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Monday, February 28, 2022

अवसर!


इस अवसर को तू ना गवा,
समय बहे जैसे हवा,
कदर करे जब मिले अवसर,
जीवन में रह जाए ना कोई कसर!

विजेता हमेशा अवसर पहचाने,
पराजित ढूंढे अनेक बहाने,
हर दिन में एक नया अवसर मिले,
इस जिंदगी को मुस्कुराकर जी ले!

हर पल है दूसरा मौका,
ना कर स्वयं से धोखा,
ना जाने दे कीमती समय को हाथ से,
हां आजमाले, तुझ में भी कुछ बात है!

अब ना तू कभी ठहर,
मंजिल में आए तूफान या कहर,
पीछे धकेल, मुसीबत की लहर,
मंजिल को पाने का है यह सुनहरा अवसर!!

Thursday, February 17, 2022

संजीव-नी

शहरों की नीयत ठीक नहीं,

टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों के बीच,

नन्हें-नन्हें पैरों के निशान,

तोतली बोली में झूमती हवाएं,

लहरा लहरा कर  उड़ता दुपट्टा,

अनाज की बालियां,

खेतों की हरियाली,

छल छल कर बहता पानी,

पहली बरसात की 

काली मिट्टी की सोंधी गंध,

गोधूलि की फैली संध्या,

बैलों का मुंडी हिला हिला कर चलना,

छोटी सकरी सड़क पर,

बकरी और गाय हांकने की आवाज,

दूर दिखाई देता,

घास फूस का मचान,

और उस पर बैठा प्रसन्न मंगलू,

सब कुछ धुंधला दिखता,

फ्लैशबैक की तरह मलीन,

घिसटता मित्टता सहमता दिखाई देता,

कसैला धूंआ 

गोधूलि की बेला को धूमिल करता,

निश्चल पानी  कसैला हो उठा,

नन्हें पैर भयानक बन गए,

काली सौंधी मिट्टी पथरीली हो चली,

छोटी पगडंडी हाईवे में बदल गई,

मशीनी हाथियों का सैलाब झेलती,

दूर लकड़ी का मचान नहीं,

गगनचुंबी इमारत दिखती,

उस पर बैठा बिल्डर लल्लन सिंह,

गाड़ियों की गड़गड़ाहट,

कहीं कोई चिन्ह निशान नहीं दिखते,

अब खुशहाल हरीतिमा के,

इमारतों की फसल, लोहे का जंगल,

सब कुछ कठोर,

शायद खुशहाल हरे हरे गांव और जंगल

को देखकर,

शहरों की नीयत ठीक नहीं दिखती?

संजीव ठाकुर,रायपुर छ.ग.9009415415,

Wednesday, January 26, 2022

गणतंत्र दिवस!

26 जनवरी 1950 में भारतीय संविधान लागू किया,
भारत को पूर्ण रूप से गणतंत्र घोषित कर दिया!
परेड, भाषण, विद्यालय में मिठाइयां, 26 जनवरी का दिन राष्ट्रीय पर्व ,
सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि के साथ मनाते हुए होता है गर्व!
पहली बार गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 को मनाया,
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ तिरंगा फहराया!
इस मुख्य दिवस पर शहीदों को श्रद्धांजलि करते हैं अर्पित ,
सलामी देते हैं उनको, जिनका जीवन है देश के लिए समर्पित!
भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिल्ली के लाल किले पर भारतीय ध्वज फहराया जाता,
देश की राजधानी दिल्ली मे बड़ी ही धूम धाम से अस्त्र शस्त्र का प्रदर्शन होता!
सामूहिक रूप में खड़े होकर  हम सब राष्ट्रगान गाते ,
देशभक्त बनकर अपने देश की उन्नति के लिए काम करने की कसम खाते!
जिनकी शहादत से देश हुआ गणतंत्र,
झुक कर करते हैं उन वीरों के चरणों में नमन,
चलो हम सब भी, हमारे देश की जिम्मेदारी, पूर्ण हृदय से निभाए,
जय हिंद, वंदे मातरम का मिलके नारा लगाए!!

Tuesday, January 4, 2022

यक्ष प्रश्न कलयुग का

 हे धर्म राज यह भारत पूछ रहा आपसे यक्ष प्रश्न 

अगर संभव होतो हल कर दो भारत के यह यक्ष प्रश्न ll 

चार भाई के जीवन खातिर आपने हल किए सारे यक्ष प्रश्न 
आज इस कलयुग में क्यों नहीं कर रहे हल यह यक्ष प्रश्न ll

 माना भीम अर्जुन सा ना अब इस युग में है कोई बलवान
 पर आप तो समदर्शी हैं इसका कहाँ आपको गुमान ll

 उस युग में तो केवल चार जान थे संकट में
 लेकिन आज तो पूरा भारत हीं है संकट में ll 

 वहाँ तो केवल एक शकुनी जो गंदी चाले चलता था
 यह
यहाँ तो हर गली में शकुनि जो गंदी चाले चलता है ll

 वहाँ तो केवल एक दुर्योधन जिसको था सत्ता का भूख
 यहाँ तो हर घरचौराहे पर दुर्योधन खोज रहा सत्ता का सुख ll 

 एक धृतराष्ट्र मौन साधकर बुलाया कई संकट को
 यहाँ तो धृतराष्ट्र का फौज खड़ा बुला रहा संकटों को ll 

 एक शकुनी कंधार से आकर हस्तिनापुर मिटाने का रखा था दम 
आज ना जाने कितने शकुनी भारत को मिटाने का करते जतन ll

 उन दुष्टों को तो झेल गए आप अपने दृढ़ विचारों से 
अब इस भारत को कौन बचाए ऐसे कु विचारों से ll 
 दुर्योधन संग एक दुशासन चीर हरण को था बेताब।
 आज ना जाने कितने दुशासन चीरहरण को है तैयार ll 

 उस युग में तो श्रीकृष्ण थे स्वयं विष्णु के अवतार 
आज इस कलयुग में पूरा भारत हीं है निराधार ll 
 सत्ता पाने के मद में सब के सब बन बैठे धृतराष्ट्र ।
भारत माता की गरिमा को कर रहे हैं तार-तार ll 

 सेना की गरिमा को यह धूल धूसरीत करते हैं।
 अपने खादी के काले छीटें को भारत माँ पर मढते हैं ll 

 अगर उन्हें मौका मिले तो बोटी बोटी नोच कर खाएंगे ।
ऊपर से राक्षसी अट्टाहस कर हम आम जनता को डराएंगे ll 

 जब आपने स्थापित किया खुशहाल शासन आपको भी ना इसका होगा एहसास।
 एक दिन इस भरतपुर का होगा ऐसा खस्ताहाल ll

 अब जनता त्रस्त हो चुका ऐसा यक्ष प्रश्न झेल कर 
बस आपसे यही निवेदन आम जनता को शांति देदो यक्ष प्रश्न हल कर ll

 यह ना कर सकते तो आपको पुनः धरा पर आना होगा
 संगा अपने परीक्षित को लाकर पुनः एक कुशल शासक छोड़कर जाना होगा ll3 
श्री कमलेश झा भागलपुर बिहार

Monday, December 27, 2021

जागो हिन्दू जागो

     चर्चों   से   चिठ्ठी   निकल   पड़ी, 

     मस्जिद  का  फतवा  बोल  रहा।
     यदि   मंदिर   अब  खामोश  रहे,
     समझो  फिर  खतरा  डोल रहा।
                        वो  देश  चलाएॅ फतवे से,
                        तुम   तेल   सूंघते  ही रहना।
                        जब घर में घुसकर मारेंगे,
                        तब  हाथ  रगड़ते  रहना।
     वो काल-खण्ड  हम याद करें,
     जब   बटे   हुए  थे  जाती  में।
     पराधीन    यह    देश    हुआ,
     व  घाव  मिला  था  छाती  में। 
                    हिन्दू  विघटन  के  कारण  ही,
                    परतन्त्र रहे हम  सदियों तक।
                    अगर    अभी   न   हम   चेते,
                    फिर करो तैयारी जन्मों तक।         
      परिदृश्य वही फिर आज यहां,
      सबको मिलकर चलना होगा। 
      नहीं  जातिवाद, अब राष्ट्रवाद,
      की  धारा  में ही बहना  होगा। 
                      एकत्र  हो  रहे  फ्यूज  बल्ब,
                      सूरज को दिया दिखाने को।
                      नहीं   हैं  दाने   जिनके  घर,
                      वो  अम्मा  चली भुनाने को।                         
      हुंकार भरें जब एक अरब,
      सारी दुनियाँ हिल जाएगी। 
      चोरों  की  गठबंधन  नीती,
      सब धरी पड़ी रह जाएगी। 
                   हम   लाखों  वीर  शहीदों  का,
                   अपमान   नहीं  कर  सकते हैं। 
                   हो  उनके  सपनों  का  भारत,
                   संकल्प तो हम कर सकते हैं।            
      धन्य   देश   की   है   जनता,
      सरकार   बनाई   मोदी  की।
      औलादें  बाहर  निकल  रहीं,
      बाबर खिलजी व लोदी की।              
                      है  पीएम  की  बारात  बड़ी,
                      फिर  दूल्हा  किसे  बनाएंगे।
                      वो अभी वोट लेकर सबका,
                      सन  अस्सी  को दोहराएंगे। 
      देश   की   सत्ता  गद्दारों  को,
      नहीं     सौंपने    अब    दूंगा।
      मेरे  तन   में   शक्ती  जितनी,
      सब कुछ अर्पण मैं कर दूंगा।     
                      गठबंधन   जाली   टोपी  का,
                      सड़कों  पर   रौंदा   जाएगा।
                      बाइस   तो  आने  दो  मित्रों,
                      फिर घर-घर भगवा छाएगा। 
     दी   आज   चुनौती  है उनको,
     जो  चले  हैं  देश मिटाने  को।
     हम   भी   कट्टर   हिन्दू  ठहरे,
     हिन्दू  को  चले   जगाने  को।    
                     वो आग से लड़ने है निकला,
                     अंगारों  से अब  डरना क्या।
                     वो  शेर है  भारत  माता का,
                     गद्दारों  से अब  डरना क्या। 
     गठबंधन  करके सारे दल,
     देश  को दलदल कर देंगे। 
     जो  भरा खजाना मोदी ने,
     वो लूट के खाली कर देंगे। 
                      है   देश   तुम्हारे   हाथों   में,
                      निज  भाग्य तुम्हारे हाथों में।
                      अब देश की भावी पीढ़ी का,
                      निर्माण    तुम्हारे   हाथों  में।    
     चहुँ ओर से फतवा निकल रहा,
     क्या   अपनी   हंसी  कराओगे। 
     बन  जाएॅगे  गीदड़  एक अरब,
     क्या फतवा सरकार  बनाओगे।  
                  अब  बड़ी  चुनौती  बाइस  की,
                  मिलकर  विजयी   होना  होगा।
                  नव  स्वर्णिम  भारत के खातिर,            
                  फिर   से   मोदी   लाना होगा

                        भारत माता की जय !

Sunday, December 26, 2021

आज जन्मदिन विशेष है

उस महान आत्मा का ,

जो भारत की पहचान था।
अटल के नाम से विख्यात था।

चले गए इस दुनिया से वो।
लेकिन भारत को विश्व गुरु l
की श्रेणी में लाकर खड़ा किया,
आतंकवाद को खत्म किया |

भारत भूमि से दुश्मन को l
सीमा से खदेड भागने पर मजबूर किया,
भारत की ताकत का लोहा
दुश्मनों को फिर मनवा दिया l 

राजनीति का पुरोधा था वो।
लडकर कभी हार नहीं माना
हार कर भी जीतने की।
उम्मीद पर जीता रहा।

मौत को बांध मुठ्ठी में भर कर।
जिंदगी का सफर में चलता रहा।
अटल था वो अटल हैं अटल 
रहेगा ।
यही संदेश दुनिया को देकर गया।
_____________________
      शैलेन्द पयासी ( स्वतंत्र लेखक 
विजयराघवगढ़, कटनी मध्यप्रदेश

वफ़ा के नाम पे धोका (ग़ज़ल)

जिसने चराग़ दिल में वफ़ा का जला दिया

ख़ुद को भी उसने दोस्तों इंसां बना दिया।

घरबार जिसके प्यार में अपना लुटा दिया
उस शख़्स ने ही बेवफा हमको बना दिया।

जो मिल गए हैं ख़ाक में वो होंगे और ही 
हमने तो हौसलों को ही मंज़िल बना दिया।

यह है रिहाई कैसी परों को ही काट कर 
सैयाद तूने पंछी हवा में उड़ा दिया।

हंस हंस के ज़ख़्म खाता रहा जो सदा तेरे 
तूने ख़िताब उसको दगाबाज़ का दिया।

'निर्मल' समझ के अपना जिसे प्यार से मिले 
उसने वफ़ा के नाम पे धोका सदा दिया।

आशीष तिवारी निर्मल 
लालगांव रीवा 

अटल हमारे अटल तुम्हारे

अटल  हमारे  अटल  तुम्हारे।

नहीं   रहे  अब   बीच  हमारे।
जन जन  के  थे  राज दुलारे।
अटल  हमारे  अटल  तुम्हारे।
बेबाक    रहे   बोल  चाल  में।
मस्ती  दिखती  चालढाल  में।
अश्क   बहाते     घर  चौबारे।
अटल  हमारे   अटल  तुुम्हारे।
अगर कहीं कुछ  सही न पाया।
राजधर्म  तब  जा  सिखलाया।
इसीलिये   थे   सब  के   प्यारे।
अटल   हमारे   अटल  तुम्हारे।
सजे  मंच  पर   जब  आते  थे।
झूम  झूम  कर  फिर  गाते  थे।
नहीं   बिसरते   आज  बिसारे।
अटल  हमारे    अटल  तुम्हारे।
चला  गया जनता  का  नायक।
छोड़ सभी कुछ  यार यकायक।
जन जन उनको  आज  पुकारे।
अटल   हमारे   अटल   तुम्हारे।
किया  देश हित  जीवन अर्पण।
बिरला    देखा    गूढ़   समर्पण।
रोते    हैं    यूँ     चाँद    सितारे।
अटल   हमारे    अटल   तुम्हारे।
कम से कम की  दिल  आज़ारी।
खेली  जम  कर   अपनी   पारी।
लगा  रहे  सब   मिल  जय कारे।
अटल   हमारे    अटल   तुम्हारे।
राजनीति   थी   खेल   खिलौना।
खेला   करके    सब  को   बौना।
शब्द     चढ़ाये      शब्द    उतारे।
अटल   हमारे    अटल    तुम्हारे।
हमीद कानपुरी
(अब्दुल हमीद इदरीसी)

एहसास

सर्दी बहुत है

गर्मी का एहसास करवाइए ।
नफरत बहुत है
मोहब्बत का एहसास करवाइए ।
गम बहुत है
खुशियों का एहसास करवाइए।
बेगानापन बहुत है
अपनेपन का एहसास करवाइए।
अंधेरा बहुत है
रोशनी का एहसास करवाइए।
शोर बहुत है
शांति का अहसास करवाइए।
अस्थिरता बहुत है
स्थिरता का एहसास करवाइए।
मिथ्या बहुत हौ
सत्यता का एहसास करवाइए।
दोगलापन बहुत है
एकसारता का एहसास करवाइए।

राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
पता-गांव जनयानकड़

Thursday, December 23, 2021

भोर-भिनसार

विधा - छंद मुक्त


परिचय - निशा खैरवा पुत्री मनोज खैरवा
छात्रा रामकुमारी कॉलेज
मु.पो. बिदासर,लक्ष्मणगढ़, सीकर राज.



भोर भिनसार शोर नित्य चहुँओर
कलरव निकुंज-खग निशा कंठ
उड़ फुर्र चाह उर-नभ वेग-तेग
भोर-भोर कजरारे अलसाये नैन।

अँगड़ाई अलसाई अंग-अंग मोरनि
प्रातः उच्छ्वास जैसे झंझावात
मृदु मुस्कान जैसे छवि कलीकंज
दृष्टि भोरी चंचल जैसे गोवत्स।

मन कोमल-अमल भाव निर्मल
विवेक एक नेक हित समरूप
मृदु बोल-तौल-मोल हित जान
कमी न, कमाई गुण जान न रूप।

Wednesday, December 22, 2021

उठो वीर जवानों

उठो वीर जवानों भारत के भारत माता की यही पुकार 

साधो अपने लक्ष्य को साधना की बस यही पुकार ।। 

 यह धरती है वीरों का जिनके कर्मो का गवाह इतिहास 
उस इतिहास के पन्ने में दर्ज कराना अपना इतिहास।। 

 परशुराम की कर्म भूमि है जहाँ परसु उठता अन्याय 
पर एक एक कर अधर्मी और अन्यायी का परशु हिसाब करता न्याय पर।। 

 तुम वंशज हो राम के जिनके आदर्श का गाथा है 
धर्म पथ और कर्म पथ के सामंजस का गाथा है।। 

 हरिश्चंद्र हो जिसके पूर्वज वो बोलो कैसे असत्य पर धरे मौन 
राजपाट को तुच्छ ही जाना सत्य पथ पर चलकर मौन।। 

 भीष्म जहाँ की अटल प्रतीज्ञा अर्पण किये जीवन का सुख 
राष्ट्र रक्षा का विडा मन में अर्पण किये जीवन का सूख।। 

 इतिहास पुरूष हैं अर्जुन तेरे जिनके वाणों की टंकार 
बड़े बड़े और वीर योद्धा भी करते थे उन्हें नमस्कार।।

 देश तुम्हारे ही जन्मे थे लीला धर लेकर अवतार
 मुरली गैया और सुदर्शन जिनके थे प्रिय हथियार।। 

 कितने वीरों का नाम कहूँ यह भारत माता स्वतः गवाह
 क्या एक एक कर नाम गिनाऊं जिनके कृत्यों का है भंडार।। 

 चन्द्रगुप्त उस मलेच्छ पर भारी जिसने जीत पूरा विश्व
 विश्व विजेता को घुटनों बैठकर चंद्रगुप्त ने जीता दिल।। 

 चौहान चलाए सब्दबेधी चित किया उस जालिम को 
भारत माता के रक्षा में आहुति दे दिया अपने आप को।। 

 चंद्रशेखर ,भगत और वीर सुभाष जन्म लिए जिस मिट्टी पर 
आजादी का लहर उठाकर स्वाहा हो गए उस  मिट्टी पर ।। 

लाखों लाख सपूत हुए आर्यावर्त की पुण्य धरा 
अब उनके किये कृत्य पर पानी जैसे है फिर रहा।। 

 अब भी अगर जग गए तो मिट जाएगा अंधियारा
 धवल किरण लेकर आएंगे रश्मि रथी का उजियारा।।।।
श्री कमलेश झा भागलपुर

Thursday, December 2, 2021

कयामत

उस रोज़  कयामत  दबें पांव मेरे घर  तक  आई  थी।

इंसान  का मानता  हूँ.....
कोई वजूद  नहीं।
उस रब  ने साथ  मिलकर  मेरी हस्ती  मिटाई  थी।

उस रोज़  कयामत  दबें पांव मेरे घर  तक  आई  थी।
शगुन -अपशगुण  की,
कोई बात  ना आई  थी।
समझ  ही ना पाया,
किसने नज़र  लगाई।
किसने नज़र  चुराई  थी।

उस रोज़  कयामत  दबें पांव मेरे घर  तक  आई  थी।
ना दुआओं ने असर  दिखाया।
ना ज्योतिषी कोई गिन पाया।
ना हवन - पूजन काम  आया।
ना मन्नत का कोई  धागा किस्मत बदल  पाया।

उस रोज़  कयामत  दबें पांव मेरे घर  तक  आई  थी।
सजदे  में जिसके हम  थे।
लगता  था .....नहीं कोई गम  थे।
उसने भी  हाथ  छोड़ा।
विश्वास  ऐसा तोड़ा।
जिंदगी ने,मार कर   फिर से जिन्दा छोड़ा।

उस रोज़  कयामत  दबें पांव मेरे घर  तक  आई  थी।
मै समझा  नहीं.....  क्योकि
अनगिनत विश्वाशों....  ने आँखों पर 
एक गहरी  परत  चढ़ाई  थी।
रब  है....... कहाँ!!!!!!!
कहाँ.......उसकी सुनवाई  थी।

स्वरचित रचना
 प्रीति शर्मा "असीम"
 नालागढ़,हिमाचल प्रदेश

Friday, November 19, 2021

तेरा सानिध्य

मैं तेरे पास रहूं

तेरे साथ रहूं
यही काफी है।
मंत्रों का बोझ
तंत्रो का ओज
भारी सा लगता है।
तेरी गोद में
ममता भरी छाया में
सोया रहूं
यही काफी है।
जन्म जन्मांतर की सिद्धियां
युगों-युगों की रिद्धियां
अब भारी सी लगती है
तेरा हाथ पकड़ कर
बस चलता रहूं
हर जगह
हर क्षण
यही काफ़ी है।

राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)

Thursday, July 1, 2021

तुम मेरी पहली और आखरी आशा

तुम्हीं मेरी पहली और आखरी आशा

तुम्हीं मेरी हो जीने की अभिलाषा
कहे करूं बखान तेरे प्यार की परिभाषा
सुन प्रियतम मेरे तुम ही मेरी पिपासा।।

तुम संग ही जुड़ी मेरी हैं सांसें
तुम्हें ही देख भरती मैं आंहें
बिन तेरे रह ना पाती प्रियतम
तुम्हीं मेरे जीने की हो वजह।।

मेरी पहली मंजिल तुम 
मेरी आखरी मंजिल भी गुम
खोके तेरी आंखों की गहराई मे प्रियवर
जैसे हो जाती मैं बेसुध।।

तुम मेरी पहली और आखरी आशा।।2।।

वीना आडवाणी"तन्वी"
नागपुर, महाराष्ट्र

आंखों में सागर लहराए

 आँखों में सागर लहराए

होठों पर मुस्कान खिली है!
आत्म-कक्ष में भंडारे में
दुख की बस सौगात मिली है!

मन उपवन में किया निरीक्षण
प्रेम-पुष्प सब निष्कासित हैं!
सांसों से धड़कन तक फैले
कंटक सारे उत्साहित हैं!

पीडाओं के कंपन से अब
अंतस की दीवार हिली है!
आत्म-कक्ष के--------

उलझ गये रिश्तों के धागे
जगह-जगह पर गाँठ पड़ी है!
द्वार प्रगति के बंद हुए सब
मुश्किल अब हर राह खड़ी है!

सत्य-झूठ की दुविधा में ही
विश्वासों की परत छिली है!
आत्म-कक्ष के---------

प्रश्न सरीखा जीवन जैसे
निशदिन उत्तर ढूढ़ रही हूँ!
पर्वत नदियाँ झरनों से अब
पता स्वयं का पूँछ रही हूँ!

सृष्टि करे संवाद भले पर
सबकी आज जुबान सिली है!
आत्म-कक्ष के-------

Monday, June 7, 2021

खाकी

आश है खाकी।

विश्वास है खाकी।

निर्बल का बल है खाकी।

जन जन की सुरक्षा है खाकी।

सीमाओं की प्रहरी है खाकी।

अपराधियों का भय है खाकी।

सेवा है खाकी।

सुरक्षा है खाकी।

सहयोग है खाकी।

अपराधियों पर अंकुश है खाकी।

आदर्श समाज का प्रतिबिंब है खाकी।

करुणा दया और न्याय है खाकी।

सकारात्मक सोच है खाकी।

त्याग और बलिदान है खाकी।

तन का गौरव है खाकी।

प्रत्येक संकट का निदान है खाकी। 

दिन और रात कर्तव्य का निर्वहन है खाकी।  

फिर भी बदनाम है खाकी।

रचयिता- डॉ. अशोक कुमार वर्मा


Tuesday, May 18, 2021

श्मशान में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सब जल रहे हैं पास-2*

 ऐसी विपदा तो सौ सालों में,कभी नहीं थी आई।

कैसा ये परिदृश्य बना है, टीवी देखें आये रुलाई।

इंसानों ने विकास हेतु,किया प्रकृति से खिलवाड़।
वृक्ष एवं जंगल सब काटे,बंद ऑक्सीजन किवाड़।

बड़े बड़े तालाबों को पाटा,बिल्डर्स का है ये धंधा।
खनन माफियाओं का भी,काम हुआ नहीं ये मंदा।

वृक्षारोपण किए नहीं हैं,प्रदूषण भी ऐसा फैलाया।
साँस भी लेना दूभर है,कोरोना ने ऐसे पैर फैलाया।

पिघल रहा ग्लेशियर,ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है।
भू जल भी क्षरण हो रहा,ऊर्जा ह्रास का असर है।

अपनी करनी का ये फल,मानव ही भोगा-भोगे गा।
धरती पर तो शुकून नहीं,हर घर में रोग है भोगे गा।

इन सब झंझावातों से कैसे,इंसान कोई संघर्ष करे।
आजिज आ गया है ये,इंसा कोविड से संघर्ष करे।

कितनी जानें रोज जा रहीं, हर तरफ है हाहाकार।
आपदा में भी अवसर का,कर रहे लोग हैं व्यापार।

नहीं रह गई इंसानियत कोई,ब्लैक में बेंचते दवाई।
लाशों का ढ़ेर लगा है,अस्पताल में बेड है न दवाई।

शमशान में जाते ही,मिट ये गया है सब छुआछूत।
पास पास ही जल रहे हैं,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र।

राजनीति लाशों पर भी होये,कितनी है ये बेहयाई।
किसी नेता को भी बिलकुल,इसमें शर्म नहीं आई।

कभी-2 मरने वाले के दरवाजे,पे पहुँच भले जाते।
नेतागण दिखावे में अपना भी,ये शोक जता जाते।

डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*

वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

Monday, May 17, 2021

फिर भारत मुस्कायेगा

खुशहाली आएगी वापस,फिर भारत मुस्काएगा।

वक्त  बुरा है जो भी देखो,जल्दी ही कट जाएगा।

कठिन समय है देखो प्रियवर,
धीरज  सब   को  रखना  है।
विजय  हमारी  निश्चित होगी,
नहीं  किसी   को थकना  है।
थोड़ी   दूरी   पर  है  मंजिल, 
शिखर  हमें  अब  चढ़ना है।
आयेगी    जो   भी  बाधाएं,
मिलकर   सबसे  लड़ना है।
विपदा को जो समझे अवसर,दर -२ ठोकर खाएगा।
वक्त बुरा  है  जो  भी देखो,जल्दी  ही  कट  जाएगा।

कभी अँधेरे से   डर कर क्या,
दिनकर   नहीं  निकलता  है।
और शूल से   डर  कर बोलो,
फूल   नहीं  क्या खिलता है।
संकट   का आना  जाना ही,
जीना    हमें    सिखाता   है।
लड़ते  कैसे हैं   मुश्किल  से,
संकट    ही   समझाता   है।
कट जाएगी रातें काली,भोर  सुखों का आएगा।
वक्त बुरा है जो भी देखो,जल्दी ही कट जाएगा।

रिश्तों  को  तुम जोड़े रखना,
प्रेम   भरे    इन   धागों   से।  
अंधियारा कब जीत सका है,
जलते     हुए   चिरागों   से।
वीर  पुरुष के  वंशज हैं हम,
हार    हमें   स्वीकार   नहीं।
युद्धभूमि   से   पीछे   हटना,
है  अपना    किरदार   नहीं।
कौन खड़ा है  संग हमारे,संकट  ही समझाएगा।
वक्त बुरा है जो भी देखो,जल्दी ही कट जाएगा।

नितिन त्रिगुणायत 'वरी'
शाहजहॉपुर उत्तर प्रदेश

Monday, May 3, 2021

वृक्षों को जिंदा रहने दो

 प्राणवायु भी बहने दो

मानव के मानवता को

यूँ न हरपल मरने दो,

वृक्षों को जिंदा रहने दो


प्रकृति के श्रृंगार को यूँ ही न बर्बाद होने दो

मानवता को भी जिंदा रहने दो

मानव ने जब भी प्रकृति पर पर वार किया

प्रकृति ने फिर भी सम्मान किया

धरा को हरा भरा रहने दो

वृक्षों को जिंदा रहने दो


मानव ने वृक्षों को बेदर्दी से काट दिया 

इसे विकास का नाम दिया

अब और प्रकृति पर प्रहार न करो 

वृक्षों को जिंदा रहने दो 


निर्माण नया नित करते हैं

कल की परवाह न करते हैं

जो होता है वो होने दो

वृक्षों को जिंदा रहने दो


कल क्या होगा कुछ तो सोचो 

प्रकृति हिसाब जब मांगेगी

तब सोई आँखें ये जगेंगी

 मेघ नहीं जब बरसेंगे

सभी जीव बूँद बूँद को तरसेंगे

तब प्राणवायु के लिए तरसेंगे

जब प्रलय की घरी आएगी

सब कुछ ध्वंस हो जाएगा

तब अर्थ काम नहीं आएगा

ये बात मुझे अब कहने दो

वृक्षों को जिंदा रहने दो


अब और न देर होने दो

वृक्षों को जिन्दा रहने दो

हम बीज नया लगाएंगे

धरती को हरा भरा बनाएंगे

प्रकृति का श्रृंगार लौटाएंग।

          - प्रमोद कुमार सहनी (शिक्षक)सह जिला सलाहकार, भारत स्काउट गाइड वैशाली,बिहार

Saturday, May 1, 2021

लूट मचाने वालों सोचो

गलियां सूनी सड़कें सूनी,

      सूने पार्क, माल, मुहल्ले।
इस बिपत्ति की घडी में,
     कुछ की है बल्ले बल्ले।
कुछ की है बल्ले बल्ले,
     कुछ तो चांदी कूट रहे।
कोरोना के कहर में यारों,
     दिया जला के लूट रहे।
वह सोच रहे हैं ऐसे ही,
     बिपदा की आंधी रोज बहे।
हो अवैध कमाई हर दिन,
     कुबेर हमारा हाथ  गहें ।।

लूट की कमाई जो खाये,
     उन्नति हो उसकी आठ गुनी।
जब प्रकृति की मार पड़े ,
     तो रोये बेचारा सिर धुनी।
तो रोये बेचारा सिर धुनी,
     पीटे दोनों हाथ से छाती ।
क्या बिगाड़ा राम बताओ,
     कह रोवे दुष्ट का नाती ।
लूट मचाने वालों सोचो,
      बिना आवाज उसकी लाठी।
पड़ेगी मार जब उसकी,
      तो मिलेगा न जग में साथी।।