Friday, July 10, 2020

देश को प्रकृति और विकास के बीच संतुलन की आवश्कता




कोरोना वायरस महामारी के चलते लगभग 2 माह के लॉकडाउन के बाद भारत सहित विश्व के लगभग 75 प्रतिशत देश अपनी अर्थव्यवस्थाएँ धीरे-धीरे खोलते जा रहे हैं। अब आर्थिक गतिविधियाँ पुनः तेज़ी से आगे बढ़ेंगी। परंतु लॉकडाउन के दौरान जब विनिर्माण सहित समस्त प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ बंद रहीं तब हम सभी ने यह पाया कि वायु प्रदूषण एवं नदियों में प्रदूषण का स्तर बहुत कम हो गया है। देश के कई भागों में तो आसमान इतना साफ़ दृष्टिगोचर हो रहा है कि लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ भी साफ़ दिखाई देने लगे हैं, कई लोगों ने अपनी ज़िंदगी में इतना साफ़ आसमान पहले कभी नहीं देखा था। इसका आश्य तो यही है कि यदि हम आर्थिक गतिविधियों को व्यवस्थित तरीक़े से संचालित करें तो प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखा जा सकता है।

 

हर देश में सामाजिक और आर्थिक स्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। इन्हीं परिस्थितियों के अनुरूप आर्थिक या पर्यावरण की समस्याओं के समाधान की योजना भी बनती है। आज विश्व में कई ऐसे देश हैं जिनकी ऊर्जा की खपत जीवाश्म ऊर्जा पर निर्भर है। इससे पर्यावरण दूषित होता है। हमारे अपने देश, भारत में भी अभी तक हम ऊर्जा की पूर्ति हेतु आयातित तेल एवं कोयले के उपयोग पर ही निर्भर रहे हैं। कोरोना वायरस महामारी के दौरान हम सभी को एक बहुत बड़ा सबक़ यह भी मिला कि यदि हम इसी प्रकार व्यवसाय जारी रखेंगे तो पूरे विश्व में पर्यावरण की दृष्टि से बहुत बड़ी विपदा आ सकती है।

 

भारत विश्व में भू-भाग की दृष्टि से सांतवां सबसे बड़ा देश है जबकि भारत में, चीन के बाद, सबसे अधिक आबादी निवास करती है। इसके परिणाम स्वरूप भारत में प्रति किलोमीटर अधिक लोग निवास करते हैं और देश में ज़मीन पर बहुत अधिक दबाव है। हमारे देश में विकास के मॉडल को सुधारना होगा। सबसे पहले तो हमें यह तय करना होगा कि देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना भी अब बहुत ज़रूरी है। यदि हाल ही के समय में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कुछ क़दमों को छोड़ दें तो अन्यथा पर्यावरण के प्रति हम उदासीन ही रहे हैं। अभी हाल ही में प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बहुत सारे ऐसे क़दम उठाए गए हैं जिनमें न केवल जन भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है बल्कि इन्हें क़ानूनी रूप से सक्षम बनाए जाने का प्रयास भी किया गया है। जैसे ग्रीन इंडिया की पहल हो, वन संरक्षण के बारे में की गई पहल हो अथवा वॉटर शेड के संरक्षण के लिए उठाए गए क़दम हों। यह इन्हीं क़दमों का नतीजा है कि देश पर जनसंख्या का इतना दबाव होने के बावजूद भी भारत में अभी हाल में वन सम्पदा बढ़ी है और देश में वन जीवन बचा हुआ है।

 

भारत विश्व में भू-भाग की दृष्टि से सांतवां सबसे बड़ा देश है जबकि भारत में, चीन के बाद, सबसे अधिक आबादी निवास करती है। इसके परिणाम स्वरूप भारत में प्रति किलोमीटर अधिक लोग निवास करते हैं और देश में ज़मीन पर बहुत अधिक दबाव है। हमारे देश में विकास के मॉडल को सुधारना होगा। सबसे पहले तो हमें यह तय करना होगा कि देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना भी अब बहुत ज़रूरी है। यदि हाल ही के समय में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कुछ क़दमों को छोड़ दें तो अन्यथा पर्यावरण के प्रति हम उदासीन ही रहे हैं। अभी हाल ही में प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बहुत सारे ऐसे क़दम उठाए गए हैं जिनमें न केवल जन भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है बल्कि इन्हें क़ानूनी रूप से सक्षम बनाए जाने का प्रयास भी किया गया है। जैसे ग्रीन इंडिया की पहल हो, वन संरक्षण के बारे में की गई पहल हो अथवा वॉटर शेड के संरक्षण के लिए उठाए गए क़दम हों। यह इन्हीं क़दमों का नतीजा है कि देश पर जनसंख्या का इतना दबाव होने के बावजूद भी भारत में अभी हाल में वन सम्पदा बढ़ी है और देश में वन जीवन बचा हुआ है।

 

प्रफुल्ल सिंह "साहित्यकार"

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

8564873029


 

 



 

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