Monday, November 18, 2019

जीवन और संगीत 

साहित्य संगीत कला विहीनः,
साक्षात् पशुः पुच्छ विषाणहीनः।
जीवन से तात्पर्य मानव जीवन से है। पशु-पक्षी जीवन से नहीं। संगीत से तात्पर्य केवल शास्त्रीय-संगीत ही नहीं, बल्कि भाव संगीत, चित्रपपट संगीत, लोक संगीत आदि से भी है। खास तौर से भारतीय जीवन के पग-पग में संगीत बना रहता है। जन्म से मृत्यु तक यह हमारे साथ बना रहता है। जिस क्षण बालक इस संसार से प्रथम परिचय प्राप्त करता है तो वह संगीत द्वारा (रोने के रूप में) अपना आभार प्रकट करता है और जिस समय मनुष्य इस संसार से विदा लेता है, संगीत के द्वारा उसे पावन राम-नाम की महिमा बताई जाती है। इतना ही नहीं, मानव के इतिहास में जब भाषा का जन्म तक नहीं हुआ था, उस समय आपस मे भावो का आदान-प्रदान संगीत द्वारा ही सम्भव था मैक्समूलर ने ठीक ही कहा है कि संगीत का जन्म भाषा से कही पूर्व हुआ है यहाँ पर संगीत का व्यापक अर्थ लिया गया है
भारतीय जीवन मे 16 संस्कार माने गये हैं, जैसे नामकरण, कर्ण-छेदन, मुन्डन, विद्यारम्भ, यज्ञोपवीत (जनेऊ), विवाह आदि। इनमें से प्रत्येक का प्रारम्भ और अन्त संगीत से होता है। ऐसा कोई त्यौहार नहीं है जहाँ संगीत न हो, बल्कि संगीत के बिना त्यौहार अधूरा रह जाता है। छोटा बड़ा कोई भी उत्सव मनाया जाए, उसमें संगीत का रहना आवश्यक होता है, चाहे संगीत प्रार्थना तक ही क्यों न सीमित हो दिन भर के कठोर परिश्रम के बाद सायंकाल वंशी की एक छोटी सी धुन ग्रामीणांे का सारा श्रम हर लेती है जब फसल तैयार होती है तो उनका हर्षोल्लास होली के रूप मे प्रकट होता है। वे जिस खुशी और आत्मीयता से गले मिलते, रग छिड़काने और अबीर-बुक्का लगाते हैं, देखते ही बनता है। किन्तु उनके हर्ष की चरम सीमा उस समय पहुँचती है जब वे गांव के कोने-कोने में ढोलक लेकर अपनी - अपनी धुन में मस्त रहते हैं। मानों पूरे वर्ष की सारी थकावट निकाल रहे हों।
संगीत केवल विनोद की वस्तु नहीं बल्कि ऐसी चिर स्थाई आनंद है जिसमें हमें आत्मसुख मिलता है। इसलिए संगीत भक्ति का अभिन्न अंग रहा है। जितने भी अच्छे भक्त हुये हैं, सभी संगीत के ज्ञाता और साधक थे। भारत का कौन ऐसा व्यक्ति होगा जिसने सूर, तुलसी, मीरा आदि का नाम न सुना हो उनके प्रत्येक पद में भाव है कि मनुष्य आनन्द विभोर हो जाता है। स्व. डा. राजेन्द्र प्रसाद के शब्दों में हमारे साधु-संतों की संगीत साधना का ही यह प्रभाव था कि कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, तुकाराम, नरसी मेहता ऐसी कृतियाँ कर गये लो 'हमारे और संसार के साहित्य में सर्वदा ही अपना विशिष्ट स्थान रखेंगी।'


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