यहाँ मचान विधि की पूरी जानकारी दी गई है:
सहारा ढांचा: बाँस, लकड़ी के डंडे, लोहे के पाइप या मजबूत रस्सियों से एक जाल या फ्रेम बनाया जाता है।
ऊंचाई: आमतौर पर 5 से 7 फीट ऊंचा मचान बनाया जाता है ताकि पौधों को पर्याप्त जगह मिल सके।
जाल बिछाना: ऊपर से मजबूत प्लास्टिक जाल या तार जाल लगाया जाता है, जिस पर पौधे चढ़ते हैं।
मचान विधि के लाभ
फसलों का स्वस्थ विकास: पौधे ज़मीन से ऊपर रहते हैं, जिससे उन्हें हवा और प्रकाश अच्छे से मिलता है।
रोग व कीट नियंत्रण: जमीन पर पड़े फलों में सड़न और कीड़ों का हमला अधिक होता है; मचान से यह समस्या घट जाती है।
अधिक उपज: पौधे अच्छे से बढ़ते हैं और अधिक फलते हैं।
फलों की गुणवत्ता बेहतर: फल साफ और आकार में अच्छे होते हैं।
सिंचाई और खाद प्रबंधन आसान: फसल के नीचे आसानी से पानी और खाद दी जा सकती है।
कम जगह में ज्यादा उत्पादन: सीमित भूमि में भी अच्छा उत्पादन संभव है।
कैसे करें मचान विधि से खेती:
1. जगह का चयन: अच्छी धूप वाली समतल भूमि चुनें।
2. खेत की तैयारी: ज़मीन को अच्छी तरह जोतकर समतल करें और क्यारी बनाएं।
3. मचान बनाना:
6-8 फीट की दूरी पर खंभे (बाँस/लकड़ी) गाड़ें।
खंभों के ऊपर मजबूत रस्सी या तार बांधें।
उसके ऊपर जाल फैलाकर कस दें।
4. बीज बुवाई या पौध रोपण:
बीज सीधे मिट्टी में या नर्सरी से तैयार पौधे लगाएं।
पौधों को जाल पर चढ़ाने के लिए समय-समय पर सहारा दें।
5. देखभाल:
नियमित रूप से पानी दें।
खाद और कीटनाशक जरूरत अनुसार दें।
मचान की मजबूती समय-समय पर जांचें।
किन फसलों के लिए सबसे उपयुक्त है:
लौकी
करेला
खीरा
तोरई
सेम
कद्दू
तरबूज
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