है। 'लोक' में सबके प्रति सबकी सहानुभूति का होना आवश्यक है। इसी से 'लोक' एक इकाई के रूप में संगठित होकर अपनी जीवन-शक्ति अर्जित करता है। 'जिओ और जीने दो' का उदार विचार लोक-संग्रह का मार्गदर्शी सिद्धांत है और इस सिद्धांत पर आधारित 'लोक' में न्याय, समानता और शांति की प्रतिष्ठा के लिए 'लोक' ने स्वशासित 'तंत्र' के रूप में लोकतंत्र को समस्त शासन तंत्रों में श्रेष्ठ मान्य किया है। वही जब हम संविधान के अनुच्छेद 14 की बात करते हैं तो सभी के बराबरी की बात करता है, लेकिन अन्नदाता को वर्षों से हाशिए पर क्यों रखते आए हैं हुक्मरान साहब जी लोग ?   दोस्तों गणतंत्र दिवस हमें हमारे संघर्ष की याद दिलाता है, कैसे हमारे भारतीय युवाओं की मदद से पूर्ण स्वराज की मांग को हमने प्राप्त किया, स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कुछ हमारे उच्च सिद्धांतों और विचारों पर ही आधारित था, जैसे कि अहिंसा,सहयोग, गैर -भेदभाव इसी प्रकार से हम अन्नदाता के लिए आवाज को बुलंद करें, तभी यह राष्ट्रीय गौरव का दिन सही मायने में प्रदर्शित होगी। क्योंकि जब हमारे अन्नदाता ही नहीं होंगे तो आप ही सोच कर देखो कि हम क्या खाएंगे? आए दिन देश के अलग-अलग कोने से हम सभी को सुनने में आता ही है कि यहां के किसान ने आत्महत्या किया, वहां के किसान के बच्चे ने अपने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी, आखिर ऐसा कब तक जो हमें रोटी देता है उसका परिवार वह अन्नदाता वंचित बनकर अपने ही कृषि प्रधान देश में रहेगा? एक बात और इस बार गणतंत्र दिवस में खास बात यह भी  रहने वाला है कि इस बार गणतंत्र दिवस समारोह में विदेश का कोई भी गणमान्य मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल नहीं हो रहे हैं, जैसा कि हम जानते हैं कि 1966 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है ,जब भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में किसी भी दूसरे देश का प्रमुख मुख्य अतिथि नहीं आ रहे हैं, वैसे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि होने वाले ही थे कि ब्रिटेन में कोविड-19 का नया प्रकार सामने आने और उससे पैदा हुए हालात को देखते हुए ब्रिटिश पीएम ने अपना भारत दौरा ही रद्द कर दिया है। इस बार की गणतंत्र दिवस के ऐतिहासिक परेड में अन्नदाता के ट्रैक्टर परेड गूंगे बहरे और अंधे को जगाने के लिए निकल रही है, उस वक्त की ट्रैक्टर परेड बड़ा ही शान से पूरे दुनिया में भारत को कृषि प्रधान देश की छवि को दिखाने के लिए निकली थी। 

 साथ ही साथियों विदर्भ किसानों की आत्‍महत्‍या पर भी होगी झांकी इस ट्रैक्‍टर परेड में विभिन्न राज्यों की कई झांकियां होंगी जो ग्रामीण जीवन, केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के साथ ही आंदोलनकारियों के साहस को दर्शाएंगी। एक किसान नेता ने बताया कि प्रदर्शन में शामिल होने वाले सभी संगठनों को परेड के लिए झांकी तैयार करने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा, ‘ इनमें से लगभग 30 प्रतिशत पर विभिन्न विषयों पर झांकी होंगी, जिसमें भारत में किसान आंदोलन का इतिहास, महिला किसानों की भूमिका और विभिन्न राज्यों में खेती के अपनाये जाने वाले तरीके शामिल होंगे।’ महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के कुछ बच्चों ने किसानों की आत्महत्या पर एक झांकी की योजना बनाई है , जो इस बार हमारा 72 वां गणतंत्र बनाम अन्नदाता को दर्शाता हुआ नजर आएगा।।

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