Thursday, May 20, 2021

भारत का गौरव ढ़ाने की प्रियंका की बड़ी उपलब्धियां

अनिल बेदाग़-


मुंबई : मनोरंजन उद्योग में दो दशक और प्रियंका चोपड़ा जोनस अब भी अपने काम मे बहुत व्यस्त हैं। बॉलीवुड में उनके नाम पर लगभग 60 फिल्म है और विश्व स्तर पर बड़े पैमाने पर प्रशंसक के साथ, वह सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा फॉलो की जाने वाली भारतीय फिल्म स्टार हैं। इस बीच, पश्चिम में, उन्होंने एबीसी के क्वांटिको में अपने शानदार अभिनय से दिल जीत लिया है। प्रियंका चोपड़ा ने 2016 की लाइव-एक्शन फ़िल्म जंगल बुक में भी आवाज दी और बेवॉच (2017), ए किड लाइक जेक (2018) और एंड इट्स रोमांटिक (2019) और वी कैन बी हीरोज (2020) जैसी हॉलीवुड फिल्मों में अभिनय किया। उनकी आखिरी बॉलीवुड रिलीज़, द व्हाइट टाइगर उनकी बेहतरीन कृतियों में से एक के रूप में उभरी और बड़े पैमाने पर प्रशंसा मिली है। 
     विश्व स्तर पर सामाजिक परिवर्तन के चेहरे के रूप में जानी जाने वाली, सुपरस्टार ने समय-समय पर अपनी विभिन्न उपलब्धियों से हमें गौरवान्वित किया है। नीचे हम आपके लिए ९ शानदार कारण लेकर आए हैं जो साबित करते हैं कि वह अगले कई दशकों तक दिलों पर राज करने के लिए यहां हैं। 
1. फोर्ब्स के 100 सबसे प्रभावशाली कवर पर आने वाली पहली भारतीय महिला। 
निस्संदेह, हॉलीवुड को पार करने वाली सबसे सफल बॉलीवुड अभिनेत्री में से एक, प्रियंका चोपड़ा जोनास लगातार दो बार 'फोर्ब्स 100 सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची' में रही हैं। वह प्रतिष्ठित सूची में जगह बनाने वाली पहली भारतीय महिला है। 
2. भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित
हिंदी फिल्म उद्योग में उनकी बड़ी सफलता और प्रभावशाली प्रदर्शन के कारण, प्रियंका चोपड़ा जोनास को भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म श्री से सम्मानित किया गया। बॉलीवुड को वैश्विक मानचित्र पर दबदबा बनाने के लिए पीसी ने 2016 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पद्म श्री प्राप्त किया। 
3. वोग यूएस के कवर पर पहुंचने वाले पहले दक्षिण एशियाई । 
अपनी पेशेवर ऊंचाइयों के साथ 2018 में प्रियंका चोपड़ा जोनास वोग अमेरिका के कवर पर आने वाली पहली दक्षिण एशियाई बनीं। वैश्विक आइकन फैशन पत्रिका के कवर पर प्रदर्शित होने वाली पहली भारतीय महिला थीं। 
4. टेलीविजन पर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में पीपुल्स च्वाइस अवार्ड जीतने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री 
पश्चिम में शीर्ष पर अपनी जगह बनाते हुए, प्रियंका चोपड़ा जोनास पीपुल्स च्वाइस अवार्ड जीतने वाली पहली दक्षिण एशियाई अभिनेत्री बनीं। उन्होंने यूएस थ्रिलर क्वांटिको में एक एफबीआई एजेंट के रूप में अपनी भूमिका के लिए 'एक नई टीवी सीरीज पसंदीदा अभिनेत्री' का पुरस्कार जीता। 
5. माराकेच फिल्म समारोह में सम्मानित होने वाली पहली बॉलीवुड अभिनेत्री 
यूनिसेफ स्नोफ्लेक बॉल में डैनी केए ह्यूमैनिटेरियन अवार्ड प्राप्त करने के तुरंत बाद, प्रियंका चोपड़ा जोनास को पिछले साल मोरक्को में फेस्टिवल इंटरनेशनल डू फिल्म डी माराकेच में सम्मानित किया गया था। अभिनेत्री-निर्माता को सिनेमा में उनके 20 वर्षों के लिए सम्मानित किया गया। 
6. TIFF (टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल) में एंबेसडर बनने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री 
अपनी सफलता को ओर बढ़ाते हुए, प्रियंका चोपड़ा एक बार फिर 2020 के टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के लिए एंबेसडर के रूप में चुने जाने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री बन गईं। प्रियंका उन 50 फिल्म निर्माताओं और अभिनेताओं में शामिल रही जिन्हें इस कार्यक्रम के 45वें संस्करण में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था ।  7. फ्लोरेंस, इटली में सल्वाटोर फेरागामो संग्रहालय में फुटप्रिंट वाली पहली भारतीय अभिनेत्री 
प्रियंका चोपड़ा जोनस इटली के फ्लोरेंस में प्रतिष्ठित सल्वाटोर फेरागामो संग्रहालय में अपने पैरों के निशान रखने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री बनीं। उन्होंने फेरागामो हाउस से कस्टम-डिज़ाइन किए गए जूते भी प्राप्त हुए यह वास्तव में प्रभावशाली रहा! 
8. चार अलग-अलग मैडम तुसाद संग्रहालयों में मोम के पुतले रखने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री । 
वैश्विक आइकन 2019 में मैडम तुसाद संग्रहालय में चार मोम की मूर्तियां स्थापित करने वाली पहली भारतीय फिल्म स्टार बन गईं। उनकी मोम की मूर्तियाँ लंदन, न्यूयॉर्क और सिडनी सहित चार अलग-अलग स्थानों पर रखी हुई हैं।
9. इस साल ऑस्कर नामांकन की घोषणा करने वाली पहली भारतीय स्टार
प्रियंका चोपड़ा जोनस ने इस साल इतिहास रच दिया क्योंकि उन्होंने प्रतिष्ठित 93 वें अकादमी पुरस्कार नामांकन की घोषणा की। जो चीज इसे और भी खास बनाती है वह यह है कि पीसी ने पति और पॉपस्टार निक जोनस के साथ सम्मान की घोषणा की । 
बाल अधिकारों के लिए एक वैश्विक यूनिसेफ सद्भावना राजदूत, प्रियंका चोपड़ा जोनस हमेशा परोपकारी रूप से सक्रिय रही हैं। कोविड -19 के इस चुनौतीपूर्ण समय में, वह दुनिया के लिए अपना काम कर रही है।

"गली बॉय" के बाद अब "गटर बॉय" ने बटोरी सुर्खियां

यूके फ़िल्म फेस्टिवल में होगा प्रीमियर

-अनिल बेदाग़-

मुंबई : कॉमेडी फिल्म "उमाकांत पांडेय पुरुष या....?" से चर्चा में आए अभिनेता अजीत कुमार आजकल अपनी दूसरी फिल्म "गटर बॉय" को लेकर सुर्खियों में छाए हुए हैं। फ़िल्म 'गटर बॉय - ए जर्नी टू हेल' को  ब्रिज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, ग्रीस, दरभंगा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल सहित कई फिल्म समारोहों में ऑफिशियल एंट्री के रूप में चुना गया है। खास बात यह है कि इस फ़िल्म

ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशन,  सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म और सर्वश्रेष्ठ कहानी की कैटगरी में अपना नामांकन हासिल किया है। और अब यूकेएएफएफ (UKAFF) फ़िल्म फेस्टिवल में गटर बॉय का प्रीमियर 28 मई को शाम 7 बजे होने जा रहा है। 58 मिनट की इस हिंदी फ़िल्म के ट्रेलर को शानदार रिस्पॉन्स मिल रहा है। इसके ट्रेलर की शुरुआत इस डायलॉग से होती है। "एक बार फिर म्युनिस्पल कॉर्पोरेशन के 2 कर्मचारी गटर की सफाई करते हुए मारे गए।" 
निर्देशक अनुपम खन्ना बसवाल की रियलिस्टिक फ़िल्म गटर बॉय में अजीत कुमार एक गटर बॉय का चुनौतियों भरा टाइटल रोल निभा रहे हैं।
कुछ लोग अब भी अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर 'गटर' और 'नाले' की सफाई का काम करते हैं। इस फ़िल्म का केंद्रीय किरदार संदीप एक गरीब, निचली जाति के परिवार का है। वह बेहतर जीवन की आशा में बड़े शहर में चला जाता है, जहां उसे गटर क्लीनर की नौकरी दी जाती है। कुछ बदकिस्मत लोग ऐसे हैं जो इंसानों द्वारा पैदा की गई गंदगी को साफ करते हैं। संदीप भी एक ऐसा ही किरदार है। कुछ लोग कैसे अब भी अमानवीय काम करने को विवश हैं फ़िल्म उसी काले अंधेरे पर प्रकाश डालती है।गटर बॉय वाकई एक दिल को झिंझोड़ देने वाली कहानी है।
    अजीत कुमार ने बताया कि मैंने लोगों को गटर की सफाई करते देखा था लेकिन कभी ऐसा करने की कल्पना नहीं की थी। फिर मैंने इसे एक चैलेंज के रूप में लिया और खुद को भूलकर सन्दीप बन गया। एक गटर के अंदर काम करने के मेरे पहले दिन ने मुझे खुद को इंसान के रूप में घृणित महसूस कराया। 
गटर बॉय युवक संदीप के जीवन बदलने वाले अनुभव की कहानी है। यह फिल्म गटर में विकसित होने वाली जहरीली गैसों के कारण होने वाली मौतों के बारे में महत्वपूर्ण सवाल और मुद्दे भी उठाती है कि कैसे ये गरीब लोग सिर्फ अपने परिवार को खिलाने के लिए हर दिन अपनी जान जोखिम में डालते हैं। अजीत कुमार के लिए एक गटर बॉय का रोल निभाना काफी चैलेंजिंग था लेकिन थिएटर बैकग्राउंड से होने के कारण वह इसे सहजता से निभा पाए। अजीत कुमार सोशल इशु पर बेस्ड फिल्म गटर बॉय को इतने सारे फ़िल्म फेस्टिवल्स में जगह और नॉमिनेशन मिलने पर बेहद एक्साईटेड हैं।

Wednesday, May 19, 2021

राजापाकर में सामुदायिक किचन खोलकर गरीबों को कराया जा रहा भोजन

राजापाकर( वैशाली ) संवाददाता, दैनिक अयोध्या टाइम्स

बिहार में कोरोना संक्रमण के मद्देनजर लगे संपूर्ण लॉकडाउन के बाद सरकार द्वारा प्रखंड मुख्यालय में भी सामुदायिक किचन का शुभारंभ किया गया है जिसमें दोनों वक्त निर्धनों का पेट भरेगा। खासकर वैसे गरीब मजदूर जिन्हें दो वक्त की रोटी भी बड़ी कठिनाइयों से नसीब हो पाती है उनके लिए परेशानी और बढ़ गई थी इसे देखते हुए बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन अब गरीबों का पेट भर रहा है। राजापाकर प्रखंड मुख्यालय में फिलहाल मात्र एक स्थान प्रखंड मुख्यालय अंतर्गत आदर्श मध्य विद्यालय राजापाकर पर सामुदायिक किचन बुधवार 19 मई से अंचलाधिकारी राजापाकर के देखरेख में शुरू किया गया है। इस दौरान लगभग 60 लोगों को खाना परोसा गया। CO राजापाकर ने बताई की सामुदायिक किचन में गरीब, असहाय, दैनिक श्रमिकों ,रिक्शा ,ठेला चालक के लिए यह सामुदायिक किचन काफी मददगार साबित होगा। उन्होंने यह भी बताया कि आज प्रथम दिन 60 लोगों के बीच चावल दाल एवं सब्जी का भोजन कराया गया है ।पुनः शाम 5:00 बजे से रात्रि का भोजन परोसा जाएगा। हालांकि सामुदायिक किचन के चालू हो जाने का कोई प्रचार प्रसार नहीं किया गया है । मालूम हो कि सरकार द्वारा आगामी 25 मई तक लॉकडाउन लगे रहने की घोषणा की गई है यह सामुदायिक किचन 7 दिनों के लिए खुला है।

सोनपुर में 17 संक्रमित की हुई पहचान ,130 लोगो को दी गयी कोविड 19 वैक्सीन

सारण (ब्युरो चीफ  संजीत कुमार) दैनिक आयोध्या टाइम्स      सोनपुर--  सोनपुर में लॉक डाउन होने के बाद से अब कोरोना संक्रमित की संख्या में कमी आने शुरू हो गयी है लेकिन फिर भी इस महामारी को नजरअंदाज करने की जरूरत नहीं है अब भी संक्रमित व्यक्ति कोरोना जाँच में मिल रहे हैं । कुछ लोगो की लापरवाही के कारण आज भी संक्रमित व्यक्ति की पहचान हो रही हैं आज भी लोग इस महामारी को नजरअंदाज कर रहे हैं और बिना मास्क पहने घर से निकल रहे हैं।  इस बात की जानकारी देते हुए सोनपुर पूर्व  कोरोना नोडल अधिकारी डॉ अभिषेक कुमार सिन्हा ने बुधवार को बताया कि सोनपुर एएनएम  ट्रेनिंग सेंटर ,रेलवे स्टेशन ,अनुमंडल अस्पताल  में  रैपिड कीट से 173 लोगो को जांच किया गया जिसमें 17 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं वहीं 203 लोगों आरटीपीसीआर के तहत जांच किया गया सभी जांच सैंपल पटना भेज दी गई है । कोरोना नोडल अधिकारी डॉ  राजकिशोर सिंह ने बताया कि  कोविड केयर सेंटर में आज तक कुल 4 संक्रमित व्यक्ति भर्ती है ।जब कि एक संक्रमित व्यक्ति को पटना रेफर कर दिया गया है । अनुमंडल अस्पताल के प्रभारी डॉ हरिशंकर चौधरी ने बताया कि  17 संक्रमित व्यक्ति की पहचान हुई हैं सभी संक्रमित व्यक्ति को दवा उपलब्ध कराते हुए होम कवर्टाइन में रहने को सलाह दिया गया है । संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले को भी कोरोना जाँच किया जायेगा  स्वास्थ प्रवन्धक रवीश कुमार ने बताया कि 130 लोगो को  दी गयी कोविड 19 वैक्सीन ।

कोरोनावायरस गाइडलाइन के उल्लंघन करने के आरोप में तीन रेडीमेड तथा एक परचून की दुकान को किया गया सील

महुआ ( वैशाली) अनुमंडल संवाददाता दैनिक अयोध्या टाइम्स।

महुआ अनुमंडल क्षेत्र के गोलारोड में कोरोनावायरस गाइडलाइन का उल्लघंन करने पर कपड़ों की तीन रेडीमेड तथा एक परचून दुकानों को अधिकारियों ने सील कर दिया। जिससे क्षेत्र में आस पास हड़कंप मच गई। गुरूवार को महुआ कार्यपालक पदाधिकारी, नगर परिषद, अमीन रामेश्वर पंडित तथा पुअनि शिवेंद्र ना. सिंह के नेतृत्व में कोरोनावायरस गाइडलाइन को लेकर महुआ बाजार में जांच अभियान चलाया गया। इस दौरान गोलारोड में लुका छुपी का खेल कपड़ा दुकानदार ने क्रमशः अजय रेडीमेड, पवन रेडीमेड व वैशाली साड़ी तथा महेश परचून की दुकानदार ने समय अवधि के बाद भी चोरी छिपे दुकान खोलने के आरोप में दुकान को सील कर दिया गया है। वही अधिकारियों ने कोरोना संक्रमण के जो गाइडलाइन दिया गया है उसका पालन करें। जो लोग सरकार के गाइडलाइन के पालन नहीं करेंगे उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र राजापाकर में गुरुवार को टीकाकरण का कार्य होगा

राजापाकर( वैशाली )संवाददाता, दैनिक आयोध्या टाइम्स

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र राजापाकर समेत चार केंद्रों पर गुरुवार से पुनः कोरोना का वैक्सीन दिया जाएगा ।जानकारी देते हुए प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ राजेश कुमार ने बताया है कि गुरुवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र राजापाकर समेत बैजनाथपुर, चक सिकंदर एवं भोज पट्टी स्वास्थ्य केंद्र पर गुरुवार 20 मई को 45 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों का प्रथम डोज़ एवं सेकंड डोज़ सिर्फ को वैक्सीन का टीकाकरण होगा ।वही उन्होंने यह भी जानकारी दिया कि राजापाकर अस्पताल में 18 से 44 वर्ष वाले उन्हीं लोगों का टीकाकरण होगा जिन लोगों ने 20 मई के लिए ऑनलाइन स्लॉट बुक कराया है। मालूम हो कि  जिला वैक्सीन भंडार में वैक्सीन उपलब्ध नहीं रहने के कारण बीते 19 मई को वैक्सीनेशन का कार्य बाधित रहा है।

कोविड-19 - दिशानिर्देशों में सामायिक परिवर्तन - शासन, प्रशासन, वैज्ञानिकों की सजगता और जागरूकता का प्रमाण - एड किशन भावनानी

गोंदिया - वैश्विक रूप से कोविड -19 महामारी ने वर्ष 2019 के अंत से वैश्विक स्तर पर पैर पसारना शुरू कर दिया था और अपनी तीव्र घातकता से वैश्विक स्तर पर मानव पर हमला कर अपना उग्र रूप दिखाया, पूरे विश्व में तबाही मचा कर रख दी।...बात अगर हम भारत की करें तो भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे पहला मामला केरल के त्रिचूर में 30 जनवरी 2020 को सामने आयाथा और इसके अगले ही दिन याने 31 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस को वैश्विक आपदा घोषित किया था। 11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित किया था और इसके अगले ही दिन याने 12 मार्च 2020 को भारत में कोरोना संक्रमण से पहली मौत की पुष्टि हुई थी, जिसमें भारत एकदम चौकन्ना, चाक-चौबंद और सतर्क हुआ और पीएम मोदी ने 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू का आह्वान कर 25 मार्च 2020 को देश को संबोधन किया और रात 12 बजे से 21 दिन का पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी और फिर कोविड-19 की गाइडलाइंस बनाने का और क्रियान्वयन करने का दौर जो शुरू हुआ जो मंगलवार दिनांक 18 मई 2021 तक शुरू है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), केंद्रीय गृहमंत्रालय, केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवारकल्याण मंत्रालय, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) मानव संसाधन विकास मंत्रालय और राज्य सरकारोंने अपने अपने स्तर पर गाइडलाइंस बनाकर क्रियान्वयन करना शुरू किया गया था जो अभी तक जारी है।......बात अगर हम नई गाइडलाइंस की करें तो हर संबंधित विभाग एमएचए, आईसीएमआर, एमएचएफडब्ल्यूई, एनडीएमए, द्वारा परिस्थितियों के बदलते परिवेश में अपनी-अपनी गाइडलाइंस को संशोधित, रणनीतिक अपडेट, करते रहे। जैसे जैसे कोविड-19 महामारी के वेरिएंट में बदलाव का संकेत, या कानून व्यवस्था नियंत्रण, स्वास्थ्य समीक्षा का अपडेट डाटा, के आधार पर अपनी अपनी गाइडलाइंस को संशोधित करते रहे और वर्ष 2020 पूरा निकल गया जबकि महामारी में कुछ राहत 2020 के अंत और 2021 के जनवरी माह तक थी। लेकिन फरवरी 2021 से महामारी ने ऐसी तीव्रता से आघात किया कि महामारी की दूसरी लहर पीक पर और तीसरी लहर का अंदेशा जताया जाने लगा। जिसको ध्यान में रखते हुए एमएचए, आईसीएमआर और एमएचटीडब्ल्यूए, एनडीएमए ने भी अपने दिशानिर्देशों में संशोधन करते हुए कुछ सामायिक अंतराल में बदलते परिवेश में नई नई गाइडलाइंस निकालते रहे, जिससे लॉकडाउन की तिथियां बढ़ाना, घर पर 3 लेयर मेडिकल मास्क पहनना, कोरोना मरीज हल्के लक्षण मरीजों को घर पर क्वॉरेंटाइन, होली, ईद पर भीड़ इकट्ठा ना होने, धार्मिक स्थल बंद करने इत्यादि अनेक महत्त्वपूर्ण  दिशानिर्देशों में बदलाव करते हुए जारी किए गए और आज दिनांक 18 मई 2021 तक यह सामायिक अंतर में, बदलते परिवेश, परिस्थितियों और डाटा के अपडेट होने पर तुरंत नई गाइडलाइंस बनाई जा रही है। कोरोना महामारी के संबंध में  मानव संसाधन विकास मंत्रालय सहित अनेक मंत्रालयों को भी अपनी गाइडलाइंस बनाने पड़ी है और परिस्थिति के अनुसार उन्हें अपडेट करना चालू है।.....बात अगर हम पिछले कुछ दिनों की गाइडलाइंस अपडेट की करें तो अभी कुछ राज्यों में ब्लैक फंगस बहुत तेजी से विस्तारित हो रहा है और गाइडलाइंस जारी हुई है तथा एम्स के विशेषज्ञों ने भी अलर्ट किया है और दिनांक 17 मई 2021 को आईसीएमआर ने प्लाजमा थेरेपी को चिकित्सीय प्रबंधन दिशानिर्देशों से हटा दिया है। आईसीएमआर ने जानकारी दी है कि प्लाजमा थेरेपी बीमारी की गंभीरता या मौत की संभावना को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अतः बदलते परिवेश में आईसीएमआर ने नई गाइडलाइन जारी कर इसे हटा दिया है। अब कोविड-19 मरीजों के उपचार के लिए प्लाजमा थेरेपी उपयोग में नहीं होगा और इसे चिकित्सीय प्रबंधन दिशा-निर्देशों से हटा दी गई है।अतः हम उपरोक्त पूरे विवरण का विश्लेषण करें तो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, मिनिस्ट्री आफ होम अफेयर्स, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय, आईसीएमआर, मानव संसाधन विकास मंत्रालय इत्यादि अनेक विभागों द्वारा बदलती परिस्थितियों और डाटा अपडेट के कारण अपनी गाइडलाइंस को रणनीतिक अपडेट किया हैं, जो इसका प्रमाण है कि शासन प्रशासन इस विपत्ति की घड़ी में हर स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं और अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूर्ण सजगता, जागरूकता के साथ कर रहे हैं और भारत को इस महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए रात दिन प्रयत्नों में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं। 


-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

सरस्वती और लक्ष्मी का द्वंद

हिंदी लेखन जगत में एक नई बहस चल रही है। मेरे बहुत से मित्र कुछ न कुछ लिख रहे हैं। कुछ समर्थन में तो कुछ विरोध में। हालांकि बहस में कुछ भी नया नहीं है। यह सालों से चली आ रही समस्या है; जिससे लेखक-कवि जूझ रहा है। समस्या है - सरस्वती-लक्ष्मी का द्वंद्व। 

दो तरह के काम हैं। एक, स्वयंचेतस् रचनात्मकता। दूसरा, डिमांड पर लिखना। दोनों अलग-अलग हैं। 
मैं एक पत्रिका का सह संपादक रहा हूँ। मैंने बाक़ायदा पैसे लिये। क्योंकि वो काम 'मज़दूरी' है। ईमेल चेक करो, आवश्यक संसोधन करो, प्रूफ़ रीडिंग, डिजाइन तैयार करो ... ढेर सारे छोटे-मोटे काम। यह एक फॉर्मेट में होता है। इसका पारिश्रमिक माँगा जाना चाहिए। 
विद्यालयों में बतौर वक्ता गया हूँ। बुलाने वाले मित्र थे। जब वक्ता होने की सहमति दी तब नहीं पता था कि बोलने का पारिश्रमिक मिलता है। लेकिन भाषण-समाप्ति उपरांत पैसा हाथ में आया तो अच्छा लगा। वो मेरी बेरोज़गारी के दिन थे। उन पैसों से काफ़ी सहायता मिली। 
कुछ कार्यक्रमो का संचालन भी किया है, शौक़िया तौर पर। कभी न पैसा माँगा न मुझे दिया गया। मैं पैसों के लिए यह करता भी नहीं था। हाँ, एक जगह के आयोजक ने ( जिसने कार्यक्रम में लाखों का खर्चा किया था ) मुझे पाँच हजार का चेक दिया था। मैंने सहर्ष स्वीकार भी लिया था। 
कहीं पर बोलने जाने से पहले मैंने आयोजकों से यह कभी नहीं कहा कि मैं डिबेटर रहा हूँ। यह देखिए मेरे सर्टिफिकेट्स। मेरी प्रतिभा है इसलिए आपको पैसा देना होगा। उल्टा मैं डिबेट में इसलिए जाना छोड़ चुका था क्योंकि वहाँ पुरस्कार राशि के लिए मारधाड़ मची थी। योग्यता झक मारती थी। रटा-रटाया और आवेशपूर्ण बोलना ज्यूरी को ज़्यादा रुचता था। उनकी अपनी लॉबी थी। ख़ैर ...
अनुवादक का काम किया है मैंने। अंग्रेजी से हिंदी। काम करवाने वाले ने प्रति-पृष्ठ मेहनताना तय किया। मुझे कीमत ठीक लगी तो मैंने वह काम किया। 
दिल्ली में मेरे घनिष्ठ हैं।  उन्हें कंटेंट प्रोवाइड करता था। यह काम भी बाक़ायदा पारिश्रमिक देता था। 
अपने मित्रों की किताबों की प्रूफ़ रीडिंग की है। मैंने किसी से पैसा नहीं माँगा। यह काम मैंने दोस्ती के लिए किया। कुछ काम मुझे सौंपा गया तो मैं मना नहीं कर पाया और कुछ मैंने स्वेच्छा से किया ... एक मित्र ने पैसे देने भी चाहे तो मैंने स्वीकार न किये।
पत्रिकाओं में कविताएँ और लेख भेजता रहा हूँ। बस इसलिए कि लोगों तक मेरा लिखा हुआ पहुँचे। यह शुद्ध रचनात्मक कार्य था। मैंने इस काम के लिए कभी पैसे नहीं चाहे। तीन चार पत्रिकाओं ने लेख प्रकाशन पश्चात बैंक डिटेल माँगी तो सुखद भी लगा।
बात हमारी इच्छा पर है। डिमांड पर लिखने के पैसे मांगना लेखक का अधिकार है। लेकिन अपना लिखा सिर्फ़ इसीलिए न छपवाना कि उसके पैसे नहीं मिल रहे, नितांत बौनापन है।
अमीश त्रिपाठी और चेतन भगत करोड़ों कमाते हैं। फेम और ग्लैमर उन्होंने खुद पैदा किया है। आप ब्रांडिंग कीजिए, मार्केटिंग कीजिए, कमाइए लाखों - कौन रोक रहा है ?
पाठकों का मन मेरी समझ में नहीं आया कभी। आजकल वो ग्लैमर के पीछे भागता है। अमीश का कचरा पढ़ लेंगे लेकिन नरेंद्र कोहली को खरीदकर पढ़ने में जोर आता है। बलदेव उपाध्याय की किताबें कोई पलटकर देखना नहीं चाहता, वहीं राधाकृष्णन का दर्शन थोक में बिक रहा। कुछ बात फेम की है, कुछ पाठकों के नज़रिये की। लेकिन वो उसकी मर्ज़ी की बात है। आप और मैं दबाव नहीं डाल सकते।
कुछ किताबें जो उपहार में मिलतीं हैं, स्तरीय होतीं हैं तो कुछ कोरा कचरा। कुछ खरीदीं किताबें भी निराश कर सकतीं हैं।
एक सवाल रॉयल्टी को लेकर भी है। प्रकाशक किताब बेचे और आपको उचित रॉयल्टी न दे तो यह धोखेबाजी है। लेखक को रॉयल्टी मिलनी चाहिए और उसकी योग्यता को सम्मान भी। लेकिन हाँ, योग्यता का सम्मान लड़-झगड़कर तो नहीं लिया जा सकता न !
अनुपम मिश्र कृत " आज भी खरे हैं तालाब " पुस्तक की लाखों प्रतियाँ बिकीं। उन्होंने उसे कॉपीराइट से मुक्त रखा। यह उनकी इच्छा थी। उनके लेखकीय कर्म का सम्मान किया जाना चाहिए। यह सेवा ही थी... लेकिन आप पर कोई दबाव नहीं कि आप सेवा करें। यहाँ अनुपम जी को लेखक-बिरादरी का दुश्मन मानने का कोई कारण नहीं। ऐसे कई सेवाभावी लोग गम्भीर अकादमिक कार्य में लगे हुए हैं ... मेरा असीम आदर है उनके प्रति।
यह आपका चुनाव है। आप चाहें तो कचरा बेचकर करोड़ों कमाएं, चाहें तो महत्वपूर्ण कार्य का भी एक पैसा न लें। निराला का उदाहरण ज़्यादा घसीटने का कोई अर्थ नहीं रहा। अंग्रेजी लेखकों का लेखकीय-कर्म भी हिंदी के मुक़ाबले थोड़ा अलग है, इसलिए उसकी चर्चा भी अकारथ है। 
हम अपने हीनताबोध से बाहर आएं। पुरस्कारों के लिए लड़ना-झगड़ना बंद करें। चापलूसी कर फैलोशिप प्राप्ति के सपने देखना छोड़ें। सुंदर लड़कियों की अधपकी कविताओं को अज्ञेय के शिल्प की कविताएँ कहने से बचें। कोमल शरीर देख समीक्षा-लेखन से बाज़ आएं .... तो कुछ बात करें। 
मुझे कोई लड़की अच्छी लगी तो उसके ज़िस्म की तारीफ़ कर ली, उसके सौंदर्य पर कविता लिख मारी, उसके ड्रेस  सराह लिया, कुछ सलाह दे दी, कह दिया कि भविष्य उज्ज्वल है आपका, लेकिन उसके लिखे को निराला के समकक्ष बताने का अपराध न हो सका। 

इति नमस्कारांते ...

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

Tuesday, May 18, 2021

कोविड-19 - वैज्ञानिक आधार को बढ़ावा देना जरूरी - गांवों में भ्रांतियों को ख़ारिज कर जनजागरण अभियान चलाना जरूरी

21वीं सदी के डिजिटल युग में भ्रांतियों, टोटकों और जादू टोना प्रथा को स्वतः संज्ञान लेकर लगाम लगाना जरूरी - एड किशन भावनानी

गोंदिया - वैश्विक रूप से कोरोना महामारी अपना तांडव मचा रही है। हालांकि कुछ विकसित देशों ने इसे वैज्ञानिक आधार, वैक्सीनेशन, लॉकडाउन, दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन के आधार पर कोरोना महामारी को मात देने के करीब पहुंच गए हैं और धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर बढ़ने हेतु अग्रसर हो गए हैं।मंगलवार दिनांक18 मई 2021को माननीय प्रधानमंत्री ने 9 राज्यों के 46 कलेक्टरों से प्रथम चरण की वर्चुअल बैठक की जिसमें माननीय पीएम ने महामारी से निपटने संबंधी अनेक मंत्रों सहित मार्गदर्शन में कहा गावों तक महामारी के संक्रमण के विस्तार को रोकना है, कालाबाजारी को रोकना और कड़े कदम उठाना हैं, अपना जिला जीता तो भारत जीता, ट्रिपल टी फार्मूला, वैक्सीन के वेस्टेज को रोकना सहित अनेक बाते कहीं और महामारी के संक्रमण को रोकने, तेज़ी से निपटने के लिए सुझाव भी मांगे और उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति पर तारीफ़ की और भी अनेक सकारात्मक पहलुओं से डीएम का मार्गदर्शन किया जो हम सभ ने लाइव प्रसारण देखे जो 12.56 pm तक चला और हम जनता को भी बहुत अच्छा महसूस हुआ.....बात अगर हम भारत की करें तो आज सोमवार दिनांक 17 मई 2021 को केंद्रीय और राज्यों के स्तर पर आए आंकड़ों से दिख रहा है कि कोरोना महामारी पर लगातार तीन दिन से हम संक्रमण पर दबाव बढ़ाने में कामयाब हो रहे हैं और आगे भी इसी तरह संक्रमण के मामले और दर घटती जाएगी ऐसा हम हौसला रख पूरी मुस्तैदी से जंग लड़ना जारी रखें तो सफलता हमें जरूर मिलेगी यह पक्का विश्वास है।....बात अगर हम इस 21 वीं सदी के वैज्ञानिक, डिजिटल युग में भ्रांतियों, टोटकों और जादू टोने की करें तो कुछ अजीब सा महसूस होता है।खासकर इन भ्रांतियां,  टोटकों को अगर कोविड-19 जैसी घातक जानलेवा और फेफड़ोंको अत्यधिक तीव्रता से संक्रमित कर मानव को यमलोक पहुंचाने मैं अडिग इस डब्ल्यूएचओ द्वारा घोषित महामारी को दूर करने में भी अगर हम इन भ्रांतियों, टोटकों, जादूटोना का उपयोग करेंगे तो यह अपने आप में नाइंसाफी होगी यह मेरा मानना है।.... बात अगर हम भ्रांतियों की करें तो आज के दौर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और टीवी चैनलों के माध्यम से हम ग्राउंड रिपोर्टिंग देख रहे हैं कि किस तरह इस कोरोना महामारी ने गांव तक तीव्रता से दस्तक दी है और बड़ी तेजी से शहरों से गांव की ओर फैल रही है। जहां अपेक्षाकृत कई गुना कम मेडिकल संसाधन दवाइयां हैं और कई गांव में तो अस्पताल कई किलोमीटर दूर है और वहां कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी है और उनका इलाज भ्रांतियों, टोटकों, जादू टोना धुए से भरी काली हंडी को घुमाकर, तालाब पर भीड़ जमा कर कोरोना को भगाने की पूजा, संतरे के बगीचों में, जंगलों में स्लाइन लगाकर,  ऐसे अनेक भ्रांतियों से उपाय किए जा रहे हैं। दूसरी ओर इनका इलाज ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा है जिनके पास कोई डिग्रियां तक नहीं है या अस्पताल का कोई लाइसेंस नहीं है दूसरी भाषा में झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा इलाज किया जा रहा है। ऐसे इलाज से संक्रमण पूरे परिवार, फिर गांव, फिर आस-पास के गांव, में फैलने की उम्मीद रहेगी। अतः हमारे गांव वाले ग्रामीण भाई-बहनों से निवेदन है कि वह स्वत संज्ञान लेकर ऐसे गफलतों से बचें और गांव में टेस्टिंग करने आई मेडिकल टीम से टेस्टिंग कराकर उनके दिशानिर्देशों पर चलें और मानवता की सेवा में सहयोग करें।...बात अगर हम इन भ्रांतियोंको बढ़ावा देने वाले प्रबुद्ध शिक्षित, कुशल नेतृत्व , कलाधारी, नामी-गिरामी, व्यक्तित्व की करें और उनके वक्तव्य में इन भ्रांतियों को बढ़ाने का संज्ञान मिले तो देश के लिए हैरानी वाली बात होगी। यह वक्तव्य जैसे गंगा मैया में स्नान करने या गंगा मैया के आस पास कोरोना कभी नहीं भटकेगी, गोमूत्र का सेवन करने से कोरोना महामारी नहीं होगी या फेफड़ों पर संक्रमण नहीं होगा, या यह वैक्सीन तो उस पार्टी की वैक्सीन है, वैक्सीन लगाने से बांझपन आता है, पहले पीएम को वैक्सीन लगाना चाहिए, इस तरह के वक्तव्य और कुछ भ्रांतियां हमने बहुत पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और टीवी चैनलों के माध्यम से सुनते और देखते आ रहे हैं। मेरा निजी मानना है कि इससे जनता में एक भ्रम की स्थिति फैलती है और इन पर विश्वास कर जनता इसका अनुसरण या पालन करने लगती है जिससे संक्रमण अपनी चैन को मजबूती से बढ़ाने में कामयाब होता है जिससे सबसे अधिक नुकसान आम नागरिकों को वाहन करना होता है। अतः सरकार द्वारा इन वक्तव्य को स्वत संज्ञान लेकर या वक्ता द्वारा स्वतः ही इस बयान को ख़ारिज या वापस लेने की पहल करनी चाहिए।....बात अगर हम वैज्ञानिक आधारों का आविष्कार करने वाली मेडिकल एजेंसीयों की करें तो, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एंडसीडीसी) इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) कोरोना वायरस के विभिन्न वेरिएंट का पता लगाने के लिए बने सलाहकारों के सरकारी फोरम, इंडियन सार्स-सीओवी-2 जिनोमिक्स कंसोर्टिया (आईएनएसएजीओजी) इत्यादि देश की 10 बड़ी प्रयोगशाला तालमेल से वायरस पर कार्य कर रही है जिनकी कुल मिलाकर 15 समितियां है जिनकी अभी तक 67 रिव्यू मीटिंग हुई है ऐसी जानकारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनलों द्वारा दी गई है। इसके अनुसार पूरी दुनिया में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक आधार पर सटीकता में भारत का डंका बजता है। लेकिन हम अभी कुछ समय से जब से,,गांव में महामारी ने पैर पसारे हैं तो भ्रांतियों, टोटकों, का सिलसिला लगातार सुनाई दे रहा है और कुछ वक्तव्य भी सुनाई दे रहे हैं। हालांकि इन भ्रांतियों का संबंध हमारे पूर्वजों के वैद्यकीय ज्ञान या सामाजिक प्रथा के रूप में हो सकता है। परंतु उस समय इतनी मेडिकल सुविधाएं और संसाधन नहीं थे। आज के डिजिटल युग में अनेक मेडिकल संसाधन उपलब्ध हैं। अतः हमारे हर ग्रामीण क्षेत्र के साथियों को आगे आकर स्वतः संज्ञान लेकर इन भ्रांतियों, टोटकों, का विरोध कर कोविड-19 के पुराने या नए सिम्टम्स का थोड़ा साभी आभास होता है तो गांव पहुंची टीम से टेस्ट करवाएं और पॉजिटिव आने पर क्वॉरेंटाइन हो जाएं ताकि अन्य साथियों को संक्रमित होने से बचाया जा सके। अतः उपरोक्त पूरे विवरण का हम विश्लेषण करें तो हमें यह ज्ञात होता है कि इस महामारी के इलाज में हम वैज्ञानिक आधार को बढ़ावा देना चाहिए। शासन, प्रशासन, अधिकारियों, को इस क्षेत्र में रिसर्च करने वाली एजेंसियों की सिफारिशों पर ही अपनी रणनीतिक रोडमैप और दिशानिर्देश बनाया जाना जारी रखना चाहिए।

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

कैसे मिले प्रभु रोजी रोटी इस संकट काल में ?

आज देश के ओ वंचित वर्ग सबसे ज्यादा परेशान हैं,जो रोज कुंआ खोदते रोज पानी पीते थे,यानी की मजदूर वर्ग जो दिहाड़ी करके कमाते  थे, जिससे इनके घरों में चूल्हे जला करते थे , आंकड़ों को देखें तो इस कोरोना महामारी ने लगभग 63 फीसदी तो  घरेलू कामगारों से ही रोजगार  छीन लिया है , ऐसे में अब तो घर चलाना बहुत ही  मुश्किल हो रही है। हमने देखा की  पिछले साल कोरोना के चलते लगाएं गए लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया था, हालांकि कुछ समय बाद चीजें धीरे-धीरे पटरी पर लौटना शुरू हुई तो कोरोना की दूसरी लहर ने सब कुछ तबाह कर दिया है , दूसरी लहर के बाद अचानक नए कोरोना के मामलों में भारी उछाल आया और फिर राज्य सरकारों ने धीरे-धीरे सख्त पाबंदियां लगाते हुए लॉकडाउन लगा दिया है ,इस कोरोना महामारी से भारी संख्या में लोगों की नौकरी गई हैं,स्थिति यह हो गई कि जिन लोगों का रोजगार छूटा है, उनके घरों में आर्थिक संकट इस कदर हावी हो गया कि घर चलाना भी मुश्किल हो गया है। हम सभी ने देखा की हमारे प्रवासी मजदूर देश के अलग-अलग शहरों और राज्यों से पैदल ही हजारों हजार किलोमीटर चलने को मजबूर हुए थे, जिनमें से बहुत से प्रवासी मजदूर अपने घर पहुंचने से पहले ही कोई ट्रेन के पहियों के नीचे तो कोई ट्रक के पहियों के नीचे तो बहुत से प्रवासी मजदूर भूखे दम तोड़ दिया था ,अब तो लगभग देश के हर वह वर्ग रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है जो रोज कमाता खाता था, साथ ही मध्यम वर्गीय परिवार वालों का भी आज हालात दिन पर दिन बदतर होती जा रही है , एक रिपोर्ट में पता चला है कि केवल देश के राजधानी  दिल्ली में 63 फिसदी घरेलू कामगारों जो मकानों में कपड़े, बर्तन, झाडू-पोछा और खाना बनाने वाली महिलाओं  ने ही इस महामारी के बाद से नौकरी खो दी हैं, तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अन्य क्षेत्रों में काम करने वालों की हालत क्या हो सकती है ?  वही दूसरी तरफ इस महामारी ने मजदूरों को झझकोर कर रख दिया है, सबसे ज्यादा दुखों का पहाड़ प्रवासी मजदूरों पर टूटा है, मजदूरों के पास अब रोजी-रोटी का संकट है, इनके साथ ही अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले मध्यम वर्गीय परिवार पर भी रोजी रोटी का संकट मंडरा रहा है , सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से जो राशन भारत सरकार पहुंचाने का प्रयास कर रही है , गरीबों और जरूरतमंद लोगों के रोटी पर भी कालाबाजारी करने वाले डंका  डाल दे रहे है , मजदूरों के उत्थान के लिए सरकार की योजनाएं सरकारी कार्यालयों में दम भर रही हैं,हर शहर व  नगर के चौराहों पर सुबह के समय रोजी-रोटी की तलाश में ना जाने कितने मजदूर रोजी की तलाश में खड़े रहते हैं, देखे तो दो वर्षों में कोराना महामारी ने मजदूरों के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है, रोजी-रोटी की तलाश में मजदूर इधर-उधर भटक रहे हैं, बाहर से आने वाले प्रवासी मजदूर कोरोना संकट से जूझ रहे है ,आज गांवों में भी रोजगार के संसाधन नहीं हैं, मनरेगा योजना में भी मजदूरी केवल 201 रुपये है, जिसमे पहले से काफी श्रमिक मजदूर जुड़े हुए है ,ऐसे में शहरों से अभी गए हुए ,मजदूरों को रोजी रोटी का व्यवस्था कैसे होगा ? वही दूसरी तरफ देश के कुछ  रहीस लोग गरीबों पर ही कोरोना महामारी का भी आरोप लगा देते है, बोलते हैं कि गरीबों के कारण यह करोना का रफ्तार बढ़ा  है, अब इनको मैं कैसे समझाऊं कि हमारा गरीब तबका जहाज से नहीं चलता है, जहाजों में बैठकर आप लोग आएं और आप हमारे यहां लाए,फिर जो वर्षों तक आपके शहर को चमकाने में हमारे प्रवासी मजदूर दिन रात एक किए थे उसको आप रोटी तक के लिए भी नहीं पूछते हो, बल्कि घटिया राजनीति करते हो झूठी आश्वासन देते हो फिर सोशल मीडिया पर उसका आप मजाक भी बनाते रहते हों, हालांकि सभी लोग ऐसे ही नहीं करते बहुत से लोग आज भी मानवता के रास्ते पर चलते हुए जरूरतमंद लोगों को मदद दे रहे हैं, आज आप सभी से मेरा विनम्र निवेदन है कि आप भी अपने सामर्थ्य अनुसार जो भी जरूरतमंद आपके आंखों से दिखे तो जरूर आगे बढ़कर उसका साथ दे।


डॉ. विक्रम चौरसिया (क्रांतिकारी)

हृदय रोगों और आँखों के संक्रमण रोके औषधीय घटक - पुनर्नवा

यह एक ऐसी वनस्पति है जिसे पुनर्नवा के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद के जानकार इसे एक प्रचलित औषधि के रूप में सदियों से प्रयोग कराते आ रहे हैं ।पुनर्नवा जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह पुर्न यानि दुबारा नवा अर्थात नई यानि जो शरीर मे नवीन कोशिकाओं को जन्म दे नूतनता लाये ऐसी वनस्पति पुनर्नवा है।लेटिन में इसे बोरहावीया डिफ्युजा के नाम से जाना जाता है।इसकी दो प्रजातियां होती है एक श्वेत पुनर्नवा और दूसरी रक्त पुनर्नवा।अभी बारिश के मौसम के इसके छोटे पौधे निकलते है जो 2 से 3 मीटर लंबे होते हैं और जमीन पर फैलते हैं।इसके नामके साथ एक और रोचक पहलू है सूखा हुआ पुनर्नवा का पौधा बरसात आने पर फिर से नया जीवन प्राप्त कर लेता है इन्ही गुणों के कारण प्राचीन ऋषियों ने इसका नाम पुनर्नवा रखा हो।

*विभिन्न भाषाओं में नाम -* संस्कृत- पुनर्नवा। हिन्दी- सफेद पुनर्नवा, विषखपरा, गदपूरना। मराठी- घेंटूली। गुजराती- साटोडी। बंगला-श्वेत पुनर्नवा, गदापुण्या। तेलुगू- गाल्जेरू। कन्नड़-मुच्चुकोनि। तमिल- मुकरत्तेकिरे, शरून्नै। फारसी- दब्ब अस्पत। इंग्लिश- स्प्रेडिंग हागवीड। लैटिन- ट्रायेंथिमा पोर्टयूलेकस्ट्रम।
*गुण -* श्वेत पुनर्नवा चरपरी, कसैली, अत्यन्त आग्निप्रदीपक और पाण्डु रोग, सूजन, वायु, विष, कफ और उदर रोग नाशक है।
*रासायनिक संघटन*- इसमें पुनर्नवीन नामक एक किंचित तिक्त क्षाराभ (0.04 प्रतिशत) और पोटेशियम नाइट्रेट (0.52 प्रतिशत) पाए जाते हैं। भस्म में सल्फेट, क्लोराइड, नाइट्रेट और क्लोरेट पाए जाते हैं।
*परिचय*- यह भारत के सभी भागों में पैदा होती है। इसकी जड़ और पंचांग का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। सफेद और लाल पुनर्नवा की पहचान यह है कि सफेद पुनर्नवा के पत्ते चिकने, दलदार और रस भरे हुए होते हैं और लाल पुनर्नवा के पत्ते सफेद पुनर्नवा के पत्तों से छोटे और पतले होते हैं। यह जड़ी-बूटियां बेचने वाली दुकान पर हमेशा उपलब्ध रहती है।श्वेत पुनर्नवा अत्यंत ही औषधि गुणों से युक्त होती है जबकि रक्त पुनर्नवा आपको अपने आसपास ही सड़कों के किनारे लगी मिल जाएगी।पुनर्नवा का मुख्य औषधीय घटक एक प्रकार का एल्केलायड है, जिसे पुनर्नवा कहा गया है। इसकी मात्रा जड़ में लगभग 0.04 प्रतिशत होती है। अन्य एल्केलायड्स की मात्रा लगभग 6.5 प्रतिशत होती है। पुनर्नवा के जल में न घुल पाने वाले भाग में स्टेरॉन पाए गए हैं, जिनमें बीटा-साइटोस्टीराल और एल्फा-टू साईटोस्टीराल प्रमुख है। इसके निष्कर्ष में एक ओषजन युक्त पदार्थ ऐसेण्टाइन भी मिला है। इसके अतिरिक्त कुछ महत्त्वपूर्ण् कार्बनिक अम्ल तथा लवण भी पाए जाते हैं। अम्लों में स्टायरिक तथा पामिटिक अम्ल एवं लवणों में पोटेशियम नाइट्रेट, सोडियम सल्फेट एवं क्लोराइड प्रमुख हैं। इन्हीं के कारण यह अपना अद्भुत औषध गुण दर्शाती है। कहा गया है-- 
*पुनर्नवं करोति इति पुनर्नवा ।*
जो अपने रक्तवर्धक एवं रसायन गुणों द्वारा सम्पूर्ण शरीर को अभिनव स्वरूप प्रदान करे, वह है ‘पुनर्नवा’ ।
अंग्रेजी में ‘हॉगवीड’ नाम से यह पूरी दुनिया मे जानी जाती है ।
मूँग या चने की दाल मिलाकर इसकी बढ़िया सब्जी बनती है, जो शरीर की सूजन, मूत्ररोगों (विशेषकर मूत्राल्पता), हृदयरोगों, दमा, शरीरदर्द, मंदाग्नि, उलटी, पीलिया, रक्ताल्पता, यकृत व प्लीहा के विकारों आदि में फायदेमंद है l
*आँखों के लिए लाभ*--
आँखो के फूल जाने पर या सूजन आने पर पुनर्नवा की जड़ घी में घिसकर आंखों पर लगाएं। सूजन में राहत मिलेगी। पुनर्नवा की जड़ को शहद अथवा दूध में घिसकर लगाने से आंखों में होने वाली खुजली दूर होती है। आंखों से पानी आने पर पुनर्नवा की जड़ को शहद के साथ घिसकर लगाने से यह परेशानी दूर हो जाती है। पुनर्नवा की जड़ को कांजी में घिसकर आंखों पर लगाने से रतौंधी की समस्या में लाभ मिलता है। मोतियाबिंद के लिए पुनर्नवा की जड़ को पानी के साथ पीस लें। अब इस पेस्ट को आईलाइनर के रूप में लगाएं। इसका नियमित रूप से उपयोग करने से मोतियाबिंद दूर हो जाता है।
*किडनी के लिये लाभप्रद-*
किडनी से जुड़ी बीमारियों के खतरे को दूर करने के लिए पुनर्नवा का सेवन करें। एक शोध के मुताबिक पुनर्नवा के पौधे और कुछ अन्य जड़ी बूटियों को मिलाकर बीमार किडनी को स्वस्थ बनाया जा सकता है। इसके सेवन से किडनी से जुड़ी बीमारी के जोखिम को भी कम किया जा सकता है।
*ब्लड प्रेशर और हार्ट स्ट्रोक में*-
इन दिनों ब्लड प्रेशर की समस्या लोगों के बीच लगातार बढ़ रही है। आयुर्वेदिक औषधि पुनर्नवा का इस्तेमाल कर आप इस परेशानी को कंट्रोल कर सकते हैं। इसके लिए पुनर्नवा पाउडर को आप शहद के साथ मिलाकर खा सकते हैं। इसमें मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है तो ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मददगार साबित हो सकती है। बता दें कि ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है क्योंकि इससे हार्टअटैक और हार्ट स्ट्रोक की समस्या होने का खतरा रहता है।
*यूरीन इन्फेक्शन की समस्या को दूर करें*-
सही खानपान नहीं होने की वजह से अक्सर लोगों को यूरिन इंफेक्शन की समस्या हो जाती है। इस बीमारी से पुरुषों के साथ महिलाएं भी प्रभावित होती हैं। इस स्थिति में पुनर्नवा एक औधषि के रूप में काम करता है। इसका सेवन करने से यूरिन के रास्ते को साफ करन में मदद मिलती है। इसके साथ ही यह यूरिन संबंधित संक्रमण के खतरे से भी बच सकते हैं।
*एंटी एजिंग गुण बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोके -*
बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोकने के लिए लोग तरह तरह उपाय आजमाते हैं, लेकिन पुनर्नवा में एंटी एजिंग गुण होते हैं जो त्वचा के लिए फायदेमंद होते हैं। इसके लाभ पाने के लिए एक चम्मच पुनर्नवा पाउडर एक ग्लास पानी में मिलाकर पिएं। इसे आप हफ्ते में दो से तीन बार पी सकते हैं। यह त्वचा में निखार और कसाव उत्पन्न करने का काम करता है।
*पाचन को ठीक करे –* 
यदि आपको पाचन से संबंधित कोई बीमारी है, तो आपको इसका रोज़ाना एक चम्मच सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से पेट संबंधी सभी बीमारियां दूर हो जाएंगी।
*चर्मरोग से छुटकारा पाएं –*
 यदि किसी को चर्मरोग, दाग या धब्बे हैं, तो वह उस स्थान पर पुनर्नवा के जड़ को पीसकर लगाए। कुछ दिन में ही इसका असर दिखने लगेगा।
*वजन कंट्रोल करे –*
 पुनर्नवा के सेवन से आपका वजन बिल्कुल कंट्रोल रहेगा। यानि आप न ज्यादा मोटे होंगे और न ही ज्यादा पतले होंगे, बल्कि आपका वजन एकदम परफेक्ट रहेगा।
*हृदय के लिए फायदेमंद-*
पुनर्नवा में कार्डियोप्रोटेक्टिव गुण पाए जाते हैं, जो हृदय से जुड़ी कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है। दिल की बीमारी या सेहतमंद रखने के लिए पुनर्नवा का सेवन करना आपके लिए फायदेमंद हो सकते हैं। बता दें कि हृदय से जुड़े कई तरह की बीमारियों को पुनर्नवा की मदद से दूर कर सकते हैं।
*कैंसर से निज़ात –*
 पुनर्नवा की जड़े और पत्ते कैंसर के मरीज़ों के लिए वरदान है। जी हां, इसके इस्तेमाल से बॉडी में नयी कोशिकाएं बनने लगती हैं और धीरे धीरे कैंसर से लड़ने में मरीज़ कामयाब हो जाता है।
*पथरी से निज़ात-*
 यदि किसी को पथरी है, तो वह पुनर्नवा रोज़ाना शाम और सुबह को दूध में मिलाकर पीएं। ऐसा करने से कुछ ही दिनों में पथरी पैशाब के रास्ते से बाहर निकल जाएगी।
*पीलिया से निज़ात –*
यदि किसी को पिलिया हुआ हो तो वह पुनर्नवा का इस्तेमाल शहद के साथ करे, ऐसा करने से जल्दी ही आराम मिल जाएगा।
*फोड़ा फुंसी आदि –*
 यदि किसी को फोड़ा फुंसी आदि हुआ हो तो पुनर्नवा को देसी घी में मिलाकर रोज़ाना पीएं, जल्दी ही फायदा मिलेगा।
*बवासीर –*
 यदि किसी को बवासीर है, तो वह पुनर्नवा को पीसकर बकरी के दूध में मिलाकर पीए, इससे फौरन ठीक हो जाएगा।
*जोड़ो का दर्द –*
 यदि आप जोड़ो के दर्द से परेशान है तो आपको पुनर्नवा का इस्तेमाल करना चाहिए, इससे जल्दी आराम मिलेगा।
*खून साफ होगा –*
 पुनर्नवा के इस्तेमाल से खून साफ हो जाता है और इससे जुड़ी तमाम समस्याएं दूर हो जाती हैं।
इसके अलावा बहुत से रोगों में पुनर्नवा का इस्तेमाल होता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियाँ सामान्य मान्यताओं पर आधारित है।आप सेवन से पहले अपने डाॅक्टर या विशेषज्ञ से सलाह अरुर लें।


*डाॅ.रवि नंदन मिश्र*
*असी.प्रोफेसर एवं कार्यक्रम अधिकारी*
*राष्ट्रीय सेवा योजना*
( *पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज,वाराणसी*) *सदस्य- 1.अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी,*
*2. भास्कर समिति,भोजपुर ,आरा*
*3.अखंड शाकद्वीपीय  एवं*
*4. उत्तरप्रदेशअध्यक्ष - वीर ब्राह्मण महासंगठन,हरियाणा*

श्मशान में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सब जल रहे हैं पास-2*

 ऐसी विपदा तो सौ सालों में,कभी नहीं थी आई।

कैसा ये परिदृश्य बना है, टीवी देखें आये रुलाई।

इंसानों ने विकास हेतु,किया प्रकृति से खिलवाड़।
वृक्ष एवं जंगल सब काटे,बंद ऑक्सीजन किवाड़।

बड़े बड़े तालाबों को पाटा,बिल्डर्स का है ये धंधा।
खनन माफियाओं का भी,काम हुआ नहीं ये मंदा।

वृक्षारोपण किए नहीं हैं,प्रदूषण भी ऐसा फैलाया।
साँस भी लेना दूभर है,कोरोना ने ऐसे पैर फैलाया।

पिघल रहा ग्लेशियर,ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है।
भू जल भी क्षरण हो रहा,ऊर्जा ह्रास का असर है।

अपनी करनी का ये फल,मानव ही भोगा-भोगे गा।
धरती पर तो शुकून नहीं,हर घर में रोग है भोगे गा।

इन सब झंझावातों से कैसे,इंसान कोई संघर्ष करे।
आजिज आ गया है ये,इंसा कोविड से संघर्ष करे।

कितनी जानें रोज जा रहीं, हर तरफ है हाहाकार।
आपदा में भी अवसर का,कर रहे लोग हैं व्यापार।

नहीं रह गई इंसानियत कोई,ब्लैक में बेंचते दवाई।
लाशों का ढ़ेर लगा है,अस्पताल में बेड है न दवाई।

शमशान में जाते ही,मिट ये गया है सब छुआछूत।
पास पास ही जल रहे हैं,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र।

राजनीति लाशों पर भी होये,कितनी है ये बेहयाई।
किसी नेता को भी बिलकुल,इसमें शर्म नहीं आई।

कभी-2 मरने वाले के दरवाजे,पे पहुँच भले जाते।
नेतागण दिखावे में अपना भी,ये शोक जता जाते।

डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*

वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

लडकियों को तहजीब सीखाएं- मायके पक्ष

हमारे सनातन धर्म में कहा गया है लड़की का सुहागन होना और ससुराल में होना शुभ है ,और संस्कारिक मर्यादा भी।लेकिन आज कल के माॅम डैड ने इसे वर्बाद कर रखा है।सबसे ज्यादा विकट स्थिति का माध्यम फोन का घंटो तक आदान प्रदान होना।जिस किसी घर में ऐसी बीमारी लगी है वह घर रिश्ते की लिहाज से दम तोड़ चुके हैं । जबसे यह आधुनिक फोन का प्रचलन बढा है मायके का हस्तक्षेप बढता गया है। जिसे कोई खुद्दार पति शायद बर्दाश्त नहीं करता और यही सम्बन्धों की एक दीवार खड़ी करती है जो आये दिन अदालतें थाने और विभिन्न आयोग के बढ़ती फाइलों में दम तोड़ रही है।

प्राचीन काल में ऐसा बिल्कुल नहीं था रिश्तों की एक बुनियाद होती थी ।मायके पक्ष कभी भी नादानी या ओछी बात नही करते थे बल्कि अपने बच्ची को समझाते थे ।जिससे रिश्ता प्रगाढ और निरंतर बना रहता था।जब कोई खास आयोजन में उनसे राय मांगी जाती थी तो वे मशवरा देते थे आज बिल्कुल अलग है ।आज दाल में नमक अधिक हो गया अगर पति ने डांट दी तो पति को डाटने के लिए प्रोग्राम बनाया जाता है जिसका माध्यम भी मोबाइल ही है जबकि पहले लोग हंसकर उड़ा डालते थे। यही फर्क है आज के इस नयी पीढी में जिसकी वजह से नौबत तालाक तक पहुंच जाती है।घरेलू हिंसा और प्रताड़ना की सारे हदें पार कर चुका यह समाज अब पतन की कगार पर खड़ा है जिसकी वजह है एकल मानसिकता से ग्रसित लडकियां शादी के बाद सिर्फ एकल परिवार को बढावा दे रही है।

ऐसा नही कि एकल होने के बाद यह सिलसिला समाप्त हो जाता है अपितु बढ़ जाता है।कई पुरूष चुपचाप सहकर जीवन निर्वाह कर लेते है तो कई डिप्रेशन के शिकार हो जाते है।क्योंकि कलह की निरंतरता बनी रहती है।आज अदालतों में सबसे ज्यादा मुकदमे तालाक के है,महिला थाना में परिवारवाद की केस की संख्या इतनी ज्यादा है कि नम्बर आने में महीनो लग जाते है।महिला आयोग मानवाधिकार आयोग में भी प्रायः यही स्थिति है।
अब सवाल उठता है ऐसा क्यों है ऐसा इसलिए है क्योंकि ""एको अहम द्वितीयो नाश्ती। की मानसिकता जब पनपने लगती है तो सामने वाला बडा हो बुजुर्ग हो अथवा गेस्ट हो आप तरजीह नही देते और अपनी बात को सबसे उपर रखते है ।आप समझने की कोशिश नही करते कि आपकी बच्ची सही है या दामाद आप सिर्फ और सिर्फ अपनी एको हम द्वितीयो नाश्ती की परिभाषा को परिभाषित करते है जिससे सम्बन्ध विच्छेद होता है।
 युग कितना भी बदल जाय पर संस्कार तो घर और परिवार ही देता है और जब एकल परिवार ही रहेगा तो संस्कार कहां से आएगा ।यह आज की वास्तविकता है जिसे स्वीकार करना होगा।रिश्ते करने से पहले यह एक आवश्यक पहलू है जिसे हरकोई देखता है। मायके का बढ़ता प्रचलन विगत दशको से खूब फल फूल रहा जरूरत से ज्यादा उनकी भागीदारी ससुराल पक्ष में भी कटुता पैदा करता है ।यह भी घरेलू हिंसा का एक कारण है।कारण अनेको हैं जिसे समझने की जरूरत है।
देखा जाय तो संयुक्त परिवार का विधटन ऐसे तमाम परेशानियों को जन्म दे गया जो आज समाज में अभिशाप बना हुआ है। हमारे हिन्दु समाज में तालाक महिला थाना या महिला आयोग नही हुआ करती थी । इन सभी चीजो को बढ़ती घटनाओ को देखकर समयानुसार बनाया गया है।अलग कानून बनाकर महिला को सशक्त किया गया है ।लेकिन ऐसी सशक्तिकरण का क्या जहां पुरूष प्रताडित होते रहे।
आज महिला प्रताड़ना से ज्यादा पुरूष प्रताडित किए जाते है ।पुरूष की हालत ऐसी है कि वह चाहकर भी अपनी बात किसी से नही करता जबकि हकीकत तो सभी जानते हैं ।आखिर सरकार द्वारा बनाये गये कानून का कोई सदुपयोग करे यह सुनिश्चित भी तो नही क्योंकि शातिर दिमाग दुरूपयोग की ज्यादा सोच रखता है। आज ऐसे करोडो पुरूष है जो किसी न किसी रूप से अपनी पत्नी अथवा किसी महिला द्वारा प्रताडित है। क्या सरकार पुरूष आयोग बनाएगी ? वैसे कईयों को महिला कानून के गलत इस्तेमाल पर दंड भी दिया गया है लेकिन इसकी तादाद कम है।इसलिए मां बाप लड़कियों को मन विषैला करने के वजाय ससुराल में रहने का तरीका सीखाना चाहिए।तभी इन अदालतों का बोझ कम हो सकेगा।
                                             आशुतोष 
                                           पटना बिहार