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Thursday, February 1, 2024

दुआलिया चूल्हा!

ये हमारी गैस चूल्हा जैसा ही होता था। एक जगह लकड़ी जलाओ और एक साथ दो चीजें बनाओ।

सुबह सबसे पहला काम होता है झाड़ू लगाकर राख उठाओ फिर एक बरतन में चिकनी मिट्टी भिगोकर एक कपड़े से चूल्हा और आस-पास की मिट्टी की दीवारों को पोता जाता था जिसे हमारी तरफ सैतना कहते हैं और जिस बरतन में मिट्टी भिगोकर रखी जाती है उसे सैतनहर कहते हैं। सैतने वाले कपड़े को पोतना या सैतनी कहते हैं।


चूल्हा अच्छी तरह से सैत कर फिर दीवार सैती जाती थी। मैं जब पुताई करती थी तब दीवार पर उंगलियों को घुमाकर डिजाइन बना दिया करती थी।
पुताई करने के बाद चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी, उपले, धान की भूसी रखी जाती है। चूल्हे से निकली राख से दाल, चावल की बटुली -बटुले ,कड़ाही,चाय की पतीली सब पर एक साथ ही लेप लगा दिया जाता था जिसे लेईयाना कहते थे। राख की लेप लगाने से चूल्हे पर भोजन बनाने से बरतन जलते नहीं थे और उन्हें साफ करने में आसानी रहती थी।
इस चूल्हे पर एक तरफ चाय बनती है तो दूसरी तरफ सब्जी बन जाती है। सब्जी बनने के बाद रोटी बनती जाती है और घर के लोग गर्मागर्म रोटी सब्जी और चाय का नाश्ता करने लगते हैं।
बाद में एक तरफ चावल और दूसरी तरफ दाल बन जाती है।
जब मैं भोजन बनाती थी तब तो एक तरफ दूध गर्म करती थी दूसरी तरफ चाय बनाती थी। चाय के साथ भूजा या चूरा नाश्ता होता था और फिर दाल चावल बनाती थी चावल जल्दी बन जाता था तो चावल उतार कर उसी चूल्हे पर सब्जी छौंक देती थी। सब्जी भी बन जाती थी तब कहीं जाकर दाल बनकर तैयार होती थी। सब्जी की कड़ाही उतारकर उस चूल्हे पर तवा चढ़ा कर रोटी बनने लगती थी।
यू एक साथ भोजन बन जाता था और फिर जिसे भोजन करना हो वो भोजन कर लिया करते थे।
ये चूल्हा जमीन में थोड़ा सा गाड़ दिया जाता है ताकि इधर उधर न तो खिसके न हिले।
कई बार बरतन छोटा और चूल्हे का मुहँ बड़ा हो जाता था तब बरतन को अच्छी तरह से चूल्हे के मुँह पर बैठाने के लिए एक ईंट का टुकड़ा लगाया जाता था जिसे उचकुन कहते थे।
हमारी तरफ चूल्हे की सारी राख उठाकर अच्छी तरह से प्रतिदिन चूल्हा पोतकर साफ किया जाता था। रात में बिन पोते भोजन बनता था बस दिन के बने भोजन की राख चूल्हे से निकालकर बगल में कर दी जाती थी जिसे सुबह चूल्हे की सफाई करते समय उठा लिया जाता था। बिन चूल्हे को पोते भोजन नहीं बनता था क्योंकि रसोई जूठा समझा जाता था।
दोनों समय की चूल्हे से निकली राख को गृह वाटिका में लगी सब्जियों पर छिड़क दिया जाता था ये राख कीट नाशक और खाद दोनों का काम करती थी।

Saturday, January 27, 2024

रिक्शावाला

महज पांच सात वर्ष पहले तक रिक्शा पटना की लाइफ लाइन हुआ करती थी पटना के किसी गली मोहल्ले से स्टेशन बस स्टैंड या किसी भी बाजार में जाने के लिए लोग रिक्शे का इस्तेमाल करते थे पर अब शहर से रिक्शा पुल पुलिया फ्लाईओवर और नए नवनिर्माण के कारणों से दूर हो गया है और पटना के कुछ इलाकों में ही आपको रिक्शा देखने को मिल जाएगा याद कीजिए कि पिछली बार आपने रिक्शे की सवारी कब की थी।मेरे लिए रिक्शे में बैठना एक कठिन निर्णय होता रहा है, रिक्शे की सवारी के समय मेरा ध्यान हमेशा उसकी पैरों की पिंडलियों पर रहता था, कि कितनी मेहनत से खींचता है रिक्शा , सड़क पर कोई भी मोटरसाइकिल वाला या कार वाला उसको ऐसे हिकारत की निगाह से देखता है जैसे कोई जुर्म कर दिया हो, मैनें नोटिस किया अक्सर कारों वालों के अहम के सामने रिक्शेवाले भाई को अपने रिक्शे में ब्रेक लगाने पड़ते थे , गलती किसी की हो थप्पड़ हमेशा रिक्शेवाले के गाल पर ही पड़ता था। पुलिसवाले के गुस्से का सबसे पहला शिकार ये बेचारा रिक्शेवाला ही होता है। बेचारा 2 आंसू टपकाता, अपने गमछे से आँसू पोंछता फिर से पैडल पर जोर मार के चल पड़ता। यार ये दौलत कमाने नहीं निकले, सिर्फ 2 वक़्त की रोटी मिल जाये, बच्चे को भूखा न सोना पड़े बस इसीलिए पूरी जान लगा देते हैं। कभी इनसे मोल भाव मत करना, बस1 दे देना कुछ एक्स्ट्रा , ईश्वर भी फिर प्लान करेगा आपको कुछ एक्स्ट्रा देने का, कभी कभी यूं ही सवारी कर लेना.. रिक्शे की मदद हो जाएगी। भीख देकर उनका अपमान मत करना , वो गरीब हैं भिखारी नहीं I बस कभी कभी यूँ ही सवारी कर लेना I





Wednesday, January 24, 2024

सगपहिता

 घर से कल ये बथुआ और उड़द आया था तो सगपहिता न बने भला कैसे हो सकता था।

ध्यान से इस उड़द का रंग देखिए! न काला रंग है न ही हरा है बल्कि भूरा है।
वर्षों से घर से दूर रहने के कारण घर की दाल के स्वाद और सुगंध को तरस जाया करते थे तो रंग भला कहाँ याद रहता।
हालांकि मैं भोजन बनाते समय पूरी मेहनत और कोशिश करती थी कि मेरे बनाये भोजन में सुगंध और स्वाद गांव का आ सके परन्तु नजदीक मात्र पहुंचती थी पूरी कामयाब नहीं हो पाती थी।


यही कारण है कि गांव जाने पर मानों भूख दस गुना बढ़ जाती थी क्योंकि भोजन बनते समय ही आती हुई मनपसंद, चिरपरिचित सुगंध उदर क्षुधा को मानों भड़का देती थी। भोजन सामने आते ही टूट पड़ते हैं और पेट से अधिक खा लिया करते थे परन्तु ये ओवरईटिंग हमे कभी नुकसान नहीं पहुँचाता था क्योंकि भोजन करने के बाद हमारी सक्रियता इतनी होती थी कि खाया हुआ भोजन किधर गया कब पच गया पता ही नहीं चलता था।
हाँ जी! तो हम गांव से वापस आते हैं और उड़द के रंग की बात करते हैं । हमने पंजाब में एकदम काले रंग के उड़द या उड़द दाल खरीदा था जिसे धोने पर इतना काला रंग निकलता था कि समझ में नहीं आता था कि भला खेत में उगे उड़द की फलियों के अंदर रंग कैसे डाल आता है क्योंकि प्रकृति के रंग तो इतने कच्चे नहीं होते कि पानी पड़ते ही उतर जाए।
खैर ! लखनऊ आयी तब पता चला कि हरी मतलब मूंग ही नहीं होती बल्कि उड़द भी हरी होती है जो खाने में काली उड़द से ज्यादा स्वादिष्ट होती है तबसे मेरे घर पर हरी रंग वाली उड़द ही आने लगी है।
कल घर से ये जो भूरे रंग की उड़द आयी देखने में तो ये भी हरी लग रही है परन्तु हम जो बाजार से हरे रंग की उड़द लाते हैं वो एकदम हरे रंग की होती है और गांव से आयी इस उड़द का रंग मुझे भूरा लग रहा है इसलिए हम तो भूरा ही नाम दे दिया है।
तो फिर कल घर से आया बथुआ और भूरे रंग वालीं उड़द की सगपहिता दाल बनवाई पता नहीं भूरे रंग के उड़द और घर के बथुआ का कमाल था या माँ के प्रेम का कमाल था परन्तु दाल बहुत स्वादिष्ट बनी थी उपर से घर का बढ़िया खुशबुदार जम्भीरी प्रजाति का संतरे के आकार वाला नींबू भी था अहा!भोजन करने का तो आनंद ही आ गया था।
पोस्ट अच्छी लगे तो घर पर सगपहिता बनाइये खाइए और मेरी पोस्ट को लाइक करके कमेंट में अनुभव लिखकर जाइए और शेयर भी कर दीजियेगा ताकि आप सबसे जुड़े लोग भी पोस्ट का लाभ ले सके।

Monday, January 15, 2024

गूलर के फल में है सैकड़ों बीमारियों का इलाज

 दुनिया भर की ताकत का भंडार आपके बगल में है, और एक आप हैं कि दुनिया भर में तलाश कर रहे हैं...

ये कमाल का पौधा आपके आसपास, बगल में लगा हुआ है लेकिन लोग ड्राई फ्रूट, दवाओं और छायादार वृक्षो के पीछे भाग रहे हैं। ये अकेला वृक्ष कॉम्बो पैक है साहब जो अपने आपमे एक इकोसिस्टम है।
बाकी की माथा पच्ची भी होगी, तब तक आप अपना अनुभव शेयर करें, जरा गैसिंग लगाइये कि मैं क्या कहने वाला हूँ। वैसे उमर के विषय मे हमारे क्षेत्र में एक कहावत है...
आंखि देख के माखी न निगलि जाए!
सहगी ऊमर फोड़ खे न खाय!!
इस देशी कहावत के अनुसार अगर ऊमर/गूलर को फोड़ कर खाया जाये तो हवा लगते ही इसमे कीड़े पड़ जाते हैं। इसीलिये इसे बिना फोड़े ही खाया जाता है। लेकिन सच तो यह है, कि इसमें छोटे छोटे कीड़े (wasp) मौजूद रहते ही हैं। वनस्पति विज्ञान की भाषा मे गूलर का फल हायपेन्थोडीयम कहलाता है, जिसमे फूल/ पुष्पक्रम के आधारीय भाग मिलकर एक बड़े कटोरे या बॉल जैसी संरचना बना लेते हैं। और इस गोलाकार फल जैसी संरचना के भीतर कई नर और मादा पुष्प/ जननांग रहते है, जिनमें परागण और संयुग्मन के बाद बीज बन जाते हैं।
फल के परिपक्व होने के पहले उस पर विशेष प्रकार की मक्खी सहित कई कीट प्रवेश कर जाते हैं। कई बार वे अपना जीवन चक्र भी यहीं पूर्ण करते हैं। जैसे ही फल टूटकर जमीन से टकराता है, यह फट जाता है, और कीड़े मुक्त हो जाते हैं। ऐसा न भी हो तो कीट एक छिद्र करके बाहर निकल जाते हैं।




चलिये इन सबसे हटकर अब चर्चा करते हैं, इसके औषधीय महत्व की, हमारे गाँव के बुजुर्गों के अनुसार इसके फलो को खाने से गजब की ताकत मिलती है, और बुढापा थम से जाता है। मतलब अंजीर की तरह ही इसे भी प्रयोग किया जाता है।
मेरी दादी कहती थी कि ऊमर के पेड़ के नीचे से बिना इसे खाये नही गुजर सकते हैं। इसकी छाल को जलाकर राख को कंजी के तेल के साथ पाइल्स के उपचार में प्रयोग करते हैं। दूध का प्रयोग चर्म रोगों में रामवाण माना जाता है। दाद होने पर उस स्थान पर इसका ताजा दूध लगाने से आराम मिलता है। कच्चे फल मधुमेह को समाप्त करने की ताकत रखते हैं। पेट खराब हो जाने पर इसके 4 पके फल खा लेना इलाज की गारंटी माना जाता है।
वहीं एक ओर इसके पेड़ को घर पर या गाँव मे लगाना वर्जित है, शायद भूतों से इसे जोड़ते हैं, लेकिन वास्तव में यह दैत्य गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधि है। वास्तु के अनुसार दूध और कांटे वाले पौधे घर पर लगाना उचित नही होता।
बुद्धिजीवियो का मानना है कि वास्तव में इसे पक्षियों और जनवरो के पोषण के लिये छोड़ने के लिए ऐसी मान्यताएँ बना दी गई होंगी, जिससे लोग इसके फलों और पेड़ का अत्यधिक दोहन न कर सकें। पक्षीयों के लिए तो यह वरदान है। और पक्षी ही इसे फैलाते भी हैं। व्यवहारिक रूप से यह पक्षियों का पसंदीदा है तो पक्षियों की स्वतंत्रता के उद्देश्य से भी इसे घर से दूर लगाना सही प्रतीत होता है।
यह शूक्र ग्रह का प्रतिनिधि पौधा है तो इस नाते अनेको तांत्रिक शक्तिओ का स्वामी भी है। कहते है, इसकी नित्य पूजन करने से सम्मोहन की शक्ति प्राप्त की जा सकती है। प्रेम और युवा शक्ति तो जैसे इस पेड़ के इर्द गिर्द ही घूमती रहती है। नव ग्रह वाटिका के पेड़ों में यह भी एक है। वृषभ राशि वालो का तो यह मित्र पौधा है। किंतु दुख की बात है, इन पेड़ों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही है।
इसकी कोमल फलियों को सब्जियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जो चिकित्सा का एक अनुप्रयोग है।
ऐसा कहा जाता है, कि दुनिया मे किसी ने गूलर का फूल नही देखा है, इसका कारण और जबाब मैं पहले ही बता चुका हूं।

Saturday, December 16, 2023

गुड़

 गुड़ बनेगा!

बैल से चलने वाला कोल्हू भले नही है लेकिन इस तरह का कोल्हू अब भी मेरे घर पर है।
दूसरे गांव से एक परिवार गन्ना लेकर घर आया है गुड़ बनाने उनकी तैयारी देखी तो एक तस्वीर ले ली सोचा आप सब लोग से साझा करें।।


जब घर पर कोल्हू रहता है तो जब मन करे ताजा ताजा गन्ने का रस पियो।
सर्दियों में घर के छोटे आलुओं के दो टुकड़े करके, हरी धनिया, लहसुन पत्ती, हरी मिर्च से बने हरे मसाले के साथ बनी मटर की घुघनी और ताजा गन्ने का रस अहा!
किसी भी स्ट्रीट फूड नाश्ते को मात देता है।
कोल्हू से गन्ने के रस को निकालकर इस बड़े कड़ाह में पकाकर गुड़ बनता है जब गुड़ पकता है तो बहुत दूर तक मीठी मीठी खुश्बू फैल जाती है। दूसरे गांव तक के लोगो को पता चल जाता है कि आज कोई गुड़ बना रहा है।
जब गुड़ लगभग पक कर तैयार होने वाला होता है तब एक धागे में आलू, सेम और जो भी आपका दिल करे गूथ कर लड़ी बनाकर कड़ाह में लटका देते हैं। पक जाने पर थोड़े से गुड़ की चाशनी के साथ निकालकर फिर खावो अहा!
गुड़ की चाशनी को कड़ाह से एक लकड़ी के चाक(तश्तरी नुमा बर्तन) में निकाल लेते हैं और कड़ाह में ठंडा पानी डाल देते हैं कड़ाह में जो चाशनी लगी होती है फिर उसे इक्ट्ठा करके निकाला जाता है ये सब बच्चों का फेवरेट होता है इसे हमारे यहाँ चिमचा कहते हैं इस चिमचे के आगे हर तरह की चॉकलेट, च्युंगम फेल हैं।
जब कड़ाह उतर जाता है तब उसकी आग(जिस पर कड़ाह रखा जाता है उसे गुलवर कहते हैं) में तार में गूथ कर आलू डाल दिया जाता है और आग में पकने के बाद बढ़िया तीखे चटपटे नमक के साथ खाइए या भरता बनाकर खाये।
हमारे यहाँ तीन तरह के गुड़ बनते हैं एक सामान्य गुड़ होता है जिसके एक गुड़ का वजन लगभग एक पाव होता है मेरी नानी एक किलो गुड़ के लिए चार गुड़ देती थी।
दूसरा चाशनी कड़ी होने से पहले निकालकर रख लेते हैं इसे राब या ककई कहते हैं। इसका संरक्षण बहुत ध्यान से करना पड़ता वरना तरल होने की वजह से जल्दी खराब हो जाती है।
इसे मिट्टी के बड़े बड़े मटके या मिट्टी की छोटी टँकी( धुनकी ) में रखकर अच्छी तरह बन्द कर दिया जाता है। खाने के लिए किसी बर्तन में निकालकर फिर अच्छी तरह से बन्द कर देते हैं हवा या पानी के सम्पर्क में आने से ये खराब होती है। जब गन्ना खत्म हो जाता है तब इसी राब से शर्बत बनता है व सब मीठे पकवान इसी को घोलकर बनते हैं।
तीसरा है सूखे मेवे और सोंठ डालकर बनाई गई चौकोर आकर में काटी गई गुड़ की पट्टी जिसे"पितुड़ा" कहते हैं ये मेहमानों को पानी के साथ दिया जाता है।
पहले के समय में लोग बिस्किट इत्यादि नही देते थे मेहमानों के लिए इस प्रकार की व्यवस्था की जाती थी।।
कभी गर्म गुड़ खाये हो ? नॉर्मल गुड़ से सौ गुना ज्यादा स्वादिष्ट होता है।।
अब भी समय है सफेद जहर चीनी का प्रयोग बन्द करो गुड़ का प्रयोग करो अनेकों बीमारी से बचे रहोगे।।

पुराने दिनों की याद ताजा करता है ये मिर्जापुर का रेस्टोरेंट

ये प्रांगण कोई हवेली नही है
ये उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले मिर्जापुर में बना रेस्टुरेंट हैं
इस रेस्टुरेंट में कुछ ऐसी बातें है जो इसे भारत के सभी रेस्टुरेंट से अलग बनाती है


पहली बात ये की इस रेस्टुरेंट में आप को शुद्ध वातावरण मिलता है क्यों के सिटी के बाहर है
उसके बाद इसके अंदर का वातावरण बिलकुल देहाती है और सात्विक है गोबर से लीपे फर्श हैं कुवें से निकलता हुआ पानी भी
आप चाहें तो आप को बिसलेरी की बोतल को जगह कुवेँ का पानी दिया जाएगा
इसके बाद सबसे जरूरी चीज वो ये है की ये रेस्टोरेंट बेटियों को समर्पित है खाना बनाने वाले से लेके खाना परोसने तक हर काम महिलाएं करती है
सबसे खास बात जो इसे बाकी रेस्टोरेंट से अलग बनाती है वो ये है की आप को इस रेस्टोरेंट में कभी एंट्री नही मिलेगी
अगर आप इसमें खाना चाहते हैं तो आप के साथ में कम से कम एक महिला जरूर होनी चाहिए
बिना महिला के इस रेस्टुरेंट के द्वार से ही आप को विदा कर दिया जाएगा

क्यों की ये एक बेटियों को समर्पित रेस्टुरेंट हैं, इनके इस प्रयास से इसमें काम करने वाले महिलाएं सम्मानित और सुरक्षित महसूस करती हैं 

Tuesday, December 12, 2023

मखाना


ठंड के मौसम में सूखे मेवे की मांग स्वतः ही बढ़ जाती है, पर मखाना की मांग दिन प्रतिदिन कम पड़ती जा रही है....
जिसका मुख्य कारण मखाना के गुणकारी पक्ष को न जानना लगता है....
मखाना की प्रजाति हुबहु कमल से मिलती जुलती है,अंतर इतना की मखाना के पौधे बहुत #कांटेदार होते हैं ,
इतने कंटीले कि उस जलाशय में कोई जानवर भी पानी पीने के लिए नहीं जाता है ....
यह तालाब,नदी,और खेतो में पानी भरकर भी पैदा किया जा सकता है ....... ।
इसकी खेती मुख्य रूप से मिथिलांचल में होती है...


बिहार मिथिलांचल की पहचान के बारे में कहा जाता है- 'पग-पग पोखरि माछ मखान' यानी इस क्षेत्र की पहचान पोखर (तालाब), मछली और मखाना से जुड़ी हुई है।
बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया सहित 10 जिलों में मखाना की खेती होती है.....
देश में बिहार के अलावा असम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर में भी मखाने का उत्पादन होता है,
मगर देशभर में मखाने के कुल उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है......
मखाना को देवताओं का भोजन कहा गया है ....जन्म हो या मृत्यु,शादी हो या गोदभराई.....व्रत उपवास हो या यज्ञ हवन मखाने का हर जगह विशेष महत्व रहता है .....
इसे आर्गेनिक #हर्बल भी कहते हैं .....क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है।
अधिकांशतः ताकत की दवाइयाँ मखाने के योग से बनायी जाती हैं,
मखाने से #अरारोट भी बनता है. ....मखाना बनाने के लिए इसके बीजों को फल से अलग कर धूप में सुखाते हैं. ....
बीजों को बड़े-बड़े लोहे के कढ़ावों में सेंका जाता है. ...कढ़ाव में सिंक रहे बीजों को 5-7 की संख्या में हाथ से उठा कर ठोस जगह पर रख कर लकड़ी के हथोड़ो से पीटा जाता है. ....
इस तरह गर्म बीजों का कड़क खोल तेजी से फटता है और बीज फटकर लाई (मखाना) बन जाता है.
जितने बीजों को सेका जाता है.....उनमें से केवल एक तिहाई ही मखाना बनते हैं....।
औषधीय उपयोग

#किडनी को मजबूत बनाये ..... मखाने का सेवन किडनी और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है...
डाइबिटीज रोगी इसका सेवन कर लाभ पा सकते है...
मखाना कैल्शियम से भरपूर होता है इसलिए जोड़ों के दर्द, विशेषकर #अर्थराइटिस के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद होता है....
मखाने के सेवन से तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। रात में सोते समय दूध के साथ मखाने का सेवन करने से #नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है.....
मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है.....
मखाना शरीर के अंग सुन्न होने से बचाता है तथा घुटनों और कमर में दर्द पैदा होने से रोकता है.....
#गर्भवती महिलाओं और प्रसूति के बाद कमजोरी महसूस करने वाली महिलाओं को मखाना खाना चाहिये.....
मखाना को दूध में मिलाकर खाने से दाह (जलन) में आराम मिलता है।
#नपुंसकता ...मखाने में जो प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेड, फैट, मिनरल और फॉस्फोरस आदि पौष्टिक तत्व होते हैं वे कामोत्तेजना को बढ़ाने का काम करते हैं।
साथ ही शुक्राणुओं के क्वालिटी को बेहतर बनाने के साथ-साथ उसकी संख्या को भी बढ़ाने में सहायता करते हैं...।
कई लोग आज भी शक्तिवर्धक के रूप में विदेशी प्रोडक्ट को चुनते है
वही अमेरिकन हर्बल फ्रुड प्रोडक्ट एशोसिएशन ने मखाना को क्लास वन का फूड प्रोडक्ट घोषित किया हुआ हैं...।
मखाना की आप ढ़ेरो रेसिपी भी तैयार कर सकते हैं.

Sunday, December 10, 2023

तरकारी के हाट



 शंकर अपन कनियाँ के संग तरकारी कीनय एकटा दोकान पर जाइत छैथि आ आधा किलो बथुआ साग आ एक किलो भांटा कीनैत छैथि। बथुआ साग शंकर के कनियाँ अपन झोरा में राखि लैत छैथि आ भांटा बला झोरा शंकर के हाथ में। बेसी भीड़ रहवाक कारणे तरकारी कीनबा में दुनू गोटे के समय लागि जाइत छैन्ह। शंकर दोकानदार सँ पूछैत छथिन्ह जे कतेक पाई भेल। दोकानदार एक किलो भांटा के दाम बीस रूपैया मंगैत अछि। शंकर के कनियाँ चुप आ प्रसन्न। शंकर बीस रूपैया दोकानदार के दऽ कऽ आगू बढैत अछि। किछुए दूर गेला पर शंकर के कनियाँ शंकर सँ कहैत छैथि जे आइ आधा किलो बथुआ साग के दाम के फायदा भेल आ सभटा घटना शंकर के बता देलखिन्ह। शंकर तुरंत पाछू घुमलाह आ ओहि दोकानदार के पाइ देवाक लेल बिदा भेलाह, कनियाँ कतबो रोकवाक प्रयास कयलखिन शंकर ओहि दोकानदार के बथुआ साग के पाई दऽ कऽ आबि गेलाह आ कनियाँ के बुझेलखिन जे ककरो संगे एना नहिं करवाक चाही। किछु आगू बढलाक पश्चात् एकटा कन्या आगू सँ आबि शंकर सँ कहैत छैथि जे घर के आगि सँ बचएबाक अछि तऽ बचा लिअ। शंकर दुनू प्राणी सुनि कऽ दंग रहि जाइत छैथि। शंकर अपन माँ के डेरा पर फोन करैत छथिन्ह जे गैस के गंध नहिं ने आबि रहल अछि। शंकर के माँ कहैत छथिन्ह हँ। शंकर माँ सँ कहैत छथिन्ह जे किचेन में जा कऽ गैस चुल्हा के स्विच आफ करू आ खिड़की केवाड़ खोलि दियौ........ शंकर दुनू प्राणी सोचि रहल छलीह जे ओ कन्या आओर कियो नहिं स्वयं माता रानी आयल छलीह आ कहि कए चलि गेलीह जे नीक कर्म कयनिहार के संग सदैव नीक होइत छैक, तें हमरा सभके सतत् साकांच रहवाक चाही, इमानदार रहवाक चाही.

छोटे लोग

ऑफिस जाने के लिए मैं घर से निकला, तो देखा, कार पंचर थी. मुझे बेहद झुंझलाहट हुई. ठंड की वजह से आज मैं पहले ही लेट हो गया था. 11 बजे ऑफिस में एक आवश्यक मीटिंग थी, उस पर यह कार में पंचर… मैं सोसायटी के गेट पर आ खड़ा हुआ, सोचा टैक्सी बुला लूं. तभी सामने से ऑटो आता दिखाई दिया. उसे हाथ से रुकने का संकेत देते हुए मन में हिचकिचाहट-सी महसूस हुई.

इतनी बड़ी कंपनी का जनरल मैनेजर और ऑटो से ऑफिस जाए, किंतु इस समय विवशता थी. मीटिंग में डायरेक्टर भी सम्मलित होनेवाले थे. देर से पहुंचा, तो इम्प्रैशन ख़राब होने का डर था. ऑटो रुका. कंपनी का नाम बताकर मैं फुरती से उसमें बैठ गया. थोड़ी दूर पहुंचकर यकायक ऑटोवाले ने ब्रेक लगा दिए.
‘‘अरे क्या हुआ? रुक क्यों गए?" मैंने पूछा.
‘‘एक मिनट साहब, वह सोसायटी के गेट पर जो सज्जन खड़े हैं, उन्हें थोड़ी दूर पर छोड़ना है.’’ ऑटो चालक ने विनम्रता से कहा.
‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते.’’ मैं क्रोध में चिल्लाया.
‘‘एक तो मुझे देर हो रही है, दूसरे मैं पूरे ऑटो के पैसे दे रहा हूं, फिर क्यों किसी के साथ सीट शेयर करुंगा?"
‘‘साहब, मुझे इन्हें सिटी लाइब्रेरी पर उतारना है, जो आपके ऑफिस के रास्ते में ही पड़ेगी. अगर आपको फिर भी ऐतराज़ है, तो आप दूसरा ऑटो पकड़ने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं आपसे यहां तक के पैसे नहीं लूंगा.’’ ऑटो चालक के स्वर की दृढ़ता महसूस कर मैं ख़ामोश हो गया. यूं भी ऐसे छोटे लोगों के मुंह लगना मैं पसंद नहीं करता था.
उसने सड़क के किनारे खड़े सज्जन को बहुत आदर के साथ अपने बगलवाली सीट पर बैठाया और आगे बढ़ गया. उन सम्भ्रांत से दिखनेवाले सज्जन के लिए मेरे मन में एक पल को विचार कौंधा कि मैं उन्हें अपने पास बैठा लूं फिर यह सोचकर कि पता नहीं कौन हैं… मैंने तुरंत यह विचार मन से झटक दिया. कुछ किलोमीटर दूर जाकर सिटी लाइब्रेरी आ गई. ऑटोवाले ने उन्हें वहां उतारा और आगे बढ़ गया.
‘‘कौन हैं यह सज्जन?" उसका आदरभाव देख मेरे मन में जिज्ञासा जागी.
उसने बताया, ‘‘साहब, ये यहां के डिग्री कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल डॉक्टर खन्ना हैं. सर के मेरे ऊपर बहुत उपकार हैं. मैं कॉमर्स में बहुत कमज़ोर था. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण ट्यूशन फीस देने में असमर्थ था. दो साल तक सर ने मुझे बिना फीस लिए कॉमर्स पढ़ाया, जिसकी बदौलत मैंने बी काॅम 80 प्रतिशत मार्क्स से पास किया. अब सर की ही प्रेरणा से मैं बैंक की परीक्षाएं दे रहा हूं.’’ ‘‘वैरी गुड,’’ मैं उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सका.
‘‘तुम्हारा नाम क्या है?" मैंने पूछा.
‘‘संदीप नाम है मेरा. तीन साल पूर्व सर रिटायर हो गए थे. पिछले साल इनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया. हालांकि बेटे बहू साथ रहते हैं, फिर भी अकेलापन तो लगता ही होगा इसीलिए रोज सुबह दस बजे लाइब्रेरी चले जाते हैं. साहब, मैं शहर में कहीं भी होऊं, सुबह दस बजे सर को लाइब्रेरी छोड़ना और दोपहर दो बजे वापिस घर पहुंचाना नहीं भूलता. सर तो कहते भी हैं कि वह स्वयं चले जाएंगे, किंतु मेरा मन नहीं मानता. जब भी वह साथ जाने से इंकार करते हैं, मैं उनसे कहता हूं कि यह मेरी उनके प्रति गुरुदक्षिणा है और सर की आंखें भीग जाती हैं. न जाने कितने बहानों से वह मेरी मदद करते ही रहते हैं. साहब, मेरा मानना है, हम अपने मां-बाप और गुरु के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते.’
मैं निःशब्द मौन संदीप के कहे शब्दों का प्रहार अपनी आत्मा पर झेलता रहा. ज़ेहन में कौंध गए वे दिन जब मैं भी इसी डिग्री कॉलेज का छात्र था. साथ ही डॉ. खन्ना का फेवरेट स्टूडेंट भी. एम एस सी मैथ्स में एडमीशन लेना चाहता था. उन्हीं दिनों पापा को सीवियर हार्टअटैक पड़ा. मैं और मम्मी बदहवास से हॉस्पिटल के चक्कर लगाते रहे.
डॉक्टरों के अथक प्रयास के पश्चात् पापा की जान बची. इस परेशानी में कई दिन बीत गए और फार्म भरने की अंतिम तिथि निकल गई. उस समय मैंने डा. खन्ना को अपनी परेशानी बताई और उनसे अनुरोध किया कि वह मेरी मदद करें. डॉ. खन्ना ने मैनेजमैन्ट से बात करके स्पेशल केस के अन्तर्गत मेरा एडमीशन करवाया और मेरा साल ख़राब होने से बच गया था. कॉलेज छोड़ने के पश्चात् मैं इस बात को बिल्कुल ही भूला दिया. यहां तक कि आज जब डॉ. खन्ना मेरे सम्मुख आए, तो अपने पद के अभिमान में चूर मैंने उनकी तरफ़ ध्यान भी नहीं दिया.
आज मेरी अंतरात्मा मुझसे प्रश्न कर रही थी कि हम दोनों में से छोटा कौन था, वह इंसान जो अपनी आमदनी की परवाह न करके गुरुदक्षिणा चुका रहा था या फिर एक कंपनी का जनरल मैनेजर, जो अपने गुरु को पहचान तक न सका था.....!

बथुवा

 

बथुवा को अंग्रेजी में Lamb's Quarters कहते है, इसका वैज्ञानिक नाम Chenopodium album है।


साग और रायता बना कर बथुवा अनादि काल से खाया जाता  रहा है लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए प्लस्तर में बथुवा मिलाते थे और हमारी बुढ़ियां सिर से ढेरे व फांस (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुवै के पानी से बाल धोया करती। बथुवा गुणों की खान है और भारत में ऐसी ऐसी जड़ी बूटियां हैं तभी तो मेरा भारत महान है।


बथुवै में क्या क्या है?? मतलब कौन कौन से विटामिन और मिनरल्स??


तो सुने, बथुवे में क्या नहीं है?? बथुवा विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B9 और विटामिन C से भरपूर है तथा बथुवे में कैल्शियम,  लोहा, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि मिनरल्स हैं। 100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं। कुल मिलाकर 43  Kcal होती है।


जब बथुवा शीत (मट्ठा, लस्सी) या दही में मिला दिया जाता है तो यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है और साथ में बाजरे या मक्का की रोटी, मक्खन व गुड़ की डळी हो तो इस खाने के लिए देवता भी तरसते हैं।


जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डॉक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली ही खाने की सलाह देते हैं ना??? गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व लोहे की गोली बताई जाती है और बथुवे में वो सबकुछ है ही, कहने का मतलब है कि बथुवा पहलवानो से लेकर गर्भवती महिलाओं तक, बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है।


यह साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है।  बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी  गाय   के घी से छौंक लगाएँ। बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें। बथुवै में  जिंक होता है जो कि शुक्राणुवर्धक है मतलब किसी भाई को जिस्मानी कमजोरी हो तो उसकॅ भी दूर कर दे बथुवा।


बथुवा कब्ज दूर करता है और अगर पेट साफ रहेगा तो कोइ भी बीमारी शरीर में लगेगी ही नहीं, ताकत और स्फूर्ति बनी रहेगी।


कहने का मतलब है कि जब तक इस मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खाएँ। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएँ और तो और यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है।


पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शकर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी।


मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें । आधा रहने पर छानकर पी जाएँ। मासिक धर्म खुलकर साफ आएगा। आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ।


पेशाब के रोगी बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें । बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नींबू जीरा, जरा सी काली मिर्च और काला नमक लें और पी जाएँ।


आप ने अपने दादा दादी से ये कहते जरूर सुना होगा कि हमने तो सारी उम्र अंग्रेजी दवा की एक गोली भी नहीं ली। उनके स्वास्थ्य व ताकत का राज यही बथुवा ही है।


मकान को रंगने से लेकर खाने व दवाई तक बथुवा काम आता है और हाँ सिर के बाल ...... क्या करेंगे शम्पू इसके आगे।

हम आज बथुवै को भी कोंधरा, चौळाई, सांठी, भाँखड़ी आदि सैकड़ों आयुर्वेदिक औषधियों की बजाय खरपतवार समझते हैं

Saturday, December 9, 2023

कैंसर से नहीं मरना चाहिए

 किसी को भी कैंसर से नहीं मरना चाहिए , सिवाय वेश्याव्यवसाय के, कहते हैं डॉ गुप्ता।

(1) पहला कदम चीनी खाना बंद करना है, अगर शरीर में चीनी नहीं है तो कैंसर कोशिकाएं स्वाभाविक रूप से मर जाएँगी।
(2) चरण 2 एक पूरे नींबू को एक कप गर्म पानी के साथ मिलाना है और भोजन और कैंसर खत्म होने से पहले लगभग 1-3 महीने पहले पीना है, मैरीलैंड मेडिकल कॉलेज के शोध में कहा गया है कि कीमोथेरेपी से 1000 गुना बेहतर है।
(3) स्टेप 3, सुबह और रात 3 चम्मच ऑर्गेनिक नारियल तेल पिएं, कैंसर होगा गायब, चीनी से बचने के बाद चुन सकते हैं ये दो उपचार अज्ञानता कोई बहाना नहीं है। मैं इसे 5 वर्षों से साझा कर रहा हूं। अपने आस-पास के हर किसी को जानने दो। भगवान आप सभी को आशीर्वाद दे।
" វេជ្ជបណ្ឌិត गुरुप्रसाद रेड्डी बी वी, बीजेडआर स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी मास्को, रूस 🏖 медици🚦
जो लोग यह बुलेटिन प्राप्त करते हैं उन्हें प्रोत्साहित किया अगले दस लोगों तक पहुंचाएं, निश्चित रूप से एक जान बच जाएगी.. मैंने अपना हिस्सा पूरा कर लिया है, मुझे आशा है कि आप इसे पूरा करने में मदद कर सकते हैं, धन्यवाद! ✍
गर्म नींबू पानी पीने से कैंसर हो सकता है बचाव इसमें चीनी मत डालो। गर्म नींबू पानी से बेहतर है।
पीले और बैंगनी दोनों मीठे आलू में उत्कृष्ट कैंसर विरोधी गुण हैं। ✍
01 ✍रात में बार बार खाने से पेट के कैंसर की संभावना बढ़ सकती है
02. ✍ हफ्ते में 4 अंडे से ज्यादा न खाएं
03. ✍ चिकन खाने से पेट कैंसर हो सकता है
04. ✍ भोजन के बाद कभी फल न खाएं। फल खाने से पहले खाना चाहिए।
05. ✍ मासिक धर्म के समय चाय ना पिएं।
09 ✍ बीन रस में चीनी या अंडे डाले बिना बीन का रस कम खाएं
07. ✍🏾कभी खाली पेट टमाटर नहीं खाना चाहिए
08. ✍ हर सुबह भोजन से पहले एक गिलास सामान्य पानी पिएं ताकि मूत्र की थैली में पित्ताशय की थैली से बचा जा सके
09. ✍🏾 सोने से 3 घंटे पहले कोई खाना नहीं
10. ✍ बिना पोषक तत्वों के कम पिएं या शराब से बचें, लेकिन मधुमेह और उच्च रक्तचाप का कारण बन सकता है
11. ✍🏾 जब रोटी ओवन या ओवन से बाहर गर्म हो तो मत खाना।
12. ✍🏾 अपने फोन या डिवाइस को कभी भी चार्ज न करें जो आपके सोते समय आपके बगल में है
13. ✍ मूत्राशय के कैंसर से बचाव के लिए दिन में 10 कप पानी पिएं
14. ✍🏽 दिन में ज्यादा पानी पिएं रात में कम
15. ✍ दिन में 2 कप से अधिक कॉफी न पिएं, इससे अनिद्रा और डायरिया हो सकता है।
16. ✍🏾 कम कार्बोहाइड्रेट्स खाएं। 5-7 घंटे लगते हैं विघटित होने और थकावट महसूस होने में।
17. ✍🏾 5 घंटे बाद थोड़ा खाना खाएं
18. ✍ छह प्रकार के भोजन जो आपको खुश कर देते हैं: केला, नारंगी, काला पालक, कद्दू, आड़ू।
19. ✍ दिन में 8 घंटे से कम सोने से हमारा दिमाग खराब हो सकता है। आधे घंटे के ब्रेक में हम सुंदरता को युवा रख सकते हैं।
20. ✍ कच्चे टमाटरों की तुलना में पके टमाटरों में बेहतर उपचार गुण होते हैं।
गर्म नींबू पानी स्वास्थ्य को बचा सकता है और जीवन को लंबा कर सकता है!
गर्म नींबू पानी कैंसर कोशिकाओं को मारता है ✍🏾
2-3 नींबू के स्लाइस में गर्म पानी जोड़ें। इसे एक दैनिक पेय बनाओ।
नींबू के रस में कड़वाहट कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए सबसे अच्छा घटक है। ✍
आइस कोल्ड नींबू पानी में विटामिन सी होता है, हाथ पर कोई परिरक्षक नहीं होता है। ✍
गर्म नींबू का रस मांसपेशियों के विकास को नियंत्रित कर सकता है। ✍
नैदानिक परीक्षणों से पता चला है कि गर्म नींबू पानी प्रभावी है। ✍
इस प्रकार की नींबू अर्क थेरेपी केवल कोशिकाओं को नष्ट करेगी, यह स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित नहीं करती है। ✍
बाद में... नींबू के रस में साइट्रिक एसिड और नींबू पॉलीफेनोल्स उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकते हैं✍ गहरी नसों के थक्के को रोकने, रक्त संचार को मजबूत करने और रक्त के थक्के को कम करने में ✍
चाहे आप कितने भी व्यस्त क्यों न हों, कृपया समय निकालकर इस लेख को पढ़ें और दूसरों को भी प्यार फैलाने के लिए कहें! ✍
♦ पढ़ने के बाद दूसरों के साथ शेयर करके प्यार बांटें ! अपने स्वास्थ्य का अच्छा ख्याल रखें! ✍

Friday, December 8, 2023

तर्पण

पिताजी का "विधि विधान से पण्डित जी की मदद से तर्पण करके, अतुल ऑफिस जाने के लिये अपनी कार स्टार्ट कर ही रहा था कि माँ ने उसे रोककर एक पैकेट देकर बोला..
बेटा, तू ही ऑफिस जा रहा तो यह केले और बिस्कुट के पैकेट लेते जा, रास्ते में जो भीख मांगने वाले गरीब और अनाथ बच्चे मिलेंगे न उनको देते जाना, यह परोपकार होता है।
अरे माँ तुम भी न, अभी सुबह ही तो पण्डित जी को बुलाकर 2100 रुपये के पैकेज में पिताजी का तर्पण किया है, अब यह सब क्या? अतुल ने झुंझलाते हुये माँ से कहा, पर माँ का उदास चेहरा देखकर अतुल माँ को मना नहीं कर सका,उसने माँ के द्वारा दिये पैकेट को बगल की सीट पर रखकर तेजी से अपने ऑफिस की तरफ़ कार दौड़ा दी।


पुणे की एक प्रसिद्ध सॉफ्टवेयर कम्पनी में अतुल सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, पिछले 11 वर्षों से उसने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर जो मुक़ाम हासिल किया था, उस वजह से अतुल की उस कम्पनी में बहुत इज्जत थी। अतुल के पिताजी का चार वर्ष पूर्व बीमारी की वजह से निधन हुआ था, उनकी आज पितृपक्ष की तिथि थी लेकिन सप्ताह के मध्य पूरा अवकाश लेने की बजाय अतुल ने ऑफिस टाइम से पहले पण्डित जी को बुलाकर विधिवत तर्पण करना बेहतर समझा।
अतुल की पत्नी दूसरे बच्चे की डिलीवरी के लिये मायके गई हुई थी, इसलिए उसने एक कुशल मैनेजर की तरह, सुबह 4 बजे अलार्म लगाकर, अपनी माँ को उठाकर उसके साथ, पूजा विधि के लिये सारी तैयारियां करवाकर पंडित जी के साथ तर्पण पूजन में लग गया, वहीं माँ पिताजी की पसंद का भोजन बनाने में पूरे मनोयोग से जुट गई।
आजकल पुणे जैसे शहरों में पंडित भी पैकेज के हिसाब से काम करने लगें हैं, सुबह 8 बजे से पहले विधिवत पूजन करनें के लिए 2100 रुपये का स्पेशल पैकेज लिया था , जिसमें उसके साथ आये 4 जूनियर पण्डित एक प्रोफेशनल की तरह यन्त्रवत पूजन सम्पन्न कर रहे थे।
माँ के द्वारा बनाए भोजन को पंडित जी द्वारा ग्रहण करने एवं दक्षिणा लेने के बाद रवाना होते ही अतुल भी झटपट धोती कुर्ता उतारकर अपने ऑफिस लिए पेन्ट शर्ट पहनकर तैयार होकर निकल आता है।
★★
मुम्बई-पुणे जैसे शहरों में 5 मिनट का विलंब भी कई बार रास्ते मे 30%-40% तक का ट्रैफिक बढा देता है। नतीजतन 5 मिनट देरी से पहुंच सकने वाला शक़्स आधे से एक घन्टा तक विलम्ब से पहुंच पाता है।
हमेशा का वही रूट, तेज़ गति से गाड़ियों को क्रॉस करते हुऐ यलो लाइट होने से पहले सिग्नल क्रॉस करके टाईम मैनेज करने की धुन में अतुल माँ द्वारा दिये केले और बिस्कुट ग़रीब और अनाथ बच्चों को देना वह भूल चुका था, तभी एक रेड सिग्नल पर उसे एक दो माँगने वालों को देखकर उसे याद आता है कि उसने माँ का दिया पैकेट तो बांटा ही नहीं था। अगले एक दो सिग्नल में अतुल ने कार रोककर इन अनाथ बच्चों को वह केले और बिस्किट देना चाहा भी लेकिन पता नहीं, शायद वह बच्चे भी इतने वर्षों से अब तक उसे और उसकी कार को एक "कंजूस" के तौर पर पहचान चुके थे, इसलिए वह बच्चे उसके पास आने की बजाय पीछे वालो की गाड़ियों पर पहुंच रहें थे।
अतुल के लिये यह आत्ममंथन का वक्त था, आज उसके पिताजी का तर्पण करने के बाद दान लेने लिये उसे ग़रीब और अनाथ बच्चे तक तवज्जों नहीं दें रहें हैं, और एक वह वक़्त था कि उसके पिताजी के पास आस पास के गाँवों से भी बड़े बड़े लोग मदद मांगने आते और क़भी खाली हाथ नहीं जाते थे। गाँव के स्कूल में साधारण शासकीय अध्यापक थे उसके पिताजी, कम आय में भी खुद के परिवार के साथ साथ, न जाने कितने ग़रीबों एवम असहायों की बिना कहे ही मदद करतें थे, और एक मैं हूँ कि 'डेढ़ लाख रुपये महीने" की तन्ख्वाह होने के बाद भी, किसी के मदद माँगने पर भी यह सोचकर उसकी मदद नहीं करता कि यह मेरा पैसा लौटाएगा या नहीं।
पिताजी की इसी उदारता की वजह से अक़्सर उसकी पिताजी से बहस होती थी, और माँ कहती, बेटा जब तुम कमाओ तब अपने हिसाब से पैसे खर्च करना मग़र पिताजी को ऐसे रोकने का तुमको कोई अधिकार नहीं है, इस तरह पिताजी के इन कर्मो के पीछे माँ का भी मौन समर्थन था, माँ बहुत खुश होती थी जब कोई कहता, हमने भगवान को नहीं देखा, पर बाबूजी तो स्वयं ही भगवान का रूप है। इन्हीं वैचारिक मतभेद के कारण अतुल अपना जॉब लगने के बाद यदाकदा ही अपने गाँव जाया करता था।
पिताजी भी किसी त्यौहार या समारोह के समय ही उसके पास आते थे, वरना सप्ताह में एक दो बार एक दूसरे के हालचाल पूछकर ही वह सम्बन्धों को बनाये हुये थे।
★★★
हाँ, विधि विधान से तो अतुल ने पिताजी का तर्पण कर दिया था, पर क्या वह सचमुच पिताजी की इच्छाओं को तृप्त कर सका?
पिताजी के जीते-जी न सही, क्या उनकी अनुपस्थिति में उसने अपनी माँ को अहसास कराया कि पिताजी नहीं है तो क्या, वह तो है न उनका ख़्याल रखनें के लिए, ख़्याल तो दूर मैं अपनी माँ के लिये वक़्त भी नहीं निकाल पाता, घर पहुँचते ही माँ से बनी चाय पीकर वह जो मोबाइल में व्यस्त हो जाता है, तो सुबह उठकर सीधा नहाधोकर ऑफिस के लिये निकलने तक उसे माँ की याद ही न रहती, माँ जरूर उसके डिनर, नाश्ता, टिफिन, कपड़े प्रेस करने जैसी सारी जरूरत बिना कहे ही पूरा कर रही थी। शनिवार रविवार को भी वह या तो दोस्तों के साथ निकल जाता या लैपटॉप पर कम्पनी का काम करके अपना दिन गुज़ार देता।
आज माँ की डबडबायी आँखों के पीछे का दुःख समझकर भी मैं ऑफिस निकल आया, अपनी माँ के जीवित रहते उसका ख्याल नहीं रख रहा हूँ तो क्या उसके जाने के बाद यही तर्पण करके उसे खुश रख पाउँगा। अतुल को आत्मग्लानि होने लगी, उसने अगले ही सिग्नल पर अपनी कार वापस घर की तरफ़ मोड़ ली और बॉस को फोन पर यह कहकर कि आज उसे अपनी माँ को डॉक्टर को दिखाने जाना है, वह छुट्टी ले लेता है।
विचार बदलते ही संयोग भी बदलने लगता है, जो अनाथ और ग़रीब बच्चे उसके बुलाये जाने पर भी पास नहीं आ रहे थे, वही बच्चे अगले सिग्नल पर ही खुद उससे माँगने आये, अतुल ने उन सबको बिस्कुट और केले देकर सन्तुष्ट कर दिया। उन बच्चों की संतुष्टि देखकर अतुल को भी अजीब सी सन्तुष्टि महसूस होने लगी थी।
घर पहुँचते ही वह कार बाहर ही रखकर चुपके से घर पर पंहुचता है तो खिड़की से उसे दिखता है कि माँ पिताजी का अलबम खोलकर उनसे ही खामोश आँखों से बातें कर रही है। अतुल ने दरवाजा खटखटाया, अचानक अतुल को सामने देखकर माँ ने फ़ोटो एलबन टेबल के ऊपर रखे न्यूज़ पेपर के नीचे छुपाते हुये, अपने आँसू पोछकर मुस्कुराते हुये पूछा, क्या हुआ तो वापिस कैसे आ गया, कुछ भूल गया था क्या?
हाँ माँ कुछ भूल गया था मैं, आज तो ऑफिस में कुछ ज़्यादा काम नहीं था, इसलिए छुट्टी लेकर आपके साथ एक फ़िल्म देखने का मन हो रहा है..
नहीं मेरा मन नहीं है आज कोई फ़िल्म देखने का, तू ही बाहर जाकर देख आ..माँ ने मना करते हुऐ कहा।
नहीं मैं तो अपने स्मार्ट टीवी पर ही लगाऊंगा और आपके साथ ही देखूंगा, कपड़े बदलकर अतुल एक पेनड्राइव स्मार्ट टीवी में लगाते हुये बच्चों सी जिद करके बोला।
अच्छा ठीक है तू लगा फ़िल्म, मैं बर्तन धोकर आती हूँ, किचन में बहुत काम है, कहकर माँ उसे टालने के प्रयास करने लगी। अतुल ने किचन में जाकर देखा तो सिंक पर सुबह के खाने की प्लेट्स रखी हुई थी, इसका मतलब माँ ने खाना भी नहीं खाया है अब तक, उफ़्फ़ कितना घुट घुट कर जी रही है मेरी माँ, घर पर सबकुछ होकर भी उसका आनंद नहीं लेती और मुझे यह पता भी नहीं।
माँ, मुझे जोर से भूख लगी है, चलो साथ में खाना खातें हैं, अतुल खाना गर्म करके एक थाली में परोसकर माँ के साथ बैठ गया, एक कौर खुद खाकर चुपके से ज्यादा कौर उसे खिलाने की माँ की स्टाइल आज वह माँ पर ही आजमा रहा था।
खाना होते ही वह माँ से बोला, माँ बर्तन में धो लेता हूँ, तब तक तुम किचन साफ कर लो, फ़िल्म तो हम साथ ही देखेंगे।
माँ अचरज़ से अतुल के बदले व्यवहार परिवर्तन को देखकर सुखद अनुभव कर रही थी।
★★★★
किचिन का काम निपटाने के बाद माँ बेटे मिलकर टीवी पर अतुल की शादी की फ़िल्म लगाते है , 6 साल पहले हुई अतुल के विवाह की फ़िल्म अतुल ने पेनड्राईव में सेव कर रखी थी।
पिताजी को उस विवाह में पूरे जोश से विवाह कार्यक्रम में सहभागी होते देखकर, सबके साथ मस्ती में डाँस करते देखकर, विवाह की चुहलबाजी देखकर माँ भूल ही गई थी कि आज पिताजी हमारे बीच नहीं हैं।
अतुल माँ का सिर अपनी गोद में रखकर धीरे धीरे नारियल तेल लगाकर सहलाने लगा, माँ के आँखों से आँसुओं की धार बह चली थी।
आज अतुल ने एक साथ दो तर्पण किये थे, पहला अपने दिवंगत पिताजी का पूरे विधि विधान के साथ और दूसरा अपनी दुःखी माँ के साथ वक़्त गुजारकर उसके दुःखों का सहभागी बनकर।

सभी तर्पण पानी से हों जरूरी नहीं कुछ तर्पण आँसुओं से आजीवन होते रहते हैं।
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कहानी लिखने का उद्देश्य यही है कि अपने पितरों के दिवंगत होने पर तर्पण करना तो हमारे लिए विधि का विधान है , लेकिन जीवित अवस्था में उनके साथ हँसी खुशी वक़्त गुजारकर उन्हें अकेलेपन का अहसास न होने देना उससे भी महान कार्य है।