Wednesday, March 2, 2022

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि 2047 के भारत के लिए युवा प्रतिभाओं का मार्गदर्शन करना भारत के लिए सबसे अच्छा निवेश है

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि युवा प्रतिभाओं का मार्गदर्शन करना 2047 के भारत के लिए सबसे अच्छा निवेश है। उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्षों से सक्रिय युवा वैज्ञानिकों को अगले 25 वर्षों के रोडमैप में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी, जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष का उत्सव मनाएगा।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह हमारी वैज्ञानिक उपलब्धियों की अनिवार्यता और भव्यता का उत्सव मनाने के लिए एक अखिल भारतीय कार्यक्रम "विज्ञान सर्वत्र पूज्यते" को यादगार बनाने के लिए राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर राष्ट्रीय विज्ञान सप्ताह के समापन समारोह में बोल रहे थे।

 

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि "विज्ञान सर्वत्र पूज्यते" के इस एक सप्ताह के स्मरणोत्सव की भावना विज्ञान का उत्सव मनाना और उसका पूजन करना है। उन्होंने कहा कि यह आत्मनिरीक्षण करने और यह देखने का अवसर है कि जो हमारे पास नहीं है, उसकी भरपाई कैसे करते हैं। उन्होंने कहा कि विज्ञान और वैज्ञानिक सोच को आम आदमी तक ले जाने का लक्ष्य भी है, जहां वे वैज्ञानिक जानकारी और नवाचारों को आत्मसात करके लाभान्वित होने के साथ-साथ एक गहन वैज्ञानिक सोच विकसित कर  सकेंगे।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी मोदी ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर वैज्ञानिकों को बधाई दी है, जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा, "सभी वैज्ञानिकों और विज्ञान के प्रति उत्साही लोगों को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की बधाई। आइए हम अपनी सामूहिक वैज्ञानिक जिम्मेदारी को पूरा करने और मानव की प्रगति के लिए विज्ञान की शक्ति का लाभ उठाने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करें।”

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, "एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम - विज्ञान सर्वत्र पूज्यते” (विज्ञान के लिए सार्वभौमिक सम्मान) को व्यापक भागीदारी और चौतरफा सराहना मिली है, जिसे हमने 22 फरवरी, 2022 को दिल्ली सहित 75 स्थानों पर शुरू किया था। आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर समाप्त होने वाला यह राष्ट्रीय विज्ञान सप्ताह, उस संघर्ष और बलिदान को प्रतिबिंबित करने की एक पहल थी, जिसके कारण भारत में आधुनिक विज्ञान का उदय हुआ और 2047 के सपने के अनुरूप अगले 25 वर्षों के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया। यह आयोजन भारतीय स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उत्सव के तौर पर "आज़ादी का अमृत महोत्सव" का हिस्सा था। इसलिए यह भारत की स्वतंत्रता के 75 गौरवशाली वर्षों की उपलब्धियों को याद करने के साथ-साथ उसे प्रदर्शित करने का भी अवसर है।

 

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित सभी मंत्रालयों और विभागों ने संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में देश भर में इस कार्यक्रम को अंजाम देने के लिए हाथ मिलाया था और प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) कार्यालय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक संगठन - विज्ञान प्रसार को इस कार्यक्रम को कार्यान्वित करने की भूमिका सौंपी गई।

 

डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा, जब हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ, भारतीय स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में आजादी का अमृत महोत्सव का उत्सव मना रहे हैं, हम महेंद्रलाल सरकार, जे.सी. बोस और पी.सी. रे जैसे भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान को भी याद करना चाहते हैं, जिन्होंने भारत में आधुनिक विज्ञान की आधारशिला रखने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि आज भारत प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा, नैनो-प्रौद्योगिकी, कृषि, डिजिटल और आईटी क्षेत्र और जीवन विज्ञान जैसे क्षेत्रों में तेजी से और परिवर्तनकारी बदलाव पर जोर दे रहा है।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जिसने अपने संविधान में विशेष रूप से विज्ञान का उल्लेख किया हैको प्रमुख स्थान दिया है। उन्होंने कहा, वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद साथ-साथ पूछताछ एवं सुधार की भावना का पोषण करना भारत के प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य है।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विज्ञान संचार पुरस्कार भी प्रदान किए, जो हर साल 28 फरवरी को सर सी.वी. रमन द्वारा ‘रमन इफेक्ट’ की खोज की घोषणा को यादगार बनाने के लिए आयोजित किया जाता है, जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने 1987 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में संवाद कायम करने तथा उसे लोकप्रिय बनाने में उत्कृष्ट प्रयासों को बढ़ावा देने, प्रोत्साहित करने और मान्यता देने के साथ-साथ लोगों के बीच वैज्ञानिक सोच पैदा करने के लिए राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कारों की स्थापना की। ये पुरस्कार हर साल राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर प्रदान किए जाते हैं। पुरस्कार में एक स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र और पुरस्कार राशि शामिल है। (पुरस्कार विजेताओं की सूची संलग्न है)

 

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित तीन कॉफी-टेबल पुस्तकों का विमोचन किया। "विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग: अतीत-वर्तमान-भविष्य" शीर्षक वाली पहली पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया गया है कि 1971 में सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की स्थापना के बाद से इसको कैसे आकार दिया गया है और इसने भारत में वैज्ञानिक परंपरा और निर्देशित नवाचार को कैसा आकार दिया है। यह अपने भविष्य के वैज्ञानिक लक्ष्यों की एक झलक भी प्रदान करती है।

 

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दूसरी पुस्तक का शीर्षक है - "75 अंडर 50: साइंटिस्ट्स शेपिंग टुडेज़ इंडिया", जिसमें 75 वैज्ञानिकों के व्यक्तिगत जीवन और पेशेवर उपलब्धियों को शामिल किया गया है, जो उनके आसपास की विविधता पर गहराई से नज़र डालते हैं, जैसे कि उनकी अलग-अलग पृष्ठभूमि, वैज्ञानिक बनने के कारण, उनके सामने आने वाली बाधाएं और विभिन्न विषयों में उनके कार्य।

 

तीसरी पुस्तक का शीर्षक है - "75 फाउंडर्स ऑफ मॉडर्न साइंस इन इंडिया", जिसमें भारत को समकालीन दुनिया में एक महान सभ्यता बनाने में आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों के उत्कृष्ट योगदान को याद करते हुए, भारत की आजादी के 75वें वर्ष का उत्सव, यानी आजादी का अमृत महोत्सव मनाया गया है।

 

परमाणु ऊर्जा विभाग के प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान के डॉ. बी.एस. मुंजाल और डॉ. सूर्यकांत गुप्ता द्वारा लिखित, मीट, ग्रीट एंड ट्वीट विद प्लाज़्मा टून्स नामक एक विज्ञान कार्टून पुस्तक का भी विमोचन किया गया। यह भारत के तीक्ष्ण बुद्धि वाले युवा की शुरुआत में पहचान करके उन्हें आकर्षित करने का एक नया प्रयास है। यह कार्टून पुस्तक सामाजिक लाभ के लिए प्लाज्मा अनुसंधान के अधिकतम इस्तेमाल को लेकर एक विस्तृत कैनवास प्रदान करती है।

 


मूंग दाल के अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य में 3.86 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई

सरकार ने आवश्यक खाद्य वस्तुओं की घरेलू उपलब्धता बढ़ाने और उनकी कीमतों को स्थिर रखने के लिए कई सक्रिय एवं निवारक उपाय किए हैं। इन्हीं उपायों की वजह से मूंग दाल की कीमतों में तेज गिरावट दर्ज की गई है।

उपभोक्ता कार्य विभाग (डीओसीएके आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 28 फरवरी 2022 को मूंग दाल का अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य 102.36 रुपये प्रति किलोग्राम दर्ज किया गया,  जोकि 28 फरवरी 2021 को 106.47 रुपये प्रति किलोग्राम था और इस प्रकार, 3.86 प्रतिशत की गिरावट आई।

मई 2021 में राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतों की निगरानी करने और आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत मिल मालिकोंआयातकों और व्यापारियों द्वारा रखे गए दालों के स्टॉक का खुलासा सुनिश्चित करने संबंधी सलाह जारी की गई थी। मूंग को छोड़कर बाकी सभी दालों की स्टॉक सीमा लागू करने के निर्णय को जुलाई 2021 को अधिसूचित किया गया था। उसके बाद, 19 जुलाई 2021 को एक संशोधित आदेश जारी किया गया था जिसमें चार दालों अरहरउड़दमसूरचना – के संबंध में 31 अक्टूबर 2021 तक की अवधि के लिए स्टॉक सीमा निर्धारित की गई थी।

दालों की उपलब्धता बेहतर करने और उनकी कीमतों को स्थिर रखने के लिएसरकार ने सुचारू तथा निर्बाध आयात सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 15 मई, 2021 से लेकर 31 अक्टूबर, 2021 तक मुक्त श्रेणी’ के तहत अरहरउड़द और मूंग के आयात की अनुमति दी है। उसके बाद अरहर और उड़द के आयात के संबंध में मुक्त व्यवस्था को 31 मार्च, 2022 तक बढ़ा दिया गया था। संबंधित विभागों/संगठनों द्वारा विभिन्न सुविधाओं और कार्यान्वयन संबंधी कड़ी निगरानी के माध्यम से इस नीतिगत उपाय का समर्थन किया गया है। आयात संबंधी नीतिगत उपायों की वजह से पिछले दो वर्षों की इसी अवधि की तुलना में अरहरउड़द और मूंग के आयात में पर्याप्त वृद्धि हुई है।  

जिलाधिकारी सुनील कुमार यादव ने समस्त जिलेवासियों को महाशिवरात्रि पर्व की दी बधाई

(रवि कुमार भार्गव

को-आर्डिनेटर अयोध्या टाइम्स बिहार)

दिनांक -01/03/2022

सीतामढ़ी:-जिलाधिकारी सुनील कुमार यादव ने समस्त जिलेवासियों को महाशिवरात्रि पर्व की दी बधाई।

जिलाधिकारी सुनील कुमार यादव ने समस्त जिलेवासियों को महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर उन्हें हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि  आपसी प्रेम, पारस्परिक सौहार्द्र एवं सामाजिक सद्भाव के साथ महाशिवरात्रि का पर्व मनाएं। यह पर्व समस्त जिलेवासियों के जीवन मे  सुख, शांति और समृद्धि लेकर आए।

सजग रहे,सतर्क रहें,मास्क पहनकर ही बाहर निकले,सदैव सामाजिक दूरी का पालन करे,किसी भी प्रकार के लक्षण महसूस होने पर अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर सम्पर्क करें। हमेशा कोरोना गाइडलाइन का जरूर पालन करे। हम सब मिलकर ही कोरोना संक्रमण के चेन को रोक सकते है।

अरसीकेरे कर्नाटक का भव्य प्राचीन सहस्रकूट मंदिर

 

Monday, February 28, 2022

हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक बनती है यात्रा

जब शिवरात्रि आती है तो अनेक शिव भक्त कांवड़ कांवड़ लाने के लिए जाते हैं। जिन रास्तों से कांवड़िए टोली की टोली बनाकर निकलते हैं, ऐसा लगता मानो स्वयं भोले बाबा और उनके सभी गण कैलाश पर्वत से उन रास्तों पर उतर आए हों। रास्तों पर कांवड़िए बम-भोले, बम-भोले की जय-जय कार करते हुए नाचते गाते चलते हैं। कांवड़िए शिव भक्ति में ऐसे लीन रहते की उन्हें किसी भी दर्द का अनुभव नहीं होता परन्तु बहुत से कांवड़ियों के पैरों में छाले पड जाते हैं और कुछ के पैरों में सूजन आ जाती हैं तथा कुछ की टांगे बहुत दर्द करती हैं इसलिए इनके विश्राम के लिए कदम कदम पर स्थानीय लोगों द्वारा विश्राम गृह की व्यवस्था की जाती है। जहां पर कांवड़ियों के लिए उचित जल-पान की व्यवस्था की जाती है। कांवड़ियों के पैरों को लोग अपने हाथों द्वारा गर्म पानी से धोते है ताकि उनके दर्द भरे पैरों को आराम मिल सके और उनके पैरो को धीरे-धीरे हाथों से दबाया जाता है। भोजन में विभिन्न प्रकार के फल, मेवा, मिठाईयां और अन्य भोज्य पदार्थों की व्यवस्था करते हैं। कांवड़ियों के सोने के लिए भी उचित व्यवस्था करते हैं। लेकिन सभी को अधिकतर यही पता है कि हिन्दू ही कांवड़ियों की सेवा करते हैं परन्तु ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दू ही कांवड़ियों की सेवा करते हैं बल्कि बहुत से मुस्लिम भी उन रास्तों पर जिन रास्तों से कांवड़िए गुजरते हैं जगह जगह विश्राम गृह बनाकर कांवड़ियों के जल पान और विश्राम की व्यवस्था करते हैं। हिन्दूओं की तरह ही पूरे श्रद्धा भाव से उनके पैर गर्म पानी से अपने हाथों द्वारा मलमलकर धोते हैं और पैरों को भी धीरे-धीरे दबाते हैं ताकि कांवड़ियों को आराम मिले। वह भी फल, मेवा, मिठाईयां और उचित भोजन की सुन्दर व्यवस्था करते हैं। सच मानिए जब ऐसा होता है तब हिन्दू मुस्लिम एकता का ऐसा संदेश दुनिया के सामने आता है कि जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। ऐसे लोग दुनिया के सामने ये सिद्ध कर देते हैं कि सबका मालिक एक है। भगवान और अल्लाह उसी मालिक के विभिन्न रुपों में से दो रूप हैं जिन्हें उस मालिक ने नहीं बल्कि मानव ने बनाया है। इसलिए हमें जातियों में न बटकर सिर्फ मानवता के गुण को अपनाना चाहिए। सभी सिर्फ मनुष्य है जिनका रुप रंग और वेशभूषा अलग है परन्तु आत्मा और खून समान है। सभी के खून का रंग लाल ही है। धन्य है वो कांवड़िए जो मुस्लिमों के सेवा भाव के प्रस्ताव को स्वीकार कर उन्हें सेवा का मौका देते हैं और उनसे भी अधिक धन्य हैं वो मुस्लिम जो कांवड़ियों की सेवा कर हिंदू मुस्लिम में भाईचारा, प्रेम और शांति कायम करने में सहायता करतें हैं। साथ ही उन लोगों को सख़्त संदेश देते हैं जो समाज में नफ़रत फैलाने में लगे हुए हैं कि तुम कितनी भी कोशिश कर लो लेकिन हिंदू मुस्लिम भाईचारे को कभी खत्म नहीं कर सकते हो। कांवड़ यात्रा के समय ऐसे दृश्यों को देखकर सभी के मन में भाईचारे की भावना हिलोरें मारने लगती है और ऐसी प्रेरणा का जन्म होता है जिसे हिंदू और मुस्लिम एक दूसरे की मदद के लिए आगे आने लगते हैं। यही से समाज में फैली नफ़रत का कांटों से भरा पेड़ सुखने लगता है और भाईचारे का सुन्दर रंग बिरंगी फूलों से भरा पेड़ बहुत तेजी से पनपने लगता है।

लेखक-
नितिन राघव

आप देखते रह गए...

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657

पता नहीं कहाँ से आया था। न जाने किस उम्मीद के साथ आया था। एक दुबला-पतला कुत्ता हमारे आंगन में निरीह आँखों से हमारी ओर देख रहा था। रह-रहकर भौंकने लगा। लगा हमारी देख-रेख करने आया है। विश्वासपात्र बनकर रहेगा। यही सोचकर रोटी का एक टुकड़ा उसे खाने के लिए दे दिया। दिन, महीने बने और महीने साल। कई सालों तक वह इसी तरह भौंकता रहा। वह बार-बार विश्वास दिलाता रहा कि मैं तुम्हारी देख-रेख कर रहा हूँ। तुम्हारा विश्वासपात्र हूँ।

कई सालों से उसी आंगन में रहने वाले लोगों पर उसका भौंकना कभी-कभार काटना हमें सोचने पर मजबूर कर रहा था। उसके भौंकने में इतना आक्रोश था कि मानो वह किसी अन्याय का विरोध कर रहा है। लगा कुत्ता भला हमारे साथ विश्वासघात कैसे कर सकता है? हो न हो हमीं में कोई ऐसा है जो धोखा देने की फिराक में बैठा है। हमने भौंकने वाले कुत्ते के चक्कर में अपने प्रति सहानुभूति रखने वालों को दूर करने के लिए आंगन में चारदिवारी खड़ी कर दी। बहुत सालों तक मिलजुलकर रहने वाले हम बाहर से आए कुत्ते के चलते अलग-थलग पड़ गए। अब हममें पहले जैसा प्यार नहीं रहा। अपना चूल्हा अलग कर चुके थे। एक-दूसरे को पीठ दिखाकर पीठ पीछे षड़यंत्र रचने लगे। एक-दूसरे पर लाठियाँ चलाने लगें। एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए।

हम निश्चिंत हो चले थे कि कोई हमारा क्या बिगाड़ सकता है? चूंकि आंगन में शेर जैसा कुत्ता पाल रखा है मजाल कोई हमारी ओर आँख उठाकर देखने की हिम्मत करे। कहते हैं अधिक निश्चिंतता भी एक बड़े खतरे का सबब होता है। हमने अपने कुत्ते पर बहुत विश्वास किया। उसे कुत्ते से शेर बनाया। खुद को शेर सा महसूस करने लगे। किंतु जिस दिन वह कुत्ता शेर बना उसी दिन से एक नया अध्याय आरंभ हुआ।

अब वह शेर बनकर हमारे खून का प्यासा बन चुका था। वह हमारी बनाई चारदीवारी के भीतर हमारा शिकार करने लगा। हमसे खिलवाड़ करने लगा। अलग-थलग पड़ने से एकता कम और संवेदना अधिक मरती है। हमारी कराह की किसी को परवाह नहीं थी। कुत्ते से शेर बनना और भरोसा से धोखा खाना हमारी वर्तमान पीढ़ी के लिए नई बोतल में पुरानी शराब सी लगी। हम अपनी बनायी संकीर्णताओं की चारदीवारी के भीतर फंसकर रह गए। हमारे टुकड़ों पर पला कुत्ता शेर जो बन गया था! न अपना दुखड़ा सुना सकते थे और न किसी का सुन सकते थे। निस्सहायता की पराकाष्ठा इससे बढ़कर और क्या हो सकती थी? कतार में खड़े होकर शेर का शिकार बनने का यह किस्सा हमेशा से चला आ रहा है। चूंकि हम इंसान नहीं भेड़ थे, भेड़ हैं और भेड़ ही रहेगें इसलिए यह किस्सा हमारे साथ हमेशा दोहराया जाएगा।  अंतर केवल इतना होगा कि कुत्ते की शक्ल में शेर और इंसान की शक्ल में भेड़ बदलते रहेंगे।     

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अवसर!


इस अवसर को तू ना गवा,
समय बहे जैसे हवा,
कदर करे जब मिले अवसर,
जीवन में रह जाए ना कोई कसर!

विजेता हमेशा अवसर पहचाने,
पराजित ढूंढे अनेक बहाने,
हर दिन में एक नया अवसर मिले,
इस जिंदगी को मुस्कुराकर जी ले!

हर पल है दूसरा मौका,
ना कर स्वयं से धोखा,
ना जाने दे कीमती समय को हाथ से,
हां आजमाले, तुझ में भी कुछ बात है!

अब ना तू कभी ठहर,
मंजिल में आए तूफान या कहर,
पीछे धकेल, मुसीबत की लहर,
मंजिल को पाने का है यह सुनहरा अवसर!!