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Saturday, May 1, 2021

तुम मुझ मैं

वक्त की दौड़ में

वक्त की हौड़ में
सब कुछ
बहता चला जा रहा है।
सिवाए मेरे हृदय में
खनखनाती हुई तेरी
स्थिर यादों के।

वक्त के शोर में
वक्त के हिलोर में
सब जगह
खामोशी का एक सन्नाटा
बिखरे जा रहा है।
सिवाए मेरे अंतर्मन में
तेरी गुनगुनाती यादों के।

राजीव डोगरा 'विमल'
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा

Monday, April 26, 2021

फेकू बाबा

कोरोना का रोना लटपट

सांस भी छूट रही झटपट।।

आया दवा हुए लापरवाह 
लगी कतारे सजी महफिल
फिर सुनसान का दामन थामने
सोचने लगी है सरकारें।।

मानव तेरी फितरत ने परेशां किया
जो चला जाने वाला था उसे वुलावा दिया।।

यूं तो रैलियां न निकाला कर
ऑन लाइन ही बुलाया कर
चुनाव हो या प्रचार हो
दो गज तू भी दूरी बनाया कर।।

खूब चला तेरा सिक्का जहां में
अब न इसे घिसाया कर
बात फेकने से हासिल क्या
अब न दूजा फेकू बनाया कर।।

बात घिस घिस के जवां हो गई
चौदह से अब इक्कीस हो गयी
दफ्तर हो गये निजी गुलदस्ते
उसमे बैठे कोरोना के फरिश्ते।।
                                    आशुतोष 
                                  पटना बिहार 

Thursday, April 22, 2021

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो

कविता रचयिता- डॉ. अशोक कुमार वर्मा

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो।

धरती खोदी अंबर छेदा, अब और न संहार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

पहाड़ काटे पेड़ काटे, न जंगलों का उजाड़ करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

कंक्रीट की सड़क बना कर, न पृथ्वी का विनाश करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

नदियों को दुषित करके, न इतना तुम पाप करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

पीने को भी तरस जाओगे, न गंदगी का बहाव करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

जनसँख्या न इतनी बढ़ाओ, धरती माँ पर उपकार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

धरती भी छोटी पड़ जागी, मिलकर सब विचार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

अन्य जीव जंतुओं पर भाइयों, न इतना अत्याचार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

वो हैं पर्यावरण मित्र, यह बात थाम स्वीकार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

बड़े बड़े हिमखंड पिघल रहे, न इतना अधिक तापमान करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

धरती माता धधक रही है, न आपदाओं का आह्वान करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

पैट्रॉल डीज़ल के प्रयोग करने में, थोड़ा थाम विचार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

 डॉ. अशोक कुमार वर्मा

Monday, February 15, 2021

बसंत...तुम जब

बसंत तुम जब आते हो ।

प्रकृति में नव -उमंग,
 उन्माद भर जाते हो। 

बसंत तुम जब आते हो
हवाएं चलती हैं सुगंध ले कर। 
जीवन में खुशबू बिखराते हो। 

बसंत तुम जब आते हो।
 कितने नए एहसास जागते हैं। 

सृजन की प्रेरणा दे ।
नित -नूतन संसार सजाते हो।

हर तरफ फूलों से बगियाँ तुम सजाते हो।। 
कहीं पीले -कहीं नारंगी।
लाल गुलाब महकाते हो।

बसंत तुम जब आते हो। 
जीवन में उमंग भर जाते हो।

नदिया इठला कर चलती है। 
दिनों में मस्ती छा जाती है।

 मीठी -मीठी धूप में ,
शीतल चांदनी- सी रात झिलमिलाती है ।
आसमां में  चहकते हैं पक्षी। 
 कोयल के साथ मधुर गीत गाते हो।

 बसंत तुम जब आते हो। 
जीवन में उमंग भर जाते हो। 

नई आस- नई प्यास 
नए विचार -नए आधार। 
बन कर रच जाते हो। 

बसंत तुम आते हो। 
नई तरंग से जीवन को,
 तरंगित कर जाते हो।। 

माँ शारदे स्तुति

जयति भक्तवत्सला शारदे

जयति वीणावादिनी अम्बे।

मेघा प्रखर दे
जड़ता तू हर ले
चेतनता से भर श्वेतांबरे
जयति भक्तवत्सला शारदे
जयति वीणावादिनी अम्बे।

मयूर वाहिनी व्योम प्रसारिणी
धवल मालिका धारिणी
आलोकित कर ज्ञान दीप
सब तिमिर नष्ट कर दें
जयति भक्तवत्सला शारदे
जयति वीणावादिनी अम्बे।

विनय प्रदायिनी,मंगलकारिणी
कला हस्त धर दे
ब्रम्हपुत्री ऋतुपति विराजिनी
प्रज्जवल प्रज्ञा वर दे
जयति भक्तवत्सला शारदे
जयति वीणावादिनी अम्बे।

ज्ञान दे दो सभ्यता का
त्राण कर दो मूढ़ता से
गा सकें वैदिक ऋचाएं
हम सभी तेरी कृपा से
जयति भक्तवत्सला शारदे
जयति वीणावादिनी अम्बे।

जयति श्वेत पद्मासने
जयति भक्तवत्सला शारदे
जयति वीणावादिनी अम्बे।।

Saturday, February 13, 2021

हर कर्म अपना करेंगे ऐ वतन तेरे लिए

आज दुनियाभर में जहां लोग प्यार के नशे में डूबे हुए अपने प्यार का इजहार करने में लगे हैं वहीं भारत में उन शहीदों को याद किया जा रहा है जो 2019 में 14 फरवरी को ही पुलवामा आतंकी घटना में शहीद हो गए थे। देश पर हुए इस भीषण और कायराना हमले में सेना के 40 जवान शहीद हो गए थे, इस आतंकी हमले ने देश ही नहीं बल्कि दुनिया को हिलाकर रख दिया था। आज उसी आतंकी हमले की दूसरी बरसी है और पूरा देश अपने जाबांज शहीदों की शहादत को नमन कर रहा है। 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि  पुलवामा जिले में जैश-ए-मोहम्मद के एक आतंकवादी ने विस्फोटकों से लदे वाहन से सीआरपीएफ जवानों की बस को टक्कर मार दी थी ,जिसमें हमारे 40 जवान शहीद हो गये और कई गंभीर रूप से घायल हुए थे । यह दिन इतिहास में एक और वजह से भी दर्ज है,  दरअसल 14 फरवरी को वैलेंटाइंस डे के तौर पर लोग मानते है। इसे इस रूप में मनाने की भी अपनी एक कहानी है। कहते हैं कि तीसरी शताब्दी में रोम के एक क्रूर सम्राट ने प्रेम करने वालों पर जुल्म ढाए तो पादरी वैलेंटाइन ने सम्राट के आदेशों की अवहेलना कर प्रेम का संदेश दिया, लिहाजा उन्हें जेल में डाल दिया गया और 14 फरवरी 270 को फांसी पर लटका दिया गया। प्रेम के लिए बलिदान देने वाले इस संत की याद में हर वर्ष 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे मनाने का चलन शुरू हुआ, लेकिन आज हम अपने शहीद हुए जवानों के याद में आज शहादद दिवस के रूप में मना रहे,देश के इन वीर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि पूरा देश आज दे रहा है ।।
पूरा भारत देश दिया  नम आंखों से  विदाई।
वीर शहीदों को प्रणाम,रोक न सकोगे आज रुलाई।
 पुलवामा की धरती में, जिन वीरों का खून जला। 
उनकी मां को नमन करें हम, जिनको ये बलिदान मिला।

वहम

खुद के अहम

और वहम में
खुद को खुदा
माना छोड़ दो।
सब की तकदीरे
वो ऊपर वाला ही लिखता है
खुद को शातिर
समझना छोड़ दो।
मैं रहूं न रहूं
इस धरा में
वो सदा ही
वास करता रहेगा
हर जगह में।
मैं मिट्टी में मिट्टी
हो जाऊंगा,
ये कोई नई बात नहीं
मगर वो खुदा
मिट्टी से फिर मुझे बनाएगा
बस ये बात याद रखना।


Wednesday, February 3, 2021

व्यास जी की कलम से सप्रेम भेंट

एक आशियाँ हो मेरा भी छोटा सा जिसमे दो प्रेमी रहते हो ।

कभी वो मेरे लिए संगर्ष करे कभी में उसके लिए संगर्ष करूँ।।
कभी वो मेरी ख़ुशी को अपना समझे और कभी मै उसके दुःख को अपना मानु।।
जब भी चले नयी राहों पे तो उड़ान साथ भरे आसमां की ओर ।
वो मुझे सहारा दे  होसला बढाये और में उसका सहारा बनू।।
ऐसा हो मेरी खुशियों का आशियाँ जिसमे वो हो और में हूँ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
मंजिये मिलें अगर तो एक साथ रहकर मिले न काँटों की चुभन हो न हरने का डर हो।।
न उसको मुझसे कोई सिकायत हो न में उसो कभी सिकायत का मौका दूँ।
न कभी वो मुझसे दूर हो न मुझे उससे दूर होने का ख्याल आये ।।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
वो मेरी गलती को भूल जाये में उसमी गलती को भूल जाऊ।
जब भी नया सबेरा हो नए जीवन की सुरुबात हो सूर्य की नयी किरण सफलता की सुरुवात हो।।
मेरा  भी कोई हो जो मेरा हमसफर बने मुझे समझे और मुझसे प्यार करे।।
न कोइ मज़बूरी हो सांसारिक न  कोई रिश्तों की  रकावट हो ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।

व्यास जी

एक दस्ता है अनकही सी मेरे जसबातों में  
जो आज लिख रहा हूं मेरे अल्फाजों में ।

जो कभी सपने थे मेरे  लब्जों में तेरे 
वो आज  बन गए है सपने  मेरे ।।

कागज की एक कास्ती थी मेरी 
तुझसे ही एक हस्ती थी मेरी ।

समुंदर को पार करने की तमन्ना थी 
कभी ना रुकने की एक सक्ती थी ।

पर आज राहें अधूरी सी लगती है 
चल तो रहे है पर तेरी यादें ही चलती हैं।।

बहुत समझाते है अपने आप को हर वक्त
पर जब तुझे ना सोचें ऐसा नई कोई वक्त ।

कभी बढ़ते है कदम तो कभी रुक जाते हैं
जब आती है तेरी यादें तो सांस रुक जाती है ।

वैसे तो है बहुत गुरूर अपनी सक्सियत का मुझे ।
पर जब हो बात तेरे प्यार की तो हम झुक जाते हैं।।

खुद को लिखना है अभी वाकी 
जो पा लिया वो नहीं है काफी ।

अभी तो बस सुरूवात है मेरी 
हर जीत दिखती है बस हार तेरी।

वो सब मेरी कहानी का हिस्सा है 
जो गुजर गया वो एक किस्सा है ।

अभी वो बस पंख खोलें है 
पूरी उड़ान वाकी है 

जा  जीले तू अपनी जिंदगी 
अभी भी मुझमें जान वाकी है ।

लोगों  के दिल में आज भी हूं में
क्योंकि मेरे कर्मो की शान वाकी है।।

एक दिन पा लूंगा मंजिल अपनी 
क्योंकि मेरे भोले की पहचान काफी है ।।

Tuesday, February 2, 2021

व्यास जी

 (दैनिक अयोध्या टाइम्स)

*इटावा व्यूरो चीफ*
(नेहा कुमारी गुप्ता)


एक दस्ता है अनकही सी मेरे जसबातों में  
जो आज लिख रहा हूं मेरे अल्फाजों में ।

जो कभी सपने थे मेरे  लब्जों में तेरे 
वो आज  बन गए है सपने  मेरे ।।

कागज की एक कास्ती थी मेरी 
तुझसे ही एक हस्ती थी मेरी ।

समुंदर को पार करने की तमन्ना थी 
कभी ना रुकने की एक सक्ती थी ।

पर आज राहें अधूरी सी लगती है 
चल तो रहे है पर तेरी यादें ही चलती हैं।।

बहुत समझाते है अपने आप को हर वक्त
पर जब तुझे ना सोचें ऐसा नई कोई वक्त ।

कभी बढ़ते है कदम तो कभी रुक जाते हैं
जब आती है तेरी यादें तो सांस रुक जाती है ।

वैसे तो है बहुत गुरूर अपनी सक्सियत का मुझे ।
पर जब हो बात तेरे प्यार की तो हम झुक जाते हैं।।

खुद को लिखना है अभी वाकी 
जो पा लिया वो नहीं है काफी ।

अभी तो बस सुरूवात है मेरी 
हर जीत दिखती है बस हार तेरी।

वो सब मेरी कहानी का हिस्सा है 
जो गुजर गया वो एक किस्सा है ।

अभी वो बस पंख खोलें है 
पूरी उड़ान वाकी है 

जा  जीले तू अपनी जिंदगी 
अभी भी मुझमें जान वाकी है ।

लोगों  के दिल में आज भी हूं में
क्योंकि मेरे कर्मो की शान वाकी है।।

एक दिन पा लूंगा मंजिल अपनी 
क्योंकि मेरे भोले की पहचान काफी है ।।

व्यास जी की कलम से सप्रेम भेंट

 (दैनिक अयोध्या टाइम्स)

*इटावा व्यूरो चीफ*
(नेहा कुमारी गुप्ता)

एक आशियाँ हो मेरा भी छोटा सा जिसमे दो प्रेमी रहते हो ।
कभी वो मेरे लिए संगर्ष करे कभी में उसके लिए संगर्ष करूँ।।
कभी वो मेरी ख़ुशी को अपना समझे और कभी मै उसके दुःख को अपना मानु।।
जब भी चले नयी राहों पे तो उड़ान साथ भरे आसमां की ओर ।
वो मुझे सहारा दे  होसला बढाये और में उसका सहारा बनू।।
ऐसा हो मेरी खुशियों का आशियाँ जिसमे वो हो और में हूँ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
मंजिये मिलें अगर तो एक साथ रहकर मिले न काँटों की चुभन हो न हरने का डर हो।।
न उसको मुझसे कोई सिकायत हो न में उसो कभी सिकायत का मौका दूँ।
न कभी वो मुझसे दूर हो न मुझे उससे दूर होने का ख्याल आये ।।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
वो मेरी गलती को भूल जाये में उसमी गलती को भूल जाऊ।
जब भी नया सबेरा हो नए जीवन की सुरुबात हो सूर्य की नयी किरण सफलता की सुरुवात हो।।
मेरा  भी कोई हो जो मेरा हमसफर बने मुझे समझे और मुझसे प्यार करे।।
न कोइ मज़बूरी हो सांसारिक न  कोई रिश्तों की  रकावट हो ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।

 हो मेरा भी छोटा सा जिसमे दो प्रेमी रहते हो ।
कभी वो मेरे लिए संगर्ष करे कभी में उसके लिए संगर्ष करूँ।।
कभी वो मेरी ख़ुशी को अपना समझे और कभी मै उसके दुःख को अपना मानु।।
जब भी चले नयी राहों पे तो उड़ान साथ भरे आसमां की ओर ।
वो मुझे सहारा दे  होसला बढाये और में उसका सहारा बनू।।
ऐसा हो मेरी खुशियों का आशियाँ जिसमे वो हो और में हूँ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
मंजिये मिलें अगर तो एक साथ रहकर मिले न काँटों की चुभन हो न हरने का डर हो।।
न उसको मुझसे कोई सिकायत हो न में उसो कभी सिकायत का मौका दूँ।
न कभी वो मुझसे दूर हो न मुझे उससे दूर होने का ख्याल आये ।।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।
वो मेरी गलती को भूल जाये में उसमी गलती को भूल जाऊ।
जब भी नया सबेरा हो नए जीवन की सुरुबात हो सूर्य की नयी किरण सफलता की सुरुवात हो।।
मेरा  भी कोई हो जो मेरा हमसफर बने मुझे समझे और मुझसे प्यार करे।।
न कोइ मज़बूरी हो सांसारिक न  कोई रिश्तों की  रकावट हो ।
काश मेरा भी एक छोटा सा आशियाँ होता जिसमे दो प्रेमी रहते हों ।।

Sunday, January 31, 2021

गांव के बीते दिन

वो चिलचिलाती धूप और किटकिटाती ठंड,

ओह! सावन की वर्षात में राहें बनती  पंक।


गाँव के बीते ऐसे ही दिन करते रहते तंग ,

चकाचौंध शहर में भी बजते नहीं मृदंग।


खेतों में लतरे हरे मटर की मीठी- मीठी गंध,

मदमाती गेहूँ ,मक्के के भरे भरे हैं अंक।


पीली नीली,सरसों, तीसी से भरे भरे वसंत,

मन को यों लुभाते रहते जैसे कोई पतंग।


मुक्तेश्वर सिंह मुकेश

तम्बू के दिन

ये जिन्दगी हमारी, है मौत से भी भारी,

संकटों को झेला हिम्मत नहीं है हारी। 

चलता रहा सदा , मंजिल मिले हमारी, 

पर धूंध ना छंटा , चहुँ ओर मारा मारी। 

सुबहा से शाम तक यूं खोज मेरी जारी,

ठहरा हुआ समय है,जीने की बेकरारी।

कांटो भरे चमन में,फूलों की वफादारी,

बंदिशों का पहरा, कदम दर पहरेदारी।

धूप ,वर्षात,ठंडक तंम्बू में दिन गुजारी,

चाहा नहीं कभी महलों की तीमारदारी।



मुक्तेश्वर सिंह मुकेश

Wednesday, January 27, 2021

नहीं सहेगा

सभी पूछ रहे  एक सवाल
आखिर इतना  क्यूं बवाल
       गरिमा    तार-तार   हुई है
       दिल्ली   शर्मसार    हुई  है
अपनों पे हाथ उठाया क्यूं
देश का मान   घटाया क्यूं
       भला,  ये कैसा   विरोध है
       होश कम  ज्यादा जोश है
तलवार भाला  रॉड खंजर
क्या आप हैं दिमागी पंचर
       अकारण अराजक संग्राम
       दूषित हुआ  देश का नाम
यह     कैसी    पिपासा थी ?
क्या रण की अभिलाषा थी ?
       इतने  निष्ठुर  निर्मोही क्यूं ?
       अपने वतन का द्रोही क्यूं ?
शोणित  हो गई  थी  धरा
कोई  घायल   कोई  मरा
       कायदे कानून को  मरोड़ा
       सरकारी संपत्ति को तोड़ा
कोई  लाठी  भांज रहा था
गुप्त मकसद साध रहा था
       पक्का सारे    फसादी थे
       ये उन्माद के     साथी थे
तिरंगे से है   जिनको वैर
हवालात की कराओ सैर
       बच न पाए   कोई  दंगाई
       कीजै सख्ती और कड़ाई
तिरंगे का  ऐसा  अपमान
नहीं सहेगा  भारत महान
       गद्दारों को मत माफ़ करो
       इस गंदगी को साफ करो

@ मनीष सिंह "वंदन"

छोटी बात पर,फटकार अच्छी नहीं होती,

छोटी बात पर,फटकार अच्छी नहीं होती,

छोटी बात पर,फटकार अच्छी नहीं होती,
अफवाहों की दीवार पक्की नहीं होती।

घर है तो दीवारें लाज़मी होगी ही,
दिलों में दीवार अच्छी नहीं होती।।

फरेबी किसका सगा हुआ आज तक,
उसकी कोई गुहार सच्ची नहीं होती।

सादा, सच्चे,मासूम है जो लोग।
उनसे तकरार अच्छी नहीं होती।।

एक बार रूठे को सलीके से मनाइये,
बार बार मनुहार अच्छी नहीं होती।।

राम ने भी रावण का वध किया,
टपकती लार हर नार पर अच्छी नहीं होती.

पंख लागकर उड़ने दो उन्हें आकाश में,
नसीहत की बौछार अच्छी नही होती,

गर्म बयार बह रही शहर में अब,
महफूज घर की,कच्ची दीवार नही
होती,
संजीव ठाकुर 

Sunday, January 24, 2021

तिरंगा हमारी शान है

तिरंगा  हमारी  शान  है 

तिरंगा  हमारी  जान  है ।।

अनमोल  धरोहर  हमारी
यह  तो   हमारा  मान  है । 

तिरंगा   अक्षुण  बना  रहे 
सिर  कर  देंगे   कुर्बान  हे । 

ऊँचा  रहे  मस्तक इसका
विश्व  में  सबसे  महान है । 

कुदृष्टि  डालेगा  इस  पर 
कर  देंगे  मर्दन   मान  हे । 

हुए  अनेकों  लाल  शहीद 
अपने  तिरंगे  की  शान हे । 

झुकने  न  देंगे  तिरंगा को
जब तक शरीर में प्रान  है । 

आओ    मनायें   गणतंत्र 
अपने देश की पहचान है । 

अपने  लोकतंत्र  पर  हम
सदा  करें  गर्वित  गान  हे । 

फहराकर  नभ  में तिरंगा 
दम भरते मन अभिमान हैं 

फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं

 नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल

 

गणतंत्र दिवस पर आज

मैंने ख़ूब बधाइयां पाई!

पर सच्ची गणतंत्रता देखने को

अब भी है आंखें पथराई !

हिस्से में आज जनता के

कैसी बदहाली आईं,

काम बिना रिश्वत के कोई

आज भी न बन पाई!

फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं

पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!

घर में बच्चे भूखे तड़पते

उदासी की चादर ओढ़े लुगाई,

आदमी दर - दर हैं भटकते फिरते

नहीं होती घर चलाने लायक भी कमाई!

फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं

पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!

परमार्थ की भावना तजकर

निज स्वार्थ की भावना अपनाई,

जनता के हक के पैसों से

नेताओं ने ख़ूब मौज उड़ाई!

फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं

पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!

कहीं हो रही आत्महत्याएं

तो कहीं चल रही हाथापाई,

कहीं फैला आतंकवाद का साया

तो कहीं मुंह बाए है महंगाई!

फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं

पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!

देशभक्तों के संघर्ष बलिदानों की

हमने ये कैसी कीमत चुकाई,

बदलेगा कब ये देश हमारा

कब लेगी इंसानियत फिर अंगड़ाई!

फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं

पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!


Saturday, January 23, 2021

मैं शनि हूँ

मैं शनि हूँ

मेरे नाम से लोग डरते हैं,
मेरे दृष्टि से
लोग कांप उठते हैं।
मैं अन्याय के विरुद्ध लड़ता हूँ
बहुतों की आंखों में
इसलिए रडकता हूं।
मगर धर्म के लिए
अपने पिता को ही
दंडित करना आसान नहीं।
सत्य के लिए
महाकाल से भी लड़ना
मजाक नहीं।
मैं शनि हूं
धर्मनिष्ठ हूं और सत्य निष्ठ हूँ
कठोर और करूर भी हूं
मगर असत्य वादियों के लिए
अधर्मियों के लिए।

राजीव डोगरा 'विमल'

Friday, January 22, 2021

कविता


" शिक्षा के बिना हम सभी मृत के समान हैं,
है धन्य उनका जीवन को सच में महान है,
मां देती है जीवन मगर चरित्र दे शिक्षक,
जीवन की हर एक शैली में शिक्षक महान है

होगा ना अगर शिक्षित समाज हमारा,
हो जाएगा यूं मुश्किल हम सबका गुजारा,
हर दर्द की दवा जो बता दे वो है शिक्षा
छुआ छूत,भेदभाव मिटा दे वो है शिक्षा 

अज्ञानी के मन में ज्ञान का जो दीप जला दे,
जो किसी भी बुझी आस में विश्वास जगा दे,
भटके हुए को राह दिखा दे वो है शिक्षा 
सिक नामुमकिन को भी मुमकिन बना दे वो है शिक्षा

     

                          रचना:- रोशन रसिक रचनाकार

Sunday, January 17, 2021

जख़्म ऐ दिल मत दिखा जमाने को

जख़्म ऐ दिल मत दिखा जमाने को।

कि तूने समझा ही क्या जमाने कोl

हाथ मिला हमसाया बन।
हमदर्द बना जमाने को ।

देखना चाहता असली चेहरे ।
आईना दिखा दे जमाने को ।

दोगली सियासत फ़िज़ा की।
बेनकाब कर दिखा जमाने को ।

अपने ही लोग कांटे बिछाएंगे ।
बनाकर चमन,दिखा जमाने को ।

मोहब्बत,इश्क,शायरी बेमानी।
शोहरत कमा, दिखा जमाने को,

कर दे रा्हें संजीव फूलों भरी,
कवि तू ही चला जमाने को।।