Thursday, September 26, 2019

आतंक की खैर नहीं

 

आतंक की अब खैर नही

दहाड़ रहा हिन्दुस्तान 

आतंक के परवरिशकर्ताओं को

निर्णायक सबक देगा हिन्दुस्तान

 

भरी महफिल में उतर रहा शुरूर

फिर भी न तेरा कम हुआ गुरूर

चुन चुन कर तेरा बखान हुआ

देख लो पाक दुनियां में 

हिन्दुस्तान का कितना सम्मान हुआ।

 

एक तरफ आतंकिस्तान

दूसरे तरफ विकासीस्तान

तू साजिश करता गया

और तेरा दिवाला निकल गया।

मदद करने वाला हिन्द देखो

तुमसे कितना आगे निकल गया।

 

अब तो खाने के भी 

दाने नही तेरे पास

त्राहि त्राहि कर रहा 

तेरे देश की अवाम।

 

बूरे कर्म का बूरा नतीजा

तो होना ही था

पाला पोशा दहशतगर्द को

तुझे तबाह तो होना ही था।

 

                                आशुतोष

Tuesday, September 24, 2019

पान के किसानों का प्राकृतिक आपदा, प्रशासनिक व जनप्रतिनिधियों द्वारा उपेक्षा


बांदा के इस गांव में पान की आढत लगती थी इस गांव का पान देश के कई महानगरों के साथ नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान सहित कई देशों में बेचा जाता था। इस गांव में सरकार भी पान पैदा कर बेचती थी। महाभारत काल से पुराना है।यह गांव केवल पान के किसानों का था जो प्राकृतिक आपदा, प्रशासनिक व तत्कालीन जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के कारण पूरी तरह पान व्यवसाय समाप्त हो गया है। पान के किसान बकरी, भैंस चरा, सड़क पर पूजा सामग्री बेचकर अपना जीवन काट रहे हैं किसी समय 5000 की आबादी से अधिक के गांव में वर्तमान में 600 व्यक्ति बचे हैं। बाकी पान के किसान महानगरों में अपने बच्चो वा बड़ों के उधर पोषण के लिए पलायन कर गए। यह गांव बराई मानपुर जो ब्लाक महुआ तहसील नरैनी  जिला बांदा के अंतर्गत आता है और इस गांव में केवल चैरसिया जिन्हें पूर्व में बरई कहा जाता था। उनका एक मात्र गांव इतिहास कालीन यह है। यहां के चैरसिया उत्तर प्रदेश मे मध्य प्रदेश मे वा भारत के कई राज्यों में बस गए हैं स्वरोजगार के कारण यह गांव इतिहास में राजा नल की पत्नी दमयंती के मौसा चेदि राज्य के राजा थे उनकी राजधानी सूक्तिमती नगरी थी।राजा नल राम के पूर्वज ऋतु पर्ण के समकालीन थे।उनके बाद राम यहाँ आए।महाभारतकालीन राजा शिशुपाल यहाँ के राजा थे।जो महाभारत काल से पुराना है सुक्त मती नगरी थी। मुगलकालीन सल्तनत का राज्य यही से संचालित होता था। कालिंजर और महोबा से शायद यह नगर पुराना है। ऐसा पुरातत्व खोजकर्ता माननीय श्री विजय कुमार जी अपर पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश बताते हैं केन के किनारे जल मार्ग से बड़ा व्यापारिक केंद्र भी सेवडा रहा है। आज मात्र खंडहर बचे जिन्हें देखा जा सकता है राम सोनू चैरसिया बताते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पान पौधशाला नर्सरी खोली गई थी। जिसमें इसमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों कर्मचारी पान के साथ काम करते थे और इस पान की नर्सरी से प्रतिदिन पान बिकने के लिए बाहर जाता था। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण पिछले 15 वर्ष से यह पान की नर्सरी पूरी तरह से बंद है उजड़ गई है जो कई एकड़ में थी केवल लोहे के खंभे और बोर्ड लगा है। महावीर चैरसिया बताते हैं कि इस गांव में 100 से अधिक कुआं है 500 परिवार केवल पान की खेती करता था। पान की मंडी थी हमारे गांव में लखनऊ, कानपुर, बरेली, बेंगलुरु, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई के व्यापारी आढ़तियों के माध्यम से गांव से पान खरीदते थे हमारे गांव में उच्च क्वालिटी का देसी पान पैदा होता था। जो हमारी कई सौ वर्ष पुरानी पीढ़ी ने हमें पान की बेल व जड़ें हमें दी थी। मुनीलाल चैरसिया बताते हैं कि मैं 200 देसी पान 2 में बेचता था 20 वर्ष पहले तक प्रतिवर्ष 20000 का पान बेच लेता था पूरा धंधा चैपट हो गया युवा किसान सोनू चैरसिया बताते हैं कि 100 बरेजा मेरे सामने लगे थे जिसमें लाखों पान रोज तोड़ा जाता।
कुछ पान किसान अपने बरेजे में सब्जी पैदा कर रहे हैं इन किसानों के भाई भतीजे चाचा प्रत्येक परिवार से अपने जीवन यापन के लिए पान व्यवसाय बंद हो जाने से पलायन कर गया है। इस गांव से किसानों द्वारा पैदा किया गया पान ट्रक व रेल के माध्यम से गलले की भांति बाहर बिक्री के लिए जाता था करोड़ों रुपए का व्यापार यहां के पान के किसान करते थे। हजारों लोगों को रोजगार मिलता था जिस गांव में स्वयं सरकार पान पैदा कर व्यापार करने लगे खुद समझिए कितना संपन्न गांव था। यहां के बुजुर्ग 5 किसान कहते हैं कि यदि सरकार हमें सहयोग करें तो पुनः एक बार हम पान की खेती करके दिखाना चाहते हैं जो हमें सपना लग रही है। जिसे खाकर सैकड़ों लड़ाई लड़ी गई उस पान के बीड़ा को जो वीरों को थाल में दिया जाता था। उसे बचाने के लिए संकट है पान एक औषधि है देसी पान वह पान है जो जमीन में गिर जाए और टुकड़े टुकड़े हो जाए पान का पत्ता पान की जड़ दोनों औषधि है। इस गांव के 3000 परिवार ने पान की खेती छोड़ दी है सरकार आम जनप्रतिनिधियों से अनुरोध है कि हमारी हजारों बरस पुरानी पान की खेती फिर शुरू कराने की योजना बनाएं।  सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते मौके पर जाकर जो देखा किसानों ने चर्चा की बताया वह सब आपकी सेवा में। 
 इस व्यवसाय को खत्म करने के लिए मौसम की मार के साथ सरकारी नीतियां जिम्मेदार है।बीमा का लाभ पान के किसानों को नहीं मिलता इसे उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग में सम्मिलित किया जाना चाहिए पान के किसानों को बॉस,बल्ली तार, पॉलीथिन, पानी पाइपलाइन किसान क्रेडिट कार्ड की भांति, पान किसान क्रेडिट कार्ड बनना चाहिए। एकमुश्त अनुदान पानी के लिए ट्यूबवेल, पान अनुसंधान केंद्र के अधिकारियों कर्मचारियों को लगातार इन पान किसानों के संपर्क में रहना चाहिए तभी हम शाम के किसानों को खड़ा कर सकते हैं। 


गोबर के कंडे का इतिहास


धरोहर, गोबर कंडे का होली से क्या रिश्ता है, गोबर की राख में सोना, चांदी, बिजली, धुआं से  देवता पुरखे के प्रसन्न क्यों होते हैं। गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस के मल को कहते हैं। घास भूसा खली जो कुछ चैपाया जानवर खाते हैं उनके पाचन से निकले रासायनिक प्रक्रिया को गोबर कहते हैं, ठोस या पतला होता है, रंग पीला काला होता है इसमें घास के टुकड़े अन्न के कुछ  कर्ण होते हैं सूख जाने के बाद भी है कंडे के रूप में जाना जाता है। गाय का गोबर कंडे के लिए ज्यादा अच्छा होता है, गोबर में खनिजों की मात्रा अधिक होती है इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैग्नीज, लोहा, सिल्कन, एलमुनियम, गंधक कुछ आंशिक मात्रा में विद्यमान रहते हैं। आयोडीन की मात्रा भी होती है इसीलिए गोबर को खेत में डाला जाता है जिन कारणों से मिट्टी को उपजाऊ बनाने में खेत के लिए मदद मिलती है गोवर में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो मिट्टी को जोड़ते हैं अंदर हवा देते हैं जैसे कंपोस्ट खाद केंचुआ खाद, जैविक खाद, गोबर की खाद से धूप अगरबती तैयार होती है। गोबर के कंडों को ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं जिससे खाना बनता है गोबर का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि सृष्टि के देवता भगवान गणेश, माता गौरी की पूजा की मूर्ति गोबर की होती है। हर शुभ कार में जमीन को गोबर से लीपा जाता है  जीवन का समय हो, मृत्यु का समय हो, शमशान जाने का समय हो, सुख का समय हो, दुख का समय हो हरित क्रांति के दौरान अधिक फसल लेने के उद्देश्य खेतों में आता अधिक फर्टिलाइजर डाला गया है।मिट्टी  में जैविक तत्व की कमी हो गई है खेत बीमार हो गए हैं उसकी बीमारी दूर करने के लिए केवल गोबर ही इलाज है गोबर की खेती से उपजे गेहूं, धान, दाल, दलहन का स्वाद व प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। यह अनाज के साथ दवा है गोबर के कंडे का धुआं शरीर के लिए फायदेमंद है कंडे के धुए से देवता प्रसन्न होते हैं ग्रह कलेश शांत होता है, कंडे का धुआं लकड़ी के अपेक्षा अधिक फायदेमंद है गाय के गोबर के कंडे ई-कॉमर्स मार्केटिंग के माध्यम से बेचे जा रहे हैं 12 कंडे 120 से अधिक में बिकते हैं। एक अध्ययन से सिद्ध हो गया है कि जिस घर में प्रतिदिन गाय के गोबर से नियमित धुआं किया जाता है उस घर में देवताओं का वास हो जाता है बीमारियां उस घर के पास तक नहीं आती उस घर का वातावरण शुद्ध होता है। परिवार के सभी सदस्य प्रसन्न रहते हैं, कंडे की आग दूध, घी, रोटी, दाल, सब्जी सबके के लिए फायदेमंद है कंडे की आग में में बनाया गया भजन सबसे अधिक पाचक होता है। एक अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशाला की रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्तरीय प्रयोगशाला ने 19 सितंबर 2016 को रिपोर्ट के दौरान यह पाया है, कि गोबर में तथा उसकी राख में सोना चांदी लोहा के साथ अन्य मिनरल पाए जाते हैं और यह शरीर के लिए फायदेमंद है इसलिए गोबर के कंडे की राख की रोटी आयुर्वेदिक विधि के अनुसार फायदेमंद है। गोबर से लीपा गया भवन वैदिक महत्त्व से मूल्यवान है। बालू, प्लास्टिक, सीमेंट की अपेक्षा 100 गुना अच्छा है यह वैदिक प्लास्टर है, गोबर में बिजली होती है जिसे सौर ऊर्जा प्लांट कहते हैं। लगभग कई गांव में चल रहे हैं कंडे की आंच से उठने वाले धुए से पुरखे प्रसन्न होते हैं, अतृप्त आत्मा तृप्त हो जाती हैं, मनुष्य का गोबर से तब तक रिश्ता रहता है जब तक वह जीवित रहता है अंतिम समय जिस तरह गोबर का कंडा राख जाता है उसी तरह मनुष्य भी राख हो जाता है। बचपन में हमारी अम्मा भोजन करने के बाद राख खाने के लिए दिया करती थी और कहती थी कि इससे खाया गया भोजन पच जाएगा। पीतल के बर्तन राख सेस साफ किए जाते थे, गोबर की होली शरीर के लिए इसलिए फायदेमंद है क्योंकि गोबर में वह सारे विटामिन पाए जाते हैं जिनके शरीर में पढ़ते ही रोग ठीक हो जाते हैं। होली का पूरा त्यौहार गोबर के विज्ञान पर आधारित है चाहे होलिका दहन हो, हर घर में गोबर के चंद्रमा, सूर्य बल्ले बनाए जाते हैं गोबर की होली खेली जाती है यह हमारी परंपरा रही है हमारे गांव जहां पर प्रकृति ने भोजन बनाने के लिए पूरे गांव में कंडे के बड़े-बड़े भट्टे बनाए रखें यह प्रकृति की देन है। आज पशुधन खत्म हो जा रहा है।भविष्य में शायद एक कंडे की भट्टी देखने को ना मिले सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते मैंने जो अपने गांव में देखा आपके साथ साझा कर रहा हूं। शायद युवा पीढ़ी कुछ समझे होली सबकी शुभ हो। गोबर की होली की शुरुआत वृंदावन में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन उठाकर ग्वाल बालों के साथ शुरू किए क्योंकि सबसे अधिक गाय माता वहीं पर थी। हमारे बुंदेलखंड में दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा होती है, गाय के गोबर से लोक देवता बनाए जाते हैं जिन्हें बासी भोजन कराया जाता है कई दिनों तक उस गोबर को पूजा के बाद खेतों में डाला जाता इससे धन, धान की वृद्धि होती है। गोबर के महत्व पर चित्रकूट कामदगिरि के प्रमुख महंत मदन गोपाल दास जी महाराज कहते हैं की हर व्यक्ति को एक गाय पाली चाहिए, गाय के गोबर से बने कंडे से रोटी बनानी चाहिए प्राकृतिक पर्यावरण दृष्टि से, गाय के गोबर की बनी रोटी से लकड़ी बचेगी पेड़ हम नहीं बना सकते पेड़ जल के लिए आवश्यक है, पर्यावरण के लिए आवश्यक है। होली पर संकल्प लें कि अगले वर्ष हम अपने गाय के गोबर से बने कंडो से दहन कर होली खेलेंगे। महोबा के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री मनोज तिवारी जी कहते हैं कि गांव की खेती किसानी मे गोबर का बहुत महत्व है गोबर में प्राकृतिक घास फूस के गुण हैं औषधियां है किसान का मित्र है।
आयुर्वेद के जानकार प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ सचिन उपाध्याय कहते हैं कि गाय के गोबर में वे तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के लिए उपयोगी है। गोबर में, कंडे में, धुए मे, आग में, राख में, अलग अलग औषधि गुण है। गोबर से स्नान करने पर निरोगी जीवन के लिए बड़ा महत्व है, गोबर एक रहस्य है जिसकी अनुसंधान की बड़ी आवश्यकता है खेती के लिए , शारीरिक बीमारी के लिए, भोजन बनाने के लिए, हमारे पूर्वज  हजारों वर्षों से  गोबर के कंडे की आग पर रोटी बना रहे हैं,  वे हम से अधिक जानकार थे।


Sunday, September 22, 2019

जिसके पास लाइसेंस उसके नाम वाहन 

केंद्र सरकार ने मोटर वाहन अधिनियम लागू क्या किया देश में गजब की हलचल मच गई। इसमें यातायात सुरक्षा के साथ-साथ यातायात स्वच्छता और स्वस्थता दिखाई पड़ी। कानून के मुताबिक नियम, कायदों को तोड़ने पर सक्त कार्रवाई और भारी जुर्माने का कड़ा प्रावधान है।  यह पहले भी कम सीमा में थे, किंतु ना जाने क्यों अमलीजामा पहनाने में ना-नूकर की जा रही थी। इसके लिए सरकारों को दोष दे या हुक्मरानों को या अफसरों को किवां अपने आप को?


खैर! दोषारोपण के चक्कर में अब अपना आज ना गंवाए। जो बीत गया सो बीत गया अब आगे की सुध ले। लापरवाही से नियमों को तोड़कर हमने आज तक जितनी जाने गवाई है वह वापस तो नहीं आ सकती लेकिन सीख में आगे सुरक्षा, सतर्कता, सजगता, नियमब्धता, कर्तव्यता और दृढ़ता से नियमों का पालन करते हुए बे मौतों से बचा जा सकता है।  दुर्भाग्य जनक स्थिति ये है कि जितने लोग बीमारियों से जान नहीं गवाते उससे कहीं अधिक वाहनों की दुर्घटना से असमयक काल के गाल में समा जाते हैं। हादसों में सड़कों का भी बड़ा योगदान है, जिसके के लिए व्यवस्थाएं दोषी नहीं अपितु जुर्मी है। बावजूद सबक लेने के बेखौफ आज भी बैगर या फर्जी लाइसेंस, पंजीयन, परमिट, इंश्योरेंस और नाबालिक वाहनों की सवारी केरोसिन से गढ्डों की सड़कों पर बेधड़क कर रहे हैं। इनमें बाईकर्स की तेजी तो ऐसी है जैसे लाखों रूपए घंटे कमाते हो वैसे जान हथेली पर रखकर और लेकर कर्कश ध्वनि से कोहराम मचाते रहते हैं। 


ऊपर से नौसिखिया, नियमों से बेखबर ऑटो, टैक्सी और ट्रैक्टर चालक राह चलतों की इस कदर आफत खड़ी कर देते हैं कि वाहनों से चलना तो छोड़िए कदमताल भी अवरूद्ध कर देते हैं। बरबस फिलवक्त सड़को पर सरपट दौड़ रहे वाहनों के मुकाबले लाइसेंस, बीमा, परमिट और पंजीयन कमतर ही है। यहां यह भी समझ से परे है कि लाइसेंस ना हो तब भी बड़ी आसानी से वाहन खरीदा जा सकता है। इस पर रोक हर हाल में लगना चाहिए। जिसके पास लाइसेंस उसके नाम वाहन का प्रचलन हो। उसके लिए जिले में मौजूद एकमात्र परिवहन कार्यालय के भरोसे सबकी लाइसेंस बनने और वाहनों के पंजीयन में काफी समय बीत जाएगा। लिहाजा कमशकम ब्लाक स्तर पर शिविर आदि लगाकर इसकी पुक्ता व्यवस्था बनाई जाए। 


दरअसल, इस नये मोटर वाहन अधिनियम को  अपने राज्यों में वोट बैंकों के खातिर जमीन पर लाने सरकारें कतरा रही है, इनमें भाजपानित प्रांत भी शामिल हैं। हां! यह कानून कड़ा जरूर है। इसे भारत जैसे देश में मनवाना दांतों तले चने चबाने के समान है, पर जीवन बचाने के वास्ते इसे चबाना भी पड़ेगा और हजम भी करना होगा। तभी हमारी सेहत सलामत रहेगी। अगर हम कानून के फंडे और पुलिस के डंडे के बिना नियमों का पालन कर लिए होते तो आज इस कानून की जरूरत ही ना पड़ती। कुछ सोच भी ऐसी अख्तियार हो चुकी है कि पुलिस को दिखाने मात्र के लिए वाहनों के कागजात और सुरक्षा पात्र होते हैं। यहां यह ना भूले की पुलिस तो जैसे तैसे छोड़ देगी अलबत्ता यमराज कैसे छोड़ेंगे? क्योंकि नजर हटी, दुर्घटना घटी जगजाहिर है। इसलिए चाकचौबंद रहने में सब की भलाई है।


अंतोगत्वा, मोटर वाहन अधिनियम का प्रभाव यह पड़ा  कि देश में लाइसेंस, बीमा, प्रदूषण प्रमाण पत्र, परमिट, पंजीयन और हेलमेट की बिक्री में  वृद्धि तथा दुर्घटनाएं भी कम हुई। असरकारक डिजिटल दस्तावेजों को मान्य करते हुए आवश्यक कागजात, सुरक्षात्मक सामग्री समेत जो भी कमी हो उसे मौके पर ही पूरी करवाने की पहल हो। पुनश्चय, प्रावधानों के नाम पर माकुल सुविधाएं, मजबूत सड़क देकर जितने की गाड़ी नहीं उससे अधिक का जुर्माना वसूला मुनासिब नहीं। हालातों के हिसाब से कार्यवाही हो तो बने बात। यथा देश में जबरदस्ती के जगह जबरदस्त तरीके से नियमों का पालन होने में अभी और समय लगेगा।


हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व विचारक