Monday, July 13, 2020

""चुनाव , सत्ता और माफिया लूट के लोकतंत्र का सच है भूख और गरीबी""

कोविड 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से दुनिया के लगभग सभी लोग त्राहिमाम है । लेकिन सबसे अधिक हमारे गरीब मजदूर और किसान लोग है । जब देश में लॉकडाउन लगाया गया था तो हमारे प्रवासी मजदूर जो कभी रोटी के लिए अपना घर छोड़कर दूसरे राज्यों और महानगरों में गए थे, लेकिन हम सभी ने देखा दोस्तों की हमारे देश के रीढ़ प्रवासी मजदूर  हजारों किलोमीटर पैदल ही चल कर अपने घरों की तरफ लौटने के लिए विवश हो गए थे । इनमें से बहुत से प्रवासी मजदूर अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले हीे कहीं किसी ट्रेन के नीचे तो कहीं कुछ हमारे प्रवासी मजदूर बसों और ट्रकों के नीचे कुचलकर मारे गए। हैरानी की बात यह है कि इन प्रवासी मजदूरों पर सभी राजनीतिक दलों ने खूब राजनीति की मुफ्त में अपना प्रचार किया लेकिन वास्तव में किसी भी प्रवासी मजदूरों का मदद नहीं किया गया। लेकिन हमने देखा कि लॉकडाउन के दौरान सरकार ने गरीबों को मुफ्त में राशन मुहैया कराने का निर्णय लिया और बहुत से संपन्न लोगों ने भी अपने सामर्थ्य अनुसार जरूरतमंद लोगों का मदद भी किए । लेकिन इस बिच में देखा गया कि अलग-अलग राज्यों और जिलों में सक्रिय राशन माफिया गरीबों के राशन पर झपट्टा मारने से बाज नहीं आए। कुछ दिनों पहले ही केवल 2 महीनों में राशन डीलरों  द्वारा ब्लैक किया गया 8 कुंटल से अधिक सरकारी गेहूं और चावल पकड़ा जा चुका है । आखिर क्यों गरीबों के पेट पर लात मारते हो ?

जैसा कि हम सब जानते हैं कि अपने देश में 25 मार्च को लॉकडाउन लागू किया गया था पहली बार इसलिए गरीबों और वंचितों के हालात को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने शहर और ग्रामीण क्षेत्र के गरीब लोगों को मुफ्त में राशन वितरण करने का आदेश जारी किया । लेकिन हमने देखा कि सभी गरीबों को तो राशन नहीं मिला लेकिन राशन माफिया सक्रिय हो गए और  राशन डीलरों से सांठगांठ कर गरीबों के लिए आने वाला राशन ब्लैक में खरीदना शुरू कर दिया ।

दोस्तों अगर हम लोकतंत्र का मतलब चुनाव है बोले तो फिर गरीबी का मतलब चुनावी वादा ही होगा । जिस प्रकार से कानपुर के कुख्यात अपराधी विकास दुबे जोकि पिछले दिनों हमारे 8 पुलिसकर्मियों को भी मार डाला था । यह विकास दुबे राजनैतिक संरक्षण से ही पैदा हुआ था । जो वर्षों से अपना अत्याचार गरीब लोगों पर किया करता था और सभी राजनैतिक पार्टियों के साथ कहीं ना कहीं इसका सांठगांठ था ,इसीलिए वर्षों से यहां अपना अत्याचार किया करता था। लेकिन जब सभी राजनैतिक पार्टियों को लगा कि अब उनका राज खुलने वाला है तो विकास दुबे को मुठभेड़ में मार दिया गया । क्या यही लोक कल्याणकारी राज्य है ?

अगर लोकतंत्र का मतलब सत्ता की लूट है, माफिया पैदा करना है तो फिर नागरिकों के पेट का निवाला छीन कर लोकतंत्र के रईस होने का राग होगा ही और अपने देश में गरीबी और अमीरी का भेदभाव होगा ही। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के लगभग 90% संपत्ति पर 10% लोगों का कब्जा है वही 10% देश की संपत्ति पर 90% लोग किसी तरह गुजर- बसर करते हैं । आखिर इतना भेदभाव क्यों ? जबकि हमारे  संविधान के अनुच्छेद 14 में सभी के बराबरी की बात कही गई है।

आपको बता दे कि पूरी दुनिया भारत को अपना बाजार इसलिए मानती  है कि हमारे यहां जनसंख्या तो है ही ज्यादा लेकिन एक बात और है जो लोग चर्चा नहीं करते अधिकतर वह है हमारे यहां की सत्ता कमीशन पर देश के खनिज संसाधनों की लूट की छूट देने के लिए हमेशा तैयार रहती है । सोच कर देखो आप ही बिहार झारखंड जैसे राज्य जहां लोग मेहनती होने के साथ-साथ यहां खनिज संसाधन प्रचुर मात्रा में फिर भी गरीबी  क्यों नहीं खत्म होती है? लोग दूसरे राज्यों और महानगरों में जाकर अपनी रोजी-रोटी के लिए भटकते हैं । इन सब का कारण मुझे लगता है कि घटिया राजनीति ही एकमात्र है ।

आपको जानकर हैरानी होगी सोशल इंडेक्स में भारत इतना नीचे है कि विकसित देशों का रिजेक्टेड माल भी भारत में खप  जाता है , और ध्यान से देखें तो हमारे भारत का बाजार इतना अधिक  

बिकसित है कि दुनिया के विकसित देश जिन दवाइयों को जानलेवा मानकर अपने देश में पाबंदी लगा चुके हैं वह दवा भी भारत के बाजार में खप जाती है ।

 अजीब हमारा लोकतंत्र है क्योंकि एक तरफ विकसित देशों की तर्ज पर सत्ता ,कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियां काम करने लगी है तो वहीं दूसरी तरफ नागरिकों के हक में आने वाले खनिज संसाधनों की लूट उपभोग के बाद जो बचा खुचा गरीबों को बांटा जाता है, और इसको कल्याणकारी योजना का प्रतीक बना दिया जाता है । और हद तब हो जाता है इस कल्याणकारी योजना में भी माफिया अपना लूटमार करना शुरू कर देते हैं।

आज सभी राजनैतिक दल धनबल ,बाहुबली और भाई भतीजावाद के दम पर ही अपनी पार्टियों को चला रहे हैं। आप ध्यान से देखें तो जो विश्वविद्यालय स्तर की छात्र संघ चुनाव होता है उसमें भी उन्हीं को टिकट दी जाती है जिनके पास यह तीनों  शक्तियां हो साथ ही चापलूसी हो इसी प्रकार से सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों का भी हालात है।

इस तरह की व्यवस्था पर आखिर किसका हक रहे इसके लिए ही चुनाव है । जिस पर काबिज होने के लिए लूटतंत्र का रुपया लुटाया जाता है । लेकिन लूटतंत्र के इस लोकतंत्र की जमीन के हालात क्या है? आपको विकास दुबे जैसे राजनैतिक संरक्षण पाए हुए अपराधी से पता चल गया होगा ।

आज बहुत से लोग बहुआयामी गरीबी इंटेक्स के दायरे में आते हैं मतलब की सवाल सिर्फ मेरा गरीबी रेखा से नीचे भर होने का ही नहीं है बल्कि कुपोषित होने ,बीमार होने ,भूखे होकर  जीने के कुचक्र  में लगभग 50 फ़ीसदी से अधिक वंचित लोगों का है और अब तो इस वैश्विक महामारी के कारण और भी ज्यादा यह संख्या बढ़ेगी। वहीं दूसरी तरफ लोग ओवरन्यूट्रिशन से परेशान है तो एक तरफ मालनूट्रिशन से आखिर इतना भेदभाव क्यों ?

यूएनडीपी यानी संयुक्त राष्ट्र डेवलपमेंट कार्यक्रम चलाने वाली संस्था कहती है कि भारत को आर्थिक मदद दिया जाता है लेकिन मदद का रास्ता भी क्योंकि दिल्ली से होकर गरीब तक जाता है इसीलिए राजनैतिक दल गरीब को रोटी की एवज में सत्ता का चुनावी मेनिफेस्टो दिखाता है, वोट मांगता है और विभिन्न प्रकार के वादे करता है और इसके बावजूद भी इन गरीबों की हालत में कोई सुधार नहीं होता है। अब सवाल मेरा यह है कि क्या दुनिया भर से भारत के गरीबों के लिए जो अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए मदद दिया जाता है वह भी कहीं राजनैतिक पार्टियां तो नहीं हड़प लेते हैं और अगर नहीं हड़पते है तो फिर कहां जाता है?

दुख की बात तो यह है कि गरीबी या गरीबों के लिए काम करने वाली संस्थाएं भी विदेशी मदद के रुपयों को हड़पने में सत्ता का साथ देती। अक्सर सत्ता देखे तो उन्हीं संस्थानों को मान्यता देती है या धन देती है जो रुपयों को हड़पने में राजनैतिक सत्ता के साथ खड़े रहे । जब देश और राज्य में सत्ता पर काबिज होने के लिए राजनेता लोग अरबों रुपए प्रचार प्रसार में लुटाते हैं और चार्टर्ड प्लेन और हेलीकॉप्टर से आसमान में उड़ते हुए नेता कुलांचे मारते रहते हैं आखिर यह सब पैसे कहां से आते हैं ?

आपको एक बात बता देते हैं दुनिया के मानचित्र में अफ्रीका का देश नामीबिया एक ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा भूख है और कल्पना कीजिए आप कि यूएनडीपी रिपोर्ट के मुताबिक नामीबिया एमपीआई मतलब मेरा कहने का है कि मल्टीनेशनल पॉवर्टी इंडेक्स गरीबी स्तर में 0.181है उसी प्रकार मध्य प्रदेश का भी लेवल 0.181 है मतलब की आज जिस अवस्था में नामीबिया है उसी अवस्था में मध्य प्रदेश और भी अन्य राज्यों जैसे बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश यह सब बीमारू राज्यों में आते हैं ।

जिस बिहार की सत्ता के लिए नीतीश कुमार बिहार में बहार है कि बात करते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि भारत के सबसे निचले पायदान पर और दुनिया के 5 वे सबसे निचले पायदान पर आने वाले साउथ ईस्ट अफ्रीका के मलावाई देश के बराबर है ।

 आखिर अपने देश में क्यों जरूरी है जीरो बजट पर चुनाव लड़ने के लिए जनता का दबाव बनाना। उसकी सबसे बड़ी वजह यही लोकतंत्र है जिसके आसरे लोकतंत्र का राग गाया जाता है और हद तो तब हो जाती है जिस केरल के मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सियासत अंधी हो चली थी । आपको बता दें कि केरल हमारे देश के सबसे विकसित राज्यों में एक हैं जहां सबसे कम गरीबी में यहां का एमपीआई 0.004 है । तो वही सत्ता और सियासत चुनावी लोकतंत्र के नाम पर देश को ही हड़प ले उससे पहले चेत जाइए दोस्तों ।

कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया  -अंतरराष्ट्रीय चिंतक)

शॉर्ट सर्किट से लगी दैनिक अयोध्या टाइम्स कार्यालय में आग

कानपुर। बर्रा थाना क्षेत्र के बर्रा 3 केडीए मार्केट में संजय नगर निवासी बृजेश मौर्या का दैनिक अयोध्या टाइम्स कार्यालय है साथ ही जिसमें ऑनलाइन फार्म व ग्राफिक्स का काम होता है जिसमें रविवार देर रात अचानक शार्ट सर्किट होने के कारण आग लग गई जहां से धुआं उठते देख आस-पड़ोस के लोगा बाहर आ गये। जिसे देख क्षेत्रीय लोगों ने कार्यालय के बाहर लिखें मोबाइल नंबर पर फोन करके कार्यालय मे आग लगने के बारे में बताया जिनकी बात सुनते ही मौके पर आए कार्यालय ऑनर बृजेश मौर्य ने तुरंत कार्यालय का शटर खोला जिसमें तेज लपटों के साथ सारा सामान जल रहा था जिसपर बृजेश मौर्य और क्षेत्रीय लोगों ने मिलकर आग में बाल्टियो से भर भर कर पानी डाला जिससे लोगों ने थोड़ी देर बाद कार्यालय के अंदर लगी आग पर काबू पाया आग लगने से कार्यालय के अंदर रखा करीब दो से ढाई लाख का सामान जलकर खाक हो गया।



सकारात्मक या नकारात्मक नजरिया

हमारी जिंदगी में नजरिया (attitude) बहुत ज्यादा मायने रखता है। हमारा नजरिया बचपन में ही बन जाता है। हम कैसे विचार करते हैं ये हमारे नजरिए पर निर्भर करता है। अगर हमारी सोच अक्सर सकारात्मक होती है तो हमारा नजरिया सकारात्मक होता है। अन्यथा हमारा नजरिया नकारात्मक होता है। कुछ लोग जरा सी परेशानी आयी औऱ घबराने लगते हैं । उन्हें हमेशा लगता है कि यह मुसीबत हमारा पीछा नहीं छोड़ेगी। एक के बाद दूसरी मुसीबत खड़ी हो जाएगी। इनका कोई अंत नहीं है। यह सोचकर वे ज्यादा परेशान हो जाते हैं। उनका नजरिया ही नकारात्मक बन जाता है। वे हर सफल व्यक्ति में केवल बुराइयाँ ही तलाशते हैं। उन्हें लोगों की अच्छाइयां कभी दिखाई नहीं देती हैं। वे लोगों में केवल नकारात्मक विचारों को फैलाते हैं। न कभी खुश रहते हैं और ना किसी को रहने देते हैं। हमेशा नकारात्मक बातों को करते रहते हैं। जीवनभर अपना नजरिया बदल नहीं पाते हैं।

इस वजह से जीवन में सदा असफल रहते हैं। अपनी असफलता का कारण दूसरों को मानते हैं। वे यह समझ नहीं पाते हैं कि उनकी असफलता की असली वजह उनका नकारात्मक नजरिया है। वे अपने आपमें कभी सुधार नहीं करते हैं। सदा दुखी और असन्तुष्ट रहते हैं। इन लोगों से मिलकर लोग अप्रसन्न हो जाते हैं। ये लोग दूसरों की परवाह नहीं करते हैं।

दूसरी तरफ सकारात्मक नजरिया वाले लोग आत्मविश्वास से भरे रहते हैं। वे जो काम करते हैं उसमें उन्हें सफलता मिलती है। अगर कभी असफल भी होते हैं तो उसका कारण तलाशते हैं और उस कमी को दूर करते हैं। वे दूसरों पर दोषारोपण नहीं करते हैं। ऐसे लोगों से मिलकर लोग खुश हो जाते हैं क्योंकि वे अच्छे विचार फैलाते हैं। ऐसे लोग बुराई में अच्छाई तलाशते हैं। उनका यह नजरिया ही उन्हें सफलता के करीब ले जाता है। वे दूसरों की अच्छाइयों की तारीफ करते हैं। ऐसे लोगों के बहुत मित्र बन जाते हैं। वे दूसरों में आशा की किरण जगाते हैं तथा लोगों को सदा प्रोत्साहित करते रहते हैं। स्वयं भी सकारात्मक रहते हैं और सकारात्मक ऊर्जा लोगों में फैलाते हैं।

जीवन में सकारात्मक औऱ नकारात्मक विचारों का अपना ही महत्व है। सकारात्मक सोच आगे बढ़ने में सहायता करती है तो नकारात्मक सोच किसी काम में आनेवाली चुनोतियों का एहसास कराती है । हमें दोनों का उचित संतुलन बनाकर अपना काम करना चाहिए। जैसे–सकारात्मक सोच वालों ने हवाई जहाज बनाया लेकिन नकारात्मक सोच वालों ने पैराशूट बनाया। हवाई जहाज बनाने वाले ने सोचा लोग हवा में उड़ सकेंगे तो नकारात्मक विचारों वालों ने सोचा अगर हवाई जहाज गिर गया तो लोग कैसे बचेंगे इसलिए उन्होंने पैराशूट बनाया जिससे लोग बच सकें।

आप इस एक उदाहरण से समझ सकते हैं कि एक हद तक नकारात्मकता सही है।

प्रफुल्ल सिंह "साहित्यकार"

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

उचित फीस

         लॉक डाउन के समय में अपने बच्चों की पढ़ाई खराब होने का डर शर्मा जी को लगातार हो रहा था।फिर कुछ खबर आई कि बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन होगी।अब शर्मा जी को कुछ तस्सली हुई।उन्हें लगा शायद अब बच्चों का 1 साल खराब होने से बच जाएगा।ऑनलाइन पढ़ाई शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही फीस की स्लिप भी मिल गयी।फीस स्लिप को देखकर शर्मा जी की खुशी का ठिकाना ना रहा।उन्होंने देखा फीस की स्लिप तो केवल 11000 रुपये की है।जबकि पिछले साल तो एक क्वार्टर की फीस 12000 रुपये थी।

         शर्मा जी बहुत खुश थे कि चलो लॉक डाउन में स्कूल वालों ने कुछ तो फीस कम कर दी।तभी अचानक शर्मा जी का माथा ठनका।उन्होंने पिछले साल की स्कूल की फीस की स्लिप निकाली और उसमे 12000 रुपये की पूरी डिटेल देखने के बाद उन्हें समझ में आया कि वह तो बेकार ही खुश हो रहे थे।12000 रुपये क्वार्टर की फीस में 2000 रुपये तो बस की फीस थी।बच्चे जब स्कूल नही जाएंगे और घर पर ही पढ़ाई करेंगे।तो स्कूल की फीस के अलावा बस की फीस तो जाएगी ही नहीं,इसका मतलब इसकी स्लिप तो 10000 रुपये की आनी चाहिए थी।जो कि 11000 रुपये की थी।शर्मा जी अपनी शिकायत लेकर स्कूल की प्रिंसिपल मिलने से मिलने के लिए स्कूल पहुंचे।

          प्रिंसिपल के सामने पहुंचने के बाद उन्होंने प्रिंसिपल मैडम से पूछा, मैडम अगर बस की फीस नहीं जानी है तो उसे काट के तो एक क्वार्टर की फीस केवल 10000 रुपये ही बनती है।यह आपने हजार रुपये किस बात के बढ़ा दिए।प्रिंसिपल साहिबा अचानक शर्मा जी के सवाल से सकपका गयी।उन्होंने शर्मा जी को समझाने की कोशिश की।देखिए सर बच्चों की पढ़ाई तो हो ही रही है।हर साल की तरह सभी टीचरों की सैलरी तो वैसी की वैसी ही देनी है और आपको पता ही है कि हर साल सभी को इन्क्रीमेंट भी देना होता है।सभी बातों को ध्यान में रखते हुए फीस तो बढ़ानी ही पड़ती है।मैडम मेरी बड़ी बहन भी आपके स्कूल में टीचर है और जहां तक मुझे जानकारी है।इस साल आपने कोरोना की वजह से अपने किसी भी अध्यापक को इन्क्रीमेंट देने से मना किया है।

          अगर ऐसा तो आप किस बात के लिए फीस बढ़ा रही हैं।जबकि हम सभी के काम 2 माह बंद रहे हैं।प्रिंसिपल साहिबा से कोई जवाब ना बन पाया और फीस में हुई इस वृद्धि का कोई भी जवाब ना होने के कारण उन्होंने शर्मा जी से कहा आपका दिल करे तो आप बच्चों को यहां पढ़ा लीजिये वरना उन्हें कहीं और पढ़ा लीजिए।फीस तो कम नही होगी।शर्मा जी प्रिंसिपल साहिबा की इन बातों को सुनकर अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे थे। लेकिन कोरोना की इन परिस्थितियों में अब वह किसी और स्कूल में बच्चों का एडमिशन भी नहीं करा सकते थे। *इसलिए बिना मतलब ही फीस वृद्धि का थप्पड़ गाल पर खाकर वह अपना गाल सहलाते हुए फीस भरकर अपने घर वापस आ गए।*

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

जलती आग में घी डालना कोई विपक्षियों से सीखे

कल जब आठ पुलिस कर्मियों की बड़ी ही क्रूरता व निर्दयता से हत्यारे ने हत्या की , तब विपक्ष ने उसे हत्यारा कह-कहकर सरकार के नाक में दम कर दिया था । सोशल मीडिया से लेकर समाचारों के हर पन्नों पर विपक्ष की खोखली बयान बाजियां प्रमुखता से छाई हुई थीं , कि एक ऐसा खूंखार हत्यारा जो हमारे आठ पुलिस कर्मियों को मार कर खुलेआम घूम रहा है । आखिर उसके खिलाफ कार्रवाई कब होगी ? कल पुलिस कर्मियों के साथ दया भाव व घड़ियाली आसूं बहाने वाला यही विपक्ष जो सरकार पर सवालों के अंबार लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था , अब वही विपक्ष जिसने उसे खूंखार हत्यारे से संबोधित किया , आज उस हत्यारे के एनकाउंटर किए जाने के बाद विपक्ष ने ऐसा रंग बदला कि उसके आगे गिरगिट भी रंग बदलने में मात खा गया । आठ पुलिस कर्मियों के घर वाले कल महज विपक्ष की बयान बाजियां सुनते रहे और आज वही विपक्ष पलटी मार हत्यारे के साथ जा खड़ा हो गया । अब कांग्रेस को ही ले लें , वह खूंखार हत्यारे की हत्या के बाद हत्यारे का पक्षधर बन मानवाधिकार आयोग में जा पहुंचा । कल शहीद हुए पुलिस कर्मियों के पक्ष में महज खोखले राग अलाप रहे इस विपक्ष ने उन आठ पुलिस कर्मियों के पक्ष में मानवाधिकार आयोग का दरवाजा नहीं खटखटाया और न ही उन पुलिस कर्मियों के परिजनों से मिल उन्हें कोई सांत्वना ही दी , बस दूर से राजनैतिक रोटियाँ सेंकने में ही व्यस्त दिखे । गौरतलब है कि पुलिस द्वारा आत्मरक्षा में जवाबी कार्रवाई के चलते एक खूंखार हत्यारे की हत्या हुई , तो विपक्ष और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इस पर जाँच की माँग करना कहाँ तक जायज है ? जो अपराधी अनेक हत्याएं पहले ही कर चुका है , उसके लिए और कुछ हत्याएं करना बड़ी बात नहीं थी । ऐसे में पुलिस अपनी आत्मरक्षा न करती तो शायद आठ की जगह और अठ्ठारह पुलिस कर्मी उसके शिकार हो चुके होते , तब यही विपक्ष फिर सोशल मीडिया व समाचार चैनलों पर चिल्लाते फिरते कि एक हत्यारा हमारे पुलिस कर्मियों को मार कर चला गया और हमारी सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है ! आज हमारे देश के विपक्ष की हालत ऐसी हो गई है कि बाल की खाल निकालने का कोई भी मौका नहीं चूकने देना चाहते । सरकार के किसी भी कार्य में विपक्ष अपना रोल क्या खूब निभा रहा है , जिसमें वह महज कमियां निकालने व चुटकियां लेने के काम में पूर्ण प्रतिबद्धता दिखा रही है । इन विपक्षियों को यह नहीं समझ आता है कि उनकी इस तरह से राजनैतिक रोटियां सेंकने में जनता के अंदर अनायास की हिंसा पनप सकती है , जो कि देश की एकता , अखण्डता व संप्रभुता के खिलाफ होगा ।
देश की एकता , अखण्डता व संप्रभुता को बनाएं रखना महज सत्ता में मौजूद सरकार का ही कर्तव्य है , क्या विपक्ष का कुछ भी हक नहीं बनता ? क्या यह उनकी अपनी जनता नहीं है ? आखिर इन बेवजह के मुद्दों पर आए दिन उंगली उठाना क्या राजनैतिक दृष्टिकोण से किसी भी विपक्ष के हित में होगा ? विपक्ष की भूमिका निभाने में विपक्षी यह भी भूल जा रहा है कि वह क्या कर गया ? उसकी कभी पाकिस्तान , कभी नेपाल तो कभी चीन के पक्ष में बयान बाजियां आग में घी का काम रही हैं , जिससे उसकी निजी छवि तो खराब हो रही है , साथ जनता के मन में समस्त राजनैतिक पार्टियों के प्रति नकारात्मक संदेश का संचार भी खूब हो रहा है । हालांकि विपक्ष की भूमिका अदा करना गलत नहीं है , मगर राजनीति की मर्यादा को ध्यान में रखकर विपक्ष के कार्य को अंजाम देना भविष्य के लिए बेहतर विकल्प पैदा कर सकता है ।


रचनाकार - मिथलेश सिंह 'मिलिंद'
मरहट , पवई , आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)


Sunday, July 12, 2020

बघौली थाना में कोरोना की दस्तक, महिला कांस्टेबल व उसके पति की रिपोर्ट पॉजिटिव

बघौली ध्हरदोई। (अयोध्या टाइम्स)कोरोनावायरस महामारी का कहर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है जिसकी चपेट में बघौली थाना भी आ गया है जहां पर तैनात महिला कांस्टेबल तथा उसके पति की रिपोर्ट कोरो ना पाजिटिव आई है थाना परिसर के साथ-साथ क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है


बताते चलें कि बघौली थाना में तैनात महिला हेल्थ हेड कांस्टेबल ज्योति कुशवाहा उम्र लगभग 38 वर्ष तथा  देवकांत कुशवाहा पुत्र कालिका प्रसाद कुशवाहा उम्र लगभग 41 वर्ष की जांच दिनांक 10 ध्07ध् 2020 को सैंपल हुआ था जिसके बाद आज रिपोर्ट कोरो ना पाजिटिव आने से थाना परिसर संदेह के घेरे में है इसके साथ बघौली क्षेत्र में दहशत का माहौल व्याप्त हो गया है  बघौली पुलिस कर्मियों के मस्तक पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही हैं जिससे पूरा स्टाफ सदमे में है।


सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अधीक्षक अहिरोरी मनोज सिंह ने बताया कि बघौली थाना में तैनात महिला कांस्टेबल एवं उसके पति की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है और स्वास्थ्य विभाग के द्वारा उन्हें क्वॉरेंटाइन कराने की व्यवस्था की जा रही है।


अमिताभ और अभिषेक के बाद एश्वर्या राय बच्चन और अराध्या बच्चन भी कोरोना पॉजिटिव

मुंबई


अमिताभ और अभिषेक के बाद एश्वर्या राय बच्चन और अराध्या बच्चन भी कोरोना पॉजिटिव.



अनुपन खेर की मां ,भाई, भाभी और भतीजी को हुआ कोरोना का संक्रमण

कोरोना वायरस का कहर बढ़ता जा रहा है अभी अमिताभ बच्चन और उनके बेटे अभिषेक बच्चन के कोविड 19 पॉजिटिव होने की खबरों ने सभी को हैरान करके रख दिया था। अब खबर आ रही है कि अनुपन खेर की मां दुलारी देवी सहित घर के कई सदस्य कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। घर के कई सदस्यों के संक्रमित होने के बाद अनुपन खेर ने भी अपना कोविड 19 का टेस्ट करवाया हैं जिसकी रिपोर्ट निगेटिव आयी हैं। फिलहाल अनुपम खैर की मां को कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती करवाया है। जानकारी के मुताबिक अनुपन खेर के भाई, भाभी और भतीजी को कोरोना संक्रमित है।




अनुपन खेर ने अपने मां और परिवार के सदस्यों के कोरोना पॉजिटिव होने के जानकारी खुद सोशल मीडिया से दी हैं। अनुपम खैर ने एक वीडियो जारी करते हुए कहा-अनुपम खेर ने आगे लिखा, 'मैंने अपना भी कोरोना टेस्ट करवाया, जिसकी रिपोर्ट नेगेटिव आई है। मैंने इसकी जानकारी बीएमसी को भी दी है।' वहीं वीडियो में अनुपम खेर ने कहा,'पिछले कुछ दिनों से मेरी मां दुलारी देवी को कुछ दिनों से भूख नहीं लग रही थी। वह कुछ भी नहीं खा रही थी और सोती रहती थी। तो हमने डॉक्टर की सलाह पर उनका ब्लड टेस्ट करवाया, उसमें सबकुछ ठीक निकला. इसके बाद डॉक्टर ने सीटी स्कैन करने किए कहा। तो हमने स्कैन करवाया, तो कोविड पॉजिटिव माइल्ड निकला।'




अमिताभ बच्चन के बंग्लो 'जलसा' की सुरक्षा बढ़ाई गई

मुंबई। मुंबई पुलिस ने अभिनेता अमिताभ बच्चन और उनके बेटे अभिषेक बच्चन के कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने के बाद नानावती अस्पताल और यहां जुहू स्थित उनके दो बंगलों के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी है। अमिताभ और अभिषेक नानावती अस्पताल में भर्ती हैं। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि अमिताभ और अभिषेक ने शनिवार को जब यह जानकारी दी कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं और अस्पताल में भर्ती हैं, तो उसके बाद कुछ लोगों ने विले पार्ले (पश्चिम) स्थित चिकित्सकीय केंद्र के बाहर एकत्र होने की कोशिश की, लेकिन उनसे वहां से जाने को कहा गया और बताया गया कि उन्हें सड़क पर खड़े होने की अनुमति नहीं है।




सांताक्रूज पुलिस थाने के वरिष्ठ निरीक्षक श्रीराम कोरेगांवकर ने कहा, ‘‘हमने अस्पताल के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी है, ताकि वहां लोग एकत्र न हों। अस्पताल में कोविड-19 के और भी मरीज भर्ती हैं और उन्हें इससे असुविधा नहीं होनी चाहिए। हमारे अधिकारी अस्पताल के बाहर तैनात हैं और किसी को वहां एकत्र होने की अनुमति नहीं दी जा रही।’’


जुहू पुलिस थाने के एक अधिकारी ने बताया कि अभिनेता के बंगलों के बाहर अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था की गई है, क्योंकि लोग वहां एकत्र होने की कोशिश कर सकते हैं। अमिताभ और अभिषेक ने शनिवार को कहा था कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं और अस्पताल में भर्ती हैं। अमिताभ 77 साल के हैं और अभिषेक 44 वर्ष के हैं।


 




Saturday, July 11, 2020

महानायक अमिताभ बच्चन हुए कोरोना पॉजिटिव, अस्पताल में भर्ती

बॉलीवुड के महानायक अभिताभ बच्चन की अचानक तबियत बिगड़ने के बाद उन्हें मुंबई के नानावती अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अस्पताल में अमिताभ बच्चन की कोरोना वायरस की जांच भी हुई जहां उनके कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई। अमिताभ बच्चन ने अपने कोरोना पॉजिटिव होने की बात खुद सोशल मीडिया पर अपने फैंस को दी। हैं। 




अमिताभ बच्चन ने ट्विचर पर लिखा- मेरा कोरोना वायरस टेस्ट पॉजिटिव पाया गया है। अस्पताल में भर्ती किया गया है। अस्पताल अथॉरिटीज़ को जानकारी दे रही हैं। परिवार और स्टाफ का भी कोरोना वायरस का टेस्ट किया गया है, जिसकी रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है। पिछले 10 दिनों में जो लोग भी मेरे करीब आए हैं, उनसे गुज़ारिश है कि वो अपनी जांच करा लें।


आपको बता दें कि अमिताभ बच्चन हाल ही में फिल्म गुलाबो-सिताबों में नजर आये थे। अमिताभ ने इस फिल्म में पहली बार अयुष्मान खुराना के साथ काम किया था। इस फिल्म को अमेजन प्राइम वीजियो पर रिलीज किया गया था। इसके अलावा अभी अमिताभ कई बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं जिनकी शूटिंग लॉकडाउन के कारण रुकी हुई थी।


 


 




Friday, July 10, 2020

बढ़ती जनसंख्या बनतीं बड़ा खतरा

जनसंख्या दिवस का उद्देश्य है कि बढ़ती जनसंख्या को रोकने का प्रयास किया जाए।  जिसके लिए हमें समय-समय पर बढ़ती जनसंख्या के नुकसान ओ की जानकारी दी जाती है ताकि हम यहां समझे की बढ़ती जनसंख्या हमारे लिए क्यों रोकना आवश्यक है किंतु इसके बावजूद भी हमारे देश की जनसंख्या प्रत्येक वर्ष तेजी से बढ़ती जा रही है एक और जहां हम एक बड़ी जनसंख्या वाला देश होने के कारण खुद पर गर्व का अनुभव करते हैं क्योंकि हमारे देश में युवाओं की जनसंख्या अन्य किसी देश की जनसंख्या से अधिक है वहीं दूसरी और यही बढ़ती हुई जनसंख्या हमारे लिए परेशानियां भी बन रही है। बेरोजगार लोगों का बढ़ता आंकड़ा और बढ़ती ग़रीबी जनसंख्या की ही देन है। अधिक जनसंख्या के चलते हमारे संसाधन कम पड़ जाते हैं। जिसकी वज़ह से हम एक विकसित शक्तिशाली देश बनने का सपना जो देखते हैं, उसमें रुकावट पैदा होती है। बेरोजगारी और ग़रीबी अपराधों को बढ़ाती है। लोगों का जीवन असुरक्षित हो जाता है। स्त्रियों को सबसे अधिक अपराधों का शिकार होना पड़ता है। विचार करिए कोरोनावायरस ने किस तरह हमारी और हमारे सिस्टम की पोल खोली हैं। हमारे पास अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं केवल दिल्ली जैसे कुछ गिने चुने अस्पतालों में है। जबकि क्यूबा हम से गरीब देश होने के बावजूद भी अपने सभी नागरिकों को देश की सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। वहीं दूसरी ओर मजदूरों को हजारों किलोमीटर का सफर पैदल तैं करना पड़ा। यदि हमारी भी जनसंख्या इतनी अधिक ना होती तो क्या हम केवल एक आंकड़ा बन कर मत दाता बन कर नहीं रह जाते। हमारा महत्व होता एक जीवन के रूप में आवश्यकता है हमें यह समझने की कि देश ख़तरे में है, हमारी बढ़ती जनसंख्या के विस्फोटक के कारण।  हमें धर्म और जाति की परवाह करते हुए अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने का प्रयास करने के स्थान पर कम-से-कम बच्चे पैदा करने पर जोर देना चाहिए। देश के  बारे में विचार करिए, अभी कोशिश करने का समय है नहीं तो वक़्त गुज़र जाने पर पछताने के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा। 

               राखी सरोज





 





बढ़ती जनसंख्या को रोकना जरुरी

दरअसल हम मूलभूत समस्याओं से अक्सर मुँह मोड़ते रहे हैं।कारण चाहे कुछ भी रहे हों लेकिन ऐसा रहा है।ये भी सच है कि वर्षोंवर्ष से हम सिर्फ तात्कालिक रूप से ही किसी चीज का इलाज करते है सार्वकालिक रूप से नहीं और परिणाम हम भुगतते ही हैं।भारत देश में अनेकानक जटिल से जटिल समस्याएँ हैं जो देश की उन्नति और प्रगति में बाधा पैदा करती हैं।जैसे गरीबी,बेरोजगारी,बेकारी,भुखमरी,शिक्षा का लगातार गिरता स्तर,महिला सुरक्षा,कानून की पालना,राजनीति में घुसता धर्म और गुंडागर्दी,स्वास्थ्य सेवाओं का गिरना आदि-आदि।इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या ऐसी भी है जो इन्हीं में कई समस्याओं की जड़ है।यदि उस समस्या का निपटारा कर दिया जाए तो सम्भवतः कई समस्याएं खुद-ब-खुद दूर हो जाएगी।वह समस्या है निरन्तर सुरसा राक्षसी की तरह मुँह फैलाती जनसंख्या की बढ़ोतरी।यह भी जटिल समस्याओं में से एक है।आज की तारीख में समस्त विश्व में चीन के बाद भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है।यदि यही हाल रहा तो लगभग दो हजार तीस तक हम इस मामले में चीन को पछाड़ कर विश्व में पहले स्थान पर होंगे।

हमारी जनसंख्या वृदधि की दर का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि 1947 के बाद के पश्चात् मात्र पाँच दशकों में यह लगभग पैंतीस करोड़ से एक सौ चालीस करोड़ के आँकड़े को पार कर गई है।जहाँ तक कारणों की बात है तो हमारे देश में जनसंख्या की बढोतरी के अनेक कारण हैं जैसे यहाँ की जलवायु प्रजनन के लिए अधिक अनुकूल है। इसके अलावा निर्धनता,अनपढ़ता रूढ़िवादिता तथा संकीर्ण मानसिकता जनसंख्या वृदधि के अन्य कारण हैं।देश में बाल-विवाह की परंपरा प्राचीन काल से थी जो आज भी गाँवों में थोड़ी ही सही पर विद्‌यमान है और कहीं-कहीं तो यह प्रथा के रूप में अब भी प्रचलित है जिसके कारण भी अधिक बच्चे पैदा हो जाते हैं ।

शिक्षा की कमी,लोगों की सोच का वैज्ञानिक न होना भी जनसंख्या की लगातार बढ़ोतरी का एक मुख्य कारण है।आपको शायद होगा कि एक बार 1977 में इंदिरा सरकार ने जबरन ऐसा कुछ किया था जिससे जनसंख्या पर नियंत्रण लगता लेकिन उस वक्त उसी निर्णय पर उनकी काफी फजीहत भी हुई थी।परिवार नियोजन के महत्व को अज्ञानतावश लोग समझ नहीं पाते हैं । इसके अतिरिक्त पुरुष समाज की प्रधानता होने के कारण लोग लड़के की चाह में कई संतानें उत्पन्न कर लेते हैं।परन्तु इसके पश्चात् उनका उचित भरण-पोषण करने की सामर्थ्य न होने पर निर्धनता में कष्टमय जीवन व्यतीत करते हैं।जन्मदर की अपेक्षा मृत्यु दर कम होना भी जनसंख्या वृद्धि का ही एक कारण है क्योंकि समय के हिसाब से वैज्ञानिक प्रगति हुई जिससे चिकित्सा विज्ञान ने मृत्यु दर को कम कर दिया।ऐसी कुछ बीमारियां जो आसाध्य थी,उनका इलाज भी हमने ढूंढ लिया और परिणाम बढ़ोतरी हुई।गरीबी भी जनसंख्या के बढ़ने का एक प्रमुख कारणों में एक है।इस तरह के आंकड़े हैं कि जहां गरीबी कम है,वहां जनसंख्या की बढ़ोतरी उनकी अपेक्षा कम हुई जहां गरीबी थी।

अब सवाल यह है कि यदि जनसंख्या बढ़ती है तो फिर देश में रोजी-रोटी और रोजगार की समस्या तो बढ़ेगी ही।साथ ही गरीबी और भुखमरी भी पैदा होगी।जल,जंगल और जमीन की कमी रहेगी।कानून व्यवस्था बनाए रखने में भी कहीं न कहीं परेशानी तो जरूर आएगी।अभी बहुत पहले की बात न करें तो इस महामारी के दौरान हमने इस बात को भली-भांति देखा ही है।जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ेगी तो निश्चित रूप से गरीबी बढ़ेगी।हाल में हम देख सकते हैं कि देश में अस्सी करोड़ लोगों को तो सरकार को फ्री अनाज देना पड़ रहा है और हरियाणा जैसे प्रदेश में बेरोजगारी का आंकड़ा उच्चतम स्तर पर है।हम दो-हमारे दो का नारा भी हमने लगाकर देखा है लेकिन वो सार्थक परिणाम नहीं आए  जिसकी हम अपेक्षा करते थे।

बढ़ती हुई जनसंख्या पर अंकुश लगाना देश के विकास के लिए बेहद आवश्यक है। यदि इस दिशा में सार्थक कदम नहीं उठाए गए तो वह दिन दूर नहीं जब स्थिति हमारे नियत्रंण से दूर हो जाएगी।इस संदर्भ में सबसे पहले यह जरुरी है कि हम परिवार-नियोजन के कार्यक्रमों को विस्तृत रूप देकर इसे जन-जन तक पहुंचाने का काम तीव्रता से करें।जनसंख्या वृदधि की रोकथाम के लिए न केवल प्रशासनिक स्तर बल्कि  सामाजिक,धार्मिक और व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किए जाने की तत्काल और सख्त जरूरत है।हरेक स्तर पर इसकी रोकथाम के लिए जनमानस के प्रति जन जागरण अभियान छेड़ा जाना चाहिए।जनसंख्या को काबू करने के लिए यदि सरकार को कोई कठोर कदम भी उठाना पड़े तो उठाने से नहीं हिचकना चाहिए।कोई न कोई सख्त कानून बनाकर भी जनसंख्या को काबू किया जा सकता है।इसी संदर्भ में कुछ ऐसे निर्णय भी लिए जा सकते हैं कि जैसे दो से अधिक बच्चों वालों को नौकरी नहीं दी जायेगी,चुनाव नहीं लड़ने दिया जाएगा।दो से अधिक बच्चे होने पर किसी भी प्रकार की सरकारी सुविधाएं नहीं दी जाएगी।शिक्षा का प्रचार-प्रसार करके भी इसे रोका जा सकता है।अतः में हम यही कहना चाहेंगे कि यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो फिर बहुत देर हो जाएगी।हम और हमारा देश बहुत पीछे की और चले जाएंगे।आमीन।

 

कृष्ण कुमार निर्माण

करनाल,हरियाणा।

देश को प्रकृति और विकास के बीच संतुलन की आवश्कता




कोरोना वायरस महामारी के चलते लगभग 2 माह के लॉकडाउन के बाद भारत सहित विश्व के लगभग 75 प्रतिशत देश अपनी अर्थव्यवस्थाएँ धीरे-धीरे खोलते जा रहे हैं। अब आर्थिक गतिविधियाँ पुनः तेज़ी से आगे बढ़ेंगी। परंतु लॉकडाउन के दौरान जब विनिर्माण सहित समस्त प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ बंद रहीं तब हम सभी ने यह पाया कि वायु प्रदूषण एवं नदियों में प्रदूषण का स्तर बहुत कम हो गया है। देश के कई भागों में तो आसमान इतना साफ़ दृष्टिगोचर हो रहा है कि लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ भी साफ़ दिखाई देने लगे हैं, कई लोगों ने अपनी ज़िंदगी में इतना साफ़ आसमान पहले कभी नहीं देखा था। इसका आश्य तो यही है कि यदि हम आर्थिक गतिविधियों को व्यवस्थित तरीक़े से संचालित करें तो प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखा जा सकता है।

 

हर देश में सामाजिक और आर्थिक स्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। इन्हीं परिस्थितियों के अनुरूप आर्थिक या पर्यावरण की समस्याओं के समाधान की योजना भी बनती है। आज विश्व में कई ऐसे देश हैं जिनकी ऊर्जा की खपत जीवाश्म ऊर्जा पर निर्भर है। इससे पर्यावरण दूषित होता है। हमारे अपने देश, भारत में भी अभी तक हम ऊर्जा की पूर्ति हेतु आयातित तेल एवं कोयले के उपयोग पर ही निर्भर रहे हैं। कोरोना वायरस महामारी के दौरान हम सभी को एक बहुत बड़ा सबक़ यह भी मिला कि यदि हम इसी प्रकार व्यवसाय जारी रखेंगे तो पूरे विश्व में पर्यावरण की दृष्टि से बहुत बड़ी विपदा आ सकती है।

 

भारत विश्व में भू-भाग की दृष्टि से सांतवां सबसे बड़ा देश है जबकि भारत में, चीन के बाद, सबसे अधिक आबादी निवास करती है। इसके परिणाम स्वरूप भारत में प्रति किलोमीटर अधिक लोग निवास करते हैं और देश में ज़मीन पर बहुत अधिक दबाव है। हमारे देश में विकास के मॉडल को सुधारना होगा। सबसे पहले तो हमें यह तय करना होगा कि देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना भी अब बहुत ज़रूरी है। यदि हाल ही के समय में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कुछ क़दमों को छोड़ दें तो अन्यथा पर्यावरण के प्रति हम उदासीन ही रहे हैं। अभी हाल ही में प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बहुत सारे ऐसे क़दम उठाए गए हैं जिनमें न केवल जन भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है बल्कि इन्हें क़ानूनी रूप से सक्षम बनाए जाने का प्रयास भी किया गया है। जैसे ग्रीन इंडिया की पहल हो, वन संरक्षण के बारे में की गई पहल हो अथवा वॉटर शेड के संरक्षण के लिए उठाए गए क़दम हों। यह इन्हीं क़दमों का नतीजा है कि देश पर जनसंख्या का इतना दबाव होने के बावजूद भी भारत में अभी हाल में वन सम्पदा बढ़ी है और देश में वन जीवन बचा हुआ है।

 

भारत विश्व में भू-भाग की दृष्टि से सांतवां सबसे बड़ा देश है जबकि भारत में, चीन के बाद, सबसे अधिक आबादी निवास करती है। इसके परिणाम स्वरूप भारत में प्रति किलोमीटर अधिक लोग निवास करते हैं और देश में ज़मीन पर बहुत अधिक दबाव है। हमारे देश में विकास के मॉडल को सुधारना होगा। सबसे पहले तो हमें यह तय करना होगा कि देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना भी अब बहुत ज़रूरी है। यदि हाल ही के समय में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कुछ क़दमों को छोड़ दें तो अन्यथा पर्यावरण के प्रति हम उदासीन ही रहे हैं। अभी हाल ही में प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बहुत सारे ऐसे क़दम उठाए गए हैं जिनमें न केवल जन भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है बल्कि इन्हें क़ानूनी रूप से सक्षम बनाए जाने का प्रयास भी किया गया है। जैसे ग्रीन इंडिया की पहल हो, वन संरक्षण के बारे में की गई पहल हो अथवा वॉटर शेड के संरक्षण के लिए उठाए गए क़दम हों। यह इन्हीं क़दमों का नतीजा है कि देश पर जनसंख्या का इतना दबाव होने के बावजूद भी भारत में अभी हाल में वन सम्पदा बढ़ी है और देश में वन जीवन बचा हुआ है।

 

प्रफुल्ल सिंह "साहित्यकार"

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

8564873029