Thursday, April 22, 2021

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो

कविता रचयिता- डॉ. अशोक कुमार वर्मा

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो।

धरती खोदी अंबर छेदा, अब और न संहार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

पहाड़ काटे पेड़ काटे, न जंगलों का उजाड़ करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

कंक्रीट की सड़क बना कर, न पृथ्वी का विनाश करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

नदियों को दुषित करके, न इतना तुम पाप करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

पीने को भी तरस जाओगे, न गंदगी का बहाव करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

जनसँख्या न इतनी बढ़ाओ, धरती माँ पर उपकार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

धरती भी छोटी पड़ जागी, मिलकर सब विचार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

अन्य जीव जंतुओं पर भाइयों, न इतना अत्याचार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

वो हैं पर्यावरण मित्र, यह बात थाम स्वीकार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

बड़े बड़े हिमखंड पिघल रहे, न इतना अधिक तापमान करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

धरती माता धधक रही है, न आपदाओं का आह्वान करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

पैट्रॉल डीज़ल के प्रयोग करने में, थोड़ा थाम विचार करो।

संभल जाओ रै सारे भाईयों, न प्रकृति तै खिलवाड़ करो....

 डॉ. अशोक कुमार वर्मा

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