संवाद सूत्र पटेढ़ी बेलसर । प्रखंड के बेलसर बाजार सहित कई जगहों पर जननायक स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाई गयी।मौके पर उपस्थित लोगों ने उनके प्रतिमा एवं तैल चित्र पर पुष्प चढ़ाकर श्रद्धा सुमन अर्पित किया।इस दौरान जदयू प्रखंड अध्यक्ष प्रेम कुमार निषाद ने कहा कि कर्पूरी जी सत्य और ईमानदारी के प्रतिमूर्ति थे।वही झुन्नी चौक प्राथमिक विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में राजद प्रखंड अध्यक्ष शिवदयाल साहनी ने कहा कि जननायक स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर देश में पिछड़े वर्गों, दलितों और समाज के वंचित लोगों के सम्मान और स्वभिमान के लिए आजीवन संघर्ष किया। बिहार प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय ठाकुर समाजवादी आंदोलन की उपज थे।गरीब नाई समाज में पैदा होकर उन्होंने राजनीति में जिस सादगी,ईमानदारी और जन सेवा की मिशाल पेश किया वह अनुकरणीय है। सामाजिक रूप से पिछड़ी किंतु सेवा भाव के महान लक्ष्यों को चरितार्थ करते नाई जाति में जन्म लेने वाले स्वर्गीय ठाकुर ने राजनीति को भी जनसेवा की भावना के साथ जिया।उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जननायक कहा जाता था,वह सदा गरीबों के हक के लिए लड़ा करते थे।माल्यार्पण करने बालो में रविरंजन कुमार, डॉ सुमन कुमार, संजीत सिंह, इंदजीत सिंह, रामु पासवान, सहित अन्य लोग शामिल है।
Sunday, January 24, 2021
लोक रत्न सम्मान से सम्मानित हुए अंकित पियूष
मुजफ्फरपुर (वैशाली) वरीय संवाददाता.दैनिक अयोध्या टाइम्स.सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान मुजफ्फरपुर द्वारा महान समाजवादी जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के 97 वें जन्मदिवस पर कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए अंकित पियूष (पीयूष राज) को लोक रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान शाहिद कमाल (राष्ट्रीय समाज सेवी), सुधीर कुमार ठाकुर एवं अविनाश सेवादार के हांथो दिया गया। अंकित को सम्मान स्वरूप अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट की गई। उल्लेखनीय है कि अभी हाल में ही अंकित पियूष को पटना में आयोजित बाल उड़ान एवं राष्ट्रीय सम्मान समारोह 2021 में राष्ट्रीय सम्मान 2021 से सम्मानित किया जा चुका है। ।
लोक रत्न सम्मान से सम्मानित होने पर अंकित पियूष ने खुशी जाहिर की और सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान के संयोजक लोक कलाकार सुनील कुमार का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सम्मान मिलने से और भी ज्यादा जिम्मेदारियों का अहसास होता है। मेरे कार्यों को सरला श्रीवास सामाजिक सांस्कृतिक शोध संस्थान ने नोटिस किया और हमें इस सम्मान के लायक समझा। इसके लिए मैं उनका धन्यवाद करता हूं। यह सम्मान मेरे लिए एक जिम्मेदारी भी है, जिसका निर्वहन आगे भी करता रहूंगा।
तिरंगा हमारी शान है
तिरंगा हमारी शान है
प्रयास संस्था शाखा अंबाला द्वारा नशे के विरुद्ध निकाली दूसरी पैदल जागरूकता यात्रा
तू निश्चय तो कर कदम तो उठा निकल आएगा कोई रास्ता- श्रीकांत जाधव
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल
गणतंत्र दिवस पर आज
मैंने ख़ूब बधाइयां पाई!
पर सच्ची गणतंत्रता देखने को
अब भी है आंखें पथराई !
हिस्से में आज जनता के
कैसी बदहाली आईं,
काम बिना रिश्वत के कोई
आज भी न बन पाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!
घर में बच्चे भूखे तड़पते
उदासी की चादर ओढ़े लुगाई,
आदमी दर - दर हैं भटकते फिरते
नहीं होती घर चलाने लायक भी कमाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!
परमार्थ की भावना तजकर
निज स्वार्थ की भावना अपनाई,
जनता के हक के पैसों से
नेताओं ने ख़ूब मौज उड़ाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!
कहीं हो रही आत्महत्याएं
तो कहीं चल रही हाथापाई,
कहीं फैला आतंकवाद का साया
तो कहीं मुंह बाए है महंगाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!
देशभक्तों के संघर्ष बलिदानों की
हमने ये कैसी कीमत चुकाई,
बदलेगा कब ये देश हमारा
कब लेगी इंसानियत फिर अंगड़ाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!
किसान आंदोलन के दबाब से उभर रही सरकार
एक बात तय और निश्चित मान लीजिए कि किसानों का आंदोलन किसी भी रूप में सही था,सही है मगर अब क्या रहेगा,इसमें अभी संशय हैं?किसानों की मांगे भी जायज हैं,मानी ही जानी चाहिए थी मगर सरकार ने बहुत ही सधे हुए तरीके से गेंद किसानों के पाले में ऐसे डाली कि किसान सारे मामले को शायद समझ ही नहीं पाए?हो सकता समझ पाए हों मगर फिलवक्त हमारा मानना है कि शायद नहीं।यहाँ यह तो नहीं कहा जा सकता कि किसान नेताओं में समझ की कमी है पर सम्भवतः सरकार ने एक रणनीति के तहत ऐसा करने में कामयाब हो गई लगती है।इसी का परिणाम है कि सरकार पर किसान आंदोलन का जो दबाव बना था,उसे सरकार ने दबाब माना भी पर धीरे-धीरे सरकार उस दबाव से मुक्त होती जा रही है तभी तो उसने किसानों को अंतिम प्रस्ताव दे दिया और गेंद किसानों के पाले में डालकर अपनी और से बातचीत के दरवाजे बंद कर दिए,यह कहकर कि अगर किसान किसी निर्णय पर पहुँचते हैं तो सरकार बातचीत को तैयार है,अब फैसला किसानों को करना हैं,यहीं पेंच हैं।अंतिम दौर की बातचीत का जो रवैया सरकार का था,वह उसकी रणनीति बिल्कुल साफ़ कर देता है।अब देखिए सरकार ट्रैक्टर रैली से काफी सकते में थी लेकिन ठीक उससे पहले गेंद किसानों के पाले में डालकर रैली की इजाजत दिलवा दी और एक तरह से किसान आंदोलन के दबाव से मुक्त होने का काम एक झटके में ही कर गई।यहाँ एक अवसर था किसानों के पास कि जो प्रस्ताव सरकार ने दिया है,उसे दो साल की बजाय तीन साल तक करवाकर,साथ ही एमएसपी पर कानून बनवाकर आंदोलन को सफलता की और ले जाकर समाप्त कर देते ताकि एक जड़ता टूटती और आगे का रास्ता खुलता।वह यह होता कि फिर एक अलग तरह का आंदोलन चलाकर तमाम चुने हुए प्रतिनिधियों पर दवाव बनाया जाता कि वो संसद में इन कानूनों पर बहस करें और इन्हें रद्द करवाएं।साथ ही यह विकल्प भू खुला रहता कि 2024 में जब चुनाव होते तो तमाम राजनैतिक दलों पर दबाब बनाया जाता कि इन कानूनों को लागू न किया जाए।इस समय बेशक इस ट्रैक्टर रैली को विश्व का मीडिया दिखाएगा,बेशक यह ट्रैक्टर रैली ऐतिहासिक होगी क्योंकि सौ किलोमीटर तक होगी और इसमें लाखों ट्रैक्टर भाग लेंगे।बाकायदा तिरंगा लगा होगा।वैसे किसी भी सूरत में देश के राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगे के साथ मार्च पास्ट करना सम्भवतः देश विरोधी नहीं हो सकता बल्कि यह हम सबके लिए गर्व की बात है।साथ ही यह भी साफ़ हो गया कि दिल्ली पुलिस इस ट्रैक्टर रैली का एक रूट प्लान देगी,जिससे किसी भी प्रकार के टकराव की सम्भावना भी नहीं रहेगी।सवाल इससे आगे खड़ा होता है कि अब आगे क्या?क्योंकि जैसे-जैसे आंदोलन लम्बा चलेगा,वैसे-वैसे आंदोलन से लोग उकताते चले जाएंगे और दूसरी तरफ ट्रैक्टर रैली के बाद सरकार को बातचीत की टेबल पर लेकर आना काफी मुश्किल होगा क्योंकि अब तक बातचीत के लिए पहल सरकार की ओर से थी,बेशक वह अड़ी हुई थी मगर अब बातचीत की पहल किसानों को करनी होगी और सरकार के तेवर पहले की अपेक्षा ज्यादा कड़े होंगे।ट्रैक्टर रैली के बाद क्या प्लान होगा क्योंकि अगर आंदोलन ऐसे ही चला तो ज्यादा सम्भावना आंदोलन के टूटने की बन सकती है क्योंकि पिछले दिनों से कई बातें रह-रहकर निकलकर भी आ रही है,जिससे निपटना होगा।आगे की रणनीति में क्या होगा क्योंकि अभी निकट भविष्य में ऐसा कोई दिवस नहीं है,जिससे सरकार पर दबाब बनाया जा सके।दूसरी तरफ सरकार आज भी यही कह रही है कि ये तीनों बिल किसानों के हित में है और हम इन्हें वापिस नहीं लेंगे क्योंकि हम कृषि में सुधार चाहते हैं और किसानों की आय दोगुनी करना चाहते हैं।कई तरह के अनर्गल आरोप सरकार की और से पहले भी लगते रहे हैं।अब हमारी नजर में यह हो सकता है कि या तो सरकार को बातचीत के लिए राजी किया जाए और तीन साल के लिए कानूनों पर रोक लगवाकर एमएसपी पर गारन्टी का कानून बजट सत्र में बनवा लिया जाए और इस आंदोलन को वापिस लेकर किसानों की तमाम समस्याओं को लेकर नए सिरे से अलग तरह का आंदोलन चलाया जाए।जिसमें सभी दलों पर दबाब बनाया जाए ताकि वो मजबूर हों किसानों की बातें मानने के लिए या फिर अभी इस आंदोलन को जन आंदोलन का स्वरुप देकर एक लम्बे समय तक का आंदोलन बनाया जाना चाहिए ताकि केवल ये सरकार नहीं बल्कि सता में आने वाली हर सरकार जनता के हित की नीतियां बनाने के लिए विवश हो सकें वरना ये आंदोलन पिटा तो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा देश और समाज के लिए।
देश के आत्मगौरव तथा सम्मान का दिन गणतंत्र दिवस
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में पूरे देश में काफी जोश और सम्मान के साथ मनाया जाता है। यह, वह दिन है जब भारत में गणतंत्र और संविधान लागू हुआ था। यही कारण है कि इस दिन को हमारे देश के आत्मगौरव तथा सम्मान से भी जोड़ा जाता है। इस दिन देश भर में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते और खासतौर से विद्यालयों तथा सरकारी कार्यलयों में इसे काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है तथा इसके उपलक्ष्य में भाषण, निबंध लेखन और कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।