Sunday, November 24, 2019

कानपुर का खतरनाक शायर

 


तुम्हारे हुस्न के मोतीझील में फंसकर
तेरे इश्क में परेड किये जाता है😜
दिल धड़कता था कभी घंटाघर सा
अब यादों का भैरवघाट बना जाता है😜


तुम लगती हो जैसे गिलौरी चौरसिया की 
यहाँ ठग्गू के लड्डू सा मुंह हुआ जाता है🤣


तेरी सूरत के इस्काँन मंदिर को देख कर
मेरा मन भी ब्लूवर्ड सा मचल जाता है🤣


चहकती हो तुम मालरोड की शाम सी
मेरा प्यार यहाँ कबाड़ी मार्केट सा हुआ जाता हैं😝


तेरी पतली कमर है जैसे गलियाँ चमनगंज की
उस पर मेरा दिल अफीमकोठी के जाम सा रुक जाता है😂


बदन है खूबसूरत तुम्हारा फूलबाग सा   
और ये आशिक नौबस्ता की धूल में नहाये जाता है।   


 नहीं खुलती सोमवार को जब गुमटी
तेरी ग़ुस्से से मेरा मन बर्रा जाता है। 


हर शाम जब होता है दर्शनपुर्वा तेरा 
मन मेरा 80 फ़िट रोड जितना हो जाता है। 


ओर जब देख लेता है तेरा बाप कर्नल गंज मुझे 
लाठी से उसकी मेरा कल्यानपुर हो जाता है!



मेरे कनपुरिया दोस्तों बस तुम्हारे लिये लिखा है,, हो सके तो आगे भी भेज देना🤩🤩🤩🤩🤩🤩


Monday, November 18, 2019

मयखाना

वो  मयखाना  था  या  दवाखाना,

मैं  कुछ  भी  समझ  ही  ना पाया।

 

पता नही क्या था मय के प्याले में,

मैं  अपना  हर  गम  भुला  आया।।

 

आँखो के सामने रंगीनियां छाई थी।

हर परेशानी को वहाँ मौत आई थी।।

 

एक  संगीत  होठो  पर  खुद  ही  आया।

दरिया दर्द का , आँखो से छलक आया।।

 

हर एक वहाँ सच्चाई में नहाया हुआ था।

अपने झूठ को सबने दफनाया हुआ था।।

 

सभी इबादत के दरो पर मैं घबराया था।

मयखाने में दर्द मेरा मुझसे घबराया था।।

 

मयखाने  में  दुःखो  से  सकून  मैंने पाया था।

उतरा नशा,दर्द फिर चेहरे पर उतर आया था।।

 

कुछ ऐसा हो कि नशे में जीवन निकल जाए।

शायद  तभी  सभी  दुःखो को मौत आ जाए।।

 

 

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

लहसुन और प्याज

एक बहुत पुरानी कहावत है कि आप जैसा खाते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। अब तो साइंस में भी  इस बात के लेकर खोज हो रही है कि कितना और क्या खाना हमारी सेहत को किस तरह प्र्रभावित करता है। चिकित्सा वैज्ञानियों के अनुसार खाने वाली चीजों और दवा में कोई साफ विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती है। कोई भी खाने की चीज अच्छी दवा हो सकती है।
खाने की कई चीजों में ऐसे रसायन होते हैं जो शरीर में जज्ब हो जाने के बाद दवा जैसा काम करते हैं। वीजसन इंस्टीट्यूट इजरायल के अनुसार लहसुन का गुण कभी भी नष्ट नहीं होता, फिर भी इसका कच्चा इस्तेमाल किया जाए तो ज्यादा लाभदायक है। लहसुन विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं को रोकथाम तथा उन्हें नष्ट करने में सहायक होता है। यदि इनके रस का सेवन प्रत्येक 3 घण्टे के पश्चात किया जाए तो टाइफाइड की गंभीर अवस्था को किसी अन्य जीवाणुनाशक औषधिक की अपेक्षा नियंत्रित किया जा सकता है।
प्याज के रासायनिक तत्व श्वास रोग तथा जनन में भी लाभप्रद साबित हुए हैं। प्याज में अनेक अद्भुत गंधक यौगिक होते जो कभी रासायनिक संगठन से बनाये गये थे। अनुसंधानों से यह भी पता चलता है कि प्याज और लहसुन के इस्तेमाल से जानवरों में कैंसर रोग की रोकथाम की जा सकती है। वे व्यक्ति जो खाली पेट रोज सुबह प्याज खाते हैं, उन्हें न किसी प्रकार की पाचन समस्यायें ही होती हैं और दिन भर ताजगी महसूस करते हैं। 


भारतीय नारी और दहेज

दहेज प्रथा का जब से भारतीय समाज में प्रचलन हुआ है, वह तभी से भारतीय नारी के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ है। प्राचीनकाल में विवाह के अवसर पर कन्या के माता पिता वर-पक्ष को दहेज के रूप में गहने, कपड़े और दैनिक उपयोग की अनेक वस्तुएँ देते थे। कन्या की सखी - सहेलियाँ तथा परिवार के संबंधियों की ओर से भेंट स्वरूप दी जाने वाली वस्तुएँ भी दहेज में दिए जाने का प्रचलन था।
प्राचीनकाल में दहेज के लिए कोई जोर-जबरदस्ती नहीं थी। परंतु समय में परिवर्तन हुआ, उसी के अनुरूप दहेज के विवाह की अनिवार्य शर्त बन गया। गुणवती कन्याएँ भी दहेज की माँग पूरी न होने के कारण अविवाहित रहने लगीं। कन्याओं को परिवार पर बोझ समझा जाने लगा। इतना ही नहीं, कन्या उत्पन्न होने पर परिवार में उदासी छाने लगी। यहाँ तक कि देश के कई क्षेत्रों में कन्यावध का प्रचलन हो गया। अब तो दहेज की विभीषिका से बचने के लिए गर्भ में ही यह पता कर लिया जाने लगा कि उत्पन्न होने वाली संतान लड़का है या लड़की। लड़की होने की संभावना व्यक्त होने पर गर्भपात करा दिया जाता है। इस प्रकार 'भ्रूण हत्या' की जाने लगी।
प्राचीनकाल में माता-पिता का प्रेम और प्रसन्नता का प्रतीक दहेज प्रथा आधुनिक काल तक आते-आते माता-पिता के साथ-साथ भारतीय नारी के लिए भी अभिशाप बन गया। नारी का मूल्यांकन दहेज पर किया जाने लगा। दहेज कम लाने के कारण पतिगृह में नारी को अनेक अपमानजनक स्थितियों से दो-चार होना पड़ रहा है। उन्हें अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक यातनाएँ दी जाने लगी हैं। इससे भारतीय नारी का जीवन नरक से भी गया - गुजरा हो गया है।
प्रायः प्रतिदिन समाचार पत्रों में दहेज के कारण किसी - न किसी महिला के जलने मरने का समाचार मिलता है।
आज समाज में नारी की श्रेष्ठता और गुणों की अपेक्षा उसके माता-पिता के धन से आंकी जाने लगी है। एक ओर तो भारतीय नारी शारीरिक रूप से वैसे ही निर्बल होती हैं, दूसरे भारतीय समाज में पति को परमेश्वर माना जाता है। यही कारण है कि पति उसे जैसे चाहे प्रताड़ित कर लेता है। भारतीय नारी बिना विरोध किए सब कुछ सहन करती जाती है।
भारतीय नारी की तथा समाज की दहेज जैसी नारी - विरोधी तथा समाज को कलंकित करने वाली कुप्रथा को जन आंदोलन चलाकर, उसके विकृत रूप को सभी के सामने प्रकट करना चाहिए। नारियों को चाहिए कि दहेज लोलुपों से विवाह करने से इन्कार करे। लड़कों की माता भी भारतीय नारी ही हैं। अतः उन्हें चाहिए कि अपने पुत्र के विवाह एक दहेज लेने और पुत्री के विवाह पर दहेज देने का तीव्र विरोध करें। दहेज से छुटकारा पाने के लिए भारतीय नारी को तथा सामाजिक मर्यादा के खोल से बाहर निकले। हमें यह आशा करनी होगी कि राजा राम - मोहन राय , ईश्वर चंद्र विद्या सागर जैसे समाज सुधारक आएँगे और दहेज प्रथा की समाप्ति में योग देंगे। हमें स्वयं आगे आना होगा। इस सामाजिक कोढ़ को समाप्त करने की शुरुआत स्वयं करनी होगी।