Tuesday, January 4, 2022

ब्रेल लिपि की व्यवहारिक लब्धिया -

नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि

शैक्षिकविकास की चरम परिणति होती है। "नाइट राइटिंग" के नाम से प्रसिद्ध है यह लिपि विश्व के सभी नेत्रहीन व्यक्तियों के शैक्षिक विकास के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है जिसका आविष्कार फ्रांस के लुई ब्रेल ने किया था जो स्वयं नेत्रहीन थे। लुई ब्रेल के पूर्व नेपोलियन बोनापार्ट के सैनिक रात्रि में एक दूसरे से बिना बातचीत किए अपना संदेश दूसरे सैनिक को पहुंचा देते थे लगभग उसी समय से ब्रेल लिपि का उद्भव माना जाता है।नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि शिक्षा के संस्कृतियों की वह श्रृंखला है जिसमें प्रत्येक राष्ट्र संपूर्ण नेत्रहीन मानवीय उपलब्धियों मे अपना अपना समायोचित अभिव्यक्ति प्राप्त करता है। आधुनिक युग में ब्रेल लिपि नेत्रहीनों के लिए शिक्षा के परिवर्तन की वह परिभाषा है जिससे एक राष्ट्र का विकास उच्चतम बिंदु पर  होता है।  प्रतियोगिता में पिछड़ जाने वाले नेत्रहीन बालको का मूल कारक शिक्षा है। शिक्षा प्रत्येक राष्ट्र की वह महान उदय यात्रा है जिसमें कल्याणकारी राज्य तत्वमीमांसा निहित रहती है। विश्व को माननीय उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ब्रेल लिपि का व्यवहारिक  ज्ञान होना नेत्रहीनों के लिए अत्यंत आवश्यक है। आज विश्व में शिक्षा के नए-नए आयामों की तलाश की जा रही है जिससे राष्ट्र का विकास हो सके। वर्तमान युग में नेत्रहीन बालक भी ब्रेल लिपि के माध्यम से राष्ट्र के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। आधुनिक युग में सभी ऑफिस के कामकाज को नेत्रहीन व्यक्तियों के द्वारा भी कराया जा रहा है जो ब्रेल लिपि का एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। संवेदना शून्य नेत्रहीन व्यक्ति ब्रेल लिपि के माध्यम से अपने जीवन के जीवंतता को बनाए रखने में सफल है। वर्तमान समय में ब्रेल लिपि की शिक्षा नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए विश्व के कई देशों में कई भाषाओं में उपलब्ध है इसका अंदाजा विश्व के कई ऑफिस में नेत्रहीन व्यक्ति भी वर्कर्स के रूप में देखे जा सकते हैं। आज वैश्विक उपभोक्तावादी संस्कृति की छाया में आर्थिक विकास के श्रेणी में नेत्रहीन व्यक्ति यथार्थ के परिमाप को लिए प्रत्येक राष्ट्र के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

मौलिक लेख
 सत्य प्रकाश सिंह 
केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज उत्तर प्रदेश

काल की चाल

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा 

जीना भी एक कला है। काश यह विज्ञान होता। कम से कम इसमें दो और दो जोड़ने से चार तो होते। कम से कम हाइड्रोजन के दो परमाणु और ऑक्सीजन का एक परमाणु मिलकर जल का अणु तो बनता। यहाँ तो जिंदगी कागज की नाव की तरह बही जा रही है। जमाना बाढ़ बनकर हमेशा पीछे लगा रहता है। जब देखो तब डुबोने के चक्कर में। शायद औरों की झोपड़ियाँ जलाकर उस पर भोजन पकाने से खाने का मजा दोगुना हो जाता होगा। भूख से बिलखती जिंदगियों की अंतर्पीड़ाओं के बैकग्राउंड में एक अच्छा सा संगीत बजा देने से शायद वह कर्णप्रिय लगने लगे। हो सकता है ऊटपटांग गानों के बीच यह भी जोरों से धंधा कर ले। चलती का नाम गाड़ी है और इस गाड़ी में मुर्दों के बीच सफर करना जो सीख जाता है तो समझो उसकी बल्ले-बल्ले है। वैसे भी यहाँ कौन जिंदा है। सब के सब मरे हुए तो हैं। कोई जमीर मारकर जी रहा है। कोई किसी का मेहनताना खाकर जी रहा है। कोई झूठों वादों से बहलाकर जी रहा है तो कोई मैयत की आग पर रोटी सेककर जी रहा है। यहाँ उल्टा-सीधा जो भी कर लो, लेकिन जीकर दिखाओ यही आज की सबसे बड़ी चुनौती है। या फिर कहलो आठवाँ अजूबा है।

सिर उठाने के लिए नहीं झुकाने के लिए होता है। सिर उठाना तो हमने कब का छोड़ दिया। इतनी ही उठाने की ताकत होती तो दिन को रात, अनपढ़ को विद्वान, सूखी रोटी को मक्खन का टुकड़ा नहीं कहते। एक आदत सी हो गयी है बुरे को अच्छा कहने की, झूठे वादों को सच समझने की। बेरोजगारी को कलाकारी मानने की। जैसे पेड़ कटते समय कुल्हाड़ी में लगी लकड़ी को अपनी बिरादरी समझकर खुश होता है ठीक उसी तरह हम भी अपनी जाति-बिरादरी के मुखिया को चुनकर उनके हाथों गला घोंटवाने का परम आनंद प्राप्त करते हैं। शायद ऐसे ही लोग इस दुनिया में जीने के सच्चे हकदार होते हैं। दुनिया में कीड़े-मकौड़ों से भला किसे शिकायत हो सकती है? कीड़े-मकौड़े तब तक जीवित रहते हैं जब तक किसी के बीच दखलांदाजी नहीं करते। दखलांदाजी करने वालों का जवाब तो सारा जमाना मसलकर ही देता है।

यहाँ चुपचाप चलने वालों की टांग में टांग अड़ाया जाता है। इतना होने पर भी वह अगर चलने लगता है, तो उसकी एक टांग काट दी जाती है। हालत यह होती है कि चलने वाला बची हुई एक टांग को अपना सौभाग्य समझकर टांग काटने वाले को शुक्रिया अदा करता है। जो होता है होने दो, जैसा चलता है चलने दो कहकर आगे बढ़ने की आदत डाल लेनी चाहिए। नहीं तो तुम से तुम्हारा भोजन, पानी, बिजली छीन लिया जाएगा। तब तंबूरा बजाने के लायक भी नहीं बचोगे। यह हवा, आकाश, पानी, आग, धरती सब बिकने लगे हैं। वह दिन दूर नहीं जब चंद सांसों के लिए भी इन्हें खरीदना होगा। तब चंद सांस देने वाला दुनिया का सबसे बड़ा दानी कहलाएगा। अपने लिए आहें भरवाएगा। यहाँ तुम्हारा कुछ नहीं है। तुम एकदम ठनठन गोपाल हो। इसलिए सिर उठाने, सवाल पूछने, परेशानी बताने जैसे देशद्रोही काम बिल्कुल मत करो। यह एक आभासी दुनिया है। यहाँ केवल अपना आभास मात्र रहने दो। इसे हकीकत समझने की भूल बिल्कुल मत करना। वरना किसी आरोप में सरेआम लटका दिए जाओगे।

मनुष्य आखिर है क्या?

मनुष्य का अन्तर्जगत इतने प्रचण्ड उत्पात-घात,प्रपंचों, उत्थान पतन, घृणा, वासना की धधकती ज्वालाओं और क्षण क्षण जन्म लेती इच्छाओं से घिरा हुआ है कि उसके सामने समुद्र की महाकाय सुनामी क्षुद्र...लघुतर है। सुनामी नष्ट कर लौट जाती है। मानव मन के पास लौट जाने वाली कोई लहर नहीं है। वह तो बार-बार उठने और उसकी संपूर्ण उपस्थिति को ध्वस्त, मलिन कर घुग्घू बना देने वाली शक्ति है, जिसे विरले ही पराजित कर पाते हैं। मैंने कई लोगों को देखा है। और मैं उन्हें देखकर चकित होता रहता हूं। बढ़ती आयु अथवा दूसरी विवशताएं भी उन्हें रोक नहीं पातीं। वे महत्तर संकल्प, प्रपंचों, सूक्ष्म और वैभवशाली उपायों से अपनी अग्नि को शांत करते हैं। हर क्षण किसी साधारण मनुष्य को खोजते हैं। उन्हें शिकार बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं और वह साधारण मनुष्य जब ऊब कर चुपचाप विदा लेता है तो वे भी येन-केन प्रकारेण किनारा कर लेते हैं। लेकिन....मौका मिलते ही उसी साधारण मनुष्य को फांस कर फिर से नया गठन करते हैं। झूठ, मक्कारी, धूर्तता से भरे ये लोग हैरतअंगेज चालबाजियों से लाभ उठाने के अनगिन तरीके जानते हैं। किसी साधारण मनुष्य को ये वहां तक खींचते हैं, जहां तक खींचते हुए इन्हें जरा भी लाज नहीं आती। और अगर कोई चुपचाप इनकी मनमानियों, स्वार्थ से भरे आग्रहों का विद्रोह नहीं करता तो ये निरंतर खींचते चले जाते हैं। ये आत्मावलोकन नहीं करते। इनका मन अपराधबोध से नहीं भरता। इनकी आत्मा इन्हें कभी नहीं धिक्कारती। ये मानते हैं कि जीवन हर क्षण, हर परिस्थिति में एक भोग है। उसे भोगना चाहिए। जहां से जो संभव हो, प्राप्त कर लेना चाहिए। मैंने अपने जीवन में ऐसे कई मनुष्यों को देखा लेकिन एक मनुष्य अन्य सब पर भारी है। वैसी निर्लज्जता अन्य चालबाजों में भी नहीं है। उसने मुझे लगभग हर भेंट पर यह आश्वस्त किया कि उसकी आत्मा में निविड़ अन्धकार के सिवा कुछ नहीं है। वह महाभयंकर व्याध है जो किसी का भी फायदा उठा सकता है, उसे अप्रतिम निष्ठुरता से त्याग कर प्रतिदिन उसे गाली दे सकता है। किसी भी लड़की स्त्री के साथ सो सकता है। चमत्कारिक शातिरी के साथ आपको फंसा सकता है। आपको उसे त्यागता हुआ देख दूर तक आपका पीछा कर सकता है। आपके संकेतों, स्पष्ट किन्तु मौन निर्देशों के बाद भी आपको पकड़ सकता है और कुटिल हंसी के साथ सबकुछ सामान्य होने दिखलाने के प्रयास कर सकता है। विडम्बना यह है कि ऐसा मनुष्य भी एक विशिष्ट वर्ग में सम्मानित है। और उसने वहां बड़े जतन, अदृष्टपूर्व धूर्तता से अपने लिए स्थान बनाया है। मैं उसे बरसों से देख जान रहा हूं। इन बीत रहे बरसों बरस के साथ उसने यह सिद्ध किया है कि मनुष्य मूलतः एक ही बार जन्म लेता है। सुधार या परिमार्जन उत्थान वहीं संभव है, जहां कुछ मनुष्यता होती है। भयावह अंधकार से पुती आत्माएं कुछ शोध परिवर्तन नहीं करतीं। वे महांधकार में, कुटिलता की कंदराओं में उतरती चली जाती हैं। बस पतन.. पतन और पतन।



प्रफुल्ल सिंह ष्बेचैन कलमष्

युवा लेखकध्स्तंभकारध्साहित्यकार


वर्तमान प्रौद्योगिकी युग में मानवीय बुद्धि सब कुछ आर्टिफिशियल बनाने के चक्कर में है!!! 

प्राकृतिक मौलिकता और मृत् देह में जान फ़ूकना बाकी रहा!!! जो मानवीय बुद्धि के लिए असंभव है!!!  - एड किशन भावनानी 
 वैश्विक स्तर पर प्रौद्योगिकी का अति तीव्रता से विकास हो रहा है। शास्त्रों, पौराणिक ग्रंथों और अनेक साहित्यों में ऐसा आया है कि, सृष्टि में उपस्थित 84 करोड़ योनियों में मानव योनि सबसे सर्वश्रेष्ठ और अलौकिक बौद्धिक क्षमता का अस्तित्व धारण किए हुए हैं!! साथियों यह बात हम अक्सर आध्यात्मिक प्रवचनों में भी सुनते हैं कि यह मानवीय चोला बड़ी मुश्किल से मिलता है और इसे सत्यकर्म में उपयोग कर अपना मानव जीवन सफल बनाएं। साथियों बात अगर हम मानव बौद्धिक संपदा की क्षमता की करें तो हमें व्यवहारिक रूप से इसका लोहा मानना ही पड़ेगा। बहुत से ऐसे काम हैं, जिन्हें पहले करने में जहां देर लगती थी, वही अब चुटकियों में हो जाते हैं, इसके लिए विज्ञान के द्वारा विकसित की गई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धि, ए आई) को शुक्रिया कहा जा सकता है। हालांकि आज भी जिन कामों में बुद्धि के साथ विवेक की ज़रूरत होती है,वहां एआई पर भरोसा नहीं किया जाता। क्योंकि इस मानवीय बौद्धिक क्षमता ने ऐसे करतब दिखाए हैं और ऐसी ऐसी प्रौद्योगिकी, नवाचार, विज्ञान की उत्पत्ति की है जिसका हमारे पूर्वज, पीढ़ियों द्वारा सोचना भी अचंभित था!! याने हमारे पूर्वज सपने में भी नहीं सोचते होंगे कि मानव प्रौद्योगिकी, विज्ञान नवाचार में इतना आगे बढ़ जाएगा!पड़ोसी विस्तारवादी देश ने एक ऐसे ही विवेक भरे काम के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जज फॉर प्रॉसिक्यूशन का इस्तेमाल शुरू किया है, जिसके बारे में अब तक सोचा भी नहीं गया था। साथियों बात अगर हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बौद्धिकता) की करें तो हालांकि इस दौर में इसकी ज़रूरत है लेकिन अब इसका इस्तेमाल कुछ पारंपरिक कार्यो के लिए और प्राकृतिक मौलिकता में हाथ डालने के लिए किया जा रहे। एक टीवी चैनल के अनुसार, (1) विस्तारवादी देश ने दुनिया का पहला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पावर प्रॉसिक्यूटर तैयार कर लिया है!! यह ऐसा मशीनी प्रॉसिक्यूटर है जो तर्कों और डिबेट के आधार पर अपराधियों की पहचान करेगा और जज के समान सजा की मांग करेगा। दावा किया जा रहा है कि यह मशीनी प्रॉसिक्यूटर 97 प्रतिशत तक सही तथ्य रखता है इस टेक्नोलॉजी के साथ ही एक नई डिबेट विश्व में शुरू हो गई है। चैनल के अनुसार, दावा किया गया है कि ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाला मशीनी जज वर्कलोड को कम करेगा और ज़रूरत पड़ने पर न्याय देने की प्रक्रिया में जजों को इससे रिप्लेस किया जा सकेगा। इसे डेस्कटॉप कम्प्यूटर के ज़रिये इस्तेमाल किया जा सकेगा और इसमें एक साथ अरबों आइटम्स का डेटा स्टोर किया जा सकेगा। इन सबका विश्लेषण करके ये अपना फैसला देने में सक्षम है।इसमें इस तरह के डाटा और सॉफ्टवेयर डाले गए हैं कि वह उन सभी परिस्थितियों को पढ़कर उसका फैसला देगा।  यह तार्किक तौर पर बहुत मददगार सिद्ध होगा ऐसा मानना है। इसे विकसित करने में साल 2015 से 2020 तक के हज़ारों लीगल केसेज़ का इस्तेमाल किया गया था, ये खतरनाक ड्राइवर्स, क्रेडिट कार्ड फ्रॉड और जुए के मामलों में सही फैसला दे सकता है। (2) एक टीवी चैनल के अनुसार विस्तार वादी देश ने जमीन का सूरज तैयार किया है जो इतनी तेज रोशनी 20 सेकंड में बाहर फेंकता है,विस्तारवादी देश की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट की शुरुआत वर्ष 2006 में की थी। उन्होंने कृत्रिम सूरज को एचएल-2 एम, नाम दिया है, इसे चाइना नेशनल न्यूक्लियर कॉर्पोरेशन के साथ साउथवेस्टर्न इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स के वैज्ञानिकों ने मिलकर बनाया है। प्रोजेक्ट का उद्देश्य प्रतिकूल मौसम में भी सोलर एनर्जी को बनाना भी है। परमाणु फ्यूजन की मदद से तैयार इस सूरज का नियंत्रण भी इसी व्यवस्था के जरिए होगा। चीन इस प्रोजेक्ट के जरिये 150 मिलियन यानि 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस का तापमान जेनरेट होगा। उनके के मुताबिक, यह असली सूरज की तुलना में दस गुना अधिक गर्म है। जैसा कि विस्तारवादी देश के प्रयोग में उत्पन्न हुआ है। बता दें कि असली सूर्य का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है।साथियों बात अगर हम, दूसरी अन्य मानवीय बुद्धि के कमाल की करें तो रोबोट मानव, चांद तक पहुंचना, चांद पर घर बनाना, एयर स्पेस में हाल ही में मानवीय टूरिज्म यात्राएं सहित अनेक अनहोनी प्रौद्योगिकी का उदय हुआ है!!! साथियों बात अगर हम मानवीय जीवन के प्राण की करें तो मेरा ऐसा मानना है कि चाहे कितनी भी लाख़ कोशिशें करें मानव बौद्धिक क्षमता इस हद तक विकसित नहीं हो सकती कि प्राकृतिक मौलिकता और मृत् देह में जान फूंक सके!!! क्योंकि बड़े बुजुर्गों का कहना है कि, गुरु सर्वगुण दे देता है, पर एक गुण अपने पास रखता है!! जो ब्रह्मास्त्र का काम करता है!! ताकि चेले में घमंड आने पर उससे भेदा जा सके!! ठीक उसी तरह कुदरत भी है! जीव में प्राण फूकना और प्राण निकालना यह मानवीय बुद्धि के बस की बात कभी नहीं होगी!!! अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि सब कुछ आर्टिफिशियल हो रहा है!!! वर्तमान प्रौद्योगिकी युग में मानवीय बुद्धि सब कुछ आर्टिफिशियल बनाने के चक्कर में है! जबकि प्राकृतिक मौलिकता और मृत देह में जान फूंकना बाकी रहा जो मानवीय बुद्धि के लिए असंभव है!!! 

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

यक्ष प्रश्न कलयुग का

 हे धर्म राज यह भारत पूछ रहा आपसे यक्ष प्रश्न 

अगर संभव होतो हल कर दो भारत के यह यक्ष प्रश्न ll 

चार भाई के जीवन खातिर आपने हल किए सारे यक्ष प्रश्न 
आज इस कलयुग में क्यों नहीं कर रहे हल यह यक्ष प्रश्न ll

 माना भीम अर्जुन सा ना अब इस युग में है कोई बलवान
 पर आप तो समदर्शी हैं इसका कहाँ आपको गुमान ll

 उस युग में तो केवल चार जान थे संकट में
 लेकिन आज तो पूरा भारत हीं है संकट में ll 

 वहाँ तो केवल एक शकुनी जो गंदी चाले चलता था
 यह
यहाँ तो हर गली में शकुनि जो गंदी चाले चलता है ll

 वहाँ तो केवल एक दुर्योधन जिसको था सत्ता का भूख
 यहाँ तो हर घरचौराहे पर दुर्योधन खोज रहा सत्ता का सुख ll 

 एक धृतराष्ट्र मौन साधकर बुलाया कई संकट को
 यहाँ तो धृतराष्ट्र का फौज खड़ा बुला रहा संकटों को ll 

 एक शकुनी कंधार से आकर हस्तिनापुर मिटाने का रखा था दम 
आज ना जाने कितने शकुनी भारत को मिटाने का करते जतन ll

 उन दुष्टों को तो झेल गए आप अपने दृढ़ विचारों से 
अब इस भारत को कौन बचाए ऐसे कु विचारों से ll 
 दुर्योधन संग एक दुशासन चीर हरण को था बेताब।
 आज ना जाने कितने दुशासन चीरहरण को है तैयार ll 

 उस युग में तो श्रीकृष्ण थे स्वयं विष्णु के अवतार 
आज इस कलयुग में पूरा भारत हीं है निराधार ll 
 सत्ता पाने के मद में सब के सब बन बैठे धृतराष्ट्र ।
भारत माता की गरिमा को कर रहे हैं तार-तार ll 

 सेना की गरिमा को यह धूल धूसरीत करते हैं।
 अपने खादी के काले छीटें को भारत माँ पर मढते हैं ll 

 अगर उन्हें मौका मिले तो बोटी बोटी नोच कर खाएंगे ।
ऊपर से राक्षसी अट्टाहस कर हम आम जनता को डराएंगे ll 

 जब आपने स्थापित किया खुशहाल शासन आपको भी ना इसका होगा एहसास।
 एक दिन इस भरतपुर का होगा ऐसा खस्ताहाल ll

 अब जनता त्रस्त हो चुका ऐसा यक्ष प्रश्न झेल कर 
बस आपसे यही निवेदन आम जनता को शांति देदो यक्ष प्रश्न हल कर ll

 यह ना कर सकते तो आपको पुनः धरा पर आना होगा
 संगा अपने परीक्षित को लाकर पुनः एक कुशल शासक छोड़कर जाना होगा ll3 
श्री कमलेश झा भागलपुर बिहार

Tuesday, December 28, 2021

नहीं चाहिए ऐसे दोस्त!

दोस्ती का मतलब है, दोस्त को सही राह पर लाना,
उनके साथ हंसना, रोना, पढ़ना, और खाना,
उन्हें सही कार्य के लिए, हर वक्त जगाना,
कुछ लोग सोचते हैं, दोस्ती का मतलब होता है,
सिर्फ एक दोस्त को बिगाड़ना!

नहीं चाहिए ऐसी दोस्ती, जो सिर्फ मतलब से जुड़ी हो,
हर कदम, हर वक्त, सिर्फ गलत राह पर ही मुड़ी हो,
ना बनाएं ऐसे दोस्त, जिनकी राहे अच्छाइयों से जुदा हो,
उनके लिए तो सिर्फ, बुराई ही खुदा हो!

संगति ऐसी हो जो आपको निखरने दे,
ऐसी संगति ना करो, जो आपको बिखरने दे,
चाहो तो जिंदगी में कभी दोस्त ना बनाओ,
पर हर कदम, हर समय, सही राह को अपनाओ!

डॉ. माध्वी बोरसे!
( स्वरचित व मौलिक रचना)

स्त्री और पुरुष दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। डॉ. विक्रम चौरसिया

समाज में पुरुष व महिला को संविधान द्वारा समान तौर पर समस्त अधिकार तो दिए गए हैं, लेकिन फिर भी देखे तो किसी न किसी रुप में सामाजिक रूढ़िवादी मान्यताओं व विषमताओं के कारण ही कुछ महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित रह जाती है, इसी तरह देखें तो आज बहुत से पुरूष भी पीड़ित है।स्त्री और पुरुष दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एक दूसरे के पूरक हैं, सहयोगी हैं, विरोधी नहीं ,प्रकृति ने दोनों को एक खास मकसद से सृष्टि की निरंतरता हेतु बनाया है, दोनों एक दूसरे के लिए आवश्यक हैं, अनुपयोगी नहीं , दोनो एक दूसरे के मित्र हैं, शत्रु नहीं है। इस सृष्टि की सभी नारी किसी ना किसी की मां होती है चाहे उनसे हमारा कोई भी रिश्ता क्यों ना हो,कभी मां,कभी बहन,कभी पत्नी,कभी दादी, नानी मां और भी बहुत से रिश्ते में हमें समेटकर प्यार , स्नेह देकर सींचती है,लेकिन आज के इस वैश्वीकरण के दौर में हम देख रहे हैं कि देश के अलग अलग हिस्सों से  अक्सर ही इस तरह की खबर मिल रही है कि किसी लड़की ने थोड़ी सी ही कहासुनी हो जाने पर ही अपने लोगों पर ही बलात्कार का आरोप लगा दी ,ऐसे में  कैसे ये सृष्टि चलेगी ? देखे तो हाल ही में जारी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, देश में पुरुषों की आत्महत्या की दर महिलाओं की तुलना में दो गुने से भी ज्यादा है, इसके पीछे तमाम कारणों में पुरुषों का घरेलू हिंसा का शिकार होना भी बताया जाता है, जिसकी शिकायत वो किसी फोरम पर कर भी नहीं पाते हैं।  हालांकि ऐसा नहीं है कि पुरुषों के खिलाफ हिंसा की किसी को जानकारी नहीं है या फिर इसके खिलाफ आवाज नहीं उठती है लेकिन यह आवाज एक तो उठती ही बहुत धीमी है और उसके बाद खामोश भी बहुत जल्दी हो जाती है, वही  498A को कानूनविदों द्वारा लागू किया गया ,महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए इसे कानून का रूप दिया गया है , लेकिन वर्तमान तथ्यों और आंकड़ों से पता चलता है कि कुछ महिलाओं द्वारा अपने लाभ के लिए इसका व्यापक रूप से दुरुपयोग भी किया जा रहा है और इस कारण इंसानों के लिए ये उपद्रव पैदा हो रहा है, यही कारण भी है कि यह खंड आईपीसी का सबसे अधिक विवादित खंड बना हुआ है। बलात्कार या किसी भी तरह का शोषण किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक है, ऐसे में चाहे पुरुष हो या महिला अगर कोई भी किसी का शोषण करता है तो उस पर महिला व पुरुष में भेदभाव ना करते हुए, दोनों को बराबर की सजा होनी चाहिए। यह सच्चाई ही है कि देश को शर्मसार करने वाली दिसंबर 2012 की निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड की घटना के बाद बलात्कार से संबंधित कानूनी प्रावधानों को कठोर बनाए जाने के बावजूद भी महिलाओं किशोरियों और अबोध बच्चियों के साथ दरिंदगी की घटनाओं में अपेक्षित कमी नहीं आई है, इसके बावजूद भी इस तथ्य से कैसे इंकार किया जाए कि बलात्कार और यौन उत्पीड़न के आरोपों में निर्दोष व्यक्तियों को झूठा फंसाए जाने की घटनाएं भी बढ़ रही है, अब सवाल यह उठता है कि क्या बलात्कार जैसे संगीन अपराध से संबंधित कठोर कानूनी प्रावधान का इस्तेमाल झूठे मामले में पुरुषों को फसाने के लिए हथियार के रूप में तो नहीं किया जा रहा है। क्या झूठे मामले की वजह से समाज और परिवार में कलंकित होने वाले व्यक्ति को  ऐसी महिला के खिलाफ हर्जाने के लिए मुकदमा दायर करने की छूट नहीं मिलनी चाहिए?


ओमिक्रान वेरिएंट- चुनाव 2022- सुशासन- चुनौतियां!!!

ओमिक्रान वेरिएंट - प्रस्तावित चुनाव 2022 स्वरूपी रैलियों की भीड़ पर संज्ञानः लेना समय की मांग 


आेमिक्रान वेरिएंट- नागरिकों को अफ़वाह, भ्रम और डर से बचकर कोविड उपयुक्त व्यवहार का सख़्ती से पालन करना ज़रूरी - एड किशन भावनानी

गोंदिया - वैश्विक रूप से बड़ी मुश्किल से कोविड-19, डेल्टा, डेल्टा प्लस पर आंशिक काबू पाकर कुछ राहत की सांस भर ली थी कि फ़िर आेमिक्रान वेरिएंट ने तहलका मचा दिया है। सबसे अधिक प्रभावित देशों में ब्रिटेन की हालत नाजुक है वहां एक लाख से अधिक केस आ रहे हैं जिससे अमेरिका सहित भारत भी सावधानी की मुद्रा में आ गया है यही कारण है कि पीएम मोदी ने गुरुवार को एक हाईलेवल मीटिंग ली जिसमें अनेक महत्वपूर्ण विभागों के बड़े बड़े अधिकारी शामिल हुए। हालातों की समीक्षा की गई एवं महत्त्वपूर्ण दिशा निर्देश दिए। साथियों बात अगर हम भारत में ओमिक्रान वेरिएंट के कहर की करें तो स्थिति धीरे-धीरे क्रिटिकल होती जा रही है। अभी 18 राज्यों में पहुंच चुका है 450 से अधिक केस आ चुके हैं। दिल्ली,महाराष्ट्र, यूपी, मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों में रात्रिकर्फ्यू की घोषणा भी की गई है। उधर मध्यप्रदेश में कैबिनेट द्वारा प्रस्ताव पास कर वहां होने वाले लोकल चुनाव पर रोक लगा दी है जबकि चुनाव आयोग ने कहा रोक नहीं लगा सकते। विधि विशेषज्ञों से महत्वपूर्ण चर्चाएं शुरू है। उधर 10 राज्य में केंद्रीय स्वास्थ्य टीमें जहां उनकाअधिकार क्षेत्र होगा उस स्थिति में अपनी रणनीति को तैयार किए हुए हैं तथा केंद्र व राज्य सरकारें तीसरी लहर की स्थिति से निपटने अपना - अपना गुणा भाग कर रणनीतिक रोडमैप तैयार करने में भिड़ गए हैं कि कहीं यह ओमिक्रोन वेरिएंट सुपरस्प्राइडर बन के न रह जाए। राजनीतिक पार्टियों ने अपनी प्रस्तावित चुनाव सभाओं, रैलियों के लिए एसओपी तैयार कर दिए हैं ताकि पूर्वगामी दुष्परिणामों से बचा जा सके। साथियों बात अगर हम पीएम द्वारा गुरुवार को ली गई हाईलेवल मीटिंग की करें तो देश में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच उन्होंने देश भर में कोरोना की स्थिति, ओमिक्रॉन और स्वास्थ्य प्रणालियों की तैयारियों की समीक्षा की। इस दौरान उन्होंने कहा कि नए वैरिएंट को देखते हुए हमें सतर्क और सावधान होना चाहिए। सरकार सतर्क है। बीमारी की रोकथाम और प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार राज्यों का पूरा सहयोग कर रही है। तत्काल और प्रभावी कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग, टेस्टिंग में तेजी, टीकाकरण में तेजी लाना और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। साथियों बात अगर हम ओमिक्रान वेरिएंट पर चुनाव आयोग के चुनाव 2022 प्रस्तावित दौरे की करें तो, देश में 2022 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है। कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ने की संभावना के बीच में चुनाव की तैयारी के लिए उत्तराखंड के एक दिनके दौरे के बाद मुख्य निर्वाचन आयुक्त अपनी टीम के साथ 28 दिसंबर से उत्तर प्रदेश के तीन दिन के दौरे पर रहेंगे तथा स्वास्थ्य सचिव के साथ मीटिंग। साथियों बात अगर हम इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा यूपी में चुनाव को टालने के सुझाव की करें तो, यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर कोरोना का संकट गहराने लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को यूपी में चुनाव टालने का सुझाव दिया था। इसपर अब चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया सामने आ गई है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि वो स्थिति का जायजा लेने के लिए उत्तर प्रदेश जा रहे हैं, इसके बाद स्थिति की समीक्षा की जाएगी। उन्होंने कहा कि आयोग कोरोना से निपटने के लिए तैयार और सारी तैयारियां हो चुकी हैं। यूपी में कुछ महीनों में होने हैं चुनाव यूपी में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 14 मार्च 2022 को खत्म हो रहा है. ऐसे में उससे पहले चुनाव कराने जरूरी है। हालांकि, चुनाव आयोग के पास चुनाव को टालने का अधिकार है. अगर यूपी में चुनाव टलते हैं तो 6 महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। साथियों बात अगर हम ओमिक्रान वेरिएंट की तैयारियों और सुशासन की करें तो, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लिखे पत्र में, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने परीक्षण और निगरानी बढ़ाने के अलावा रात में कर्फ्यू लगाने, बड़ी सभाओं का सख्त नियमन, शादियों और अंतिम संस्कार में लोगों की संख्या कम करने जैसे रणनीतिक निर्णय को लागू करने की सलाह दी है। पत्र में उन उपायों पर प्रकाश डाला गया है, जिन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में कोविड-19 के मामलों में वृद्धि के शुरुआती संकेतों के साथ-साथ चिंता बढ़ाने वाले वेरिएंट ओमिक्रॉन का पता लगाने के लिए उठाए जाने की आवश्यकता है। ओमिक्रॉन की संक्रामकता के मद्देनजर देश में कोविड रोधी टीके की बूस्टर डोज देने की मांग भी उठ रही है।कई देशों में बूस्टर डोज दी भी जा रही है। उपरोक्त पूरी जानकारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और टीवी चैनलों द्वारा दी गई है। साथियों बात अगर हम दिनांक 25 दिसंबर 2021 को पीएम द्वारा राष्ट्र के नाम संदेश की करें तो पीआईबी के अनुसार, वर्तमान में, ओमीक्रॉन की चर्चा जोरों पर चल रही है। विश्व में इसके अनुभव भी अलग-अलग हैं, अनुमान भी अलग-अलग हैं। भारत के वैज्ञानिक भी इस पर पूरी बारीकी से नजर रखे हुए हैं, इस पर काम कर रहे हैं। हमारे वैक्सीनेशन को आज जब 11 महीने पूरे हो चुके हैं तो सारी चीजों का वैज्ञानिको ने जो अध्ययन किया है और विश्वभर के अनुभवो को देखते हुए आज कुछ निर्णय लिए गए है। आज अटल जी का जन्म दिन है, क्रिसमस का त्योहार है तो मुझे लगा की इस निर्णय को आप सबके साथ साझा करना चाहिए। भारत में ओमिक्रोन संक्रमण का जिक्र करते हुए, पीएम ने लोगों को इससे नहीं घबराने की अपील की और मास्क पहनने तथा बार-बार हाथ धोने जैसी सावधानियों का पालन करने का अनुरोध किया। पीएम ने कहा कि महामारी से लड़ने के वैश्विक अनुभव ने बताया है कि सभी दिशा-निर्देशों का पालन करना कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार है। उन्होंने कहा कि कोरोना से लड़ने का दूसरा हथियार टीकाकरण है। पीएम ने घोषणा की कि 3 जनवरी 2022, सोमवार से, 15-18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए टीकाकरण शुरू हो जाएगा। इस कदम से स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था को सामान्य स्थिति में लाने में मदद मिलने की संभावना है और इससे स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता की चिंता कम होगी। उन्होंने 10 जनवरी 2022, सोमवार से स्वास्थ्य सेवा और अग्रिम मोर्चे के कर्मियों के लिए एहतियाती खुराक की भी घोषणा की। अग्रिम मोर्चे के कर्मी  और स्वास्थ्य देखभाल कर्मी कोविड रोगियों की सेवा में लगे हुए हैं। भारत में तीसरी खुराक को बूस्टर डोज नहीं 'एहतियाती खुराक' कहा गया है। एहतियाती खुराक के निर्णय से स्वास्थ्य सेवा और अग्रिम पंक्ति के कर्मियों का विश्वास मजबूत होगा। पीएम ने यह भी घोषणा की कि 10 जनवरी, 2022 से डॉक्टरों की सलाह पर सह-रुग्णता वाले 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी एहतियाती खुराक लेने का विकल्प उपलब्ध होगा। पीएम ने इस बात पर जोर दिया कि आज, जैसे-जैसे वायरस के नए-नए रूप सामने आ रहे हैं, चुनौती का सामना करने की हमारी क्षमता और आत्मविश्वास भी हमारी अभिनव भावना के साथ कई गुना बढ़ रहा है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि ओमिक्रान वेरिएंट- चुनाव 2022- सुशासन और चुनौतियां सभी से एक साथ निपटना है तथा प्रस्तावित चुनाव 2022 चुनाव की रैलियों की भीड़ पर संज्ञानः लेना समय की मांग है एवं नागरिकों को अफ़वाह, भ्रम और डर से बचकर कोविड उपयुक्त व्यवहार का सख़्ती से पालन करना ज़रूरी है। 

Monday, December 27, 2021

जागो हिन्दू जागो

     चर्चों   से   चिठ्ठी   निकल   पड़ी, 

     मस्जिद  का  फतवा  बोल  रहा।
     यदि   मंदिर   अब  खामोश  रहे,
     समझो  फिर  खतरा  डोल रहा।
                        वो  देश  चलाएॅ फतवे से,
                        तुम   तेल   सूंघते  ही रहना।
                        जब घर में घुसकर मारेंगे,
                        तब  हाथ  रगड़ते  रहना।
     वो काल-खण्ड  हम याद करें,
     जब   बटे   हुए  थे  जाती  में।
     पराधीन    यह    देश    हुआ,
     व  घाव  मिला  था  छाती  में। 
                    हिन्दू  विघटन  के  कारण  ही,
                    परतन्त्र रहे हम  सदियों तक।
                    अगर    अभी   न   हम   चेते,
                    फिर करो तैयारी जन्मों तक।         
      परिदृश्य वही फिर आज यहां,
      सबको मिलकर चलना होगा। 
      नहीं  जातिवाद, अब राष्ट्रवाद,
      की  धारा  में ही बहना  होगा। 
                      एकत्र  हो  रहे  फ्यूज  बल्ब,
                      सूरज को दिया दिखाने को।
                      नहीं   हैं  दाने   जिनके  घर,
                      वो  अम्मा  चली भुनाने को।                         
      हुंकार भरें जब एक अरब,
      सारी दुनियाँ हिल जाएगी। 
      चोरों  की  गठबंधन  नीती,
      सब धरी पड़ी रह जाएगी। 
                   हम   लाखों  वीर  शहीदों  का,
                   अपमान   नहीं  कर  सकते हैं। 
                   हो  उनके  सपनों  का  भारत,
                   संकल्प तो हम कर सकते हैं।            
      धन्य   देश   की   है   जनता,
      सरकार   बनाई   मोदी  की।
      औलादें  बाहर  निकल  रहीं,
      बाबर खिलजी व लोदी की।              
                      है  पीएम  की  बारात  बड़ी,
                      फिर  दूल्हा  किसे  बनाएंगे।
                      वो अभी वोट लेकर सबका,
                      सन  अस्सी  को दोहराएंगे। 
      देश   की   सत्ता  गद्दारों  को,
      नहीं     सौंपने    अब    दूंगा।
      मेरे  तन   में   शक्ती  जितनी,
      सब कुछ अर्पण मैं कर दूंगा।     
                      गठबंधन   जाली   टोपी  का,
                      सड़कों  पर   रौंदा   जाएगा।
                      बाइस   तो  आने  दो  मित्रों,
                      फिर घर-घर भगवा छाएगा। 
     दी   आज   चुनौती  है उनको,
     जो  चले  हैं  देश मिटाने  को।
     हम   भी   कट्टर   हिन्दू  ठहरे,
     हिन्दू  को  चले   जगाने  को।    
                     वो आग से लड़ने है निकला,
                     अंगारों  से अब  डरना क्या।
                     वो  शेर है  भारत  माता का,
                     गद्दारों  से अब  डरना क्या। 
     गठबंधन  करके सारे दल,
     देश  को दलदल कर देंगे। 
     जो  भरा खजाना मोदी ने,
     वो लूट के खाली कर देंगे। 
                      है   देश   तुम्हारे   हाथों   में,
                      निज  भाग्य तुम्हारे हाथों में।
                      अब देश की भावी पीढ़ी का,
                      निर्माण    तुम्हारे   हाथों  में।    
     चहुँ ओर से फतवा निकल रहा,
     क्या   अपनी   हंसी  कराओगे। 
     बन  जाएॅगे  गीदड़  एक अरब,
     क्या फतवा सरकार  बनाओगे।  
                  अब  बड़ी  चुनौती  बाइस  की,
                  मिलकर  विजयी   होना  होगा।
                  नव  स्वर्णिम  भारत के खातिर,            
                  फिर   से   मोदी   लाना होगा

                        भारत माता की जय !

कॉस्मोप्रॉफ इंडिया ने भारत की कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री में बिखेरा जलवा

-अनिल बेदाग़-



मुंबई :  भारत में तेजी से बढ़ते हुए ब्यूटी मार्केट के लिए मुंबई के होटल सहारा स्टार में 2 दिन की बिजनेस टु बिजनेस इवेंट, कॉस्मोप्रॉफ इंडिया, का आयोजन किया गया। बोलोग्नाफियर और इंफॉर्मा  की ओर से आयोजत की गई कॉस्मोप्रॉफ इंडिया दुनिया भर में प्रतिष्ठित कॉस्मोप्रॉफ ब्रैंड की ओर से भारत के भौगोलिक क्षेत्र के अनुकूल लगाई  गई प्रदर्शनी है। इसका अपना एक अलग पैमाना और पहचान है। इसमें सभी क्षेत्रों के प्रोफेशनल ब्यूटी बिजनेस का प्रतिनिधित्व है। इसके तहत कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री से संबंधित हर पहलू, सामान, कच्चा माल, मशीनरी, ओईएम,  कान्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चिंरग और प्राइवेट लेबल, प्राइमरी और सेकेंडरी पैकेजिंग, सर्विस प्रोवाइडर्स और तैयार माल का प्रदर्शन किया जाता है। यह परफ्यूमरी और कॉस्मेटिक्स, खूबसूरती और स्पा, बाल, नाखून, नैचुरल और ऑर्गेनिक में बंटा है।
इस दो दिन के शो का उद्घाटन इंडस्ट्री के तमाम दिग्गज लोगों की मौजूदगी में लैक्मे लीवर के सीईओ और कार्यकारी निदेशक श्री पुष्कराज शेनाई,  इंडल्ज द सैलून की संस्थापक मिस सुर्कीति पटनायक,  इंडल्ज द सैलून के संस्थापक श्री जयंत पटनायक, दक्षिण एशिया में टोनी एंड गाइ के सीईओ मिस्टर ब्लेसिंग ए मानिकनंदन, जीन- क्लॉड बिगुइन सैलून एंड स्पा के सीईओ श्री समीर श्रीवास्तव,  श्री सचिन कामत निदेशक, श्री भूपेश डिंगर. निदेशक इनरिच ब्यूटी, जेसीकेआरसी की संस्थापक  मिस रेखा चौधरी, बीब्लंट की सीईओ मिस स्फूर्ति शेट्टी, सेवियो जॉन परेरा सैलूंस  के संस्थापक श्री सेवियो जॉन परेरा, सिंपलीनाम की संस्थापक मिस नम्रता सोनी, वर्ल्ड पैकेजिंग ऑर्गनाइजेशन  के ग्लोबल एंबेसेडर श्री एवीपीएस चक्रवर्ती, गैटेफॉरस के एमडी डा. सुनील बांबरकर, भारत में इंफॉर्मा इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक श्री योगेश मुद्रास, इंफॉर्मा मार्केट्स इन इंडिया के ग्रुप डायरेक्टर श्री राहुल देशपांडे ने किया।  
कॉस्मोप्रॉफ इंडिया भारत में अत्याधुनिक रूप से उभरने वाले नए-नए ट्रेंड्स और प्रस्तावों की ऑब्जर्वेटरी रहा है। 2000  वर्गमीटर के प्रदर्शनी स्थल में प्रतिष्ठित ब्रैंड्स आई-ब्यूटी का नवीनतम झलक पेश करते है। यब प्रॉडक्ट और तकनीक हाल ही में स्थानीय मार्केट के उभरने के नतीजे के रूप में सामने आई है। यह 2500 से ज्यादा संभावित ऑपरेटरों को हाई क्वॉलिटी के कारोबारी अनुभव की गारंटी देते हैं। इस साल कॉस्मोप्रॉफ इंडिया ने अमेज़न, मिंत्रा, पर्पल, मैरिको, हिंदुस्तान यूनिलीवर, लैक्मे लीवर , कामा आयुर्वेद, एमकैफीन, मामा अर्थ समेत कई अन्य खरीदारों ने स्वागत किया। 

महिला सशक्तिकरण

 महिला सशक्तिकरण तब है जब महिलाओं को अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता हो। उनके लिए क्या सही है और उनके लिए क्या गलत है, यह तय करने में उन्हें पूरा अधिकार हो।  महिलाओं को दशकों से पीड़ित होना पड़ा है क्योंकि उनके पास कोई अधिकार नहीं थे और अब भी बहुत सी जगह, गांव, यहां तक की बहुत से शहर और देश में भी नहीं है!

 महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया गया और अब भी किया जा रहा है । अपने अधिकारों के साथ-साथ महिलाओं को सिखाया गया कि वे अपने जीवन के सभी पहलुओं में आत्मनिर्भर कैसे हों।  उन्हें सिखाया गया कि उनके लिए एक स्थान कैसे बनाया जाए जहां वे बढ़ सकें और वह बन सकें जो वे बनना चाहती हैं।
 पुरुषों के पास हमेशा सभी अधिकार होते थे।  हालाँकि, महिलाओं को इनमें से कोई भी अधिकार नहीं था, यहाँ तक कि मतदान जैसा छोटा अधिकार भी।  चीजें बदल गईं जब महिलाओं ने महसूस किया कि उन्हें भी समान अधिकारों की आवश्यकता है।  यह अपने अधिकारों की मांग करने वाली महिलाओं द्वारा क्रांति के साथ लाया गया।   दुनिया भर के देशों ने खुद को "प्रगतिशील देश" कहा, लेकिन उनमें से हर एक के पास महिलाओं के साथ गलत व्यवहार करने का इतिहास है।  इन देशों में महिलाओं को आजादी और दर्जा हासिल करने के लिए उन प्रणालियों के खिलाफ लड़ना पड़ा, जो उन्होंने आज हासिल की हैं।  हालाँकि, भारत में, महिला सशक्तिकरण अभी भी पिछड़ रहा है। अब भी जागरूकता फैलाने की बहुत अधिक आवश्यकता है। भारत उन देशों में से एक है जो महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है और इसके कई कारण हैं।  उनकी सुरक्षा में कमी का एक कारण ऑनर किलिंग का खतरा भी है।  परिवारों को लगता है कि अगर वे परिवार और परिवार की प्रतिष्ठा के लिए शर्म की बात है, तो उन्हें उनकी हत्या करने का अधिकार है।  महिलाओं के सामने एक और बड़ी समस्या यह है कि शिक्षा की कमी है। देश में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए महिलाओं को हतोत्साहित किया जाता है।  इसके साथ ही उनकी शादी जल्दी हो जाती है।  महिलाओं पर हावी पुरुषों को लगता है कि महिलाओं की भूमिका उनके लिए काम करने तक सीमित है। वे इन महिलाओं को कहीं जाने नहीं देते हैं, नौकरी नहीं करने देते हैं, और इन महिलाओं को कोई स्वतंत्रता नहीं है। महिला सशक्तीकरण लैंगिक समानता प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण पहलू है।  इसमें एक महिला के आत्म-मूल्य, उसकी निर्णय लेने की शक्ति, अवसरों और संसाधनों तक उसकी पहुंच, उसकी शक्ति और घर के अंदर और बाहर अपने स्वयं के जीवन पर नियंत्रण और परिवर्तन को प्रभावित करने की उसकी क्षमता को बढ़ाना शामिल है।   फिर भी लैंगिक मुद्दे केवल महिलाओं पर केंद्रित नहीं हैं, बल्कि समाज में पुरुषों और महिलाओं के बीच संबंधों पर हैं। पुरुषों और लड़कों के कार्य और दृष्टिकोण लैंगिक समानता प्राप्त करने में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं।
 यदि महिलाएं घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार से गुजर रही हैं, तो वे इसकी सूचना किसी को नहीं देती हैं। उसका एक सबसे बड़ा कारण यह है कि वे जिस समाज में रहती हैं, उसके बारे में टिप्पणी करेंगे। भारत एक ऐसा देश है जिसमें महिला सशक्तिकरण का अभाव है।देश में बाल विवाह का प्रचलन है।  माता-पिता को अपनी बेटियों को यह सिखाना चाहिए कि अगर वे अपमानजनक रिश्ते में हैं, तो उन्हें घर आना चाहिए।  इससे, महिलाओं को ऐसा लगेगा कि उन्हें अपने माता-पिता का समर्थन प्राप्त है और वे घरेलू हिंसा से बाहर निकल सकती हैं। 
महिलाओं को उन चीजों मै आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए की वे अपने सभी लक्ष्यों और आकांक्षाओं को प्राप्त कर सके जो वो करना चाहती है। आज भी विश्व स्तर पर, महिलाओं के पास पुरुषों की तुलना में आर्थिक भागीदारी के लिए कम अवसर हैं, बुनियादी और उच्च शिक्षा तक कम पहुंच, अधिक स्वास्थ्य और सुरक्षा जोखिम, और कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व।
 महिलाओं के अधिकारों की गारंटी देना और उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने के अवसर प्रदान करना न केवल लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों की एक विस्तृत श्रृंखला को पूरा करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।  सशक्त महिलाएं और लड़कियां अपने परिवार, समुदायों और देशों के स्वास्थ्य और उत्पादकता में योगदान करती हैं, जिससे सभी को लाभ होता है।
 लिंग शब्द सामाजिक रूप से निर्मित भूमिकाओं और जिम्मेदारियों का वर्णन करता है जो समाज पुरुषों और महिलाओं के लिए उपयुक्त मानते हैं।  लिंग समानता का अर्थ है कि पुरुषों और महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता, शिक्षा और व्यक्तिगत विकास के लिए समान शक्ति और समान अवसर प्राप्त हैं। अब भी बहुत से विकासशील देशों में लगभग एक चौथाई लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं।  आमतौर पर, सीमित साधनों वाले परिवार जो अपने सभी बच्चों के लिए स्कूल की फीस, वर्दी और आपूर्ति जैसे खर्च नहीं कर सकते, वे अपने बेटों के लिए शिक्षा को प्राथमिकता देंगे।एक शिक्षित लड़की की शादी को स्थगित करने, छोटे परिवार को बढ़ाने, स्वस्थ बच्चे पैदा करने और अपने बच्चों को स्कूल भेजने की अधिक संभावना है।  उसके पास आय अर्जित करने और राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने के अधिक अवसर हैं, और एचआईवी, करोना अन्य बीमारियों से संक्रमित होने की संभावना कम है।
 महिलाओं का स्वास्थ्य और सुरक्षा एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र है।  एचआईवी / एड्स महिलाओं के लिए एक तेजी से प्रभावी मुद्दा बनता जा रहा है।मातृ स्वास्थ्य भी विशिष्ट चिंता का एक मुद्दा है।  कई देशों में, महिलाओं की प्रसव पूर्व और शिशु देखभाल तक सीमित पहुंच है, और गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जटिलताओं का अनुभव होने की अधिक संभावना है।  यह उन देशों में एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है जहाँ लड़कियाँ शादी करती हैं और उनके तैयार होने से पहले बच्चे होते हैं;  18 वर्ष की आयु से पहले। शिक्षा मातृ स्वास्थ्य देखभाल सूचना और सेवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश बिंदु प्रदान कर सकती है जो माताओं को अपने स्वयं के स्वास्थ्य और अपने बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में सूचित निर्णय लेने वालों के रूप में सशक्त बनाती है।  हमें एक ऐसी संस्कृति में रहने की जरूरत है जो सम्मान के साथ देखती है और महिलाओं को पुरुषों के जितना ही आदर्श बनाती है।
 लैंगिक समानता प्राप्त करने में ध्यान केंद्रित करने का एक अंतिम क्षेत्र महिलाओं का आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण है।  हालांकि महिलाओं में दुनिया की 50% से अधिक आबादी शामिल है, लेकिन उनके पास दुनिया की संपत्ति का केवल 1% ही है।  दुनिया भर में, महिलाएं और लड़कियां लंबे समय तक अवैतनिक घरेलू काम करती हैं।  कुछ स्थानों पर, महिलाओं को अभी भी खुद की जमीन या संपत्ति का अधिकार प्राप्त करने, ऋण प्राप्त करने, आय प्राप्त करने या नौकरी के भेदभाव से मुक्त अपने कार्यस्थल में स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं है। घर और सार्वजनिक क्षेत्र में सभी स्तरों पर, महिलाओं को निर्णय निर्माताओं के रूप में व्यापक रूप से रेखांकित किया जाता है।  दुनिया भर की विधानसभाओं में, महिलाओं को 4 से 1 तक पछाड़ दिया जाता है, फिर भी लैंगिक समानता और वास्तविक लोकतंत्र प्राप्त करने के लिए महिलाओं के लिए राजनीतिक भागीदारी महत्वपूर्ण है।
महिला सशक्तिकरण दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है।
जिन पुरुषों के पास सभी अधिकार थे, उनकी तुलना में महिलाओं के पास सबसे लंबे समय तक मतदान करने जैसे आवश्यक अधिकार नहीं थे।  महिलाओं का सशक्तीकरण आवश्यक है क्योंकि महिलाओं के पास दशकों से अधिकार और स्वतंत्रता नहीं थी।  महिलाएं लगभग न के बराबर थीं।  महिलाएं भी मनुष्य हैं, और उन्हें अपने साथी मनुष्यों के समान अधिकार और स्वतंत्रता की आवश्यकता है।
महिला सशक्तिकरण की जरूरत, समय की सबसे महत्वपूर्ण जरूरतों में से एक है।  ऐसे कई तरीके हैं जिनसे महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है। महिला सशक्तिकरण को वास्तविकता बनाने के लिए लोगों को एकजुट होना चाहिए।  महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम महिलाओं को शिक्षित करना होगा।  शिक्षा प्रदान और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि अधिक महिलाएं साक्षर हो सकें।  वे जो शिक्षा प्राप्त करती हैं, उन्हें आगे बढ़ाने में मदद की जानी चाहिए ।  महिलाओं के पास वह जीवन हो सकता है जो वे चाहती हैं और इसमें खुश रह सकती है!  महिला सशक्तिकरण का एक और तरीका है कि हर क्षेत्र में सम्मान और समान अवसर दिए जाएं। महिलाओं को वही मौका दिया जाना चाहिए जो उनके समकक्षों को मिलता है। 
वेतन एक और क्षेत्र है जो महिलाओं और पुरुषों के लिए समान होना चाहिए।  महिलाओं को उस काम के लिए समान रूप से भुगतान किया जाना चाहिए जो वे करते हैं।
 महिला सशक्तिकरण एक महत्वपूर्ण चीज है जिसे पूरा करने की जरूरत है।  आज महिलाओं के पास जो अधिकार और स्वतंत्रता है, वह उन झगड़ों का परिणाम है, जिनके खिलाफ सशक्त महिलाओं ने लड़ाई लड़ी।  इन सशक्त महिलाओं के कृत्यों से पता चलता है कि यह समय है कि महिलाएं भी सभी स्वतंत्रता और अधिकारों का आनंद ले सकती हैं।
*महिलाओं को अपने हक के लिए आवाज़ खोजने की ज़रूरत नहीं है, उनके पास एक आवाज़ है, आत्मविश्वास है, और उन्हें इसका उपयोग करने के लिए सशक्त महसूस करने की आवश्यकता है, और लोगों को सुनने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है!*

डॉ. माध्वी बोरसे!
( स्वरचित व मौलिक रचना)

मिशन-कर्मयोगी - अब शासन नहीं भूमिका!!!

हम सुपर स्पेशलाइजेशन युग में प्रवेश कर रहे हैं - शासकों को अब शासन नहीं भूमिकाओं का निर्वहन करने का संज्ञान लेना ज़रूरी 

डिजिटलाइजेशन और स्पेशलाइजेशन युग में अब शासकीय कर्मचारियों को शासन नहीं भूमिकाओं का निर्वहन सहिष्णुता, विनम्रता, रचनात्मकता से करना ज़रूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - समय का चक्र हमेशा घूमते रहता है, किसी की ताकत नहीं कि इस चक्र को रोक सके। आज वैश्विक रूप से प्रौद्योगिकी, विज्ञान, नवाचार, नवोन्मेष तीव्र गति से विकसित हो रहे हैं परंतु ऐसा कोई नवाचार प्रौद्योगिकी न आई है, और ना ही कभी आएगी जो समय के चक्र को रोक सके!!! साथियों समय था उनका! जब बड़े-बड़े राजाओं महाराजाओं ने भारत पर राज़ किया समय था!! समय था उनका! जब अंग्रेजों नें भारत पर राज़ किया!! स्वतंत्रता के बाद समय था उनका! जिसने इतने वर्षों तक राज़ किया!! समय का चक्र घूमते गया किसी का लिहाज नहीं किया!! किसी को आसमान से जमीन पर गिराया! तो किसी को ज़मीन से आसमान तक पहुंचाया!! वाह समय साहिबान जी!! तुम्हारी गत तुम ही जानों!! साथियों बात अगर हम शासन प्रशासन की करें तो समय था उनका! जब मानवीय हसते कार्य होता था!! आज अगर हम अंदाज लगाएं तो सोच सकते हैं कि क्या कुछ नहीं हो सकता होगा उस समय परंतु इसमें किसी का दोष नहीं है क्योंकि वह भी एक समय था उनका!! आज डिजिटल भारत स्पेशलाइजेशन युग में डिजिटलाइजेशन हो रहा है तो यह भी समय का चक्र है कि पूरा काम डिजिटल हो गया है, उसमें अनेकों लीकेजस के रास्ते बंद हो गए हैं!! बाकी बचे लेकेजेस भी बंद होने के कगार पर हैं और देश सुशासन की ओर बढ़ रहा है। हालांकि यह भी एक कहावत है कि कितने भी कानून बना लो पर भ्रष्टाचार वालों के भी रास्ते गुपचुप निकल ही आते हैं!!! साथियों बात सच है परंतु आज इस दिशा में भी तीव्रता से उपाय ढूंढ कर लीकेजेज को पूर्णतः बंद करना ज़रूरी होगा साथियों बात अगर हम शासन प्रशासन के सेवकों की करें तो आज के डिजिटल इंडिया में अब उनको अपनी शासन प्रशासन की स्थिति को अब शासन नहीं, भूमिका में बदलना होगा!! उन्हें अपनी प्रक्रिया, कार्यवाही का निर्वहन, सहिष्णुता विनम्रता और रचनात्मक लहजे में करना होगा ताकि शिकायतकर्ताओं के समाधान की ओर बढ़ा जाए। प्रक्रिया में या सख्त लहजे में, नियमों में, ना उलझा जाए इस तरह की नियमावली बनाने का संज्ञान शासन ने तीव्रता से लेना होगा तथा नागरिकों को अपनी वास्तविक भूमिका मालक के रूप में मिले इसलिए उन्हें पावरफुल बनाना होगा ताकि भ्रष्टाचार रूपी दानव को दफनाने में 135 करोड़ जनसंख्या के 270 करोड़ हाथ एक साथ उठ जाएं ताकि यह दानव कभी सर नहीं उठा सके और हम फिर सतयुग की ओर भारत को लेजाकर सोने की चिड़िया का दर्जा वापस दिलाने में सामर्थ बने। साथियों बात अगर हम दिनांक 23 दिसंबर 2021 को माननीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री के संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने भी कहा, पीएम के नए लक्ष्य को पूरा करने के लिए शासन की वर्तमान में जारी व्यस्था को शासन से भूमिका में बदलने की अनिवार्य रूप से आवश्यकता है ताकि भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने का मार्ग प्रशस्त हो सके। उन्होंने कहा कि सामान्य व्यवस्था का युग समाप्त हो गया है और यह प्रशासन के लिए कहीं अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि हम सुपर स्पेशलाइजेशन के युग में प्रवेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिविल सेवा को अपनी भूमिकाओं के निर्वहन के लिए महत्वपूर्ण दक्षताओं पर केंद्रित होना चाहिए और मिशन कर्मयोगी का मुख्य लक्ष्य यही है कि नागरिक शासन को भविष्य के लिए उपयुक्त और उद्देश्य के लिए उपयुक्त की योग्यता वाला बनाया जा सके। सिविल सेवकों को रचनात्मक, कल्पनाशील और अभिनव प्रयोगवादी सक्रिय और विनम्र होना, पेशेवर और प्रगतिशील होना, ऊर्जावान और सक्षम होना, कुशल और प्रभावी होना, पारदर्शी और नई तकनीक के उपयोग हेतु सक्षम होने के पीएम के आह्वान का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सिविल के लिए अपने दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए, यह जरूरी है कि देश भर के सिविल सेवकों के पास दृष्टिकोण, कौशल और ज्ञान का सही सेट हो। उन्होंने कहा, इसे ध्यान में रखते हुए, सरकार ने सिविल सेवा क्षमता निर्माण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के शुभारंभ सहित कई पहल की हैं। कार्यक्रम से सरकार में मानव संसाधन प्रबंधन के विभिन्न आयामों को एकीकृत करने की उम्मीद है, जैसे कि सावधानीपूर्वक क्यूरेटेड और सत्यापित डिजिटल ई-लर्निंग सामग्री के माध्यम से क्षमता निर्माण, योग्यता मानचित्रण के माध्यम से सही व्यक्ति को सही भूमिका में तैनात करना, उत्तराधिकार योजना, आदि। सुशासन सप्ताह के आयोजन के हिस्से के रूप में मिशन कर्मयोगी – भविष्य का ख़ाका विषय पर एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि मिशन कर्मयोगी का उद्देश्य नागरिक सेवाओं के लिए भविष्य की महत्वपूर्ण दूरदर्शिता है जिससे अगले 25 वर्षों के लिए रोडमैप प्रभावी ढंग से निर्धारित हो सकेगा और 2047 तक भारत की शताब्दी को आकार दे सकेगा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मिशन कर्मयोगी के माध्यम से पीएम द्वारा भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करने में सक्षम होगा। उन्होंने कहा, इस मिशन की स्थापन इस मान्यता में निहित है कि एक नागरिक-केंद्रित सिविल सेवा की सही भूमिका, कार्यात्मक विशेषज्ञता और अपने क्षेत्र के बारे में अपेक्षित ज्ञान के साथ सशक्त होती है, के परिणामस्वरूप जीवनयापन को बेहतर बनाने और व्यवसाय करने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि लगातार बदलती जनसांख्यिकी, डिजिटल क्षेत्र के बढ़ते प्रभाव के साथ-साथ बढ़ती सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता की पृष्ठभूमि में, सिविल सेवकों को अधिक गतिशील और पेशेवर बनने के लिए सशक्त करने की आवश्यकता है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मिशन कर्मयोगी अब शासन नहीं भूमिका है। हम सुपर स्पेशलाइजेशन युग में प्रवेश कर रहे हैं प्रशासकों को अब शासन नहीं भूमिकाओं का निर्वहन करने का संज्ञान लेना ज़रूरी हैं। डिजिटलाइजेशन और स्पेशलाइजेशन युग में अब शासकीय कर्मचारियों को शासन नहीं भूमिकाओं का निर्वहन सहिष्णुता, विनम्रता रचनात्मकता से करना ज़रूरी है। 

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

Sunday, December 26, 2021

क्या आप बोल्ड हैं

वीरेंद्र बहादुर सिंह 

एक सवाल है कि आप कितना बोल्ड है? यह तो बहुत बोल्ड महिला है या यह तो बहुत बोल्ड पुरुष है... ? आप पर लगा यह लेबल आप को अच्छा लगता है? आप के परिवार वालों को अच्छा लगता है? क्या आप एक बोल्ड महिला को पत्नी के रूप में पसंद करेंगें? क्या आप को लगता है कि बोल्ड महिला को पत्नी के रूप में स्वीकार करने के बाद वह सामान्य महिला के रूप में संबंध निभाएगी?
एक महिला के लिए बोल्डनेस क्या हो सकती है? किसी पुरूष मित्र के कंधे पर हाथ रख कर सिगरेट पीना? बिंदास गालियां देना? स्पेगेटी ब्लाउज, आफ शोल्डर टीशर्ट या पैंटी दिखाई दे इस तरह की स्कर्ट्स पहनना? दोस्ती से बिस्तर तक पहुंचने वाले संबंधों को खुलेआम स्वीकार करना? सास-ससुर की बातों को न मानना?
एक पुरुष के लिए बोल्डनेस क्या हो सकती है? छाती ठोक कर अपने मन की बात कहना? अपनी अनपढ़ पत्नी के साथ न पटने की बात स्वीकार करना? अपने एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप का बखान करना? बगल से गुजरने वाली लड़की को देख कर शरीर में होने वाली सनसनाहट को सब के सामने स्वीकार करना?
बोल्ड होना क्या है? बहादुरी? समूह से अलग होने की टेक्निक? स्वभाव? प्रमाणिकता?
बोल्ड होने का मतलब अपनी गलतियों को स्वीकार करना। बोल्ड होने का मतलब यानी अपनी गलतियों को स्वीकार कर नई शुरुआत करना। बोल्ड होने का मतलब अपनी इच्छाओं को न दबाना। एकदम अंजान सुनसान रास्ते पर अंधेरी रात में अकेली जाना यह बोल्डनेस नहीं है, पर ऐसे अंजान रास्ते पर अकेली जाने में डर लगता है, यह स्वीकार करना बोल्डनेस है। जिस तरह जी रही हो, वह सब स्वीकार कर लेना बोल्डनेस नहीं है। पर जिस तरह जी रही हो, उसमें से थोड़ा भी किसी को पता न चले, इस तरह उसे कहीं आड़े हाथों छुपा रखो, यह बोल्डनेस है। कपड़े के अंदर हर आदमी नंगा होता है। पर कपड़ा पहन कर घूम रहे समूह के बीच एकदम नग्न हो निकल पड़ना भी बोल्डनेस नहीं है।
बोल्डनेस गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड नहीं की जा सकती। सोशल मीडिया पर जम कर लिखने, फलानाफलाना का खुलासा करने से आप बोल्ड नहीं हो जातीं। 'बोल्ड' होने के लिए जिस तरह शार्पनर में पेंसिल छीली जाती है, उस तरह छिलना पड़ता है। मुट्ठियां जलानी पड़ती हैं। जली मुट्ठियों का पसीना पीना पड़ता है।
आप की बोल्डनेस का आप के कपड़े से कोई लेनादेना नहीं है। आप की बड़ी सी लाल बिंदी या आप के बढ़े बालों से आप की बोल्डनेस को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता। बोल्डनेस किसी भी तरह के प्रतीकों से नहीं आती। गांव की पूरी तरह शरीर ढ़ंकने वाली महिला खुद अपने लिए कोई निर्णय लेती है तो उसे बोल्ड कहा जा सकता है। 'जाओ, तुम शहर जा कर अपना कैरियर बनाओ, मैं यहां रह कर संघर्ष करूंगी।' पति के कंधे पर हाथ रख कर यह कहने वाली महिला भी बोल्ड है और गड्ढ़े में गिरे बेटे को निकलने की राह देखने वाली महिला भी बोल्ड है। पूरे दिन आफिस में काम कर के घर आने वाले पति को दूध या दही लेने के लिए चौराहे पर भेजने वाली महिला बोल्ड नहीं है। पर पूरे दिन काम करने वाले पति की जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले लेने वाली पत्नी जरूर बोल्ड है। 
अगर बोल्ड होने का दिखावा करने के लिए आप कार्पोरेट मीटिंग में शराब पीती हैं, खुद को बुद्धिशाली साबित करने के लिए सामने वाले व्यक्ति को नीचा दिखाती हैं, उसका अपमान करती हैं, अपने पूर्व के संबंधों के बारे में सार्वजनिक रूप से चर्चा करती हैं, जैसा रह लही हैं, वैसा सचसच कह जाती हैं, एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेती हैं, पोर्न फिल्मों या सेक्स की बातें करती हैं तो आप बोल्ड नहीं, मूर्ख हैं। रांग साइड में बाइक चलाना या शहर की सड़कों पर 120 की स्पीड में कार चलाना बोल्डनेस नहीं है। अगर आप के अंदर शिष्टता है तो आप बोल्ड हो सकती हैं। जब आप अपना सुरक्षा कवच तोड़ कर उसमें से बाहर कदम रखती हैं तो आप बोल्डनेस की ओर पहला कदम बढ़ाती हैं। सब कुछ जानते हुए भी आप चुप रहना पसंद करती हैं तो आप बोल्डनेस की अंगुली पकड़ रही होती हैं। जब आप किसी के ऊपर आर्थिक रूप से डिपेंड नहीं रहना चाहतीं, तब आस बोल्डनेस को गले लगा रही होती हैं। जिंदगी में, नौकरी में या धंधे में, संबंधों में आने वाले हर संघर्ष के लिए तैयार रहती हैं तो आप बोल्डनेस को अपने अंदर उतारती हैं।
बोल्ड मनुष्य वह है जो खूब शक्तीशाली होने के बावजूद अपनी शक्तियों को काबू में रख सके। बोल्ड मनुष्य वह है, जो अपने संबंधों का प्रचार करने के बजाय संबंधों में की गई अपनी गलती को बेझिझक कबूल कर सके। बोल्ड मनुष्य वह है जो संबंधों-धंधे में खुद की गलती को अपने कंधे पर ले सके। बोल्ड रहने के लिए खुद के साथ कमिटेड रहना पड़ता है। झूठ को समझना पड़ता है और सत्य को खुला रखना पड़ता है। बोल्डनेस हर किसी को रास नहीं आती, बोल्ड होने के लिए जलते अंगारे पर बिना चीखे नंगे पैर चलने का साहस करना पड़ता है।  
कृत्रिम बोल्डनेस को ओढ़ कर चलने वाला मनुष्य किसी भी समय नंगा हो सकता है। बोल्डनेस दिखाने के लिए सिगरेट के कश लेना, शराब पीना या शिष्टता भंग करने की कतई जरूरत नहीं है। बोल्डनेस दिखाने की पहली सोढ़ी है स्वीकार। किसी भी परिस्थिति, संयोग को स्वीकार करना। सार्वजनिक रूप से या आईने के सामने खड़े हो कर या खुद के सामने। आप की बोल्डनेस दुनिया नहीं देखेगी तो चलेगा, पर आप को जरूर पता होनी चाहिए।

वीरेंद्र बहादुर सिंह 
जेड-436ए, सेक्टर-12,