Monday, February 28, 2022
अवसर!
Thursday, February 17, 2022
संजीव-नी
शहरों की नीयत ठीक नहीं,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों के बीच,
नन्हें-नन्हें पैरों के निशान,
तोतली बोली में झूमती हवाएं,
लहरा लहरा कर उड़ता दुपट्टा,
अनाज की बालियां,
खेतों की हरियाली,
छल छल कर बहता पानी,
पहली बरसात की
काली मिट्टी की सोंधी गंध,
गोधूलि की फैली संध्या,
बैलों का मुंडी हिला हिला कर चलना,
छोटी सकरी सड़क पर,
बकरी और गाय हांकने की आवाज,
दूर दिखाई देता,
घास फूस का मचान,
और उस पर बैठा प्रसन्न मंगलू,
सब कुछ धुंधला दिखता,
फ्लैशबैक की तरह मलीन,
घिसटता मित्टता सहमता दिखाई देता,
कसैला धूंआ
गोधूलि की बेला को धूमिल करता,
निश्चल पानी कसैला हो उठा,
नन्हें पैर भयानक बन गए,
काली सौंधी मिट्टी पथरीली हो चली,
छोटी पगडंडी हाईवे में बदल गई,
मशीनी हाथियों का सैलाब झेलती,
दूर लकड़ी का मचान नहीं,
गगनचुंबी इमारत दिखती,
उस पर बैठा बिल्डर लल्लन सिंह,
गाड़ियों की गड़गड़ाहट,
कहीं कोई चिन्ह निशान नहीं दिखते,
अब खुशहाल हरीतिमा के,
इमारतों की फसल, लोहे का जंगल,
सब कुछ कठोर,
शायद खुशहाल हरे हरे गांव और जंगल
को देखकर,
शहरों की नीयत ठीक नहीं दिखती?
संजीव ठाकुर,रायपुर छ.ग.9009415415,
Wednesday, January 26, 2022
गणतंत्र दिवस!
Tuesday, January 4, 2022
यक्ष प्रश्न कलयुग का
हे धर्म राज यह भारत पूछ रहा आपसे यक्ष प्रश्न
Monday, December 27, 2021
जागो हिन्दू जागो
चर्चों से चिठ्ठी निकल पड़ी,
Sunday, December 26, 2021
आज जन्मदिन विशेष है
उस महान आत्मा का ,
वफ़ा के नाम पे धोका (ग़ज़ल)
जिसने चराग़ दिल में वफ़ा का जला दिया
अटल हमारे अटल तुम्हारे
अटल हमारे अटल तुम्हारे।
नहीं रहे अब बीच हमारे।जन जन के थे राज दुलारे।
अटल हमारे अटल तुम्हारे।
बेबाक रहे बोल चाल में।
मस्ती दिखती चालढाल में।
अश्क बहाते घर चौबारे।
अटल हमारे अटल तुुम्हारे।
अगर कहीं कुछ सही न पाया।
राजधर्म तब जा सिखलाया।
इसीलिये थे सब के प्यारे।
अटल हमारे अटल तुम्हारे।
सजे मंच पर जब आते थे।
झूम झूम कर फिर गाते थे।
नहीं बिसरते आज बिसारे।
अटल हमारे अटल तुम्हारे।
चला गया जनता का नायक।
छोड़ सभी कुछ यार यकायक।
जन जन उनको आज पुकारे।
अटल हमारे अटल तुम्हारे।
किया देश हित जीवन अर्पण।
बिरला देखा गूढ़ समर्पण।
रोते हैं यूँ चाँद सितारे।
अटल हमारे अटल तुम्हारे।
कम से कम की दिल आज़ारी।
खेली जम कर अपनी पारी।
लगा रहे सब मिल जय कारे।
अटल हमारे अटल तुम्हारे।
राजनीति थी खेल खिलौना।
खेला करके सब को बौना।
शब्द चढ़ाये शब्द उतारे।
अटल हमारे अटल तुम्हारे।
हमीद कानपुरी
(अब्दुल हमीद इदरीसी)
एहसास
सर्दी बहुत है
गर्मी का एहसास करवाइए ।
नफरत बहुत है
मोहब्बत का एहसास करवाइए ।
गम बहुत है
खुशियों का एहसास करवाइए।
बेगानापन बहुत है
अपनेपन का एहसास करवाइए।
अंधेरा बहुत है
रोशनी का एहसास करवाइए।
शोर बहुत है
शांति का अहसास करवाइए।
अस्थिरता बहुत है
स्थिरता का एहसास करवाइए।
मिथ्या बहुत हौ
सत्यता का एहसास करवाइए।
दोगलापन बहुत है
एकसारता का एहसास करवाइए।
राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
पता-गांव जनयानकड़
Thursday, December 23, 2021
भोर-भिनसार
विधा - छंद मुक्त
Wednesday, December 22, 2021
उठो वीर जवानों
उठो वीर जवानों भारत के भारत माता की यही पुकार
Thursday, December 2, 2021
कयामत
उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी।
Friday, November 19, 2021
तेरा सानिध्य
मैं तेरे पास रहूं
तेरे साथ रहूं
यही काफी है।
मंत्रों का बोझ
तंत्रो का ओज
भारी सा लगता है।
तेरी गोद में
ममता भरी छाया में
सोया रहूं
यही काफी है।
जन्म जन्मांतर की सिद्धियां
युगों-युगों की रिद्धियां
अब भारी सी लगती है
तेरा हाथ पकड़ कर
बस चलता रहूं
हर जगह
हर क्षण
यही काफ़ी है।
राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
Thursday, July 1, 2021
तुम मेरी पहली और आखरी आशा
तुम्हीं मेरी पहली और आखरी आशा
आंखों में सागर लहराए
आँखों में सागर लहराए
Monday, June 7, 2021
खाकी
आश है खाकी।
विश्वास है खाकी।
निर्बल का बल है खाकी।
जन जन की सुरक्षा है खाकी।
सीमाओं की प्रहरी है खाकी।
अपराधियों का भय है खाकी।
सेवा है खाकी।
सुरक्षा है खाकी।
सहयोग है खाकी।
अपराधियों पर अंकुश है खाकी।
आदर्श समाज का प्रतिबिंब है खाकी।
करुणा दया और न्याय है खाकी।
सकारात्मक सोच है खाकी।
त्याग और बलिदान है खाकी।
तन का गौरव है खाकी।
प्रत्येक संकट का निदान है खाकी।
दिन और रात कर्तव्य का निर्वहन है खाकी।
फिर भी बदनाम है खाकी।
रचयिता- डॉ. अशोक कुमार वर्मा
Tuesday, May 18, 2021
श्मशान में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सब जल रहे हैं पास-2*
ऐसी विपदा तो सौ सालों में,कभी नहीं थी आई।
कैसा ये परिदृश्य बना है, टीवी देखें आये रुलाई।
इंसानों ने विकास हेतु,किया प्रकृति से खिलवाड़।
वृक्ष एवं जंगल सब काटे,बंद ऑक्सीजन किवाड़।
बड़े बड़े तालाबों को पाटा,बिल्डर्स का है ये धंधा।
खनन माफियाओं का भी,काम हुआ नहीं ये मंदा।
वृक्षारोपण किए नहीं हैं,प्रदूषण भी ऐसा फैलाया।
साँस भी लेना दूभर है,कोरोना ने ऐसे पैर फैलाया।
पिघल रहा ग्लेशियर,ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है।
भू जल भी क्षरण हो रहा,ऊर्जा ह्रास का असर है।
अपनी करनी का ये फल,मानव ही भोगा-भोगे गा।
धरती पर तो शुकून नहीं,हर घर में रोग है भोगे गा।
इन सब झंझावातों से कैसे,इंसान कोई संघर्ष करे।
आजिज आ गया है ये,इंसा कोविड से संघर्ष करे।
कितनी जानें रोज जा रहीं, हर तरफ है हाहाकार।
आपदा में भी अवसर का,कर रहे लोग हैं व्यापार।
नहीं रह गई इंसानियत कोई,ब्लैक में बेंचते दवाई।
लाशों का ढ़ेर लगा है,अस्पताल में बेड है न दवाई।
शमशान में जाते ही,मिट ये गया है सब छुआछूत।
पास पास ही जल रहे हैं,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र।
राजनीति लाशों पर भी होये,कितनी है ये बेहयाई।
किसी नेता को भी बिलकुल,इसमें शर्म नहीं आई।
कभी-2 मरने वाले के दरवाजे,पे पहुँच भले जाते।
नेतागण दिखावे में अपना भी,ये शोक जता जाते।
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
Monday, May 17, 2021
फिर भारत मुस्कायेगा
खुशहाली आएगी वापस,फिर भारत मुस्काएगा।
Monday, May 3, 2021
वृक्षों को जिंदा रहने दो
प्राणवायु भी बहने दो
मानव के मानवता को
यूँ न हरपल मरने दो,
वृक्षों को जिंदा रहने दो
प्रकृति के श्रृंगार को यूँ ही न बर्बाद होने दो
मानवता को भी जिंदा रहने दो
मानव ने जब भी प्रकृति पर पर वार किया
प्रकृति ने फिर भी सम्मान किया
धरा को हरा भरा रहने दो
वृक्षों को जिंदा रहने दो
मानव ने वृक्षों को बेदर्दी से काट दिया
इसे विकास का नाम दिया
अब और प्रकृति पर प्रहार न करो
वृक्षों को जिंदा रहने दो
निर्माण नया नित करते हैं
कल की परवाह न करते हैं
जो होता है वो होने दो
वृक्षों को जिंदा रहने दो
कल क्या होगा कुछ तो सोचो
प्रकृति हिसाब जब मांगेगी
तब सोई आँखें ये जगेंगी
मेघ नहीं जब बरसेंगे
सभी जीव बूँद बूँद को तरसेंगे
तब प्राणवायु के लिए तरसेंगे
जब प्रलय की घरी आएगी
सब कुछ ध्वंस हो जाएगा
तब अर्थ काम नहीं आएगा
ये बात मुझे अब कहने दो
वृक्षों को जिंदा रहने दो
अब और न देर होने दो
वृक्षों को जिन्दा रहने दो
हम बीज नया लगाएंगे
धरती को हरा भरा बनाएंगे
प्रकृति का श्रृंगार लौटाएंग।
- प्रमोद कुमार सहनी (शिक्षक)सह जिला सलाहकार, भारत स्काउट गाइड वैशाली,बिहार
Saturday, May 1, 2021
लूट मचाने वालों सोचो
गलियां सूनी सड़कें सूनी,