Monday, November 18, 2019

ठहाका

गाँव की एक नई नवेली दुल्हन अपने पति से अंग्रेजी भाषा सीख रही थी, पर वह अभी 'सी' अक्षर पर ही अटकी हुई थी क्योंकि उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि 'सी' को कभी 'च' कभी 'क' तो कभी 'स' क्यों बोला जाता है।
एक दिन वह अपने पति से बोली आपको पता है चलचत्ता के चुली भी च्रिचेट खेलते हैं।  उसके पति ने यह सुनकर समझाया कि यहाँ सी को 'च' से नहीं 'क' से बोलते हैं। ऐसे कहते हैं कलकत्ता के कुली भी क्रिकेट खेलते हैं। पत्नी ने अपने पति से पूछा वह कुन्नीलाल कोपड़ा तो फायरमैन है न? तो पति ने फिर समझाया यहाँ सी को 'च' बोलते हैं चुन्नीलाल चोपड़ा तो चेयरमैन है न। 
थोड़ी देर बाद पत्नी बोली आपका चोट चैप दोनों चाॅटन के हैं। पति अब जरा तेज आवाज में बोला तुम समझती क्यों नहीं यहाँ 'सी' को 'क' बोलते हैं, कोट, कैप, दोनों काॅटन के है।
पत्नी फिर बोली कंडीगढ़ में कंबल किनारे कर्क है। पति को गुस्सा आ गया, वह बोला बेवकूफ यहाँ सी को च बोलते हैं चण्डीगढ़ में चम्बल किनारे चर्च है। पत्नी सहमते हुए धीरे से बोली चरेन्ट लगने से चंडक्टर और च्लर्क मर गए।
पति ने अपना सिर पीट लिया और बोला ये सारी बातें क से बोली जायेंगी- करन्ट लगने से कंडक्टर और क्लर्क मर गए।
पत्नी धीरे से बोली अजी तुम गुस्सा क्यों कर रहे हो? देखो-देखो केन्टीमीटर का केल और कीमेन्ट कितना मजबूत है।
पति जोर से चीखा अब तुम बोलना बन्द करो वरना मैं पागल हो जाऊँगा यहाँ 'सी' को 'स' बोलते हैं सेन्टीमीटर का सेल और सीमेन्ट कितना मजबूत है। 
पत्नी बोली इस 'सी' से मेरा सिरदर्द करने लग गया है अब मैं चेक खाकर चाॅफी के साथ चैप्सूल खाकर सो जाऊँगी।
जाते-जाते पति बड़बड़ाता गया तुम केक खाओ पर मेरा सिर न खाओ तुम काॅफी पिओ पर मेरा खून न पिओ तुम कैप्सूल खाओ पर मेरा चैन न खाओ। 


अपने शरीर की क्रियाएँ

क्या आप जानते हैं कि हमारी आँखों की माँस-पेशियाँ एक दिन में कितनी गति करती हैं। या फिर लार ग्रन्थियों से रोजाना कितनी बार लार निकलती है। आमतौर पर लोगों को अपने शरीर की ऊपरी बनावट के बारे में पता होता है, परन्तु उसकी सूक्ष्म या फिर उसकी अंदरूनी बनावट की जानकारी नहीं होती है। तो आइए जाने मनुष्य के शरीर से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी......
हमारी लार ग्रन्थियों से 1.5 लीटर लार प्रतिदिन निकलती है।
मानव शरीर का कवच त्वचा है। अपने जीवन काल में हर व्यक्ति लगभग 18 किलोग्राम त्वचा धारण करता है।
उंगलियों के नाखून -0.05 से. मीटर एक सप्ताह में बढ़ते हैं।
हमारा मस्तिष्क विभिन्न प्रकार की दस हजार गंधो का भंडारण पहचान और स्मरण रख सकता है।
मानव शरीर की सबसे लम्बी हड्डी फीमर और सबसे छोटी हड्डी स्टिप है, जो कान की हड्डी होती है।
पुरुष या स्त्री के शरीर पर बालों की संख्या औसतन पाँच मिलियन होती है। 
हमारे गुर्दे प्रतिमिनट 100 मि.ली. रक्त छानते हैं। इस प्रकार एक दिन में पूरे शरीर का रक्त बीस बार छाना जाता है।
छीक का वेग सौ मील प्रति घंटा तक होती है। उसके जोर के कारण शरीर को गहरा धक्का लगता है। 
फेफड़े में कुल तीन लाख मिलियन रक्त कोशिकाएं होती हैं। जो फैलाने पर चैबीस हजार किलोमीटर तक लम्बी हो सकती हैं। 


जीवन और संगीत 

साहित्य संगीत कला विहीनः,
साक्षात् पशुः पुच्छ विषाणहीनः।
जीवन से तात्पर्य मानव जीवन से है। पशु-पक्षी जीवन से नहीं। संगीत से तात्पर्य केवल शास्त्रीय-संगीत ही नहीं, बल्कि भाव संगीत, चित्रपपट संगीत, लोक संगीत आदि से भी है। खास तौर से भारतीय जीवन के पग-पग में संगीत बना रहता है। जन्म से मृत्यु तक यह हमारे साथ बना रहता है। जिस क्षण बालक इस संसार से प्रथम परिचय प्राप्त करता है तो वह संगीत द्वारा (रोने के रूप में) अपना आभार प्रकट करता है और जिस समय मनुष्य इस संसार से विदा लेता है, संगीत के द्वारा उसे पावन राम-नाम की महिमा बताई जाती है। इतना ही नहीं, मानव के इतिहास में जब भाषा का जन्म तक नहीं हुआ था, उस समय आपस मे भावो का आदान-प्रदान संगीत द्वारा ही सम्भव था मैक्समूलर ने ठीक ही कहा है कि संगीत का जन्म भाषा से कही पूर्व हुआ है यहाँ पर संगीत का व्यापक अर्थ लिया गया है
भारतीय जीवन मे 16 संस्कार माने गये हैं, जैसे नामकरण, कर्ण-छेदन, मुन्डन, विद्यारम्भ, यज्ञोपवीत (जनेऊ), विवाह आदि। इनमें से प्रत्येक का प्रारम्भ और अन्त संगीत से होता है। ऐसा कोई त्यौहार नहीं है जहाँ संगीत न हो, बल्कि संगीत के बिना त्यौहार अधूरा रह जाता है। छोटा बड़ा कोई भी उत्सव मनाया जाए, उसमें संगीत का रहना आवश्यक होता है, चाहे संगीत प्रार्थना तक ही क्यों न सीमित हो दिन भर के कठोर परिश्रम के बाद सायंकाल वंशी की एक छोटी सी धुन ग्रामीणांे का सारा श्रम हर लेती है जब फसल तैयार होती है तो उनका हर्षोल्लास होली के रूप मे प्रकट होता है। वे जिस खुशी और आत्मीयता से गले मिलते, रग छिड़काने और अबीर-बुक्का लगाते हैं, देखते ही बनता है। किन्तु उनके हर्ष की चरम सीमा उस समय पहुँचती है जब वे गांव के कोने-कोने में ढोलक लेकर अपनी - अपनी धुन में मस्त रहते हैं। मानों पूरे वर्ष की सारी थकावट निकाल रहे हों।
संगीत केवल विनोद की वस्तु नहीं बल्कि ऐसी चिर स्थाई आनंद है जिसमें हमें आत्मसुख मिलता है। इसलिए संगीत भक्ति का अभिन्न अंग रहा है। जितने भी अच्छे भक्त हुये हैं, सभी संगीत के ज्ञाता और साधक थे। भारत का कौन ऐसा व्यक्ति होगा जिसने सूर, तुलसी, मीरा आदि का नाम न सुना हो उनके प्रत्येक पद में भाव है कि मनुष्य आनन्द विभोर हो जाता है। स्व. डा. राजेन्द्र प्रसाद के शब्दों में हमारे साधु-संतों की संगीत साधना का ही यह प्रभाव था कि कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, तुकाराम, नरसी मेहता ऐसी कृतियाँ कर गये लो 'हमारे और संसार के साहित्य में सर्वदा ही अपना विशिष्ट स्थान रखेंगी।'


ठग दोस्त

करीम एक नेक इनसान था, वह रहीम को अपना दोस्त समझता था। एक दिन करीम ने देखा कि रहीम बड़ा परेशान दिख रहा है। करीम ने रहीम से उसकी परेशानी का कारण पूछा। रहीम ने कहा मेरे दोस्त मुझे दो सौ रुपयों की सख्त जरूरत है। रहीम को पता था कि करीम आज ही अपने खेत की सब्जी बेच कर दो सौ रुपया लाया है। करीम उसकी बात सुनकर बोला, दोस्त इसमें परेशानी की क्या बात है मेरे पास दो सौ रुपये है और अभी मुझे उनकी कोई आवश्यकता नहीं मैं रुपये तुम्हें दे देता हूँ जब मुझे आवश्यकता होगी तब लौटा देना। इस घटना को कई माह गुजर गये। अब करीम को फसल बोने के लिए बीज लाने थे, उसने रहीम से कहा, दोस्त मुझे बीज खरीदने के लिए पैसों की जरूरत है मेरे दो सौ रुपये मुझे लौटा दो। पैसों की बात सुनकर रहीम खामोश हो गया और बोला कैसे पैसे? मेरे पास तो कोई पैसे नहीं हैं, फिर मैंने तुम से पैसे कब लिए थे कोई गवाह लाओ। ये सुनकर करीम को बड़ा कष्ट हुआ उसने कहा हाँ! दोस्त गवाह है व बड़ा पीपल का पेड़, जिसके पास तुम मुझे परेशान मिले थे और मैंने तुम्हे रुपये दिये थे। इस पर रहीम हँसकर बोला मूर्ख, पेड़ भी कहीं गवाही देता है? इस पर करीम चिन्तित हो गया और उसने कहा अच्छा तो फिर काजी साहब के पास चलो, फैसला वहीं करेंगे। वह फौरन काजी साहब के पास जाने को तैयार हो गया। काजी साहब के पास पहुँचकर करीम पूरी घटना उनसे बयान कर दी, काजी साहब उसकी बात गौर से सुनते रहे फिर रहीम से बोले, भाई तुम्हे क्या कहना है, रहीम ने पूरी घटना से इनकार करते हुए, पैसों के लेन-देन से इनकार कर दिया। काजी साहब करीम से बोले तुम्हारे पक्ष में कोई गवाह है, करीम जल्दी से बोला जी हाँ गाँव के किनारे बड़ा पीपल का पेड़। इस पर काजी साहब ने कहा, ठीक है तुम अपने गवाह को लेकर आओ तब तक रहीम मेरे पास बैठा रहेगा। करीम चला गया और रहीम ये सोच कर कि कहीं पेड़ भी गवाही देने आ सकता है निश्चित बैठा रहा। कुछ देर बाद काजी साहब ने रहीम से पूछा क्या करीम पीपल के पेड़ तक पहुँच गया होगा? रहीम ने कहा अभी नहीं। कुछ देर बाद उन्होंने फिर अपना सवाल दोहराया इस पर रहीम ने कहा हाँ! अब पहुँच गया होगा। काजी साहब खामोश हो गये। कुछ देर बाद करीम उदास अकेला वापस आया। उसे उदास देखकर काजी साहब बोले, पीपल का पेड़ तो गवाही देकर चला गया तुम क्यों उदास हो, और ये कहकर काजी साहब करीम के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बोले, रहीम मेरा फैसला है कि करीम का दो सौ रुपया लौटा दो। फैसला सुन कर रहीम बोला काजी साहब पेड़ कहाँ आया, मैं तो यहीं बैठा हूँ मैंने नहीं देखा। काजी साहब हँसकर बोले, मूर्ख अगर करीम सच न बोल रहा होता तो तुम्हे पीपल के पेड़ की यहाँ से दूरी कैसे पता चलती। ये जवाब सुनकर रहीम को अपनी मूर्खता का आभास हुआ और करीम के पैसे वापस करने पड़े।