Saturday, May 30, 2020

टिड्डी दलों से बचाव को लेकर तैयारियां तेज, सीडीओ ने विभागीय अधिकारियों व कृषि वैज्ञानिकों के साथ बैठककर तय की रणनीति




जागरूक रहें जिले के किसान, अपनाएं बचाव के तरीके-सीडीओ शशांक त्रिपाठी

टिड््डी दलों के सम्भावित हमले को लेकर जिला प्रशासन द्वारा तैयारियां तेज कर दी गईं हैं। शनिवार को मुख्य विकास अधिकारी शशांक त्रिपाठी ने विकास भवन सभागार में कृषि, गन्ना, उद्यान, भूमि संरक्षण विभाग के अधिकारियों, कृषि वैज्ञानिकों तथा चीनी मिलों के महाप्रबन्धकों के साथ बैठक कर टिड्डी दलों से बचाव की रणनीति पर चर्चा की तथा सभी सम्बन्धित अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे अपने-अपने विभाग के माध्यम से किसानों को जागरूक करें तथा टिड्डियों के हमले से निपटने के लिए हर स्तर पर तैयारी कर लें।

          मुख्य विकास अधिकारी श्री त्रिपाठी ने बताया कि प्रदेश से लगे सीमावर्ती राज्यों जैसे राजस्थान ,मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के झांसी आदि जनपद मंे वर्तमान समय मे फसलों मंे नुकसान पहंचाने वाला मुख्य कीट टिड्डी दल का प्रकोप काफी फैल रहा है, इसको देखते हुए हमें भी सर्तक रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में किसानों के खेतों में बोई गई जायद की प्रमुख फसलों जैसे-मूंग, उर्द एवं हरी सब्जियों तथा गन्ना आदि फसलों की सुरक्षा के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता है।

          सीडीओ श्री त्रिपाठी ने जनपद के किसानों से अपील करते हुए कहा कि टिड्डी दलों से बचाव को लेकर किसान भाइयों को बेहद सतर्क और जागरूक रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा किसान भाई टिड्डी दल को भगाने के लिये थालियां, ढोल, नगाडे़ अन्य माध्यमों से ध्वनि करना चाहिए, जिसकी आवाज सुनकर खेत से टिड्डीयां भाग जायें।

जिला कृषि अधिकारी जेपी यादव ने टिड्डियों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि टिड्डी (स्वबनेज) या टिड्डा (ळतंेेीवचचमत) एक्रिडीडी परिवार के आॅर्थोप्टेरा गण का कीट है तथा सबसे विनाशकारी कीट है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस कीट की उड़ान हजारों मील तक पाई जाती है। टिड्डियों को उनके चमकीले पीले रंग और पिछले लम्बे पैरों से पहचाना जा सकता है। टिड्डी जब अकेली होती हैं तो उतनी खतरनाक नहीं होती है लेकिन झुण्ड मंे रहने पर ये बहुत खतरनाक और आक्रामक हो जाती हैं तथा फसलों का एक बार मंे सफाया कर देती हैं। दूर से देखने पर ऐसा लगता है कि, फसल पर किसी ने एक बड़ी सी चादर बिछा दी हो । टिड्डीयाॅ फसलों के फूल, फल, पत्ते, तने, बीज और पेड़ की छाल सब कुछ खा जाती हैं। एक टिड्डी अपने वजन के बराबर खाना खाती है। टिड्डीयों का जीवन काल कम से कम 40 से 85 दिनों का होता है।

        बैठक में उपनिदेशक कृषि डा0 मुकुल तिवारी, जिला कृषि अधिकारी जेपी यादव, जिला गन्ना अधिकारी ओपी सिंह, जिला भूमि संरक्ष्ण अधिकारी सदानन्द चाौधरी, कृषि वैज्ञानकि मिथलेश झा, चीनी मिलों के जीएम तथा उद्यान विभाग के अधिकारी मौजूद रहे।

टिड्डियों को भगाने एवं नियंत्रित करने के लिये अपनाएं ये तरीके-जिला कृषि अधिकारी

जिला कृषि अधिकारी ने किसानों को सुझाव देते हुए बताया कि टिड्डी दल को भगाने के लिये थालियां, ढोल, नगाडे़ अन्य माध्यमों से ध्वनि करना चाहियंे जिसकी आवाज सुनकर खेत से टिड्डियां भाग जायें। इसके अलावा रासायनिक कीटनाशक मैलाथियाॅन 5 प्रतिशत धूल की 25 किग्रा0 मात्रा का बुरकाव या क्विनालफाॅस 25 प्रति0 ई0सी की 1.5 ली0 मात्रा को 500 से 600 ली0 पानी मे घोलकर प्रति हक्टेयर की दर से फसल पर छिड़काव करें। टिड्डी दल सुबह 10 बजे के बाद अपना डेरा बदलता है। इस लिये इसे आगे बढ़ने से रोकने के लिय लैम्डा सायहेलोथ्रिन 5 प्रति0 ई0सी0 की 01 ली0 मात्रा या क्लोरोपाइरीफाॅस 20 प्रति0 ई0सी0 की 1 ली0 मात्रा को 500 से 600 ली0 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर सुबह 10 बजे से पूर्व छिड़काव करें। उन्होने यह भी बताया कि टिड्डियों को भगाने में नीम  का तेल भी बहुत किफायती तथा कारगर है। इसके लिए नीम के तेल की 40 एम0एल0 मात्रा को 10 ग्राम कपडे़ धोने के पाउडर के साथ मिलाकर प्रति टंकी पानी में डालकर छिड़काव करने से टिड्डी फसलों को नही खा पाती है। उन्होने यह भी बताया कि फसल की कटाई के बाद मई-जून में खेत की गहरी जुताई करने से सूर्य की तेज किरणों से भूमि में पड़े टिड्डीयों एवं अन्य कीटों के अण्डे व प्यूपा को नष्ट किया जा सकता हैं। बलुई मिट्टी टिड्डी के प्रजनन एवं अण्डे देने हेतु सर्वाधिक अनुकूल होता है। अतः टिड्डी दल के आक्रमण से सम्भावित ऐसी मिट्टी वाले क्षेत्रों मे जुताई करवा दें एवं जल भराव कर दें। ऐसी दशा मे टिड्डी के विकास की सम्भावना कम हो जाती है।

कृषि विभाग में कन्ट्रोल रूम स्थापित, काॅल करके कृषक ले सकते हैं मदद

मुख्य विकास अधिकारी नेे बताया है कि टिड्डी दलों के सम्भावित हमले से बचाव एवं मदद हेतु जनपद स्तर पर कन्ट्रोल रूम स्थापित कर दिया गया है। कृषक भाई टिड्डी दल के प्रकोप से सम्ब्ंाधित किसी भी प्रकार की सहायता हेतु कन्ट्रोल रूम के नम्बर 05262-233516 एवं मो0 नं0 9936898070 पर कार्यायल दिवस मे प्रातः 10 बजे से सायं 5 बजे तक सम्पर्क कर सकते हैं।  वहीं चीनी मिलों तथा जिला गन्ना अधिकारी कार्यालय की ओर से टिड्डी दलों से बचाव के सम्बन्ध में पम्पलेट भी बांटे जा रहे हैं जिसके माध्यम से किसानबन्धु जानकारी हासिल कर बचाव कर सकते हैं।


 

 



 

""आखिर तंबाकू निषेध पूर्ण रूप से कब होगा 

जैसा कि हम जानते हैं कि पिछले वर्ष विश्व तंबाकू निषेध दिवस का थीम"तंबाकू और फेफड़ों का स्वास्थ्य"को लेकर था l और मेरे दोस्त इस वर्ष का विषय "फेफड़ों पर तंबाकू का खतरा"पर केंद्रित है जो कि कैंसर और सांस की बीमारियों की तरफ इशारा करता है l जैसा कि हम जानते हैं कि 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रस्ताव पारित करके वर्ल्ड नो टोबैको डे मनाने का निर्णय लिया गया था , तब से हम जागरूकता लाने के लिए 31 मई को अंतरराष्ट्रीय तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाते हैं l अपने देश में भी सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध है, जो कि भारत सरकार ने 2003 में एक अधिनियम पारित किया था जिसके तहत कहा गया कि कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान नहीं करेगा लेकिन मैं बोलता हूं  हमेशा के लिए अपने भारत से  धूम्रपान और शराब बंद होना चाहिए l क्या आपको मालूम है की धूम्रपान मनुष्य के लिए कितना हानिकारक है? सर्वे के मुताबिक 450 ग्राम तंबाकू में निकोटीन नामक जहर की मात्रा लगभग 22 ग्राम से ज्यादा होती है और इसकी 6 ग्राम मात्र एक कुत्ता लेने से  3 मिनट में ही मर जाता है l दोस्तों धूम्रपान और शराब से केवल एक व्यक्ति बर्बाद नहीं होता बल्कि उसका पूरा परिवार और पूरा देश बर्बाद होता है l  मैं बचपन से ही देखते आ रहा हूं जब मैं कॉलेज में गया तब देखा कि कॉलेज के लड़के -लड़कियां धड़ल्ले से धुआं उड़ा रही है उड़ा रहे हैं l देखकर बहुत मन दुखी होता था और  हमेशा प्रयास करते रहा  प्रेरित करके अपने दोस्तों साथियों को कि स्मोकिंग ना करें गुटका ना खाएं लेकिन मेरा मजाक बनाया जाता था l  फिर मैंने अपने स्तर पर प्रतिदिन जागरूकता कैंप लगाना शुरू किया फिर धीरे-धीरे मेरे साथ लोग जुड़ते गए l  और बहुत से एनजीओ ट्रस्ट ने भी मेरे मुहिम में साथ दिया l और हमने मिलकर बड़ा आंदोलन किया और आज बिहार में कानूनी रूप से शराब बंद है l  हम कहते हैं दोस्तों की बिहार और मिजोरम जैसे पूरे देश में इस जानलेवा पदार्थ को बंद करने की जरूरत है lक्योंकि आज धूम्रपान का सबसे अधिक शिकार है हमारे देश का युवा जो कि भारत युवाओं का देश है और किसी भी देश के विकास में युवाओं का प्रमुख भूमिका होती है ,लेकिन जब युवा ही नशे में डूबा रहेगा और जिस देश का युवा बर्बाद हुआ इतिहास गवाह है कि वह देश भी बर्बाद हो गया l  इसलिए अपने देश को बचाने के लिए हम सब का यह नैतिक जिम्मेदारी है कि हम अपने युवा पीढ़ी को बचाएं इसके लिए उनको जागरूक करें l 

"दोस्तों मैं देखता हूं कि लोकतंत्र में लोग अपने अधिकारों की बात तो करते हैं लेकिन कहीं न कहीं कर्तव्यों को भूल जाते हैं यह सभी पढ़े लिखे और जागरूक लोगों को मालूम है कि संविधान में यह -यह अधिकार हमें दिया गया है l जब कर्तव्यों की बात आती है तो पीछे हट जाते हैं l""दोस्त अपने स्कूल समय से ही मैं जागरूकता लाने का प्रयास कर रहा हूं l आज भी दिल्ली के मुखर्जी नगर में रहते हुए आईएएस की तैयारी के साथ -साथ प्रतिदिन 15 से 20 मिनट जागरूकता लाने के लिए समय निकालता हूं ,अगर मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर लाइब्रेरी में रहता हूं अगर कोई भी व्यक्ति यहां व्यक्ति कहने का मतलब केवल छात्र ही नहीं प्रोफेसर लोग भी जोकि इतने पढ़े लिखे लोग भी मुंह में लेकर सिगरेट उडाते रहते हैं l  जब मैं उनसे जाकर पूछता हूं कि आखिर क्यों तो उनका जवाब होता है रिलैक्स फील करने के लिए फिर मैं पूछता हूं कि पैकेट पर लिखा क्या हुआ है , तब उनका जवाब होता है की स्मोकिंग किल्स, किलर टोबैको, जानलेवा है फिर जब आपको मालूम है तब भी क्यों लेते हो मरने का इतना ही जल्दी है तो और भी रास्ते हैं l यह सच है कि तंबाकू राज्य सरकार का विषय है तंबाकू शराब से राज्य सरकार को बहुत ही ज्यादा रेवेन्यू आती है लेकिन इससे कहीं ज्यादा लोगों की जिंदगियां बर्बाद होती है लोगों की पूरे परिवार बर्बाद हो जाता है। और विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी कहना है कि जितना रेवेन्यू इन जानलेवा पदार्थों से आता नहीं उससे कहीं ज्यादा जब जानलेवा बीमारियां किसी व्यक्ति में लग जाती है ,इसका सेवन से तब खर्च आता है l अगर हम आंकड़े देखें तो भारत न केवल सबसे बड़े तंबाकू उत्पादक देशों में से एक है बल्कि विश्व में तंबाकू के सेवन से होने वाली मौतों के 1/6 वे हिस्से का जिम्मेदार भी है और तो और किशोरों में तंबाकू के सेवन का स्तर लगातार बढ़ रहा है l  और भारत की वर्तमान तंबाकू नीति में भी मुझे कई विसंगतियां भी नजर आ रही है l जैसा आपने देखा इस लॉकडाउन में सभी राज्य सरकारों ने अपनी रेवेन्यू बढ़ाने के लिए शराब की दुकानें खोल दिए और जो हालात हुआ देश के विभिन्न राज्यों में देश के राजधानी में वह आप सबके सामने हैं जो कि एक चिंता का विषय है l दोस्तों तंबाकू के सेवन से चिकित्सा खर्च बढ़ जाती है विभिन्न प्रकार के रोग होते हैं और इससे घरेलू आय में कमी आती है जिससे गरीब और गरीबी में चला जाता है l दोस्तों नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती है इसलिए हमेशा के लिए इस जानलेवा पदार्थ को बंद करने की जरूरत है l दोस्तों देश हमारा है तो इसको बचाने का जिम्मेदारी भी हमारी है , ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम बोले कि लोकतंत्र हैं और यह मेरा अधिकार है ठीक है आपका अधिकार है तो आपका कर्तव्य भी है इसलिए जितना हो सके समाज में जागरूकता लाएं मेरा साथ दे और इस अभियान के माध्यम से हम हमेशा के लिए तंबाकू ,शराब को अपने भारत देश में बंद करेंगे ,और सरकार का भी नैतिक जवाबदेही है की इसके लिए पहल करें ताकि भारत में तंबाकू, शराब अब हमेशा के लिए बंद हो जैसा कि हम जानते हैं कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 48 में कहा गया है कि राज्य को सार्वजनिक स्वास्थ्य में लगातार बेहतरी के प्रयास करते रहनी चाहिए लेकिन जिस प्रकार से शराब परोसी जा रही है यह कहीं से भी नैतिक और उचित नहीं है अतः भारत जैसे एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य को अपने सामाजिक दायित्वों के पालन हेतु वर्तमान तंबाकू शराब नीति में बदलाव करते हुए प्रयास करना चाहिए इस जानलेवा पदार्थ को बंद किया जाए और अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने का दूसरा रास्ता जोड़ा जाए क्योंकि सबसे अधिक गरीब मजदूर ही इसके शिकार होते हैं, आपको बता दें कि दुनिया में हर साल तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से करीब 50 लाख  लोगों की मौत होती है , और एक अनुमान के अनुसार इस वर्ष तक यह  संख्या एक करोड़ तक पहुंच जाएगी मैं डरा नहीं रहा हूं एक सर्वे के मुताबिक जो रिपोर्ट आई है ,उसी को रखने प्रयास किया हूंl और सबसे ज्यादा शिकार इसका गरीब और अशिक्षित लोग ही हैं , मेरे दोस्तों आप सब मेरे इस अभियान में साथ दें आप जहां भी रहते हैं l वही प्रतिदिन 10 मिनट अपना समय देश के युवाओं को बचाने के लिए दें उनको प्रेरित करें तंबाकू से होने वाले बीमारियों के बारे में जागरूक करेंl क्योंकि हम सब जानते हैं कि किसी भी देश का युवा खत्म तो देश खत्म किसी भी देश का रीढ़ युवा ही होता है इसलिए यह वक्त है अपने कर्तव्यों को निभाने का....

कवि विक्रम क्रांतिकारी(विक्रम चौरसिया -अंतर्राष्ट्रीय चिंतक)

तेरे लिए




टिक टॉक बंद हुआ कोरोना तेरे लिए, 

विदेशी वस्तु बंद हुई कोरोना तेरे लिए। 

 

बच्चों की पढ़ाई बंद पड़ी कोरोना तेरे लिए, 

बच्चों की क्रीड़ा बंद हुई कोरोना तेरे लिए। 

 

कोई घूमने नहीं जा रहे कोरोना तेरे लिए, 

आज अपने अपनों से भय रहे कोरोना तेरे लिए। 

सभी की नौकरी गई कोरोना तेरे लिए। 

 

मोहब्बत में दरारें आई कोरोना तेरे लिए, 

गरीब मजदूरों की जानें गई कोरोना तेरे लिए, 

गरीब भूख हेतु आत्महत्या करते कोरोना तेरे लिए। 

 

मजदूर लोग पलायन किए कोरोना तेरे लिए, 

सभी आत्मनिर्भर बन गए कोरोना तेरे लिए। 

 

मधुशाला फिर से खुली कोरोना तेरे लिए, 

बाकी का व्यापार बंद पड़ा है कोरोना तेरे लिए। 

 

एक दूसरे से दूरी बना रहे कोरोना तेरे लिए, 

मोहब्बत बीमार पड़ गई कोरोना तेरे लिए। 

 

अभी लड़की लड़कों में फेसबुक पर चैट होती,

लड़की कहती मेले बाबू थाना थाया कोरोना तेरे लिए। 

 

गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड में फेस टू फेस बात नहीं होती,

लड़की लोगों के लूटने का धंधा बंद पड़ा है कोरोना तेरे लिए। 

 

हर किसी का भविष्य संकट में पड़ा कोरोना तेरे लिए, 

सभी की खुशी छीन गई कोरोना तेरे लिए। 

मो. जमील

अंधराठाढ़ी, मधुबनी (बिहार) 


 

 



 

 भारतीय अर्थव्यवस्था

मनुष्य की सम्पूर्ण आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन व विश्लेषण करने वाली विधा अर्थशास्त्र है और इसी अर्थशास्त्र का व्यावहारिक पक्ष 'अर्थव्यवस्था' है। अर्थव्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसकी सहायता से कोई भी देश अपने उपलब्ध संसाधनों का उपयोग और नवनिर्माण करता है। अर्थव्यवस्था से सीमित उपभोग और सीमित संसाधनों के बीच की खाईं पटती है। जिससे उपभोक्ता ज्यादा संतुष्ट हो सके, जिससे उत्पादक भी लाभान्वित हों और समाज में अधिकतम सामाजिक कल्याण सुनिश्चित हो सके।
आर्थिक उदारीकरण के दौर में 'अर्थ' मानव की तमाम गतिविधियों का नियामक बन चुका है।
जिस अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व होता है वह समाजवादी या नियंत्रणकारी अर्थव्यवस्था कहलाती है जो कि चीन, उत्तर कोरिया, क्यूबा में देखने को मिलती है।
जिस अर्थव्यवस्था में माँग व पूर्ति के कारकों का प्रभुत्व हो वह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाती है इसमें राज्य व सरकार की भूमिका सीमित होती है।
जिस अर्थव्यवस्था में समाजवादी व पूँजीवादी दोनों अर्थव्यवस्थाओं का लक्षण मौजूद हो मिश्रित अर्थव्यवस्था कहलाती है। यह अर्थव्यवस्था हमारे अपने देश भारत में मौजूद है। जहाँ तक हमारे भारत देश का सवाल है तो यहाँ विकासशील अर्थव्यवस्था पाई जाती है और विकासशील अर्थव्यवस्था का मतलब जहाँ अपने संसाधनों का समुचित दोहन नहीं हो पाया। यहाँ औद्योगीकरण की प्रक्रिया देर से शुरू हुई। १९४०-५० के दशक में औपनिवेशिक स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले अधिकांश देशों में यही अर्थव्यवस्था है। ऐसी अर्थव्यवस्था की जीडीपी में कृषि क्षेत्र की भागीदारी में गिरावट व औद्योगिक तथा सेवा क्षेत्रों की भागीदारी में वृद्धि देखी जाती है। वर्तमान में भारत देश में भी यही अर्थव्यवस्था व विकास के द्वितीय चरण का प्रभुत्व है। वैसे इस विकास को बढ़ाने हेतु अनेक योजनाएँ आर्थिक नीतियों की शुरुआत तेजी से हो रही है इसमें मुख्य रूप से निर्वाह कृषि क्षेत्र को वैज्ञानिक तौर-तरीके से सुदृढ़ किया जा रहा है। आत्मनिर्भर बनने की पहल तेज हुई है कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है जिससे हम कह सकते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था में जल्द ही बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एन एस ओ) के रिपोर्ट के अनुसार देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर बीते वर्ष २०१९-२० की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में घटकर ३.१ फीसदी पर आ गई है। इसका काफी हद तक कारण कोविड 19 की वैश्विक महामारी भी रही है जिसमें उपभोक्ता उत्पाद की मांग काफी कम रही। यह आंकड़ा इससे पहले २००८-०९ में रही थी। हालांकि कृषि क्षेत्र की जीडीपी में वृद्धि इस चौथी तिमाही में बढ़कर ५.९ होना राहत की बात है जो पिछली तिमाही में १.६ फीसदी थी।
वहीं कुछ सेवा क्षेत्रों के भी आर्थिक वृद्धि दर में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। कृषि क्षेत्र की जीडीपी में वृद्धि कृषि पर विशेष ध्यान दिए जाने के बाद देखा गया यह ध्यान बहुत पहले दिया जाना चाहिए था। इस वैश्विक महामारी से जिस आर्थिक मंदी का सामना हमें करने को मिल रहा है वह शायद काफी हद तक कम रहता। आज लघु और कुटीर उद्योगों पर जो ध्यान महामारी के बाद दिया गया वह पहले दिया जाना चाहिए था तो यह आत्मनिर्भरता की तस्वीर ही कुछ अलग होती सरकारों पर जो यह आर्थिक मंदी का बोझ है काफी हद तक कम होता।
स्वदेशी अपनाने की पहल बेहद प्रभावशाली प्रयास है हम विदेशी वस्तुओं पर जो पैसा लगाते थे वह अब हमारे राजस्व की हिस्सेदारी में सहयोगी होगा। जो नीतियां आज अपनाई गई अगर यह पहले अपनाई गई होती तो आत्मनिर्भरता की दहलीज पर हम बहुत पहले पहुंच चुके होते। इन सभी बातों को दरकिनार करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था खुद को मजबूत करने में प्रयासरत है मेक इन इंडिया का विशेष प्रभाव देखा जा रहा है। लोग स्वदेशी अपनाने में उत्सुक नजर आ रहे हैं। ऐसे में सरकार को इन कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देना होगा ताकि यह उत्सुकता आत्मनिर्भरता का हिस्सा बन सके।
चीनी की घिनौनी हरकत से जो वैश्विक विरोध चरम पर है और देश की जनता का चीन के उत्पादों के बहिष्कार की यह जो आवाज आज उठ रही है सरकार को उस अवसर को भुनाना होगा। मेक इन इंडिया प्रोडक्ट मार्केट में उतरकर खुद की नीतियों को साबित करना चाहिए। ऐसा अनुमान है कि अर्थव्यवस्था में सुधार जरूर देखा जाएगा एक अलग भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर विश्व पटल पर नजर आएगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति बढ़ेगी और मेक इन इंडिया उत्पादों की मांग में भी बढ़ोत्तरी दर्ज होने की उम्मीद रहेगी।