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Tuesday, January 2, 2024

रसोई की कुछ उपयोगी बातें

 


⭐️समोसे का आटा गूथते समय उसमें थोडा सा चावल का आटा भी मिला दें तो समोसे अधिक कुरकुरे बनेगे|
⭐️भटूरे के आटे में खमीर के लिये ब्रेड के 2-3ब्रेड स्लाइस मिला दीजिये.अच्छा खमीर आ जाता है|
⭐️दही बडे की पिसी हुई दाल में थोडी सी सूजी मिला दे, बडॆ अधिक नरम बनेगे।
⭐️आलू की टिकिया मे थोडे से कच्चे केले को उबाल कर मिला दीजिये. टिकिया बहुत अधिक स्वादिष्ट बनेगी।
⭐️कच्चा केला काटते समय हाथ काले पड जाते है।उन्हे साफ़ करने के लिए कुछ बूंदें नीम्बू का रस व जरा सा नमक लगा कर साफ़ करे हाथ तुरन्त साफ़ हो जाएगे।
⭐️यदि दूध फ़टने का खतरा लगे तो,उसमें 1 चम्मच पानी में 1/2 चम्मच खाने का सोडा मिला दीजिये, दूध नही फ़टेगा
⭐️घी बनाते समय घी जल गया हो तो जले हुये घी में कटा हुआ आलू का टुकडा डालकर कुछ देर पकाये. जल हुआ घी साफ़ हो जाएगा ।
⭐️करेले, टिन्डे ,भिन्डी ,तोरई आदि सब्जिया नरम पड गई होतो इन्हे थोडी देर पानी में भीगो कर रखें. आसानी से कट जायेगी और छील जायेगी
⭐️हाथो से प्याज की दुर्गन्ध दुर करने के लिए कच्चे आलू मले ,दुर्गन्ध दूर हो जायेगी|
कोफ्ते तलते समय तेल अच्छा गरम होना चाहिये, कम गरम तेल में कोफ्ते फट सकते हैं.
⭐️अगर सब्जी मे नमक ज़्यादा हो गया है तो उबला आलू डाल कर सब्जी को थोडी देर पका लीजिये. नमक ठीक हो जायेगा
⭐️मूंग दाल की मंगोडी की दाल ज़्यादा गीली हो गई है तो उबले आलू को मसल कर दाल मे मिला दीजिये .मंगोडी खस्ता बनेगी|
⭐️आलू के चिप्स को स्टोर करने पर उनमे से अजीब सी गंध आने लगती है ,उसमें सूखी लाल मिर्च व नीम की सूखी पत्तियां रखिए डिब्बा बदं होने पर गंध नही आयेगी।
⭐️आलू के पराठे बनाते समय थोडा सा आम का अचार l मसाला डाल कर बनाये ,पराँठे बहुत स्वादिष्ट बनेंगे.
⭐️निम्बू का अचार खराब होने लगे तो अचार को किसी बर्तन मे निकाल कर सिरका डाल कर थोडा पका लीजिये, अचार फिर से नया हो जायेगा।
⭐️निम्बू का अचार डालते समय थोडी पीसी चीनी बुरक दे तो नमक के दाने नही पडेगें | और अगर पड गये है तो भी थोडी पीसी चीनी बुरक दीजिये अचार नया सा जायेगा।
⭐️आम का अचार बनाते समय फांको में नमक, हल्दी लगाकर रखे, तब उस पर 1-2 चम्मच पीसी हुई चीनी भी बुरक दीजिये इससे जहा सारी फाकें पानी छोड देगीं . अचार अच्छा बनेगा।
⭐️आम के मीठे अचार में थोडा सा अदरक कस कर मिला दे. अचार अधिक पौष्टिक व चटपटा बनेगा।
⭐️दाल मखनी बनाने से पहले साबुत मसूर दाल को कडाही मे हल्का सा भून कर फिर बनाइये. अधिक बनेगी।
⭐️गर्मी में डोसे का घोल बहुत ज्यादा खट्टा हो गया है तो--उस में 2-3 गिलास पानी डाल कर रख दें 1/2 घटें बाद उपर का पानी धीरे से निकाल दें खटास कम हो जाएगी।
⭐️सलाद बनाने से पहले सब्जियों में को कुछ देर फ़्रीजर मे रखें फिर सलाद काटें आसानी से कटेगा.
⭐️सेव ,केला काटने के बाद उनमे नीम्बू रस डाल दें तो काले नही पडेगें।

Saturday, December 30, 2023

गुरुकुल

गुरुकुल में क्या पढ़ाया जाता था ??

यह जान लेना अति आवश्यक है।


◆ अग्नि विद्या ( metallergy )


◆ वायु विद्या ( flight ) 


◆ जल विद्या ( navigation ) 


◆ अंतरिक्ष विद्या ( space science ) 


◆ पृथ्वी विद्या ( environment )


◆ सूर्य विद्या ( solar study ) 


◆ चन्द्र व लोक विद्या ( lunar study ) 


◆ मेघ विद्या ( weather forecast ) 


◆ पदार्थ विद्युत विद्या ( battery ) 


◆ सौर ऊर्जा विद्या ( solar energy ) 


◆ दिन रात्रि विद्या ( day - night studies )


◆ सृष्टि विद्या ( space research ) 


◆ खगोल विद्या ( astronomy) 


◆ भूगोल विद्या (geography ) 


◆ काल विद्या ( time ) 


◆ भूगर्भ विद्या (geology and mining ) 


◆ रत्न व धातु विद्या ( gems and metals ) 


◆ आकर्षण विद्या ( gravity ) 


◆ प्रकाश विद्या ( solar energy ) 


◆ तार विद्या ( communication ) 


◆ विमान विद्या ( plane ) 


◆ जलयान विद्या ( water vessels ) 


◆ अग्नेय अस्त्र विद्या ( arms and amunition )


◆ जीव जंतु विज्ञान विद्या ( zoology botany ) 


◆ यज्ञ विद्या ( material Sc)


● वैदिक विज्ञान

( Vedic Science )


◆ वाणिज्य ( commerce ) 


◆ कृषि (Agriculture ) 


◆ पशुपालन ( animal husbandry ) 


◆ पक्षिपालन ( bird keeping ) 


◆ पशु प्रशिक्षण ( animal training ) 


◆ यान यन्त्रकार ( mechanics) 


◆ रथकार ( vehicle designing ) 


◆ रतन्कार ( gems ) 


◆ सुवर्णकार ( jewellery designing ) 


◆ वस्त्रकार ( textile) 


◆ कुम्भकार ( pottery) 


◆ लोहकार ( metallergy )


◆ तक्षक ( guarding )


◆ रंगसाज ( dying ) 


◆ आयुर्वेद ( Ayurveda )


◆ रज्जुकर ( logistics )


◆ वास्तुकार ( architect)


◆ पाकविद्या ( cooking )


◆ सारथ्य ( driving )


◆ नदी प्रबन्धक ( water management )


◆ सुचिकार ( data entry )


◆ गोशाला प्रबन्धक ( animal husbandry )


◆ उद्यान पाल ( horticulture )


◆ वन पाल ( horticulture )


◆ नापित ( paramedical )


इस प्रकार की विद्या गुरुकुल में दी जाती थीं।


इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला 

उस समय भारत में 732000 गुरुकुल थे।

खोजिए हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए ? 


और मंथन जरूर करें वेद ज्ञान विज्ञान को चमत्कार छूमंतर व मनघड़ंत कहानियों में कैसे बदला या बदलवाया गया। वेदों के नाम पर वेद विरुद्ध हिंदी रूपांतरण करके मिलावट की ।


अपरा विधा- भेाैतिक विज्ञान को व अपरा विधा आध्यात्मिक विज्ञान को कहा गया है। इन दोनों में १६ कलाओं का ज्ञान होता है।


तैत्तिरीयोपनिषद , भ्रगुवाल्ली अनुवादक ,५, मंत्र १, में ऋषि भ्रगु ने बताया है कि-


विज्ञान॑ ब्रहोति व्यजानात्। विज्ञानाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। विज्ञानेन जातानि जीवन्ति। विज्ञान॑ प्रयन्त्यभिस॑विशन्तीति।

 

अर्थ- तप के अनातर उन्होंने ( ऋषि ने) जाना कि वास्तव मैं विज्ञान से ही समस्त प्राणी उत्पन्न होते हैं। उत्पत्ति के बाद विज्ञान से ही जीवन जीते हैं। अंत में प्रायान करते हुए विज्ञान में ही प्रविष्ठ हो जाते हैं।


तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवादक ८, मंत्र ९ में लिखा है कि-


 विज्ञान॑ यज्ञ॑ तनुते। कर्माणि तनुतेऽपि च। विज्ञान॑ देवा: सर्वे। ब्रह्म ज्येष्ठमुपासते। विज्ञान॑ ब्रह्म चेद्वेद।


अर्थ- विज्ञान ही यज्ञों व कर्मों की वृद्धि करता है। सम्पूर्ण देवगण विज्ञान को ही  श्रेष्ठ ब्रह्म के रूप में उपासना करते हैं। जो विज्ञान को ब्रह्म स्वरूप में जानते हैं, उसी प्रकार से चिंतन में रत्त रहते हैं, तो वे  इसी शरीर से पापों से मुक्त होकर सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि प्राप्त करते हैं। उस विज्ञान मय देव के अंदर ही वह आत्मा ब्रह्म रूप है। उस  विज्ञान मय आत्मा से भिन्न उसके अन्तर्गत वह आत्मा ही ब्रह्म स्वरूप है।


( संसार के सभी जीव शिल्प विज्ञान के द्वारा ही जीवन यापन करते हैं।)


★ वेद ज्ञान है शिल्प विज्ञान है


त्रिनो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः। 

आ॒मान॑ श॒योर्ममि॑काय सू॒नवे त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती॥


ऋग्वेद (1.34.6)


हे (शुभस्पती) कल्याणकारक मनुष्यों के कर्मों की पालना करने और (अश्विना) विद्या की ज्योति को बढ़ानेवाले शिल्पि लोगो ! आप दोनों (नः) हम लोगों के लिये (अद्भ्यः) जलों से (दिव्यानि) विद्यादि उत्तम गुण प्रकाश करनेवाले (भेषजा) रसमय सोमादि ओषधियों को (त्रिः) तीनताप निवारणार्थ (दत्तम्) दीजिये (उ) और (पर्थिवानि) पृथिवी के विकार युक्त ओषधी (त्रिः) तीन प्रकार से दीजिये और (ममकाय) मेरे (सूनवे) औरस अथवा विद्यापुत्र के लिये (शंयोः) सुख तथा (ओमानम्) विद्या में प्रवेश और क्रिया के बोध करानेवाले रक्षणीय व्यवहार को (त्रिः) तीन बार कीजिये और (त्रिधातु) लोहा ताँबा पीतल इन तीन धातुओं के सहित भूजल और अन्तरिक्ष में जानेवाले (शर्म) गृहस्वरूप यान को मेरे पुत्र के लिये (त्रिः) तीन बार (वहतम्) पहुंचाइये ॥


भावार्थ- मनुष्यों को चाहिये कि जो जल और पृथिवी में उत्पन्न हुई रोग नष्ट करनेवाली औषधी हैं उनका एक दिन में तीन बार भोजन किया करें और अनेक धातुओं से युक्त काष्ठमय घर के समान यान को बना उसमें उत्तम २ जव आदि औषधी स्थापन कर देश देशांतरों में आना जाना करें।


विश्वकर्मा कुल श्रेष्ठो धर्मज्ञो वेद पारगः।

सामुद्र गणितानां च ज्योतिः शास्त्रस्त्र चैबहि।।

लोह पाषाण काष्ठानां इष्टकानां च संकले।

सूत्र प्रास्त्र क्रिया प्राज्ञो वास्तुविद्यादि पारगः।।

सुधानां चित्रकानां च विद्या चोषिठि ममगः।

वेदकर्मा सादचारः गुणवान सत्य वाचकः।। 


(शिल्प शास्त्र) अर्थववेद


भावार्थ – विश्वकर्मा वंश श्रेष्ठ हैं विश्वकर्मा वंशी धर्मज्ञ है, उन्हें वेदों का ज्ञान है। सामुद्र शास्त्र, गणित शास्त्र, ज्योतिष और भूगोल एवं खगोल शास्त्र में ये पारंगत है। एक शिल्पी लोह, पत्थर, काष्ठ, चान्दी, स्वर्ण आदि धातुओं से चित्र विचित्र वस्तुओं सुख साधनों की रचना करता है। वैदिक कर्मो में उन की आस्था है, सदाचार और सत्यभाषण उस की विशेषता है।


 यजुर्वेद के अध्याय २९ के मंत्र 58 के ऋषि जमदाग्नि है इसमे बार्हस्पत्य शिल्पो वैश्वदेव लिखा है। वैश्वदेव में सभी देव समाहित है।


शुल्वं यज्ञस्य साधनं शिल्पं रूपस्य साधनम् ॥


(वास्तुसूत्रोपनिषत्/चतुर्थः प्रपाठकः - ४.९ ॥)


अर्थात - शुल्ब सूत्र यज्ञ का साधन है तथा शिल्प कौशल उसके रूप का साधन है।


शिल्प और कुशलता में बहुत बड़ा अन्तर है ( एक शिल्प विद्या द्वारा किसी प्रारूप को बनाना और दूसरा कुशलता पूर्वक उसका उपयोग करना , ये दोनो अलग अलग है 


कुशलता 


जैसे शिल्प द्वारा निर्मित ओजारो से नाई कुशलता से कार्य करता है , शिल्पी द्वारा निर्मित यातायन के साधन को एक ड्राईवर कुशलता पूर्वक चलता है आदि 


सामान्यतः जिस कर्म के द्वारा विभिन्न पदार्थों को मिलाकर एक नवीन पदार्थ या स्वरूप तैयार किया जाता है उस कर्म को शिल्प कहते हैं । ( उणादि० पाद०३, सू०२८ ) किंतु विशेष रूप निम्नवत है


१- जो प्रतिरूप है उसको शिल्प कहते हैं "यद् वै प्रतिरुपं तच्छिल्पम" (शतपथ०- का०२/१/१५ ) 


२- अपने आप को शुद्ध करने वाले कर्म को शिल्प कहते हैं 


(क)"आत्मा संस्कृतिर्वै शिल्पानि: " (गोपथ०-उ०/६/७)


(ख) "आत्मा संस्कृतिर्वी शिल्पानि: " (ऐतरेय०-६/२७) 


३- देवताओं के चातुर्य को शिल्प कहकर सीखने का निर्देश है (यजुर्वेद ४ / ९, म० भा० )


 ४- शिल्प शब्द रूप तथा कर्म दोनों अर्थों में आया है -


(क)"कर्मनामसु च " (निघन्टु २ / १ )


(ख) शिल्पमिति रुप नाम सुपठितम्" (निरुक्त ३/७)


५ - शिल्प विद्या आजीविका का मुख्य साधन है। (मनुस्मृति १/६०, २/२४, व महाभारत १/६६/३३ )


६- शिल्प कर्म को यज्ञ कर्म कहा गया है।


( वाल्मि०रा०, १/१३/१६, व संस्कार विधि, स्वा० द० सरस्वती व स्कंद म०पु० नागर६/१३-१४ )


।।पांचाल_ब्राह्मण।।


शिल्पी ब्राह्मण नामान: पञ्चाला परि कीर्तिता:।

(शैवागम अध्याय-७)

अर्थात-पांच प्रकार के श्रेष्ठ शिल्पों के कर्ता होने से शिल्पी ब्राह्मणों का नाम पांचाल है।

 

पंचभि: शिल्पै:अलन्ति भूषयन्ति जगत् इति पञ्चाला:। (विश्वकर्म वंशीय ब्राह्मण व्यवस्था-भाग-३, पृष्ठ-७६-७७)

अर्थात- पांच प्रकार के शिल्पों से जगत को भूषित करने वाले शिल्पि ब्राह्मणों को पांचाल कहते हैं।


ब्रह्म विद्या ब्रह्म ज्ञान  (ब्रह्मा को जानने वाला) जो की चारो वेदों में प्रमाणित है जो वैदिक गुरुकुलो में शिक्षा दी जाती थी ये (metallergy) जिसे अग्नि विद्या या लौह विज्ञान (धातु कर्म) कहते है , ये वेदों में सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मकर्म ब्रह्मज्ञान है पृथ्वी के गर्भ से लौह निकालना और उसका चयन करना की किस लोहे से , या किस लोहे के स्वरूप से,  सुई से लेकर हवाई  जहाज, युद्ध पोत  जलयान, थलयान, इलेक्ट्रिक उपकरण , इलेक्ट्रॉनिक उपकरण , रक्षा करने के आधुनिक हथियार , कृषि के आधुनिक उपकरण , आधुनिक सीएनसी मशीन, सिविल इन्फ्रास्ट्रक्चर सब (metallergy) अग्नि विद्या ऊर्फ लोहा विज्ञान की देन है हमारे वैदिक ऋषि सब वैज्ञानिक कार्य करते थे वेदों में इन्हीं विश्वकर्मा शिल्पियों को ब्राह्मण की उपाधि मिली है जो वेद ज्ञान विज्ञान से ही संभव है चमत्कारों से नहीं वेद ज्ञान विज्ञान से राष्ट्र निर्माण होता है  पाखण्ड से नहीं, इसी को विज्ञान कहा गया है बिना शिल्प विज्ञान के हम सृष्टि विज्ञान की कल्पना भी नहीं कर सकते इसलिए सभी विज्ञानिंक कार्य इन्ही सुख साधनों से संभव है इसलिए वैदिक शिल्पी विश्वकर्मा ऋषियों द्वारा भारत की सनातन संस्कृति विश्वगुरु कहलाई

भगवान (विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों) ने अपने रचनात्मक कार्यों से इस ब्रह्मांड का प्रसार किया है। जो सभी वैदिक ग्रंथों में प्रमाणित है

आने वाला कल

एक बार मैं अपने अंकल के साथ एक बैंक में गया, क्यूँकि उन्हें कुछ पैसा कही ट्रान्सफ़र करना था।

ये स्टेट बैंक एक छोटे से क़स्बे के छोटे से इलाक़े में था। वहां एक घंटे बिताने के बाद जब हम वहां से निकले तो उन्हें पूछने से मैं अपने आप को रोक नहीं पाया।
अंकल क्यूँ ना हम घर पर ही इंटर्नेट बैंकिंग चालू कर ले?
अंकल ने कहा ऐसा मैं क्यूँ करूँ ?
तो मैंने कहा कि अब छोटे छोटे ट्रान्सफ़र के लिए बैंक आने की और एक घंटा टाइम ख़राब करने की ज़रूरत नहीं, और आप जब चाहे तब घर बैठे अपनी ऑनलाइन शॉपिंग भी कर सकते हैं। हर चीज़ बहुत आसान हो जाएगी। मैं बहुत उत्सुक था उन्हें नेट बैंकिंग की दुनिया के बारे में विस्तार से बताने के लिए।
इस पर उन्होंने पूछा ....अगर मैं ऐसा करता हूँ तो क्या मुझे घर से बाहर निकलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी?
मुझे बैंक जाने की भी ज़रूरत नहीं?
मैंने उत्सुकतावश कहा, हाँ आपको कही जाने की जरुरत नही पड़ेगी और आपको किराने का सामान भी घर बैठे ही डिलिवरी हो जाएगा और ऐमज़ॉन, फ़्लिपकॉर्ट व स्नैपडील सबकुछ घर पे ही डिलिवरी करते हैं।
उन्होने इस बात पे जो जवाब मुझे दिया उसने मेरी बोलती बंद कर दी।
उन्होंने कहा आज सुबह जब से मैं इस बैंक में आया, मै अपने चार मित्रों से मिला और मैंने उन कर्मचारियों से बातें भी की जो मुझे जानते हैं।
मेरे बच्चें दूसरे शहर में नौकरी करते है और कभी कभार ही मुझसे मिलने आते जाते हैं, पर आज ये वो लोग हैं जिनका साथ मुझे चाहिए। मैं अपने आप को तैयार कर के बैंक में आना पसंद करता हुँ, यहाँ जो अपनापन मुझे मिलता है उसके लिए ही मैं वक़्त निकालता हूँ।
दो साल पहले की बात है मैं बहुत बीमार हो गया था। जिस मोबाइल दुकानदार से मैं रीचार्ज करवाता हूं, वो मुझे देखने आया और मेरे पास बैठ कर मुझसे सहानुभूति जताई और उसने मुझसे कहा कि मैं आपकी किसी भी तरह की मदद के लिए तैयार हूँ।
वो आदमी जो हर महीने मेरे घर आकर मेरे यूटिलिटी बिल्स ले जाकर ख़ुद से भर आता था, जिसके बदले मैं उसे थोड़े बहुत पैसे दे देता था उस आदमी के लिए कमाई का यही एक ज़रिया था और उसे ख़ुद को रिटायरमेंट के बाद व्यस्त रखने का तरीक़ा भी !
कुछ दिन पहले मोर्निंग वॉक करते वक़्त अचानक मेरी पत्नी गिर पड़ी, मेरे किराने वाले दुकानदार की नज़र उस पर गई, उसने तुरंत अपनी कार में डाल कर उसको घर पहुँचाया क्यूँकि वो जानता था कि वो कहा रहती हैं।
अगर सारी चीज़ें ऑन लाइन ही हो गई तो मानवता, अपनापन, रिश्ते - नाते सब ख़त्म ही नही हो जाएँगे !
मैं हर वस्तु अपने घर पर ही क्यूँ मँगाऊँ ?
मैं अपने आपको सिर्फ़ अपने कम्प्यूटर से ही बातें करने में क्यूँ झोंकू ?
मैं उन लोगों को जानना चाहता हूँ जिनके साथ मेरा लेन-देन का व्यवहार है, जो कि मेरी निगाहों में सिर्फ़ दुकानदार नहीं हैं।
इससे हमारे बीच एक रिश्ता, एक बन्धन क़ायम होता है !
क्या ऐमज़ॉन, फ़्लिपकॉर्ट या स्नैपडील ये रिश्ते-नाते , प्यार, अपनापन भी दे पाएँगे ?
फिर उन्होने बड़े पते की एक बात कही जो मुझे बहुत ही विचारणीय लगी, आशा हैं आप भी इस पर चिंतन करेंगे........
उन्होने कहां कि ये घर बैठे सामान मंगवाने की सुविधा देने वाला व्यापार उन देशों मे फलता फूलता हैं जहां आबादी कम हैं और लेबर काफी मंहगी है।
भारत जैसे १२५ करोड़ की आबादी वाले गरीब एंव मध्यम वर्गीय बहुल देश मे इन सुविधाओं को बढ़ावा देना आज तो नया होने के कारण अच्छा लग सकता हैं पर इसके दूरगामी प्रभाव बहुत ज्यादा नुकसानदायक होंगे।
देश मे ८०% जो व्यापार छोटे छोटे दुकानदार गली मोहल्लों मे कर रहे हैं वे सब बंद हो जायेगे और बेरोजगारी अपने चरम सीमा पर पहुंच जायेगी। तो अधिकतर व्यापार कुछ गिने चुने लोगों के हाथों मे चला जायेगा हमारी आदते ख़राब और शरीर इतना आलसी हो जायेगा की बहार जाकर कुछ खरीदने का मन नहीं करेगा।
जब ज्यादातर धन्धे व् दुकाने ही बंद हो जायेंगी तो रेट कहाँ से टकराएँगे तब..... ये ही कंपनिया जो अभी सस्ता माल दे रही है वो ही फिर मनमानी किम्मत हमसे वसूल करेगी। हमे मजबूर होकर सबकुछ ओनलाइन पर ही खरीदना पड़ेगा।और ज्यादातर जनता बेकारी की ओर अग्रसर हो जायेगी।
मैं आजतक उनको क्या जबाब दूं ये नही समझ पाया हूं,.....
क्या आपके पास जवाब है?

Wednesday, December 20, 2023

पत्तल

आइए, पत्तलों की परंपरा फिर से पुनर्जीवित करते हैं, be organic....
खुशी इस बात की है कि हम सभी अपनी संस्कृति को सहेजने को आतुर हैं व अपनी परंपराओं का आज भी सम्मान करते हैं। हमारे पत्तल, डोने बनाने वाले भाई व उनके परिवार आप सबका स्नेह पाकर बहुत खुश हैं और अपने इस रोजगार के लिए उन्हें रोशनी की न ई किरण दिखी है। मुझे उम्मीद है हम उन्हें नाउम्मीद नहीं होने देंगे। जो भरोसा आप सबने उन्हें दिलाया है वो कायम रहेगा ..


अकसर हम ब्रेंडिड चीजें बिना मोल भाव के लेते हैं। कभी बिना मोलभाव अपनी परंपरा को भी देना चाहिए। हमें भूलना नहीं चाहिए परंपरा, पर्यावरण, पेशा, परिवार, पशुधन का संरक्षण हमारा ही दायित्व है

Monday, October 30, 2023

सरसों का तेल दिलाएगा कई बीमारियों से निजात

 - सरसों का तेल रसोई में काफी इस्तेमाल किया जाता है। यह अपने तेज स्वाद, तीखी सुगंध और हाई स्मोक पॉइंट के लिए जाना जाता है। इसे अक्सर सब्जियों को पकाने के लिए उपयोग करते हैं। इसका उपयोग न सिर्फ खाने, बल्कि त्वचा, बालों और शरीर के दर्द जैसी समस्याओं के इलाज के लिए भी किया जाता है। इसका इस्तेमाल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में सबसे ज्यादा होता है।

डॉ. मनोज मुरारका, ऑयल रिसर्चर
सरसों के तेल के अनेक स्वास्थ्य लाभ हैं। इसे अधिकतर लोग सिर्फ खाना बनाने के लिए ही इस्तेमाल में लाते हैं, लेकिन यह सिर्फ भोजन बनाने तक ही सीमित नहीं है। यह तेल शरीर की कई समस्याओं को दूर कर सकता है। वर्षों से सरसों के तेल को जोड़ों के दर्द, गठिया और मांसपेशियों में होने वाले दर्द से निजात पाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। नियमित रूप से इस तेल से मालिश करने पर शरीर के रक्त संचार में सुधार होता है। इससे मांसपेशियों व जोड़ों की समस्या को दूर रखने में मदद मिल सकती है। वहीं सरसों के तेल में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड भी जोड़ों के दर्द और गठिया की समस्या में सहायक साबित हो सकता है।
     सरसों का तेल रसोई में काफी इस्तेमाल किया जाता है। सरसों का तेल अपने तेज स्वाद, तीखी सुगंध और हाई स्मोक पॉइंट के लिए जाना जाता है। इसे अक्सर सब्जियों को पकाने के लिए उपयोग करते हैं। इसका इस्तेमाल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में सबसे ज्यादा किया जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि खाने में शुद्ध सरसों के तेल का उपयोग अमेरिका, कनाडा और यूरोप में पूरी तरह से बैन है। इन इलाकों में इसे सिर्फ मसाज ऑयल, सीरम या फिर हेयर ट्रीटमेंट के लिए ही उपयोग किया जा सकता है। वहीं भारत में इसे इतना फायदेमंद माना गया है कि इसका उपयोग न सिर्फ खाने, बल्कि त्वचा, बालों और शरीर के दर्द जैसी समस्याओं के इलाज के लिए भी किया जाता है।


     कैंसर जैसी घातक बीमारी से बचने में सरसों के तेल का इस्तेमाल कुछ हद तक मदद कर सकता है। एक वैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है कि सरसों के तेल में एंटी कैंसर गुण होते हैं, जो कैंसर सेल्स के विकास को रोकने का काम कर सकते हैं। अध्ययन में कोलन कैंसर से प्रभावित चूहों पर सरसों, मकई और मछली के तेल के असर का परीक्षण किया गया। इस शोध में पाया गया कि कोलन कैंसर को रोकने में मछली के तेल की तुलना में सरसों का तेल अधिक प्रभावी साबित हुआ। ऐसे में माना जा सकता है कि सरसों का तेल कैंसर जैसी समस्या से बचाव करने में सहायक है। सरसों के तेल के लाभ दांत संबंधी समस्याओं में भी कारगर साबित हो सकते हैं। इस तेल को हल्दी के साथ इस्तेमाल करने पर मसूड़ों की सूजन और संक्रमण से निजात मिल सकती है।
     सरसों तेल और नमक का उपयोग मौखिक स्वच्छता में भी सुधार करने का काम कर सकता है। सरसों तेल, हल्दी और नमक को पेस्ट की तरह उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए आधा चम्मच सरसों का तेल, एक चम्मच हल्दी और आधा चम्मच नमक मिलाकर पेस्ट बना लें। फिर इस पेस्ट से दांतों और मसूड़ों पर कुछ मिनट तक मालिश करें। इसे हफ्ते में तीन-चार बार उपयोग कर सकते हैं। इस पर अभी और शोध किए जा रहे हैं। अस्थमा श्वसन तंत्र से संबंधित एक समस्या है। इससे राहत पाने में पीली सरसों तेल के फायदे कुछ हद तक सहायक साबित हो सकते हैं। इस संबंध में कई वैज्ञानिक शोध किए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि सरसों के तेल में पाया जाने वाला सेलेनियम अस्थमा के प्रभाव को कम करता है।
     सरसों का तेल ब्रेन फंक्शन को बढ़ावा देने में भी उपयोगी है। इसमें मौजूद फैटी एसिड सबसेलुलर मेम्ब्रेंस (उपकोशिकीय झिल्ली) की संरचना में बदलाव करने में मदद कर सकता है, जिससे मेम्ब्रेन-बाउंड एंजाइमों की गतिविधि को रेगुलेट किया जा सकता है। यह मस्तिष्क के कार्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस आधार पर माना जा सकता है कि सरसों का तेल दिमागी कार्य क्षमता को बढ़ावा देने में भी मददगार साबित हो सकता है। सरसों का तेल एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल और एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से समृद्ध होता है। इसमें मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी एजेंट सूजन संबंधी समस्याओं से निजात दिलाने का काम करता है। इसे डिक्लोफेनाक के निर्माण में भी इस्तेमाल किया जाता है, जो एक एंटी इंफ्लेमेटरी दवा है।
     सरसों के तेल में अनावश्यक बैक्टीरिया और अन्य रोगाणुओं के पनपने से रोकने की क्षमता पाई जाती है। यह काफी हद तक फंगस के प्रभाव को कम करने में भी सहायक साबित हो सकता है। ऐसे में माना जा सकता है कि फंगल के कारण त्वचा पर होने वाले रैशेज और संक्रमण के इलाज करने में सरसों का तेल मददगार हो सकता है। यह गुणकारी तेल एडीज एल्बोपिक्टस मच्छरों के प्रभाव को भी बेअसर कर सकता है। सरसों का तेल संपूर्ण स्वास्थ्य को बनाए रखने का काम करता है। यह कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित कर शरीर के सबसे अहम भाग हृदय को भी स्वस्थ रखता है। आंतरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सरसों का तेल त्वचा को भी संक्रमण से दूर रखता है। इसे लगाने से त्वचा पर रैशेज भी नहीं होते हैं।
     सरसों का तेल मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड के साथ-साथ ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड से समृद्ध होता है। ये दोनों फैटी एसिड मिलकर इस्केमिक हृदय रोग (रक्त प्रवाह की कमी के कारण) की आशंका को 50 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं। वहीं एक अन्य शोध कहता है कि सरसों के तेल को हाइपोकोलेस्टेरोलेमिक (कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला) और हाइपोलिपिडेमिक प्रभाव के लिए भी जाना जाता है। यह खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर सकता है और शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ा सकता है, जिससे हृदय रोग के जोखिम को कम किया जा सकता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि सरसों के तेल के अनेक फायदे हैं। यह मानव शरीर के लिए सबसे उपयुक्त है। सरसों के तेल को रसोई के साथ-साथ जीवन में भी जरूर शामिल किया जाना चाहिए।

Friday, October 20, 2023

नाभि है सैकड़ों बीमारियों का उपचार

 नाभी कुदरत की एक अद्भुत देन है

एक 62 वर्ष के बुजुर्ग को अचानक बांई आँख  से कम दिखना शुरू हो गया। खासकर  रात को नजर न के बराबर होने लगी।जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनकी आँखे ठीक है परंतु बांई आँख की रक्त नलीयाँ सूख रही है। रिपोर्ट में यह सामने आया कि अब वो जीवन भर देख  नहीं पायेंगे।.... मित्रो यह सम्भव नहीं है..

मित्रों हमारा शरीर परमात्मा की अद्भुत देन है...गर्भ की उत्पत्ति नाभी के पीछे होती है और उसको माता के साथ जुडी हुई नाडी से पोषण मिलता है और इसलिए मृत्यु के तीन घंटे तक नाभी गर्म रहती है।

गर्भधारण के नौ महीनों अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नाभी के द्वारा सभी नसों का जुडाव गर्भ के साथ होता है। इसलिए नाभी एक अद्भुत भाग है।

नाभी के पीछे की ओर पेचूटी या navel button होता है।जिसमें 72000 से भी अधिक रक्त धमनियां स्थित होती है

नाभी में देशी गाय का शुध्द घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलता का उपाय हो सकता है।

1. आँखों का शुष्क हो जाना, नजर कमजोर हो जाना, चमकदार त्वचा और बालों के लिये उपाय...

सोने से पहले 3 से 7 बूँदें शुध्द देशी गाय का घी और नारियल के तेल नाभी में डालें और नाभी के आसपास डेढ ईंच  गोलाई में फैला देवें।

2. घुटने के दर्द में उपाय

सोने  से पहले तीन से सात बूंद अरंडी का तेल नाभी में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।

3. शरीर में कमपन्न तथा जोड़ोँ में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए उपाय :-

रात को सोने से पहले तीन से सात बूंद राई या सरसों कि तेल नाभी में डालें और उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।

4. मुँह और गाल पर होने वाले पिम्पल के लिए उपाय:-

नीम का तेल तीन से सात बूंद नाभी में उपरोक्त तरीके से डालें।

नाभी में तेल डालने का कारण

हमारी नाभी को मालूम रहता है कि हमारी कौनसी रक्तवाहिनी सूख रही है,इसलिए वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है।

जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हम हिंग और पानी या तैल का मिश्रण उसके पेट और नाभी के आसपास लगाते थे और उसका दर्द तुरंत गायब हो जाता था।बस यही काम है तेल का।

अपने स्नेहीजनों, मित्रों और परिजनों में इस नाभी में तेल और घी डालने के उपयोग और फायदों को शेयर करिये।

करने से होता है , केवल पढ़ने से नहीं

Thursday, September 7, 2023

गाँव में तो डिप्रेशन को भी डिप्रेशन हो जायेगा

गाँव में तो डिप्रेशन को भी डिप्रेशन हो जायेगा।
उम्र 25 से कम है और सुबह दौड़ने निकल जाओ तो गाँव वाले कहना शुरू कर देंगे कि “लग रहा सिपाही की तैयारी कर रहा है " फ़र्क़ नही पड़ता आपके पास गूगल में जॉब है।
30 से ऊपर है और थोड़ा तेजी से टहलना शुरू कर दिये तो गाँव में हल्ला हो जायेगा कि “लग रहा इनको शुगर हो गया "
कम उम्र में ठीक ठाक पैसा कमाना शुरू कर दिये तो आधा गाँव ये मान लेगा कि आप कुछ दो नंबर का काम कर रहे है।
जल्दी शादी कर लिये तो “बाहर कुछ इंटरकास्ट चक्कर चल रहा होगा इसलिये बाप जल्दी कर दिये "


शादी में देर हुईं तो “दहेज़ का चक्कर बाबू भैया, दहेज़ का चक्कर, औकात से ज्यादा मांग रहे है लोग "
बिना दहेज़ का कर लिये तो “लड़का पहले से सेट था, इज़्ज़त बचाने के चक्कर में अरेंज में कन्वर्ट कर दिये लोग"
खेत के तरफ झाँकने नही जाते तो “बाप का पैसा है "
खेत गये तो “नवाबी रंग उतरने लगा है "
बाहर से मोटे होकर आये तो गाँव का कोई खलिहर ओपिनियन रखेगा “लग रहा बियर पीना सीख गया "
दुबले होकर आये तो “लग रहा सुट्टा चल रहा "
कुलमिलाकर गाँव के माहौल में बहुत मनोरंजन है इसलिये वहाँ से निकले लड़के की चमड़ी इतनी मोटी हो जाती है कि आप उसके रूम के बाहर खडे होकर गरियाइये वो या तो कान में इयरफोन ठूंस कर सो जायेगा या फिर उठकर आपको लतिया देगा लेकिन डिप्रेशन में न जायेगा।
और ज़ब गाँव से निकला लड़का बहुत उदास दिखे तो समझना कोई बड़ी त्रासदी है।

कुंदरू

 कुंदरू: मुँह के छालों का अंत तुरंत।

कुंदरू गाँव देहात की एक प्रमुख सब्जी है, और यह एक महत्वपूर्ण दवा भी है।
इस ललचाने वाले आज के घुमक्कड़ी भोज को आज यहाँ चर्चा के लिए छेड़ रहा हूँ, क्योंकि जब विचार न आयें तो फिर हमारे देश के भोजन इस राह को आसान बनाते हैं। मेरी दादी कहती थी कि दिमाग की नस पेट से होकर गुजरती है। पेट खाली है तो अक्ल भी घास चरने चली जाती है। 😂 चलिये आज का मीनू बताता हूँ। इसमें है मिक्स वेज (कुंदरू, आलू, गोभी, बैगन, गाजर, टमाटर), दाल, कढ़ी, चावल, सलाद और रोटी साथ मे मंगोड़े और पापड़ भी। वैसे तो पढ़े लिखे समझदार लोग दर- दर भटकने को अच्छा नही मानते हैं, लेकिन वो मजबूरी वाले भटकने के लिए सत्य है। मुझ जैसे मनमोजियो के लिये भटकना किसी तीर्थ यात्रा से कम नही है। लगातार नये नये लोगो से मित्रता तो होती ही है, साथ ही साथ हमारे भारत की गौरवशाली भोजन परंपरा से मन को तृप्त कर देने वाले व्यंजनो को ग्रहण करने का सौभाग्य भी प्राप्त हो जाता है। अनुभवों को किसी और दिन उपयुक्त मंच पर साझा करूँगा, फिलहाल यहाँ ज्वार के बनाये हुए इन खट्टे और चटपटे पापड़ की चर्चा छेड़ रहा हूँ, जो फ़ोटो में भी कट से गये है। 🤔 संभवतः कोई महाराष्ट्रीयन मित्र इस चर्चा को आगे बढ़ाये। सामान्यतः इन्हें इस क्षेत्र में मूंगफली दाने के साथ स्वल्पाहार के रूप में परोसा जाता है, और भोजन के साथ भी।


कुंदरू की सब्जी बनाना बहुत ही आसान है। सर्वप्रथम कुंदरू को गोल या लंबे जैसा चाहें पतले -पतले पीसेस में काट लें। कढ़ाई पर मीठा नीम, जीरा, राई आदि मसालों के साथ बघार लगाएं। कटी हुई प्याज, लहसन डाल दें। प्याज को सुनहरी होने तक भूने, इसके बाद इसमें काटे हुये कुंदरू के टुकड़े डाल दें। अच्छी तरह पकने दें और अंत मे हल्दी, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर डाल दें और पुनः पकने दें। कुंदरू की सब्जी तैयार है। आप चाहें तो इसके साथ बैगन, आलू, सेम आदि प्रयोग कर मिक्स वेज भी बना सकते हैं।
आइए जानते हैं कुंदरू के विषय मे गाँव के झरोखे से...। इसका पौधा पुराने समय में लगभग सभी भारतीय किसानो के घर पर आशानी से मिल जाता था, यह बहुवर्षीय बेल है, जिसकी शाखाएं प्रतिवर्ष सूख जाती हैं, और जड़ो का कांड जीवित रहता है जिससे प्रतिवर्ष नयी बेल आ जाती है, इससे लगभग छः माह तक फल प्राप्त किये जा सकते है।
हमारे भी पुराने घर में दादी के आँगन में साल भर कुंदरू की बेल का मंढ़ा डला रहता था। साल भर तजि सब्जी मिलती थी, सेहद तो बोनस में था जनाब! दादी के जाने के बाद अब यह केवल खेत में और बाड़ी में बची है, लेकिन उतनी तनदुरुस्त बेल नहीं है जितनी दादी के ज़माने में हुआ करती थी।
नए जमाने के बहुत से वैज्ञानिको ने अपनी शोध में दावा किया है कि, इसके फलो और पत्तियों में चमत्कारिक औषधीय गुण पाये जाते हैं। खासकर मधुमेह (डाइबिटीज) के रोग में तो यह रामबाण औषधि है। इसके अलावा यह वात रोग, पीलिया, पेट संबंधी रोग और कफ रोग में भी बहुत कारगर सिद्ध हुयी है। मुँह के छालों के लिए भी कुंदरू एक महत्वपूर्ण दवा है। छाले हो जाने पर 2- 4 कच्ची कुंदरू चबाकर खा लें, मजा भी आयेगा और बाद के लिए मुँह भी मजे करेगा। छाले की जलन या दर्द गायब हो जाएगी।
एक बात जो दादी कहती थी वो मुझे कभी हजम नहीं हुयी। इसके कच्चे फल भी बहुत स्वादिस्ट होते है, इस कारण हम लोग पूरी बेल लोचकर उससे फल तोड़कर खा जाया करते थे, तब दादी जोर से चिल्लाती थी..., ज्यादा मत खाओ रे, बहरे हो जाओगे.....🤔। आपके विचारों के लिए इस विषय को अधूरा छोड़ रहा हूँ। सोच समझकर बताइयेगा।
इसकी कोमल पत्तियों को साग की तरह, पुरानी पत्तियों का काढ़ा बनाकर या पाउडर बनाकर उपयोग किया जा सकता है। फल तो सलाद में कच्चे और सब्जी बनाकर प्रयोग किये ही जाते हैं।
अब हमारे बहुत से मित्रों के मन मे यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या वाकई में कुंदरू खाने से बहरे हो जाते हैं या फिर जैसा कि इसके नाम मे छिपा हुआ है, कि इसे खाने से मंद बुद्धि हो जाते हैं। (कुंद= धीमा, कम सक्रिय + अरु= तेज, सूर्य समान, सक्रियता,दिमाग) या फिर (कुंद= धीमा, कम सक्रिय+ रूह= दिखाई देने वाले शरीर का न दिखाई देने वाला भाग / आत्मा/ मन/ दिमाग)।
क्या सही है और क्या गलत, आइये इसे विज्ञान और संस्कृति की कसौटी लर परखते हैं। पहले बात करते हैं कि क्या नाम से भी किसी के गुण को स्पष्ट किया जा सकता है? या नामों में गुणों का रहस्य होता है, तो मेरा जबाब है - हाँ। समाज और संस्कृति से लेकर विज्ञान सभी मे गुणों के आधार पर नाम रखने की परंपरा प्रारम्भ से लेकर आज तक है। आधुनिक वर्गिकी नामकरण में भी ऐसा ही होता है। अब चलिये एक बार मान लेते हैं कि शायद ऐसा न हो तो। तब उस समय ऐसा कहना उचित होगा कि इसकी लता से फलों को टूटने, बच्चो द्वारा खेल खेल में खा लेने या तथागत चोरी से बचने के लिये ये बातें प्रचलन में आई हो। लेकिन बिना विज्ञान का पक्ष जाने अभी कोई भी निष्कर्ष अधूरा ही रहेगा।
आधुनिक शोधों के अनुसार विज्ञान कहता है कि कुंदरू के पौधे में Aspartic acid, Glutamic Acid, Asparagine, Tyrosine, Histidine, Phenylalanine And Threonine Valine Arginine आदि लाये जाते हैं, इसी तरह इसकी जड़ों में starch, fatty acids, triterpenoid, resin, β-amyrin, carbonic acid, saponin coccinoside, alkaloids, flavonoid glycoside, taraxerol lupeol and β-sitosterol आदि रसायन पाये जाते हैं। इन्ही रसायनों के कारण इसकी medicinal property होती है। हम यहाँ 2 मुख्य भ्रान्ति विषयों पर इसकी चर्चा कर रहे हैं-
1) क्या इसे खाने से दिमाग कमजोर हो जाता है...?
इसमें पाये जाने वाले threonine का प्रयोग तनाव और चिंता कम करने वाली औषधि की तरह किया जाता है। तनाव कम करने वाली औषधियों का स्वभाव है कि वे दिमाग की सक्रियता को एक निर्धारित समय तक कम करके सुकून प्रदानं करती हैं। इसी तरह इसमें पाया जाने वाला Taraxarol का memory impairment एजेंट है जो दिमाग को शिथिल कर देता है।
2) क्या इसे खाने से बहरे हो जाते हैं...?
दिमाग के साथ नाक, कान और गले का सीधा संबंध होता है। यह दिमाग को मंद कर देने जैसे रसायनों से युक्त फल है अतः लगातार सेवन से यह परिवर्तन आ सकता है, किन्तु प्रयोगों के आधार पर इस बात के आज तक कोई प्रमाण नही हैं।
हाँ जाते जाते बता दूँ की छाले में आराम taraxacol के antimicrobial और anti inflamatory गुण के कारण लगता है। इसके साथ साथ valine एनर्जी लेवल बढ़कर, दर्द सहन करने की क्षमता बढ़ाता है और छतिग्रस्त कोशिकाओं तथा मांसपेशियों को जल्द से जल्द रिपेयर करने में मदद करता है। तो कुंदरू की यह गणित कैसी लगी, झटपट बताइये...☺️
सामान्य नाम- #कुंदरू
अन्य नाम- #गोलिओ, तितोड़ी
Scientific name- #Coccinia_indica / grandis
Eng. Name- Ivy guard scarlet gourd, tindora and kowai fruit.
चौरई, जिला छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

डॉ विकास शर्मा

Friday, August 4, 2023

अकवन (मदार) के गुण

 अकवन को हिंदी में मदार कहते हैं और इसे एक जहरीले पौधे के रूप में जाना जाता है। मदार का पौधा किसी जगह पर उगाया नहीं जाता है। यह पौधा अपने आप ही कहीं पर भी उग जाता है हालांकि यह पौधा अपने आप में औषधीय गुणों से लबरेज है। मदार का वैज्ञानिक नाम कैलोत्रोपिस गिगंटी है। यह आमतौर पर पूरे भारत में पाया जाता है। भारत में इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं-श्वेतार्क और रक्तार्क। श्वेतार्क के फूल सफेद होते हैं जबकि रक्तार्क के फूल गुलाबी आभा लिए होते हैं। इसे अंग्रेजी में क्राउन फ्लावर के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसके फूल में मुकुट/ताज के समान आकृति होती है। इसके पौधे लंबी झाड़ियों की श्रेणी में आते हैं और 4 मीटर तक लम्बे होते हैं। इसके पत्ते मांसल और मखमली होते हैं। मदार का फल देखने में आम के जैसे लगता है, लेकिन इसके अंदर रुई होती है, जिसका इस्तेमाल तकिये या गद्दे भरने में किया जाता है। इसमें फूल दिसंबर-जनवरी महीने में आते हैं और अप्रैल-मई तक लगते रहते हैं।



मदार मुख्य रूप से भारत में पाया जाता है, लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में भी यह बहुतायत में पाया जाता है। थाईलैंड में मदार के फूलों का उपयोग विभिन्न अवसरों पर सजावट के लिए किया जाता है। इसे राजसी गौरव का प्रतीक माना जाता है और मान्यता है कि उनकी इष्ट देवी हवाई की रानी लिलीउओकलानी को मदार का पुष्पहार पहनना पसंद है। कंबोडिया में अंतिम संस्कार के आयोजन के दौरान घर की आंतरिक सजावट के साथ ही कलश या ताबूत पर चढ़ाने और अंत्येष्टि में इसका उपयोग किया जाता है।
हिंदुओं के धर्म ग्रंथ शिव पुराण के अनुसार मदार के फूल भगवान शिव को बहुत पसंद है इसलिए शांति, समृद्धि और समाज में स्थिरता के लिए भगवान शिव को इसकी माला चढ़ाई जाती है। मदार का फूल नौ ज्योतिषीय पेड़ों में से भी एक है। स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान गणेश की पूजा में मदार के पत्ते का इस्तेमाल करना चाहिए। स्मृतिसार ग्रंथ के अनुसार मदार की टहनियों का इस्तेमाल दातुन के रूप में करने से दांतों की कई बीमारियां दूर हो जाती हैं। भारतीय महाकाव्य महाभारत के आदि पर्व के पुष्य अध्याय में भी मदार की चर्चा मिलती है। इसके अनुसार ऋषि अयोद-दौम्य के शिष्य उपमन्यु की आंखों की रोशनी मदार के पत्ते खा लेने के कारण चली गई थी। मदार की छाल का इस्तेमाल प्राचीन काल में धनुष की प्रत्यंचा बनाने में किया जाता था। लचीला होने के कारण इसका उपयोग रस्सी, चटाई, मछली पकड़ने की जाल आदि बनाने के लिए भी किया जाता है।
औषधीय गुण
वैसे तो मदार को एक जहरीला पौधा माना जाता है, और कुछ हद तक यह सही भी है, लेकिन यह कई रोगों के उपचार में भी कारगर है। मदार देश का एक प्रसिद्ध औषधीय पौधा है। इसके पौधे के विभिन्न हिस्से कई तरह के रोगों के उपचार में कारगर साबित हुए हैं। इनमें दर्द सहित मधुमेह के रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। मदार के औषधीय गुणों की पुष्टि कई वैज्ञानिक अध्ययन भी करते हैं। वर्ष 2005 में टोक्सिकॉन नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार मदार का दूध बहते हुए खून को नियंत्रित करने में उपयोगी है। मदार का कच्चा दूध कई प्रकार के प्रोटीन से लबरेज हैं, जो प्रकृति में बुनियादी रूप में मौजूद होते हैं।
वर्ष 2012 में एडवांसेस इन नैचरल एंड अप्लाइड साइंसेज नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध दर्शाता है कि मदार के पत्ते जोड़ों के दर्द और मधुमेह के उपचार में कारगर हैं। वहीं वर्ष 1998 में कनेडियन सोसायटी फॉर फार्मास्युटिकल साइंसेज में प्रकाशित शोध ने इस बात की पुष्टि की है कि मदार का रस दस्त रोकने में भी उपयोगी है।
इन सब के अलावा मदार के पौधे के विभिन्न हिस्सों को सौ से भी अधिक बीमारियों के उपचार में कारगर माना गया है। बिच्छू के डंक मार देने की स्थिति में भी मदार का दूध डंक वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है। हालांकि मदार का दूध आंखों के संपर्क में आ जाए तो यह मनुष्य को अंधा भी बना सकता है। इसलिए मदार का औषधीय तौर पर इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।

Friday, July 7, 2023

सनातन की जानकारी

 ऐसी जानकारी बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो  सके

🙏प्रिंस शुक्ला 🙏7068108888

आपका आभार धन्यवाद होगा


1-अष्टाध्यायी               पाणिनी

2-रामायण                    वाल्मीकि

3-महाभारत                  वेदव्यास

4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य

5-महाभाष्य                  पतंजलि

6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन

7-बुद्धचरित                  अश्वघोष

8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष

9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र

10- स्वप्नवासवदत्ता        भास

11-कामसूत्र                  वात्स्यायन

12-कुमारसंभवम्           कालिदास

13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  

14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास

15-मेघदूत                    कालिदास

16-रघुवंशम्                  कालिदास

17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास

18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि

19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त

20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक

21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट

22-वृहतसिंता               बरामिहिर

23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा

24-कथासरित्सागर        सोमदेव

25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु

26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त

27-रावणवध।              भटिट

28-किरातार्जुनीयम्       भारवि

29-दशकुमारचरितम्     दंडी

30-हर्षचरित                वाणभट्ट

31-कादंबरी                वाणभट्ट

32-वासवदत्ता             सुबंधु

33-नागानंद                हर्षवधन

34-रत्नावली               हर्षवर्धन

35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन

36-मालतीमाधव         भवभूति

37-पृथ्वीराज विजय     जयानक

38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर

39-काव्यमीमांसा         राजशेखर

40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त

41-शब्दानुशासन         राजभोज

42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र

43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष

44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण

45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र

46-गीतगोविन्द            जयदेव

47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई

48-राजतरंगिणी           कल्हण

49-रासमाला               सोमेश्वर

50-शिशुपाल वध          माघ

51-गौडवाहो                वाकपति

52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी

53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र


वेद-ज्ञान:-


प्र.1-  वेद किसे कहते है ?

उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।


प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने दिया।


प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।


प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?

उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।


प्र.5-  वेद कितने है ?

उत्तर- चार ।                                                  

1-ऋग्वेद 

2-यजुर्वेद  

3-सामवेद

4-अथर्ववेद


प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।

        वेद              ब्राह्मण

1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय

2 - यजुर्वेद      -     शतपथ

3 - सामवेद     -    तांड्य

4 - अथर्ववेद   -   गोपथ


प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।

उत्तर -  चार।

      वेद                     उपवेद

    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद

    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद

    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद

    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद


प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।

उत्तर -  छः ।

1 - शिक्षा

2 - कल्प

3 - निरूक्त

4 - व्याकरण

5 - छंद

6 - ज्योतिष


प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?

उत्तर- चार ऋषियों को।

         वेद                ऋषि

1- ऋग्वेद         -      अग्नि

2 - यजुर्वेद       -       वायु

3 - सामवेद      -      आदित्य

4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा


प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?

उत्तर- समाधि की अवस्था में।


प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?

उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।


प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?

उत्तर-   चार ।

        ऋषि        विषय

1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान

2-  यजुर्वेद    -    कर्म

3-  सामवे     -    उपासना

4-  अथर्ववेद -    विज्ञान


प्र.13-  वेदों में।


ऋग्वेद में।

1-  मंडल      -  10

2 - अष्टक     -   08

3 - सूक्त        -  1028

4 - अनुवाक  -   85 

5 - ऋचाएं     -  10589


यजुर्वेद में।

1- अध्याय    -  40

2- मंत्र           - 1975


सामवेद में।

1-  आरचिक   -  06

2 - अध्याय     -   06

3-  ऋचाएं       -  1875


अथर्ववेद में।

1- कांड      -    20

2- सूक्त      -   731

3 - मंत्र       -   5977

          

प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।


प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?

उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।


प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?

उत्तर-  नहीं।


प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

उत्तर-  ऋग्वेद।


प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 


प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?

उत्तर- 

1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।

2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।

3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।

4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।

5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।

6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।


प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?

उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।


प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?

उत्तर-  केवल ग्यारह।


प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?

उत्तर-  

01-ईश ( ईशावास्य )  

02-केन  

03-कठ  

04-प्रश्न  

05-मुंडक  

06-मांडू  

07-ऐतरेय  

08-तैत्तिरीय 

09-छांदोग्य 

10-वृहदारण्यक 

11-श्वेताश्वतर ।


प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?

उत्तर- वेदों से।

प्र.24- चार वर्ण।

उत्तर- 

1- ब्राह्मण

2- क्षत्रिय

3- वैश्य

4- शूद्र


प्र.25- चार युग।

1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।

2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।

3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।

4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।

कलयुग के 5122  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।

4,27024 वर्षों का भोग होना है। 


पंच महायज्ञ

       1- ब्रह्मयज्ञ   

       2- देवयज्ञ

       3- पितृयज्ञ

       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ

       5- अतिथियज्ञ

   स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।

नरक  -  जहाँ दुःख है।.

*#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,