Sunday, December 26, 2021

क्या आप बोल्ड हैं

वीरेंद्र बहादुर सिंह 

एक सवाल है कि आप कितना बोल्ड है? यह तो बहुत बोल्ड महिला है या यह तो बहुत बोल्ड पुरुष है... ? आप पर लगा यह लेबल आप को अच्छा लगता है? आप के परिवार वालों को अच्छा लगता है? क्या आप एक बोल्ड महिला को पत्नी के रूप में पसंद करेंगें? क्या आप को लगता है कि बोल्ड महिला को पत्नी के रूप में स्वीकार करने के बाद वह सामान्य महिला के रूप में संबंध निभाएगी?
एक महिला के लिए बोल्डनेस क्या हो सकती है? किसी पुरूष मित्र के कंधे पर हाथ रख कर सिगरेट पीना? बिंदास गालियां देना? स्पेगेटी ब्लाउज, आफ शोल्डर टीशर्ट या पैंटी दिखाई दे इस तरह की स्कर्ट्स पहनना? दोस्ती से बिस्तर तक पहुंचने वाले संबंधों को खुलेआम स्वीकार करना? सास-ससुर की बातों को न मानना?
एक पुरुष के लिए बोल्डनेस क्या हो सकती है? छाती ठोक कर अपने मन की बात कहना? अपनी अनपढ़ पत्नी के साथ न पटने की बात स्वीकार करना? अपने एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप का बखान करना? बगल से गुजरने वाली लड़की को देख कर शरीर में होने वाली सनसनाहट को सब के सामने स्वीकार करना?
बोल्ड होना क्या है? बहादुरी? समूह से अलग होने की टेक्निक? स्वभाव? प्रमाणिकता?
बोल्ड होने का मतलब अपनी गलतियों को स्वीकार करना। बोल्ड होने का मतलब यानी अपनी गलतियों को स्वीकार कर नई शुरुआत करना। बोल्ड होने का मतलब अपनी इच्छाओं को न दबाना। एकदम अंजान सुनसान रास्ते पर अंधेरी रात में अकेली जाना यह बोल्डनेस नहीं है, पर ऐसे अंजान रास्ते पर अकेली जाने में डर लगता है, यह स्वीकार करना बोल्डनेस है। जिस तरह जी रही हो, वह सब स्वीकार कर लेना बोल्डनेस नहीं है। पर जिस तरह जी रही हो, उसमें से थोड़ा भी किसी को पता न चले, इस तरह उसे कहीं आड़े हाथों छुपा रखो, यह बोल्डनेस है। कपड़े के अंदर हर आदमी नंगा होता है। पर कपड़ा पहन कर घूम रहे समूह के बीच एकदम नग्न हो निकल पड़ना भी बोल्डनेस नहीं है।
बोल्डनेस गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड नहीं की जा सकती। सोशल मीडिया पर जम कर लिखने, फलानाफलाना का खुलासा करने से आप बोल्ड नहीं हो जातीं। 'बोल्ड' होने के लिए जिस तरह शार्पनर में पेंसिल छीली जाती है, उस तरह छिलना पड़ता है। मुट्ठियां जलानी पड़ती हैं। जली मुट्ठियों का पसीना पीना पड़ता है।
आप की बोल्डनेस का आप के कपड़े से कोई लेनादेना नहीं है। आप की बड़ी सी लाल बिंदी या आप के बढ़े बालों से आप की बोल्डनेस को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता। बोल्डनेस किसी भी तरह के प्रतीकों से नहीं आती। गांव की पूरी तरह शरीर ढ़ंकने वाली महिला खुद अपने लिए कोई निर्णय लेती है तो उसे बोल्ड कहा जा सकता है। 'जाओ, तुम शहर जा कर अपना कैरियर बनाओ, मैं यहां रह कर संघर्ष करूंगी।' पति के कंधे पर हाथ रख कर यह कहने वाली महिला भी बोल्ड है और गड्ढ़े में गिरे बेटे को निकलने की राह देखने वाली महिला भी बोल्ड है। पूरे दिन आफिस में काम कर के घर आने वाले पति को दूध या दही लेने के लिए चौराहे पर भेजने वाली महिला बोल्ड नहीं है। पर पूरे दिन काम करने वाले पति की जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले लेने वाली पत्नी जरूर बोल्ड है। 
अगर बोल्ड होने का दिखावा करने के लिए आप कार्पोरेट मीटिंग में शराब पीती हैं, खुद को बुद्धिशाली साबित करने के लिए सामने वाले व्यक्ति को नीचा दिखाती हैं, उसका अपमान करती हैं, अपने पूर्व के संबंधों के बारे में सार्वजनिक रूप से चर्चा करती हैं, जैसा रह लही हैं, वैसा सचसच कह जाती हैं, एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेती हैं, पोर्न फिल्मों या सेक्स की बातें करती हैं तो आप बोल्ड नहीं, मूर्ख हैं। रांग साइड में बाइक चलाना या शहर की सड़कों पर 120 की स्पीड में कार चलाना बोल्डनेस नहीं है। अगर आप के अंदर शिष्टता है तो आप बोल्ड हो सकती हैं। जब आप अपना सुरक्षा कवच तोड़ कर उसमें से बाहर कदम रखती हैं तो आप बोल्डनेस की ओर पहला कदम बढ़ाती हैं। सब कुछ जानते हुए भी आप चुप रहना पसंद करती हैं तो आप बोल्डनेस की अंगुली पकड़ रही होती हैं। जब आप किसी के ऊपर आर्थिक रूप से डिपेंड नहीं रहना चाहतीं, तब आस बोल्डनेस को गले लगा रही होती हैं। जिंदगी में, नौकरी में या धंधे में, संबंधों में आने वाले हर संघर्ष के लिए तैयार रहती हैं तो आप बोल्डनेस को अपने अंदर उतारती हैं।
बोल्ड मनुष्य वह है जो खूब शक्तीशाली होने के बावजूद अपनी शक्तियों को काबू में रख सके। बोल्ड मनुष्य वह है, जो अपने संबंधों का प्रचार करने के बजाय संबंधों में की गई अपनी गलती को बेझिझक कबूल कर सके। बोल्ड मनुष्य वह है जो संबंधों-धंधे में खुद की गलती को अपने कंधे पर ले सके। बोल्ड रहने के लिए खुद के साथ कमिटेड रहना पड़ता है। झूठ को समझना पड़ता है और सत्य को खुला रखना पड़ता है। बोल्डनेस हर किसी को रास नहीं आती, बोल्ड होने के लिए जलते अंगारे पर बिना चीखे नंगे पैर चलने का साहस करना पड़ता है।  
कृत्रिम बोल्डनेस को ओढ़ कर चलने वाला मनुष्य किसी भी समय नंगा हो सकता है। बोल्डनेस दिखाने के लिए सिगरेट के कश लेना, शराब पीना या शिष्टता भंग करने की कतई जरूरत नहीं है। बोल्डनेस दिखाने की पहली सोढ़ी है स्वीकार। किसी भी परिस्थिति, संयोग को स्वीकार करना। सार्वजनिक रूप से या आईने के सामने खड़े हो कर या खुद के सामने। आप की बोल्डनेस दुनिया नहीं देखेगी तो चलेगा, पर आप को जरूर पता होनी चाहिए।

वीरेंद्र बहादुर सिंह 
जेड-436ए, सेक्टर-12,

डिजिटल भारत में अनुपालन बोझ को कम करने सुधारों की ज़रूरत

वैधानिक मापनविधा को गैर-अपराधी बनाने की ज़रूरत - स्वसत्यापन, स्वप्रमाणन, स्वनियमन को बढ़ावा देने की ज़रूरत 

डिजिटल भारत में सरकारी विभागों के मामलों में नियमों, प्रक्रियात्मक पहलुओं, को गैर-अपराधिक करने और आवेदक़ के शिकायतों का निवारण संवेदनशील तरीके से करने की ज़रूरत - एड किशन भावनानी 
गोंदिया - भारत बड़ी तेज़ी के साथ डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ते हुए डिजिटलाइजेशन की आंधी में,संकरी गलियों रूपी मानव हस्तकार्य याने हैंडवर्क को विशाल चौड़े रास्तों याने डिजिटलाइजेशन की ओर लाया जा सके ताकि सब काम तेजी से हो अर्थात एकसंकरी गली विशाल रोडरस्ते का स्थान लेकर हजारों लाखों काम एक साथ हो, यह है हमारे नए भारत का रणनीतिक रोड मैप का एक हिस्सा!!! साथियों इस डिजिटलाइजेशन में रहते हुए बात अगर हम जीवनयापन के लिए व्यापार, व्यवसाय या कोई गैर सरकारी निजी काम करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों की प्रक्रियाओं के अनुपालन की करें तो करीब -करीब हर इस क्षेत्र से जुड़े नागरिक को अनुभव होगा के सरकारी ऑफिसों के कितने चक्कर लगाने पड़ते हैं!!! हर विभाग के एक छोटे से छोटे आवेदन कागज से लेकर उसके प्रमाणपत्र पाने तक का कितना लंबा समय होता है!!! यह हम सबको अनुभव है! अब ज़रूरत है इस प्रोटोकॉल, नियमावली नियमों विनियमों को कम करने की या समाप्त करने की!! अब समय आ गया है कि छोटे-छोटे वैधानिक मापनविधा को अपराध रहित बनाया जाए और इसके स्थान पर स्वसत्यापन स्वप्रमाणिन और स्वनियमन को बढ़ावा हर क्षेत्र में सरकारी विभागों में दिया जाए। साथियों बात अगर हम इस क्रियात्मक प्रोटोकॉल या नियमावली की करें तो हर क्षेत्र के सरकारी बाबू के द्वारा इस प्राथमिक स्तरपर ही प्रक्रियात्मक नियमावली का हवाला देकर प्रक्रियात्मक, नियमात्मक, आवेदन फामरमेट, टिकट, इतने दिन इस टेबल पर, इतने टाइमपर, फ़िर यह सब करने पर उन कागजों का सत्यापन, प्रमाणन, हलफनामा, अनेक नियम नहीं करने पर अपराधिक संज्ञान का हवाला और हलफनामा इत्यादि से अब डिजिटल इंडिया में नागरिक बहुत परेशान हो चुके है। अब केंद्र, राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस तरह के अनुपालन बोझ को कम करने या हटाने का स्वतः संज्ञान सरकारों द्वारा लेना ज़रूरी है। साथियों बात अगर हम करीब 1500 अनुपयोगी कानूनों को रद्द करने और करीब 25000 से अधिक अनुपालनों को कम करने की करें तो हमने कुछ साल पहले देखे थे कि संसद से अनेक अनुपयोगी कानून हटाए गए थे और अनेक मामलों में एक कानून बनाकर लागू किया गया था जिसका जीता जागता उदाहरण जीएसटी है!!! इसी तर्ज पर अब नियमों विनियमों के अनुपालनों के बोझ को कम किया जाए या हटाया जाए! अब इनसे लोगों को बांधना उचित नहीं है। नियमों विनियमों प्रक्रियाओं का हवाला देकर शिकायतकर्ता की शिकायतों का समाधान रोकना उचित नहीं! अब संवेदनशीलता व सहिष्णुता का उपयोग अधिक ज़रूरी है, क्योंकि अब डिजिटल इंडिया है!!! साथियों बात अगर हम दिनांक 22 दिसंबर 2021 को वाणिज्य मंत्री द्वारा एक कार्यक्रम को संबोधन करने की करें तो वाणिज्य मंत्रालय की पीआईबी के अनुसार, वैधानिक मापनविद्या को गैर-अपराधी बनाने की जरूरत पर उन्होंने उद्योग क्षेत्र के प्रतिभागियों से प्रक्रियाओं में सुधार और उन्नति की मांग करते रहने का अनुरोध किया। उन्होंने स्व-सत्यापन, स्व-प्रमाणन और स्व-नियमन को बढ़ावा देने का भी आह्वाहन किया। उन्होंने आगे कहा कि अब उचित समय आ गया है कि नागरिकों की ईमानदारी पर भरोसा करके अनुपालन प्रणाली को बनाई जाए। पूरे दिन चलने वाली इस कार्यशाला को तीन समानांतर सत्रों में बांटा गया था। इनमें पहले सत्र की विषयवस्तु सरकारी विभागोंके बीच व्यवधान को समाप्त करना और तालमेल बढ़ाना था। वहीं, दूसरा सत्र नागरिक सेवाओं के कुशल वितरण के लिए राष्ट्रीय एकल खिड़की की कार्यशीलता की विषयवस्तु पर आधारित था। सबसे आखिर में तीसरे सत्र को प्रभावी शिकायत निवारण  की विषयवस्तु पर आयोजित किया गया। उन्होंने कहा कि अनुपालन जरूरतों को डिजाइन करते समय सभी हितधारकों, विशेष रूप से उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखने के साथ-साथ जमीनी वास्तविकता पर भी हमेशा विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने नीति निर्माताओं से उन अनुपालनों के विवरण को पता लगाने के लिए क्राउड सोर्सिंग का उपयोग करने का अनुरोध किया, जो बोझिल साबित हो रहे थे और उन्हें युक्तिसंगत बनाने पर काम किया गया। भारी सुधारों का आह्वाहन करते हुए उन्होंने कहा कि नए संरचनाओं को लोगों से बांधना नहीं चाहिए। हितधारकों के बीच सूचना की विषमता के समाधान की जरूरत को रेखांकित करते हुए, अनुपालन बोझ को कम करने में अब तक प्राप्त लाभ को एकीकृत करने का आह्वाहन किया। इस कार्यशाला के उद्घाटन के अवसर पर उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग के सचिव ने कहा कि शिकायत निवारण प्रणाली को मानवीय और संवेदनशील होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि जिन मामलों में नियमों और प्रक्रियात्मक पहलुओं के कारण शिकायतों का पूरी तरह से समाधान नहीं किया जा सकता है, उनके बारे में शिकायतकर्ता को संवेदनशील तरीके से अवगत कराया जाना चाहिए। सरकारी विभाग मानवीयता की भावना के साथ वास्तविक शिकायतों को संभाल सकते हैं। मंत्री ने कहा कि इससे जब स्वीकृति व अनुमति के लिए आवेदन करने की बात हो तो दोहराए जाने वाली प्रक्रियाओं को युक्तिसंगत बनाया जा सके और खाई व अतिरेकताओं को समाप्त किया जा सके। उन्होंने व्यापार और व्यक्तियों के लिए आधार, पैन और टैन इत्यादि जैसे मौजूदा कई पहचान संख्याओं को मिलाकर एक एकल पहचान संख्या बनाने का आह्वाहन किया, जिससे सेवाओं का वितरण आसानी और तेजी से हो सके। तकनीक की अनंत संभावनाओं पर उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी की सहायता करनी चाहिए व जीवन जीने व व्यापार करने में सहजता को बढ़ावा देने के लिए पहल करने के साथ अनुपालन प्रणाली को और ज्यादा जटिल नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने भारत के सामने आने वाली समस्याओं के स्वदेशी समाधान को विकसित करने की जरूरत का भी उल्लेख किया। उन्होंने राजनीतिक नेतृत्व, नौकरशाही और उद्योग नेतृत्व से अनुरोध किया कि वे अनुपालन बोझ को कम करने के लिए सादगी के सिद्धांतों व सेवाओं के समय पर वितरण से संबंधित अपनी पहल पर ध्यान केंद्रित करें। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि डिजिटल भारत में अनुपालन बोझ को कम करने सुधारों की ज़रूरत है तथा वैधानिक मापनविधा को गैर-अपराधी बनाने की ज़रूरत एवं स्वसत्यापन स्वप्रमाणन स्वनियमन को बढ़ावा देने की ज़रूरत है तथा डिजिटल भारत में सरकारी विभागों के मामलों में नियमों, प्रक्रियात्मक पहलुओं को गैर-अपराधिक करने और आवेदक के शिकायतों का निपटान संवेदनशीलता सहिष्णुता तरीके से करने की ज़रूरत है। 

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

आज जन्मदिन विशेष है

उस महान आत्मा का ,

जो भारत की पहचान था।
अटल के नाम से विख्यात था।

चले गए इस दुनिया से वो।
लेकिन भारत को विश्व गुरु l
की श्रेणी में लाकर खड़ा किया,
आतंकवाद को खत्म किया |

भारत भूमि से दुश्मन को l
सीमा से खदेड भागने पर मजबूर किया,
भारत की ताकत का लोहा
दुश्मनों को फिर मनवा दिया l 

राजनीति का पुरोधा था वो।
लडकर कभी हार नहीं माना
हार कर भी जीतने की।
उम्मीद पर जीता रहा।

मौत को बांध मुठ्ठी में भर कर।
जिंदगी का सफर में चलता रहा।
अटल था वो अटल हैं अटल 
रहेगा ।
यही संदेश दुनिया को देकर गया।
_____________________
      शैलेन्द पयासी ( स्वतंत्र लेखक 
विजयराघवगढ़, कटनी मध्यप्रदेश

वफ़ा के नाम पे धोका (ग़ज़ल)

जिसने चराग़ दिल में वफ़ा का जला दिया

ख़ुद को भी उसने दोस्तों इंसां बना दिया।

घरबार जिसके प्यार में अपना लुटा दिया
उस शख़्स ने ही बेवफा हमको बना दिया।

जो मिल गए हैं ख़ाक में वो होंगे और ही 
हमने तो हौसलों को ही मंज़िल बना दिया।

यह है रिहाई कैसी परों को ही काट कर 
सैयाद तूने पंछी हवा में उड़ा दिया।

हंस हंस के ज़ख़्म खाता रहा जो सदा तेरे 
तूने ख़िताब उसको दगाबाज़ का दिया।

'निर्मल' समझ के अपना जिसे प्यार से मिले 
उसने वफ़ा के नाम पे धोका सदा दिया।

आशीष तिवारी निर्मल 
लालगांव रीवा 

अटल हमारे अटल तुम्हारे

अटल  हमारे  अटल  तुम्हारे।

नहीं   रहे  अब   बीच  हमारे।
जन जन  के  थे  राज दुलारे।
अटल  हमारे  अटल  तुम्हारे।
बेबाक    रहे   बोल  चाल  में।
मस्ती  दिखती  चालढाल  में।
अश्क   बहाते     घर  चौबारे।
अटल  हमारे   अटल  तुुम्हारे।
अगर कहीं कुछ  सही न पाया।
राजधर्म  तब  जा  सिखलाया।
इसीलिये   थे   सब  के   प्यारे।
अटल   हमारे   अटल  तुम्हारे।
सजे  मंच  पर   जब  आते  थे।
झूम  झूम  कर  फिर  गाते  थे।
नहीं   बिसरते   आज  बिसारे।
अटल  हमारे    अटल  तुम्हारे।
चला  गया जनता  का  नायक।
छोड़ सभी कुछ  यार यकायक।
जन जन उनको  आज  पुकारे।
अटल   हमारे   अटल   तुम्हारे।
किया  देश हित  जीवन अर्पण।
बिरला    देखा    गूढ़   समर्पण।
रोते    हैं    यूँ     चाँद    सितारे।
अटल   हमारे    अटल   तुम्हारे।
कम से कम की  दिल  आज़ारी।
खेली  जम  कर   अपनी   पारी।
लगा  रहे  सब   मिल  जय कारे।
अटल   हमारे    अटल   तुम्हारे।
राजनीति   थी   खेल   खिलौना।
खेला   करके    सब  को   बौना।
शब्द     चढ़ाये      शब्द    उतारे।
अटल   हमारे    अटल    तुम्हारे।
हमीद कानपुरी
(अब्दुल हमीद इदरीसी)

एहसास

सर्दी बहुत है

गर्मी का एहसास करवाइए ।
नफरत बहुत है
मोहब्बत का एहसास करवाइए ।
गम बहुत है
खुशियों का एहसास करवाइए।
बेगानापन बहुत है
अपनेपन का एहसास करवाइए।
अंधेरा बहुत है
रोशनी का एहसास करवाइए।
शोर बहुत है
शांति का अहसास करवाइए।
अस्थिरता बहुत है
स्थिरता का एहसास करवाइए।
मिथ्या बहुत हौ
सत्यता का एहसास करवाइए।
दोगलापन बहुत है
एकसारता का एहसास करवाइए।

राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
पता-गांव जनयानकड़

किस्सा, किस्से और किस्साहट

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा

उजाले में भी अंधेरा बसता है। किसी-किसी को दिखता है। किसी-किसी को नहीं दिखता है। किसी-किसी को दिखकर भी नहीं दिखता है तो किसी-किसी को नहीं दिखकर भी दिखता है। यह किसी-किसी कहलाने वाले लोग गुफाओं या आदिम युग में नहीं रहते। हमीं में से कोई किसी-किसी का पात्र निभाता रहता है। आश्चर्य की बात यह है कि एक किसी दूसरे किसी को किसी-किसी का किस्सा बताकर अपनी किसियाने की खुसखुसी करता रहता है। कोई किसी’ के दुख में किसी सुख को तलाशने की कोशिश करता है। कोई किसी’ की आग में किसी की रोटी सेंकने का काम करता है। । कोई किसी के गिरने में किसी के उठने की राह जोहता है। यह किसकिसाने का फसाना बहुत पुराना है। हमसे-तुमसे-सबसे पुराना है। किसी की बात में किसी की चुप्पी, किसी के लिखे में किसी के मिटने और किसी की ताजगी  में किसी के बासीपन की याद हो आना किस्साहट नहीं तो और क्या है!

यह किसी-किसी कहलाने वाले प्राणी बड़े विचित्र होते हैं। एक किसी दूसरे किसी के शव को छूना नहीं चाहता है। यह किसी कभी किसी का बेटा बनकर किसी पिता को अंतिम दर्शन करने के सौभाग्य से वंचित कर देता है। किसी का पति बनकर किसी पत्नी का सुहाग उजाड़ देता है। किसी का भैया बनकर किसी भाई का सहारा छीन लेता है। ऐसा किसी किसी-किसी का नहीं होता। किसी ने खूब कमाया, कोठियाँ खड़ी कीं, घोड़ा-गाड़ी का ऐशो आराम देखा। किंतु यह केवल किसी-किसी तक सीमित रहा। आगे उसी किसी के किसी-किसी ने उसे भोगा। यह किसी-किसी का किस्सा युगों से चला आ रहा है।

किसी-किसी ने किसी-किसी के साथ मिलकर जिंदगी के चार दिन बिताए थे। किसी के सामने किसी ने सिर उठाकर अपनी गुमानी दिखायी थी। दुर्भाग्य से एक किसी के मरने पर कोई किसी के साथ नहीं गया। सब के सब यहीं रह गये। उसका बंगला, घोड़ा, नौकर-चाकर सब के सब यहीं रह गए। किसी कहलाने वाला चार किसी कहलाने वाले कंधों के लिए तरसकर रह गया। न जाने कैसे उस किसी को किसी ने किसी तरह किसी ऐसी जगह पहुँचाया जहाँ किसी-किसी को मुक्ति मिलती है। किसी-किसी की बातें, किसी-किसी की यादें, और किसी-किसी के किस्से तब तक हैं जब तक कोई किसी को किसी तरह यह आपबीती सुनाता है। एक किसी को जीने के लिए किसी चीज़ की जरूरत पड़े न पड़े, लेकिन जाते समय किसी कहलाने वाले चार कंधों की जरूरत अवश्य पड़ती है। सच है, चार कंधे भी किसी-किसी को किस्मत से ही मिलते हैं।     


94 वें जन्मोत्सव पर अटल जी को स्मरण किया

*अटल जी विनम्रता, लोकप्रियता,मिलनसारिता की प्रतिमूर्ति थे -राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य*

गाजियाबाद,शनिवार 25 दिसम्बर 2021,केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को उनके 94 वें जन्मदिन पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 
उल्लेखनीय है कि 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ था।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि श्री अटल जी भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय,विनम्र, मिलनसार व्यक्तित्व के धनी प्रधानमंत्री रहे।वह कवि ह्रदय, पत्रकार,लेखक दयालु व भावुक थे।राष्ट्रीय मोर्चे पर कारगिल युद्ध में उनके कुशल नेतृत्व में विजय प्राप्त की व पोखरण में परमाणु परीक्षण कर भारत की शक्ति का विश्व पटल पर परिचय भी दिया। वह तीन बार प्रधानमंत्री बने।वह बहुत अच्छे वक्ता थे देर रात तक उनका भाषण सुनने के लिए लोग आतुर रहते थे।उन्होंने केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के प्रधानमंत्री निवास पर आयोजित कार्यक्रम में घोषणा की थी भारत किसी दबाव में नहीं झुकेगा व सीटीबीटी पर हस्ताक्षर नहीं होंगे।आज अटल जी के जीवन से प्रेरणा लेने का दिन है।वह भारतीय राजनीति के अजातशत्रु रहे ।
राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने प.मदनमोहन मालवीय जी के जन्मदिन पर शुभकामनाएं देते हुए उनके पदचिन्हों पर चलने का आह्वान किया।
वैदिक विद्वान आचार्य सत्यवीर शर्मा,ओम सपरा वैध प्रदीप कटारिया,शैलन जगिया,देवेन्द्र भगत,आचार्य महेंद्र भाई,डॉ विपिन खेड़ा,राजेश मेहंदीरत्ता ने भी श्रद्धासुमन अर्पित किये।
गायक रविन्द्र गुप्ता,नरेंद्र आर्य सुमन,दीप्ति सपरा,रजनी गर्ग, रजनी चुघ,बिंदु मदान,सरोज शर्मा,सुदेश आर्या,प्रवीना ठक्कर आदि के मधुर भजन हुए।
भवदीय,
प्रवीण आर्य,

जश्न बनाम हादसों की रात

लो फिर आ गई हादसों वाली रात.....,हर साल की तरह इस बार भी 31-दिसम्बर आने वाला हैं,महानगरों में तो कई लोगो ने जश्न की  तैयारियां भी शुरू कर दी है। आजकल की युवा पीढ़ी को 31 दिसम्बर की रात का बेसब्री से इंतजार रहता हैं। पाश्चत्य संस्कृति को अपनाने वालों की धारणा होती हैं, कि बीता हुआ साल व आनेे वाले साल को ‘दिल ओ जान’ से  मनाया जाए। इसलिए एक महीने पहले से ही इसकी तैयारी शुरू कर दी जाती है। हर उम्र के लोगों के लिए अलग अलग पार्टियां रखी जाती। इस रात को रोमानी और मनोरंजक बनाने के लिए हर तरह की व्यवस्था रखी जाती साथ ही साथ तरह तरह के फूड,शराब,कोकिन,हेरोइन,अश्लील नाच गाना,यहां तक की सम्भोग भी। इस रात को हसीन बनाने के लिए लाखो का खर्च कर तरह तरह की योजनाएं बनाई जाती। एक महीने पहले से ही ऑफर के साथ नाइट बुकिंग भी शुरू हो जाती हैं। कई पार्टियां तो शहर से दूर। सुनसान एरिये में रखी जाती, ताकी पुलिस की नजर न पड़े। टुरिस्ट प्लेसेस अधिक से अधिक सजाए जाते हैं ताकी अधिक से अधिक लोग इन जगह पर रात बिताएं । 31 दिसम्बर अब महानगरों तक ही सीमित नही हैं। छोटे छोटे कस्बों में भी इसका अच्छा खासा चलन हो गया हैं। कई युवक युवतियां तो शादी की तरह तैयारी करते साथ ही कई तो इस रात के लिए पहले से ही कई योजनाएं भी बनाकर रखते हैं। 31 दिसम्बर की शाम से ही शहर जगमगा जाते हैं। रात होते ही पार्टिया शबाब पर आ जाती। नाच- गाना, खाना-पीना, तरह तरह के ड्रग्स छोटे छोटे कपडों में मेकप से पूती लहराती युवतियां, हाथों में शराब लिए क्लबों में नाचते हुए, अलग ही रोमांचक रोनके शुरू हो जाती हैं। इन क्लबों में हर तरह का नशा किया जाता। कोई पहली बार आता हैं, तो कोई जबरदस्ती लाया जाता। कई दोस्तों को जर्बदस्ती मनुहार करके नशा करने को मजबूर किया जाता हैं, तो युवक युवतियों के साथ ड्रग्स शराब के सेवन के लिए प्यार की दुहाई देकर पिलाया जाता हैं। नया वर्ष शुरू होते होते सभी युवक युवतियां अपने होश खोने लग जाते हैं। फिर रात का तांडव शुरू होता। कई बार किसी युवती के साथ जबरदस्ती तो किसी की बेहोशी की हालात में इज्जत से खिलवाड़, नशे में धूत सडक़ पर घूमती युवतियों के साथ छेडख़ानी। देर रात पार्टियां खत्म होने पर नशे में धुत गाडी चलाने पर कई एक्सीडेंट होना। नया साल नए नए हादसों का साल बन जाता हैं। सुबह तक कई तरह के वारदाद को अंजाम दे दिया जाता हैं। धीरे धीरे हफ्ते तक सभी अंजाम सामने आते रहते हैं। अगर किसी युवती के साथ दर्दनाक बलात्कार हुआ तो नया कानुन,साथ ही जगह जगह मोमबत्ती जलाकर मातम मनाना,टीवी पर बहस....बस। सोचने वाली यह बात है, वाकई में हमारे नए वर्ष  की शुरुआत ऐसे होना चाहिए ?,

      एक जनवरी को नव वर्ष मनाने का चलन 1582 इस्वी के ग्रेगेरियन कैलेन्डर आरंभ हुआ  । ग्रेगेरियन कैलेन्डर को पोप अष्टम ग्रेगेरी ने तैयार किया था,आर्थोडॉक्स चर्च रोमन कैलेन्डर को मानता हैं। उसके अनुसार नया साल 14 जनवरी को होता हैं। जब सभी लोग अपने अपने कैलेंडर के अनुसार नया साल मनाते हैं। तो फिर हम क्यों हमारे "विक्रम संवत" कैलेंडर के अनुसार नया साल नही मनाते हैं ? हमारा कैलेंडर  "विक्रम संवत"  गे्रगेरियन कैलेन्डर से भी अधिक प्राचीन है, कालगणना हमारे संवत पंचाग के अनुसार की जाती है। अभी विक्रम संवत 2078 चल रहा है,                  हम कितने आधुनिक हो गए हैं,कि हम यह भी भूल गए की हमारा नया साल चेत्र गुड़ीपड़वा से शुरू होता हैं।
ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन इसी दिन हुआ था।
भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग-शालिवाहन शक संवत का प्रारम्भ।
    पाश्चात्य संस्कृति हमें किस पतन की ओर लें जा रही है, आज हम आधुनिकता दिखावे के चक्कर में, हम अपनी मान मर्यादा इज्जत सब कुछ लुटा रहे है | हमारी संस्कृति परम्परा को भूलते जा रहे हैं, बिता हुआ वर्ष कुछ अनुभव देता, नया सिखाता, नया वर्ष नए कार्य की उम्मीदों का वर्ष...., किन्तु अगर हम 31दिसंबर इसी तरह से मनाते रहे तो हादसों का सफर बढ़ता जाएगा, आज हम सभी को गहन चिंतन करने की आवश्यकता है, क्या नया वर्ष मनाने का यह सही तरीका ?

वैदेही कोठारी (स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका )

Thursday, December 23, 2021

बच्चू...कच्ची गोटियाँ नहीं खेली हैं

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

एक भड़कीला युवक अपने स्थानीय सांसद से जा भिड़ा। सांसद जी बड़े संयमी थे। सो, युवक को डाँटने-फटकारने अथवा लताड़ने की जगह उसे बड़े प्रेम से बैठने के लिए कहा। बड़ी विनम्रता से पूछा क्या बात है भाई! ऐसी क्या मुसीबत आ पड़ी जो तुम मुझे इतनी सुबह-सुबह डाँट रहे हो?” इस पर युवक ने कहा, आपने झूठे-झूठे वायदे कर चुनाव तो जीत लिया और हम जैसे लोगों को भूल गए। खुद तो चैन की नींद सोते हो और हमें दर-दर की ठोकर खाने के लिए छोड़ दिया है। महँगाई के मारे न खाए बनता है न पीए। बेरोजगारी से हमारे जैसे लोगों की हालत खस्ता है। जेब में एक फूटी-कौड़ी भी नहीं है। अब आप ही बताइए ऐसे में आदमी गरियायेगा नहीं तो उसकी आरती उतारेगा?”

सांसद जी को सारा मामला समझ में आ गया। वे कुछ समझाते इससे पहले ही युवक भड़क उठा और बोला, आपको क्या है? आपको तो सरकार की ओर से बत्तीवाली चार चक्का गाड़ी, बड़ा बंगला, नौकर-चाकर, खाने-पीने में पाँच सितारा होटल सा भोजन, आए दिन हवाई सफर करने का मौका, बीमार पड़ने पर एक से बढ़कर एक अस्पताल। और बदले में हम जैसे लोगों को क्या मिलता है – ठेंगा!” सांसद जी को लगा कि युवक तो बड़ा जागरूक है। इसे यों ही बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। वे कुछ जुगाड़ करने लगे। थोड़ी देर सोचने-समझने के बाद उन्होंने मुस्कुराते हुए उससे कहा, तो तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। एक फूटी-कौड़ी भी नहीं?” हाँ युवक ने मुँह फुलाते हुए उत्तर दिया। ठीक है तो मैं तुम्हें एक लाख रुपये देने के लिए तैयार हूँ, लेकिन शर्त यह है कि तुम्हें मुझे अपना एक हाथ काटकर देना होगा। अरे भाई यदि मैं आपको अपना हाथ दे दूँगा, तो अपने काम कैसे करूँगा?” ठीक है तो अपना एक पैर ही दे दो। इसके बदले में मैं तुम्हें दस लाख रुपये दूँगा। सोच लो। सौदा फायदे का है। क्या कमाल की बात करते हैं आप! यदि मैं अपना पैर दे दूँगा तो इधर-उधर चलूँगा कैसे? कुछ सोच-समझकर बात कीजिए। बड़े अजीब आदमी हो। कुछ भी माँगता हूँ तो न-नुकूर करते हो। चलो ठीक है, एक काम करो तुम अपनी जीभ ही काटकर दे दो इसके एवज में मैं तुम्हें एक करोड़ रुपये दूँगा। तुम्हारी गरीबी हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाएगी। सोच लो ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा। युवक का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह झल्लाकर बोला, लगता है जब से आप सासंद बने हैं तब से आपका दिमाग सिर में कम घुटने में ज्यादा रहता है। दिमाग-विमाग खराब तो नहीं हो गया। कैसी बे-फिजूल की बातें कर रहे हैं। मैं यदि अपनी जीभ दे दूँगा तो जीवन भर बात कैसे करूँगा। अपनी जरूरतों के लिए सामने वाले से पूछूँगा कैसे?”

सांसद जी अब बड़े इत्मनान में थे। युवक की बातें सुन उन्हें लगा कि अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे। उन्होंने एक लंबी साँस ली और कहा, भाई! जब तुम्हारे पास एक लाख रुपये से अधिक कीमती हाथ है, दस लाख रुपये से अधिक कीमती पैर है और एक करोड़ रुपये से भी अधिक कीमती जीभ है तो तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारे पास फूटी-कौड़ी भी नहीं है। मैंने चुनाव जीतने के लिए बहुत से पापड़ बेले हैं। मैं यूँ हीं सांसद नहीं बना। इसी को मेहनत कहते हैं। यदि मैं भी तुम्हारी तरह सुबह-सुबह डाँटने-फटकारने या लताड़ने का काम करता तो आज सांसद नहीं तुम्हारी तरह दर-दर की ठोकरें खाते फिरता। जाओ, मेहनत करो और मेरा-तुम्हारा समय बर्बाद मत करो।

पाप बेचारा युवकवह इतना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया।

तुम अपने और मैं अपने घर

 सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त


दुनिया की विरासत में एक डायलाग कभी नहीं मिटेगा। वह है- अपने पैरों पर खड़े होना सीखो। यह इस दुनिया का सदाबहार डायलाग है। जब हम छोटे थे तब हमारे बुजुर्ग यह डायलाग कह-कहकर हमारे कान पका देते थे। जब हम बड़े हुए तो हमने अपने बच्चों के कान पका दिए। स्वाभाविक है कि हमारे बच्चे भी अपने बच्चों के कान पकायेंगे। यही दुनिया का दस्तूर है। हँसी तो तब आती जब यह सोच-सोचकर दिमाग खपा देते कि हम अपने पैरों पर नहीं तो किनके पैरों पर खड़े हैं। खैर, किताबों की खाक़ छानी तो पता चला कि यह कथन तो एक मुहावरा है। इस मुहावरे का अर्थ है- आत्मनिर्भर बनना। फिर मैंने आत्मनिर्भर शब्द का पोस्टमार्टम किया। पता चला यह दो शब्दों से बना है- आत्म और निर्भर। आत्म शब्द आत्मा का सूचक है। आश्चर्य की बात यह है कि भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक की लगभग सभी भाषाओं में आत्मा के लिए आत्मा शब्द ही है। आत्मा के बारे में और अधिक जानने के क्रम में भगवत् गीता के अध्याय दो श्लोक 20 पर नजर पड़ी। इसमें आत्मा की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी गयी है- जायतेम्रियतेवाकदाचित्अयम्भूत्वाभवितावा / भूयःअजःनित्यःशाश्वतःअयम्पुराणःहन्यतेहन्यमानेशरीरे। यानी आत्मा किसी काल में न तो जन्म लेता है और न मरता है न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला है कारण, यह अजन्मा नित्य सनातन और पुरातन है शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो आत्मा न खाती न चलतीन हिलतीन पैदा होती न मरती है। अरे भाई! जो है ही नहीं उसे खाक़ निर्भर करेंगे?

हमारे देश में आत्मा के बारे में सभी लोगों के अलग-अलग मत हैं लेकिन हद तब हुई जब सरकार ने आत्मनिर्भरता को खरीदने की कीमत लगाई – पूरे बीस लाख करोड़ रुपये! गणित में कमजोर लोग इस आंकड़े से दूर रहने में ही भलाई है। बचा-खुचा गणित भी भूल जायेंगे। तब मुझे संदेह हुआ जो है ही नहीं उसकी निर्भरता के लिए इतनी बड़ी राशि का क्या होगायह रुपया किसे मिलेगायही सोच-सोचकर सर चकरा रहा था।

तभी मेरे एक मित्र ने मुझसे मेरी चिंता का कारण पूछा। मैंने बीस लाख करोड़ रुपये और आत्मनिर्भरता की बात छेड़ी। तब उसने कहा - बस इतनी-सी बात के लिए सर खपा रहे हो। मान लो मैं सरकार हूँ और तुम जनता। मैंने तुम्हें बीस लाख करोड़ रुपये दे दिए। अब बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है? मैंने खुशी-खुशी कहा – अच्छा लग रहा है। यह हुई न बात! कहकर मित्र फिर से अपनी बात समझाने लगा। उसने पूछा इन रुपयों का तुम क्या करोगे? मैंने कहा- यह भी कोई प्रश्न है? खाने-पीने और जरूरत की चीज़ें खरीदूँगा। मित्र ने लंबी साँस लेते हुए कहा- अब बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है? मैंने कहा – बहुत अच्छा लग रहा है। तब मित्र ने कहा – हो गया हिसाब बीस लाख करोड़ रुपये का। जहाँ तक बात आत्मनिर्भरता की है, तो याद रखो तुम आत्मा हो और तुम्हारी खुशी निर्भरता। अब व्यर्थ की यह चिंता छोड़ो। घर जाओ और सो जाओ।

मैं घर पहुँचा। लेकिन मैं इसी उधेड़बुन में परेशान था कि जो रुपये मुझे मिले ही नहीं उसकी खुशी कैसी? आत्मनिर्भरता कैसी? यही सोचते-सोचते मैं सो गया। सपने में किसी ने मुझसे कहा – जिन बीस लाख करोड़ रुपयों को तुमने देखा नहीं, उसके लिए चिंता क्यों? उस चिंता के लिए चिता बनना क्यों? चिता बनकर यूँ सोना क्यों? जागो! अपने चारों ओर देखो। जिस प्रकार बिजली के प्रवाह को देख या छू नहीं सकते उसी प्रकार सरकारी रुपये देख या छू नहीं सकतेये रुपये बस सुनने में अच्छे लगते हैं। सोचो! ये रुपये सच में होते तो क्या लोग गरीबी से मरते? भूख से तड़पते-बिलखते? दर-दर की ठोकरें खातें? नहीं नइसीलिए जो नहीं है उसके होने का आभास दिलाने के लिए बीच-बीच में ऐसी बातें कह दी जाती हैं। ऐसा करने से जीने का झूठा दिलासा मिलता है। फिर चाहे वह बीस लाख करोड़ रुपये हो या फिर आत्मनिर्भरताआत्मा निर्भर बनने के लिए चाहे लाख डिसको करे, लेकिन निर्भरता का उसके लिए एक ही डायलाग होगा – खिसकोखिसको! खिसको


भोर-भिनसार

विधा - छंद मुक्त


परिचय - निशा खैरवा पुत्री मनोज खैरवा
छात्रा रामकुमारी कॉलेज
मु.पो. बिदासर,लक्ष्मणगढ़, सीकर राज.



भोर भिनसार शोर नित्य चहुँओर
कलरव निकुंज-खग निशा कंठ
उड़ फुर्र चाह उर-नभ वेग-तेग
भोर-भोर कजरारे अलसाये नैन।

अँगड़ाई अलसाई अंग-अंग मोरनि
प्रातः उच्छ्वास जैसे झंझावात
मृदु मुस्कान जैसे छवि कलीकंज
दृष्टि भोरी चंचल जैसे गोवत्स।

मन कोमल-अमल भाव निर्मल
विवेक एक नेक हित समरूप
मृदु बोल-तौल-मोल हित जान
कमी न, कमाई गुण जान न रूप।

'मगवाणी' की पहली वर्षगाँठ पर हुआ भव्य आयोजन, देश-विदेश में हो रही प्रशंसा

माजिक संस्था मगवाणी ने अपनी पहली वर्षगाँठ एक भव्य वीडियो कार्यक्रम के माध्यम से मनाई। इस कार्यक्रम को देश विदेश के लाखों लोगों ने यूट्यूब व फेसबुक व व्हाटसअप के माध्यम से देखा और सराहा । 'मगवाणी' एक समाचार पटल है जो देश की लगभग तीन दर्जन शाकद्वीपीय संस्थाओं के सहयोग से सामाजिक जागरण का प्रयास करती है। इस पटल के माध्यम से देश-विदेश के शाकद्वीपीय परिवारों व शाकद्वीपीय संस्थाओं के प्रेरक व महत्वपूर्ण गतिविधियों  को प्रसारित किया जाता है । इन प्रसारणों से प्रेरित 'शाकद्वीपीय समाज' अपने निजसशक्तिकरण से राष्ट्र के विकास में सहभागिता प्रदान करता है ।

     गत 20 दिसम्बर को सम्पन्न मगवाणी वार्षिकोत्सव के आलोक में देश- विदेश से प्राप्त शुभकामना सन्देशों को इस सामाजिक पटल अर्थात मगवाणी ने शृंखलावद्ध तरीके से प्रसारित किया । शुभकामना संदेश देने वाली महत्वपूर्ण विभूतियों में अयोध्यानरेश बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र, दिल्ली के स्पेशल पुलिस कमिश्नर श्री दीपेंद्र  पाठक,  सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक श्री देवेंद्र पाठक, लक्षद्वीप के कृषि व मत्स्यपालन सेक्रेटरी श्री ओम प्रकाश मिश्र,   राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त पूर्व आई. ए. एस. अधिकारी वैदेही शरण मिश्र,भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ पी. एस. पाण्डेय, उद्योगपति श्री सुरेश प्रसाद मिश्र, दैनिक हिंदुस्तान राँची के एसोसिएट एडिटर चंदन मिश्र, प्रख्यात साहित्यकार डॉ मदन मोहन तरुण, वेटरन जॉर्नलिस्ट प्रोफेसर सिद्धार्थ मिश्र, काशी विश्वनाथ न्यास के अध्यक्ष प्रोफेसर नागेन्द्र पाण्डेय , शिक्षाविद श्री प्रदीप मिश्र, भाजपा महिला मोर्चा बिहार की सोशल मीडिया प्रभारी श्रीमती प्रीति पाठक , प्रख्यात ज्योतिर्विद पं विजयानन्द सरस्वती , बिमला हरिहर ग्रुप, राँची के संस्थापक निदेशक डॉ हरिहर प्रसाद पाण्डेय  ,पटना विश्वविद्यालय  के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर उमाशंकर शर्मा ऋषि , प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक डॉ चंद्र भूषण मिश्र एवं दैनिक सन्मार्ग के पूर्व सम्पादक श्री ज्ञानवर्धन मिश्र इत्यादि  के नाम शामिल हैं ।
     वार्षिकोत्सव कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी देते हुए मगवाणी कोर कमेटी सदस्य श्री बिमल कुमार मिश्र, श्री अनन्त कुमार मिश्र एवं श्री राजन राजेश्वर नायक ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी करते हुए बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत नागपुर में रहने वाली मगवाणी प्रवाचिका श्रीमती श्रुति मिश्रा द्वारा प्रस्तुत गणेश वंदना से हुई । इसके बाद देश की लगभग दो दर्जन शाकद्वीपीय संस्थाओं के अध्यक्षो के साथ-साथ मगवाणी के कई प्रान्त प्रतिनिधियों , जिला प्रतिनिधियों व प्रसार प्रतिनिधियों के वीडियो संदेशों का प्रसारण हुआ । बिहार की बेटी काव्या मिश्रा द्वारा प्रस्तुत नृत्य एवं जहानाबाद के श्री राजेश मिश्र व उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत 'मगोपाख्यान गायन' भी आकर्षण के केंद्र रहे । सभी तेरह प्रवाचक-  प्रवाचिकाओं में श्रुति मिश्रा, राजीव नन्दन मिश्र,डॉ नारायण दत्त मिश्र,श्रीमती अनुपमा मिश्रा,मीनाक्षी मिश्रा,दीन दयाल शर्मा,अक्षिता मिश्रा,भगवानदत्त मिश्र,डॉली मिश्रा,नीरज उमेश शर्मा,भरत कुमार,प्रियंका चन्द्र शर्मा ने मगवाणी द्वारा प्रदत्त उपहारों व प्रशास्तिपत्रों को हाथ मे लेकर अपने आभार ज्ञापन भी प्रस्तुत किये। इसके बाद मगवाणी उपसमन्वयक श्री महेंद्र पाण्डेय व समन्वयक डॉ भारती भोजक ने अपने विचार व्यक्त किये ।सबसे अंत मे मगवाणी संयोजक श्री विवेकानंद मिश्र ने अपने महत्वपूर्ण वक्तव्य में मगवाणी के समस्त प्रयासों की प्रासंगिकता तथा  मगवाणी प्रसारण से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डालते हुए आभार ज्ञापन प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का संचालन दिल्ली से डॉ नारायण दत्त मिश्र, पटना से श्रीमती अनुपमा मिश्रा तथा जोधपुर से श्री दीन दयाल शर्मा ने किया ।