Thursday, May 15, 2025

मचान खेती

मचान विधि (Trellis Method) एक आधुनिक खेती तकनीक है, जिसमें फसलों को ज़मीन पर फैलने के बजाय बाँस, लकड़ी, तार, या जाल का सहारा देकर ऊपर चढ़ाया जाता है। यह विधि विशेष रूप से बेल वाली फसलों (जैसे लौकी, तोरई, करेला, खीरा, सेम, तरबूज, कद्दू आदि) के लिए बहुत कारगर होती है।
यहाँ मचान विधि की पूरी जानकारी दी गई है:

मचान विधि के मुख्य तत्व
सहारा ढांचा: बाँस, लकड़ी के डंडे, लोहे के पाइप या मजबूत रस्सियों से एक जाल या फ्रेम बनाया जाता है।
ऊंचाई: आमतौर पर 5 से 7 फीट ऊंचा मचान बनाया जाता है ताकि पौधों को पर्याप्त जगह मिल सके।
जाल बिछाना: ऊपर से मजबूत प्लास्टिक जाल या तार जाल लगाया जाता है, जिस पर पौधे चढ़ते हैं।
मचान विधि के लाभ
फसलों का स्वस्थ विकास: पौधे ज़मीन से ऊपर रहते हैं, जिससे उन्हें हवा और प्रकाश अच्छे से मिलता है।
रोग व कीट नियंत्रण: जमीन पर पड़े फलों में सड़न और कीड़ों का हमला अधिक होता है; मचान से यह समस्या घट जाती है।
अधिक उपज: पौधे अच्छे से बढ़ते हैं और अधिक फलते हैं।
फलों की गुणवत्ता बेहतर: फल साफ और आकार में अच्छे होते हैं।
सिंचाई और खाद प्रबंधन आसान: फसल के नीचे आसानी से पानी और खाद दी जा सकती है।
कम जगह में ज्यादा उत्पादन: सीमित भूमि में भी अच्छा उत्पादन संभव है।
कैसे करें मचान विधि से खेती:
1. जगह का चयन: अच्छी धूप वाली समतल भूमि चुनें।
2. खेत की तैयारी: ज़मीन को अच्छी तरह जोतकर समतल करें और क्यारी बनाएं।
3. मचान बनाना:
6-8 फीट की दूरी पर खंभे (बाँस/लकड़ी) गाड़ें।
खंभों के ऊपर मजबूत रस्सी या तार बांधें।
उसके ऊपर जाल फैलाकर कस दें।
4. बीज बुवाई या पौध रोपण:
बीज सीधे मिट्टी में या नर्सरी से तैयार पौधे लगाएं।
पौधों को जाल पर चढ़ाने के लिए समय-समय पर सहारा दें।
5. देखभाल:
नियमित रूप से पानी दें।
खाद और कीटनाशक जरूरत अनुसार दें।
मचान की मजबूती समय-समय पर जांचें।
किन फसलों के लिए सबसे उपयुक्त है:
लौकी
करेला
खीरा
तोरई
सेम
कद्दू
तरबूज

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