Friday, November 15, 2019

स्मॉग से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने बनाया नया स्प्रेयर


र्दियों की दस्तक के साथ दिल्ली और आसपास के इलाके एक बार फिर स्मॉग की चपेट में हैं। चंडीगढ़ स्थित केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संस्थान (सीएसआईओ) के वैज्ञानिकों ने एक वाटर स्प्रेयर विकसित किया है, जो स्मॉग को कम करने में कारगर हो सकता है।



यह स्प्रेयर स्थिरवैद्युतिक रूप से आवेशित (इलेक्ट्रोस्टैटिक-चार्ज) कणों के सिद्धांत पर काम करता है। वाटर स्प्रेयर में स्थिरवैद्युतिक रूप से आवेशित पानी के कण पीएम-10 और पीएम-2.5 को नीचे धकेल देते हैं, जिससे स्मॉग का शमन किया जा सकता है। स्प्रेयर से एक समान पानी के कण निकलते हैं जो हवा में मौजूद सूक्ष्म धूल कणों के लगभग समान अनुपात में होते हैं।


हवा में सूक्ष्म कणों के आपस में टकराने, सूर्य की किरणों और ब्रह्मांडीय विकिरणों आदि के कारण आवेश पैदा होता है। जब छिड़काव की गई बूंदों पर ऋणात्मक चार्ज डाला जाता है, तो वे धनात्मक सूक्ष्म कणों की ओर आकर्षित होती हैं। इसी तरह, धनात्मक रूप से चार्ज सूक्ष्म कणों पर ऋणात्मक चार्ज युक्त पानी की बूंदों की बौछार करने पर वे एक दूसरे की आकर्षित होते हैं। इस कारण पानी की बूंदें और हवा में मौजूद कणों के संपर्क में आती हैं और सूक्ष्म कण भारी होकर धरातल पर बैठने लगते हैं।


शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि इस स्प्रेयर से निकलने वाली पानी की बूंदें अत्यंत छोटी होने के कारण उन पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव कम होता है और वे देर तक हवा में ठहर सकती हैं। हवा में अधिक समय तक रहने के कारण पानी की बूंदों का संपर्क हवा में मौजूद पीएम-10 और पीएम-2.5 जैसे सूक्ष्म कणों से बढ़ जाता है और वे भारी होकर जमीन की ओर आने लगते हैं।


इस स्प्रेयर को विकसित करने वाले प्रमुख शोधकर्ता डॉ मनोज पटेल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस स्प्रेयर में करीब 10 से 15 माइक्रोन के पानी के कण हवा में मौजूद पीएम-10 और पीएम-2.5 जैसे सूक्ष्म कणों से टकराते हैं और उन्हें नीचे धकेल देते हैं। हवा में मौजूद ऋणात्मक रूप से आवेशित सूक्ष्म कण होने पर स्प्रेयर से भी ऋणात्मक आवेशित कण निकलते हैं। ऐसे में, स्प्रेयर से निकलने वाले पानी के कण हवा में उपस्थित सूक्ष्म कणों को स्थिर करने में मदद करते हैं।”




पानी की बौछार करते हुए स्प्रेयर


" प्रदूषित हवा के कारण श्वसन तंत्र से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, वातावरण में मौजूद सूक्ष्म धूल कण उद्योगों में मशीनों के संचालन में भी बाधा पैदा करते हैं। इसीलिए, इन कणों का शमन बेहद जरूरी होता है। "

वाटर टैंक और छिद्र युक्त कैनन इस उपकरण के दो प्रमुख अंग हैं, जो एक-दूसरे से आपस में जुड़े रहते हैं। आमतौर पर उपयोग होने वाले स्प्रेयर में भी टैंकर होता है। पर, गैर-आवेशित कण होने के कारण उन उपकरणों में पानी की बर्बादी अत्यधिक होती है। इस स्प्रेयर से निकलने वाले पानी के सूक्ष्म कणों के कारण पानी की बर्बादी को भी कम किया जा सकता है।


सीएसआईओ के निदेशक प्रोफेसर आर.के. सिन्हा ने बताया कि “हवा में तैरते धूल कणों को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव एक सामान्य प्रक्रिया है। हालांकि, पानी की बड़ी बूंदों के कारण वातावरण में सूक्ष्म कणों से पानी का संपर्क नहीं होने से वे हवा में बने रहते हैं। यह तकनीक कृत्रिम वर्षा की बौछारें उत्पन्न करके हवा में मौजूद धूल कणों के शमन में मददगार हो सकती है। इसका उपयोग अपने आसपास के क्षेत्र में मौजूद धूल कणों के शमन के साथ-साथ ड्रोन की मदद से बड़े पैमाने पर भी हवा में मौजूद कणों के शमन के लिए किया जा सकता है।”


धुएं के कारण उपजे वायु प्रदूषण और कोहरे के मिश्रित रूप को स्मॉग कहते हैं। स्मॉग के कारण हवा में पीएम-2.5 और पीएम-10 जैसे सूक्ष्म कण लंबे समय तक बने रहते हैं। इसके कारण सांस लेने में परेशानी होती है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।


डॉ मनोज पटेल ने बताया कि “प्रदूषित हवा के कारण श्वसन तंत्र से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, वातावरण में मौजूद सूक्ष्म धूल कण उद्योगों में मशीनों के संचालन में भी बाधा पैदा करते हैं। इसीलिए, इन कणों का शमन बेहद जरूरी होता है।”


यह मशीन आरंभ में कीटनाशकों के नियंत्रित रूप से छिड़काव के लिए विकसित की गई थी। स्मॉग से निपटने के लिए इसमें बदलाव करके इसे नए रूप में पेश किया गया है। परीक्षण के दौरान स्मॉग नियंत्रण में इस मशीन को प्रभावी पाया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए जल्दी ही इस तकनीक को उद्योगों को हस्तांरित किया जा सकता है।
इंडिया साइंस वायर





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Monday, November 11, 2019

पाकिस्तान का नया फार्मूला अब महात्मा के वेश में घूमेंगे पाकिस्तानी एजेंट


इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, आध्यात्मिक गुरु या बाबा के रूप में संवेदनशील जानकारी साझा करने के लिए सैनिकों या उनके परिवारों को लुभाने के लिए पाकिस्तान इंटेलिजेंस ऑपरेटिव्स (पीआईओ) द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली यह नवीनतम विधि है। एक आंतरिक दस्तावेज में सेना ने अपने कर्मियों को इस जासूसी तकनीक में न फंसने की चेतावनी जारी की है।
भारतीय सेना ने अपने सैनिकों को नकली बाबाओं और आध्यात्मिक गुरुओं से सावधान रहने की चेतावनी जारी की है। सेना ने कहा है कि ये पाकिस्तानी खुफिया एजेंट हो सकते हैं, जो उन्हें फंसाने और गोपनीय जानकारी हासिल करने की कोशिश कर सकते हैं।


सैन्य अधिकारियों के अनुसार पाकिस्तानी खुफिया एजेंट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे कि यूट्यूब, व्हाट्सएप और स्काइप का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि सेवारत सैनिकों को निशाना बनाया जा सके। सेना ने लगभग 150 सोशल मीडिया प्रोफाइल की पहचान की है, जिन पर पाकिस्तानी एजेंट होने का संदेह है।


ये सभी एजेंट संवेदनशील जानकारी एकत्र करने के लिए सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मियों और उनके आश्रितों को अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ सोशल मीडिया प्रोफाइल जाली तरीके से महिलाओं के नाम पर बनाई गई है, पाकिस्तानी इससे सैनिकों को हनीट्रैप में फंसाने की कोशिश कर सकते हैं। 


सर्वोच्च न्याय का सर्वोच्च न्यायालय


आखिरकार! सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सबसे ऐतिहासिक, मौलिक, महत्वपूर्ण, बड़े और प्राचीन अयोध्या विवाद का सर्वोच्च न्याय कर दिया। जो भारतीय न्यायपालिका के इतिहास और आमजन के मानस पटल में युगे-युगिन स्वर्ण अक्षरों में अमिट रहेगा। दिव्य न्याय में किसी की हार है ना जीत, फैसला है समुचित और सुरक्षित। या कहें ना हिंदू का, ना मुस्लमान का, ये फैसला है हिंदुस्तान का। जीता तो कानून जीता, न्याय  व्यवस्था जीती, संविधान जीता, इंसानियत जीती, देश जीता और हारा कोई भी नही। यही है सच्चा हिंदुस्तान। स्त्तुय देश ने इसे दिल से लगाया। चाहे वह पक्ष हो या विपक्ष सभी ने इंसाफ का मन से सम्मान किया। बेहतर शीर्ष अदालत ने देश की जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति को रेखांकित करते हुए वतन की गंगा-जमुना तहजीब को और अधिक प्रगाढ़ किया है। जिसके के लिए देश का संविधान सदा वंदनीय और न्याय का मंदिर प्रार्थनीय रहेगा।


प्रत्युत, सरजमीं में अनादिकाल से प्रचलित पंच-परमेश्वर की न्याय पंरपरा को आगे बढ़ाते हुए उच्चतम न्यायालय के पंच न्यायमूर्तियों ने पंचनिष्ठा से अपने सर्व सम्मत फैसले में अयोध्या की विवादित ढांचे वाली 2.77 एकड़ जमीन राम लला विराजमान को देकर सरकार को मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाने और मस्जिद के वास्ते पांच एकड़ जमीन उपयुक्त स्थान पर देने कहा। अदालत ने माना की सबूत है कि बाहरी स्थान पर हिन्दुओं का कब्जा था नाकि मुस्लिम का। लेकिन मुस्लिम अंदरूनी भाग में नमाज़ भी करते रहे। जबकि यात्रियों के विवरण से पता चलता है कि हिन्दू यहां पूजा करते थे। 1857 में रेलिंग लगने के बाद सुन्नी बोर्ड यह नहीं बता सका कि ये मस्जिद समर्पित थी। 16 दिसंबर 1949 को आखिरी नमाज की गई। विवरण को सावधानी से देखने की जरूरत है। वहीं गजट ने इसके सबूतों  की पुष्टि की है। अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट बोला की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष आया था कि यहां मंदिर था, इसके होने के सबूत हैं। भगवान राम का जन्म गुंबद के नीचे हुए था। प्रस्तुत, ऐतिहासिक तथ्य, प्रतिक, चिन्ह, और तर्क में प्रमाण मिले।


वस्तुत: श्री रामजन्मभूमि के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का यह मत देश की जनभावना, विश्वास, आस्था एवं श्रद्धा से ऊपर न्यायप्रिय है। ना राम भक्ति, ना रहीम भक्ति बल्कि देश भक्ति से परिपूर्ण है। सालों तक चली लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद यह विधिसम्मत अंतिम निर्णय हुआ है। जिसकी बांट सभी देशवासी लंबे से जो हो रहे थे। जो अब जाकर मुकम्मल हुआ। दौरान, श्री रामजन्मभूमि से संबंधित सभी पहलुओं का बारीकी से विचार हुआ है। पक्षों के अपने-अपने दृष्टिकोण से रखे तर्कों का मूल्यांकन हुआ। मसले के समापन की दिशा में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप परस्पर विवाद को समाप्त करने वाली पहल सरकार की ओर से अब जल्द होगी, ऐसा  विश्वास रखना होगा। अतीत की सभी बातों को भुलाकर हम सभी श्री रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण में साथ मिल-जुल कर हमें अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए। अलावे नव मस्जिद के निर्माण में समर्पण भाव से सहयोग। कवायद हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई आपस में है भाई-भाई का बोध अनेकता में एकता भारत की विशेषता और अधिक परिलक्षित करेगा।


काबिले गौर, फैसले की खासियत यह रही कि सभी ने इसका इस्तकबाल छद्म-धर्मर्निपेक्ष को तोड़ते हुए किया है। एक पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी सर्वोच्च अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए आगे चुनौती नहीं देने की मंशा जाहिर की। और तो और दूसरे पक्ष ने भी रामादर्शों के मुताबिक इसका शालीनता, मर्यादित और सहिष्णुता से सजदा किया। इससे बढ़कर और क्या मिसाल इस देश में पेश की जा सकती है। जहां हर वर्ग खुले मन से अपने न्याय के मंदिर के आदेश को सर आंखों पर ले रहा है। येही सही अर्थों में अंखड हिंदुस्तान की पहचान है। ऐसा तो वाकई में भारत में ही मुकम्मल हो सकता है जहां शांति, अमन चैन, सौहार्द और सद्भाव के वास्ते सब सर्वस्व निछावर करने तैयार रहते हैं। जिससे आज सारे जग में हिंदुस्तान का माथा और गर्व से ऊंचा हो गया। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय, देश की 130 करोड़ जनता, कानून व्यवस्था, सरकार और जुड़े हुए एक-एक परिश्रमियों का जितना भी शुक्रिया अदा किया जाए उतना ही कम होगा। बदौलत ही देश में राम-रहीम-रमजान और दीप-अली-बजरंगली साथ दिखाई पड़ते है। सत्यमेव जयते!


क्यों कायस्थ 24 घंटे के लिए नही करते कलम का उपयोग

जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छुट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी  थी कलम !!उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था |



 परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं  यानी किसी भी तरह का का हिसाब - किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यूँ  है ?
कि पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग  दीपावली के दिन पूजन के  बाद कलम रख देते है और फिर  यमदुतिया के दिन  कलम- दवात  के पूजन के बाद ही उसे उठाते है I


इसको लेकर सर्व समाज में कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते है ?
ऐसे में अपने ही इतिहास से अनभिग्य कायस्थ युवा पीढ़ी इसका कोई समुचित उत्तर नहीं दे पाती है I जब इसकी खोज की गई तो इससे सम्बंधित एक बहुत रोचक घटना का संदर्भ हमें किवदंतियों में मिला I


कहते है जब भगवान् राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने  गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की  व्यवस्था करने को कहा I गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं I


ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवीदेवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा भगवान चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है इस पर जब खोज बीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था जिसके चलते भगवान् चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान  चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे । फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I


सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे , प्राणियों का का लेखा जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I 
#तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर **
( श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) 
में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद  भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद ) पुन: *कलम दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और *#यमदुतिया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है


कहते है तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से  दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को ही है I


Thursday, October 31, 2019

कठिन उपासना

आया पर्व उपासना का
साफ होते घाट
डाला दौड़ा सज रहे
माताएँ करे उपवास।।
आरोग निरोग मन्नतें का
डूबते उगते सूर्य का
गंगा के तटपर देखो
दूध से हो रहा अभिषेक।।
बज रही है हर तरफ 
छठी मैया की गीत
वातावरण में फैला
मीठे मीठे संगीत।।
आस्था की बाढ सी आयी
जिसे देखो वो छठी मैया के गुण गायी
चार दिनो की उपासना करते है लोग
गंगा में डूबकी लगा पवित्र होते हैं लोग।
पटना का छठ है मनोरम
फैलाता जन मानस को संदेश
स्वच्छता पवित्रता का यह पर्व
आपसी भाईचारे का देता संदेश
आओ सब मिलकर बनायें और विशेष।।


                                आशुतोष


लोक संस्कृति से मिलता है संस्कार

छात्रों में गजब की संघर्ष करनेएपरिस्थति से लड़ने के साथ.साथ अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए जुझारूपन होता है। विशेषर ग्रामीण छात्रों मेंए इनका संघर्ष प्रायः बचपन से ही शूरू हो जाता है।बस निखारने के लिए थोडी देख रेख की जरूरत होती है। गाँव की लोक संस्कृति से इनका लगाव शूरू से होता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखते गाँव में ये पलते है बचपन में स्कूल और कोचिंग के साथ घर और खेतो में काम मवेशियों की देखभाल और पढाई करना तो पडता ही है साथ ही गरीबी से जूझना भी पडता है न मन पसंद कपडे होते और न खाने की मनपसंद चीजेंए दिक्कतों से नित रू.ब. रू होकर जैसे तैसे मैट्रिक तो गाँव में पास कर लेते हैं फिर शहरो में एडमिशन और खाने की भी गंभीर संकट से गुजरना होता हैए पर इतनी छोटी उम्र में भी इनकी परिपक्वता देखते ही बनती है।जो इन्हें लोक नाटको और पौराणिक कहानियो के जरिये बचपन में मिलता है।वही इनकी स्टेमिना को बरकरार रखता है।साथ ही साथ हमारे पर्व त्योहारो पर उनकी आस्था और  बीतते वक्त के साथ प्रगाढ होता जाता है जो कही न कही उन्हें आत्मबल और लोगो से जोडता जाता है साथ ही साथ उनका संस्कार भी अच्छा हो जाता है।समाजिक गतिविधियों का ज्ञान जितना बढेगा संस्कार उतने ही निखरेंगे और सफलता मिलेगी।
पिताजी किसी तरह कर्ज लेकर या खेतो को गिरवी रखकर पढाई कराते है । विद्यार्थी भी चित से पढता है पर मन तो शहर की रंग विरंगी दुनिया देखकर हर कदम पर खर्च करना चाहता है।दोस्तो के आगे कई बार लज्जित होना पडता है। शहर की चाटूकारिता से अनभिज्ञ गाँव का लड़का मन मसोस मसोस कर फिर कभी के लिए टाल जाता है।दरअसल सीमित पैसे जो उसके पढाई के लिए दिए जाते उसकी जिम्मेदारी को निभाकर वो सिर्फ अपनी मंजिल की ओर देखता रहता है। कभी भूलचूक से कुछ खर्च हो भी जाता है तो वह अफसोस करता है। अपने पिता के परिश्रम के लिए सोचता भी है।शहर के माहौल में धीरे धीरे वह गति पकडता है।बोलचाल भाषा को लेकर भी दिकक्ते आती है जिसके कारण लज्जित होकर नित सीखना पड़ता है। इसी तरह कुछ खट्टे कुछ मीठे अनुभवो के साथ काँलेज की पढाई पूरी होती है।
               दर असल शुरू से गाँव के परिवेश में रहकर शहर आये लड़को को कई दैनिक परेशानियों से गुजरना होता है जिसमें भोजन कपडे बुक फीस कई ऐसी चीजे है जिसकी परेशानी से लड़कर वह परिपक्वता हासिल करता है उसमें परिस्थिति से लड़ने और समयानुकूल कार्य करने की आदत बन जाती है जो उसके सफलता का मार्ग बनाता है जब वह हाईयर एजुकेशन प्राप्त कर लेता है तो एक परिपक्व मानसिकता के साथ बडा से बडा कम्पीटीशन फेश कर अव्वल दर्जे से पास करता है।यही कारण है कि शहर  के लडकेध्लडकियों के मुकाबले गाँव की सफलता दर ज्यादा है वैसे भी गाँव ने ही अव्वल दर्जे के सबसे ज्यादा प्रशासनिक अधिकारीए सेना के अधिकारी जवान देश को दिए है जो निरंतर जारी है।इनमें देशभक्ति का जज्वा कूटकूट कर भरा होता है।इसलिए तो कहा गया है ग्रामीण लोक संस्कृति और उसका ज्ञान ही हमारी पूँजी है। 


Wednesday, October 30, 2019

लोकतंत्र में बहुमत की राय का आदर और वोटर को इज्जत सिर्फ ढकोसला

पॉलिटिकल साइंस के सेमिनार में एक विद्यार्थी का बयान था कि मेरा तो यक़ीन लोकतंत्र पर से सन 1996 में ही उठ गया था..
कहने लगा कि ये उन दिनों की बात है जब एक शनिवार को मैं मेरे बाक़ी तीनों बहन भाई, मम्मी पापा के साथ मिलकर रात का खाना खा रहे थे ।
पापा ने पूछा:- कल तुम्हारे चाचा के घर चलें या मामा के घर?
हम सब भाइयों बहनों ने मिलकर बहुत शोर मचा कर चाचा के घर जाने को कहा, सिवाय मम्मी के जिनकी राय थी कि मामा के घर जाया जाए।
बात बहुमत की मांग की थी और अधिक मत चाचा के खेमे में पड़े थे ...बहुमत की मांग के मुताबिक़ तय हुआ कि चाचा के घर जाना है। मम्मी हार गईं। पापा ने हमारे मत का आदर करते हुए चाचा के घर जाने का फैसला सुना दिया। हम सब भाई बहन चाचा के घर जाने की ख़ुशी में जा कर सो गये।
रविवार की सुबह उठे तो मम्मी गीले बालों को तौलिए से झाड़ते हुए बमुश्किल अपनी हंसी दबा रहीं थीं..उन्होंने हमसे कहा के सब लोग जल्दी से कपड़े बदल लो हम लोग मामा के घर जा रहें हैं।
मैंने पापा की तरफ देखा जो ख़ामोशी और तवज्जो से अख़बार पढ़ने की एक्टिंग कर रहे थे.. मैं मुंह ताकता रह गया..
बस जी! मैंने तो उसी दिन से जान लिया है कि लोकतंत्र में बहुमत की राय का आदर... और वोटर को इज़्ज़त ... सब ढकोसले है।
"असल फैसला तो बन्द कमरे में उस वक़्त होता है जब ग़रीब जनता सो रही होती है"
इसके बाद उस विद्यार्थी ने पोलिटिकल साइंस छोड़कर इकोनॉमिक्स ले ली।


क्या मोदी जी आजादी का इतिहास दोहराने की कोशिश तो नहीं कर रहे?

देश का जब संविधान लिखा जा रहा था तो जवाहरलाल नेहरू को नींद नहीं आ रही थी क्योंकि संविधान को एक अछूत बाबा साहब अम्बेडकर  लिख रहे थे।  
    नेहरू रात में ही गाँधी के पास गया, गांधी सो रहा था,नेहरू ने गाँधी को जगाया । नेहरू ने गांधी से कहा-बापू आप सो रहे हैं और मुझे नींद नहीं आ रही है क्योंकि अम्बेडकर संविधान लिख रहा है न जाने अपने लोगों के लिए क्या-क्या लिख देगा।  गांधी ने मुस्करा कर कहा - अरे पंडित क्यों चिंता करता है, लागू तो तुझे ही करना है । 


  बाबा साहब अम्बेडकर ने संविधान में दलित व पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। संविधान लागू हो गया।  आजाद भारत में प्रथम आम चुनाव हो गया था पूरे देश में कांग्रेस की सरकार बनी। सभी राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री बने। सरकारी कर्मचारियों की भर्ती होनी थी। नेहरू ने गांधी से पूछा कि - बापू आरक्षण का क्या करना है? तब गांधी ने एक छोटी सी पर्ची पर गुप्त तरीके से लिख कर दिया कि- "पंडित  वेकेंसी निकालो और भर्ती की पूरी प्रक्रिया पूरी करो लेकिन दलित व पिछड़ों को नहीं लेना है और उनकी खाली वेकेंसी के सामने लिखना है कि-कोई योग्य अभ्यर्थी नहीं मिला " यह सुन कर नेहरू खुश हो गया और बोला कि बापू मैं समझ गया। 


   पूरे देश में कर्मचारियों की भर्ती निकाली,प्रक्रिया पूरी की गयी लेकिन पूरे देश के मुख्यमंत्रियों पर वह गांधी की  पाती गुप-चुप पहुंचायी गयी।  दलित पिछड़ों को भर्ती नहीं किया गया । उनकी वेकेंसी के सामने लिख दिया गया कि  " कोई योग्य अभ्यर्थी नहीं मिला " यह देख कर बाबा साहब अम्बेडकर  बहुत दुखी हुए तब उन्होंने कहा कि - " शिक्षित बनो "


आज वही गांधी की पाती सरकार द्वारा फिर अमल में लायी जा रही है।  61 फीसदी वेकेंसी के लिए योग्य अभ्यर्थी नहीं मिला कह कर वेकेंसी खाली छोड़ दी गयीं हैं।


मेरे चंद गुनाहों की किताब

वो मेरे चंद गुनाहों की किताब रखता है
नौसिखिया है, इश्क़ में हिसाब रखता है  

नींद आएगी नहीं उसे किसी भी सूरत में
आँखों में बे - हिसाब मेरे ख्वाब रखता है

कहता है  कि मेरे निशाँ तक  मिटा  देगा
और आँगन में  मुझे  माहताब*  रखता है

बुझा कर रौशनी  पूरे घर में  सूना बैठा है
और पलकों में छुपाके मेरे आब रखता है

जिन सवालों से मुझे घेरने की कोशिशें हुईं
अपने होंठों पर उनके खूब जवाब रखता है  

*आब-चमक  
*माहताब-चाँद

सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन
नई दिल्ली 


 

 

 संपूर्ण समर्पण और त्याग का छठ  पर्व

पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।



राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है। इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।



एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।


किंवदंती के अनुसार, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।


एक मान्यता के अनुसार, लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यही परंपरा अब तक चली आ रही है।


छठ पूजा का महत्व एवं विधि


 


छठ पूजा : अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को देते हैं अर्घ्य


नवरात्रि और दूर्गा पूजा की तरह छठ भी हिंदूओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। छठ पूजा को लेकर हिन्दुओं में काफी आस्था होती है। हालांकि अब यह पर्व हर जगह मनाया जाने लगा है, लेकिन मुख्य रुप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। इस दौरान डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्य देव की बहन हैं और सूर्योपासना करने से छठ माता प्रसन्न होकर घर परिवार में सुख-शांति व धन-धान्य प्रदान करती हैं।


कार्तिक छठ पूजा का है विशेष महत्व


भगवान भाष्कर की आराधना का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है, चैत्र शुक्ल की षष्ठी व कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को। चैत्र शुक्ल की षष्ठी को काफी कम लोग यह पर्व मनाते हैं, लेकिन कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले कार्तिक छठ पूजा का विशेष महत्व है।


क्यों की जाती है छठ पूजा


छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिये की जाती है। भगवान भास्कर की कृपा से सेहत अच्छी रहती है और घर में धन धान्य की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए भी छठ पूजन का विशेष महत्व है।


कौन हैं छठ माता और कैसे हुई उत्पत्ति?


छठ माता को सूर्य देव की बहन बताया जाता है, लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ माता भगवान की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। अपने परिचय में वे कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृत्ति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं यही कारण है कि उन्हें षष्ठी कहा जाता है। संतान प्राप्ति की कामना करने वाले विधिवत पूजा करें, तो उनकी मनोकामना पूरी होती है। यह पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को करने का विधान बताया गया है।


पौराणिक ग्रंथों में इसे रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या वापसी के बाद माता सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करने से भी जोड़ा जाता है।


चार दिनों तक चलती है छठ पूजा


छठ पूजा चार दिनों तक चलती है और इसे काफी कठिन और विधि-विधान वाला पर्व माना जाता है। इसके लिए पूजा से पहले काफी साफ-सफाई की जाती है। घर के आस-पास भी कहीं गंदगी नहीं रहने दी जाती।


नहाय-खाय


पूजा के पहले दिन नहाय खाय होता है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान कर नए वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन करते हैं। इस दिन लौकी-भात (लौकी की सब्जी और चावल, दाल आदि) की परंपरा है। पूजा के दौरान बाजार में लौकी की कीमत भी काफी बढ़ जाती है। नहाय खाय के दिन व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं।


खरना


छठ पूजा के तहत नहाय-खाय के दूसरे दिन खरना होता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किए बिना उपवास किया जाता है। शाम को चावल और गुड़ से खीर बनाकर खायी जाती है और लोगों के बीच इसका प्रसाद भी वितरित किया जाता है। इसमें  नमक व चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। खीर बनाने में भी गुड़ का इस्तेमाल होता है।


खरना के दूसरे दिन घी में बनता है प्रसाद


खरना के दूसरे दिन षष्ठी को छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ का विशेष महत्व होता है। अर्घ्य के लिए ठेकुआ बनता है वह पूरी तरह से घी में ही बनाया जाता है। ठेकुआ बनाने के लिए <span style="font-f


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Tuesday, October 29, 2019

वर्तमान भारत और गाँधी जी

 आज देश के राजनैतिक दलों की जो हालत है उनमें जो भ्रष्टाचार और दुराचार व्याप्त हैए सत्ता पर कब्जा करने के लिए जो अनीतिपूर्ण हथकण्डे अपनाये जा रहे हैं और उससे देश की जो बरबादी हो रही हैए ऐसे संकटपूर्ण अवसर पर गाँधी जी की याद आना स्वाभाविक है। गाँधी जी का उपदेश था कि किसी ऊँचे उद्देश्य में सफलता प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं हैंए उस सफलता प्राप्त करने के साधन भी शुद्ध और नैतिक होना चाहिएए धर्म बिना राजनीति वेश्या समान हैएष्ष् उन्होंने कहा किजहाँ हिन्दू ष्ष्धर्म को स्थान नहीं है वहाँ मैं रहना नहीं चाहूँगा।ष्ष् उनके आश्रम में कोई दुराचारी भ्रष्टाचारी व्यक्ति घुस नहीं सकता था। वे आश्रम के एक.एक पैसे का हिसाब रखवाते थे। उन्होंने अपने परिवार वालों का कभी पक्ष नहीं लिया। गाँधी जी के जीवन पर विश्व में सैकड़ों पुस्तकें लिखी गई हैं और दुनियाँ में जितना आदर उनको प्राप्त है उतना किसी को भी नहीं है। भारत के अधिकतर उद्योगपति व बुद्धजीवी यह मानते हैं कि गाँधी जी से नफरत के आधार पर जो हिन्दुत्व बनेगा वह हमें नहीं चाहिए।
 आज राजनैतिक दल किसी अशुद्ध अनैतिक साधन से रत्ता पर कब्जा करना उचित समझते हैंै। इससे देश में भ्रष्टाचार और दुराचार फैल रहा है। गाँधी जी का कहना था गलत साधनों से आजादी प्राप्त कर लेना मुझे स्वीकार नहीं हैं। उन्होंने जीवन भर संयम ब्रह्मचर्यए सत्य अहिंसाए रामधुन गोरक्षाए हरिजनोद्धारए धर्मपरिवर्तन विरोधए नारी उद्धार गाँवों का उद्धार इत्यादि में बिताये और अहिंसा के भगीरथ प्रयत्न द्धारा सारे देश को एक करके 700 वर्ष की गुलामी को दूर करके भारतवासियों को आजादी दिलाने में अपना योगदान दिया तत्पश्चात विश्व के 112 देशों को बिना हिंसा के आजादी प्राप्त हुई। यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि दुनियाँ के देशों में इनकी महानता को नहीं समझा अन्यथा दुनियाँ में आज इतनी हिंसा नहीं होती और भारत को इसका श्रेय प्राप्त होता।
 देश के राजनैतिक दलों ने गाँधी जी के त्यागपूर्णए तपस्वी जीवन रद्दी की टोकरी ने डाल दियाए इससे देश में आदर्शपूर्ण संयमी जीवन मूर्खतापूर्ण माना जाने लगा और सर्वत्र भोग विलास और गरीबों का शोषण ही जीवन का उद्देश्य हो गया।
 गाँधी जी का कहना था कि अन्याय सहन करना सबसे बड़ा पाप है इससे अन्याय के विरूद्ध मीडिया में जोरदार प्रचार होना चाहिए। इसीसे जनता जागृत होकर देश की रक्षा करेगीए पर गाँधी जी की सबसे बड़ी भूल यह थी कि उन्होंने पाकिस्तान से अदला बदली नहीं की अन्यथा आज भारत का नक्शा दूसरा होता। पक्के गाँधी वादी मोरारजी देसाई के अनुसार आज गाँधी जी की अहिंसा से आतंकवाद का सामना नहीं हो सकता। गीता के वाक्य के अनुसार ष्ष्विनाशाय च दुष्कृतामष्ष् सज्जनों की रक्षा के लिए दुुर्जनों का विनाश होना चाहिएए यही सत्य है।


उपेक्षा से आहत हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी

 पाण्डवों का यक्ष रूप में अवतरित-धर्म के ब्यूह में फँसना और धर्मराज युधिष्ठिर का अपने चारों भाइयों को काल के ग्रास से निकालने की कथा लगभग हम सबको पता है। प्रश्नों की श्रृंखला में यक्ष ने युधिष्ठर से स्वतंत्र राष्ट्र की परिभाषा भी पूछी थी तो युधिष्ठिर का उत्तर था-
 ''वह राष्ट्र जिसकी अपनी पताका, अपनी भूमि और अपनी राष्ट्र भाषा होती है वह स्वतन्त्र होता है।''
 हिन्दू हिन्दी भाषी बहुल राष्ट्र की विडम्बना है कि हिन्दी आज विदेशी भाषा अँग्रेजी की चाकरी कर रही है। यह भारत एवं भारतीय जन मानस का दुर्भाग्य है कि आज राष्ट्र स्तरीय नेता जब हिन्दी दिवस पर भाषण देते हैं तो वह हिन्दी दिवस का उच्चारण हिन्दी डे करते हैं। यह भारतीयता के साफ दामन पर लगा एक बदनुमा दाग है कि आम भारतीय हर उस व्यक्ति को अपने से श्रेष्ठ समझता है जो अँग्रेजी बोलना जानता हो। किए गये सर्वेक्षण के अनुसार देश में कुल हिन्दी भाषी 95ः एवं अँग्रेजी भाषी 5ः हैं यह 5ः व्यक्ति 95ः लोगों पर अपना आधिपत्य जमाये हुए हैं।
 एक जातक कथा प्रसिद्ध है-एक व्यक्ति के पास बरगद का एक बहुत छोटा पल्लवित वृक्ष था। आसपास के क्षेत्रों में यह एक महान आश्चर्य का विषय था क्योंकि सामान्यतया बरगद के वृक्ष विशालकाय होते हैं। जब उसके किसी साथी ने इसका कारण जानना चाहा तो उस व्यक्ति ने बताया कि वह माह में दो बार पेड़ की जड़े काट देता था।
 वह व्यक्ति पेड़ की जड़े काटता था और भारत सरकार आज पूर्ण तत्परता के साथ वटवृक्ष हिन्दी की जड़े काटने में रत है।
 दुर्भाग्य है कि अपनी भाषा नीति होते हुए भी अधिनियम, संसाधन, धन आदि सब कुछ होते हुए भी हम हिन्दी भाषा को उन्नति की बुलंदियों पर पहुँचाना तो दूर उसकी हीन दशा के विषय में बोलना और सोचना भी पसंद नहीं करते हैं। हमें स्वतंत्र हुए 60 वर्ष हो चुके हैं और अभी तक सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का तिरस्कार एवं अंग्रेजी का महत्व नहीं घटा है बल्कि उसमें वृद्धि हुई हैं।
 सरकारी कार्यालयों एवं संस्थानों में हिन्दी का प्रयोग बहुत धीमी गति से हो रहा है। प्रत्येक राष्ट्र में भाषा भाव एवं विचारों में एक रूपता होनी चाहिए। परन्तु वर्तमान में हमारा लोकतंत्र वर्गों में विभाजित हो चुका है। आज देश का 5ः अंग्रेजी भाषी 95ः हिन्दी भाषी जनसमूह पर शासन कर रहा है। आज गाँव एवं नगर की भाषा अलग है जिसके कारण कि देश के शासन में 95ः लोगों की भागीदारी नहीं हो पा रही है। अग्रेजियत हमारे अन्दर पैठकर चुकी है और उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है महानगर मुम्बई जहाँ पर हिन्दी में लिखें नाम पट्टों का प्रतिशत 10ः से कम है। बापू ने राष्ट्रभाषा हिन्दी की उपयोगिता पर कहा था-
 ''राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा होता है।''
 उनकी आत्मा हिन्दी की इस अधोन्नति को देखकर निश्चित रूप से कचोट रही होगी, उसमें एक टीस उठ रही होगी कि राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाने से पूर्व मुझे भारतीयों को राष्ट्रभाषा की शिक्षा देनी चाहिए थी।
 भारतेन्दु कृत-''निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल'' की पंक्तियाँ हममें से अधिकांश ने पढ़ी होंगी और वास्तव में यह हमारा कर्तव्य बन जाता है कि राष्ट्रभाषा हिन्दी को सम्बद्धता एवं सशक्ता की पराकाष्ठा तक पहुँचाया जाए, हमें कार्य केवल इतना करना है कि हम अपने आचार विचार व्यवहार में हिन्दी को लाएँ। हिन्दी में बोलें, हिन्दी में लिखें और हिन्दी में पढ़ें-
 जैसा कि आयरिश कवि टाॅमस ने लिखा है-
 ''कोई भी देश अपनी राष्ट्रभाषा की अवहेलना करके राष्ट्र नहीं कहला सकता है। राष्ट्रभाषा की रक्षा सीमाओं की रक्षा से भी अधिक आवश्यक है क्योंकि वह विदेशी आक्रमण को रोकने में पर्वतों नदियों और सेनाओं से अधिक समर्थ है।''
 हम बहुत सो चुके हैं और अब हमंे जागना ही होगा क्योंकि बहुत अधिक सोना मृत्यु की निशानी है।


अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए

 किसी वन प्रदेश में एक भील रहा करता था। वह बड़ा साहसी, वीर और श्रेष्ठ धनुर्धर था। वह नित्य-प्रति वन्य जन्तुओं का शिकार करता और उससे अपनी आजीविका चलाता तथा परिवार का भरण-पोषण करता था। एक दिन जब वह वन में शिकार के लिए गया हुआ था तो उसे काले रंग का एक विशालकाय जंगली सूअर दिखाई दिया। उसे देखकर भील ने धनुष को खींचकर एक तीक्ष्ण बाण से उस पर प्रहार किया। बाण की चोट से घायल सूअर ने क्रुद्ध हो साक्षात् यमराज के समान उस भील पर बड़े वेग से आक्रमण किया और उसे सँभलने का अवसर दिये बिना ही अपने दाँतो से उसका पेट फाड़ दिया। झील वही मरकर भूमि पर गिर पड़ा। सूअर भी बाण की चोट से घायल हो गया था, बाण ने उसके मर्मस्थल को वेध दिया था अतः उसकी भी वहीं मृत्यु हो गयी।
 उसी समय भूख-प्यास से व्याकुल कोई सियार वहाँ आया। सूअर तथा भील दोनों को मृत पड़ा हुआ देखकर वह प्रसन्न मन से सोचने लगा-मेरा भाग्य अनुकूल है, परमात्मा की कृपा से मुझे यह भोजन मिला है। अतः मुझे इसका धीरे-धीरे उपयोग करना चाहिये, जिससे यह बहुत समय तक मेरे काम आ सके।
 ऐसा सोचकर वह पहले धनुष में लगी ताँत की बनी डोरी को ही खाने लगा। उस मूर्ख सियार ने भील और सूअर के मांस के स्थान पर ताँत की डोरी को खाना शुरू किया। थोड़ी ही देर में ताँत की रस्सी कटकर टूट गयी, जिसमें धनुष का अग्रभाग वेग पूर्वक उसके मुख के आन्तरिक भाग में टकराया और उसके मस्तक को फोड़कर बाहर निकल गया। इस प्रकार तृष्णा के वशीभूत हुए सियार की भयानक एवं पीड़ादायक मृत्यु हुई। इसीलिए नीति बताती है-''अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए।''