Monday, April 14, 2025

रखी लोकतंत्र की मर्यादा

 संविधान का निर्माण करके,

बने जो आधुनिक संविधान निर्माता,

आज़ादी की परिभाषा समझाई,

रखी  लोकतंत्र की मर्यादा।

कर सके हर भारतीय,

अपने हकों का उपयोग,

ऐसे महान थे भारत रत्न भीमराव,

सिखाई सबको राजनीति की परिभाषा।

बचपन का नाम था इनका भीम,

14अप्रैल को जन्म लिया धरा पर,

सबकी कसौटी पर उतरे खरे,

रखी मजबूत संविधान की नींव।

कहते सब इनको संविधान निर्माता,

थे समान अधिकारों के संरक्षक,

पढ़ाई ऐसी थी इनकी,

थे कानून के प्रख्यात ज्ञाता।

गरीबों शोषितों के थे वो मसीहा,

समानता का था जो अधिकार,

उन्होंने संविधान में था दिया,

तभी बनी थी फिर  आम जनता की सरकार।

खुद रहे थे बचपन से ही शोषित,

पाया था फिर भी शिक्षा को अपार,

अस्पृश्यता और जातिप्रथा पर किया था कड़ा प्रहार,

हमेशा रहे लोगों की सहायता को तत्पर,

ऐसे थे भारत रत्न डॉक्टर भीम राव अंबेडकर।


स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना 

कैप्टन (डॉo) जय महलवाल (अनजान)


मेरे नैन

गुपचुप करते वो सारी बतिया,

जगाते भी जो पूरी ही रतिया,
मौन की भाषा ही बोलते हैं,
राज दिल के सारे खोलते हैं ।

अपनों की चिंता में हो जाते बेचैन,
रात-दिन थके-हारे अश्रुपूरित नैन,
चिंतित हो बहुत कुछ सोचते हैं,
खत्म हुए "आनंद" को खोजते हैं ।

दर्द छुपाना इनको आता ही नहीं,
कशमकश अन्तर्मन की हॉं यहीं,
टुटे दिल के तारों को टटोलते हैं,
अन्तर्मन को बेहद कचोटते है ।

एकटक आस लगाएं तकते ये राह,
अश्रु छलकाते निकलती जब आह,
टुटे हुए रिश्तों के अक्स से जोड़ते हैं,
बीती यादों की तरफ़ ये मोड़ते हैं ।

ख्वाब दिखा मीलों ले जाते ये दूर,
थम न पाते सपने जब हो जाते चूर,
साथी बन दिल का दर्द बॉंटते हैं,
 परछाइयों से मन को यूँ बॉंधते हैं ।
-  मोनिका डागा

सीमित साधनों में निर्वाह की आदत बनायें

    प्रकृति उतना ही धन वैभव उत्पन्न करती है, जिसमें धरती पर रहने वाले सभी प्राणी अपना जीवनयापन सुविधापूर्वक कर सकें। व्यक्ति अधिक धनी बनने की चेष्टा करते हैं, तो इसका सीधा परिणाम होगा कि दूसरों का हक, हिस्सा कटने लगेगा। ऊंँची दीवार उठाने के लिए लिए किसी दूसरी जगह गड्ढा बनाना पड़ता है। कुछ अमीर बनना चाहें, तो यह तभी सम्भव हो सकेगा जब अन्य अनेकों को अभावग्रस्त गरीबी की  स्थिति में रहना पड़े। इस प्रकार की विषमता जब भी जहाँ भी उत्पन्न होगी, वहाँ विग्रह खड़ा करेगी।अनावश्यक धन दुर्व्यसनों में,ठाट-बाट में,  विलास-व्यभिचार में खर्च होता है, फलतः उनके दुष्परिणाम सामने आते हैं। नशेबाजी, आवारागर्दी, आलस्य, प्रमाद, सम्पन्नता का प्रदर्शन, निरर्थक अपव्यय ऐसे ही कृत्य हैं, जो अनावश्यक धन जमा करने वाले के पीछे पड़ते हैं। यह दुर्व्यसन अधिक धन की मांँग करते हैं और एक व्यक्तित्व को गिराने का दुश्चक्र चल दौड़ता है।एक अमीरी भोगे और दूसरा गरीबी में तड़फे, इस विषमता का सीधा परिणाम ईर्ष्या के रूप में सामने आता है।चोरी, डकैती और कुकृत्य भी प्रायः इसी आधार पर बढ़ते देखे जाते हैं। बड़ों की नकल करने की छोटों में ललक उपजती है, वे भी वैसी ही अमीरी के लिए लालायित होते हैं और तरीका बन नहीं पड़ता, तो गलत मार्ग अपनाते हैं। अनेकों विकृतियाँ प्रायः इसीलिए पनपती हैं कि बुराइयों का वातावरण बनने पर सामान्य लोग भी उसी प्रवाह में बहने लगते हैं। धन का अनावश्यक संग्रह एक प्रकार से समाज में अनेक दुष्प्रवृत्तियों का, अवांछनीयताओं का सृजन करता है।सीमित साधनों में निर्वाह करने की आदत मनुष्य को वह लाभ प्रदान करती है, जो सादगी अपनाने वाले सज्जनो को मिलता रहता है । समता ही एकता बनाए रहने में समर्थ है। एकता में मिल-जुलकर रहने की, मिल-बांटकर खाने की प्रवृत्ति पनपती है। उसी आधार पर हँसते - हंसाते, प्रसन्न एवं सन्तुष्ट जीवन जी सकना सम्भव होता है। परिवार में, मित्र संबंधियों में स‌द्भाव बनाए रखना उन्हें उनका चिन्तन और चरित्र मानवी गरिमा के ढाँचे में ढला रखना हो तो उसका प्रधान उपाय यही है कि आर्थिक पवित्रता बनाए रखने के लिए अपना आदर्श प्रस्तुत किया जाए और परिवार में आदर्शवादी वातावरण बनाए रखा जाए। इसके लिए सबसे अधिक आवश्यकता आर्थिक शुचिता की है।   


Saturday, April 12, 2025

रामचरित मानस के सिद्ध मंत्र

१- विपत्ति-नाश के लिये

“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपतिभंजनसुखदायक।।”

२-संकट-नाश के लिये

“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।

जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिंसुखारी।।

दीन दयाल बिरिदु संभारी। 

हरहु नाथ मम संकट भारी।।”

३-कठिन क्लेश नाश के लिये

“हरन कठिन कलि कलुषकलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”

४-विघ्न शांति के लिये“

"सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”

५-खेद नाश के लिये

"जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥"

६-चिन्ता की समाप्ति के लिये

"जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”

७-विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये

"दैहिक दैविक भौतिक तापा।

राम राज काहूहिं नहिब्यापा॥”

८-मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये

"हनूमान अंगद रन गाजे। 

हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”

९-विष नाश के लिये

"नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।” १०-अकाल मृत्यु निवारण के लिये

"नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।

लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”

११-सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये

"प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।

जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”

१२-नजर झाड़ने के लिये

"स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”

१३-खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिएे

“गई बहोर गरीब नेवाजू। 

सरल सबल साहिब रघुराजू।।”

१४-जीविका प्राप्ति केलिये

“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”

१५-दरिद्रता मिटाने के लिये

"अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारिके।

कामद धन दारिद दवारि के।।”

१६-लक्ष्मी प्राप्ति के लिये

"जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।

तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”

१७-पुत्र प्राप्ति के लिये

"प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।

सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’

१८-सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये“

"जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।

सुख संपत्ति नाना विधिपावहि।।”

१९-ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये

"साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”

२०-सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये

"सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई"।।

२१-मनोरथ-सिद्धि के लिये“

"भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।

तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”

२२-कुशल-क्षेम के लिये

"भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”

२३-मुकदमा जीतने के लिये

"पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”

२४-शत्रु के सामने जाने केलिये

"कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”

२५-शत्रु को मित्र बनाने के लिये

"गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”

२६-शत्रुतानाश के लिये

"बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”

२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये

"तेहि अवसर सुनि सिवधनुभंगा।

आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”

२८-विवाह के लिये

"तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।

मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”

२९-यात्रा सफ़ल होने के लिये

"प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”

३०-परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये“

जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥

मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”

३१-आकर्षण के लिये

"जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”

३२-स्नान से पुण्य-लाभ के लिये

"सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।

लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”

३३-निन्दा की निवृत्ति के लिये

"राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।"

३४-विद्या प्राप्ति के लिये

"गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥"

३५-उत्सव होने के लिये

"सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।

तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”

३६-यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये

"जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।

पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”

३७-प्रेम बढाने के लिये

"सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीती॥"

३८-कातर की रक्षा के लिये

"मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”

३९-भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये

"रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।

सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥"

४०-विचार शुद्ध करने के लिये

"ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मतिपावउँ।।”

४१-संशय-निवृत्ति के लिये

"राम कथा सुंदर करतारी। 

संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”

४२-ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये

"अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”

४३-विरक्ति के लिये

"भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।

सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”

४४-ज्ञान-प्राप्ति के लिये

"छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”

४५-भक्ति की प्राप्ति के लिये

"भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।

सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”

४६-श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये

"सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”

४७-मोक्ष-प्राप्ति के लिये“

"सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। 

काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”

४८-श्री सीताराम के दर्शन के लिये“

"नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।

लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”

४९-श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये

"जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”

५०-श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये

"केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।

देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”

५१-सहज स्वरुप दर्शन के लिये

"भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”